मोदी ने किया केएमपी एक्सप्रेसवे का उद्घाटन


केएमपी एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के साथ ही दिल्ली की चौथी रिंग रोड यात्रियों के लिए उपलब्ध हो गई है


15 साल के लंबे इंतजार के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज यानी सोमवार को  कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया. वैसे इस परियोजना को 2009 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया था लेकिन तब से कई बार इसकी डेड लाइन को आगे बढ़ाया गया, जिसके बाद इसको पूरा होने में 15 साल का समय लग गया. हालांकि उम्मीद जताई जा रही है कि एक्सप्रेस वे के एक बार खुलने के बाद दिल्ली में प्रवेश करने वाले ट्रकों की संख्या में कमी आएगी जिससे शहर के प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी. इस एक्सप्रेसवे से और क्या-क्या फायदे होंगे आइए जानते हैं

क्या होंगे फायदे?

1. यह नेशनल हाईवे-1 (कुंडली के नजदीक) को नेशनल हाईवे-10 (बहादुरगढ़ के नजदीक रोहतक रोड), नेशनल हाईवे-8 (मानेसर में जयपुर एक्सप्रेसवे पर) और नेशनल हाईवे-2 (पलवल के नजदीक दिल्ली-आगरा हाईवे) से जोड़ेगा. इस एक्सप्रेसवे में आठ छोटे और छह बड़े पुल, चार रेलवे ओवरब्रिज और 34 अंडरपास हैं. एक्सप्रेस वे की कुल लंबाई 135 किलोमीटर है.

2. केएमपी एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के साथ ही दिल्ली की चौथी रिंग रोड यात्रियों के लिए उपलब्ध हो गई है. ईस्टर्न पेरिफेरल और वेस्टर्न पेरिफेरल को साथ जोड़ने पर यह पूरा रूट करीब 270 किलोमीटर का होता है.

3. वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के खुलने के बाद प्रदूषण में करीब 30 फीसदी की कमी आ सकती है. न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक ये एख्सप्रेसवे 5000 से ज्यादा भारी गाड़ियों को दिल्ली से दूर रखेगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस एक्सप्रेसवे की वजह से यात्रा भी कम समय में पूरी हो सकेगी क्योंकि दिल्ली से बाहर जाने वाले ट्रकों को शहर में आने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

4. उत्तर भारत से पश्चिम और दक्षिण हिस्सों की तरफ जाने वाली गाड़ियों को भी अब दिल्ली में प्रवेश की जरूरत नहीं पड़ेगी.

5. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और जम्मू कश्मीर की ओर जाने वाले यात्रियों को यह एक्सप्रेसवे सिग्नल फ्री कनेक्टिविटी का सुविधा देता है.

6. यह एक्सप्रेसवे 6 लेन वाला होगी जिसमें बड़ी संख्या में पार्किंग, रिफीलिंग स्टेशन, पुलिस स्टेशन, एक ट्रॉमा सेंटर, हेलीपैड, रिफ्रेशमेंट सेंटर्स और मनोरंजन की सुविधा उपलब्ध होगी. इसके अलावा यात्रियों की सुरक्षा के लिए पूरे एक्सप्रेस-वे पर बाड़ लगाई गई है.

7. एक्सप्रेसवे के सड़क किनारे पर ‘सुपर प्लांट’ स्थापित किया जा रहा है.

सीएम कुमारस्वामी ने महिला किसान से पूछा- पिछले 4 सालों से कहां सो रही थीं?


सैकड़ों किसान उत्तर कर्नाटक में गन्ना खरीद के लिए न्यूनतम मूल्य के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे हैं


कर्नाटक के सीएम एचडी कुमारस्वामी के द्वारा एक महिला किसान पर की गई टिप्पणी से हड़कंप मच गया. दरअसल एनडीटीवी के मुताबिक सैकड़ों किसान उत्तर कर्नाटक में गन्ना खरीद के लिए न्यूनतम मूल्य के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच एक महिला किसान ने सीएम का विरोध किया.

जिसके बाद कुमारस्वामी ने कन्नड में जवाब देते हुए कहा, ‘थाई(मां), तुम पिछले चार सालों से कहां सो रही थीं?. सीएम ने यह भी कहा कि प्रदर्शन करने वाले किसान नहीं हैं बल्कि यह भड़काए हुए कुछ समूह हैं.

इस बयान के बाद बीजेपी ने कुमारस्वामी को अवसरवादी कहा है और माफी मांगने की मांग की है. एनडीटीवी के मुताबिक, ‘कर्नाटक बीजेपी प्रमुख और पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा ने कहा, ‘कल सीएम कुमारस्वामी ने महिला के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया वह आज तक किसी सीएम ने नहीं किया. यह मूर्खतापूर्ण है. मैं सीएम से इस मुद्दे पर माफी मांगने की मांग करता हूं.’

हालांकि बाद में कुमारस्वामी ने सफाई देते हुए कहा, ‘मेरे कहने का मतलब यह था कि आप अब क्यों जाग रहे हो, अब तक कहां सो रहे थे?. मैंने महिला का अपमान नहीं किया और जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, वह किसान नहीं हैं बल्कि सुनियोजित प्रदर्शनकारी हैं.’

गौरतलब है कि किसानों ने रविवार को बेलागावी में सुवर्णा विधाना सोउधा पर हमला किया था. पुलिस ने बताया था कि गन्नों के चार ट्रकों के साथ 10 किसान जबरदस्ती यहां घुस आए थे.. कुमारस्वामी के किसानों से बात करने से मना करने की वजह से यह किसान नाराज थे.

 

ममता के कारण रद्द हुई भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की बैठक


सूत्रों के मुताबिक, ये मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वजह से कैंसिल हुई


लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए 22 नवंबर को प्रस्तावित मीटिंग कैंसिल कर दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, ये मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वजह से कैंसिल हुई.

दरअसल, आंध्र प्रदेश के सीएम और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी विरोधी दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें ममता बनर्जी का साथ काफी अहम बताया जा रहा है. लेकिन, अभी तक ममता ने इस मीटिंग के लिए सहमति नहीं जताई है. सूत्रों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू पहले ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगे. इसके बाद मीटिंग की अगली तारीख तय होगी.

कौन-कौन सी पार्टियां हो सकती हैं शामिल?

सूत्रों के अनुसार, बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, टीडीपी, आम आदमी पार्टी, जेडीएस, एनसीपी और टीएमसी मान गए हैं. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि मायावती ने बैठक में शामिल होने के लिए हामी नहीं भरी है. बैठक में एंटी बीजेपी फ्रंट को मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा.

गहलोत से मिलकर लिया था 22 नवंबर को बैठक का फैसला

सभी दलों को करीब लाने का जिम्मा इस बार तेलुगू देशम पार्टी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने लिया है. इससे पहले उन्होंने अमरावती में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत से भी मुलाकात की थी. इस मुलाकात में यह तय हुआ था कि बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के सभी बड़े दल 22 नवंबर को दिल्ली में बैठक करेंगे. इस बैठक में नोटबंदी, सीबीआई आदि मुद्दों पर भी चर्चा होनी थी.

केवल इतना ही नहीं नायडू विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. यह बैठक ठीक ममता के उस फैसले के बाद आयोजित की गई है, जिसमें उन्होंने आंध्र प्रदेश की तरह ही अपने राज्य में भी मामलों की जांच के लिए सीबीआई के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी

मोदी को घेरने के लिए होने वाली विपक्ष की बैठक क्यों टली?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश में लगे विपक्षी दलों की तरफ से बुलाई गई बैठक स्थगित कर दी गई है. सीएनएन न्यूज 18 के मुताबिक, विपक्षी कुनबे की एकता दिखाने वाली यह बैठक 22 नवंबर को बुलाई गई थी, जिसे टालना पड़ा है.

सूत्रों के मुताबिक, महागठबंधन की इस बैठक को लेकर एसपी, बीएसपी और टीएमसी बहुत उस्साहित नहीं दिख रहे थे. इन सभी पार्टी को ऐसा लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा करना फायदेमंद नहीं है. हो सकता है कि इनकी तरफ से अपनी शक्ति का आकलन भी किया जा रहा हो, या फिर अपने से ज्यादा कांग्रेस की शक्ति का आकलन करने की कोशिश हो रही हो, जिसके बाद कांग्रेस से डील करना ज्यादा आसान होगा.

दरअसल, कांग्रेस की मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सीधी लड़ाई बीजेपी से है. लेकिन, इन राज्यों में एसपी, बीएसपी भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ चुनाव लड़ रही इन पार्टियों को लग रहा है कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर एक मंच पर आकर लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ रणनीति बनाई गई तो इसका सीधा असर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में दिख सकता है. भले ही एसपी, बीएसपी का इन राज्यों में बड़ा स्टेक नहीं है, फिर भी, कांग्रेस के साथ इस वक्त राष्ट्रीय स्तर पर नजदीकी उनकी प्रदेश चुनाव में संभावनाओं को पूरी तरह खत्म कर सकती है.

अगर बात एसपी की करें तो पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ चुकी एसपी अबकी बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से हाथ मिलाने से पहले फूंक-फूंक कर कदम रखना चाह रही है. दूसरी तरफ, बीएसपी ने मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बजाए अलग से मैदान में ताल ठोंक दी है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तरफ से उस वक्त बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के खिलाफ भी काफी तल्ख तेवर देखा गया था. ऐसे में मायावती नहीं चाहेंगी कि विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ आने का कोई संदेश जनता के बीच जाए. मायावती की कांग्रेस को लेकर तल्खी विपक्षी कुनबे के कांग्रेस के नेतृत्व में आगे बढ़ने की संभावना को फिलहाल खारिज करती दिख रही है.

उधर टीएमसी का रुख लगभग वैसा ही है. ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को साथ लाने की पहल काफी पहले शुरू की थी. लेकिन, उनकी पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, ममता भी विधानसभा चुनाव के बाद ही विपक्षी खेमे की बड़ी बैठक बुलाए जाने के पक्ष में हैं. लिहाजा महागठबंधन की 22 नवंबर की प्रस्तावित बैठक को टाला जा रहा है.

हालांकि महागठबंधन की बैठक टलने की खबर उसी दिन सामने आई जिस दिन आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात होनी थी. नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खड़ा करने में लगे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू सोमवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी से मिले.

चंद्रबाबू नायडू से बैठक के बाद ममता बनर्जी ने सकारात्मक लहजे में कहा कि ‘महागठबंधन’ का चेहरा हर व्यक्ति होगा. ममता बनर्जी के कहने का मतलब था कि इस गठबंधन में जो भी दल शामिल होंगे उन सभी के नेता महागठबंधन के चेहरे होंगे. मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने ट्वीट कर चंद्रबाबू नायडू को धन्यवाद भी दिया.

नायडू-ममता की मुलाकात को विपक्ष के नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है. क्योंकि ममता तो पहले से ही ऐसा कर रही हैं, अब नायडू ने एनडीए छोड़कर बाहर निकलने के बाद तो विपक्षी कुनबे की एकता बनाने का बीड़ा उठा लिया है.

दिल्ली से लेकर कोलकाता तक चंद्रबाबू नायडू दौड़ लगा रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही नायडू ने दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की. उसके बाद नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से भी मुलाकात की थी.

कभी तीसरे मोर्चे में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके चंद्रबाबू नायडू ने सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों को साध कर अब तीसरा मोर्चा बनाने के बजाए कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता की कसरत शुरू कर दी है. लेकिन, महागठबंधन की प्रस्तावित बैठक का टलना यह दिखा रहा है कि सबको साध कर कांग्रेस के साथ एक मंच पर लाना इतना आसान नहीं है.

ऐसा करना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि इन सभी क्षेत्रीय दलों के नेताओं की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी है कि उनकी तरफ से कांग्रेस और राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा इन सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों की आपस की खींचतान भी महागठबंधन की गांठ को और पेचीदा बना देते हैं. ऐसे में नायडू की हैदराबाद से दिल्ली और कोलकाता तक भी दौड़ के बावजूद सबकुछ विधानसभा चुनाव के परिणाम पर आकर टिक गया है. विधानसभा का चुनाव परिणाम ही लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी रणनीति तय करेगा.

कांग्रेस को भारत माता की नहीं बल्कि सोनिया गांधी की जय पसंद: अमित शाह

दिनेश पाठक एवं डेमोक्रेटिक्फ़्र्ण्ट डेस्क


मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव को लेकर अमित शाह का कहना है कि इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बनेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है.


देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के अच्छे प्रदर्शन करने की बात कही है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव को लेकर अमित शाह का कहना है कि इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बनेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है. बाकी के दो राज्य तेलंगाना और मिजोरम में शाह ने पार्टी के मजबूत होने की बात कही. वहीं राफेल के मामले में अमित शाह ने कहा कि अगर आरोपों में सच्चाई है तो राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते?

न्यूज18 के विशेष कार्यक्रम ‘एजेंडा मध्य प्रदेश’ में राफेल मामले को लेकर अमित शाह ने कहा कि सच हमारे साथ है और बाकी लोगों के बयान झूठे साबित हो जाएंगे. अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे देश की जनता के सामने शर्मिंदा होना पड़े. राफेल पर लगे आरोपों पर शाह ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों में अगर सच्चाई है तो वे सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते? उन्होंने कहा कि आरोप लगाना और झूठ बोलना राजनीति की संस्कृति नहीं है.

वहीं अमित शाह का कहना है कि कांग्रेस को सोनिया गांधी की जय पसंद है. अमित शाह का कहना है कि एक वीडियो काफी फैल रहा है. इसमें कांग्रेस कार्यकर्ता जो ‘भारत माता की जय’ का नारा लगा रहा है, उसे ‘सोनिया गांधी की जय’ का नारा देने के लिए कहा गया. अगर यह वीडियो सच है तो कांग्रेस के लोगों को शर्म करनी चाहिए.

अमित शाह ने राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कहा कि राजस्थान में फिर से बीजेपी की सरकार बनेगी. जनसमर्थन हमारे साथ है. देखते-देखते माहौल बनेगा और बीजेपी की सरकार आएगी. महागठबंधन को लेकर शाह का कहना है कि उत्तर प्रदेश छोड़कर किसी भी राज्य में महागठबंधन का कोई अस्तित्व नहीं है. वहीं अगर उत्तर प्रदेश में सभी मिलकर भी आ जाएं तो बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट फीसदी मिलेगा.

अमित शाह ने कहा कि वो उन सबसे सवाल करना चाहते हैं कि जो लोकतंत्र की बात करते हैं वे कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल क्यों नहीं खड़ा करते. इसको लेकर शाह ने कहा कि पीछे जब कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना जाना था तब सबको पता था कि सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस का अध्यक्ष कौन होगा. सबको इस बात की जानकारी थी कि यह पद राहुल गांधी को मिलेगा. शाह ने कहा ‘किसी को नहीं पता कि मेरे बाद बीजेपी का अध्यक्ष कौन होगा. क्योंकि हमारी पार्टी में लोकतंत्र है. यहां एक चायवाला दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री बना और एक पोस्टर चिपकाने वाला कार्यकर्ता दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का अध्यक्ष बन सका.’

हाल ही सीबीआई मुद्दा काफी सुर्खियों में बना हुआ है. सीबीआई मामले में शाह ने कहा इससे सीबीआई की छवि पर असर पड़ा है लेकिन ऐसे मामले में सरकार भी चुप नहीं बैठेगी. सरकार को बीच बचाव के लिए आगे आना ही पड़ेगा.

सबरीमाला में श्रद्धालुओं के साथ केरल सरकार आतंकवादियों जैसा व्यवहार कर रही है: अल्फोंस


उन्होंने कहा, ‘राज्य सरकार ने मंदिर परिसर को युद्ध क्षेत्र में बदल दिया है. श्रद्धालु कोई आतंकवादी नहीं हैं, वे बस तीर्थयात्री हैं.’


सोमवार को केंद्रीय मंत्री के जे अल्फोंस ने केरल सरकार पर आरोप लगाया कि वह सबरीमला मंदिर परिसर को युद्ध क्षेत्र बना रही है और तीर्थ यात्रियों के साथ डकैतों जैसा व्यवहार कर रही है. मंदिर में सुविधाओं का जायजा लेने के बाद मंत्री ने कहा, ‘उन्होंने धारा 144 लगा दी. तीर्थ यात्रियों के साथ डकैतों जैसा व्यवहार किया जा रहा है. बुनियादी सविधाएं कहां है, यह दयनीय है.’ उन्होंने कहा, ‘राज्य सरकार ने मंदिर परिसर को युद्ध क्षेत्र में बदल दिया है. श्रद्धालु कोई आतंकवादी नहीं हैं, वे बस तीर्थयात्री हैं.’

सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को सभी आयु वर्ग की महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाजत दी थी. उस आदेश को लागू करने के राज्य सरकार के निर्णय को लेकर बीजेपी, आरएसएस और दक्षिणपंथी संगठनों के कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद मंदिर परिसर में प्रतिबंध लगाए गए हैं. अलफोन्स ने कहा, ‘राज्य सरकार को जिम्मेदारी लेनी चाहिए. केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय ने 100 करोड़ रुपए मुहैया कराए हैं. उन्होंने एक भी रुपया खर्च नहीं किया है.’

यह सोवियत संघ के स्टालिन काल जैसा है

उन्होंने सोमवार सुबह निलक्कल आधार शिविर, पंबा और सन्निधानम का दौरा किया. इससे पहले रविवार देर रात मंदिर परिसर में एकत्र करीब 200 लोगों को गिरफ्तार किया गया. वे पुलिस प्रतिबंधों के खिलाफ ‘नाम जपम’ (भगवान अयप्पा का नाम जाप) कर रहे थे. पुलिस ने रविवार रात में भी 68 प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया था.

मंत्री ने कहा कि सीपीआई की अगुवाई वाली एलडीएफ सरकार ने यहां आने वाले सभी तीर्थयात्रियों के जीवन को खतरे में डाल दिया है. उन्होंने कहा, ‘यह सोवियत संघ के स्टालिन काल जैसा है.’ उन्होंने कहा, ‘सबरीमला देश में बड़े तीर्थस्थानों में से एक है. यहां हर कोई शांतिपूर्वक रहता है. यह सरकार यह सुनिश्चित करने में लगी है कि लोगों को अपनी आस्था को व्यक्त करने का अधिकार नहीं है.’ उन्होंने सवाल किया, ‘सरकार की मंशा क्या है? वे यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि तीर्थयात्रियों को बुनयादी सुविधा ना मिले. कानून और व्यवस्था का क्या हो रहा है? धारा 144? क्या यह लोकतंत्र है?’

Congress’ lack of strategy, inability to seize initiative may cost it in Chhattisgarh, Rajasthan, MP

Curtsy: Sushit K Sen

The Assembly elections that are now already in progress should have been the ‘moment’ of opportunity that the bedraggled Congress was waiting for after being mauled in the 2014 Lok Sabha elections and a raft of state elections thereafter.

Instead of seizing the day, the Congress finds itself instead in a beleaguered state, principally because of a lack of coherent strategy, leading to a state of drift, and its delusions of grandeur, in turn caused mainly by its inability to come to terms with the screamingly plain truth that it is no more the sole arbiter of India’s destiny.

The lack of a coherent strategy has been caused by and reflects a lack of organisational cohesion. Thus, for instance, the failure of the ‘high command’ to stamp election campaigns with its own imprint and ensure a coordinated approach in the three north Indian states going to the polls — Chhattisgarh, Madhya Pradesh and Rajasthan — may end up costing it dearly.

Let us take the states one by one. An alliance with the Bahujan Samaj Party (BSP) in Chhattisgarh would have sewn up the state for the Congress, on the back of 15 years of Bharatiya Janata Party (BJP) rule under Chief Minister Raman Singh. Their combined voting percentage would have been close to 45 per cent compared to the BJP’s 41 percent, if we extrapolate the 2013 Assembly results. The chances, of course, are that this difference would have been higher given a certain anti-incumbency fatigue and the BJP’s current difficulties over the Rafale controversy and other issues, that have cast the party in a noticeably poor light.

Many traditional BJP voters are planning to either abstain or vote for other parties. Unfortunately, the Congress has failed to capitalise on this disenchantment by playing an instrumental role in creating a united front. Instead, the Congress’s brains trust, for want of a better appellation, is seeking to counter the BJP’s strident majoritarianism and authoritarianism with its own brand of Hindutva-based mobilisation, not pausing to consider whether it can compete with the BJP by legitimising its ideological positions and political programmes. The Congress’ election manifesto for Madhya Pradesh and the position its state unit has taken in Kerala, which aims at encouraging ‘devotees’ to prevent the Left Front government from implementing the Supreme Court’s Sabarimala order, are unbelievable concessions to Hindu ‘sentiment’

In following the route it has been pursuing, the Congress has isolated itself at a juncture in which other opposition parties have been actively pursuing the objective of joint action. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav has rejected, for instance, a late, and obviously spurious, not to say infructuous, attempt by the Congress to build an alliance comprising the Samajwadi Party, Nationalist Congress Party, Sharad Yadav’s Loktantrik Janata Dal and Ajit Singh’s Rashtriya Lok Dal in Rajasthan. This is being seen by some as being a precursor to the BSP and Samajwadi Party tying up in Uttar Pradesh and in the process shutting out the Congress. In terms of seats, this would not be catastrophic, especially if, as is likely, the combine backs Congress president Rahul Gandhi and United Progressive Alliance chairperson Sonia Gandhi’s candidature from Amethi and Rae Bareli. But in symbolic terms, such an outcome would be a big blow to the Congress and its claims to leading the alliance against the BJP.

Andhra Pradesh chief minister Chandrababu Naidu and West Bengal chief minister Mamata Banerjee are already coordinating Opposition action, with a meeting held in Kolkata on Monday. In the meanwhile, both have sounded the bugle by withdrawing a general waiver to the Central Bureau of Investigation to pursue investigations in their states. Naidu, moreover, is trying to bring Opposition parties together to approach the Supreme Court with a plea for the curtailment of the powers of other Central agencies — the Income Tax Department, the Enforcement Directorate et al — in investigating cases relating to, or ‘targeting’, Opposition parties before the next Lok Sabha elections.

While the Congress has not specifically been excluded from the ambit of this initiative, it has clearly lost the initiative. To revive its fortunes appreciably, the Congress will have to engage with other opposition parties more constructively. As other opposition leaders have pointed out, the Congress, as the only opposition party with a nationwide presence, has to take the lead and make ‘disproportionate’ sacrifices as it did in Karnataka, reaping handsome dividends.

Simultaneously, the Congress has to come up with ripostes to the BJP’s barrage of gibes about the ‘ownership’ of the party. Prime Minister Narendra Modi and BJP president Amit Shah have been constantly lampooning the Congress over the role played in its affairs by the Gandhi family. Modi has dared Rahul Gandhi to step down and allow someone from outside the family to become party president and, by extension, the party’s prime ministerial nominee. He has most recently pointed to the manner in which Sitaram Kesri was ousted from the party presidency in 1998 after a year-and-a-half stint to make way for Sonia Gandhi. Shah, meanwhile, has likened the Congress to a private limited company owned by the Gandhi family.

It’s not easy to counter these gibes because they are substantially true. Congress leader P Chidambaram tried by producing a list of non-Gandhi Congress presidents, but got his history a little mixed up. Of those whom he named, only Kesri and PV Narasimha Rao belonged to the era after the second split in the party and the creation of the Congress (I). Thus, K Kamaraj, S Nijalingappa, D Sanjivayya and others were presidents of the Congress before the first split in 1969. C Subramaniam (interim president), Jagjivan Ram, Shankar Dayal Sharma, Dev Kant Barooah and K Brahmanand Reddy were presidents after the first split but before the second one in 1978. After that, Indira Gandhi was the president of the new party till her assassination in 1984 and Rajiv Gandhi until his, in 1996.

It was only after Rajiv’s death that Rao became party president and prime minister and he was followed as Congress president by Kesri, mainly because Sonia showed no desire to become a politician. After she acceded following repeated pleas, which itself is a revealing fact, she became party president followed recently by son Rahul. Thus, in the 40 years after the 1978 split, a Congress leader has led the party for just seven-odd years.

It’s a different matter that BJP leaders, too, are unaware of historical nuance, failing to distinguish between the Congress in its various phases, which leads them in semi-literate fashion to equate, for instance, Nehru with Indira Gandhi. It must also be recalled in fairness to the Congress that in the 38 years since Indira Gandhi returned to power — in 1980, a Gandhi has been prime minister for nine years, while Congress leaders from outside the Congress have held the chair for 15 years: Rao was prime minister for five of those and Manmohan Singh for 10. The BJP forgets, too, that Sonia lifted her party up by the bootstraps by renouncing prime ministerial office. It was an act of self-abnegation and sacrifice that may have been prompted by tactical motives but was nevertheless an extremely courageous and self-disregarding one.

Self-abnegation, self-sacrifice and disregard for one’s own ambitions are not descriptions one would normally apply either to Modi or Shah. Both are viscerally ambitious, authoritarian, paranoid and power-hungry beyond even the accepted standards of political life, which are not particularly high. The charges made by the duumvirate do not carry much weight because ever since the leadership of the party ceded power to Modi (who inducted Shah as his hatchet man), the BJP has ceased to be the functionally democratic party it once was (as was its forbear, the Jana Sangh), possibly the only positive thing one can say about the merchants of Hindutva.

Under the Modi-Shah dispensation, the BJP has acquired the worst traits of the Congress — for instance, the practice of nominating chief ministers from Delhi rather than allowing the relevant legislature parties to elect their own leaders.

It’s a case, to use a tired cliché, of the pot calling the kettle black. The only difference is that Modi rose from the ranks and captured the party, while Rahul did it as a matter almost of birthright. The difference, such as it is, is functionally not much of a difference.

Politically, the Congress would do better by pointing to the BJP’s penchant for trying to capture all manner of institutions and subverting them to subserve its alfresco designs of imposing a theocratic template on the Indian polity. For all its faults, opportunism of the kind that leads it into the terrain of ‘soft Hindutva’, whatever that’s supposed to mean, being one of the worst of them, the Congress cannot be accused of trying to systematically capture and subvert institutions. That’s one arena in which it has remained, generally speaking, true to its mainstream heritage. It should trumpet this achievement.

Govt-RBI call truce after a marathon board meeting


Panel to review economic capital for future earnings


The tension between the government and the Reserve Bank Of India appeared to have defused for the time being with both parties agreeing to settle for a middle ground at the end of an over nine-hour board meeting on Monday.

The most contentious issue that the central bank and finance ministry locked horn was the issue of RBI’s capital. Now, while RBI has agreed for setting up of an expert committee on the economic capital framework (ECF) its mandate is restricted to future earnings and not the existing reserves, sources privy to the board deliberations told The Hindu. The membership and terms of reference of the committee will be decided by the finance minister and RBI governor.

“The board decided to constitute an expert committee to examine the ECF, the membership and terms of reference of which will be jointly determined by the Government of India and the RBI,” RBI said in a statement

Sources indicate there were detailed presentation by RBI on the issue of economic capital as well as other issues like prompt corrective action framework.

On the PCA, Board for Financial Supervision (BFS) of RBI will review the norms and will take a call if some of the parameters like net non-performing asset (NPA) ratio could be relaxed so that some of the banks come out of the PCA. There are 11 public sector banks out of 21 that are on PCA. The BFS consists of governor, four deputy governors and few other board members.

Another significant decision was relief to the micro, small and medium enterprises – the sector which is badly hit due to twin blows of demonetisation and patchy implementation of Goods and Service Tax (GST).

“The Board also advised that the RBI should consider a scheme for restructuring of stressed standard assets of MSME borrowers with aggregate credit facilities of up to ₹250 million [₹25 crore] , subject to such conditions as are necessary for ensuring financial stability,” RBI said.

On the issue of capital adequacy ratio, after much deliberations to reduce it to 8%, it was finally retained at 9%. However, the deadline for implementing the last tranche of 0.625% under the capital conservation Buffer (CCB), has been extended by one year, that is, up to March 31, 2020.

Two other important issues that could not be discussed — liquidity for non-banking financial companies and governance issues of RBI- and those will be taken up in the next board meeting, scheduled on 14 December, sources said.

Sources added, the meeting board meeting proceeded amicably contrary to expectation. The tension between RBI and the government was started with the latter referred to section 7 of the RBI Act for consultation on these issues. Section 7 gives the power to the government to issue direction to RBI.

“The objective was to takeout RBI from the front page of newspapers,” said a person privy to the board discussions, indicating that proceedings were smooth unlike the last meeting held on October 23

Captain said the grenade attack at the Nirankari Bhawan seemed to carry Pakistan’s signature

Amritsar, November 19 2018 – Punjab Chief Minister Captain Amarinder Singh on Monday said the grenade attack at the Nirankari Bhawan seemed to carry Pakistan’s signature, with initial investigations indicating that the grenade used was similar to the ones being manufactured by the Pakistani Army Ordinance factory.

The Chief Minister, who flew in from Chandigarh along with his cabinet colleague and Amritsar MLA Navjot Singh Sidhu and PPCC president Sunil Jakhar, to take stock of the situation, said the police had recovered similar HG- 84 grenades from a terror module busted by the Punjab Police last month , indicating a high probability of the involvement of inimical forces from across the border.

Prima facie, this appears to be an act of terror by separatist forces, organized with the involvement of ISI-backed Khalistani or Kashmiri terrorist groups, said the Chief Minister, adding that his government had taken serious note of the incident and was aggressively pursuing all angles of investigation.

The culprits would soon be arrested, he promised, while talking to media persons after visiting the site of the attack. The state government has announced Rs 50 lakhs as reward for any information leading to the arrest of the assailants.

Captain Amarinder said the NIA was also helping in the investigations and certain leads had been unearthed.

Responding to a query, Captain Amarinder said the attack could not be equated with the Nirankari conflict in 1978, as that was a religious matter and the Adliwal incident was purely a case of terrorism. Violence between the Sant Nirankari Mission and traditional Sikhs on 13th April 1978 at Amritsar had left 13 dead, and sparked the subsequent wave of terrorism in the state. Yesterday’s incident had no religious overtones, as per initial investigations, said the Chief Minister.

Asked to react to HS Phoolka’s outrageous statement accusing the Army Chief of orchestrating the Nirankari Bhawan grenade attack to prove himself right on the revival of terrorism in the state, the Chief Minister said the AAP leader was apparently `unstable.’

Only someone suffering from mental instability could come out with such a despicable and nonsensical statement, said the Chief Minister, after undertaking an on-the-spot assessment of the ground situation here in the wake of the grenade attack at the Nirankari Bhawan.

In response to a question, the Chief Minister said the state was already on high alert, with strict checking going on around landmark buildings and other vital public installations and infrastructure. Police nakas had been set up in all districts and patrol parties were moving around in search of suspicious objects/activities, he said, directing the district and police administration to explore the possibility of installing CCTV cameras at all strategic points.

Meanwhile, the Chief Minister, who visited the IVY Hospital to meet the injured, has announced jobs for the kin of those killed in the attack and Rs 50000 each to the injured, in addition to their free treatment.

Accompanied by top police and administrative officials, the Chief Minister went around the site of the attack and examined the spot from where the grenade was lobbed by two men. The men, armed with a pistol and their faces covered, had forced their way into the Bhawan after taking the civil guards hostage at gun point. They had lobbed the grenade into the prayer room, killing three and injuring 15 people.

Earlier, on his arrival, the Chief Minister was briefed by Home Secretary NS Kalsi, DGP Suresh Arora, IG Amritsar Surinder Pal Parmar and DC Amritsar Kamaldeep Sangh, who updated him on the progress of the investigations so far.

Others accompanying the Chief Minister included Cabinet Ministers, OP Soni and Sukh Sarkaria, his Media Advisor Raveen Thukral, Amritsar MP, Gurjit Aujla and MLAs Raj Kumar Verka, Sunil Dutti, Dharamvir Agnihotri and Harpratap Ajnala.

ब्लास्ट हमले में इस्तेमाल मोटर साइकिल की पहचान, सुराग देने वाले को मिलेंगे 50 लाख

अमृतसर। अमृतसर निरंकारी डेरे पर गे्रेनेड हमले में आरोपियों द्वारा इस्तेमाल किए गए मोटर साइकिल की पहचान कर ली गई है। दूसरी ओर हमलावरों का सुराग देने वालों के लिए 50 लाख के इनाम की घोषणा की गई है। ताजा मिली जानकारी के अनुसार सीसीटीवी फुटेज के आधार पर उस मोटरसाइकल की पहचान कर ली गई है, जो हमले में इस्तेमाल की गई थी। सीसीटीवी फुटेज में हमलावर भी दिख रहे हैं जिनमें से एक ने चेहरे पर नकाब पहना है। बताया गया है कि पुलिस ने स्केच जारी कर दिए हैं।

कई जिलों की पुलिस को अमृतसर में तलाशी के लिए भेजा गया है। साथ ही, आसपास के गांवों में भी बाइक और हमलावरों को तलाशा जा रहा है।
आतंकी हमले में जाकिर मूसा का हाथ बताया जाता है। हमले को लेकर केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने एक आपात बैठक बुलाई है। गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अगुवाई में हो रही इस बैठक में रॉ और आईबी सहित गृह मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। इस बीच पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कहा है कि हमलावरों के सुराग देने वालों को सरकार 50 लाख रुपये इनाम देगी। पंजाब और जम्मू-कश्मीर क बॉर्डर पर नया हाई अलर्ट जारी कर दिया गया है। उधर, एनआईए की 3 सदस्यीय टीम घटनास्थल पर जांच के लिए पहुंची है।