राष्ट्रीय परियोजनाओं के रूप में सिंचाई परियोजनाओं की घोषणा

नई दिल्ली, 09 अगस्त 2018, डेमोक्रेटिक फ्रंट।

इस योजना के दिशा-निर्देश के अनुसार देश में 16 परियोजनाओं की घोषणा, राष्ट्रीय परियोजनाओं के रूप में की जा चुकी है। इसके अलावा राज्य सरकारें समय-समय पर राष्ट्रीय परियोजनाओं की योजना में परियोजनाओं को शामिल करने के लिए अनुरोध भेजती रहती हैं। यद्यपि इनका समावेशन जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय के तकनीकी-आर्थिक दृष्टिकोण, निवेश मंजूरी, राष्ट्रीय परियोजनाओं की योजना के मानदंडों की पूर्ति, धन की उपलब्धता इत्यादि पर सलाहकार समिति द्वारा मूल्यांकन/अनुमोदन पर निर्भर करता है। इस संदर्भ में राज्य सरकारों द्वारा प्राप्त अनुरोधों की स्थिति निम्नलिखित हैं-

क्रं•स• परियोजना का नाम राज्य स्थिति

11. जामरानी बहुउद्देशीयीय बांध परियोजना उत्तराखंड राष्ट्रीय परियोजना के लिए मानदंड न भरें

22. बार्गी मोड़ परियोजना मध्य प्रदेश

33. परवान बहुउद्देश्यीय सिंचाई परियोजना राजस्थान निवेश मंजूरी राज्य द्वारा प्राप्त नहीं की गई

44. पूर्वीय राजस्थान नहर परियोजना राजस्थान टीएसी मंजूरी राज्य द्वारा प्राप्त नहीं की गई

55. साबरमती बेसिन से जवाई बांध तक राजस्थान

अधिशेष पानी का विचलन

66. कालेश्वरम सिंचाई परियोजना तेलंगाना • निवेश मंजूरी राज्य द्वारा प्राप्त नहीं की गई

यह सूचना लोकसभा में केन्द्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी गई।

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी विश्व जैव ईंधन दिवस के अवसर पर 10 अगस्‍त, 2018 को नई दिल्‍ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शिरकत करेंगे

नई दिल्ली, 09 अगस्त 2018,डेमोक्रेटिक फ्रंट :

प्रधानमंत्री नरेन्‍द्र मोदी विश्व जैव ईंधन दिवस के अवसर पर 10 अगस्‍त, 2018 को नई दिल्‍ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित होने वाले कार्यक्रम में शिरकत करेंगे।

प्रधानमंत्री इस अवसर पर उपस्थित लोगों को संबोधित करेंगे, जिनमें किसान, वैज्ञानिक, उद्यमी, विद्यार्थी, सरकारी अधिकारी और जन-प्रतिनिधि शामिल होंगे।

जैव ईंधन दरअसल कच्‍चे तेल पर आयात की निर्भरता कम करते हैं। जैव ईंधन इसके अलावा स्‍वच्‍छ परिवेश, किसानों के लिए अतिरिक्‍त आमदनी सृजित करने और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजित करने में उल्‍लेखनीय योगदान दे सकते हैं। अत: किसानों की आमदनी बढ़ाने और स्‍वच्‍छ भारत सहित विभिन्‍न सरकारी पहलों के साथ जैव ईंधनों का बढि़या सामंजस्‍य है।

केन्‍द्र सरकार के प्रयासों के परिणामस्‍वरूप पेट्रोल में एथनॉल का मिश्रण एथनॉल आपूर्ति वर्ष 2013-14 के 38 करोड़ लीटर से बढ़कर एथनॉल आपूर्ति वर्ष 2017-18 में 141 करोड़ लीटर के स्‍तर पर पहुंच गया है। सरकार ने जून 2018 में जैव ईंधनों पर राष्‍ट्रीय नीति को भी मंजूरी दी है।

राज्य सभा में तीन तलाक को लेकर क्या होगा??


सरकार के एजेंडे में मॉनसून सत्र में तीन तलाक बिल को पास कराना था लेकिन सत्र में कई और दूसरे जरूरी मुद्दे थे जिसको लेकर सरकार ज्यादा जोर दे रही थी


तीन तलाक विधेयक शुक्रवार को राज्यसभा में पेश होने वाला है. मॉनसून सत्र के अाखिरी दिन इस विधेयक के पारित होने पर सस्पेंस बना हुआ है. हालांकि सरकार की पूरी कोशिश है इसे पारित करा लिया जाए लेकिन विपक्ष के विरोधी तेवर को देखते हुए इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं.

राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, लिहाजा कांग्रेस या फिर दूसरे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की उसे दरकार होगी. इसे देखते हुए सरकार ने बिल में कुछ अहम संशोधन भी किए हैं.

संशोधन से क्या विपक्ष को राहत?

कैबिनेट ने तीन तलाक से जुड़े बिल में तीन संशोधन कर उसमें थोड़ी राहत जरूर दी है. अब नए संशोधन के मुताबिक, पहले के बिल के प्रावधानों में से पहले संशोधन के बाद, तीन तलाक में आरोपी पति मुकदमे पर सुनवाई से पहले जमानत की अपील कर सकेगा जिस पर पीड़ित पत्नी का पक्ष लेने के बाद मजिस्ट्रेट जमानत दे सकते हैं लेकिन आरोपी पति को जमानत तभी दी जाएगी, जब पति मजिस्ट्रेट की तरफ से तय किया गया मुआवजा पत्नी को दे दे.

बिल के दूसरे संशोधन के मुताबिक, तीन तलाक के मुद्दे पर एफआईआर तभी दर्ज की जाएगी, जब पीड़ित महिला या उसके किसी रिश्तेदार की तरफ से इस मामले में पुलिस के सामने अपनी तरफ से शिकायत की जाए. पहले बिल में यह प्रावधान था कि अगर पड़ोसी भी इस मामले में पुलिस में शिकायत करे तो पुलिस एफआईआर दर्ज कर सकती है. इसे पीड़ित पक्ष के लिए राहत के तौर पर देखा जा रहा है.

बिल के तीसरे प्रावधान के मुताबिक, तीन तलाक का मामला कंपाउंडेबल होगा. इसका मतलब यह हुआ कि मजिस्ट्रेट के आदेश के बाद पति-पत्नी यानी दोनों ही पक्ष में से कोई भी पक्ष अपना केस वापस ले सकता है. इससे पति-पत्नी के बीच तीन तलाक के मामले को लेकर विवाद का निपटारा मजिस्ट्रेट के स्तर पर भी हो सकता है.

राज्यसभा में विपक्ष का रोड़ा बनी मुसीबत

तीन तलाक बिल पहले ही लोकसभा से पारित हो चुका है. पिछले साल शीतकालीन सत्र में इस बिल को लोकसभा से मंजूरी मिल गई थी लेकिन इस मुद्दे पर कुछ प्रावधानों पर विपक्षी दलों के विरोध के चलते राज्यसभा में यह बिल पारित नहीं हो सका था. कांग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने तीन तलाक के मामले में सजा के प्रावधान को लेकर अपनी असहमति जताई थी. अभी भी इस मुद्दे पर उनका विरोध जारी है.

हालाकि, सरकार लोकसभा से पारित बिल में संशोधन कर अपने रुख में थोड़ी नरमी दिखाने का संकेत दे रही है लेकिन सजा के प्रावधान को अभी भी बरकरार रखा गया है. यानी सरकार के एक कदम पीछे खींचने के बावजूद इस मुद्दे पर रार होने की पूरी संभावना अभी भी बरकरार है.

लोकसभा से बिल पारित होने के बाद से ही कांग्रेस लगातार इस बिल को स्टैंडिंग कमेटी में भेजे जाने की मांग करती आई है लेकिन सरकार इसके लिए तैयार नहीं है. इसके चलते यह बिल अभी तक अटका पड़ा है.

डिप्टी चेयरमैन पद पर जीत से बमबम सरकार

राज्यसभा में सरकार के पास बहुमत नहीं है, लिहाजा कांग्रेस या फिर दूसरे क्षेत्रीय दलों के समर्थन की उसे दरकार होगी. हालाकि राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के पद के लिए हुए चुनाव में एनडीए के उम्मीदवार हरिवंश की जीत ने ऊपरी सदन में भी सरकार के पक्ष में नए समीकरण और बढ़त का संकेत दिया है. फिर भी, सरकार के लिए तीन तलाक बिल को पास कराना आसान नहीं होगा क्योंकि डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में साथ आए बीजेडी और टीआरएस जैसे दल तीन तलाक बिल के मुद्दे पर भी सरकार का साथ देंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं है.

मॉनसून सत्र के आखिरी दिन क्यों लाया बिल ?

दरअसल, सरकार के एजेंडे में मॉनसून सत्र में तीन तलाक बिल को पास कराना था लेकिन सत्र में कई और दूसरे जरूरी मुद्दे थे जिसको लेकर सरकार ज्यादा जोर दे रही थी. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एससी-एसटी एक्ट में संशोधन को लेकर भी सरकार काफी संजीदा थी. अब दोनों सदनों से यह बिल पारित होने के बाद सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया गया है, जिसमें एससी-एसटी एक्ट के अंतर्गत मुकदमा दायर करने के बाद तुरंत गिरफ्तारी से रोक हटा दी गई थी. अब फिर से पहले की तरह तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को लागू कर दिया गया है.

इसके अलावा पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने वाले बिल को भी सरकार ने मौजूदा सत्र में पास करा लिया है. सरकार की इन दो बड़ी कोशिशों को बड़ी उपलब्धि के तौर पर देखा जा रहा है. इन दोनों बिल को पास कराने के बाद मौजूदा सत्र में सरकार एससी-एसटी के साथ ओबीसी तबके को भी अपने साथ लाने और उनमें यह संदेश देने में सफल रही है कि सरकार उनके हितों के लिए काम करती है.

क्या कोर वोटर्स को लुभाने की रणनीति?

उधर, राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के चुनाव में भी सरकार को एआईएडीएमके, टीआरएस और बीजेडी को साथ लेना था. सरकार नहीं चाहती थी कि डिप्टी चेयरमैन के चुनाव से पहले किसी तरह का कोई बवाल हो, लिहाजा पहले उस चुनाव में सबको साथ लेकर अपनी जीत तय कर ली गई. उसके बाद सत्र के आखिरी दिन इस मुद्दे को समझदारी से उठा दिया गया. यहां तक कि तीन तलाक बिल में संशोधन का फैसला भी डिप्टी चेयरमैन का चुनाव होने के बाद उसी दिन हुई कैबिनेट की बैठक में तय किया गया.

सरकार की तरफ से भले ही नरमी दिखाई जा रही हो लेकिन इस मुद्दे पर अभी भी आगे बढ़ना आसान नहीं दिख रहा है. हंगामे के आसार भी हैं. मॉनसून सत्र के आखिरी दिन विपक्ष भी सरकार को घेरने की पूरी कोशिश करेगा. ऐसे में तीन तलाक बिल एक बार फिर से सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों के लिए अपने-अपने कोर वोटर्स के बीच जगह बनाने की कोशिश भर रह जाएगा. हालात तो ऐसे ही नजर आ रहे हैं.

अब मोबाइल एप्प से दिखाएंगे वाहन के कागजात ओर डीएल


परिवहन विभाग ने डिजिटल व्यवस्था को प्रोत्साहित करते हुए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा विकसित डिजी-लॉकर सुविधा रखने की अधिसूचना जारी की है

बता दें कि चंडीगढ़ ओर बहुत से शहरों में यह सुविधा पहिले से ही उपलब्ध है


आई टी एक्ट और मोटर वेहिकल एक्ट,1988 के एक  प्रावधान के तहत अब आपको बतौर यात्री ड्राइविंग लाइसेंस(डीएल) और वाहन निबंधन प्रमाणपत्र (आरसी) की हार्ड कॉपी साथ रखने की जरूरत नहीं है.

सड़क परिवहन मंत्रालय ने ट्रैफिक पुलिस और राज्य परिवहन विभाग से जांच के लिए ड्राइविंग लाइसेंस और रेजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट की हार्ड कॉपी होने की अनिवार्यता पर रोक लगा दी है.

मंत्रालय ने विभाग से कहा है कि वह इसकी जगह सरकार द्वारा शुरू की गई डिजी-लॉकर व्यवस्था को लोगों के बीच लोकप्रिय बनाने में हमारी मदद करें. परिवहन विभाग ने डिजिटल व्यवस्था को प्रोत्साहित करते हुए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय और इलेक्ट्रॉनिक एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा विकसित डिजी-लॉकर सुविधा रखने की अधिसूचना जारी की है.

सरकार द्वारा शुरू की गई डिजी-लॉकर या एम परिवहन एप के जरिए लोग अपने असली कागजों की इलेक्ट्रॉनिक प्रति को मूलप्रति के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं. इससे लोगों को हर जगह अपने असली कागजात कैरी करने से छुटकारा मिल जाएगा और वो आसानी से इनको एक एप में रख सकते हैं. इसका एक और फायदा यह भी होगा कि पूर्व में जैसे यात्री हर जगह अपने असली कागजात लेकर चला करते थे, तो इससे उसके खो जाने का डर भी ज्यादा रहता था. अब आप बिना किसी चिंता के अपने सारे जरूरी कागजातों को डिजी-लॉक के जरिए सेफ और सुरक्षित रख सकते हैं.

इस एप को ऐसे करें डाउनलोड :

– फोन में गूगल प्ले स्टोर से डिजी लॉकर मोबाइल एप को इंस्टॉल करें.

– इसे अपने आधार से लिंक करें.

– एप में ड्राइविंग लाइसेंस नंबर डालें

– फिर जरूरत अनुसार नाम, जन्मतिथि और पिता का नाम साझा करें.

– सिस्टम आपकी अन्य जानकारियां सर्च कर लेगा और सही जानकारी मैच होने पर आपके डॉक्यूमेंट लोड हो जाएंगे.

हिन्दू पत्नी का श्राद्ध मंदिर में करवाना चाहता था, मुस्लिम होने के नाते नहीं मिली इजाज़त


समिति को दिए आवेदन में रहमान ने अपनी पहचान छुपाई और बुकिंग अपनी बेटी इहनी अंबरीन के नाम पर कराई

अगर श्राद्ध ही करना चाहते हैं तो दिल्ली में क्यों? कोलकाता में भी मंदिर समिति हैं जहां वे यह कर्म कर सकते हैं.


कोलकाता के एक मुस्लिम व्यक्ति को नई दिल्ली में उसकी हिंदू पत्नी का श्राद्ध करने की इजाजत नहीं दी गई. इम्तियाजुर रहमान नाम के इस शख्स ने एक मंदिर समिति पर आरोप लगाया है कि उसे यह कहते हुए इजाजत नहीं दी गई कि मुसलमान से शादी करने के बाद उसकी पत्नी हिंदू नहीं रह गई.

20 साल पहले रहमान की शादी निवेदिता नाम की एक बंगाली महिला से हुई थी. रहमान का दावा है कि विशेष विवाह कानून के तहत दोनों की शादी हुई. बाद में निवेदिता गंभीर बीमारी का शिकार हो गई और दिल्ली में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. दिल्ली स्थित निगम बोध घाट पर हिंदू रीति-रिवाजों से निवेदिता का अंतिम संस्कार कर दिया गया.

रहमान बंगाल सरकार में कमर्शल टैक्सेस विभाग में उपायुक्त के पद पर तैनात हैं. रहमान ने बताया कि चितरंजन पार्क स्थित काली मंदिर समिति में उन्होंने 1300 रुपए चुकाकर श्राद्ध कर्म की तारीख बुक कराई थी लेकिन समिति ने बाद में इजाजत देने से मना कर दिया.

न्यूज18 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, मंदिर समिति के अध्यक्ष अश्विता भौमिक ने ‘कई कारणों’ का हवाला देते हुए श्राद्ध कर्म की इजाजत देने से इनकार कर दिया. भौमिक ने बताया कि समिति को दिए आवेदन में रहमान ने अपनी पहचान छुपाई और बुकिंग अपनी बेटी इहनी अंबरीन के नाम पर कराई. जबकि अंबरीन के नाम से यह बिल्कुल साफ नहीं होता कि नाम अरबी है या मुस्लिम.

भौमिक ने कहा कि रहमान के मजहब का पता तब चला जब मंदिर के एक साधु को उसपर शक हुआ और उसका गोत्र पूछा. रहमान इसका जवाब नहीं दे पाया क्योंकि मुसलमानों में गोत्र नहीं होता. उसकी पत्नी भी हिंदू नहीं रही क्योंकि मुस्लिम से शादी के बाद उसका उपनाम मुस्लिम का हो जाता है और उनके रीति-रिवाज भी इस्लाम से जुड़ जाते हैं.

भौमिक ने कहा कि रहमान अगर श्राद्ध ही करना चाहते हैं तो दिल्ली में क्यों? कोलकाता में भी मंदिर समिति हैं जहां वे यह कर्म कर सकते हैं.

कर्पूरी ठाकुर, क्या यूपी में भाजपा की नैया पार लगा पाएंगे


राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी यूपी में महागठबंधन होने की स्थिति में ओबीसी समुदाय के बीच कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता को भुनाना चाहती है


बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और ‘गुदड़ी के लाल’ के नाम से पुकारे जाने वाले कर्पूरी ठाकुर एक बार फिर से चर्चा में हैं. इस बार ठाकुर की चर्चा बिहार में न हो कर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में हो रही है. गुरूवार को ही यूपी के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने ऐलान किया है कि राज्य के हर जिले में कम से कम एक सड़क का नाम कर्पूरी ठाकुर के नाम पर रखा जाएगा. केशव प्रसाद मौर्या यूपी के लोक निर्माण विभाग के मंत्री भी हैं. केशव प्रसाद मौर्या का यह ऐलान आगामी लोकसभा चुनाव के नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है.

केशव प्रसाद मौर्या का यह बयान अति पिछड़ा वोट को बनाए रखने और आकर्षित करने का यह एक प्रयास है. राज्य में 27 प्रतिशत के पिछड़ा आरक्षण को तीन भागों में बांटने की दिशा में यह एक प्रयास है. राज्य में तीन भागों में आरक्षण को बांटने पर यह होगा कि ज्यादातर नौकरियां जो यादव और कुर्मियों को मिला करती थीं, वह अब अतिपिछड़े वर्ग को भी मिलने लगेगा.

अति पिछड़ों के सबसे बड़े नेता कर्पूरी ठाकुर

जानकारों का मानना है कि उत्तर भारत में अतिपिछड़ों में कर्पूरी ठाकुर से बड़ा नेता अब तक नहीं हुआ है. ऐसे में बीजेपी इनके नाम को भुनाकर राजनीतिक लाभ लेना चाहती है और यह विशुद्ध ही बीजेपी का वोट बैंक बचाने का यह एक प्रयास है.

यूपी में कर्पूरी ठाकुर को याद किए जाने के और भी कई कारण हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी यूपी में महागठबंधन होने की स्थिति में ओबीसी समुदाय के बीच कर्पूरी ठाकुर की लोकप्रियता को भुनाना चाहती है. कर्पूरी ठाकुर को बिहार में अत्यंत पिछड़ी जातियों का मसीहा माना जाता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी हाल के कुछ वर्षों में कर्पूरी ठाकुर के रास्ते पर ही चलते दिखे हैं. नीतीश कुमार ने भी गैर यादव ओबीसी वोटर्स का एक समूह तैयार किया है, जो आज भी उनके कोर समर्थक माने जाते हैं.

माना जा रहा है कि बीजेपी के अंदर एसपी और बीएसपी महागठबंधन को लेकर खलबली मची हुई है. पिछले कुछ दिनों से इसकी सुगबुगाहट से ही बीजेपी नेताओं में खलबली मची हुई है. बीजेपी यह जानती है कि सवर्णों का साथ है, लेकिन राजनीतिक नजरिए से सवर्ण सबसे बड़े भगोड़े भी होते हैं. जबकि, यूपी में ओबीसी बीजेपी के कोर वोटर्स रहे हैं. अगर एसपी और बीएसपी का गठबंधन बनेगा तो इस वर्ग में सेंध लगेगी. ऐसे में बीजेपी कर्पूरी ठाकुर जैसे उन तमाम नेताओं को याद करेगी, जिसको एसपी और बीएसपी ने अपने शासनकाल में भुला दिया था. इससे अतिपिछड़ा वर्ग में पार्टी की छवि बेहतर होगी.

अमित शाह के लखनऊ दौरे के साथ शुरू हुई जातिगत समीकरण को साधने की शुरुआत

बता दें कि यूपी में जातिगत समीकरण को साधने की शुरुआत बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के पिछले लखनऊ दौरे के दौरान ही शुरू हो गई थी. अमित शाह ने यूपी सरकार के सभी मंत्री और विधायकों से कहा था कि समाज के निचले तबके तक पहुंचकर सरकार की जनलाभार्थ योजनाओं का प्रचार-प्रसार करें.

जहां तक कर्पूरी ठाकुर के नाम का सहारा लेने का मतलब है, इससे साफ होता है कि पिछले कुछ चुनावों में यूपी में बीजेपी को गैर यादवों का जबरदस्त वोट मिला था. दूसरी तरफ बीजेपी यादवों को भी नाराज नहीं करना चाहती है. मौर्या, कुशवाहा और कुर्मी के वोट भी बीजेपी को लगातार मिलते रहे हैं.

जानकार मानते हैं कि महागठबंधन की बात से ही बीएसपी के कोर वोटर्स एसपी के कोर वोटर्स से ग्राउंड लेवल पर चिढ़ते हैं. ऐसे में अगर महागठबंधन होता है तो ये वोटर्स बीजेपी के साथ आ सकते हैं. उन सीटों पर महागठबंधन को नुकसान होगा जिन-जिन सीटों पर दोनों के वोटर्स आपस में चिढ़ते हैं. महागठबंधन से नाराज वोटर्स तब विकल्प के तौर पर बीजेपी को चुन सकते हैं.

यूपी की जातिगत समीकरण की बात करें तो सारे ओबीसी जरूरी नहीं कि यादवों से नाराज हों या दलितों में कुछ जाटव से नाराज रहते हैं. उन जातियों को अपनी तरफ खींचने के लिए बीजेपी की राजनीतिक चाल है. नाई, धोबी, कहार जैसी छोटी-छोटी जातियों पर बीजेपी की नजर है और 2019 में इनका वोट बीजेपी के लिए निर्णायक साबित सकता है.

कर्पूरी के फॉर्मूले पर अबतक सीएम बने हुए हैं नीतीश

बिहार में अतिपिछड़ा वर्ग में कर्पूरी ठाकुर को मसीहा के तौर पर याद किया जाता है. बिहार में नाई जाति का एक प्रतिशत से भी कम वोट होने के बावजूद ठाकुर बिहार में तीन-तीन बार मुख्यमंत्री बने. कर्पूरी ठाकुर के ही फॉर्मूले को नीतीश कुमार अपनाकर अब तक मुख्यमंत्री बने हुए हैं. अब यही कोशिश यूपी में भी की जाने वाली है.

बिहार में कर्पूरी ठाकुर को करीब से जानने वाले कई पत्रकारों का मानना है कि ठाकुर जैसा ईमानदार नेता आजतक हमने अपनी जिंदगी में नहीं देखा है. यूपी में कर्पूरी ठाकुर को लेकर जिस तरह की बात सामने आ रही है उससे जरूर कुछ न कुछ राजनीतिक महत्वाकांक्षा हो सकती है. कर्पूरी ठाकुर का प्रभाव बिहार से सटे पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई भागों में है ऐसे में बीजेपी इसको भुना सकती है.

बता दें कि कर्पूरी ठाकुर ने ही साल 1978 में बिहार में सबसे पहले सरकारी नौकरियों में 26 प्रतिशत आरक्षण लागू किया था. इसमें 12 प्रतिशत अतिपिछड़ों के लिए सुरक्षित किया था. 8 प्रतिशत पिछड़ों के लिए. बिहार के सीएम नीतीश कुमार अब भी अगर आरक्षण लागू करते हैं तो अतिपिछड़ों को ज्यादा और पिछड़ों को कम आरक्षण देते हैं. इसी का नतीजा है कि बिहार में नीतीश कुमार का यह एक वोट बैंक बन गया है, और जिसके बल नीतीश इतने दिनों से शासन चला रहे हैं. अब यही काम यूपी में बीजेपी सरकार करना चाह रही है.

एक राज्य एक वोट और अधिकारियों के एक कार्यकाल के बाद कूलिंग ऑफ पीरियड दोनों नकार दीं गईं : नयायमूर्ति लोढा


बीसीसीआई पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश से निराश हैं जस्टिस लोढ़ा


बीसीसीआई को भविष्य को लेकर सुप्रीम कोर्ट के ताज पैसले के बाद बोर्ड के भीतर भले ही खशियां मनाई जा रही हों लेकिन जिन जस्टिस लोढ़ा कि सिफारिशो के बाद बोर्ड के ढांचे में ही आमूलचूल बदलाव हो गया था वह सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से खुश नहीं हैं.

जस्टिल लोढ़ा का मानना है कि देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने उनकी सिफारिशों की नींव को ही हिला दिया है और जब नींव ही हिल गई है तो फिर इस पर बीसीसीआई में सुधारों की इमारत कैसे खड़ी हो सकती है.

अदालत का फैसला आने के बाद जस्टिस लोढ़ा का एएनआई से कहना है, ‘ मैं यह तो नहीं कहुंगा कि मैं मुझे सदमा लगा है लेकिन इतना जरूर कहुंगा के कि मैं इस फैसले से निराश हूं. बोर्ड में सुधार के लिए मेरी सिफारिशों में दो जरूरी बातें थीं. एक राज्य एक वोट और अधिकारियों के एक कार्यकाल के बाद कूलिंग ऑफ पीरियड. अदालत ने इन दोनों बातों को नकार कर मेरी सिफारिशों की नींव को ही हिला दिया है.

उनका कहना है कि लोढ़ा कमेटी की सिफारिशो का मूल मकसद बीसीसीआई के अधिकारियों को तानाशाही करने से रोकना था ताकि नए लोगों के लिए रास्ता साफ हो सके लेकिन अब उन्हें छह साल तक अपना साम्राज्य खड़ा करने की इजाजत मिल गई है.

भारत की पहली ‘ऑल वुमेन स्वाट टीम’ आर स्थिति से निपटने को तैयार


15 महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद ये स्क्वाड बनाया गया है. इस टीम की एक और खास बात ये है कि टीम में शामिल 36 महिला कॉन्स्टेबल्स नॉर्थ ईस्ट से हैं.


देश भर में ऐसा पहली बार होगा जब किसी पुलिस फोर्स में बस महिलाओं की स्वाट (SWAT) टीम होगी. दिल्ली पुलिस को जल्द ही ऑल वुमन स्वाट टीम मिलने वाली है. गृहमंत्री राजनाथ सिंह शुक्रवार को इस टीम को दिल्ली पुलिस फोर्स में आधिकारिक रूप से शामिल करेंगे.

ये प्रोजेक्ट पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक का है. इन्हें देश-विदेश के स्पेशलिस्ट्स ने तैयार किया है. 15 महीने की कड़ी ट्रेनिंग के बाद ये स्क्वाड बनाया गया है. इस टीम की एक और खास बात ये है कि टीम में शामिल 36 महिला कॉन्स्टेबल्स नॉर्थ ईस्ट से हैं.

पटनायक ने कहा है, ‘जब शहरी इलाकों में आतंकी हमलों और होस्टेज क्राइसिस जैसी स्थिति हो तो इस वुमन स्क्वाड की बराबरी कोई नहीं कर सकता. यहां तक कि झरोडा कलन के पुलिस ट्रेनिंग कॉलेज में इन महिलाओं ने अपने पुरुष साथियों से भी बेहतर प्रदर्शन किया था.’

इस टीम की कुछ खासियतों और फैक्ट्स के बारे में आपको जरूर जानना चाहिए-

– इस टीम की 13 महिलाएं असम, पांच-पांच महिलाएं अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर से, मेघालय से चार, नगालैंड से दो, मिजोरम और त्रिपुरा से एक-एक हैं.

– ये ऑल वुमन स्वाट टीम भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि है क्योंकि अभी तक अधिकतर पश्चिमी देशों में भी ऑल वुमन स्वाट टीम नहीं हैं.

– इस टीम को एमपी 5 सबमशीन गन  और ग्लॉक21 पिस्टल दिए गए हैं. साथ ही ये महिलाएं इजरायल के अनआर्म्ड सेल्फ डिफेंस फाइटिंग टेक्नीक क्राव मागा में भी ट्रेन्ड हैं.

– इन कमांडोज को सेंट्रल और साउथ दिल्ली में स्ट्रेटजिक लोकेशन्स पर तैनात किया जाएगा. इन्हें पराक्रम नाम से एंटी-टेरर वैन्स भी दिए जाएंगे.

– इन महिलाओं को बिल्डिंग्स पर चढ़ने, बस या मेट्रो में सिचुएशन से निपटने, होस्टेज को निकालने जैसी ट्रेनिंग दी गई है.

– ये कमांडोज अनआर्म्ड कॉम्बैट, एंबुश-काउंटर एंबुश, जंगल ऑपरेशन, अर्बन ऑपरेशन, वीवीआईपी सिक्योरिटी, एक्सप्लोसिव और आईडी के साथ कई तरीके के हथियार इस्तेमाल करने में एक्सपर्ट हैं.

– भाषाई दिक्कत न हो इसके लिए टीम में एक इंस्ट्रक्टर भी रखा गया है.

 

भाग कर शादी करने वालों को कोर्ट की निर्देशिका


पति अपनी पत्नियों के नाम से करें कम से कम 50 हजार से लेकर 3 लाख रुपए का फिक्स्ड डिपोजिट


पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने घर से भागकर शादी करने वाले जोड़ों के लिए एक खास निर्देश जारी किया है. कोर्ट ने कहा है कि ऐसे जोड़े जो अपने घरवालों की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी करते हैं, उन्हें लेकर अक्सर हमारे पास यह शिकायत आती है कि शादी के कुछ महीने या सालों बाद पति पत्नी को अकेला छोड़कर भाग जाता है. लड़की अकेली रह जाती है.

किसी किसी मामले में उसके साथ छोटे-छोटे बच्चे भी होते हैं. ऐसे में महिला असहाय या लाचार ना रह जाए, यह सुनिश्चित करते हुए हाई कोर्ट ने पतियों को अपनी पत्नी के नाम से कम से कम 50 हजार से लेकर 3 लाख रुपए का फिक्स्ड डिपोजिट करने का आदेश दिया है. यह आदेश उन्हीं जोड़ो पर लागू होता है जो परिवार और समाज के खिलाफ जाकर शादी करते हैं और पुलिस सुरक्षा के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं.

 

बता दें कि औसतन हर रोज 20-30 जोड़े हाईकोर्ट का रुख करते हैं. इन मामलों में दो अलग-अलग जातियों से ताल्लुक रखने वाले लोग एक-दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं. फिर घर, बिरादरी और समाज के लोग जब इनकी शादी के खिलाफ हो जाते हैं तो इनके पास भागने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. ऐसे में ये भाग तो जाते हैं पर इज्जत और प्रतिष्ठा में अंधे घर-परिवार और समाज के लोग इनकी जान के पीछे पड़ जाते हैं और कुछ इसी तरह अपनी जान को बचाने के लिए ये जोड़े पुलिस सुरक्षा के लिए कोर्ट का रुख करते हैं.

पूर्व में तो कोर्ट ऐसे मामलों में केवल पुलिस को सुरक्षा देने का आदेश दे देती थी. लेकिन इधर कुछ दिनों से वह फिक्स्ड डिपोजिट करवाने का निर्देश भी देने लगी है.

पी.बी बजनथारी ने 27 जुलाई से लेकर अब तक कुल 4 मामलों में ऐसे निर्देश दे दिए हैं.


चलते चलते: 

अरे भाई लोग कैसे भाग कर शादी कर लेते हैं, हम को तो बिस्तर से उतर कर चार्जर लेने में ही मौत आ जाती है।

 

‘खट्टर हम से सीख ले, कि सही मायनों में विकास कैसे होता है’: केजरीवाल


  • महागठबंधन में शामिल पार्टियों की  देश के विकास में कोई भूमिका नहीं रही है: केजरीवाल

  • चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा 


महागठबंधन में शामिल पार्टियों की  देश के विकास में कोई भूमिका नहीं रही है: केजरीवाल

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह ऐलान किया है कि 2019 का लोकसभा चुनाव उनकी पार्टी अकेले ही लड़ेगी. वह बीजेपी के खिलाफ बनी संभावित महागठबंधन का हिस्सा नहीं बनेगी. केजरीवाल ने कहा कि जो पार्टियां संभावित महागठबंधन में शामिल हो रही हैं, उनकी देश के विकास में कोई भूमिका नहीं रही है. उन्होंने आरोप लगाया कि केन्द्र सरकार ने दिल्ली में कराए जाने वाले विकास कार्यों में रोड़े अटकाए हैं.

केजरीवाल ने गुरुवार को रोहतक में कुछ संवाददाताओं से कहा कि उनकी पार्टी हरियाणा में विधानसभा चुनाव के साथ-साथ लोकसभा की सभी सीटों पर भी चुनाव लड़ेगी.

केजरीवाल ने दिल्ली के रुके हुए कामों के लिए केन्द्र की मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि उनके हर उस कदम को रोका गया जो आम जनता की भलाई के लिए कहा था. उन्होंने दावा किया, ‘हमने दिल्ली में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्रों में क्रांतिकारी काम किए हैं.’

उधर बीजेपी को निशाना बनाते हुए उन्होंने कहा कि पार्टी धर्म के नाम पर सिर्फ दिखावा कर रही है. उसे लोगों की भावनाओं से कोई लेना-देना नहीं है. हरियाणा की बीजेपी सरकार को भी आड़े हाथों लेते हुए उन्होंने दिल्ली के मुकाबले हरियाणा को विकास के क्षेत्र में जहां पिछड़ा हुआ करार दिया तो वहीं हरियाणा के मुख्यमंत्री को सलाह भी दे डाली कि ‘वो हम से सीख ले कि सही मायनों में विकास कैसे होता है.’

केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार जब पूर्ण राज्य न होते हुए भी बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति ला सकती है तो हरियाणा में खट्टर सरकार ऐसा क्यों नहीं कर सकती है. केजरीवाल ने अंबाला के शहीद हुए जवान के परिवार के लिए हरियाणा सरकार से एक करोड़ रुपए की आर्थिक सहायता की मांग की है.