सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी पीठ को देने करने से मना कर दिया, नमाज पढने के लिये मस्जिद जरूरी नही

दिनेश पाठक, Sep 27, 2018

  • 15:27(IST)विश्व हिंदू परिषद के कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर खुशी जताते हुए कहा कि मैं संतुष्ट हूं कि एक बाधा को पार कर लिया गया है. राम जन्मभूमि की अपील की सुनवाई के लिए रास्ता साफ हो गया है.

    ANI

    @ANI

    I am satisfied that this impediment has been defeated. The way is now clear for the hearing of Ram janmabhoomi appeals: Alok Kumar, VHP Working President on Ayodhya matter (Ismail Faruqui case)

  • 15:21(IST)

    बहुमत के निर्णय से बहुमत के लोग खुश होंगे, माइनोरिटी के निर्णय से अल्पसंख्यक प्रसन्न होगा. लेकिन जिस समस्या को लेकर हमने शुरुआत की है, उसका हल नहीं किया गया है. बात अंकगणित की नहीं है लेकिन इस बात की है कि सुप्रीम कोर्ट को एक आवाज में बोलना चाहिए.


    ANI

    @ANI

    Majority judgement will please majority,minority judgement will please minority.Very problem we started off with hasn’t been resolved.Not about arithmetic,but of convincing everybody that SC should’ve spoken in 1voice: Rajiv Dhawan, Petitioner’s counsel in Ayodhya title suit case


  • 14:46(IST)कोर्ट ने कहा कि इस्माइल फारूकी केस से अयोध्या जमीन विवाद का मामला प्रभावित नहीं होगा. ये केस बिल्कुल अलग है. अब इसपर फैसला होने से अयोध्या केस में सुनवाई का रास्ता साफ हो गया है. कोर्ट के फैसले के बाद अब 29 अक्टूबर 2018 से अयोध्या टाइटल सूट पर सुनवाई शुरू होगी.

  • 14:46(IST)दोनों जजों के फैसले से जस्टिस नजीर ने असहमति जताई. उन्होंने कहा कि वह साथी जजों की बात से सहमत नहीं है. यानी इस मामले पर फैसला 2-1 के हिसाब से आया है. जस्टिस नजीर ने कहा कि जो 2010 में इलाहाबाद कोर्ट का फैसला आया था, वह 1994 फैसले के प्रभाव में ही आया था. इसका मतलब इस मामले को बड़ी पीठ में ही जाना चाहिए था.

  • 14:45(IST)जस्टिस अशोक भूषण ने अपना फैसला पढ़ते हुए कहा कि हर फैसला अलग हालात में होता है. पिछले फैसले के संदर्भ को समझना जरूरी है.’ जस्टिस भूषण ने कहा कि पिछले फैसले में मस्जिद में नमाज अदा करना इस्लाम का अंतरिम हिस्सा नहीं है कहा गया था, लेकिन इससे एक अगला वाक्य भी जुड़ा है.

  • 14:45(IST)जस्टिस भूषण ने अपना और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की तरफ से कहा कि इस मामले को बड़ी बेंच को भेजने की जरूरत नहीं है. जो 1994 का फैसला था हमें उसे समझने की जरूरत है. जो पिछला फैसला था, वह सिर्फ जमीन अधिग्रहण के हिसाब से दिया गया था.

  • 14:44(IST)फैसला पढ़ते हुए जस्टिस भूषण ने कहा- ‘सभी मस्जिद, चर्च और मंदिर एक समान रूप से महत्वपूर्ण हैं. राज्यों को इन धार्मिक स्थलों का अधिग्रहण करने का अधिकार है. लेकिन, इसका मतलब ये नहीं है कि इससे संबंधित धर्म के लोगों को अपने धर्म के मुताबिक आचरण करने से वंचित किया गया.’

  • 14:40(IST)

    अयोध्या मामले पर जस्टिस नजीर ने कहा कि बड़ी बेंच को यह तय करने की जरूरत है कि धार्मिक मान्यताओं की क्या भूमिका है

:सुप्रीम कोर्ट का फैसला, अब अदालत की कार्यवाही की होगी लाइव स्ट्रीमिंग


दिनेश पाठक:
ने अहम अदालती कार्यवाही के सीधे प्रसारण की अनुमति दे दी है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने यह आदेश देते हुए कहा कि इस प्रक्रिया की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट से होगी। कोर्ट ने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग के आदेश से अदालत की कार्यवाही में पारदर्शिता आएगी और यह लोकहित में होगा।

नियमों के साथ लाइव स्ट्रीमिंग-SC

शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा, ‘इसे सुप्रीम कोर्ट से शुरू किया जाएगा पर इसके लिए कुछ नियमों का पालन किया जाएगा। लाइव स्ट्रीमिंग से जूडिशल सिस्टम में जवाबदेही आएगी।’ बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की विडियो रिकॉर्डिंग और उसके सीधे प्रसारण को लेकर केंद्र से जवाब मांगा था। केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि चीफ जस्टिस द्वारा संवैधानिक मामले की सुनवाई की विडियो रिकॉर्डिंग और लाइव स्ट्रीमिंग ट्रायल बेसिस पर की जा सकती है। केंद्र ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया की लाइव स्ट्रीमिंग और विडियो रिकॉर्डिंग के लिए पायलट प्रॉजेक्ट शुरू किया जा सकता है।

केंद्र सरकार ने दी थी यह दलील
केंद्र की तरफ से अटॉर्नी जनरल वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत में कहा था आगे चलकर पायलट प्रॉजेक्ट की कार्य पद्धति का विश्लेषण किया जाएगा और उसे ज्यादा प्रभावी बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि लाइव स्ट्रीमिंग को एक प्रयोग के तौर पर पहले एक से तीन महीने के लिए शुरू किया जा सकता है, जिससे यह समझा जा सके कि तकनीकी तौर पर यह कैसे काम करता है।

वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने दाखिल किया था पीआईएल
चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की इस बेंच ने वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह समेत सभी पक्षों से अटर्नी जनरल के इस प्रस्ताव पर अपनी राय देने को कहा था। आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह ने PIL दाखिल कर अनुरोध किया था कि जो केस राष्ट्रीय महत्व और संवैधानिक महत्व के हैं, उनकी पहचान कर उन मामलों की रिकॉर्डिंग की जाए और सीधा प्रसारण किया जाना चाहिए।

SC ने कहा-नागरिकों को सूचना पाने का अधिकार

कोर्ट ने यह भी कहा था कि सुनवाई का सीधा प्रसारण होने से पक्षकार यह जान पाएंगे कि उनके वकील कोर्ट में किस तरह से पक्ष रख रहे हैं। जयसिंह ने याचिका में मांग की थी कि संवैधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मामलों की सुनवाई का सीधा प्रसारण किया जाए क्योंकि नागरिकों के लिए यह सूचना पाने का अधिकार है। उन्होंने कहा कि पश्चिमी देशों में ऐसा सिस्टम है।

‘Husband Is Not The Master Of Wife’, SC Strikes Down 158 Year Old Adultery Law Under Section 497 IPC.

Dinesh Pathak:

The Supreme Court on Thursday struck down the adultery law, pertaining to Section 497 of the Indian Penal Code (IPC) and Section 198 of Code of Criminal Procedure (CrPC), as unconstitutional through a unanimous judgement.

The Chief Justice of India (CJI) Dipak Misra read out the judgment on behalf of himself and Justice AM Khanwilkar. “Thinking of adultery as a criminal offence is a retrograde step,” the CJI said in court. Mere adultery can’t be a crime unless it attracts the scope of Section 306 (abatement to suicide) of the IPC, the CJI held.

“Adultery might not be the cause of an unhappy marriage, it could be the result of an unhappy marriage,” Misra said as he read out his judgment that declared Section 497 as arbitrary.

The CJI stated before the apex court that adultery as an act is not criminal in China, Japan and in many other western countries and remarked that it “dents the individuality of a woman”. “In case of adultery, the criminal law expects people to be loyal which is a command which gets into the realm of privacy,” the CJI stated. Coming to the Indian Constitution and the protection it guarantees, the CJI said, that the beauty of our Constitution is that it includes “I, me and you”. Thus, as the adultery law violated Article 14 15(1) and 21 of the Constitution and offends the dignity of a woman, it was declared as manifestly arbitrary by the CJI. “A woman cannot be asked to think how a man or society desires. Her husband is not her master and servitude of one sex is unconstitutional,” the CJI noted in his judgment.

File photo of the Supreme Court of India. Reuters

File photo of the Supreme Court of India. Reuters

Justice Rohinton Fali Nariman also concurred with the CJI and Khanwilkar’s judgment and termed the archaic law as unconstitutional. “Ancient notions of a man being perpetrator and woman being a victim no longer holds good,” Nariman said in the top court.

Interestingly, Misra stated that he relied heavily on the triple talaq judgment by Nariman to come to his judgment on the case. The CJI also said that mere adultery cannot be a crime, but if any aggrieved spouse commits suicide because of life partner’s adulterous relation, then if the evidence is produced, it could be treated as an abetment to suicide.

“Section 497 is based on a notion that a woman loses her agency upon marriage. Human sexuality is an essential aspect of the identity of an individual. The current law deprives a woman of her agency as it is founded on the notion that a woman, on entering marriage, loses her voice and agency,” the CJI noted. He also spoke of how the Constitution enshrines the golden triangle of fundamental rights and judicial sensitivity is needed in this regard. Thus, the court ruled that adultery can be a ground for civil issues including dissolution of marriage, ie divorce, but it cannot be a criminal offence. Justice DY Chandrachud also concurred with the other judges on this and said that “Section 497 deprives a woman of agency and autonomy and dignity… Autonomy is intrinsic in dignified human existence and Section 497 denuded the woman from making choices,” he said.

Justice Indu Malhotra also maintained that, “Adultery could be a moral wrong towards spouse and family but the question is whether it should be a criminal offence?”, leading to a unanimous decision of the Supreme Court scrapping the Adultery Law.

A five-judge constitutional bench headed by the Misra on 8 August had reserved its verdict after Additional Solicitor-General Pinky Anand, appearing for the Centre, concluded her arguments.

The hearing in the case by the bench, that also comprised Nariman, Khanwilkar, Chandrachud and Justice Indu Malhotra, went on for six days, having commenced on 1 August.

The Centre had favoured retention of a penal law on adultery, saying that it is a public wrong that causes mental and physical injury to the spouse, children and the family. “It is an action willingly and knowingly done with the knowledge that it would hurt the spouse, the children and the family. Such intentional action which impinges on the sanctity of marriage and sexual fidelity encompassed in marriage, which forms the backbone of the Indian society, has been classified and defined by the Indian State as a criminal offence in an exercise of its constitutional powers,” the Centre had said.

Section 497 of the 158-year-old Indian Penal Code (IPC) says: “Whoever has sexual intercourse with a person who is and whom he knows or has reason to believe to be the wife of another man, without the consent or connivance of that man, such sexual intercourse not amounting to the offence of rape, is guilty of the offence of adultery.”

On 5 January, the apex court had referred to a five-judge Constitution bench the plea challenging the validity of the penal law on adultery. The court had taken a prima facie view that though the criminal law proceeded on “gender neutrality”, the concept was absent in Section 497.

आआपा नेता संजय सिंह पर आरोप तय


संजय सिंह ने बीजेपी नेता को पूर्व मंत्री कपिल मिश्र पर कथित रूप से हमला करने वाला बताया था, अब देखने वाली बात यह है कि “आआपा नेता संजय सिंह” इस मुकद्दमे को इमानदारी से लड़ेंगे या फिर अपने नेता कि तरह भरे बाज़ार माफ़ी मांग लेंगे और गोर तलब यह भी रहेगा कि क्या भाजपा कि युवा इकाई के नेता ‘अंकित भारद्वाज’ अपने नेताओं का अनुसरण करते हुए उन्हें माफ़ कर देंगे. 


कल ही आआपा नेता संजय सिंह ने राफेल सौदे में रक्षा मंत्री श्रीमती निर्मला सीता रमण को एक कानूनी नोटिस भिजवाया ऐसा उन्होंने मिडिया में कहा, परन्तु आज उनके ही खिलाफ न्यायालय में अवमानना का मुकद्दमा दर्ज हो गया है.

बीजेपी की युवा इकाई के एक नेता की ओर से दाखिल मानहानि के मामले में दिल्ली की एक अदालत ने आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह के खिलाफ आरोप तय किए हैं.

संजय सिंह ने बीजेपी नेता को पूर्व मंत्री कपिल मिश्र पर कथित रूप से हमला करने वाला बताया था. अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल ने कहा कि आरोपी के खिलाफ कार्यवाही शुरू करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य हैं.

ये आरोप भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत तय किए गए हैं. इससे पहले राज्यसभा सांसद ने मामले में अपनी गलती स्वीकार नहीं की और इस संबंध में सुनवाई किए जाने पर जोर दिया.

[section 499 cr.p.c सिर्फ defamation मानहानि की परिभाषा बताता है यह section 499 cr.p.c  बताता है की मानहानि क्या होती है व कितने प्रकार की हो सकती है पर इसमें सजा का प्रावधान धारा 500 cr.p.c. में है इसके अनुसार जो भी कोई व्यक्ति ऐसा अपराध करेगा वो दो साल के कारावास व जुर्माने व या दोनो की सजा भुगतेगा इसके अलावा वह कोर्ट में अगर कोई defamation मानहानि के लिए भी केस डालता है तो वो जुरमाना भी उसे मिलेगा ]

संजय  के अधिवक्ता मोहम्मद इरशाद ने बताया कि अदालत में सुनवाई के दौरान आरोपों पर वह आआपा नेता का पक्ष रखेंगे. भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकारी सदस्य अंकित भारद्वाज ने यह मामला दायर किया था.

अंकित ने दावा किया कि आआपा नेताओं ने मीडिया में गलत तरीके से उनका नाम लिया और बीजेपी युवा मोर्चा का पदाधिकारी बताया, जिसने पिछले साल दस मई को मिश्र पर हमला किया था.

मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया भंग


केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अध्यादेश के जरिए मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिय को भंग कर दिया है, इस पर राष्ट्रपति की मुहर भी लग गई है, नेशनल मेडिकल कमीशन बिल के आने तक बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के जरिए काम होगा


मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को भंग कर दिया गया है और इसके लिए बकायदा बुधवार सुबह कैबिनेट की मीटिंग बुलाकर अध्यादेश को पास किया गया और इसे राष्ट्रपति को भेजा गया. राष्ट्रपति जी ने भी इस पर अपनी मुहर लगा दी है. वैसे पिछले लोकसभा के सत्र में नेशनल मेडिकल कमीशन बिल के पास होने की चर्चा थी, जो कि सदन में पास होने के लिए रखा नहीं जा सका था.  मिडिया ने उस समय भी इस बात की जानकारी दी थी कि सरकार मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया को भंग कर नए कमिशन के गठन की तैयारी में है.

फिलहाल नेशनल मेडिकल कमीशन बिल सदन में पेडिंग है लेकिन अध्यादेश के जरिए सरकार ने पुराने काउंसिल को भंग कर दिया है. अब काउंसिल को बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के जरिए चलाया जाएगा. इस बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में जिन दो सदस्य के नाम प्रमुख हैं, वो हैं नीति आयोग के सदस्य डॉ वीके पॉल और ऑल इंडिया इंस्टीयूट ऑफ मेडिकल साइसेंस के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया.

सरकार के वरिष्ठ मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि मेडिकल काउंसिल का समय खत्म होने वाला था और इस बात की जरूरत महसूस की गई कि इस संस्था का बागडोर नामचीन व्यक्तियों के हाथों सौंपा जा सके.

ध्यान रहे कि सरकार 23 सितंबर को प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना प्रारंभ कर चुकी है जिसमें देश के कम से कम 40 फीसदी लोगों को बीमा के तहत बेहतर इलाज कराने का प्रावधान है. सरकार तकरीबन 10.74 करोड़ परिवार को मुफ्त इलाज कराने की योजना शुरू कर चुकी है. इस योजना के तहत डेढ़ लाख प्राइमरी हेल्थ केयर सेंटर खोलने की भी बात कही गई है.

ध्यान रहे पिछले 70 साल में जिस तरह स्वास्थ्य क्षेत्र में आधारभूत संरचना तैयार किया जाना चाहिए, वो तैयार नहीं हो पाया है. ऐसा संसदीय कमेटी अपने रिपोर्ट में भी कह चुकी है और नेशनल मेडिकल कमीशन बिल का प्रारूप तैयार करने में अहम भूमिका निभाने वाले डॉ रंजीत रॉय चौधरी ने ये जिक्र किया था कि मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया अपनी जिम्मेदारी निभाने में पूरी तरह फेल रहा है.

साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने एमसीआई की गतिविधियों ने नाराज होकर ओवरसाइट कमेटी का गठन किया था, जिसका काम एमसीआई के क्रिया कलाप पर निगरानी का था लेकिन 6 जुलाई को ओवरसाइट कमेटी ने स्वास्थ्य मंत्रालय को लिख कर आरोप लगाया कि मेडिकल काउंसिल सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवहेलना कर रहा है और किसी भी फैसले से उसे अवगत नहीं करा रहा है. इसलिए सरकार ने एक अध्यादेश लाकर फिलहाल बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के जरिए इसे सुचारू रूप से चलाने का फैसला किया है. ध्यान देने वाली बात यह है कि सरकार को अपने इस फैसले को 6 महीने के अंदर सदन से पास कराना पड़ेगा.

ये हैं इस बिल की प्रमुख बातें

दरअसल इस बिल को लाने के लिए मोदी सरकार ने कुछ साल पहले से ही कवायद शुरू कर दी थी. 15 दिसंबर 2017 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (नेशनल मेडिकल कमीशन) बिल को स्वीकृति दे दी थी. इस बिल का उद्देश्य चिकित्सा शिक्षा प्रणाली को विश्व स्तर के समान बनाने का है.

प्रस्तावित आयोग इस बात को सुनिश्चित करेगा की अंडरग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट दोनों लेवल पर बेहतरीन चिकित्सक मुहैया कराए जा सकें… इस बिल के प्रावधान के मुताबिक प्रस्तावित आयोग में कुल 25 सदस्य होंगे, जिनका चुनाव कैबिनेट सेक्रेटरी की अध्यक्षता में होगा. इसमें 12 पदेन और 12 अपदेन सदस्य के साथ साथ 1 सचिव भी होंगे.

इतना ही नहीं देश में प्राइमरी हेल्थ केयर में सुधार लाने के लिए एक ब्रिज-कोर्स भी लाने की बात कही गई है, जिसके तहत होमियोपैथी, आयुर्वेद, यूनानी प्रैक्टिस करने वाले चिकित्सक भी ब्रिज-कोर्स करने के बाद लिमिटेड एलोपैथी प्रैक्टिस करने का प्रावधान है. वैसे इस मसौदे को राज्य सरकार के हवाले छोड़ दिया गया है कि वो अपनी जरुरत के हिसाब से तय करें की नॉन एलोपैथिक डॉक्टर्स को इस बात की आज़ादी देंगे या नहीं.

 

प्रस्तावित बिल के मुताबिक एमबीबीएस की फाइनल परीक्षा पूरे देश में एक साथ कराई जाएगी और इसको पास करने वाले ही एलोपैथी प्रैक्टिस करने के योग्य होंगे. दरअसल पहले एग्जिट टेस्ट का प्रावधान था, लेकिन बिल में संशोधन के बाद फाइनल एग्जाम एक साथ कंडक्ट कराने की बात कही गई है.

बिल में प्राइवेट और डीम्ड यूनिवर्सिटीज में दाखिला ले रहे 50 फीसदी सीट्स पर सरकार फीस तय करेगी वही बाकी के 50 फीसदी सीट्स पर प्राइवेट कॉलेज को अधिकार दिया गया है की वो खुद अपना फीस तय कर सकेंगे.

बिल लाने की वजह

दरअसल सरकार को इस बिल को लाने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि मार्च 2016 में संसदीय समिति (स्वास्थ्य) ने सरकार को एक रिपोर्ट सौंपा था जिसमें भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) के ऊपर साफ-तौर पर ऊंगली उठाते हुए इसे पूरी तरह से परिवर्तित करने को कहा था. जाहिर है कि सरकार ने मामले की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए एक समिति का गठन किया और बिल को ड्राफ्ट करने की प्रक्रिया शुरू की गई. इस बिल को तैयार करने के लिए डॉक्टर रणजीत रॉय चौधरी की अध्यक्षता में तमाम एक्सपर्ट्स की मदद ली गई साथ ही साथ अन्य स्टेक होल्डर्स की भी राय को खासा तवज्जो दिया गया. इस ड्राफ्ट को नीति आयोग के वेबसाइट पर लोगों की राय के लिए डाला गया.

लेकिन, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) पूरे बिल और आयोग के गठन को लेकर ही विरोध जता रहा है. मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष रह चुके डॉक्टर अजय कुमार पत्रकारों से बात करते हुए कहते हैं, ‘इस बिल को लाने के पीछे पर्सनालिटी क्लैश मुख्य वजह है. वहीं एक लोकतांत्रिक व्यवस्था को ध्वस्त करके पूरे डॉक्टर्स को ब्यूरोक्रेसी के नीचे लाया जा रहा है, जो कि पूरी तरह गलत और भारतीय चिकित्सा को बर्बाद करने की कवायद है.’

डॉक्टर अजय कुमार भारतीय चिकित्सा परिषद् के महत्वपूर्ण सदस्य भी हैं, जो कि भारतीय चिकित्सा और मेडिकल एजुकेशन के लिए रेगुलेटरी बोर्ड का काम करती रही है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला: जानिए अब कहां जरूरी और कहां नहीं जरूरी है आधार

दिनेश पाठक, 26 सितम्बर, 2018:

आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपना अहम फैसला सुनाते हुए इसकी वैधता को बरकरार रखा है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी साफ कर दिया कि आधार कहां जरूरी है और कहां जरूरी नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा है कि मोबाइल फोन को आधार से लिंक नहीं किया जा सकता है। आइए जानते हैं अब कहां जरूरी होगा आधार और कहां नहीं…

कहां जरूरी

पैन कार्ड बनाने और आयकर रिटर्न दाखिल करने के लिए आधार नंबर जरूरी।

-सरकार की लाभकारी योजना और सब्सिडी का लाभ पाने के लिए आधार कार्ड जरूरी होगा।

कहां नहीं जरूरी

-सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में साफ किया कि मोबाइल सिम, बैंक अकाउंट के लिए आधार जरूरी नहीं है।

-सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि स्कूल में ऐडमिशन के लिए आधार जरूरी नहीं।

-सीबीएसई, नीट और यूजीसी की परीक्षाओं के लिए भी आधार जरूरी नहीं।

-सीबीएसई, बोर्ड एग्जाम में शामिल होने के लिए छात्रों से आधार की मांग नहीं कर सकता है।

-14 साल से कम के बच्चों के पास आधार नहीं होने पर उसे केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा दी जाने वाली जरूरी सेवाओं से वंचित नही किया जा सकता है।

-टेलिकॉम कंपनियां, ई-कॉमर्स फर्म, प्राइवेट बैंक और अन्य इस तरह के संस्थान आधार की मांग नहीं कर सकते हैं।

फैसले के दौरान कोर्ट ने क्या कहा

-आधार आम लोगों के हित के लिए काम करता है और इससे समाज में हाशिये पर बैठे लोगों को फायदा होगा।

-आधार डेटा को 6 महीने से ज्यादा डेटा स्टोर नही किया जा सकता है। 5 साल तक डेटा रखना बैड इन लॉ है।

-सुप्रीम कोर्ट ने आधार ऐक्ट की धारा 57 को रद्द करते हुए कहा कि प्राइवेट कंपनियां आधार की मांग नहीं कर सकतीं।

-आधार पर हमला संविधान के खिलाफ है। इसके डुप्लिकेट होने का कोई खतरा नहीं। आधार एकदम सुरक्षित है।

-लोकसभा में आधार बिल को वित्त विधेयक के तौर पर पास करने को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया।

सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं, अब राज्‍यों पर दारोमदार

दिनेश पाठक, 26 Sept. 2018 :

SC/ST कर्मचारियों को सरकारी नौकरियों में प्रमोशन में आरक्षण देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा है कि प्रमोशन में आरक्षण देना जरूरी नहीं है इस मामले में पुनर्विचार की कोई जरूरत नहीं है। इसके पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 30 अगस्त को सुनवाई के दौरान अपना फैसला सुरक्षित रखा था। इस मामले में कोर्ट को यह तय करना है कि 12 साल पुराने एम नागराज मामले में अदालत के फैसले की समीक्षा की जरूरत है या नहीं।

SC/ST को प्रमोशन में आरक्षण देने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि 2006 में नागराज मामले में दिए गए उस फैसले को सात सदस्यों की पीठ के पास भेजने की जरूरत नहीं है जिसमें अनुसूचित जातियों (एससी) एवं अनुसूचित जनजातियों (एसटी) को नौकरियों में तरक्की में आरक्षण देने के लिए शर्तें तय की गई थीं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की यह अर्जी भी खारिज कर दी कि एससी/एसटी को आरक्षण दिए जाने में उनकी कुल आबादी पर विचार किया जाए. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने प्रमोशन में आरक्षण का मसला राज्यों पर छोड़ा दिया और कहा कि राज्य चाहें तो आरक्षण दे सकते हैं. इसके लिए आरक्षण से पहले आंकड़े दिखाने होंगे..
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान केंद्र की मोदी सरकार ने कहा था कि एससी/एसटी सरकारी कर्मचारी प्रमोशन में आरक्षण के खुद हकदार हैं. केंद्र ने कहा कि एससी-एसटी पहले से ही पिछड़े हैं इसलिए प्रमोशन में रिजर्वेशन देने के लिए अलग से किसी डेटा की जरूरत नहीं है. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि जब एक बार एससी/एसटी के आधार पर नौकरी मिल चुकी है तो प्रमोशन में आरक्षण के लिए फिर से डेटा की क्या जरूरत है? केंद्र सरकार का कहना है कि एम नागराज फैसले पर फिर से विचार करने की जरूरत है. गौरतलब है कि 2006 के नागराज फैसले के बाद एससी-एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण रुक गया था..
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बताया कि एससी-एसटी के लिए पिछड़ापन निर्धारित करने के लिए डेटा का संग्रह न तो व्यवहारिक है और न ही उसकी जरूरत है. केंद्र ने लिखित जवाब दाखिल करते हुए कहा कि संसद द्वारा बिल पास करने के बाद ही एक समुदाय को एससी कैटिगरी की सूची में शामिल कर लिया गया था. वहीं सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 2006 के नागराज फैसले के मुताबिक सरकार एससी/एसटी को प्रमोशन में आरक्षण तभी दे सकती है जब डेटा के आधार पर तय हो कि उनका प्रतिनिधित्व कम है और वो प्रशासन की मजबूती के लिए जरूरी है..
हालांकि 1992 के इंदिरा साहनी और अन्य बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और 2005 के ई वी चिन्नैया बनाम स्टेट ऑफ आंध्र प्रदेश में इस बाबत फैसले दिए गए थे. ये दोनों फैसले ओबीसी वर्ग में क्रीमी लेयर से जुड़े थे. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि 2006 के नागराज फैसले से एससी-एसटी के लिए प्रमोशन में आरक्षण रुक गया है. केंद्र सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि प्रमोशन में आरक्षण देना सही है या गलत इसपर टिप्पणी नहीं करना चाहता, लेकिन यह तबका 1000 से अधिक सालों से प्रताड़ित है. उन्होंने कहा था कि नागराज मामले में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ को फैसले की समीक्षा की जरूरी है

आधार कार्ड पर उच्चतम न्यायलय का फैसला

नई दिल्ली 
सर्वोच्च न्यायलय में आधार की अनिवार्यता पर आज अहम फैसला आने वाला है। इस साल जनवरी से चल रही आधार मामले की सुनवाई पर शीर्ष अदालत ने 10 मई को फैसला सुरक्षित रख लिया था। केंद्र सरकार समेत सभी याचिकाकर्ताओं की नजरें इस सुप्रीम फैसले पर लगी हैं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुआई में 5 जजों की बेंच फैसला सुनाएगी। यह ऐसा फैसला है, जिसका असर आपकी जिंदगी पर दिखेगा। आइए जानते हैं आधार से जुड़ी से सारी जानकारी….

फैसले के पहले आधार की यात्रा, यहां जानिए सबकुछ
-28 जनवरी, 2009 को योजना आयोग ने UIDAI का नोटिफिकेशन जारी किया
-सितंबर 2010 में ग्रामीण महाराष्ट्र इलाके में योजना की लॉन्चिंग
-2010-11-नैशनल आइडेन्टफकेशन अथॉरिटी ऑफ इंडिया बिल पेश किया गया। बाद में बिल को वित्तीय मामलों की स्टैडिंग कमिटी के पास भेजा गया। कमिटी ने निजता और संवेदनशील जानकारी पर सवाल उठाए।

ऐसे कोर्ट में गया मामला 

30 नवंबर 2012: रिटायर्ड जज के एस पुट्टास्वामी समेत कई जनहित याचिकाओं के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को नोटिस भेजा।
23 सितंबर 2013-दो जजों की बेंच ने सभी मामले की सुनवाई का आदेश दिया।
26 नवंबर 2013- बेंच ने आदेश दिया कि इस मामले में सभी राज्य और केंद्रशासित प्रदेश पार्टी बनाया जाएगा।

ससंद में यूं हुआ पास 
3 मार्च 2016- आधार बिल 2016 को लोकसभा में पेश किया गया, बाद में इसे वित्त विधेयक के रूप में पास कर दिया गया।
10 मई- कांग्रेस नेता जयराम रमेश आधार बिल को वित्त विधेयक के रूप में पास करने को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए।
21 अक्टूबर- एस जी वोमबात्करे ने आधार ऐक्ट की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।

ऐसे बढ़ता रहा आधार 
31 मार्च 2017- सरकार ने इनकम टैक्स ऐक्ट में सेक्शन 139AA शामिल किया। इसके तहत पैन कार्ड, रिटर्न फाइल करने के लिए आधार को अनिवार्य कर दिया गया।
1 जून- आधार कार्ड को बैंक में अकाउंट खोलने और 50 हजार से ऊपर के लेनदेन पर अनिवार्य किया गया।
9 जून-दो जजों की पीठ ने आईटी ऐक्ट 139AA को बरकरार रखा। कोर्ट ने साथ ही कहा कि जिनके पास आधार कार्ड नहीं उसका पैन कार्ड कुछ समय के लिए अवैध नहीं माना जाएगा।

प्रिवेसी से जुड़ा मामला 
24 अगस्त 2017- सुप्रीम कोर्ट में नौ जजों की बेंच ने फैसला दिया कि निजता का अधिकार मौलिक अधिकार हैं। आधार के डेटा को भी इस फैसले से जोड़ा गया।

आधार पर 5 जजों की बेंच ने की सुनवाई 
17 जनवरी 2018- पांच जजों की बेंच ने आधार मामले की सुनवाई शुरू की।
10 मई 2018- सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर फैसला सुरक्षित रखा।

अगर फैसला आधार के खिलाफ तो?
-केंद्र सरकार कई जगहों पर आधार को अनिवार्य बना चुकी है। अगर फैसला खिलाफ आता है तो बड़ा असर होगा।
-सुप्रीम कोर्ट अगर बॉयोमिट्रिक डेटा जुटाने को गलत करार देता है तो यह प्रक्रिया रुक जाएगी। केंद्र सरकार के अनुसार अबतक देश में 90 फीसदी से ज्यादा लोगों का आधार बन चुका है।
-सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए अगर आधार की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट खत्म कर देता है तो सरकार को अपनी योजनाओं को आम लोगों तक पहुंचाने के लिए अन्य रास्ता आख्तियार करना होगा।
-अगर सुप्रीम कोर्ट बैंक अकाउंट, मोबाइल नंबर आदि के लिए आधार की अनिवार्यता को गलत बताता है तो कई आर्थिक और अन्य अपराध को रोकने के लिए केंद्र को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है।

HARYANA TO GET FIVE NEW TOWNSHIPS

Chandigarh, Sept 25- Haryana Cabinet   here today accorded approval to the Panchgram Development Bill, 2018 for developing five new cities over an area of 50,000 hectares on each side of the Kundli-Manesar-Palwal (KMP) expressway. Panchgram Development Authority will be constituted as the Apex Body for policy making, development and regulation for the development of Panchgram Region.

            The Cabinet approved the concept of the Panchgram Region and developing five cities on the Kundli-Manesar-Palwal (KMP) expressway on 50,000 hectares each side of the expressway which would cover eight districts of the State namely Sonipat, Rohtak, Jhajjar, Gurugram, Rewari, Mewat, Faridabad and Palwal. While the entire vacant area between the KMP expressway and Delhi has been included in the cities, the area on the outer side varies depending on the development potential.

            Haryana State Industrial and Infrastructure Development Corporation(HSIIDC) has initiated the process for hiring a world class consultancy firm through a global tender for undertaking the master plan. The master plan will be prepared using the high resolution area, photography and act as a guiding document for all the future initiatives. This plan will be finalized after the study of the ground realities and demand-supply paradigm. The proposed legislation envisages creation of an authority for planning development and growth of Panchgram Region and a complete code for establishing and operationalising five modern and efficient cities. The Chief Minister will be the Chairperson of the Authority and the other members of the Authority will comprise of State Ministers, public representatives, State Government officers and local body representatives.

            Urbanization of the region along the KMP e-way is inevitable. It is estimated that around 50 per cent of the total population of India will be residing in urban areas by 2050. In case of Haryana, urban population will reach 50 per cent mark before 2040. The key urban areas of the State around National Capital Region (NCR) will see unprecedented growth in urban population. Haryana has an advantage of availability of maximum non-urbanized area around NCR which can be developed as new cities.

‘एनआरसी मुद्दे पर कांग्रेस संसद में ऐसे कांव-कांव करने लगी जैसे उनकी नानी मर गई हो.’ शाह


अमित शाह ने मध्य प्रदेश में भोपाल के जंबूरी मैदान में बीजेपी कार्यकर्ता महाकुंभ रैली को संबोधित कर रहे थे


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) के मुद्दे पर कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. मंगलवार को उन्होंने कहा कि ‘एनआरसी मुद्दे पर कांग्रेस संसद में ऐसे कांव-कांव करने लगी जैसे उनकी नानी मर गई हो.’

अमित शाह ने मध्य प्रदेश में भोपाल के जंबूरी मैदान में बीजेपी कार्यकर्ता महाकुंभ रैली को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा,‘असम में पंजीकरण में प्राथमिक रूप से 40 लाख घुसपैठियों की पहचान की गई है. अब इनको मतदाता सूची से भी हटाया जाएगा.’

शाह ने कहा,‘आज कार्यकर्ताओं की लाखों की भीड़ मेरे सामने खड़ी है. मैं पूछना चाहता हूं कि इस देश से घुसपैठियों को जाना चाहिए कि नहीं जाना चाहिए?’

इस पर जनता की ओर से आवाज आई – ‘हां जाना चाहिए’.

बीजेपी अध्यक्ष ने कहा,‘पूरे देश से घुसपैठियों को निकालने की शुरुआत असम से की जाएगी.’ उन्होंने कहा कि हमने असम में सरकार बनने के बाद एनआरसी को लागू किया. भारत के नागरिकों पर रजिस्टर बनते ही अवैध घुसपैठियों की सूची बन जाएगी.

अमित शाह ने कहा,‘बीजेपी के लिए देश की सुरक्षा पहली प्राथमिकता है. आपको चिंता करने की जरूरत नहीं. एनआरसी की प्रक्रिया रुकने वाली नहीं है.’