Administrator U.T. laid wreath at National Police Memorial, Chankyapuri, New Delhi

 

Hon’ble Governor Punjab & Administrator U.T. Chandigarh, Shri V.P. Singh Badnore, laid wreath at National Police Memorial, Chankyapuri, New Delhi on 09.11.2018. Shri Sanjay Baniwal, IPS, Director General of Police, Chandigarh also paid tribute to the Martyrs of Chandigarh Police and Martyrs of Hot Spring at Wall of Valour at National Police Memorial. Parade Contingents of Chandigarh Police headed by Shri Amrao Singh, CPS, Deputy Superintendent of Police offered rest on your arms reversed and buglers played ‘Last Post’ & ‘Rose Reveille’ and band played “Abide with me”.

प्रधानमंत्री मोदी के लिए बिगड़े कांग्रेस के बोल

 

Congress leader and former Karnataka Minister TB Jayachandra says ‘Prime Minister Modi had said (during demonetization) that give me 15 days or you can burn me alive. Now the time has come to do exactly that. If he has any self respect then he should quit and go.’

संजय निरूपम ने नोटेबन्दी पर प्रधानमंत्री मोदी के लिए कहा,”क्या मोदी की पदाइश के लिए भी कॉंग्रेस जिम्मेदार है?”

अर्बन नक्सल ने आदिवासियों को तबाह किया- पीएम मोदी


पीएम मोदी ने अर्बन नक्सलियों के खिलाफ हमला बोला और कहा कि शहरी नक्सलवाद ने आदिवासियों को शिकार बनाया है.


जगदलपुर के लाल बाग में गुरुवार को पीएम मोदी ने चुनावी रैली में कांग्रेस पर जमकर निशाना साधा. बस्तर की 12 सीटों पर 12 नवंबर को मतदान होना है. पहले चरण में 18 सीटों पर मतदान होने जा रहा है.

पीएम मोदी ने कहा ‘इस बार विकास की नई योजना लेकर आया हूं. पहले मेरा परिवार और मेरा रिश्तेदार होता था. बस्तर से भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी को मिटाना है.’

उन्होंने कहा कि बस्तर को समृद्ध और मजबूत बनाना है. पीएम मोदी ने कहा कि हमने बिचौलियों को खत्म किया है.

जगदलपुर के लालबाग में पीएम मोदी ने चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कहा कि केंद्र सरकार ने बस्तर के विकास के लिए बहुत प्रयास किए हैं. उन्होंने कहा कि हर बार बस्तर के विकास की नई योजना लेकर आए हैं. नक्सली मुद्दे पर उन्होंने कहा कि अर्बन नक्सल बस्तर के आदिवासियों को शिकार बना रहे हैं और अर्बन नक्सलियों ने आदिवासियों की जिंदगी तबाह कर दी है.

पीएम मोदी ने अर्बन नक्सलियों के खिलाफ हमला बोला और कहा कि शहरी नक्सलवाद ने आदिवासियों को शिकार बनाया है.

उन्होंने कहा ‘अब अर्बन नक्सली शहरों में रहते हैं और छत्तीसगढ़ के नक्सलियों के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करते हैं. काम करने वाली सरकार चाहिए या काम रोकने वाली सरकार चाहिए? क्या आप आजादी के बाद भी सालों विकास के लिए इंतजार करेंगे?’

प्रधानमंत्री ने कहा ‘माओवादियों को क्रांतिकारी कहने वाली कांग्रेस को जनता माफ नहीं करेगी. दिल्ली में ऐसी सरकार बैठी है, जो छत्तीसगढ़ सरकार के साथ कंधा से कंधा मिलाकर काम कर रही है. चार सालों में छत्तीसगढ़ 9 हजार से अधिक गांवों को सड़क से जोड़ा गया.’

पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस ने इतने साल सत्ता में रही, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में पहली बार आदिवासी विकास के लिए अलग से मंत्रालय बनाया. कांग्रेस सरकार आदिवासियों का मजाक बनाया

India to send two former diplomats to talks that include Taliban representatives

Amar Sinha, India’s former Ambassador to Afghanistan

Amar Sinha, India’s former envoy to Kabul, and T.C.A. Raghavan, former Indian High Commissioner to Pakistan, will represent New Delhi at the Moscow talks.

In a significant departure from India’s stand on engaging the Taliban, the government announced it would participate at a “non-official” level, sending two former senior diplomats to attend talks on the Afghanistan peace process to be held in Russia on Thursday.

The talks, known as the “Moscow format” will include a “high-level” delegation from the Taliban as well as a delegation of Afghanistan’s “High Peace Council”, along with twelve countries, and will mark the first time an Indian delegation has been present at the table in talks with the Taliban representatives based in Doha. On Thursday, the United States said it would send representatives from its embassy in Moscow to the talks; Pakistan is also expected to send a representative.

“India supports all efforts at peace and reconciliation in Afghanistan that will preserve unity and plurality, and bring security, stability and prosperity to the country. India’s consistent policy has been that such efforts should be Afghan-led, Afghan-owned, and Afghan-controlled and with participation of the Government of Afghanistan,” said MEA spokesperson Raveesh Kumar, adding that “our participation at the meeting will be at the non-official level.”

Sources told Demokraticfront.com that India will send two retired diplomats, Amar Sinha and TCA Raghavan as its representatives. While Mr. Sinha was ambassador to Kabul (2013-2016), Mr. Raghavan has held senior posts in the Ministry of External Affairs dealing with Afghanistan and Pakistan and was High Commissioner to Islamabad (2013-2015) and is currently the Director General of the government-run Indian Council of World Affairs (ICWA) think-tank based in Delhi.

Mr. Raghavan was High Commissioner to Islamabad (2013-2015) and is currently the Director General of the government-run Indian Council of World Affairs (ICWA) think-tank based in Delhi.

The Russian government welcomed India’s decision to participate in the talks on November 9. “We highly regard Indian support in the peace process in Afghanistan and welcome Indian readiness and that of other partner countries in the Moscow format,” the Russian Embassy said in a statement on Thursday.

When asked why India’s stand had undergone a significant shift vis-à-vis the Taliban, government officials said that the decision was the outcome of “close discussions with the Afghanistan government,” and it was felt necessary for India to have a “presence” there.

Analysts see the Modi government’s decision as a significant marker in the Afghan dialogue process, given that India has in the past declined to participate in the Moscow format with the Taliban unless the Afghan government participated. A Russian proposal to hold the talks on September 4 had to be cancelled after the US pulled out of them, and the Ghani government opposed them.

“India would have preferred a direct process between the Ghani government and the Taliban, but since that is not possible, a regional process like this one is the next best option. It is to Russia’s credit that they have been able to bring everyone to the table for this round of talks,” former Ambassador to Afghanistan Rakesh Sood toldthe media persons.

The Ghani government said this week it is allowing the delegation of the High Peace Council (HPC) that is designated to further the reconciliation process with the Taliban on the understanding the Moscow format will lead to direct talks with the Taliban.

“Our agreement with the Russians is that this meeting should lead to direct talks between us (Afghan government) and the Taliban, if it does not happen like this, then this will reflect the intention of the Taliban and this means they (Taliban) are not prepared for peace,” MoFA spokesperson Sibghat Ahmadi was quoted in local reports.

Apart from the Taliban political leadership based in Doha, and the HPC from Kabul, the Russian government has invited delegations from India, Pakistan, the U.S., China, Iran and five Central Asian Republics.

व्यापम पर राहुल हुए बे – नकाब आनंद को किया इस्तेमाल


मध्य प्रदेश में आरटीआई एक्टिविस्ट और व्यापमं के व्हिसिल ब्लोअर डॉ आनंद राय ने कांग्रेस की तरफ से टिकट नहीं मिलने पर नाराजगी जाहिर की है


मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में टिकटों को लेकर राजनीति सरगर्म है. टिकट नहीं पाने वाले नेता खुलकर बोल रहे हैं. मध्य प्रदेश में आरटीआई एक्टिविस्ट और व्यापमं के व्हिसिल ब्लोअर डॉ आनंद राय ने कांग्रेस की तरफ से टिकट नहीं मिलने पर नाराजगी जाहिर की है. आनंद ने कहा है कि राहुल गांधी ने उन्हें टिकट देने का भरोसा दिया था, इसके बावजूद उन्हें टिकट नहीं मिला. आनंद राय ने बताया कि सिर्फ उनकी वजह से कांग्रेस नेता संजीव सक्सेना को टिकट नहीं मिला है. संजीव सक्सेना व्यापमं में आरोपी हैं.

कांग्रेस ने व्यापमं के व्हिसल ब्लोअर आनंद राय और इसके आरोपी संजीव सक्सेना दोनों को ही टिकट नहीं दिया है. हालांकि इसके पहले ऐसी चर्चा थी कि डॉ आनंद राय कांग्रेस के टिकट पर इंदौर से चुनाव लड़ सकते हैं.

डॉ आनंद राय आरटीआई एक्टिविस्ट हैं. इन्होंने ही व्यापमं घोटाले का पर्दाफाश किया था. उन्होंने अपनी सरकारी नौकरी छोड़ कर चुनाव लड़ने का मन बनाया था. पिछले 6 नवंबर को डॉ आनंद राय ने इस्तीफा दे दिया था. ऐसी चर्चा थी कि कांग्रेस के इशारे पर उन्होंने अपना इस्तीफा दिया है. लेकिन कांग्रेस ने बाद में उन्हीं का पत्ता साफ कर दिया.

उधर व्यापमं के आरोप संजीव सक्सेना को भी टिकट नहीं मिला है. टिकट नहीं मिलने पर उन्होंने कहा कि ‘मैंने कांग्रेस की मजबूती के लिए काम किया है. थोड़ी देर के लिए मुझे लगा कि मेरे साथ धोखेबाजी की गई है. लेकिन अब मैं सब भूलकर बड़े मुद्दों पर ध्यान दूंगा.’

संजीव सक्सेना ने कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह से मुलाकात करने के बाद निर्दलीय के तौर पर चुनाव लड़ने का मन बनाया है.

भाजपा के मनोज तिवारी से घबराई आआपा


जिस तरह से दिल्ली की पूर्व की शीला सरकार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने हल्ला-बोल छेड़ते हुए सुर्खियों से सत्ता तक जगह बनाई अब उसी तर्ज और तरीकों को हथियार बना कर बीजेपी भी अरविंद केजरीवाल सरकार पर हमला बोल रही है.


दिल्ली में सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन समारोह में आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतउल्लाह खान जिस तरह से दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष मनोज तिवारी को स्टेज से धक्का देते  हैं उसे पूरी दिल्ली देखती है. सार्वजनिक रूप से आप के विधायक का आचरण उस धुंधलाई तस्वीर की भी याद ताजा कर देता है कि सीएम निवास में रात के पहर में मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ क्या हुआ होगा? मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ मारपीट प्रकरण में भी अमानतउल्लाह खान मुख्य भूमिका में थे तो इस बार भी लीड रोल उन्हें ही मिला.

अब अमानतउल्लाह खान ये सफाई दे रहे हैं कि अगर वो मनोज तिवारी को नहीं रोकते तो वो केजरीवाल पर हमला कर सकते थे. आखिर केजरीवाल स्टेज पर ऐसा क्या बोलने वाले थे जिस पर उन्हें मनोज तिवारी के हमले का डर था? बड़ा सवाल ये उठता है कि अबतक किसी से न डरने वाले सीएम केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को अचानक बीजेपी से डर क्यों लगने लगा?

सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन में मनोज तिवारी की एन्ट्री को लेकर आम आदमी पार्टी इतनी असहज क्यों हो गई कि उसने स्टेज से उतारने के लिए धक्का तक दे दिया?

मनोज तिवारी उत्तर-पूर्वी दिल्ली से सांसद हैं. उन्होंने सिग्नेचर ब्रिज के निर्माण में हो रही देरी के लिए छह महीने पहले राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा था. वहीं उत्तर-पूर्वी दिल्ली में विकास न होने की वजह से अनशन तक किया था. जाहिर तौर पर इलाके का सांसद होने की वजह से उनके पास निमंत्रण पाने का औपचारिक अधिकार था. खुद सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी कहा कि डिप्टी सीएम मनीश सिसोदिया ने मनोज तिवारी को समारोह में शामिल होने के लिए न्योता दिया था. लेकिन क्या इस बात की भी सार्वजनिक जानकारी मनोज तिवारी को दी गई थी कि उन्हें स्टेज पर धक्का भी दिया जाएगा ?

दरअसल, बीजेपी ने जब से आम आदमी पार्टी को केजरीवाल की पॉलिटिक्स की स्टाइल से काउन्टर करना शुरू किया है तब से ही आप की बेचैनी बढ़ती दिख रही है. जिस तरह से दिल्ली में पूर्व की शीला दीक्षित सरकार के खिलाफ अरविंद केजरीवाल ने हल्ला-बोल छेड़ते हुए सुर्खियों से सत्ता तक जगह बनाई अब उसी तर्ज और तरीकों को हथियार बना कर बीजेपी भी अरविंद केजरीवाल सरकार पर हमला बोल रही है. अब बीजेपी भी दिल्ली सरकार के खिलाफ आमरण अनशन,धरना और  विरोध प्रदर्शन के जरिए ‘आआपा ‘ का चैन छीन रही है.

आज से पांच महीने पहले दिल्ली के उपराज्यपाल के दफ्तर में सीएम अरविंद केजरीवाल अपने तीन मंत्रियों के साथ धरने पर बैठ गए थे. 9 दिनों तक दिल्ली सरकार ने कोई कामकाज नहीं किया क्योंकि खुद मुख्यमंत्री ही धरने पर बैठे थे. केजरीवाल इससे पहले भी बतौर मुख्यमंत्री धरने पर बैठ चुके हैं और जब वो सीएम नहीं बने थे तब भी वो ‘मफलर मैन’ के साथ ‘धरना मैन’ बन चुके थे. उनके आक्रमक और अप्रत्याशित रवैये की ही वजह से उन पर अराजकता फैलाने तक का आरोप लगा.

लेकिन अपने सियासी कद को बढ़ाने के लिए केजरीवाल हर  रिस्क उठाने लगे थे और यही उनकी और पार्टी का स्टाइल भी बन गया. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में तत्कालीन पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ ताल ठोंकते हुए वो गुजरात के विकास की ग्राउन्ड-रिपोर्ट बताने अहमदाबाद भी चले गए. वहां जब विरोध का सामना करना पड़ा तो आआपा ने दिल्ली में बीजेपी के दफ्तर का घेराव किया और पत्थरबाजी की. आआपा के अतीत से ही सबक सीखते हुए बीजेपी भी अब उसी स्टाइल में आक्रमक हो चुकी है.यही वजह रही कि सिग्नेचर ब्रिज विवाद के जरिए बीजेपी ने आम आदमी पार्टी को उसी के अंदाज में जवाब देने की कोशिश की.

सीलिंग के मुद्दे पर भी बीजेपी दिल्ली सरकार को निशाना बनाने में नहीं चूकी है. एक वक्त खुद केजरीवाल सीलिंग के मुद्दे पर शीला दीक्षित सरकार पर निशाना साधते थे. उसी अंदाज में मनोज तिवारी ने सीलिंग के खिलाफ अपने अभियान में दिल्ली सरकार पर हमले किये. यहां तक कि जब अरविंद केजरीवाल ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को खुली बहस की चुनौती दी तो मनोज तिवारी ने अरविंद केजरीवाल को ही खुली बहस की चुनौती देकर समय और स्थान निश्चित करने को कहा. जाहिर तौर पर केजरीवाल अगर बहस करना भी चाहेंगे तो वो बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व पर ही निशाना लगाएंगे. लेकिन बीजेपी ने केजरीवाल की स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स सीखते हुए केजरीवाल को मनोज तिवारी तक सीमित कर दिया है. अब केजरीवाल के किसी भी आरोप या हमले का जवाब देने के लिए बीजेपी के पास मनोज तिवारी हैं.

बीजेपी ने जहां एक तरफ आप को उलझाए रखने के लिए लगातार धरना-प्रदर्शनों का इस्तेमाल किया तो वहीं दूसरी तरफ केजरीवाल से जुबानी जंग के लिए मनोज तिवारी को सेनापति बना कर केजरीवाल के सियासी कद को सीमित कर दिया. हालांकि हाथ आए किसी भी मौके पर केजरीवाल चूकते भी नहीं हैं. दिल्ली में रन फॉर यूनिटी के दौरान बीजेपी के पूर्वांचली नेता पर हुए हमले पर वो बीजेपी के खिलाफ ट्वीट करते हैं तो दिल्ली में किसान यात्रा को रोके जाने का विरोध भी करते हैं. वहीं दिल्ली के प्रदूषण को लेकर भी केंद्र सरकार पर हमला करते हैं. वो ये जरूर जानते हैं कि केंद्र सरकार से जुड़े किसी भी मामले में कूद कर सुर्खियां बटोरी जा सकती हैं.

बहरहाल, जिस तरह से केजरीवाल ने एलजी के दफ्तर को धरना-प्रदर्शन के लिए चुना उसी तरह बीजेपी ने भी सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के मौके पर अपनी उपस्थिति दर्ज तो करा दी. जिस पर अब आआपा ही मनोज तिवारी पर अराजकता फैलाने का आरोप लगा रही है. सवाल उठता है कि अगर क्षेत्र के सांसद का अपने इलाके में होने वाले विकास के उद्घाटन समारोह में जाना अगर अराजकता है तो एलजी दफ्तर में कई दिनों तक धरने पर बैठना क्या है?

रमन सिंह के गढ़ में कांग्रेस मांग रही अटल के नाम पर वोट


सत्तारुढ़ दल बीजेपी के नेता कहते हैं कि बीजेपी और वाजपेयी एक दूसरे के पर्याय हैं. वहीं कांग्रेस का कहना है कि राज्य सरकार पूर्व प्रधानमंत्री की सीखों से मीलों दूर है


अक्सर यह कहा जाता है कि नाम में क्या रखा है? हां, नाम में ही काफी कुछ होता है, खासकर छत्तीसगढ़ के इस निर्वाचन क्षेत्र में जब भरोसा करने लायक नाम अटल बिहारी वाजपेयी का हो, जहां बीजेपी के उम्मीदवार मुख्यमंत्री रमन सिंह का कांग्रेस की प्रत्याशी पूर्व प्रधानमंत्री की भतीजी करुणा शुक्ला से चुनावी मुकाबला है.

दोनों ही दल वाजपेयी के नाम पर वोट बटोरने की यथासंभव कोशिश में लगे हैं. सत्तारुढ़ दल बीजेपी के नेता कहते हैं कि बीजेपी और वाजपेयी एक दूसरे के पर्याय हैं. उधर, शुक्ला का आरोप है कि मुख्यमंत्री बीजेपी के इन कद्दावर नेता की विचाराधारा का पालन करने का दावा कर अपना दोहरा मापदंड दिखा रहे हैं क्योंकि राज्य सरकार पूर्व प्रधानमंत्री की सीखों से मीलों दूर है.

चुनाव प्रचार में जुटीं शुक्ला ने पीटीआई भाषा से कहा, ‘बीजेपी ने अपना ‘चाल, चरित्र और चेहरा’ बदल लिया है. अब वह वैसी पार्टी नहीं है जिसकी संकल्पना अटल जी और आडवाणी जी ने की थी और राज्य के लोग यह जानते हैं.’

2013 में बीजेपी छोड़ने से पहले पार्टी की केंद्रीय पदाधिकारी रह चुकीं शुक्ला ने कहा, ‘इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि मैं अटल जी की भतीजी हूं. उनकी सीख और साहस मेरे खून में हैं. मैं उनके सिद्धांतों से निर्दिष्ट होती हूं. राजनांदगांव के लोग जानते हैं कि यदि कांग्रेस चुनाव जीत गई तो मैं भ्रष्टाचार में डूबे इस राज्य में सुशासन का आदर्श कायम करुंगी.’

अटलजी की सीखों से मीलों दूर है रमन सिंह की सरकार

तीस साल तक जुड़े रहने के बाद बीजेपी से निकलकर शुक्ला फरवरी, 2014 में कांग्रेस में शामिल हो गई थीं. उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा लेकिन वह हार गईं. बीजेपी नेता के तौर पर उन्होंने 2004 में जांजगीर से लोकसभा चुनाव जीता लेकिन 2009 में वह कोरबा से हार गईं.

कांग्रेस ने अब उन्हें मुख्यमंत्री के गढ़ समझे जाने वाले क्षेत्र राजनांदगांव से चुनाव मैदान में उतारा है. शुक्ला ने कहा, ‘रमन सिंह मुझे अपनी बहन कहते हैं. वह दावा करते हें कि वह अटल बिहारी वाजपेयी की विचारधारा पर चलते हैं. जहां तक मैं जानती हूं कि यह सरकार अटलजी की सीखों से मीलों दूर है. यह उनका (मुख्यमंत्री का) दोहरा मापदंड है.’

बीजेपी ने सिंह के निर्वाचन क्षेत्र में चुनाव को स्थानीय बनाम बाहरी के मुकाबले के रुप में पेश किया है. प्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता संजय श्रीवास्तव ने कहा कि शुक्ला बाहरी हैं और मतदाता यह बात जानते हैं.

एक अन्य वरिष्ठ बीजेपी नेता ने कहा कि बीजेपी सुशासन और विकास के नाम पर वोट मांग रही है. अटलजी समेत पार्टी के सभी नेता और उनकी विरासत निश्चित ही पार्टी के अभियान का हिस्सा है.

भाजपा से रूठे सरताज, होशंगाबाद से अब कांग्रेसी उम्मीदवार


इधर कांग्रेस ने उम्मीदवारों की पांचवी लिस्ट जारी कर के सरताज सिंह को होशंगाबाद सीट से टिकट देने वाली बात की आधिकारिक पुष्टि कर दी है


चार राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच जैसे-जैसे पार्टियां उम्मीदवारों की लिस्ट जारी कर रही हैं, वैसे ही सरगर्मियां बढ़ रही हैं. अपनी पार्टी से टिकट ना मिलने पर कुछ नेता पार्टी भी बदल रहे हं. ऐसे ही दल बदलने वालों में मध्यप्रदेश बीजेपी के वरिष्ठ नेता सरताज सिंह का नाम भी शामिल हो गया है.

मध्यप्रदेश चुनाव के लिए बीजेपी की तीसरी सूची जारी होने के बाद बीजेपी के असंतुष्ट और दरकिनार कर दिए गए वरिष्ठ नेता सरताज सिंह कांग्रेस में शामिल हो गए हैं. कांग्रेस के स्टेट मीडिया पैनलिस्ट राजेन्द्र ठाकुर ने होशंगाबाद आरओ कार्यालय से सरताज के लिए कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर नामांकन पत्र लिया है. उन्हें होशंगाबाद विधानसभा क्षेत्र से बतौर कांग्रेस उम्मीदवार टिकट दिया जा रहा है. इधर कांग्रेस ने उम्मीदवारों की पांचवी लिस्ट जारी कर के सरताज सिंह को होशंगाबाद सीट से टिकट देने वाली बात की आधिकारिक पुष्टि कर दी है.

सरताज के कांग्रेस में शामिल होने के बाद बीजेपी संगठन मंत्री उन्हें मनाने उनके घर पहुंचे थे लेकिन उन्हें बैरंग लौटना पड़ा. कहा जा रहा था कि बीजेपी की तीसरी सूची में अपना नाम न देखकर सरताज फूंट-फूंटकर रोने लगे थे. उन्होंने कहा, ‘मैं घर में बैठकर घुट घुट कर रोने वालों में से नहीं हूं. उन्होंने कहा कि मैं लड़ूंगा तो मैदान में और मरुंगा तो मैदान ए जंग में.’

सरताज ने इससे पहले न्यूज 18 से बातचीत में कहा था कि कांग्रेस ने इटारसी और होशंगाबाद से टिकट का ऑफर दिया है. सरताज सिंह ने साफ कहा वो चुनाव तो लड़ेंगे लेकिन सिवनी मालवा से अब खड़े नहीं होंगे. आख़िरी फैसला कार्यकर्ताओं से चर्चा के बाद ही किया जाएगा. बीजेपी के इस वरिष्ठ नेता ने पार्टी के रुख़ पर निराशा जतायी और याद दिलाया कि हमने मुश्किल सीट पर पार्टी को जीत दिलाई थी.

वहीं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी के बेटे नितिन समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं. वो राजनगर सीट से समाजवादी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ेंगे.

अलगाववादियों ने जन॰ रावत को धमकाया


सिख फॉर जस्टिस ने जनरल रावत को कहा है कि अगर रेफरेंडम 20-20 को दबाने की कोशिश की गई, तो ‘सिख फॉर जस्टिस’ बिपिन रावत के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट में लीगल रास्ता भी ले सकता है

जन॰ रावत ने हाल ही में अपने ब्यान में कहा था कि पंजाब में उग्रवाद को पुनर्जीवित करने के लिए ‘बाहरी संबंधों’ के माध्यम से प्रयास किए जा रहे हैं. अगर जल्द ही कार्रवाई नहीं की गई तो बहुत देर हो जाएगी


खालिस्तान समर्थक रेडिकल ग्रुप सिख फॉर जस्टिस ने आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत के पंजाब में माहौल बिगाड़ने वाले बयान पर बड़ी धमकी दी है. खालिस्तान समर्थक रेडिकल ग्रुप ‘सिख फॉर जस्टिस’ ने जनरल रावत को रेफरेंडम 20-20 से दूर रहने की नसीहत देते हुए कहा है कि अगर रेफरेंडम 20-20 को दबाने की कोशिश की गई, तो ‘सिख फॉर जस्टिस’ बिपिन रावत के खिलाफ इंटरनेशनल कोर्ट में लीगल रास्ता भी ले सकता है.

सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने हाल ही में बयान दिया था कि पंजाब में उग्रवाद को पुनर्जीवित करने के लिए ‘बाहरी संबंधों’ के माध्यम से प्रयास किए जा रहे हैं. अगर जल्द ही कार्रवाई नहीं की गई तो बहुत देर हो जाएगी. वह भारत में आंतरिक सुरक्षा की बदलती रूपरेखा: रुझान और प्रतिक्रियाएं विषय पर आयोजित एक सेमिनार में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों, रक्षा विशेषज्ञों, सरकार के पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों और पुलिस को संबोधित कर रहे थे.

इस कार्यक्रम में जनरल रावत ने कहा कि असम में विद्रोह को पुनर्जीवित करने के लिए बाहरी संबंधों और बाहरी उकसावे के माध्यम से फिर से प्रयास किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा,पंजाब शांतिपूर्ण रहा है लेकिन इन बाहरी संबंधों के कारण राज्य में उग्रवाद को फिर से पैदा करने के प्रयास किए जा रहे हैं. हमें बहुत सावधान रहना होगा.

Ahmedabad risks UNESCO status tag


Official says renaming city to Karnavati would be illogical


Though Gujarat’s deputy chief minister has announced the government’s readiness to rename Ahmedabad city as ‘Karnavati’, the UNESCO World Heritage City tag it has won last year may not make that possible.

In tune with the rightwing sentiments here, soon after Uttar Pradesh chief minister renamed Faizabad district as Ayodhya, Gujarat’s deputy chief minister Nitin Patel said that the Gujarat government is keen to rename Ahmedabad as ‘Karnavati’.

A few days ago, the Yogi government changed the name of Allahabad to Prayagraj. Renaming of Ahmedabad as ‘Karnavati’ had been a long pending demand of the Sangh Parivar constituents here due to the presence of an ancient Karnmukteshwar temple in the old city.

Despite the BJP-controlled Ahmedabad Municipal Corporation (AMC) as well as the Gujarat Assembly passing resolutions towards that effect during the tenure of Atat Behari Vajpayee at the Centre, the city could not be renamed as ‘Karnavati’ as the then NDA partners like AIADMK and Trinamul Congress did not agree to the idea.

Though the BJP is once again in power at all three levels like the local civic body, the Assembly and the Centre, the latest hurdle to the city’s renaming attempt is its UNESCO World Heritage City tag earned last year after at least a decade’s efforts.

Ahmedabad has earned the World Heritage City status on the basis of structures and architecture built during the period when it carried the present name, said Debashish Nayak who had led the committee which prepared the framework and documents to stake the claim for the global honour.

It is logical to retain the name for which the heritage tag has been earned, Mr Nayak told The Statesman on Wednesday.

He explained that the ancient names like Ashawal and Karnavati being quoted in favour of the renaming bid were only some ‘outposts’ of the city which later became Ahmedabad where the structures were built that brought the World Heritage city tag.

There is no rule to ban renaming of the city, but the logic behind the Heritage tag should continue, reasoned Mr Nayak.

Probably realising the difficulties in renaming the city after it earned the World Heritage City tag, chief minister Vijay Rupani had himself announced in the state Assembly earlier this year that the Gujarat government has not sent any such proposal to the Centre in the last two years.

Slamming the BJP government over the issue, state unit Congress spokesperson Manish Doshi, however, said that the promise to rename Ahmedabad was just another “poll gimmick” by the ruling party. “For the BJP, issues like construction of a Ram temple in Ayodhya and renaming Ahmedabad to Karnavati are simply ways to get votes of Hindus,” said Doshi.

“BJP leaders dump such issues after coming to power. They only cheated Hindus all these years,” he added.