राजस्व आसूचना निदेशालय ने विदेशी मुद्रा तस्करी रैकेट का भंडाफोड़ किया, विदेशी नागरिकों की संलिप्तता

 

भारत सरकार के राजस्व विभाग के अधीन राजस्व आसूचना निदेशालय (डीआरआई) के दिल्ली क्षेत्र इकाई के अधिकारियों ने सटीक सूचना के आधार पर नई दिल्ली के इन्दिरा गांधी अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डे के टी-3 प्रस्थान हॉल पर 7 विदेशी नागरिकों को रोका तथा उनके पास से बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा पकड़ी। यह विदेशी मुद्रा इन विदेशी नागरिकों के चेक-इन सामान से बरामद की गयी। ये सभी विदेशी नागरिक 5 और 6 अगस्त, 2018 की रात को हांगकांग की उड़ान पकड़ने की तैयारी में थे। इस तस्कर गिरोह के भारतीय सह-अपराधी का भी पता लगाकर उसे पकड़ लिया गया है।

जब्तशुदा विदेशी मुद्रा को तौलिये में लपेटकर सामान में इस तरह छुपाया गया था, ताकि हवाई अड्डे पर एजेंसियां उनका पता न लगा सकें। सभी मुद्राएं 100-100 अमेरिकी डॉलर के मूल्य-वर्ग की थी। कुल लगभग 8.90 लाख अमेरिकी डॉलर पकड़े गये, जिनकी बाजार कीमत लगभग 6.14 करोड़ रुपये है।

अब तक की जांच से पता लगा है कि इस गिरोह में विदेशी और भारतीय नागरिक संलिप्त हैं, जो हांगकांग तथा भारत में स्थित हैं। गिरोह का मास्टर-माइंड हांगकांग में बैठा है, जो माल ले जाने वाले कैरियरों का इंतजाम करता है और सोने की छड़ों को सामान में छुपाकर उनके जरिए भारत भेजता है। भारत में उनका साथी सोना ले लेता है और उसके बदले विदेशी मुद्रा देता है। इस विदेशी मुद्रा को भारत से हांगकांग भेज दिया जाता है। जांच में यह भी पता चला है कि गिरोह उन्हीं कैरियरों का बार-बार इस्तेमाल नहीं करता ताकि भारत में कस्टम की नजर से बचा जा सके। पूर्व में भी डीआरआई ने सोना, विदेशी मुद्रा और हथियार जैसी विभिन्न प्रतिबंधित सामग्रियों की तस्करी में कई विदेशी नागरिकों को पकड़ा है।

सभी 8 व्यक्तियों को गिरफ्तार कर लिया गया है। मामले में आगे जांच चल रही है।

वाणिज्‍य और उद्योग मंत्री ने निर्यात मित्र ऐप जारी किया

केंद्रीय वाणिज्‍य और उद्योग तथा नागरिक उड्डयन मंत्री सुरेश प्रभु ने नई दिल्‍ली में निर्यात मित्र मोबाइल ऐप जारी किया। भारतीय निर्यातक महासंघ (फीओ) द्वारा विकसित यह ऐप एन्‍ड्रायड और आईओसी प्‍लेटफॉर्म वाले सभी मोबाइल फोन पर उपलब्‍ध है। इसके जरिए अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार से संबंधित सभी नियमों और व्‍यवस्‍थाओं की जानकारी हासिल की जा सकती है। इसमें आयात निर्यात से जुड़ी नीतियां, जीएसटी की दरें, निर्यात के लिए मिलने वाली रियायतें, शुल्‍क तथा बाजारों तक पहुंचने के लिए आवश्‍यक बाते शामिल हैं। इसमें 87 देशों का डाटा शामिल किया गया है। इसकी सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें टैरिफ से जुड़ी सभी जानकारियां उपलब्‍ध हैं।

सुरेश प्रभु ने इस अवसर पर कहा कि डिजिटल प्रौदयोगिकी व्‍यापार और कारोबार में बड़ी भूमिका निभाने जा रही है। नया ऐप डिजिटल इंडिया की अवधारणा को मूर्त रूप देने की दिशा में एक अहम प्रयास है। उन्‍होंने कहा कि निर्यात के मोर्चें पर अच्‍छे संकेत मिल रहे हैं। इसमें 20 प्रतिशत की दर से वृद्धि हुई है। सरकार निर्यात को बढ़ावा देने के लिए कारोबार को सुगम बनाने की कोशिश कर रही है। उन्‍होंने निर्यात को बढ़ावा देने के लिए उद्योग जगत से नये ऐप का भरपूर इस्‍तेमाल करने का अनुरोध किया।

राज्यसभा उप सभापति चुनाव आज, जानिए क्या होती है प्रक्रिया

राज्यसभा के उपसभापति के लिए गुरुवार को चुनाव होना है. इसी दिन राज्यसभा को नया उपसभापति भी मिल जाएगा. यह एक संवैधानिक पद है. भारत के संविधान के आर्टिकल 89 में कहा गया है कि राज्यसभा अपने एक सांसद को उपसभापति पद के लिए चुन सकता है, जब यह पद खाली हो.

उपसभापति का पद इस्तीफा, पद से हटाए जाने या इस पद पर आसीन राज्यसभा सांसद का कार्यकाल खत्म होने के बाद खाली हो जाता है. वर्तमान उपसभापति प्रोफेसर पीजे कुरियन का कार्यकाल 1 जुलाई को खत्म हो गया था, जिस कारण यह पद अभी खाली है.

क्या है राज्यसभा के उपसभापति चुनने का नियम

राज्यसभा उपसभापति का चुनाव करने की प्रक्रिया बहुत ही सहज और सरल है. कोई भी राज्यसभा सांसद इस संवैधानिक पद के लिए अपने किसी साथी सांसद के नाम का प्रस्ताव आगे बढ़ा सकता है. इस प्रस्ताव पर किसी दूसरे सांसद का समर्थन भी जरूरी है. इसके साथ ही प्रस्ताव को आगे बढ़ाने वाले सदस्य को सांसद द्वारा हस्ताक्षरित एक घोषणा प्रस्तुत करनी होती है जिनका नाम वह प्रस्तावित कर रहा है. इसमें इस बात का उल्लेख रहता है कि निवार्चित होने पर वह उपसभापति के रूप में सेवा करने के लिए तैयार हैं. प्रत्येक सांसद को केवल एक प्रस्ताव को आगे बढ़ाने या उसके समर्थन की अनुमति है.

अगर किसी प्रस्ताव में एक से ज्यादा सांसद का नाम हैं तो इस स्थिति में सदन का बहुमत तय करेगा कि कौन राज्यसभा के उपसभापति के लिए चुना जाएगा. अगर सभी राजनीतिक दलों में किसी एक सांसद के नाम को लेकर आम सहमति बन जाती है, तो इस स्थिति में सांसद को सर्वसम्मति से राज्यसभा का उपसभापति चुन लिया जाएगा.

उपसभापति पद के लिए हुए अबतक के चुनाव

राज्यसभा उपसभापति पद के लिए अबतक कुल 19 बार चुनाव हुए हैं. इनमें से 14 मौकों पर सर्वसम्मति से इस पद के लिए उम्मीदवार को चुन लिया गया, मतलब चुनाव की नौबत ही नहीं आई. 1969 में पहली बार उपसभापति के पद के लिए चुनाव हुआ था.

राज्यसभा उपसभापति को पूरी तरह से राज्यसभा के सांसद ही निवार्चित करते हैं. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद है. उपसभापति को सभापति/उपराष्ट्रपति की गैरमौजूदगी में राज्यसभा का संचालन करना होता है. इसके साथ ही तटस्था के साथ उच्च सदन की कार्यवाही को भी सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है.

राज्यसभा के उपसभापति पद के उम्मीदवार के लिए NDA ने जेडीयू सांसद हरिवंश को चुना है. कांग्रेस ने राज्यसभा के उपसभापति के उम्मीदवार के तौर पर बीके हरिप्रसाद का नाम आगे किया है. गुरुवार को फैसला हो जाएगा कि राज्यसभा का अगला उपसभापति कौन होगा. हालांकि आंकड़े सत्तारूढ़ दल एनडीए के साथ हैं.

एनडीए के उप-राजयसभापती उम्मीदवार हरिवंशह को शिवसेना का समर्थन

हरिवंश – हरिप्रसाद


9 अगस्त को होने वाले उपसभापति के चुनाव में बीजेपी, विपक्ष को वाकओवर देने के मूड में नहीं है


राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव के लिए एनडीए ने जेडीयू के सांसद हरिवंश को अपना उम्मीदवार घोषित किया था. इन्हें अब शिवसेना का भी समर्थन मिल गया है. उच्च सदन में शिवसेना के सदस्य अनिल देसाई ने कहा ‘‘हम एनडीए उम्मीदवार का समर्थन करेंगे.’’ उल्लेखनीय है कि शिवसेना भाजपा से नाराज चल रही है. इसी क्रम में शिवसेना के सदस्य हाल ही में मोदी सरकार के खिलाफ लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव के दौरान अनुपस्थित भी रहे थे. उच्च सदन में शिवसेना तीन सदस्य हैं. इससे पहले पार्टी सांसद संजय राउत ने भी कल उपसभापति चुनाव में राजग उम्मीदवार को समर्थन देने की पुष्टि की थी.

इस तरह 9 अगस्त को होने वाले राज्यसभा के उपसभापति पद के चुनाव के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों ने ही अपने अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है. एनजीए ने जहां जेडीयू के सांसद हरिवंश को अपना उम्मीदवार बनाया वहीं कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष ने बीके हरिप्रसाद को पहले ही अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया था.

मॉनसून सत्र के समाप्त होने से एक दिन पहले 9 अगस्त को सुबह 11 बजे उपसभापति पद के लिए चुनाव होगा और राज्यसभा के उपसभापति को चुना जाएगा. बता दें कि राज्यसभा के उपसभापति पीजे कुरियन का कार्यकाल इस साल के जून के महीने में पूरा हो गया है.

राज्यसभा में 245 सदस्य हैं. ऐसे में राज्यसभा के उपसभापति का चुनाव जीतने के लिए 122 सदस्यों के समर्थन का आंकड़ा पाना होगा. वर्तमान में बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के पास राज्यसभा में 85 सांसद हैं. वहीं यूपीए के पास 114 सीटें हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि विपक्ष के उम्मीदवार को चुनाव जीतने में कोई खास मुश्किल का सामना नहीं करना पड़ेगा.

उपसभापति राज्यसभा के लिए भाजपा का गेमपलान


इसे बीजेपी का ऐसा मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है जिस पर विपक्षी दलों को भी अपना उम्मीदवार खड़ा करने में कई दौर की बैठक करनी पड़ी


राज्यसभा के उपसभापति पद के चुनाव के लिए बीजेपी ने काफी सोच-समझकर सियासी बिसात बिछाई है. बीजेपी ने अपनी सहयोगी जेडीयू के राज्यसभा सांसद हरिवंश को अपना उम्मीदवार बनाया है. हरिवंश वरिष्ठ पत्रकार भी रहे हैं. उनके नाम को आगे कर बीजेपी ने एनडीए के भीतर के सियासी समीकरण को साधने की पूरी कोशिश की है.

हरिवंश का नाम सामने आने के बाद अपनी पार्टी के उम्मीदवार की जीत के लिए बिहार के मुख्यमंत्री और जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार काफी सक्रिय हो गए हैं. नीतीश कुमार ने उपसभापति पद के चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार के समर्थन के लिए कई दूसरे छोटे राजनीतिक दलों से संपर्क साधना शुरू कर दिया है, जिनकी भूमिका काफी अहम है. इन राजनीतिक दलों की ताकत भले ही कम है, लेकिन, राज्यसभा के भीतर अपने उम्मीदवार की जीत के लिए इनका समर्थन बेहद अहम है.

गैर-यूपीए और गैर-एनडीए दलों की भूमिका बढ़ी

एनडीए और यूपीए के मौजूदा सांसदों की तादाद लगभग बराबर है. लेकिन, टीआरएस, बीजेडी और एआईएडीएमके जैसे गैर-एनडीए और गैर-यूपीए दलों की भूमिका बढ़ गई है. टीआरएस के 6, बीजेडी के 9 और एआईएडीएमके के 13 सांसदों का समर्थन काफी अहम हो गया है.

एआईएडीएमके के सभी 13 सांसद एनडीए उम्मीदवार का ही समर्थन करेंगे क्योंकि अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी उन्होंने सरकार का ही साथ दिया था. भले ही एआईएडीएमके औपचारिक तौर पर एनडीए का हिस्सा नहीं हो, लेकिन सूत्रों के मुताबिक, पार्टी एनडीए और सरकार के खिलाफ नहीं जाएगी.

दूसरी तरफ टीआरएस के राज्यसभा में 6 सदस्य हैं. एनडीए उम्मीदवार को जीत दिलाने के लिए टीआरएस के समर्थन की जरूरत होगी. नीतीश कुमार ने टीआरएस के समर्थन के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव से बात भी की है. अभी पिछले कुछ महीनों में केसीआर के बीजेपी के करीब आने की संभावना भी दिख रही है. ऐसे में इस बात की उम्मीद की जा रही है कि टीआरएस एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में ही वोट करेगी.

नीतीश के चलते मान सकती है बीजेडी

बीजेपी को उम्मीद बीजेडी से भी है. बीजेपी के रणनीतिकारों को लग रहा है कि सीधे-सीधे बीजेपी के नाम पर नहीं तो कम-से-कम जेडीयू और नीतीश कुमार के  नाम पर बीजेडी राजी हो सकती है. उम्मीद की जा रही है कि नीतीश कुमार के कहने पर ओडीशा के मुख्यमंत्री शायद मान जाएं. बीजेडी अगर समर्थन कर देती है तो फिर एनडीए के लिए राहें आसान हो जाएगी.

बीजेपी का गेम प्लान भी यही है. बीजेपी को लगा कि अकले अपने दम पर बहुमत नहीं होने की सूरत में नीतीश कुमार को आगे कर उन दलों को साधा जा सकता है जो बीजेपी के साथ तो नहीं हैं, लेकिन, कांग्रेस के साथ भी जाना पसंद नहीं करते.

दूसरी तरफ, एनडीए के सहयोगी दलों की तरफ से भी जेडीयू के नाम पर ऐतराज नहीं है. अकाली दल और शिवसेना दोनों को लेकर पहले कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे. अकाली दल के राज्यसभा सांसद नरेश गुजराल का भी नाम उपसभापति पद के लिए चर्चा में था. लेकिन, दूसरी सहयोगी जेडीयू के उम्मीदवार के नाम के ऐलान के बाद अकाली दल में थोड़ी नाराजगी भी दिखी थी. लेकिन, आखिर में अकाली दल ने एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में खड़ा होने का फैसला किया है.

शिवसेना भी एनडीए के पक्ष में खड़ी हो सकती है

दूसरी तरफ, शिवसेना को लेकर भी कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे. बीजेपी के साथ शिवसेना के रिश्ते ठीक नहीं हैं. सरकार में रहते हुए भी शिवसेना बीजेपी के खिलाफ बोलती रहती है. अविश्वास प्रस्ताव के दौरान भी शिवसेना ने जिस तरह से सदन से बाहर रहने का फैसला किया वो दोनों दलों के रिश्तों में कड़वाहट को दिखाने वाला है.

फिर भी शिवसेना को साधने के लिए जेडीयू उम्मीदवार को आगे करने की कोशिश सफल होती दिख रही है. सूत्रों के मुताबिक, राज्यसभा के भीतर 6 सांसदों वाली शिवसेना पार्टी एनडीए के समर्थन में खड़े हो सकती है.

राज्यसभा के गणित को आंकड़ों के हिसाब से देखें तो 245 सदस्यीय राज्यसभा में अभी 244 सदस्य हैं और 1 सीट खाली है. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अपने उम्मीदवार को जिताने के लिए 123 सांसदों के समर्थन की जरूरत होगी. एनडीए के राज्यसभा में 90 सांसद हैं. इसमें बीजेपी के 73, बोडो पीपुल्स फ्रंट के पास 1, जेडीयू के 6, नामांकित सदस्य 4, आरपीआई (ए) के 1, शिरोमणि अकाली दल के 3 और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट के 1 सांसद शामिल हैं. ऐसे में एनडीए को उम्मीद एआईएडीएमके के 13 सांसदों के अलावा सहयोगी शिवसेना के 3 और टीआरएस के 6 सांसदों पर टिकी है.

दूसरी तरफ विपक्ष के पास भी 112 सांसदों का समर्थन दिख रहा है. इसमें कांग्रेस के 50, आम आदमी पार्टी के 3, बीएसपी के 4, टीएमसी के 13, सीपीआई के 2, सीपीएम के 5, डीएमके के 4, इंडियन मुस्लिम लीग के 1, जेडीएस के 1, केरल कांग्रेस के 1, एनसीपी के 4, आरजेडी के 5, एसपी के 13, टीडीपी के 6 सांसद शामिल हैं.

लेकिन, सबकी नजरें टिकी हैं बीजेडी के उपर. अगर बीजेडी ने एनडीए उम्मीदवार को समर्थन देने का फैसला कर लिया तो फिर उपसभापति के चुनाव में एनडीए की राह आसान हो जाएगी.

राज्यसभा के उपसभापति पद के चुनाव में बीजेपी की रणनीति चर्चा का विषय है. जेडीयू उम्मीदवार के आगे आने से बीजेपी के साथ नीतीश कुमार की नजदीकी भी दिख रही है. नीतीश का बढ़ा हुआ कद भी दिख रहा है. इसे बीजेपी का ऐसा मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है जिस पर विपक्षी दलों को भी अपना उम्मीदवार खड़ा करने में कई दौर की बैठक करनी पड़ी.

नेहरू आत्मकेंद्रित थे, विभाजन उनकी ही दें है : दलाई लामा

 

बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा ने एक कार्यक्रम में कहा कि यदि जवाहर लाल नेहरू की जगह जिन्ना प्रधानमंत्री होते तो देशा का विभाजन नहीं होता. यह बात उन्होंने गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में छात्रों से बातचीत के दौरान कही.

एक राष्ट्रीय दैनिक के मुताबिक , दलाई लामा ने कहा ‘महात्मा गांधी तो जिन्ना को प्रधानमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन नेहरू ने इसके लिए मना कर दिया. वह आत्मकेंद्रित थे. नेहरू ने कहा था कि मैं प्रधानमंत्री बनना चाहता हूं. भारत पाकिस्तान एक हो जाता अगर जिन्ना प्रधानमंत्री बन जाते. पंडित नेहरू बहुत ज्ञानी थे, लेकिन उनसे गलती हो गई.’

इस बीच एक छात्र ने जब यह पूछा कि आखिर कोई किस तरह इस तरह के निर्णय ले जिससे कि गलतियां नहीं हों? इस पर दलाई लामा ने नेहरू के निर्णय की पृष्‍ठभूमि में कहा, ‘गलतियां होती ही हैं.’

इंस्‍टीट्यूट की 25वीं वर्षगांठ के मौके पर बौद्ध धर्मगुरू को आमंत्रित किया गया है. गोवा में पिछले सात सालों में दलाई लामा का यह पहला लेक्‍चर है.

इससे पहले धर्मशाला नगर निगम ने दलाई लामा मठ को नोटिस भेजा था. यह नोटिस अवैध निर्माण के खिलाफ चलाई जा रही मुहिम के तहत भेजा गया था.

Karunanidhi passes away

 

 

 

In the passing of DMK president Muthuvel Karunanidhi at the age of 94 after a prolonged illness, Tamil Nadu has lost one of the tallest leaders of the Dravidian movement and the nation a veteran politician who brought regional parties to the national stage to usher in a coalition era and thereby realised his long-term goal of federalism at the Centre and autonomy at the state-level.

In a public life spanning over seven decades, Karunanidhi dominated the political scene in Tamil Nadu. He served as chief minister for five terms, though only some lasted the full term. If Kamaraj was acclaimed as the cleanest leader the country had seen who had an unbroken stint of nine years as chief minister, DMK founder CN Annadurai had the record of having brought the party to power in the third election it faced in 1967,

a file photo of the ailing leader

But Annadurai remained chief minister only for a year as he died in February 1969 after bringing the Congress rule in the state to an end in 1967. Karunanidhi, who succeeded Annadurai and pipped senior rivals to the post, took over the leadership of the party on 26 July, 1969. And Karunanidhi’s health turned critical as his leadership of the party entered the 50th year.

While Karunanidhi led the party in good times and bad, his tenures as chief minister were marked by controversies. He had the dubious distinction of his ministry having been dismissed twice: in January 1976 and again in January 1991.

For all that, Karunanidhi’s decision to go in for simultaneous elections to the state Assembly, along with the Lok Sabha polls in 1971 that Indira opted for, paid handsome dividends for him. While Indira swept to power at the national level, DMK under Karunanidhi won 184 out of 234 Assembly seats, a record neither his successor MGR nor Jayalalithaa could break. The brute majority that the DMK got saw Karunanidhi rule with an iron fist and seeking to crush MGR’s fledgling AIADMK. But it only rebounded on him and forced him into political exile for almost 13 years.Karunanidhi, though known as a wily politician, made tactical blunders. For instance, it was matinee idol MG Ramachandran who helped Karunanidhi become chief minister after the passing of Annadurai in 1969 and yet Karunanidhi forced MGR out of the party in 1972 because he saw him as a threat. And MGR, who had no serious political ambitions till his expulsion from the DMK, formed the AIADMK and captured power in 1977. And ruled till his death in December 1987.

When Indira dismissed his government in 1976, Karunanidhi turned virulently against her. And yet, after the Janata government collapsed and she was seen to be on the comeback trail in 1980, he renewed his alliance with her, principles be damned. The 1980 Lok Sabha elections saw the AIADMK trounced in the state. And on the strength of that, Karunanidhi got the MGR government dismissed by Indira. The people brought MGR back to power and it was this vicious streak in him that made MGR call him “an evil force”, an impression that got stuck in the minds of the people.

Karunanidhi’s tenure from 1971 to ’76 was also marked by what Sarkaria Commission called “scientific corruption”. It was a different matter that what Karunanidhi started in lakhs, MGR took to crores and Jayalalithaa to multi-crores. People condoned MGR’s corruption because of his legendary philanthropic disposition. Jayalalithaa’s corruption caught up with her only at the fag end of her career with a special Bengaluru court convicting her. But the corruption stigma refused to leave Karunanidhi.

With such mass leaders, the narrative politics in Tamil Nadu became personality-oriented. So people had to choose: MGR or Karunanidhi and later Jayalalithaa or Karunanidhi. As long as MGR lived, he reigned. After his passing, people never gave a second term either to Karunanidhi or Jayalalithaa. This made the two leaders feel that regardless of what good they do for the people, they vote for change. So, why not loot and scoot?

Another major stigma attached to Karunanidhi was promotion of family rule. Though MGR also groomed Jayalalithaa, it was not on a scale Karunanidhi did with his family members. When the AIADMK-Congress alliance swept the Lok Sabha elections in Tamil Nadu, Rajiv Gandhi lost at the national level. VP Singh, who was voted to power, asked Karunanidhi to nominate a minister and he promptly picked his nephew Murasoli Maran.

The same story was repeated when Karunanidhi gave 40 Lok Sabha seats on a platter to Sonia in 2004 and as a reward, she gave him 15 berths in UPA-I. And so, key portfolios went to Dayanidhi Maran, A Raja and TR Balu. It was the corruption of the DMK nominees which brought disrepute to the UPA regime.

Karunanidhi’s last term as chief minister (2006-2011) was a repeat of his earlier tenure (1971-1976), except the family members controlled every field and corruption was everywhere, but there was no violence, unlike before. It was this revulsion which enabled Jayalalithaa to secure a second consecutive term in 2016, though Stalin won nearly 90 seats. As Karunanidhi was around, he was naturally projected as chief minister if the DMK was voted to power and this went against Stalin.

After Kamaraj and Annadurai, it was Karunanidhi who had a wide circle of friends at the national level. Earlier, his national politics was rooted in anti-Congress-ism after Indira dismissed a series of state governments starting with Farooq Abdullah’s, extending to NT Rama Rao’s and ending with DMK’s D Ramachandran in Puducherry.

And as a reaction to that the National Front was born in Chennai thanks to Karunanidhi, with VP Singh, Rama Rao and other national leaders including Atal Bihari Vajpayee addressing a massive rally.

It led to the National Front government between 1989 and 1990. The DMK under Karunanidhi was a key partner in the United Front government in 1996. While both proved to be short-lived, Karunanidhi thereafter gave up his opposition to the BJP and joined the NDA under Vajpayee, calling him “the right man in the wrong party”.

The DMK enjoyed power at the Centre from 1999 to 2004 when Karunanidhi pulled out his party to go with Sonia as part of the UPA, which ruled for ten years from 2004. Such was his clout with Sonia that he refused to share power with the Congress at the state level, though he led a minority government from 2006 to 2011.

Politics apart, Karunanidhi was credited with social reforms he brought about such as reservation for the Other Backward Classes, equal share in property for women and enactment of a law to make men from all castes priests in Hindu temples.

In the ultimate analysis, Karunanidhi was the kind of man you could hate or love, but could not ignore.

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‘सुनवाई को फिर से टालने की जरूरत नहीं है. हम कल अपने वकील के जरिए सुप्रीम कोर्ट से कहेंगे कि अनुच्छेद 35-ए पर हमारी याचिका पर संविधान पीठ द्वारा फैसला किया जाए.’: संयोजक चेतन शर्मा


दिल्ली के एनजीओ ‘वी द सिटिजन्स’ ने 2014 में शीर्ष अदालत में अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने की मांग वाली याचिका दायर की थी


जम्मू-कश्मीर के निवासियों को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने वाले आरएसएस से जुड़े एक एनजीओ ने रविवार को कहा कि वह अनुरोध करेगा कि उसकी याचिका पर संविधान पीठ द्वारा सुनवाई हो.

सिविल सोसायटी ‘वी द सिटिजन्स’ की जम्मू कश्मीर शाखा के संयोजक चेतन शर्मा ने जम्मू में संवाददाताओं से कहा, ‘सुनवाई को फिर से टालने की जरूरत नहीं है. हम कल अपने वकील के जरिए सुप्रीम कोर्ट से कहेंगे कि अनुच्छेद 35-ए पर हमारी याचिका पर संविधान पीठ द्वारा फैसला किया जाए.’

वर्ष 1954 राष्ट्रपति आदेश के जरिए संविधान में जोड़ा गया अनुच्छेद 35-ए जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासियों को विशेष अधिकार देता है और राज्य से बाहर के किसी व्यक्ति से शादी करने वाली महिला से संपत्ति का अधिकार छीनता है. यह अनुच्छेद राज्य के बाहर के किसी व्यक्ति को राज्य में अचल संपत्ति खरीदने से रोकता है.

दिल्ली के एनजीओ ‘वी द सिटिजन्स’ ने 2014 में शीर्ष अदालत में अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने की मांग वाली याचिका दायर की थी. राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रजिस्ट्रार के पास आवेदन दायर करके उन्हें जानकारी दी थी कि वह ‘राज्य में आगामी पंचायत एवं शहरी निकाय चुनावों की तैयारियों को देखते हुए’ इस याचिका पर सुनवाई स्थगित करवाना चाहती है.

शर्मा ने कहा, ‘हम दलीलें के लिए तैयार हैं. जो इस संबंध में दलीलें चाहते हैं उन्हें आगे आना चाहिए. इसे कितना टाला जाएगा? फैसला टालना समाधान नहीं है.’

imprint के 112करोड़ की लागत के 122 शोध प्रस्तावना मंजूर

 

नई दिल्ली, 05 अगस्त 2018,

उच्च शिक्षा संस्थानों में अनुसंधान को आगे बढ़ाने के लिए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ने आईएमपीआरआईएनटी-II के तहत 112 करोड़ रुपये की लागत से 122 नई शोध परियोजनाओं को मंजूरी दे दी है, जिसमें ऊर्जा, सुरक्षा, स्वास्थ्य, उन्नत सामग्री, आईसीटी और सुरक्षा / रक्षा शामिल है।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने एक बयान में कहा, “2145 प्रस्तावों में से, आईएमपीआरआईएनटी-II के तहत वित्त पोषण के लिए 122 सर्वश्रेष्ठ प्रस्तावों का चयन किया गया था, जो उच्च स्तर की प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाने की क्षमता रखते हैं।”

प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि मंजूर की गई 122 नई आईएमपीआरआईटी परियोजनाओं में से 81 उद्योग द्वारा प्रायोजित हैं…… यह उद्योग-अकादमिक जगत का सहयोग अनुसंधान की दिशा में नई उत्कृष्टता लाएगा। उन्होंने कहा कि अनुसंधान परियोजनाओं की प्रगति की निगरानी और निष्कर्ष के लिए अक्टूबर 2018 में ज्ञान पोर्टल शुरू किया जाएगा।

चयनित नए शोध परियोजना प्रस्तावों में: 35 (आईसीटी); 18 (उन्नत सामग्री), 17 (स्वास्थ्य प्रौद्योगिकी), 12 (ऊर्जा सुरक्षा); 11 (सुरक्षा और रक्षा); 9 (सतत आवास); 7 (जल संसाधन और नदी प्रणाली); 5 (पर्यावरण और जलवायु); 4 (विनिर्माण); और 4 (नैनो प्रौद्योगिकी) शामिल हैं।

प्रकाश जवाड़ेकर ने कहा कि आईएमपीआरआईटीटी प्रस्ताव अब उच्च शिक्षा संस्थानों के लिए खुले हैं जिनमें निजी संस्थान भी शामिल हैं, इससे प्रतिस्पर्धा की भावना पैदा होगी और हमें अच्छे परिणाम मिलेंगे।

आईएमपीआरआईएनटी अपनी तरह की एमएचआरडी समर्थित पैन-आईआईटी + आईआईएससी की संयुक्त पहल का अच्छा उदाहरण है, जिसके द्वार अब निजी संस्थानों के लिए भी खुल गए हैं। इससे मुख्य रूप से विज्ञान और इंजीनियरिंग की चुनौतियों का समाधान करने में एक नई ऊर्जा का संचार होगा और हमारे देश भारत को और अधिक सशक्त बनाने के लिए, सक्षम और समृद्ध बनाने और आत्मनिर्भर बनाने में एक नये तरीके का प्रयोग नई ताकत प्रदान करेगा।

आईएमपीआरआईएनटी व्यापक दृष्टिकोण प्रदान करता है जो उन क्षेत्रों में अनुसंधान का मार्गदर्शन करता है जो मुख्य रूप से सामाजिक रूप से प्रासंगिक हैं।

आईएमपीआरआईएनट-I के तहत 142 परियोजनाओं का कार्यान्वयन चल रहा है। इन परियोजनाओं को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अलावा कई मंत्रालयों, परिषदों और विभागों से समर्थन प्राप्त है।

इमरान की ताजपोशी का तोहफा होगा भारत पर आतंकी हमला


जिस दिन से इमरान खान चुनाव जीते हैं उसी दिन से पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को खुली छूट मिल गयी है।स्कूलों का जलाना, नेताओं की हत्याएँ और अब खुल कर भारत पर आतंकी हमले की तैयारी मानो वह अपने नेता को उसकी जीत का तोहफा देना चाहते हैं जिसे इमरान खान खामोशी से स्वीकार करेंगे। 


नई दिल्ली:

पाकिस्तान में भले ही नई सरकार बनने जा रही हो, पर आतंकवाद को लेकर उसकी नीतियों में बदलाव के संकेत नहीं दिख रहे हैं. एक तरफ पूर्व क्रिकेटर इमरान खान 14 या 15 अगस्त को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ ले सकते हैं. वहीं, भारतीय खुफिया एजेंसियों ने आगाह किया है कि स्वतंत्रता दिवस पर पाकिस्तानी आतंकी भारतीय सेना के शिविरों पर बड़े हमले की साजिश रच रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक मल्टी-एजेंसी कोऑर्डिनेशन सेंटर ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि 15 अगस्त को सेना के शिविरों पर बड़ा हमला हो सकता है.

रिपोर्ट के मुताबिक आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद के 20 से ज्यादा आतंकी हमले के लिए तैयार हैं. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी (ISI) को जैश-ए-मोहम्मद पर पूरा भरोसा है. इस बाबत दो रिपोर्ट हैं कि नियंत्रण रेखा (LoC) पर चूरा के पास कुछ आतंकी मौजूद हैं, जिन्हें टंगधार क्षेत्र में स्थित सेना के कैंप पर हमले के लिए भेजा गया है.

खबर है कि कुछ आतंकी सीमा पार कर गए हैं और फिलहाल वे रेकी कर रहे हैं. यह बात सेटेलाइट फोन से पकड़ में आई है. दूसरी रिपोर्ट जैश-ए-मोहम्मद को लेकर है. जैश आतंकियों को बारामुला इलाके में हमले के लिए रवाना किया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक पट्टन और बारामुला टाउन के बीच के इलाके में उन्हें हमले के लिए कहा गया है.

बताया जा रहा है कि हमले के लिए ये आतंकी जम्मू-कश्मीर के एक स्थानीय व्यक्ति की भी मदद ले रहे हैं. पुंछ, राजौरी में भी घुसपैठ या हमले का खतरा है.

क्या है आतंकी अलर्ट 
1. पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में खोली नामक जगह से जैश के 5 आतंकी टंगधार में सेना के शिविरों पर हमले की साजिश रच रहे हैं.
2. आर्मी के कैंपों पर हमले से पहले आतंकियों को रेकी करने के लिए कहा गया है.
3. जैश-ए-मोहम्मद के आतंकियों को उत्तरी कश्मीर में केंद्रीय सुरक्षा बलों पर हमले के लिए भेजा गया है.
4. लश्कर के 6 आतंकी एक गाइड के साथ खोजाबंडी में टेरर लॉन्चपैड पर मौजूद हैं.
5. पुंछ के दूसरी तरफ से 3 आतंकी भारत में घुसने की फिराक में हैं.