कुशवाहा को बीजेपी की तरफ से 2 सीटों के ऑफर के बारे में साफ-साफ बता दिया गया है और उन्हें भी त्याग करने को कह दिया गया है
आरएलएसपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा सोमवार रात को ही पटना से दिल्ली आ गए थे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बुलावे पर दिल्ली पहुंचे उपेंद्र कुशवाहा की मुलाकात बीजेपी के महासचिव और बिहार के प्रभारी भूपेंद्र यादव से मंगलवार 30 अक्टूबर को हुई. बातचीत के पहले उपेंद्र कुशवाहा के कदम को लेकर कई कयास लगाए जा रहे थे.
लेकिन, मीडिया से बातचीत में उपेंद्र कुशवाहा ने सभी अटकलों पर विराम लगाते हुए बीजेपी अध्यक्ष के उस फॉर्मूले को लेकर अपनी सहमति जताई जिसमें वो सभी पार्टनर से जेडीयू की एंट्री के बाद ‘त्याग’ करने की बात कह चुके हैं. उपेंद्र कुशवाहा ने मीडिया के सामने जो बातें की उसमें तीन बातें ऐसी रही जिसको देखकर ऐसा लग रहा था कि कुशवाहा फिलहाल एनडीए में बने रहने के लिए कुर्बानी को तैयार हो गए हैं.
‘कुर्बानी’ को तैयार कुशवाहा !
सबसे पहले ‘त्याग’ के फॉर्मूले की बात करें तो कुशवाहा ने कहा, ‘हम उनकी (बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह) बात से सहमत हैं. हम ‘कुर्बानी’ को तैयार हैं. लेकिन, जब कई हिस्सेदार एक साथ हैं और उनमें नुकसान जब सभी शेयरधारी और पार्टनर करते हैं तो फिर लाभ वाले मामले में ऐसा क्यों नहीं हुआ ? कुशवाहा ने सवाल उठाया कि हम लाभ वाले मामले में क्यों वंचित हुए ?’ उपेंद्र कुशवाहा ने उस वक्त का जिक्र किया जब पिछले साल नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू की फिर से एनडीए में एंट्री हुई और उस वक्त जेडीयू-बीजेपी ने मिलकर फिर से सरकार बना ली.
उस वक्त बिहार में एलजेपी और आरएलएसपी दोनों के दो-दो विधायक थे. लेकिन, विधानसभा का उपचुनाव हार चुके एलजेपी से रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को एमएलसी भी बनाया गया और नीतीश सरकार में मंत्री पद भी मिला. उस वक्त कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी को नीतीश सरकार में जगह नहीं मिली. कुशवाहा ने बीजेपी की तरफ से नीतीश की एंट्री के बाद ‘त्याग’ के फॉर्मूले पर अपनी तरफ से बीजेपी के सामने यह तर्क रख दिया है.
हालांकि, उपेंद्र कुशवाहा ने फिलहाल बिहार सरकार में मंत्री पद के मुद्दे पर साफ-साफ कुछ नहीं कहा, लेकिन, हो सकता है कि अगर कुशवाहा बीजेपी की तरफ से दी गईं 2 लोकसभा सीटों के फॉर्मूले पर तैयार हो गए तो उनके एक एमएलए को बिहार सरकार में मंत्री बनाया जा सकता है. ऐसा करते वक्त नीतीश कुमार के साथ उनके रिश्ते और समीकरण पर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा.
कैसा होगा नीतीश-कुशवाहा का समीकरण ?
उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से दूसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना बड़ा भाई बताकर अपनी तरफ से नरमी के संकेत दिए हैं. उनके इस बयान का बड़ा सियासी मतलब निकाला जा रहा है. जब चार रोज पहले दिल्ली में नीतीश कुमार और अमित शाह ने संयुक्त रूप से मीडिया के सामने आकर बराबर- बराबर सीटों पर लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया था तो उस वक्त नीतीश कुमार की अहमियत का अंदाजा साफ दिख रहा था. बीजेपी किसी भी हालत में नीतीश कुमार को नाराज करने का जोखिम नहीं लेना चाहती थी.
दूसरी तरफ, एनडीए के भीतर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी के बीच तल्खी कई बार दिख चुकी है. आरएलएसपी के नेता और यहां तक कि उनके कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि ने तो नीतीश कुमार को उनकी जाति यानी कूर्मी जाति के डेढ़ फीसदी लोगों का नेता तक बता दिया था, जबकि उपेंद्र कुशवाहा और अपनी पार्टी को 10 फीसदी लोगों का नेता तक कह दिया था. इस तरह की तल्खी के बावजूद बीजेपी प्रभारी भूपेंद्र यादव के साथ मुलाकात के बाद अगर कुशवाहा ने नीतीश कुमार को बड़ा भाई बताया है तो यह भी उनके रुख में नरमी का संकेत दे रहा है.
मोदी को फिर से ‘प्रधानमंत्री’ बनाएंगे कुशवाहा
कुशवाहा की तीसरी महत्वपूर्ण बात यह रही कि उन्होंने फिर से नरेंद्र मोदी को अगले पांच साल के लिए प्रधानमंत्री पद पर बैठाने की बात दोहराई. हालाकि कुशवाहा यह बात पहले से भी बोलते आए हैं. लेकिन, इस वक्त सीट बंटवारे को लेकर नाराजगी की अटकलों के बीच उनकी तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करने वाले बयान से भी यह संकेत मिला कि कुशवाहा फिलहाल एनडीए के साथ ही रहने को तैयार हो गए हैं.
कैसा रहेगा सीटों का फॉर्मूला ?
सूत्रों के मुताबिक, सीट बंटवारे पर बीजेपी-जेडीयू के अलावा एलजेपी से भी समझौता हो गया है. समझौते के मुताबिक, बीजेपी और जेडीयू कुल 40 सीटों में से 17-17 सीटों पर लड़ेगी, जबकि, 4 सीटें एलजेपी के खाते में जाएगी, जबकि 2 सीटें उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी को दी जाएगी. सूत्रों के मुताबिक, चार सीटों के अलावा राज्यसभा के लिए भी बीजेपी अपने खाते से एक सीट एलजेपी को देगी. सूत्रों के मुताबिक, एलजेपी अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान इस बार लोकसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. उन्हें राज्यसभा भेजा जाएगा. हालाकि एलजेपी सूत्रों के मुताबिक, उन 4 सीटों के अलावा एक और लोकसभा की सीट झारखंड या यूपी में एलजेपी को मिल सकती है.
कुशवाहा के सामने पार्टी नेताओं को मनाने की चुनौती
इस तरह कुशवाहा को बीजेपी की तरफ से 2 सीटों के ऑफर के बारे में साफ-साफ बता दिया गया है और उन्हें भी त्याग करने को कह दिया गया है. लेकिन, कुशवाहा के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि महज 2 सीटों पर मानकर वे अपने पार्टी नेताओं को कैसे मना पाएंगे ? इस वक्त उपेंद्र कुशवाहा खुद बिहार की काराकाट से सांसद हैं. इसके अलावा उनके दूसरे सांसद रामकुमार शर्मा सीतामढ़ी से सांसद हैं. इन दो सीटों पर तो उनका ही दावा बनता है.
लेकिन, उनकी पार्टी में पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि भी कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर नंबर दो की हैसियत में हैं. नागमणि भी चुनाव लड़ना चाहते हैं. ऐसे में 2 सीटों के ऑफर को मानने पर पार्टी नेताओं में नाराजगी हो सकती है. दूसरी तरफ, पार्टी कार्यकर्ताओं को भी इस फॉर्मूले पर मनाने और बेहतर संदेश देने की चुनौती होगी. उपेंद्र कुशवाहा अब चार दिन बाद फिर दिल्ली में होंगे, जिसमें बीजेपी नेताओं के साथ सीटों के समझौते को लेकर अंतिम फैसला हो सकता है.
अभी खुला रखना चाहते हैं विकल्प
दरअसल, उपेंद्र कुशवाहा ने पिछले पांच सालों में केंद्र में मंत्री रहते अपनी पार्टी का संगठन पूरे बिहार में खड़ा कर लिया है. उनको भी लगता है कि अगर लोकसभा चुनाव में दो सीटों पर चुनाव लड़कर भी जीत मिल गई तो उस हालत में उन्हें फिर से सरकार बनने की सूरत में मंत्री पद मिल सकता है. इस तरह से उन्हें फिर से अपना संगठन और मजबूत करने और विधानसभा चुनाव में अपनी हैसियत बढ़ाने का मौका मिल सकता है.
जीतन राम मांझी ने उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर तंज
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष व बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने केंद्रीय मंत्री एवं रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर तंज कसा है. जीतन राम मांझी ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा एनडीए को ब्लैकमेल कर रहे हैं. यह बस उनका व्यक्तिगत स्वार्थ है. मांझी ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा को दो नाव की सवारी नहीं करनी चाहिए. दो नाव की सवारी करनेवाला सफल नहीं होता है.
दूसरी तरफ, अगर दोबारा एनडीए सत्ता में नहीं भी आई तो उस हालात में उनके पास फिर भी नए समीकरण का विकल्प रह सकता है. लालू परिवार से उनकी हो रही समय-समय पर बातचीत इस बात का संकेत है, क्योंकि राजनीति में कुछ भी संभव है.