Somnath’s family rejects CPI-M request to drape body with red flag

Kolkata, Aug 13, 2018:

Former Lok Sabha Speaker Somnath Chatterjee’s family on Monday turned down the request of the CPI-M leadership to drape the expelled member’s body in the red flag and allow him to be taken to the party’s West Bengal state headquarters here for people to pay their last respects.

“The party had requested us that they want to take the body to the state headquarters for partymen to pay their respects. But we said, we don’t want. The party had requested us that they wanted to drape the body with red flag. We refused,” Chatterjee’s daughter Anushila Basu said.

Chatterjee, a ten time Lok Sabha member — nine times as a CPI-M candidate and once as an independent backed by the party — was expelled on July 23, 2008, for refusing to step down as the Lok Sabha Speaker after the party withdrew support to the UPA-1 government protesting against the India-US civil nuclear deal.

He died at a Kolkata nursing home on Monday, aged 89.

Anushila recalled that she had seen her father shed tears the day the party expelled him.

She still vividly remembers the day the CPI-M politburo took the decision.

“I was in Delhi then. I told my father that from now on, you are a free bird. My father asked me whether he has been show caused? I told him the truth….After some time, I went to see him at his chamber. I found him sitting in his ante-chamber with tears rolling down his eyes,” she said.

Anushila said neither Chatterjee, nor any other family member, could accept the harsh decision.

However, she said Chatterjee to the last had a deep love for the party.

“We often tried to provoke him to speak against the party. But he never uttered a word against the party. So deep was his fondness.

“The divorce was only on pen and paper. But mentally, he was not divorced from the party,” she said.

Anushila said a number of other parties and others had come to his father with many lucrative offers. “But his answer was always the same — No”.

CPI-M sources said as per the party constitution, an expelled member has to apply for his re-entry into the party. Feelers had been sent to Chatterjee in that regard, but he refused to apply on his own. However, Chatterjee had let it be known that he would be game if the party on its own took him back.

“Somnath da is Somnath da. He is incomparable. We had tried to resolve the issue. But it got stalled on a technicality,” said CPI-M state secretariat member Rabin Deb.

“We continued to have regular connection/relation with him,” said CPI-M state Secretary Surjya Kanta Mishra.

36 साल बाद घर लौटे गजानन्द शर्मा


गजानंद को पाकिस्तान में 2 महीने की सजा दी गई थी. लेकिन काउंसलर एक्सेस नहीं होने के कारण उन्हें 36 साल पाकिस्तान की जेल में बिताना पड़ा


जयपुर से 36 साल पहले लापता गजानंद पाकिस्तान के जेल में बंद थे. सोमवार को पाकिस्तान ने उन्हें रिहा कर दिया. रिहाई के बाद वह भारत पहुंचे. पाकिस्तान के पंजाब से भारतीय नागरिकों को लेकर एक ट्रेन वाघा बॉर्डर पहुंची है. चार महीने पहले अप्रैल में जब पाकिस्तान से उनकी भारतीय नागरिकता से जुड़े दस्तावेज वैरिफिकेशन के लिए आए थे तब उनके परिवार को उनकी जानकारी मिली.

क्या है गजानंद शर्मा की कहानी?

पाकिस्तान ने अपनी जेलों में बंद 29 भारतीय कैदियों को रिहा कर दिया है. इनमें राजस्थान के गजानंद शर्मा भी हैं. गजानंद को पाकिस्तान में 2 महीने की सजा दी गई थी. लेकिन काउंसलर एक्सेस नहीं होने के कारण उन्हें 36 साल पाकिस्तान की जेल में बिताना पड़ा.

पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने कहा कि पाकिस्तान सरकार 14 अगस्त को पाकिस्तान स्वतंत्रता दिवस के दिन 29 कैदियों को रिहा करेगा. इनमें 26 मछुआरे शामिल हैं. उन्होंने कहा कि पाकिस्तान कभी भी मानवीय मुद्दों का राजनीतिकरण नहीं करना चाहता.

गजानंद शर्मा को लाहौर की लखपत जेल से रिहा किया गया है. वो जयपुर में फतेह राम का टीबा नाहरगढ़ के रहने वाले हैं. 1982 में गजानंद अचानक लापता हो गए थे. उसके बाद उनका कुछ पता नहीं लगा कि वो कहां गए. दरअसल, 1982 में घर से अचानक लापता हुए गजानंद के बारे में परिजनों को उनके पाकिस्तान जेल में होने की जानकारी उस समय लगी, जब मई में पुलिस अधिकारियों ने परिजनों से गजानंद की राष्ट्रीयता की पुष्टि करने के लिए संपर्क किया.

क्या कहना है घरवालों का?

पाकिस्तानी दस्तावेजों के अनुसार गजानंद ‘फॉरनर्स एक्ट’ में वहां की जेल में बंद थे. कुछ दिन पहले विदेश राज्यमंत्री वीके सिंह ने गजानंद शर्मा की रिहाई की घोषणा की थी. गजानंद शर्मा की पत्नी मक्खी देवी ने कहा कि पति की रिहाई सुनकर वह बहुत खुश हैं. 7 मई 2018 को उनके जिंदा होने और उनके पाकिस्तान जेल में होने का पता लगा था. उनकी रिहाई को लेकर पूरे गांव में खुशी का माहौल है.

दस्तावेज में गजानंद के गांव का पता जयपुर जिले में सामोद स्थित महार कला गांव बताया गया है. पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि बहुत सालों से गजानन का परिवार जयपुर के ब्रह्मपुरी में रहने लगा है .

चार्जशीट में केजरीवाल का नाम आने से दिल्ली की राजनीति गरमाई


दिल्ली पुलिस की यह चार्जशीट सीसीटीवी फुटेज, चश्मदीदों के बयान और सबूतों के आधार पर तैयार किए गए हैं. दिल्ली पुलिस की चार्जशीट में अरविंद केजरीवाल के पूर्व सलाहकार वीके जैन के रोल को काफी अहम माना गया. वीके जैन अब सरकारी गवाह बन चुके हैं.


दिल्ली सरकार के प्रमुख सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट मामले में दिल्ली पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है. दिल्ली पुलिस ने इस चार्जशीट में सीएम अरविंद केजरीवाल, डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया समेत 13 विधायकों को आरोपी बनाया है. पटियाला कोर्ट में चार्जशीट दाखिल होने के बाद जहां दिल्ली की राजनीति गर्मा गई है वहीं अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों के लिए यह चार्जशीट किसी मुश्किल से कम नहीं है.

दिल्ली पुलिस के मुताबिक यह एक मजबूत चार्जशीट है. यह चार्जशीट सीसीटीवी फुटेज, चश्मदीदों के बयान और सबूतों के आधार पर तैयार की गई है. इस चार्जशीट में अरविंद केजरीवाल के पूर्व सलाहकार वीके जैन की भूमिका को काफी अहम माना गया है. वीके जैन इस केस में अब सरकारी गवाह बन चुके हैं.

दिल्ली के मुख्य सचिव ने आरोप लगाया था कि 19 फरवरी की रात को आप के दो विधायक प्रकाश जारवाल और अमानतुल्ला खान ने उनके साथ मारपीट की. प्रमुख सचिव के आरोप के बाद ही दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू की थी. इस घटना के कुछ दिन बाद ही दिल्ली पुलिस ने आप के दोनों विधायकों को गिरफ्तार कर लिया था. दोनों विधायक फिलहाल जमानत पर बाहर हैं.

बता दें कि सीएम आवास पर हुए इस मारपीट मामले में उस समय नया मोड़ आ गया था जब दिल्ली पुलिस ने सीएम और डिप्टी सीएम को पूछताछ के लिए नोटिस भेजा था. दिल्ली पुलिस ने सीएम और डिप्टी सीएम से लंबी पूछताछ भी की थी. दोनों से पूछताछ के बाद दिल्ली पुलिस ने कहा था कि जांच में सहयोग नहीं किया गया.

कानून के जानकारों का मानना है कि दिल्ली पुलिस की इस चार्जीशीट के बाद अरविंद केजरीवाल मुश्किल में पड़ सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रविशंकर कुमार पत्रकारोंसे बात करते हुए कहते हैं, ‘क्योंकि प्रमुख सचिव के साथ जो बदसुलूकी और मारपीट हुई है वह सीएम के मौजूदगी में हुई है. अब सीएम को अदालत में साबित करना होगा कि इस घटना के हम पक्षधर नहीं थे, जबकि, प्रमुख सचिव अदालत में पक्ष रखेंगे कि सीएम का साफ इरादा था मुझे जलील और मारने-पीटने का. रात के 12 बजे सीएम आवास पर मीटिंग बुलाई जाती है और एक आईएस अधिकारी रात को भी आता है.

इसके बाद उसके साथ मारपीट होती है तो सीधे इसके लिए सीएम जिम्मेदार होंगे. अगर आधिकारिक तौर पर यह मीटिंग बुलाई गई होती और उस परिस्थिति में सीएम पर मारपीट का आरोप लगता तो फिर एलजी से अनुमति लेनी पड़ती.

सीआरपीसी की धारा 197 के अंतर्गत एलजी के अनुमति के बाद ही दिल्ली पुलिस कार्रवाई करती है. इस धारा के अंतर्गत किसी भी सरकारी नौकरशाह,जज, सीएम, मंत्री और सांसद और विधायकों को सुरक्षा मिली हुई है. इस केस में जो दिल्ली पुलिस ने मामला दर्ज किया है वह सीएम के व्यक्तिगत अधिकार क्षेत्र की बात है.

 

बता दें कि इस घटना के बाद से ही राजनीतिक दलों के साथ-साथ देशभर के आईएएस एसोसिएशनों ने भी अंशु प्रकाश के साथ हुई बदसलूकी को लेकर विरोध करना शुरू कर दिया था. उस समय आईएएस अफसरों के एसोसिएशनों का साफ कहना था कि उन्हें दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के लिखित माफीनामे से कम कुछ भी मंजूर नहीं है.

प्रमुख सचिव के साथ कथित मारपीट के बाद आईएएस एसोसिएशन लगातार दबाव बना रही थी. आईएएस एसोसिएशन का साफ कहना था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल घटना पर माफी मांगने के बजाए घटना से ही इंकार कर रहे हैं. घटना के इतने दिन बीत जाने के बाद भी सीएम अरविंद केजरीवाल का इस मामले में माफी नहीं मांगना बताता है कि वह भी इस षड्यंत्र में शामिल थे.

इस घटना के बाद कर्मचारियों के संयुक्त फोरम ने भी दिल्ली के एलजी अनिल बैजल और दिल्ली पुलिस से अपील की थी कि इस कथित हाथापाई मामले में अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया पर भी कार्रवाई की जाए.

दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी लगातार कहती आ रही थी कि मुख्य सचिव द्वारा विधायकों के खिलाफ की गई शिकायत पर दिल्ली पुलिस जरूरत से ज्यादा सक्रिय हो गई है. जिस घटना का कोई सबूत मौजूद नहीं है, उसको जबरदस्ती घटना बताया जा रहा है. एक तरफ विधायकों को गिरफ्तार करके जेल में डाला गया वहीं दूसरी तरफ संवैधानिक पद पर बैठे सीएम के साथ भी अभद्र व्यवहार किया जा रहा है.

आम आदमी पार्टी ने इस घटना के कुछ ही घंटों बाद दिल्ली सचिवालय में दिल्ली सरकार के मंत्री और दूसरे लोगों पर भी हमले हुए. उस हमले के सारे सबूत होने के बावजूद भी दिल्ली पुलिस कोई कार्रवाई नहीं की. यह दिल्ली पुलिस की दो तरह की न्याय प्रणाली की तरफ इशारा करता है.

बता दें कि इस विवाद के बाद ही बीते जून महीने में एलजी हाउस में 9 दिनों तक राजनीतिक ड्रामा चला था. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल कैबिनेट के तीन मंत्रियों के साथ एलजी हाउस के वेटिंग रूम में धरने पर बैठ गए थे. इनकी मांग थी कि आईएस अफसर दिल्ली में विकास के काम में साथ नहीं दे रहे हैं.

12 जून से शुरू हुए इस राजनीतिक ड्रामे में कई किरदारों ने अलग-अलग अंदाज में और अपने स्वभाव के विपरीत रोल अदा किया था. राजनीतिक दलों में दिल्ली की जनता के नजरों में अपने आपको ईमानदार और दूसरों को बेईमान साबित करने की होड़ थी. कुछ नेता पर्दे के सामने आकर तो कुछ पर्दे के पीछे रह कर यह काम कर रहे थे. वहीं कुछ पार्टियों में अपने ही पार्टी नेताओं को नीचा दिखाने की होड़ चल रही थी.

आम आदमी पार्टी के सपोर्ट में जहां देश के चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मोर्चा खोल रखा था तो वहीं बीजेपी को आप के ही बागी कपिल मिश्रा का सपोर्ट मिल रहा था. इस राजनीतिक ड्रामे के कई पहलू सामने आए. देश के कई ऐसे नेता अरविंद केजरीवाल के सपोर्ट में आए, जो पहले उनसे दूरी बनाने में ही विश्वास रखा करते थे. लेफ्ट पार्टियां हमेशा से ही अरविंद केजरीवाल से दूरी बना कर चला करती थी, लेकिन धरने के दौरान हुए पार्टी के प्रदर्शन में न केवल सीपीएम नेता सीताराम येचुरी शामिल हुए बल्कि प्रदर्शन में लेफ्ट के झंडे भी देखे गए.

कुलमिलाकर सीएम अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया का नाम चार्जशीट में शामिल करने को लेकर एक बार फिर से दिल्ली की राजनीति गर्मा गई है. विपक्ष जहां सीएम और डिप्टी सीएम की इस्तीफे की मांग कर रही है वहीं सत्ता पक्ष इसे बीजेपी की एक नई चाल करार दे रही है.

अंशु प्रकाश मामले में केजरीवाल सीसोदिया चार्जशीट दाखिल, 11 ओर नामजद


चार्जशीट में 11 विधायकों को भी आरोपी बनाया गया है. कुल 13 लोगों के खिलाफ इस मामले में चार्जशीट दायर की गई है


दिल्ली सरकार के मुख्‍य सचिव अंशु प्रकाश से मारपीट के मामले में सीएम अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को आरोपी बनाया गया है और उनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है. चार्जशीट में 11 विधायकों को भी आरोपी बनाया गया है. कुल 13 लोगों के खिलाफ इस मामले में चार्जशीट दाखिल की गई है.

दिल्ली पुलिस ने इस पूरे मामले में अरविंद केजरीवाल के पूर्व सलाहकार वीके जैन को मुख्य सरकारी गवाह बनाया है. गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस केजरीवाल और मनीष सिसोदिया से पहले ही पूछताछ कर चुकी है.

बता दें कि 19 फरवरी को सीएम आवास पर हुई मीटिंग के दौरान अंशु प्रकाश पर कथित रूप से हमला किया गया था और इस मामले में आप के दो विधायक प्रकाश जरवाल और अमानतुल्लाह खान जेल भी गए थे, हालांकि अभी दोनों विधायक जमानत पर हैं.

2018 ऍरो शो इस बार उत्तर प्रदेश में


ऐसी खबरें हैं कि हर दो साल पर आयोजित यह कार्यक्रम इस साल अक्टूबर-.नवंबर में लखनऊ में होगा. इससे पहले फरवरी 2017 में यह बेंगलुरू में हुआ था


22वें एयरो इंडिया शो का आयोजन बेंगलुरु से हटाकर यूपी ले जाने के रक्षा मंत्रालय के फैसले की कर्नाटक सरकार ने कड़ी आलोचना की है.

मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने इस बारे में बीजेपी नित केंद्र सरकार से जवाब मांगा और कहा कि इस शो के लिए बेंगलुरु सबसे उचित स्थान है क्योंकि यहां सभी वाजिब इंफ्रास्ट्रक्चर पहले से मौजूद हैं.

इससे पहले प्रदेश के उप-मुख्यमंत्री जी परमेश्वर ने भी नाराजगी जताते हुए कहा था कि एनडीए शासन में राज्य की अहम रक्षा परियोजनाएं अन्य राज्यों को जा रही हैं. उनकी टिप्पणी यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से एयरो इंडिया का आयोजन स्थल बदलने का अनुरोध करने के बाद आई क्योंकि इससे राज्य में रक्षा उत्पादन में लाभ मिलेगा.

मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने पत्रकारोंसे कहा, कर्नाटक के मेरे भाजपाई मित्रों को इस पर कुछ बोलना चाहिए. हम रक्षा मंत्री से भी अनुरोध करते हैं कि एयरो शो के लिए बेंगलुरु सबसे सही जगह है क्योंकि यहां पहले से सभी सुविधाएं मौजूद हैं. मैं नहीं समझ पा रहा कि क्यों जगह बदलने का फैसला लिया गया.

 

ऐसी खबरें हैं कि हर दो साल पर आयोजित यह कार्यक्रम इस साल अक्टूबर-.नवंबर में लखनऊ में होगा. इससे पहले फरवरी 2017 में यह बेंगलुरू में हुआ था. हालांकि रक्षा मंत्रालय ने इस बारे में अभी तक कोई औपचारिक घोषणा नहीं की है.

अगर ऐसा होगा तो 1996 में शुरू होने के बाद ऐसा पहली बार होगा जब यह कार्यक्रम बेंगलुरू से बाहर होगा. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक रूप से अहम यूपी के लिए यह एक बड़ा कार्यक्रम होगा.

अभी हाल में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक कार्यक्रम में कहा, ‘मैं रक्षा मंत्री से अनुरोध करता हूं कि एयरो इंडिया शो का आयोजन उत्तर प्रदेश में हो. हम सब तरह की सुविधा मुहैया कराएंगे. इस बारे में मैं उनसे इसकी घोषणा जल्द करने का अनुरोध करता हूं ताकि हम तैयारी में आगे बढ़ सकें.’

Somnath Chatterjee dies at 89

Few politicians could claim to have seen as many twists and turns of human life as former Lok Sabha speaker and expelled Marxist Somnath Chatterjee had. The son of an All India Hindu Mahasabha leader, jurist and parliamentarian Nirmal Chandra Chatterjee, he essayed easily on both sides of political divide by embracing communism.

In the 1960s, communism was a dominant ideology internationally and NC Chatterjee was also disenchanted by the politics of Hindu Mahasabha. Like a chip of the old block, Somnath Chatterjee became singularly attracted to Marxism and remained wedded to it till he was forcibly evicted by new apparatchiks of the communist ideology in 2008.

File image of Somnath Chatterjee.

He was sad when he was expelled from the Communist Party of India (Marxist) following his refusal to kowtow to the party line as speaker of the Lok Sabha. In the UPA-I government, then prime minister Manmohan Singh ramrodded his pet issue — the India-US nuclear deal — through the Parliament despite warning from the single largest alliance partner, CPM. Party general secretary Prakash Karat, considered a hardliner, withdrew support and asked Chatterjee to resign as Speaker. Chatterjee found the condition unacceptable and faced expulsion even though he continued as Speaker.

One of the most famous quotes after expulsion from the CPM attributed to him reveals his pain. “I will carry the scar of expulsion on my heart when I die,” he said. Of course, Chatterjee remained steadfastly wedded to communism till he breathed his last. But his eviction from the party was one episode that got closed with his passing.

The brilliant parliamentarian that he was, Chatterjee made friends irrespective of their ideological persuasions. Perhaps there were few parliamentarians who evoked unmitigated respect from veterans like Atal Bihari Vajpayee, LK Advani, Chandra Shekhar and PV Narasimha Rao. Once he was at the receiving end of Vajpayee’s temper in Lok Sabha in the 1990s. But the next day Vajpayee offered an unconditional apology and said that he never meant to insult his good friend “Somnath Dada”.

There is another instance of his run in with Vajpayee in his role as the speaker of the fourteenth Lok Sabha. The house had been facing a stand-off for days on end without resolution in sight. The Congress leader of the house, Pranab Mukherjee, was insisting that the BJP was not only subverting the parliamentary procedure but was also disrespectful to the speaker as well. Chatterjee took a position that was not acceptable to the BJP. In the din, Vajpayee shot off a stinging rebuke to the speaker in which he said, “Respect is commanded not demanded.” The obvious implication of the letter was that Chatterjee’s role as a Speaker was not above board.

This letter provoked angry exchanges as the Congress cited it as an instance of running down the institution of the speaker. Chatterjee however maintained his sagacity and said, “I am sure Vajpayeeji likes me and he is prompted by people (implying Advani) to write this letter.” Chatterjee was right as the draft of the letter was believed to be prepared at Advani’s office. However, the row got amicably settled when Chatterjee allowed the issue to die down by claiming that he held Vajpayee in high esteem.

As a successive member of the Lok Sabha since he inherited the Burdwan seat as political legacy of his father, Chatterjee was a permanent feature of the Lower House till 2009. His baritone interventions in the House used to be quite instructive and enriched the debate. Endowed with excellent gift of gab, he could be seen deftly negotiating with legacy of his father (Hindu Mahasabha background) and his own political position in the Lok Sabha. His smiling demeanour was quite encouraging to win friends across the party.

But there is no denying that he died as a disillusioned politician.

For an ideological party to which he proclaimed eternal loyalty, he was seen as highly compromised in his role as the Speaker. Perhaps one of the biggest blots of his career as politician in an otherwise unblemished track record was his presiding over a House in which MPs were bought over by the Manmohan government to seek a confidence vote on the India-US nuclear deal. The fact that Chatterjee was a wilful accomplice in what is known as the “cash-for-vote” scam is the biggest blot that he carried with him in his passing. In a four-decade long career, his eventful political life had seen twists and turns which were exceptional. But then Somnath Chatterjee was not an ordinary mortal.

पूर्व आईपीएस आरती घोष ने किया सनसनीखेज खुलासा ओर तत्कालीन डीजीपी पर लगाए संगीन आरोप

पूर्व आईपीएस आरती घोष ने किया सनसनीखेज खुलासा ओर तत्कालीन डीजीपी पर लगाए संगीन आरोप, किया ममता सरकार को बेनकाब।

अभी आज तक चैनल का विडियो वाइरल हो रहा है जिसमें पश्चिमी बंगाल की एक पूर्व आईपीएस अपने इस्तीफे का कारण बतलाते हुए ममता सरकार द्वारा प्रताड़ित किए जाने का आरोप लगा रही है। आरती घोष इस इंटरव्यू में बता रहीं हैं की तत्कालीन डीजीपी उन्हे मात्र इस लिए प्रताड़णा दे रहे थे क्योंकि उनके कार्यक्षेत्र में 2014 के आमसभा चुनाव के दौरान गुंडागर्दी न फैलने से ओर कुछ लोगों के न मरने से भय का माहौल व्याप्त नहीं हुआ ओर भाजपा को वोटों में बढ़त मिल गयी।  इसी कारण उनको तबादले का दंश झेलने के लिए तत्पर रहने को कहा गया, परंतु इस वीरांगना ने तत्कालीन डीजीपी जिसे आरती के अनुसार अपनी वर्दी की इज्जत नहीं थी ऐसे व्यक्ति के मातहत काम नहीं करना था जो कुछ राजनैतिक लोगों चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यूँ न हों का गुलाम हो।

तीन तलाक के मुद्दे पर नक़वी ने कांग्रेस्स की निंदा की


केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री ने कहा, ‘तीन तलाक एक सामाजिक कुरीति और कुप्रथा है और इसे धार्मिक और राजनीतिक नजरिए से देखना ठीक नहीं है’


केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि मोदी सरकार का विकास का मसौदा, वोट का सौदा नहीं है. और तीन तलाक संबंधी विधेयक के पारित होने के मार्ग में बाधा डालकर कांग्रेस पार्टी वही गलती दोहरा रही है जो उसने 1985 में शाह बानो मामले में किया था.

अल्पसंख्यक कार्य मंत्री नकवी ने कहा, ‘तीन तलाक एक सामाजिक कुरीति और कुप्रथा है और इसे धार्मिक और राजनीतिक नजरिए से देखना ठीक नहीं है.’

उन्होंने कहा कि तीन तलाक संबंधी विधेयक में मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक न्याय दिलाने और संवैधानिक अधिकारों को मजबूत बनाने की पहल की गई है. लेकिन कांग्रेस पार्टी और उनके कुछ साथी दल इस विधेयक को लेकर बहानेबाजी कर रहे हैं और शुरू से ही इस विधेयक को रोकने की कोशिश कर रहे हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस पार्टी की पृष्ठभूमि कुछ कट्टरपंथी निहित स्वार्थी तत्वों के सामने घुटने टेकने वाली पार्टी की रही है. विपक्ष की आपत्तियों पर नकवी ने कहा, दुरुपयोग तो किसी भी चीज का, कोई भी कर सकता है. धारा 302 का भी गलत इस्तेमाल हो सकता है. लेकिन इसकी वजह से हम कोई कानून ना बनाएं, किसी के साथ न्याय की बात न करें, अन्याय होता रहे, ऐसा नहीं हो सकता.

बता दें कि तीन तलाक संबंधी विधेयक बजट सत्र में लोकसभा में पारित हुआ था लेकिन राज्यसभा में यह अब तक पारित नहीं हो पाया था. सरकार ने हाल ही में इस विधेयक में संशोधन किया है जिसके तहत मुस्लिमों में तीन तलाक से जुड़े प्रस्तावित कानून में आरोपी को सुनवाई से पहले जमानत जैसे कुछ संरक्षणात्मक प्रावधानों को शामिल किया गया है.

प्रदेश के पूर्व बीजेपी अध्यक्ष प्रभात झा ने दावा किया है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का एक बार फिर सफाया हो जाएगा

 

मध्य प्रदेश के पूर्व बीजेपी अध्यक्ष प्रभात झा ने कांग्रेस को आधारहीन, अर्थहीन और बिना जनसमर्थन वाली पार्टी करार दिया है. झा ने कहा, कांग्रेस ऐसी पार्टी है जिसके पास न तो कोई चेहरा है, न कोई आधार है, न कोई अर्थ है और न ही इसके पास कोई जन नेता है. उन्होंने कहा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में पार्टी का एक बार फिर सफाया हो जाएगा.

बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राज्यसभा सांसद ने दावा किया कि मध्य प्रदेश में कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है और पिछले 15 वर्षों से बीजेपी को जनता का स्नेह और जबर्दस्त समर्थन मिल रहा है.

कांग्रेस ने किया फिर से सरकार बनाने का दावा

उन्होंने कहा, ‘हम यहां फिर से सरकार बनाएंगे. हम लगातार चौथी बार राज्य में सरकार बनाएंगे और शिवराज सिंह चौहान फिर से मुख्यमंत्री बनेंगे.’ उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से 26 सीटें बीजेपी के पास हैं. जबकि केवल 3 कांग्रेस के पास हैं.

झा ने कहा, ‘इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस के पास राज्य में कुछ नहीं बचा है. वो पहले ही यहां कई धड़े में बंटी हुई है. उनके पास कोई चेहरा (मुख्यमंत्री पद के लिए) नहीं है, अर्थ नहीं है और आधार नहीं है. पार्टी का सफाया हो जाएगा.’

‘जनता बीजेपी के साथ है’

झा ने कहा कि मुख्यमंत्री के प्रति समर्थन दिखाते हुए बीजेपी की जनआशीर्वाद यात्रा के तहत आयोजित एक कार्यक्रम में 25 हजार से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया, जिससे यह सबित होता है कि जनता हमारे साथ है.

मंत्रियों और विधायकों के टिकट बंटवारे के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पार्टी इस पर उचित निर्णय लेगी. साथ ही यह उम्मीदवार के जीतने की संभावनाओं पर भी निर्भर करेगा.

उन्होंने कहा कि राज्य की 230 विधानसभा सीटों में बीजेपी का लक्ष्य 200 सीटों का है और पार्टी का चुनावी नारा ‘अबकी बार 200 पार’ है.

4 राज्यों के चुनाव परिणामों के पश्चात ही कांग्रेस महागठबंधन को गंभीरता से लेगी


कांग्रेस चाह रही है कि महागठबंधन के लिए हाथ तो फैलाया जाए लेकिन डील फाइनल न की जाए. क्योंकि कांग्रेस को फेयरडील मिलने की उम्मीद कम है. इसलिए4  पार्टी एनडीए में और फूट का इंतजार कर रही है


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी जयपुर के बाद अब तेलांगना के दौरे पर जा रहे हैं. 2019 में होने वाले आम चुनाव से पहले राहुल गांधी पार्टी में नई जान फूंकने की कोशिश कर रहे हैं. रविवार को जयपुर में राहुल गांधी के लिए काफी भीड़ उमड़ी, इस दौरान राहुल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जमकर कोसा. हालांकि राहुल का प्रयास एक तरफ चल रहा है. लेकिन गठबंधन की राजनीति के लिए अभी तक सार्थक पहल नहीं हुई है. राज्यसभा में जहां विपक्ष के संख्याबल में अधिक होने के बाद भी सत्ता पक्ष का उपसभापति का चुनाव जीतना विपक्षी एकता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है.

राहुल गांधी की तरफ से न ही कांग्रेस पार्टी की तरफ से गंभीर प्रयास किया गया. बी के हरिप्रसाद को चुनाव लड़ने के लिए सिर्फ मैदान में उतार दिया गया. इस दौरान आपसी सामंजस्य बैठाने की रणनीति का अभाव साफ दिखाई दिया. आम आदमी पार्टी (आप) के आरोप को अगर अहमियत न भी दिया जाए तो भी ऐसा लग रहा है कि कांग्रेस वॉक ओवर देने के लिए तैयार बैठी थी.

कैसे होगा विपक्ष का एका

विपक्षी दलों की एकजुटता न होने की वजह है, गिला और शिकवा, सत्ता से कोसों दूर होने के बाद भी अहम की लड़ाई पीछे नहीं छूट रही है. विपक्षी दल इस बात के लिए सहमति नहीं बना पा रहे हैं कि किस बात पर सहमत होना है. कुल मिलाकर मोदी विरोध ही उनके जुड़ाव का केंद्र है. लेकिन इस बात पर भी आपस में मतभेद है.

कांग्रेस के खेमों से बीजेपी नीतीश कुमार को अपने साथ लाने में कामयाब रही. वहीं टीआरएस भी बीजेपी के साथ खड़ी दिख रही है. बीजेपी सबसे बात करने में गुरेज नहीं कर रही है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को नवीन पटनायक से बात करने में कोई बुराई नहीं दिखाई दी. राजनीति में अमित शाह की चाल का जवाब देना कोई बड़ी बात नहीं है. बशर्ते यदि कोई पहल करे. कांग्रेस में इस पहल की कमी साफ दिखाई दे रही है. राहुल गांधी ने वर्किंग कमेटी की बैठक में कहा कि वो गठबंधन के लिए एक कमेटी का गठन करेंगें, लेकिन अभी तक कमेटी का इंतजार हो रहा है.

कॉरडिनेशन कमेटी की जरूरत

गठबंधन के लिए यूपीए में कॉरडिनेशन कमेटी की मांग उठ रही है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के नेता तेजस्वी यादव ने भी कहा है कि एक कमेटी बनाने की जरूरत है. जाहिर है इसके लिए राहुल गांधी को पहल करनी चाहिए, कि एक ऐसी कमेटी बनाई जाए जिसमें मौजूदा घटक दल के नेता भी हों, जिससे किसी को शिकायत का मौका ना मिल सके. क्योंकि वक्त की कमी है.

दूसरे कांग्रेस की अपनी ताकत भी घटी है. जिससे छोटे दल कांग्रेस को ज्यादा अवसर देने से बच रहे हैं. समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्यक्ष अखिलेश यादव का हाल में दिया गया बयान जाहिर करता है कि वो कांग्रेस को यूपी में ज्यादा सीट देने के मूड में नहीं है. अगर यूपीए की ओर से अधिकारिक कमेटी बना दी जाती है. तो कांग्रेस को भी आसानी रहेगी, क्योंकि इसमें पार्टी का नुमाइंदा रहेगा जो कांग्रेस के हित का ध्यान रख सकता है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने भी कहा है कि बीजेपी को हराने के लिए विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा. लेकिन इसके लिए पहल कांग्रेस को ही करना पड़ेगा, क्योंकि 2004 में भी पहल सोनिया गांधी ने ही की थी.

सोनिया की टीम में अनुभव

2004 के लोकसभा चुनाव से पहले सोनिया गांधी ने कई बड़े पहल किए थे. रामविलास पासवान से मिलने वो पैदल चलकर उनके घर पहुंचीं थी. सोनिया गांधी के कार्यालय से सिर्फ यह पूछा गया कि पासवान घर पर हैं या नहीं, हालांकि दोनों का घर एक-दूसरे से सटा हुआ है. सोनिया तब मायावती से भी मिलीं थी.

राजीव गांधी के 1989 में हार का कारण बने वी पी सिंह से भी उन्होंने सहयोग लिया था. राजीव गांधी के धुर विरोधी रहे आरिफ मोहम्मद खान से वो मिलीं और उन्हें पार्टी में शामिल होने का न्योता भी दिया. यह बात दीगर है कि आरिफ उसी शाम बीजेपी में शामिल हो गए. शायद वो इंडिया शाइनिंग के विपरीत चल रही हवा के रूख को भांप नहीं पाए. लेकिन रामविलास पासवान ने इसे पहचान लिया था.

तो सार यह है कि सोनिया गांधी की टीम ही पर्दे के पीछे काम कर रही थी. राहुल गांधी भी इस टीम का सही इस्तेमाल कर सकते हैं. राजनीति में सत्ता या अनुभव ही काम आता है. कांग्रेस के पास न अब सत्ता की हनक है और न ही टीम राहुल में धुरंधर दिखाई दे रहे हैं.

नहीं बन पा रही धुरी

विपक्षी एकता का राग सभी अलाप रहें हैं लेकिन उनमें इच्छाशक्ति की कमी साफ दिखाई दे रही है. कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई नहीं दे रहा है जो इस एकता की ध्रुवी बन सके. सभी राजनीतिक दल शह और मात का दांव खेल रहे हैं. किसका दांव लगेगा यह कहना मुश्किल है. लेकिन इस बार ज्यादातर लोगों को लग रहा है कि वो किंग मेकर की जगह किंग बन सकते हैं.

2004 की तरह अब न हरिकिशन सिंह सुरजीत हैं ना ही वी पी सिंह. राहुल गांधी के सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी से मरासिम अच्छे हैं. लेकिन न लेफ्ट में वो ताकत बची है, न ही हरिकिशन सिंह सुरजीत वाला कद उनके पास है. विपक्ष के पास असरदार नेताओं में शरद पवार ही हैं. जिनका मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी से दोस्ताना रिश्ते हैं. उनके शिवसेना से भी संबंध अच्छे हैं. शरद पवार लगातार लोगों से मिल भी रहे हैं, हाल में वो मायावती से भी मिले थे. राहुल गांधी बड़े दल के अध्यक्ष हैं. उनके ऊपर पार्टी की जिम्मेदारी है. ऐसे में उनको किसी पर भरोसा करना पड़ेगा क्योंकि अकेले यह सब करना आसान नहीं है.

3 राज्यों के विधानसभा के चुनाव

जल्द ही 3 महत्वपूर्ण राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. कांग्रेस को उम्मीद है कि इन तीनों राज्यों में उसे सत्ता हासिल हो सकती है. ऐसे में कांग्रेस की कीमत बढ़ेगी और पार्टी की यूपी, बिहार, बंगाल जैसे राज्यों में मोलभाव की क्षमता बढ़ेगी. कांग्रेस चाह रही है कि गठबंधन के लिए हाथ तो फैलाया जाए लेकिन डील फाइनल न की जाए. क्योंकि कांग्रेस को फेयरडील मिलने की उम्मीद कम है. इसलिए पार्टी एनडीए में और फूट का इंतजार कर रही है.

तीसरे मोर्चे की सुगबुगाहट खत्म

राहुल गांधी के प्रधानमंत्री पद की दावेदारी से पीछे हटने से तीसरे मोर्चे की आवाज दब गई है. राहुल गांधी से कई दल सहज नहीं थे. राहुल के इस फैसले के बाद से कांग्रेस की गोलबंदी का काम आसान हुआ है. लेकिन अधिकृत कमेटी या व्यक्ति न होने से हर पार्टी सीधे राहुल गांधी से बात करना चाहती है. जिससे समस्या खड़ी हो रही है. समय निकलता जा रहा है. बीजेपी जहां चुनाव के लिए तैयार है. वहीं कांग्रेस अभी गठबंधन के पेंच में उलझी है.