मिज़ोरम को मणिपुर बोल गए राहुल

मिज़ोरम = मणिपुर


राहुल गांधी ने सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करने के दौरान मिजोरम को मणिपुर लिख दिया


देश की राजनीति में हमारे राजनेताओं की जबान गाहे-बगाहे तो फिसलती ही रहती है. लेकिन कभी-कभी उनसे बहुत सामान्य सी गलतियां भी हो जाती हैं, जो उनके एक राजनेता होने के नाते उनसे उम्मीद नहीं की जाती है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी ऐसे ही एक स्थिति का शिकार हो गए और बीजेपी ने उन्हें आड़े हाथों ले लिया.

दरअसल, राहुल गांधी ने सोमवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट करने के दौरान मिजोरम को मणिपुर लिख दिया. गलती तो बड़ी थी और इसे ‘सुनहरा मौका’ समझकर बीजेपी ने तुरंत झपट लिया और राहुल गांधी की बकायदा क्लास लगा दी.

राहुल गांधी ने मिजोरम में आधी सदी के बाद सैनिक स्कूल में लड़कियों के लिए खुले दरवाजे पर एक लिंक शेयर किया. उन्होंने इसकी तारीफ की लेकिन गलती से वो मिजोरम को मणिपुर लिख गए.

इस पोस्ट को बाद में डिलीट कर दिया गया लेकिन बीजेपी की आईटी सेल को मौका मिल चुका था. आईटी सेल के हेड अमित मालवीय बकायदा राहुल गांधी को लिखने के लिए सबक दे दिया. उन्होंने ट्वीट कर लिखा, ‘राहुल गांधी जाइए और ये लाइन हजार बार लिखिए कि- मणिपुर और मिजोरम उत्तर-पूर्वी भारत के दो अलग-अलग राज्य हैं और इसे याद रखिए.’


Amit Malviya

@amitmalviya

Rahul Gandhi go and write this a hundred times, “Mizoram and Manipur are two different states in the North East of India and I will remember that for the rest of my term as President of the Congress party!” (Edits note after being called out!)


अमित मालवीय ने ये भी कहा कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के प्रति ऐसी लापरवाही समस्या है.

राहुल गांधी को उनके बयानों की वजह से हमेशा ही ट्रोल किया जाता है. इस साल मार्च में राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि उन्हें एनसीसी ट्रेनिंग को लेकर बहुत ज्यादा जानकारी नहीं है. इसपर उन्हें काफी आलोचना झेलनी पड़ी थी.

पंजाब-हरियाणा पर ब्लेम-गेम के जरिए दिल्ली के प्रदूषण पर कंट्रोल किया जाएगा


प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का शोर सालाना लगने वाले मेले की तरह नजर आता है और प्रदूषण रोकने की कवायद आखिरी में आरोप लगाने पर ही ठहर जाती है


दिल्ली की हवा जानलेवा हो चुकी है. सुबह के वक्त घरों से बाहर न निकलने की चेतावनी दी जा रही है. लेकिन राजनीति की फिजां उससे भी ज्यादा खराब है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर बीजेपी और कांग्रेस पर दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने का आरोप लगाया है. वो कहते हैं कि केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की वजह से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है. पिछले साल भी सीएम केजरीवाल ने ऐसा ही कहा था. केजरीवाल ये मानते हैं कि दिल्ली की हवा में बढ़ते प्रदूषण के पीछे राजनीतिक साजिशें हैं और दिल्ली सरकार उन साजिशों का शिकार.


Arvind Kejriwal

@ArvindKejriwal

पूरा साल दिल्ली में प्रदूषण ठीक रहा।

पर इस वक़्त हर साल दिल्ली को हरियाणा, केंद्र और पंजाब की भाजपा और कांग्रेस सरकारों की वजह से दम घोंटने वाले प्रदूषण को झेलना पड़ता है। हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद ये कुछ करने को तैयार नहीं। इन राज्यों के किसान भी अपनी सरकारों से परेशान हैं


आम जनता के नायक बन कर अरविंद केजरीवाल उभरे थे. गले में मफलर और खांसती हुई उनकी तस्वीरें लोगों को आम आदमी साबित करने का काम करती थीं. लेकिन आज प्रदूषण से दिल्ली खांस रही है. प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का शोर सालाना लगने वाले मेले की तरह नजर आता है. प्रदूषण रोकने की कवायद आखिरी में आरोप लगाने पर ही ठहर जाते हैं.

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का दावा है कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में पांच गुना कमी आई है तो हरियाणा सरकार का कहना है कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में 70 फीसदी कमी की गई है. लेकिन केजरीवाल का आरोप है कि पंजाब और हरियाणा की वजह से दिल्ली में सांस लेने में घुटन हो रही है.

दिल्ली के वाहनों से सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है. साल भर दिल्ली की हवा गाड़ियों से निकलते धुएं, निर्माण कार्य से उठने वाली धूल और औद्योगिक प्रदूषण की वजह से हवा जहरीली होती जाती है. अब सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण पर सख्ती दिखाते हुए दस साल पुराने डीज़ल और 15 साल पुराने पेट्रोल के वाहनों को प्रतिबंधित कर दिया है. ऐसे में दिल्ली सरकार को पुराने और जहरीला धुआं उगलते वाहनों पर सख्ती करने की जरूरत है ताकि कोर्ट का आदेश पूरा हो सके.

दिल्ली में 1 नवंबर से 10 नवंबर तक निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है. सवाल उठता है कि ये कदम कुछ पहले क्यों नहीं उठाए गए? कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री जैसे रेत, ईंट, मलबा या दूसरी चीजों को ढंक कर रखना जरूरी होता है. लेकिन दिल्ली में जगह-जगह इनका ढेर खुले में दिखाई देना आम बात है. चाहे वो प्राइवेट कंस्ट्रक्शन हो या फिर सरकारी निर्माण हो. प्रदूषण के खिलाफ पर्यावरण को लेकर बनाए गए नियमों की खुलेआम धज्जियां हवा में धूल की तरह उड़ती दिखाई देती हैं.

सच तो ये है कि प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए नियमों का दिल्ली सरकार पालन नहीं करवा सकी है.  प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत है. जरूरी ये है कि दिल्ली सरकार ऐसी टीमें बनाएं जिनमें पीडब्लूडी और एमसीडी के साथ दिल्ली पुलिस के कर्मी भी शामिल हों ताकि जहां सख्ती की जरूरत हो वहां सख्ती से निपटा जा सके.

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खुले में कूड़ा जलाने को रोकने के लिए दिल्ली सरकार ने अबतक क्या सख्त कदम उठाए? भलस्वा लैंडफिल साइट में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही जिससे  जिससे दिल्ली की हवा में जहर घुलता जा रहा है. वहीं नरेला और बवाना में भी कूड़े के ढेर खुलेआम जलाए जाते हैं. खुद EPCA यानी पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण संरक्षण प्राधिकरण ये जानता है तो DPCB यानी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी ये मानता है.

ऐसे में NGT यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल जब द‍िल्ली सरकार से प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए एक्शन प्लान मांगती है तो दिल्ली सरकार पांच महीनों का समय मांगती है. ऐसा भी नहीं है कि दिल्ली पहली बार प्रदूषण की मार झेल रही है और ऐसा भी नहीं कि केजरीवाल सरकार को दिल्ली की आबो-हवा का पुराना अनुभव नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों फिर दिल्ली सरकार अपनी तैयारियों का खाका इतने साल बाद भी नहीं बना सकी?

खुद सीएम केजरीवाल का कहना था कि अगर राजनीति से ऊपर उठ कर एक साथ सहयोग करें तो दिल्ली की हवा की सूरत बदली जा सकती है. ऐसे में क्या सिर्फ ऑड-ईवन के भरोसे और पंजाब-हरियाणा पर ब्लेम-गेम के जरिए प्रदूषण पर कंट्रोल किया जा सकेगा? जाहिर तौर पर दिल्ली के पड़ौसी नहीं बदले जा सकते हैं. वहां से हवा आएगी और उन हवाओं का रूख नहीं बदला जा सकता है.

सरकार को सबसे पहले प्रदूषण के कारकों को चिन्हित करना होगा और उनका विकल्प सोचना होगा. सरकार ये सुनिश्चित करे कि लैंडफिल साइट और दूसरी जगहों पर कचरा न जलाया जाए, पॉवर कट की वजह से डीज़ल जेनरेटर का ज्यादा इस्तेमाल न हो, धुआं फेंकने वाले पुराने वाहन सख्ती से जब्त हों, ईंट-भट्टे सर्दियों के मौसम में बंद रखे जाएं और धूल भरी सड़कों पर पानी का लगातार छिड़काव हो.

बहरहाल, एक बार फिर प्रदूषण से गहराती धुंध में दिल्ली सरकार अपनी राजनीति की आबो-हवा ठीक करने में जुटी हुई है. एक दूसरे पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ने की कवायद हो चुकी है. हर साल सर्दियां आएंगी. आबोहवा में धुंध का पहरा होगा. पड़ौसी राज्यों में पराली जलेगी और फिर दिवाली भी आएगी. उसी कोहरे की राजनीति में बयानों की जहरीली हवा भी चलेगी जो ये कहेगी कि इस दमघोंटू हवा के लिए हम नहीं ‘वो’ जिम्मेदार हैं. उस ‘वो’ की तलाश जारी रहेगी.

किस करवट बैठेगा उपेंद्र कुशवाहा की राजनीति का ऊँट?


कुशवाहा को बीजेपी की तरफ से 2 सीटों के ऑफर के बारे में साफ-साफ बता दिया गया है और उन्हें भी त्याग करने को कह दिया गया है


आरएलएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा सोमवार रात को ही पटना से दिल्ली आ गए थे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बुलावे पर दिल्ली पहुंचे उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात बीजेपी के महासचिव और बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव से मंगलवार 30 अक्टूबर को हुई. बातचीत के पहले उपेंद्र कुशवाहा के कदम को लेकर कई कयास लगाए जा रहे थे.

लेकिन, मीडिया से बातचीत में उपेंद्र कुशवाहा ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजेपी अध्यक्ष के उस फॉर्मूले को लेकर अपनी सहमति जताई जिसमें वो सभी पार्टनर से जेडीयू की एंट्री के बाद ‘त्याग’ करने की बात कह चुके हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने मीडिया के सामने जो बातें की उसमें तीन बातें ऐसी रही जिसको देखकर ऐसा लग रहा था कि कुशवाहा फिलहाल एनडीए में बने रहने के लिए कुर्बानी को तैयार हो गए हैं.

‘कुर्बानी’ को तैयार कुशवाहा !

सबसे पहले ‘त्याग’ के फॉर्मूले की बात करें तो कुशवाहा ने कहा, ‘हम उनकी (बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह) बात से सहमत हैं. हम ‘कुर्बानी’ को तैयार हैं. लेकिन, जब कई हिस्सेदार एक साथ हैं और उनमें नुकसान जब सभी शेयरधारी और पार्टनर करते हैं तो फिर लाभ वाले मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ ? कुशवाहा ने सवाल उठाया कि हम लाभ वाले मामले में क्यों वंचित हुए ?’ उपेंद्र कुशवाहा ने उस वक्त का जिक्र किया जब पिछले साल नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की फिर से एनडीए में एंट्री हुई और उस वक्त जेडीयू-बीजेपी ने मिलकर फिर से सरकार बना ली.

उस वक्त बिहार में एलजेपी और आरएलएसपी दोनों के दो-दो विधायक थे. लेकिन, विधानसभा का उपचुनाव हार चुके एलजेपी से रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को एमएलसी भी बनाया गया और नीतीश सरकार में मंत्री पद भी मिला. उस वक्त कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी को नीतीश सरकार में जगह नहीं मिली. कुशवाहा ने बीजेपी की तरफ से नीतीश की एंट्री के बाद ‘त्याग’ के फॉर्मूले पर अपनी तरफ से बीजेपी के सामने यह तर्क रख दिया है.

हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने फिलहाल बिहार सरकार में मंत्री पद के मुद्दे पर साफ-साफ कुछ नहीं कहा, लेकिन, हो सकता है कि अगर कुशवाहा बीजेपी की तरफ से दी गईं 2 लोकसभा सीटों के फॉर्मूले पर तैयार हो गए तो उनके एक एमएलए को बिहार सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है. ऐसा करते वक्त नीतीश कुमार के साथ उनके रिश्ते और समीकरण पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा.

कैसा होगा नीतीश-कुशवाहा का समीकरण ?

उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से दूसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना बड़ा भाई बताकर अपनी तरफ से नरमी के संकेत दिए हैं. उनके इस बयान का बड़ा सियासी मतलब निकाला जा रहा है. जब चार रोज पहले दिल्ली में नीतीश कुमार और अमित शाह ने संयुक्त रूप से मीडिया के सामने आकर बराबर- बराबर सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था तो उस वक्त नीतीश कुमार की अहमियत का अंदाजा साफ दिख रहा था. बीजेपी किसी भी हालत में नीतीश कुमार को नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहती थी.

दूसरी तरफ, एनडीए के भीतर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी के बीच तल्खी कई बार दिख चुकी है. आरएलएसपी के नेता और यहां तक कि उनके कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि ने तो नीतीश कुमार को उनकी जाति यानी कूर्मी जाति के डेढ़ फीसदी लोगों का नेता तक बता दिया था, जबकि उपेंद्र कुशवाहा और अपनी पार्टी को 10 फीसदी लोगों का नेता तक कह दिया था. इस तरह की तल्खी के बावजूद बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ मुलाकात के बाद अगर कुशवाहा ने नीतीश कुमार को बड़ा भाई बताया है तो यह भी उनके रुख में नरमी का संकेत दे रहा है.

मोदी को फिर से ‘प्रधानमंत्री’ बनाएंगे कुशवाहा

कुशवाहा की तीसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने फिर से नरेंद्र मोदी को अगले पांच साल के लिए प्रधानमंत्री पद पर बैठाने की बात दोहराई. हालाकि कुशवाहा यह बात पहले से भी बोलते आए हैं. लेकिन, इस वक्त सीट बंटवारे को लेकर नाराजगी की अटकलों के बीच उनकी तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने वाले बयान से भी यह संकेत मिला कि कुशवाहा फिलहाल एनडीए के साथ ही रहने को तैयार हो गए हैं.

कैसा रहेगा सीटों का फॉर्मूला ?

सूत्रों के मुताबिक, सीट बंटवारे पर बीजेपी-जेडीयू के अलावा एलजेपी से भी समझौता हो गया है. समझौते के मुताबिक, बीजेपी और जेडीयू कुल 40 सीटों में से 17-17 सीटों पर लड़ेगी, जबकि, 4 सीटें एलजेपी के खाते में जाएगी, जबकि 2 सीटें उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी को दी जाएगी. सूत्रों के मुताबिक, चार सीटों के अलावा राज्यसभा के लिए भी बीजेपी अपने खाते से एक सीट एलजेपी को देगी. सूत्रों के मुताबिक, एलजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा. हालाकि एलजेपी सूत्रों के मुताबिक, उन 4 सीटों के अलावा एक और लोकसभा की सीट झारखंड या यूपी में एलजेपी को मिल सकती है.

कुशवाहा के सामने पार्टी नेताओं को मनाने की चुनौती

इस तरह कुशवाहा को बीजेपी की तरफ से 2 सीटों के ऑफर के बारे में साफ-साफ बता दिया गया है और उन्हें भी त्याग करने को कह दिया गया है. लेकिन, कुशवाहा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि महज 2 सीटों पर मानकर वे अपने पार्टी नेताओं को कैसे मना पाएंगे ? इस वक्त उपेंद्र कुशवाहा खुद बिहार की काराकाट से सांसद हैं. इसके अलावा उनके दूसरे सांसद रामकुमार शर्मा सीतामढ़ी से सांसद हैं. इन दो सीटों पर तो उनका ही दावा बनता है.

लेकिन, उनकी पार्टी में पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि भी कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नंबर दो की हैसियत में हैं. नागमणि भी चुनाव लड़ना चाहते हैं. ऐसे में 2 सीटों के ऑफर को मानने पर पार्टी नेताओं में नाराजगी हो सकती है. दूसरी तरफ, पार्टी कार्यकर्ताओं को भी इस फॉर्मूले पर मनाने और बेहतर संदेश देने की चुनौती होगी. उपेंद्र कुशवाहा अब चार दिन बाद फिर दिल्ली में होंगे, जिसमें बीजेपी नेताओं के साथ सीटों के समझौते को लेकर अंतिम फैसला हो सकता है.

अभी खुला रखना चाहते हैं विकल्प

दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा ने पिछले पांच सालों में केंद्र में मंत्री रहते अपनी पार्टी का संगठन पूरे बिहार में खड़ा कर लिया है. उनको भी लगता है कि अगर लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर चुनाव लड़कर भी जीत मिल गई तो उस हालत में उन्हें फिर से सरकार बनने की सूरत में मंत्री पद मिल सकता है. इस तरह से उन्हें फिर से अपना संगठन और मजबूत करने और विधानसभा चुनाव में अपनी हैसियत बढ़ाने का मौका मिल सकता है.

जीतन राम मांझी ने उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर तंज

हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने केंद्रीय मंत्री एवं रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर तंज कसा है. जीतन राम मांझी ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए को ब्लैकमेल कर रहे हैं. यह बस उनका व्यक्तिगत स्वार्थ है. मांझी ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा को दो नाव की सवारी नहीं करनी चाहिए. दो नाव की सवारी करनेवाला सफल नहीं होता है.

दूसरी तरफ, अगर दोबारा एनडीए सत्ता में नहीं भी आई तो उस हालात में उनके पास फिर भी नए समीकरण का विकल्प रह सकता है. लालू परिवार से उनकी हो रही समय-समय पर बातचीत इस बात का संकेत है, क्योंकि राजनीति में कुछ भी संभव है.

कांग्रेस द्वारा दो बार से अधिक हारे पूर्व विधायकों के कट सकते हैं टिकिट


राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशियों के चयन के लिए एक ऐसी शर्त लगाई है जिसकी वजह से कई नेताओं पर टिकट कटने की तलवार लटकने लगी है.


राजस्थान में कांग्रेस पार्टी ने प्रत्याशियों के चयन के लिए एक ऐसी शर्त लगाई है जिसकी वजह से कई नेताओं पर टिकट कटने की तलवार लटकने लगी है. दिल्ली में चल रही है राजस्थान कांग्रेस स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में फैसला लिया गया है कि लगातार दो बार हार का सामना कर चुके प्रत्याशियों को टिकट नहीं दिया जाएगा. आलाकमान के इस फैसले के बाद राज्य में कई कांग्रेसी नेताओं की पेशानी पर बल आ गए हैं.

दिल्ली में हुई इस स्क्रीनिंग कमेटी की अहम बैठक में फैसला लिया गया है कि 30 हजार से ज्यादा मतों से हारे पूर्व सांसदों और दागी नेताओं का टिकट काटने पर भी फैसला किया जा सकता है. कहा जा रहा है कि आलाकमान का ये फैसला अगर लागू हुआ तो राजस्थान में 20 से ज्यादा नेताओं के टिकट काटे जा सकते हैं.

ये हो सकते हैं दौड़ से बाहर

अगर नए मापदंड पूरी तरह से लागू हुए तो दर्जन भर पूर्व सासंद भी विधानसभा टिकट की दौड़ से बाहर हो सकते हैं. दो बार हारे हुए डॉ. चंद्रभान, बीडी कल्ला, रिछपाल मिर्धा, डॉ. सीएस बैद, रामचंद्र सराधना, आलोक बेनीवाल, जुबेर खान, संयम लोढा, ममता शर्मा, नरेन्द्र शर्मा, रमेश खिंची, दीपचंद खेड़िया, बनवारीलाल शर्मा, विक्रम सिंह शेखावत, लक्ष्मण मीणा, गिरीश चौधरी, गोपाल बाहेती, खुशवीर सिंह जोजावर और नईमुद्दीन गुड्डु टिकट की दौड़ से बाहर हो सकते हैं.

दागी नेताओं पर भी आ सकता है संकट

मंगलवार को सुबह 11:30 बजे से स्क्रीनिंग कमेटी की फिर से बैठक होगी. मंगलवार की बैठक में 30,000 से ज्यादा मतों से हारे दावेदारों, पूर्व सांसदों और दागी नेताओं को टिकट नहीं देने पर फैसला किया जा सकता है. बैठक में कमेटी अध्यक्ष कुमारी शैलजा, संगठन महासचिव अशोक गहलोत, पीसीसी चीफ सचिन पायलट और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे समेत अन्य नेता मौजूद रहेंगे. दावेदारों की भीड़ देखते हुए बैठक कांग्रेस वॉर रूम के बजाय कहीं और की जा सकती है.

‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’: योगी आदित्यनाथ


‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’. अगर फैसला समय पर आता है तो इसका स्वागत होगा. लेकिन अगर इसमें देरी होती है तो वो अन्याय के बराबर ही होगा

‘मंदिर का इंतजार जन्म जन्मांतर तक का नहीं हो सकता.’

इस संक्रमण के समय में, पवित्र पुरुषों को देश में शांति और सद्भाव को मजबूत करने के सकारात्मक प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए.’


अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए बीजेपी अध्यादेश का रास्ता भी अपना सकती है. मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प को नकार नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर इस मुद्दे को सर्वसम्मति से हल नहीं किया जा सकता है, तो फिर दूसरे विकल्पों को भी खंगाला जा सकता है.

कल सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की राम जन्मभूमि मुद्दे पर जल्दी सुनवाई की याचिका को खारिज कर दिया था. इसके दिन बाद ही योगी आदित्यनाथ ने ये बयान दिया है. हालांकि मुख्यमंत्री ने ये जरुर कहा कि वो न्यायपालिका का सम्मान करते हैं. और संवैधानिक दिक्कतों को भी समझते हैं.

योगी ने कहा- ‘इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाया जाना चाहिए. क्योंकि राज्य में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर है. हालांकि सर्वसम्मति सबसे अच्छा समाधान है. लेकिन इसके इतर भी कई अन्य तरीके हैं.’

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अयोध्या मुद्दे की सुनवाई जनवरी 2019 के पहले सप्ताह करने का आदेश जारी किया था. कोर्ट ने बेंच द्वारा सुनवाई की तारीख तय करने के पहले अपील की सूची तैयार करने का आदेश दिया. साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि ‘हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं.’

मुख्यमंत्री ने कहा- ‘संतों को पूरे धैर्य के साथ श्रीराम जन्मभूमि के समाधान की दिशा में होने वाले उन सभी सार्थक प्रयासों में सहभागी बनना चाहिए, जिससे देश में शांति और सौहार्द की स्थापना हो तथा भारत के सभी संवैधानिक संस्थाओं के प्रति सम्मान का भाव सुदृढ हो.’

आदित्यनाथ ने कहा कि जनता राम जन्मभूमि में जल्दी निर्णय की अपेक्षा कर रहे थे. साथ ही उन्होंने कहा ‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’. अगर फैसला समय पर आता है तो इसका स्वागत होगा. लेकिन अगर इसमें देरी होती है तो वो अन्याय के बराबर ही होगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे हिंदूवादी संगठनों द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार से इस अध्यादेश के रास्ते पूरा करने की मांग ने जोर पकड़ लिया है. उधर आरएसएस ने कहा है कि मंदिर ‘तुरंत बनाया जाना चाहिए’ और केंद्र ‘बाधाओं को दूर करने के लिए कानून लाए’. वीएचपी ने कहा कि ‘मंदिर का इंतजार जन्म जन्मांतर तक का नहीं हो सकता.’

सीएम ने लोगों से धैर्य बनाए रखने और सकारात्मक प्रयासों में हाथ बढ़ाने का आग्रह किया. साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हम सभी साधु संतों का सम्मान करते हैं और उनकी चिंताओं का सम्मान करते हैं. इस संक्रमण के समय में, पवित्र पुरुषों को देश में शांति और सद्भाव को मजबूत करने के सकारात्मक प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए.’

तय कीजिये कि लम्बित मुकदमो के लिये जिम्मेदार कौन

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

कल सुप्रीम कोर्ट ने देश के सामने साबित कर दिया कि न्यायलयो मे लम्बित केसों के लिये देश मुख्य न्यायधीश चाहे वो कोई भी हो सिर्फ भाषण देता है या ज्ञान बांटता है या वकीलो को जिम्मेदार ठहराता या सरकार को जबकि असली जिम्मेदार स्वयं न्यायपालिका है क्योकि 150 साल पुराना केस जो सुप्रीम कोर्ट मे ही विगत आठ बर्षों से लम्बित है ,वो अर्जेंट नही लगा !

कल पूर्व निर्धारित तारीख राममन्दिर विवाद से सम्बन्धित थी जो स्वयं न्यायालय ने तय कर रखी थी कि इस मामले की सुनवाई नियमित रूप से 29 अक्टूबर से होगी जिसका विरोध कांग्रेस नेता और मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने यह कहते हुआ किया कि राममन्दिर की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नही होनी चाहिये चूंकि कपिल सिब्बल ये जानता है कि इसका निर्णय किस पक्ष मे आने वाला है, क्योकि सारे सबूत राममन्दिर के पक्ष मे है और यदि निर्णय लोकसभा चुनाव से पहले आया तो पूरा फायदा बीजेपी को मिलेगा ! चुंकि तत्कालीन बेंच ने सिब्बल की मांग ठुकरा दी और 29 अक्टूबर से नियमित सुनवाई तय की !

जैसे ही 29 अक्टूबर को 150 साल पुराना केस न्यायालय के सामने सूचिबद्ध हुआ पहले तो तत्कालीन बेंच के सदस्यो को जो कि पूर्व मे सुनवाई कर रहे थे सुनवाई से अलग किया नयी बेंच का गठन किया और पल भर मे ही सिब्बल की मांग की ओर कदम बढाते हुये राममन्दिर केस को यह कहते हुये जनवरी तक सुनवाई टाल दी कि यह मामला अर्जेंट नही है ! जबकि राम लला के वकील वै्धनाथ और उत्तर प्रदेश सरकार के वकील और सोलिसीटर जनरल तुषार मेहता शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाते रहे पर न्यायलय ने पूर्व मे सिब्बल द्वारा उठाई मांग की तरफ ध्यान दिया और जनवरी तक सुनवाई टाल दी ! अब पहले जनवरी मे यह तय होगा कि कौनसी बेंच इस केस की सुनवाई करे और कब करे तब तक लोकसभा चुनाव आ चुके होंगे और कपिल सिब्बल का एजेंडा पूरा हो चुका !

बिडम्बना यह है कि देशका हर मुख्यन्यायधीश शपथ लेते ही लम्बित मुकदमो के निपटारे के लिये प्रवचन देता है तो कभी सरकार को दोषी ठहराता है तो कभी वकील को कभी पिडित को लेकिन आज वकील भी तैयार थे मुवक्किल भी और सरकार भी लेकिन न्यायलय तैयार नही था आखिर क्यों ?

राममन्दिर का विषय देश के 100 करोड हिन्दुओं की आस्था का सवाल है देश के लोगो को उम्मीद थी कि न्यायलय हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक राममन्दिर विवाद जो 150 साल से कोर्ट कचहरी मे अटका है अब तय हो जायेगा लेकिन न्यायलय ने पलक झपकते ही उनकी उम्मीदो को यह कहकर ‌चकनाचूरकर दिया कि यह मामला अर्जेंट नही है! क्या देश के 100 करोड लोगो की आस्था अर्जेंट नही है ? क्या 150 साल पुराना केस अर्जेंट नही है जो स्वयं सुप्रीम कोर्ट मे पिछले आठ बर्ष से लम्बित है अर्जेंट नही है? तो न्यायलय की नजर मे अर्जेंट सबरीमाला मन्दिर का केस था जिसमे याचिकाकर्ता भी वो थे जिनका भगवान अयप्पा मे कोई आस्था नही थी सिर्फ एक साजिश थी विधर्मी थे जिनका हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नही था लेकिन सुप्रीम कोर्ट को मामला अर्जेंट लगा वही भगवान अयप्पा के वासतविक भक्त जब रिव्यू लगाने पहंचे तो उसी न्यायलय को अर्जेंट नही लगी और सुनवाई टाल दी!

दूसरी तरफ उसी राममन्दिर से सम्बन्धित विवाद मे बम विस्फोट के आरोप मे फांसी की सजा को रोकने के लिये न्यायलय को रात दो बजे खोलना अर्जेंट लगा वो भी एक आतंकवादी के लिये ? कुछ दिन अर्बन नक्सली के हाऊस अरेस्ट मे न्यायलय को इतना अरजेंट मामला लगा कि देश की आखे खुलने से पहले कोर्ट खुल गया !

पर देश के 100 करोड लोगो की आस्था से जुडा मामला अर्जेंट नही 150 साल पुराने केस की सुनवाई अर्जेंट नही
आज देश का हिन्दू समाज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है ! अब गेंद केन्द्र सरकार के पाले मे है अब सरकार को संसद मे कानून बनाकर देश के 100 करोड लोगो की आस्था कितनी अरजेंट है ये साबित करना है और संसद मे विधेयक लाकर सारे राजनितिक दलो का चेहरा बेनकाब करे कि कौनसा दल क्या राजनीति राममन्दिर के मुद्दे पर कर रहा है !

अयोध्या मामले पर जनवरी 2019 तक टली सुनवाई इसके राजनैतिक मायने


अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अब सुनवाई को जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया है.


अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अब सुनवाई को जनवरी 2019 तक के लिए टाल दिया है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक जनवरी में ही तय होगा कि इस मामले की नियमित सुनवाई होगी या नहीं. इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एस के कौल और जस्टिस के एम जोसेफ की बेंच में हो रही है जिनकी तरफ से यह फैसला आया है.

इससे पहले 27 सितंबर को सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने 1994 के अपने फैसले पर पुनर्विचार से इनकार कर मस्जिद को इस्लाम का आंतरिक हिस्सा मानने से इनकार कर दिया था. उस वक्त इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने 27 सितंबर को अपने फैसले में 2:1 से आदेश दिया था कि अयोध्या मामले की सुनवाई सबूतों के आधार पर होगी. 27 सितंबर के फैसले के बाद 29 अक्टूबर की तारीख तय की गई थी जिसके बाद अब वर्तमान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच ने जनवरी तक सुनवाई को टाल दिया है.

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 30 सितंबर, 2010 को दिए अपने फैसले में 2:1 के बहुमत से अयोध्या की उस 2.77 एकड़ जमीन को तीनों पक्षों सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था. इसे फैसले के खिलाफ ही सुप्रीम कोर्ट में सभी पक्षों की तरफ से याचिका दायर की गई है, जिस पर सुनवाई की जानी है.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगी सरकार ?

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जबकि संघ परिवार की तरफ से फिर से मंदिर निर्माण को लेकर सरकार पर दबाव बनाया जा रहा है. मोदी सरकार मंदिर निर्माण को लेकर पहले से ही अपना स्टैंड साफ कर चुकी है कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार किया जाएगा या फिर आपसी समहति से ही बीच का रास्ता निकालकर वहां मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त होगा. सरकार के सूत्रों के मुताबिक, सरकार अभी भी अपने उसी स्टैंड पर कायम रहेगी.

लेकिन, इस बीच संघ परिवार का दबाव सरकार पर आने वाला है. संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत की तरफ से इस मामले में कानून बनाने की मांग कर दी गई है. दूसरी तरफ विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी ने साधु-संतों के साथ मिलकर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने को लेकर जनजागरण अभियान पहले ही शुरू कर रखा है. संतों की उच्चाधिकार समिति की बैठक में वीएचपी नेताओं और साधु-संतों ने भव्य मंदिर निर्माण को लेकर सांसदों का उनके संसदीय क्षेत्र में घेराव करने और संसद मे कानून बनाने की मांग को लेकर सांसदों के अलावा हर राज्य में राज्यपालों से मिलकर ज्ञापन सौंपने का कार्यक्रम है. साधु-संत प्रधानमंत्री से मिलकर भी राम मंदिर निर्माण के लिए सरकार की पहल की मांग करने वाले हैं.

बीजेपी के फायरब्रांड नेताओं की बयानबाजी

संघ परिवार के मुखिया की तरफ से जल्द राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग करने के बाद बीजेपी के भीतर भी उन नेताओं को खुलकर अपनी बात रखने का मौका मिल गया है जो राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे हैं या जो खुलकर हिंदुत्व के मुद्दों को उठाते रहे हैं.

बीजेपी नेता और पूर्व सांसद विनय कटियार ने राम मंदिर आंदोलन मामले में देरी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है. उन्होंने आरोप लगाया है कि कांग्रेस नहीं चाहती कि 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले राम मंदिर पर कोई फैसला आए जिसके चलते इतनी देरी हो रही है.

उधर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा है कि हिंदुओं का सब्र अब टूट रहा है. उन्होंने कहा, ‘मुझे भय है कि हिंदुओं का सब्र टूट गया तब क्या होगा?’

विनय कटियार औऱ गिरिराज सिंह के बयान से साफ है कि बीजेपी के भीतर एक बड़ा तबका है जो इस मुद्दे पर संघ परिवार और साधु-संतों की लाइन पर चल रहा है. बीजेपी का यह धड़ा हर हाल में अध्यादेश लाकर या फिर कानून बनाकर राम मंदिर का रास्ता साफ करना चाहता है. लेकिन, फिलहाल सरकार के लिए यह सबसे बड़ी मुश्किल है कि इस मुद्दे पर कानून या अध्यादेश का रास्ता अख्तियार करे.

अब क्या होगा फैसले का असर ?

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी संगठन और सरकार इस मुद्दे पर काफी संभलकर चल रहे हैं. पांच सालों के अपने काम-काज और बेहतर प्रशासन के मुद्दे पर चुनावी मैदान में उतरने की सोंच रहे सरकार के लोगों को उम्मीद थी कि अगर सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनाव से पहले आ जाता है तो उन्हें इसका सीधा सियासी फायदा हो सकता है. बीजेपी के रणनीतिकारों को उम्मीद थी कि चुनाव से पहले इस मुद्दे पर फैसला चाहे जो भी हो उस पर हो रहे सियासी ध्रुवीकरण का फायदा उन्हें ही मिलेगा

बीजेपी नेताओं के बयानों से इसकी झलक भी मिल रही थी. यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी राम मंदिर पर बयान आया लेकिन, उसके बाद उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का यह बयान माहौल को ज्यादा गरमाने वाला था जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का फैसला राम मंदिर के विपरीत आने पर भी कानून बनाकर अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण की बात की थी.

 

बीजपी नेताओं और संघ परिवार की तरफ से यूपी समेत देश भर में जो माहौल बनाया जा रहा था उसी का परिणाम था कि अचानक राष्ट्रीय स्तर पर यह मसला फिर से उछलने लगा. लेकिन, कोर्ट के फैसले ने उनकी रणनीति पर फिलहाल पानी फेर दिया है.

दूसरी तरफ, कांग्रेस भले ही राम मंदिर मुद्दे पर अदालत के फैसले को मानने की ही बात कर रही थी, लेकिन, वो नहीं चाहती थी कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला चुनावों से पहले हो. कांग्रेस को इस बात का एहसास है कि लोकसभा चुनाव से पहले अयोध्या मुद्दे पर अगर फैसला आ जाता तो फिर फैसला जो भी हो, उस पर नुकसान कांग्रेस को ही होता. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी दोनों ही सूरत में अयोध्या मसले को अपने हिसाब से भुनाने और ध्रुवीकरण की राजनीति करने में माहिर है, लिहाजा फायदा उसे ही मिलता.

मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में कपिल सिब्बल ने भी दलील देकर 2019 के लोकसभा चुनावों तक अयोध्या मामले को टालने की अपील की थी. उसके बाद से ही बीजेपी और संघ परिवार की तरफ से कांग्रेस पर हमला किया जा ता रहा है.

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कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व को काट पाएगी बीजेपी ?

दूसरी तरफ, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस वक्त चुनावों से पहले सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर हैं. कभी शिवभक्त तो कभी रामभक्त बनकर राहुल गांधी लगातार अपने-आप को ‘हिंदू’ के तौर पर पेश कर रहे हैं. अगर चुनाव से पहले राम मंदिर पर कोई फैसला आता है तो फिर कांग्रेस अध्यक्ष के हिंदुत्व कार्ड की हवा निकल जाएगी और बीजेपी पूरा फायदा ले लेगी. यही डर कांग्रेस को था, लेकिन, सूत्रों के मुताबिक, अब सुनवाई टलने से अंदर खाने कांग्रेस खेमे में खुशी ही है. सूत्रों की मानें तो सर्वोच्च नयायालय में एक कांग्रेसी डीएनए से सराबोर है जो कपिल सिबल के प्रत्येक आदेश का अक्षरश: पालन करेगा और उन्हे फायदा पंहुचाएगा,  भाजपा इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकती। राम मंदिर मुद्दे पर उनकी हवा निकाल गयी है।

हालांकि संघ परिवार की तरफ से अभी भी अध्यादेश या कानून के जरिए राम मंदिर मुद्दे पर आगे बढ़ने के लिए दबाव बनाया जाएगा. कुछ लोगों का तर्क यह भी है कि अध्यादेश या कानून पर समर्थन और विरोध की सूरत में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का भी हिंदुत्व कार्ड फ्लॉप हो जाएगा, लेकिन, सरकार इस संवेदनशील मसले पर अध्यादेश शायद ही लाए. ऐसे में संघ परिवार और साधु-संतों का आंदोलन चलता रहेगा जिसके जरिए 2019 तक इस मसले को जिंदा करने की कोशिश की जाती रहेगी.

राम जन्मभूमि पर अध्यादेश लाने पर ओवैसी सरकार को देख लेंगे


सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ओवैसी ने कहा कि बीजेपी कब तक अध्यादेश के नाम पर राम मंदिर मामले में डराती रहेगी

ओवैसीने कहा की सरकारी मर्ज़ी का अध्यादेश नहीं चलेगा देश संविधान से चलेगा 


अयोध्या राम मंदिर मामले पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई जनवरी तक टाल दी है. सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई जनवरी में शुरू किए जाने का फैसला दिया है. मामले की नियमित सुनवाई पर फैसला भी अब जनवरी में ही होगा. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद ही अब मामले में अलग-अलग नेताओं का प्रतिक्रिया सामने आ रही है.

 

ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने राम मंदिर मामले पर केंद्र सराकर को चुनौती दे डाली है. उन्होंने केंद्र सरकार से कहा कि आप सत्ता में है. अगर हो सके तो राम मंदिर पर अध्यादेस लाकर दिखाइए, उन्होंने कहा कि हर बार सरकार अध्यादेश लाने की धमकी देती है. उन्होंने कहा बीजेपी कब तक अध्यादेश के नाम पर राम मंदिर मामले में डराती रहेगी. ओवैसी ने कहा कि अगर पीएम का 56 इंच का सीना है तो अध्यादेश लाकर दिखाएं.

वहीं उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने फैसले के बाद कहा कि ये कोर्ट का फैसाल है इसलिए मैं इस पर कुछ नहीं कहना चाहता. हालांकि ये अच्छा संकेत नहीं हैं.

दूसरी तरफ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने कहा कि यह एक परिचित कहानी है. हर 5 साल में चुनाव से पहले, बीजेपी राम मंदिर का मुद्दा उठाती है. कांग्रेस पार्टी की स्थिति यह है कि मामला फिलहाल सुप्रीम कोर्ट के सामने है, सभी को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए

सीबीआई विवाद: अस्थाना को सर्वोच्च नयायालय द्वारा गुरुवार तक गिरफ्तारी से राहत


सीबीआई अपने स्पेशल डायरेक्टर के मामले में अब तक अपने जांच पर कायम है जिसमें अस्थाना को 1 नवंबर 2018 तक छुट्टी पर भेज दिया गया है


सीबीआई विवाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने आज एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा रिश्वत के मामले में घिरे सीबीआई के नंबर दो ऑफिसर राकेश अस्थाना को अगले गुरुवार तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीबीआई विवाद से जुड़े मामले में ये टिप्पणी की है. सीबीआई अपने स्पेशल डायरेक्टर के मामले में अब तक अपने जांच पर कायम है जिसमें अस्थाना को 1 नवंबर 2018 तक छुट्टी पर भेज दिया गया है. जस्टिस नजमी वजीरी की बेंच ने सीबीआई की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर क्यों अस्थाना और दूसरे अधिकारियों की एफआईआर पर रिपोर्ट क्यों नहीं जमा की. वहीं हाई कोर्ट ने सीबीआई को गुरुवार से पहले रिपोर्ट फाइल करने का निर्देश दिया है.

दिल्ली उच्च न्यायालय में मनोज प्रसाद के वकील ने कहा कि यह दो हाथी और एक चूहे के बीच की लड़ाई है. बता दें कि मनोज प्रसाद दुबई स्थित एक इंवेस्टमेंट बैंकर हैं जिन पर रिश्वत लेने का आरोप है. मनोज प्रसाद को राकेश अस्थाना केस में 17 अक्टूबर को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था.

सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में सीबीआई के वकील ने कहा कि उन्हें काउंटर रिप्लाई फाइल करने के लिए थोड़ा और समय चाहिए.

हमारे हरियाणा के किसानो का अपमान कर बदनाम ना करो केजरीवाल जी : विपुल गोयल

केजरीवाल के ट्वीट पर उद्योग मंत्री विपुल गोयल ने पलटवार करते हुए  कहा की केजरीवाल हरियाणा के किसानों का अपमान कर रहे हैं,  जब कुरुक्षेत्र और अंबाला की एयर क्वालिटी ठीक-ठाक है तो दिल्ली की एयर क्वालिटी के लिए हरियाणा जिम्मेदार कैसे हो सकता है ?

केजरीवाल ने ट्वीट कर दिल्ली में प्रदूषण के लिए बताया था हरियाणा, पंजाब और केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया था।

विपुल गोयल यहीं नहीं रुके उन्होने आगे कहा की केजरीवाल ने एसवाईएल मुद्दे पर भी काँग्रेस नीट पंजाब सरकार का समर्थन किया था, जो अपनी ही मिट्टी का न हुआ वह किसी और का क्या होगा?

उन्होने कहा की बे – वजह दोषारोपण करने के बजाए अपने काम पर ध्यान दें दिल्ली के मुख्यमंत्री।