राहुल का कद बड़ा दिखाने के लिए की नामों की घोषणा में देरी


कांग्रेस में इस तरह पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के समर्थक आमने सामने आ गए हों, कांग्रेस में शक्ति प्रदर्शन को पंसद नहीं किया जाता है. कई नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है.

धनाभाव से जूझ रही कांग्रेस को पुराने दिग्गज नेता अब कोरपोरेट जगत का रुख कांग्रेस की ओर मोड़ेंगे। 


राहुल गांधी की अगुवाई में तीन राज्य जीतने के बाद मुख्यमंत्री चयन में हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिला है. राजस्थान में अपने नेता के समर्थन में लोगों ने प्रदर्शन किया है. लेकिन अंत भला तो सब भला है. मध्य प्रदेश में कमलनाथ और राजस्थान में अशोक गहलोत रेस जीत गए. राजनीति में अंत तक अपनी राजनीतिक चाल चलनी होती है.

कांग्रेस के ये नेता अनुभव के आधार पर आगे निकल गए. युवा नेताओं को अब कुछ दिन या साल इंतजार करना पड़ सकता है. शाहरुख खान का बाजीगर वाला डायलॉग भी है. हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते है. अशोक गहलोत को जादूगर तो पहले से ही कहा जाता है. अब वो राजनीति के बाजीगर भी हो गए हैं.

आलाकमान की अहमियत

कांग्रेस में इस तरह पहली बार हुआ है कि एक दूसरे के समर्थक आमने सामने आ गए हों, कांग्रेस में शक्ति प्रदर्शन को पंसद नहीं किया जाता है. कई नेताओं को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा है. भजनलाल ने सीएम बनने के लिए शक्ति प्रदर्शन किया लेकिन बने भूपेन्द्र सिंह हुड्डा. आन्ध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री वाईएसआर की मृत्यु के बाद जगन मोहन रेड्डी ने बगावती तेवर अपनाए तो पार्टी से बाहर होना पड़ा था.

कांग्रेस में आलाकमान की अहमियत हमेशा रही है. सोनिया गांधी के वक्त में विधायक दल द्वारा पार्टी के मुखिया को सर्वाधिकार सौंप दिए जाते रहे हैं. सोनिया गांधी फैसले करती रहीं हैं. सिवाय अमरिंदर सिंह और वीरभद्र सिंह के केस में जिन्होंने पार्टी आलाकमान को सीएम बनाने के लिए मजबूर कर दिया, हालांकि पार्टी के भीतर प्रदेश में उनके कद का नेता नहीं था जो चुनौती दे सकता था.

पावर शिफ्ट

कांग्रेस में पावर शिफ्ट की भी अपनी भूमिका है. कांग्रेस के मैनेजर्स ये जानते हैं कि ये सही मौका है जब राहुल गांधी को पार्टी के भीतर स्थापित कर दिया जाए. इसलिए ये एहसास दिलाया गया कि राहुल गांधी कितने ताकतवर हैं. वो सीएम बना सकते हैं. कांग्रेस के युवा नेताओं का गुमान भी कम हुआ है. महज राहुल गांधी से रिश्ते अच्छे होने पर पद नहीं मिल सकता है. बल्कि जिस तरह राजनीतिक नफा नुकसान की अहमियत होती है, उसके हिसाब से निर्णय लिया जाता है.

राहुल गांधी ने जो फैसला किया है, वो कांग्रेस के मुखिया होने की वजह से किया है. राजनीति में निजी रिश्तों की अहमियत है, लेकिन राजनीति में ऐसा हमेशा नहीं होता है. तीन दिन फोकस यही रहा कि 12 तुगलक लेन से क्या संदेश मिलता है. जहां चुनाव था वहां के नेता और पूरे देश के कार्यकर्ताओं की निगाह राहुल गांधी के फैसले पर टिकी थीं. कांग्रेस में तय हो गया कि फैसला दस जनपथ में नहीं राहुल गाधी के 12 तुगलक लेन में हो रहा है. 7 लोककल्याण मार्ग के बाद दूसरा महत्वपूर्ण पता बन गया है.

ओल्ड गार्ड बनाम युवा नेता

कांग्रेस के मुखिया ने सीनियर नेताओं पर भरोसा किया है. पहली वजह वफादारी है. जो परिवार के प्रति है. दूसरी वजह दो राज्य में अल्पमत सरकार भी है. पुराने नेता सबको साथ लेकर चलने में माहिर हैं. नए लोगों को अभी इस विधा को सीखने की जरूरत है. पार्टी के भीतर और बाहर समन्वय बनाना आवश्यक है. नए नेताओं ने टिकट में जिस तरह मनमानी की है, वो भी इनके खिलाफ गई है. खासकर जो बागी जीतकर आए वो पुराने नेताओं के साथ हो गए. जिससे बैलेंस उनकी तरफ चला गया है. हालांकि पहले से ये पता था कि मुख्यमंत्री कौन बन रहा है.

युवा नेताओं को इसका आभास पहले से था, इसलिए खींचतान ज्यादा थी. टिकट बंटवारे में अपने समर्थकों को ज्यादा टिकट दिलाने का यही मकसद था. मध्यप्रदेश में दिग्विदय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच बहस होना, छत्तीसगढ़ में प्रभारी पीएल पुनिया और भूपेश बघेल के बीच खटपट की बात थी.राजस्थान में सचिन पायलट और रामेश्नर डूडी के बीच मतभेद की खबर इसका सबूत है.

लोकसभा चुनाव पर निगाह

हालांकि कांग्रेस आलाकमान यानी राहुल गांधी ने आम चुनाव के समीकरण पर ज्यादा ध्यान दिया है. मंझे हुए राजनीतिक खिलाड़ियों को तरजीह दी है. इसके कई कारण हैं, लोकसभा चुनाव सिर पर है. पुराने नेता राज्य पर फौरन अपनी पकड़ मजबूत कर सकते हैं. वहीं नए लोगों को प्रशासनिक व्यवस्था को समझने में वक्त लग सकता है.

ऐसे में लोकसभा की तैयारी कैसे हो सकती है, इस लिहाज से चयन किया गया है. ये लोग अपने राज्य में बिना केन्द्रीय नेताओं की मदद से अच्छा परफॉर्म कर सकते हैं. वहीं राहुल गांधी और बाकी नेता दूसरे राज्यों पर फोकस कर सकते हैं.जो पार्टी के लिए मुफीद साबित हो सकता है.

गठबंधन की राजनीतिक मजबूरी

2019 का चुनाव नरेन्द्र मोदी बनाम गठबंधन होने वाला है. एक बड़ा और माकूल गठबंधन ही जीत की गारंटी है वरना मोदी को मात देना आसान नहीं है. इस गठबंधन को हकीकत में लाने के लिए सीनियर नेताओं की टीम ही कर सकती है. इसकी वजह है छोटे दलों के नेताओं पर इनका असर है.

2008 में जब मनमोहन सिंह की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था. तब कई पूर्व और तत्कालीन मुख्यमंत्रियों ने अहम भूमिका अदा की थी. अब नया समीकरण बनाने के लिए भी ये लोग मददगार साबित हो सकते है. खासकर बीएसपी-एसपी जैसे दल इन नेताओं के वायदों पर भरोसा कर सकते हैं.

फंड की कमी

कांग्रेस के पास फंड की कमी है. मौजूदा साल में भी कांग्रेस को नाम मात्र ही चंदा मिला है. नए राज्यों के जीतने से कॉरपोरेट जगत का नजरिया कांग्रेस के लिए बदल सकता है. पुराने नेता नए कॉरपोरेट को पार्टी की तरफ लाने में मददगार साबित हो सकते हैं. इसलिए कांग्रेस में पहले से ये पता था कि पार्टी की जीत की स्थिति में कुर्सी किसे मिलने वाली है. लेकिन ये पूरी गहमा-गहमी राहुल गांधी पर फोकस शिफ्ट करने के लिए की गई है. क्योंकि चयनित लोगों पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ है.

ताकत दिखाने वालों को नहीं मिली सत्ता

सोनिया गांधी के वक्त में भी ताकत दिखाने वालों को पद नहीं दिया गया था. हरियाणा में भजनलाल ने ताकत दिखाने की कोशिश की थी. 2004 में तत्कालीन प्रदेश के मुखिया भूपेन्द्र सिंह हुड्डा को कुर्सी मिल गई. जिनको अहमद पटेल की हिमायत हासिल थी. जगन मोहन रेड्डी ने अपने पिता की मौत के बाद हंगामा किया लेकिन सत्ता नहीं मिल पाई थी. 2008 में अशोक गहलोत ने रेस में पीछे होते हुए अपनी राह आसान कर ली है. कांग्रेस में ये बानगी है लेकिन ये साफ है कि आलाकमान ही ताकतवर है, जिसको चाहे बिठाए जिसको चाहे हटाए.

बीजेपी अपवाद नहीं

हालांकि ये अपवाद नहीं है बीजेपी मे हाई कमान कल्चर है. हरियाणा महाराष्ट्र इसका उदाहरण है. वहीं एक केस के चलते उमा भारती को हटाकर शिवराज सिंह चौहान को सीएम बनाया गया था. झारखंड में बाबू लाल मरांडी के दावे को दरकिनार करके अर्जुन मुंडा को सीएम बनाया गया था.

उपेंद्र कुशवाहा अकेले पड़े

राष्ट्रीय लोकसमता पार्टी (RLSP) को शनिवार को तब एक बड़ा झटका लगा जब बिहार विधानसभा और विधान परिषद के उसके सभी सदस्यों ने घोषणा की कि वे अभी भी NDA में हैं. साथ ही RLSP सदस्यों ने पार्टी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर आरोप भी लगाया कि उन्होंने गठबंधन से अलग होने की घोषणा में निजी हितों को तवज्जो दी.

आरएलएसपी के दोनों विधायकों सुधांशु शेखर और ललन पासवान और पार्टी के एकमात्र विधानपरिषद सदस्य संजीव सिंह श्याम ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में बयान जारी किया. तीनों ने शेखर को मंत्रिपद दिए जाने पर जोर दिया जो कि पहली बार विधायक बने हैं और तीनों में सबसे कम आयु के हैं.

श्याम ने कहा कि हम चुनाव आयोग से भी संपर्क करेंगे और दावा करेंगे कि हम असली आरएलएसपी का प्रतिनिधित्व करते हैं. हमें पार्टी के अधिकतर कार्यकर्ताओं और पदाधिकारियों का समर्थन हासिल हैं. उन्होंने ऐसा करके स्पष्ट किया कि आरएलएसपी एक बिखराव की ओर बढ़ रही है.

आरएलएसपी ने दो चुनाव एनडीए के साथ लड़ा था

आरएलएसपी ने 2014 लोकसभा चुनाव और 2015 बिहार विधानसभा चुनाव एनडीए के साथ लड़ा था. आरएलएसपी के कुल मिलाकर तीन सांसद हैं जिसमें कुशवाहा भी शामिल हैं. इसके साथ ही पार्टी के बिहार में दो विधायक और विधानपरिषद का एक सदस्य है.

तीनों विधायकों ने कुशवाहा से अलग होने की घोषणा की है. वहीं दो अन्य सांसदों जहानाबाद से अरुण कुमार और सीतामढ़ी से राम कुमार शर्मा है. अरुण कुमार पिछले दो वर्षों से अलग रास्ता अपनाए हुए हैं.

शर्मा ने शुरू में एनडीए और नीतीश कुमार के समर्थन में बयान दिया था लेकिन बाद में अपना रुख बदल लिया और उन्हें तब कुशवाहा के साथ दिल्ली में देखा गया था जब उन्होंने कैबिनेट से अपने इस्तीफे के साथ ही एनडीए से अलग होने के निर्णय की घोषणा की थी.

उपेंद्र कुशवाहा

श्याम ने कहा कि हम यह लंबे समय से कह रहे हैं कि हम आरएलएसपी के एनडीए के साथ रहने के पक्ष में हैं लेकिन कुशवाहा जिन्हें अपने निजी लाभ की चिंता थी उन्होंने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया.

कुशवाहा को सिर्फ अपने से मतलब

रालोसपा के विधानपरिषद सदस्य ने आरोप लगाया कि गत वर्ष मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के एनडीए में वापस लौटने के बाद रालोसपा के लिए मंत्रिपद पर विचार नहीं करने के बारे में बात करने में कुशवाहा ने देरी की. श्याम ने दावा किया वास्तव में उन्होंने इसको लेकर कभी प्रयास नहीं किया. जब सहयोगी दलों के बीच मंत्रिपदों का आवंटन किया जा रहा था वह पटना में घूम रहे थे.

उन्होंने कहा कि कुशवाहा केंद्र में अपने मंत्रिपद को लेकर खुश थे. उसके बाद उनका पूरा ध्यान ऐसे समझौते पर केंद्रित था जो उनके हितों की पूर्ति करे. उन्हें इसकी कोई परवाह नहीं थी कि उनकी पार्टी से भी किसी को राज्य में मंत्रिपद मिलना चाहिए. एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि न तो उन्हें और न ही पासवान को मंत्रिपद चाहिए.

श्याम ने कहा कि हम चाहते हैं कि सुधांशु शेखर को राज्य मंत्रिपरिषद में शामिल किया जाए और यदि इसके लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया जाता है तो हम बहुत निराश होंगे.

असली आरएलएसपी हमारी

उन्होंने कहा कि हम दलबदलू नहीं बल्कि असली आरएलएसपी की प्रतिनिधित्व करते हैं. हमारा रुख अधिकतर कार्यकर्ताओं और पार्टी के पदाधिकारियों की भावनाओं के अनुरूप है. हम अपने दावे को लेकर जल्द ही चुनाव आयोग से संपर्क करेंगे. इस घटना पर टिप्पणी के लिए बिहार में एनडीए के नेता उपलब्ध नहीं थे.

पार्टी में उठापटक पिछले महीने तब सामने आ गया था जब शेखर और पासवान उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के आवास पर आयोजित बीजेपी विधायक दल की बैठक में शामिल होने पहुंचे थे.

जो चोर हैं वही चौकीदार से डरते हैं, राहुल को देश से सदन में माफी मांगनी चाहिए: शाह

राफेल डील पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बीजेपी को बड़ी राहत मिली है. कोर्ट ने इस मामले में जांच की मांग वाली सारी याचिकाएं खारिज कर दी हैं. दरअसल कांग्रेस जोरो-शोरों से इस डील की जांच कराने की मांग उठा रही थी और इसे लेकर उसने बीजेपी पर जमकर हमला भी बोला. लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी को इस बारे में पलटवार करने का अच्छा मौका मिला है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि एक कोरे झूठ के आधार पर देश की जनता को गुमराह करने का इतना बड़ा प्रयास कभी नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट का फैसला कांग्रेस के मुंह पर तमाचा है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत है. कोर्ट के फैसले ने झूठ की राजनिति का पर्दाफाश किया है.

बीजेपी अध्यक्ष ने कहा कि हमेशा सत्य की जीत होती है, आज ये फिर साबित हुआ है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को देश की जनता और सेना से माफी मांगनी चाहिए. उन्होंने जनता का गुमराह किया है.


BJP President Amit Shah: We welcome the judgement of the Supreme Court, the truth has won. People were being misled by unfortunately the country’s oldest party. Its a slap on politics of lies.


कांग्रेस पर बिचौलियों के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाते हुए शाह ने कहा, मोदी सरकार ने हमेशा गवर्नमेंट टू गवर्नमेंट डील की है. कभी बिचौलियों को आने नहीं दिया. लेकिन कांग्रेस ने हमेशा बिचौलिया के साथ काम किया. मैं चाहता हूं कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अपनी सोर्स ऑफ इनफॉर्मेशन के बारे में अब जनता को बताना चाहिए. उनको बताना चाहिए उनकी जानकारी आधार क्या था. राहुल गांधी को अपने गिरेबां में झांकना चाहिए.

उन्होंने राहुल गांधी को सलाह दी कि सूरज के सामने कितनी भी मिट्टी उछाल लो, वो खुद पर ही गिरती है, सूरज की रौशनी पर फर्क नहीं पड़ता. अमित शाह ने कहा कि आरोप लगाने वाले के चरित्र को भी जनता देखती है. जो चोर हैं वही चौकीदार से डरते हैं.

राहुल पर भरोसा करने वाले अब भी समझ लें “धोखा स्वभाव है इनका!” कैलाश विजयवर्गीय


कांग्रेस द्वारा राफेल के मुद्दे को बार-बार उठाया गया, जिसके जवाब में बीजेपी ने अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उस पर पलटवार किया है


पिछले कुछ समय से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनी राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने इस मामले में जांच की मांग वाली सारी याचिकाएं खारिज कर दी हैं. केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बड़ी राहत मिली है. कांग्रेस द्वारा राफेल के मुद्दे को बार-बार उठाया गया, जिसके जवाब में बीजेपी ने अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उस पर पलटवार किया है.

बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने झूठ फैलाया है, उसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि जिस राफेल डील के झूठ पर सवार होकर राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार किया. सुप्रीम कोर्ट ने इस ढकोसले को सिरे से खारिज कर दिया है. अगर राफेल पर फैसला कुछ दिन पहले आया होता तो चुनाव परिणाम कुछ और ही होते. राहुल पर भरोसा करने वाले अब भी समझे ले, धोखा इनका स्वभाव है.


Kailash Vijayvargiya

@KailashOnline

जिस के झूठ पर सवार हो
राहुल गांधी ने पूरा चुनाव प्रचार किया
मा. ने इस ढकोसले को सिरे से खारिज कर दिया.. कुछ दिन पहले आया होता, तो चुनाव परिणाम कुछ और ही होते!

राहुल पर भरोसा करने वाले अब भी समझ लें
“धोखा स्वभाव है इनका!”


राफेल डील पर उठाए जा रहे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर कोई संदेह नहीं है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राफेल डील की खरीद प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि कीमत देखना कोर्ट का काम नहीं है. कोर्ट के इस फैसले को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. दरअसल कांग्रेस लगातार मोदी सरकार का घेराव करते हुए राफेल डील में भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाती आई है.

सुप्रीम कोर्ट में अदालत की निगरानी में इस डील को लेकर जांच किए जाने की मांग वाली याचिकाएं दाखिल की गई थी. इसके पहले 14 नवंबर को हुई सुनवाई में इसपर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था.

सचिन मुख्य मंत्री पद की दावेदारी पर अड़े


दिल्ली में कांग्रेस के आलाकमान ने अशोक गहलोत के नाम पर मुहर लगा दी है. जबकि सीएम पद के एक और दावेदार सचिन पायलट पार्टी के इस फैसले को मानने को तैयार नहीं हैं


बीते आधी रात को मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का ऐलान किया गया, लेकिन राजस्थान में विधानसभा चुनाव के नतीजे आए करीब 48 घंटे से ज़्यादा हो चुके हैं और अब तक मुख्यमंत्री पद को लेकर कोई घोषणा नहीं की गई है. मामला अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच फंसा है. न्यूज़ 18 के मुताबिक दिल्ली में कांग्रेस के आलाकमान ने अशोक गहलोत के नाम पर मुहर लगा दी है. जबकि सीएम पद के एक और दावेदार सचिन पायलट पार्टी के इस फैसले को मानने को तैयार नहीं हैं.

सचिन पायलट ने ये दावा कर दिया है कि चुनावों के लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की थी. पार्टी उन्हें मनाने की पूरी कोशिश कर रही है, यहां तक कि सोनिया गांधी भी पायलट से बात कर चुकी हैं. लेकिन वह मानने को तैयार नहीं हैं. सचिन पायलट का कहना है कि उन्होंने राजस्थान में जमकर मेहनत की है और अगर ऐसे में उन्हें सीएम नहीं बनाया जाता है तो इससे जनता के बीच गलत संदेश जाएगा.

माना जा रहा था कि गुरुवार को ही पार्टी राजस्थान के मुख्यमंत्री का नाम घोषित कर देगी, लेकिन फिर खबर आई कि अगली सुबह तक नाम में मुहर लगने की संभावना है. अब दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आवास पर सुबह से ही बैठकों का दौर चल रहा है. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के साथ राहुल गांधी ने घंटों बैठक की. दिल्ली से लेकर जयपुर दोनों जगह दोनों नेताओं के समर्थक लागातार नारेबाजी कर रहे हैं.

सचिन पायलट की दावेदारी

साल 2013 में बीजेपी के हाथों करारी हार के बाद सचिन पायलट को राजस्थान की कमान दी गई थी. इस चुनाव में कांग्रेस महज 21 सीटों पर सिमट गई थी. इसके बाद विपक्ष में रहते हुए सचिन पायलट ने पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अपनी टीम बनाने के साथ सरकार को लगातार घेरा.

अशोक गहलोत की दावेदारी

कांग्रेस के संगठन महासचिव अशोक गहलोत कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति के साथ साथ राजस्थान में भी लगातार सक्रिय हैं. विधानसभा चुनावों में गहलोत लगातार स्टार प्रचारक के तौर पर पूरे प्रदेश में प्रचार किया. गुजरात और कर्नाटक के चुनावों में गहलोत की सक्रियता राजनीतिक हलकों में चर्चा में रही थी. अशेक गहलोत आज राजस्थान के साथ साथ कांग्रेस की केंद्रीय राजनीति का बड़ा चेहरा हैं.

AIBOC held a demonstration outside PNB at bank square Chandigarh

On the call of All India Bank Officers Confederation , a body having more than 3.20 lac members across the country, held a massive day long demonstration , today , in front of Punjab National Bank , Bank Square Sector-17 , Chandigarh, where more than 1000 bank officers participated and They demand their long pending Wage Revision as per Charter of Demand for all officer up to Scale VII , updation /revision of pension and family pension  , introduction of five day week with immediate effect , stop mis- selling of third party products , focus on core business and NPA recovery , stop merger of Public Sector Banks . Speaking on the occasion Com Deepak Sharma , Joint General Secretary of AIBOC , strongly criticize the government and IBA for delay in their wage revision , which is due since November 2017 and demand immediate wage hike as per the charter of Demand for all the officers  up  to scale VII . He also demand immediate implementation of five day week . He further told that bank officers will observe 24 hour strike on 21st December to press for acceptance of their demands.

Speaking on the occasion Com T S Saggu , State Secretary , AIBOC   strongly  criticize the government move of merger /amalgamation of Public Sector Banks and said that on the one side government is issuing licenses to the new small banks and on the other side they are merging the PSBs in the name of weak banks. He stated the all most all the PSBs  are in operating profit and in net loss due to provisioning. Government is not serious about recovery from big corporate defaulters and are not making stringent laws for the recovery from them. He further stated that proposed 24 hour strike  on 21st December would be preceded by a series of massive agitation programmes across all the major centres and district headquarters, wearing of demand badges, display of posters at all Bank branches / offices / railway stations / bus stands, lunch time / evening time rally / demonstrations at all branches / offices and a Centralized Dharna at Delhi and at all State capitals and submission of Memorandum.

Others who were present on the demonstration are

Com. Ashok Goyal , Com. Harvinder Singh, Com Vipin Beri , Com . Arun Sikka Com D N Sharma , Com. H S Loona, Com. Neeru Saldi , Com. Balwinder Singh   were also present on the venue.

SC refuses to intervene in Rafael jets procurement


The court declines to employ its considerable powers of judicial review to intervene in the deal’s decision-making process, pricing and the choice of Indian Offset Partner.


The Supreme Court on Friday said it cannot embark on a judicial review into the deal for procurement of 36 Rafale fighter jets on the basis of petitions, which seem to have been spurred by a media interview of former French President Francois Hollande and press coverage alleging “favouritism” by the Narendra Modi government.

“Individual perceptions cannot be the basis of a roving judicial review… The court cannot sit as an appellate authority over each and every aspect of the deal,” Chief Justice of India (CJI) Ranjan Gogoi, who authored the judgment for a three-judge Bench, held.

The court refused to employ its considerable powers of judicial review to intervene in the deal’s decision-making process, pricing and the choice of Indian Offset Partner (IOP). It agreed with the government that judicial review is constricted in matters of defence procurements, inter-govenmental agreements that may be vital to national security.

Decision-making process

The judgment by the Bench, also comprising Justices S.K. Kaul and K.M. Joseph, expressed the court’s satisfaction that there was no occasion to doubt the decision-making process which led to the Inter Government Agreement (IGA) signed on August 24, 2016 between the French and Indian government.

The judgment read out by Chief Justice Gogoi said “minor variations” in the decision-making process should not lead to the setting aside of the contract itself.

The marathon hearings in the court in November had witnessed the government admitting there was no sovereign guarantee from the French government on the 36 Rafale jets’ deal in case the aircraft’s manufacturer, Dassault Aviation, defaulted.

Attorney-General K.K. Venugopal, for the Centre, had however assured there was a “Letter of Comfort” from France, which is as good as a sovereign guarantee. But petitioners like advocate Prashant Bhushan, former Union Ministrs Arun Shourie and Yashwant Sinha had argued that a letter of comfort had no legal sanctity.

It was also brought to fore in the hearings that the Cabinet Committee on Security (CCS) had approved the IGA only well over a year after the Indo-French Joint Statement of April 10, 2015, which the note said, had conveyed an “intent” to acquire the 36 Rafale jets in a fly-away condition “as quickly as possible”. The intent was announced during the Prime Minister’s visit to Paris. The Defence Procurement Procedure (DPP) 2013 mandates that acquisitions worth over Rs. 1,000 crore should be first cleared by the CCS, which is the competent financial authority.

Court restrains from delving deeper

In the judgment, the court however restrained itself from delving deeper. It went on to repeat the government’s claim that the contract was of “financial advantage to the nation”.

Besides, Chief Justice Gogoi recalled how senior IAF officers had told the court about the need for induction of superior fourth and fifth generation fighter jets to gain air superiority.

The court said the negotiations for the revised deal for 36 jets started when the earlier Request for Proposal (RPF) for 126 Rafale jets was all but dead.

“Our country cannot be unprepared… We cannot go into why 36 jets and not 126. We cannot ask the government to go for 126,” the Supreme Court observed.

The court said it could not use the mechanism of judicial review to compare the prices of aircraft between the original RPF of 2007 for 126 jets with Dassault and the present IGA.

The court noted that the explanatory note submitted by the government in the apex court on price details claims there is “commercial advantage” in the purchase of 36 jets. The court noted that the IGA had better terms as regards weapons and specifications.

“We say no more,” Chief Justice Gogoi read out.

Acknowledges government stand

The court acknowledged the government stand that it had no role whatsoever on the choice of the IOP. The vendor, Dassault Aviation, chooses its own IOP.

The court held that there was no substance to the allegation that the government showed any “commercial favouritism” as the choice of IOP was not in the government’s realm.

Mr. Shourie had argued that there was “government interference” in the choice of an IOP. Mr. Shourie had alleged that Reliance Defence, “a company with no defence experience”, was the IOP.

During the hearings, the court had questioned the government’s stand about having no “role” in Dassault’s choice of an Indian Offset Partner (IOP). An amendment in the Offset Policy, which allows “no offset obligations” for the first three years of a contract, had also come under the spotlight. According to the current offset contract, Dassault needs to inform the Centre about its IOP only by October 2019.

The court had questioned the legality of the retrospective amendment and asked that the formal proposal indicating details of IOPs and products for offset discharge should have been part of the main procurement proposal.

The judgment came on a batch of petitions for an independent court-monitored CBI/SIT investigation into the deal.

राफेल पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के बाद राहुल से माफी मांगने की मांग उठी


केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजनीतिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह किया और देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचाया


फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद में घोटाले के आरोपों का सामना कर रही केंद्र सरकार ने शुक्रवार को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बाद आक्रामक रुख अपनाते हुए लोकसभा में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से माफी मांगने की मांग की.

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राजनीतिक लाभ के लिए लोगों को गुमराह किया और देश की छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नुकसान पहुंचाया. राजनाथ ने कहा कि उन्हें सदन में और देश के लोगों से माफी मांगनी चाहिए. उनको लगा था कि हम तो डूबे हैं सनम, तुमको भी ले डूबेंगे.

सदन में विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी सदस्यों के हंगामे और राफेल पर अदालत के फैसले के बाद बीजेपी सदस्यों की नारेबाजी के कारण कार्यवाही शुरू होने के करीब 10 मिनट बाद दोपहर 12 बजे तक के लिए स्थगित कर दी गई और फिर बाद में लोकसभा 17 दिसंबर तक के लिए स्थगित कर दी गई.

सुप्रीम कोर्ट से मोदी सरकार को मिली क्लीन चिट

सुप्रीम कोर्ट ने फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद के मामले में शुक्रवार को नरेंद्र मोदी सरकार को क्लीन चिट दे दी. शीर्ष अदालत ने कहा कि हमें फ्रांस से 36 राफेल विमानों की खरीद की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नजर नहीं आता है.

सुबह सदन की बैठक शुरू होते ही जहां विपक्ष के कुछ सदस्य अपनी अपनी मांगों को लेकर आसन के पास आकर नारेबाजी कर रहे थे, वहीं बीजेपी के सदस्य भी शीर्ष अदालत के फैसले की पृष्ठभूमि में आक्रामक दिखे. बीजेपी सदस्य ‘राहुल गांधी माफी मांगो’ के नारे लगा रहे थे.

संसदीय कार्य मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी सदन में कहा कि शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इस मामले में माफी मांगनी चाहिए. इस दौरान संसदीय कार्य राज्य मंत्री अर्जुन राम मेघवाल के साथ ही बीजेपी के सदस्य अपने स्थान पर खड़े होकर ‘राहुल गांधी माफी मांगो’ के नारे लगाते रहे.

कांग्रेस की मांग- राफेल सौदे की हो जेपीसी जांच

संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत से ही कांग्रेस राफेल सौदे में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) से इसकी जांच कराने की मांग कर रही है. इसके कारण सदन की कार्यवाही लगातार बाधित हो रही है.

कांग्रेस सदस्यों ने शुक्रवार को भी राफेल सौदे में जेपीसी जांच की अपनी मांग जारी रखी. इस दौरान कांग्रेस और बीजेपी के सदस्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी देखने को मिले. इस दौरान सदन में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी उपस्थित नहीं थे. यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी सदन में उपस्थित थीं.

राहुल ने हाथ आया सुनहरी मौका गंवा दिया


यह देखने में काफी खराब लगता है कि नव निर्वाचित विधायकों का कहना है कि सीएम चुनने का फैसला ‘पार्टी हाई कमांन’ का होगा


बीजेपी शासित तीन राज्यों में कांग्रेस की शानदार जीत को करीब 36 घंटे हो गए हैं लेकिन मुख्यमंत्रियों के चयन में हो रही देरी की वजह से ऐसा लग रहा है जैसे पार्टी के युवा अध्यक्ष राहुल गांधी लोगों में अपनी दिलचस्पी को भुनाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. राहुल के पास यह सबसे सही मौका था जब वह नरसिम्हा राव की तरह फैसला लेकर कांग्रेस की लोकतांत्रिक चमक को बढ़ा सकते थे.

राहुल गांधी भोपाल, जयपुर और रायपुर में इसपर जोर देकर आंतरिक पार्टी लोकतंत्र और वास्तविक विकेंद्रीकरण का प्रदर्शन कर सकते थे. 1993 में मध्यप्रदेश में पीवी नरसिम्हा राव ने भी यही किया था.

इस तरह के विचार अलोकतांत्रिक हैं

राव अपने दोस्त श्यामा चरण शुक्ला को उम्मीदवार बनाने के लिए काफी उत्सुक थे. लेकिन अर्जुन सिंह और कमलनाथ के सामने शुक्ला टिक नहीं पाए. राव ने पर्यवेक्षक सीताराम केसरी और गुलाम नबी आजाद से ‘स्थिति को समझते हुए योजना बनाने के लिए’ कहा और दिग्विजय को अगले दस सालों तक राज्य चलाने के लिए कहा.

लोगों ने अपनी इच्छा के प्रतिनिधियों को चुनकर मंशा साफ जाहिर कर दी है. इसलिए राज्य विधानसभा चुनावों और परिणाम के बाद ‘कार्यकर्ता’ की राय मांगना और यह कहना कि सीएम कौन बनेगा यह फैसला पार्टी हाई कमांन करेंगे, इस तरह के विचार अलोकतांत्रिक हैं.

ऐसी स्थिति में किसी तरह के ओपीनियन पोल या फिर सैंपल सर्वे की कोई जरूरत नहीं है. यदि टीम राहुल वास्तव में ऐसा करना चाहती थी तो कमल नाथ को मध्यप्रदेश, सचिन पायलट को राजस्थान और भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ कांग्रेस इकाइयों की अध्यक्षता की जिम्मेदारी देने से पहले ही ऐप-संचालित सर्वे या फिर इस तरह का सर्वे कर लेना चाहिए था.

बड़ी संख्या में देशवासियों ने राहुल से उम्मीदें लगा रखी हैं और यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि ‘न्यू इंडिया’ को लेकर राहुल का आईडिया क्या है. कृषि संकट से निपटने के लिए किसानों की कर्जमाफी एक अल्पकालिक समाधान हो सकता है लेकिन पूर्ण समाधान नहीं हो सकता है.

टीएस सिंहदेव को नई दिल्ली बुलाया गया

कृषि संकट से निपटने और उसे लाभदायक और टिकाऊ बनाने के लिए पूर्ण समाधान क्या हैं? नई नौकरियां, विनिवेश के मुद्दे या फिर प्राकृतिक संसाधनों को लीज पर रखना या बेचना इन सभी मुद्दों का समाधान निकालना होगा. एक मंच पर राहुल ने कहा था, ‘भारत अपने युवाओं को एक विजन नहीं दे सकता है अगर वह उन्हें नौकरी नहीं दे सकता है.’

लोकतांत्रिक मंच पर भोपाल, जयपुर और रायपुर को लेकर राहुल जो भी फैसला लेते हैं उसपर सभी की नजर होगी क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष पहले ही पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को प्रदर्शित करने का एक मौका खो चुके हैं.

यह देखने में काफी खराब लगता है कि नव निर्वाचित विधायकों का कहना है कि सीएम चुनने का फैसला ‘पार्टी हाई कमांन’ का होगा और सचिन पायलट, अशोक गहलोत, कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, भूपेश बागेल, चरण दास महंत, तमराध्वज साहू और टीएस सिंहदेव को नई दिल्ली बुलाया गया है.

एक सवाल यह भी उठता है कि एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल को भोपाल और जयपुर क्यों भेजा गया था. यह भी काफी परेशान करने वाली बात है कि गहलोत, जिन्हें हाल ही में पार्टी संगठन के प्रभारी एआईसीसी के महासचिव नियुक्त किया गया था, मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में हैं, जबकि उन्‍हें कुछ महीने पहले ही 2019 लोकसभा चुनावों के लिए मैक्रो स्तरीय प्रबंधन और रणनीति बनाने के लिए चुना गया था.

Modi’s Party Is Trounced in India’s ‘Semifinal’ Elections

Curtsy The New Yorks Time (By Jeffrey Gettleman, Kai Schultz and Suhasini Raj)


Is India’s prime minister, Narendra Modi, in trouble?

“This has been a very intriguing election,” said Seshadri Chari, a member of the B.J.P.’s national executive committee. “Modi is going to be personally worried.”


With his white beard and booming speeches (and supposedly 56-inch chest), Mr. Modi swept into power four years ago by promoting a populist brand of politics that mixed brawny Hindu nationalist views with lofty economic promises.

But on Tuesday, his party, the Bharatiya Janata Party, got walloped according to elections results just released from races held across five states.

The party, widely known by the initials B.J.P., suffered its worst defeat in recent years, losing more than 100 legislative seats, a result that shook the political establishment and left many wondering if Mr. Modi is in danger of losing next year’s national election.

The elections were held over the past several weeks, but results were not announced until Tuesday. Indian pundits described the races, held in the states of Rajasthan, Madhya Pradesh, Mizoram, Chhattisgarh and Telangana, as the “semifinals” of Indian politics. In just a few months, this country of 1.3 billion people who speak dozens of languages and live across an incredibly varied landscape from Himalayan mountaintops to tropical isles is set to hold national parliamentary elections.

It appears that Mr. Modi, who seemed so invincible not long ago, may be vulnerable as his brand loses its luster. At the same time, the leading opposition party, the Indian National Congress, once considered comatose, has suddenly woken up.

“The competition is neck to neck,” said Narendra Kumar, a political scientist at Jawaharlal Nehru University in New Delhi, the capital.

Indian voters are famous for passionately embracing a party or politician in one election and then enthusiastically voting them out in the next.

Among the complaints against Mr. Modi: He has ignored farmers. He cannot deliver on his party’s promises, including creating one million jobs a month, which economists said was impossible. The cost of living has sharply increased. And, not least, the B.J.P. has been criticized as too soft on violent Hindu extremists, including mobs that have lynched people for slaughtering cows, a revered animal in Hinduism.

“The common man does not support mob lynchings,” said Anil Verma, the head of the Association for Democratic Reforms, a nonpartisan organization in New Delhi.

Analysts say more Indians are growing upset with Mr. Modi’s party for not cracking down on the mobs, who often twist Hindu nationalist messages espoused by B.J.P. leaders and use them to justify violence. Vigilantes have killed dozens of people, most of them Muslim or lower caste Hindus, in the name of protecting cows.

“Indians by and large are not happy with the killing of their fellow men,” Mr. Kumar said. “That should be a message for the prime minister before the 2019 elections.”

The five states that just held elections — mostly rural and representing India’s heartland — are considered a bellwether. But experts have warned against extrapolating too much from these state races to national elections, noting that Mr. Modi still commands a loyal following in many quarters.

He is seen as a champion of a bigger, stronger India, whose economy is now sixth-largest in the world. (A decade ago, it was not even in the top 10.) He also remains a compelling orator, able to stir crowds with his booming baritone voice. Mr. Modi rose to power by embracing Hindu nationalist politics, and his base remains firmly behind him because they see him as a protector of their values.

Most experts say that if the next election were purely a popularity contest between Mr. Modi and Rahul Gandhi, the leader of the Indian National Congress and scion of a long political dynasty, it would be Mr. Modi’s to lose.

But Indian elections do not work that way. The country is a parliamentary system, and local issues affect the national bottom line. Political alliances are crucial, and this could be a problem for Mr. Modi.

Most analysts expect Mr. Modi’s party to lose many seats next year; the question is whether he will be able to win a thin majority in Parliament.

On Tuesday, the Indian National Congress was on track to pick up more than 100 of the 678 total seats across the five states.

And something even bigger may be happening. Across India, economic worries are becoming a pressing issue that Mr. Modi will have trouble sweeping away. He raised high expectations, promising to attract huge China-style export factories and create millions of high-paying jobs.

India’s annual growth rate has been over 7 percent, but Mr. Modi has not turned India into the next China. The amount of red tape in India remains stultifying, and many parts of the country’s manufacturing sector, such as textiles, have suffered widespread layoffs.

Millions of farmers are on the brink of crisis, facing rising fertilizer and electricity costs and lower prices for their produce. Experts say their distress is driven by too much competition, strict export rules and inadequate government purchases. One farmer who said he received less than the equivalent of $20 for 1,600 pounds of onions sent the money to Mr. Modi to make a point.

“Modi will definitely be hurt in the parliamentary elections next year — even more so if the opposition can sharpen the focus of the campaign to stress farm distress,” said Arati Jerath, a columnist who writes about politics for some of India’s biggest newspapers.

Other sources of discontent are a new tax system put in place under Mr. Modi and his decision in 2016 to suddenly replace most of the country’s currency, which was supposed to crack down on money laundering but led to severe cash shortages.

Even so, Tuesday’s election results were not all good news for the Indian National Congress. Once a powerful brand in the northeast, the party lost its majority in the last state it controlled in that region, Mizoram.

But the results in India’s agrarian, Hindi-speaking cow belt, where the B.J.P. has dominated or been highly competitive for the past decade and a half, must have been even more deflating to Mr. Modi and his team.

His party’s headquarters in New Delhi appeared deserted on Tuesday, while wild celebrations broke out at those of the Indian National Congress.

Even Mr. Modi’s usually super-confident allies admitted to being concerned.

“This has been a very intriguing election,” said Seshadri Chari, a member of the B.J.P.’s national executive committee. “Modi is going to be personally worried.”