समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आजम खान के बेटे और स्वार सीट से सपा विधायक अब्दुल्ला के साथ आजम की पत्नी और राज्यसभा सांसद तजीन खान पर भी मामला दर्ज किया गया है.
लखनऊ: समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री आजम खान के बेटे और स्वार सीट से सपा विधायक अब्दुल्ला आजम एकबार फिर से मुश्किलों में घिरते नजर आ रहे हैं. दरअसल, आजम खान के बेटे अबदुल्ला के खिलाफ दो जन्म प्रमाण पत्र रखने के मामले में उनपर मुकदमा दर्ज किया गया है. इसके साथ ही उनके पिता आजम खान पर भी मुकदमा दर्ज किया गया है. यूपी पुलिस ने इस मामले में आजम की पत्नी और राज्यसभा सांसद तजीन खान पर भी मामला दर्ज किया गया है.
बता दें कि उन पर बीते विधानसभा चुनाव में उम्र छिपाने के लिए दो पैन कार्ड बनवाने और चुनाव आयोग के साथ-साथ आयकर विभाग से धोखाधड़ी करने का आरोप लगा था. यह आरोप इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के अध्यक्ष और टांडा के पूर्व विधायक शिव बहादुर सक्सेना के बेटे आकाश कुमार सक्सेना ने लगाए थे.
आकाश ने आरोप लगाया था कि अब्दुल्ला आजम ने चुनावी शपथ पत्र में गलत पैन नंबर फाइल किया है. उन्होंने कहा था, “आजम खान एक जालसाज और झूठे व्यक्ति हैं. उन्होंने धोखाधड़ी करते हुए अपने बेटे अब्दुल्ला आजम के दो पैन कार्ड बनवाए, ताकि उनका बेटा चुनाव लड़ सके और विधायक बन सके. चुनाव आयोग को दिए गए शपथ पत्र में अब्दुल्ला आजम ने यह बात छिपाई और बेटे को विधायक बनाने के लिए आजम खान ने अबदुल्ला आजम की उम्र छिपाई और दूसरा पैन कार्ड बनवाया. इसलिए पिता आजम खान और पुत्र अब्दुल्ला आजम पर 420 का मुकदमा दर्ज होना चाहिए.”
आकाश के अनुसार, एफिडेविट में अब्दुल्ला आजम ने पैन डीडब्ल्यूएपीके7513आर दिखाया. वहीं आईटीआर के दस्तावेजों में उन्होंने दूसरा पैन डीएफओपीके616के लिखा है. आकाश का आरोप था कि आजम खान ने बीते विधानसभा चुनाव में अपने बेटे अब्दुल्ला आजम के नामांकन के दौरान झूठा शपथ पत्र दाखिल करवाया. इसके साथ ही आकाश ने अब्दुल्ला पर दो पैन कार्ड बनवाने, आयकर रिटर्न छिपाने और 25 वर्ष से अधिक आयु दर्शाने के आरोप लगाए.
उन्होंने कहा था कि एक व्यक्ति दो पैन नहीं बनवा सकता. यह नियम विरुद्ध है. आकाश ने इस मामले की शिकायत मुख्य निर्वाचन अधिकारी और आयकर विभाग से की थी और आयोग से मांग की थी कि अब्दुल्ला आजम का चुनाव निरस्त करा जाए. उन्होंने कहा था, “यह सभी आरोप भारतीय निर्वाचन आयोग की नियम विरुद्ध और भारतीय संविधान के तहत अपराध की श्रेणी में आते हैं. इसलिए आजम खान और अब्दुल्ला आजम के खिलाफ कार्रवाई की जाए.” उन्होंने अब्दुल्ला आलम की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग की थी.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/azam.jpg350700Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 19:19:152019-01-03 19:19:18मुश्किलों में घिरे आजम खान और उनका परिवार, दर्ज हुआ मुक़द्दमा
पीठ ने गुजरात हाई कोर्ट के 26 अक्टूबर, 2018 के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा, ‘सुनवाई होने दीजिए.’
हमें याद पड़ता है की वर्ष 2009 में इसी प्रकार के आरोपों का सामना पी। चिदम्बरम को भी करना पड़ा था, कन्नापन ने अपनी जून 25, 2009 की याचिका में चिदम्बरम और उनके कार्यकर्ताओं पर जोड़- तोड़ और चुनावी भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया था और मांग की थी की उनके सांसदिया क्षेत्र की खास कर अलगूनदी विधानसभा क्षेत्र की पुन: मतगणना की जाये। क्या बना?
फैसला आने से पहले चिदम्बरम ने न केवल अपना सांसद का गरिमापूर्ण पद बल्कि राष्ट्र के वित्त मंत्री का महत्त्व पूर्ण पद भी संभाला, और कन्नापन फैसले के इंतज़ार में समय काटते रहे।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल से कहा कि वह 2017 में हुए राज्यसभा चुनाव में उनके निर्वाचन के संबंध में बीजेपी प्रत्याशी बलवंतसिंह राजपूत की चुनाव याचिका पर मुकदमे का सामना करें. प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने गुजरात हाई कोर्ट के 26 अक्टूबर, 2018 के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार करते हुए कहा, ‘सुनवाई होने दीजिए.’ हाई कोर्ट ने कहा था कि राजपूत के आरोपों पर सुनवाई की आवश्यकता है.
अहमद पटेल ने हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें राजपूत की चुनाव याचिका की विचारणीयता पर सवाल उठाने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी गई थी. राजपूत ने राज्यसभा चुनाव में दो विद्रोही विधायकों के मतों को अवैध घोषित करने के निर्वाचन आयोग के फैसले को अपनी चुनाव याचिका में चुनौती दी है. उनका कहना था कि यदि इन दोनों मतों की गणना की गयी होती तो उन्होंने पटेल को हरा दिया होता.
शीर्ष अदालत ने कहा कि पटेल की याचिका पर अगले महीने सुनवाई की जायेगी. न्यायालय ने पक्षकारों को इस दौरान अतिरिक्त दस्तावेज दाखिल करने की अनुमति भी दी. पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘चूंकि संबंधित पक्षकार पेश हुये हैं, औपचारिक नोटिस जारी करने की जरूरत नहीं. इस मामले को अंतिम सुनवाई के लिये फरवरी, 2019 में सूचीबद्ध किया जाए. इस दौरान, उच्च न्यायालय चुनाव याचिका पर सुनवाई की कार्यवाही करेगा.’
कांग्रेस के विद्रोही विधायकों भोलाभाई गोहेल और राघवजी पटेल के मतों को अवैध घोषित करने के निर्वाचन आयोग के फैसले के बाद चुनाव जीतने के लिये आवश्यक 45 मतों की संख्या घटकर 44 हो जाने पर पटेल को विजयी घोषित किया गया था. राजपूत ने अपनी चुनाव याचिका में पटेल पर कांग्रेस के विधायकों को चुनाव से पहले बेंगलुरू के एक रिजार्ट में ले जाने का आरोप लगाते हुये कहा था कि यह मतदाताओं को रिश्वत देने के समान ही है.
उच्च न्यायालय ने पिछले साल अक्टूबर में दूसरी बार पटेल को कोई राहत देने से इनकार कर दिया था. इससे पहले, न्यायालय ने 20 अप्रैल को पटेल का अनुरोध अस्वीकार कर दिया था. अहमद पटेल ने 20 अप्रैल, 2018 के हाई कोर्ट के आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. शीर्ष अदालत ने 26 सितंबर को हाई कोर्ट से कहा था कि पटेल की याचिका पर नए सिरे से फैसला किया जाए. उच्च न्यायालय ने अक्टूबर में पटेल की याचिका खारिज कर दी थी.
सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार को इस मामले में अहमद पटेल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी अधिवक्ता देवदत्त कामत के साथ पेश हुए जबकि राजपूत की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह और सत्य पाल जैन पेश हुए.
हम अपने देश की न्यायाइक प्रक्रिया की मानें तो यहाँ भी पटेल अपनी राज्य सभा की कुर्सी पर बैठे रहेंगे अगले चुनाव आने तक, हाँ यदि पटेल को कुर्सी से सशर्त ( मुक़द्दमा जीतो और कुर्सी संभालो) हटाया जाता है तो इस मुक़द्दमे के अगले चुनावों से कुछ पहले निबटने की संभावना है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/chidambaram-patel.jpg415700Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 19:09:112019-01-04 02:44:16अहमद पटेल के राज्यसभा चुनाव को लेकर करना होगा मुकदमे का सामना: सर्वोच्च न्यायालय
NEW DELHI: Senior advocate and Punjab-based leader HS Phoolka resigned from Aam Aadmi Party (AAP) on Thursday. He submitted his resignation to Delhi Chief Minister and AAP leader Arvind Kejriwal, who asked him to reconsider his decision.
Phoolka will hold a press conference on Friday to explain his decision to resign.
Taking to Twitter, the Supreme Court advocate wrote, “I have resigned from AAP & handed over resignation to Kejriwal ji today. Though he asked me not to resign but I insisted. Will be briefing media tomorrow at 4 pm at Press Club, Raisina Rd, New Delhi to explain the Reason of leaving AAP & my further plans.”
Last year, Phoolka had resigned as a legislator from the Punjab Assembly, over the state government’s alleged failure to act against former CM Parkash Singh Badal.
The move comes amid speculation over possibility of an alliance between the Congress and the AAP for the 2019 Lok Sabha polls. The AAP has not denied alliance prospects with the Congress, saying its political affairs committee will take a call after considering opinion of its leaders and workers from Delhi, Punjab and Haryana.
The 73-year-old lawyer is representing the victims in 1984 anti-Sikh riots cases, in which former Congress leader Sajjan Kumar was recently convicted.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/h-s-phoolka-759.jpg422759Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 18:19:212019-01-03 18:19:23H S Phoolka to quit AAP
बीजेपी शायद ऐसा कोई दोस्त नहीं चाहती जो चुनावों में साथ रहते हुए माहौल बिगाड़ दे.. तीन राज्यों में मिली हार के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनाव को लेकर मीटिंग लेने का सिलसिला शुरू कर दिया है. दिल्ली के महाराष्ट्र सदन में हुई मीटिंग में उनके अलावा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, रेल मंत्री पीयूष गोयल, केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावडेकर, गृहराज्यमंत्री हंसराज अहीर, रक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष भामरे मौजूद थे.
रामराजे शिंदे, नई दिल्ली : बीजेपी ने आने वाले लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र के सांसदों की मीटिंग दिल्ली में बुलाई थी. इस मीटिंग में शिवसेना के साथ गठबंधन होगा या नहीं इस सवाल पर अमित शाह ने अपनी भूमिका स्पष्ट कर दी है. उन्होंने साफ कहा, कुछ भी खोकर गठबंधन नहीं होगा. यह बात अमित शाह ने महाराष्ट्र के सांसदों के सामने रख दी है.
दरअसल तीन राज्यों में हारने के बाद बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने लोकसभा चुनाव को लेकर मीटिंग लेने का सिलसिला शुरू कर दिया है. दिल्ली के नए महाराष्ट्र सदन में हुई मीटिंग में उनके अलावा केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, रेल मंत्री पीयूष गोयल, कॉमर्स मिनिस्टर प्रकाश जावडेकर, गृह राज्यमंत्री हंसराज अहिर, रक्षा राज्यमंत्री डॉ. सुभाष भामरे मौजूद थे.
हमारे सूत्र ने बताया कि इस मीटिंग में महाराष्ट्र के अहमदनगर के सांसद दिलीप गांधी ने शिवसेना के साथ गठबंधन होगा या नहीं यह सवाल पुछा. इस पर अमित शाह की ओर से कहा गया कि आप सभी अपने-अपने चुनाव क्षेत्र में काम करो. विधानसभा में शिवसेना के साथ हमारा गठबंधन टूट गया. तब हमने तैयारी की और सबसे ज्यादा सीटें लेकर सत्ता में आ गए. ऐसी ही तैयारी इस बार करनी है. शिवसेना के साथ चर्चा चल रही है, लेकिन कुछ खोकर गठबंधन नही करेंगे’ यह स्पष्ट कर दिया. इसका मतलब शिवसेना ने ज्यादा सीटें मांगी तो उनके दबाव के झुकेंगे नहीं. खुद के बलबूते चुनाव लड़ने की तैयारी करने के लिए अमित शाह ने सभी सांसदों को संकेत दे दिए हैं.
मंत्रिमंडल में मनमुताबिक जगह न मिलना अखरा था… दरअसल मौजूदा स्थिति में शिवसेना के पास 18 सांसद हैं. बीजेपी के पास 23 सांसद हैं. रामविलास पासवान के पार्टी के सांसद कम होने के बावजूद अच्छी मिनिस्ट्री दी गई है. शिवसेना के सांसद ज्यादा होने के बावजूद केंद्र सरकार में सिर्फ एक ही मिनिस्ट्री है. यही बात शिवसेना को खल गई है. उसके साथ ही 2014 में विधानसभा चुनाव के वक्त बीजेपी ने गठबंधन तोड़ा, लेकिन ठीकरा शिवसेना के माथे पर फोड़ दिया. तभी से शिवसेना और बीजेपी के रिश्तों में खटास आ गई. लेकिन अब 3 राज्यों के नतीजों के बाद शिवसेना बीजेपी पर हावी होने का प्रयास कर रही है.
इसलिए बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने मीटिंग लेकर सभी सांसदों को प्रोग्राम दिया है. अपने चुनाव क्षेत्र के सभी कार्यकर्ताओं को भोजन पर बुलाकर उनकी समस्या क्या है यह जान लेने का आदेश अमित शाह ने दिया है. इसके लिए 25 जनवरी की डेडलाइन दी है. कार्यकर्ताओं की समस्या सुनकर उसपर काम करने का भी आदेश दिया गया है.
लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी तैयारी तो कर रही है, लेकिन शिवसेना साथ में नही होने का नुकसान बीजेपी के सांसदों में होगा. इसलिए बीजेपी सांसदों में भी नाराजगी दिखाई दे रही है. अमित शाह के बयान के बाद शिवसेना दो कदम पीछे जाएगी क्या और गठबंधन होगा क्या यह देखना दिलचस्प रहेगा.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/334213-amit-shah-uddhav.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 18:12:082019-01-03 18:12:10कुछ भी खोकर गठबंधन नहीं होगा: अमित शाह
नए साल के तीसरे ही दिन पंजाब के गुरदासपुर में बड़ी रैली को संबोधित कर प्रधानमंत्री ने अब पूरी तरह से चुनावी मोड में आने का संकेत दे दिया है. मोदी किसानों के गढ़ में थे, नए साल में उनकी रैली के लिए पंजाब को चुना जाना अपने-आप में इस बात का संकेत है कि बीजेपी और सरकार के एजेंडे में किसान सबसे ऊपर हैं. तीन राज्यों में सरकार बनाने के बाद कांग्रेस ने किसानों की कर्जमाफी का ऐलान कर बढ़त लेने की कोशिश की है. लेकिन, प्रधानमंत्री मोदी ने इस कर्जमाफी को भी छलावा बता दिया है.
रैली को संबोधित करना अपने-आप में बड़ा संकेत है
नए साल के पहले दिन न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटर्व्यू में प्रधानमंत्री मोदी ने पंजाब सरकार पर किसानों की कर्ज माफ़ी को लेकर सवाल खड़ा किया था. अब इस बयान के दो दिन बाद प्रधानमंत्री खुद पंजाब की धरती पर हैं तो जाहिर है इस पर सियासत तो गरमाएगी ही. लेकिन, उनका पंजाब पहुंचना और वहां रैली को संबोधित करना अपने-आप में बड़ा संकेत है.
दरअसल, करतारपुर कॉरिडोर का शिलान्यास, 1984 के दंगों पर केंद्र सरकार की तरफ से बनाई गई एसआईटी और कई दूसरे फैसलों को लेकर अकाली दल औऱ बीजेपी की तरफ से धन्यवाद रैली का आयोजन किया गया है. चुनाव से पहले इन सभी मुद्दों पर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा किया जा सकता है जबकि, अकाली-बीजेपी गठबंधन इन सभी मुद्दों पर फायदा उठा सकता है. लिहाजा इस रैली का आयोजन किया गया है.
गुरदासपुर की रैली के पहले प्रधानमंत्री जालंधर में थे, जहां उन्होंने लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी में छात्रों को संबोधित करते हुए कहा कि अब ऐसा समय है जब हमें दुनिया का नेतृत्व करना चाहिए. हमें इस बात पर फोकस करना चाहिए कि कम कीमत में टेक्नालॉजी का प्रयोग खेती में कैसे किया जा सकता है. उन्होंने यह भी कहा कि हमें केवल रिसर्च करने के लिए ही रिसर्च नहीं करनी है बल्कि ऐसी खोज करनी है जिससे पूरी दुनिया उसके पीछे चले.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 की लड़ाई के लिए अपने-आप को तैयार कर लिया है. उनकी तरफ से गुरदासपुर से ही 2019 का शंखनाद हो गया है. सूत्रों के मुताबिक, लोकसभा चुनाव की तारीखों के ऐलान से पहले ही मोदी देशभर में 20 राज्यों का दौरा कर लगभग 100 रैलियों या कई दूसरे कार्यक्रमों में शिरकत कर सकते हैं.
गुरदासपुर से हुई शुरुआत अब और रफ्तार पकड़ेगी. सूत्रों के मुताबिक, मोदी 3 जनवरी को जालंधर और गुरदासपुर के बाद 4 जनवरी को नॉर्थ-ईस्ट का दौरा करेंगे. इस दिन उनकी तरफ से मणिपुर और असम में दो रैलियों को संबोधित करने का कार्यक्रम है.
इसके बाद 5 जनवरी को झारखंड और ओडिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली का कार्यक्रम है. झारखंड में पलामू जिले के मेदिनीनगर में बड़ी रैली का कार्यक्रम है. जबकि, इसी दिन ओडीशा में भी बारीपदा में प्रधानमंत्री की रैली होगी. इसी महीने की 16 तारीख को फिर प्रधानमंत्री की ओडिशा में एक और रैली होगी. सूत्रों के मुताबिक, इसके अगले ही दिन 6 जनवरी को पश्चिमी यूपी के आगरा में प्रधानमंत्री मोदी की रैली होगी.
प्रधानमंत्री कार्यालय से बातचीत के बाद ही फाइनल किया जाएगा
जनवरी महीने में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में होंगे. सूत्रों के मुताबिक, 22 जनवरी को पीएम वाराणसी में रहेंगे. जबकि 24 जनवरी को प्रयागराज के कुंभ में वो शिरकत करेंगे. सूत्रों के मुताबिक, दूसरी रैलियों और कार्यक्रमों की तारीखों का ऐलान पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व, राज्य के नेतृत्व और प्रधानमंत्री कार्यालय से बातचीत के बाद ही फाइनल किया जाएगा.
लेकिन, मोदी ने चुनावी साल के पहले दिन ही सबसे पहले हर मुद्दे पर इंटर्व्यू के जरिए अपनी बात सामने रखकर जनता के बीच अपने पक्ष में एक माहौल बनाने की कोशिश कर दी है. अब अपनी रैलियों के माध्यम से इसी कोशिश को आगे बढ़ाने की तैयारी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के ऐलान से पहले ही होने वाली इन रैलियों और कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी सरकार की पांच साल की उपलब्धियों का बखान करते नजर आएंगे. प्रधानमंत्री का पदभार संभालने के साथ ही मोदी ने पांच साल के काम के पाई-पाई का हिसाब देने की बात की थी, अब चुनावी साल में मोदी उसी हिसाब को देने की तैयारी कर रहे हैं.
हालांकि, पिछले कई महीनों से अपने कार्यक्रम के दौरान उनकी तरफ से अपनी सरकार के कार्यकाल में हुए कामों और पहले की यूपीए सरकार के कामों की तुलना कर यह दिखाने का प्रयास किया जा रहा है कि इन पांच सालों में कितना बदलाव आया है, लेकिन अब चुनाव से ठीक पहले गुरदासपुर से ऐसी शुरुआत कर मोदी ने 2019 के महासमर का शंखनाद कर दिया है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/modi_punjab_1546503466_618x347.jpeg347618Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 16:36:292019-01-03 16:36:32प्रधान मंत्री मोदी ने पंजाब से फूँका चुनावी बिगुल
सामना के संपादकीय में कहा गया कि मोदी सरकार ने गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की भव्य प्रतिमा बनाई है लेकिन राम मंदिर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सरदार’ वाला साहस नहीं दिखाया
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोलते हुए शिवसेना ने गुरुवार को कहा कि उसे इस बात पर ताज्जुब है कि अगर बीजेपी के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार के कार्यकाल में अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण नहीं होगा तो कब होगा.
पार्टी ने कहा कि अगर राम मंदिर का निर्माण 2019 चुनावों से पहले नहीं हुआ तो यह देश के लोगों को धोखा देने जैसा होगा जिसके लिए बीजेपी और आरएसएस को उनसे माफी मांगनी होगी.
केंद्र और महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सहयोगी शिवसेना ने हालिया इंटरव्यू में मोदी की टिप्पणी के लिए उनपर हमला बोला है. मोदी ने कहा था कि मंदिर निर्माण पर सरकार कोई भी कदम न्यायिक प्रक्रिया खत्म होने के बाद ही उठाएगी. इस इंटरव्यू को कई टीवी चैनलों ने प्रसारित किया था.
बहुमत वाली सरकार में मंदिर का निर्माण नहीं होगा तो कब होगा
शिवसेना ने पार्टी के मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय में कहा, ‘वह (मोदी) राम के नाम पर सत्ता में आए थे हालांकि उनके मुताबिक भगवान राम कानून से बड़े नहीं हैं. अब सवाल यह है कि अगर बहुमत वाली सरकार में मंदिर का निर्माण नहीं होगा तो कब बनेगा.’
संपादकीय में कहा गया कि मोदी सरकार ने गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की भव्य प्रतिमा बनाई है लेकिन राम मंदिर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘सरदार’ वाला साहस नहीं दिखाया. साथ ही कहा कि यह इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा. इसमें बताया गया कि राम मंदिर के लिए आंदोलन 1991-92 में शुरू हुआ था और सैकड़ों ‘कारसेवकों’ ने अपनी जान गंवाई थी.
हिंदुओं के नरसंहार के लिए बीजेपी से माफी की मांग करते हैं
इसमें पूछा गया, ‘किसने यह नरसंहार किया और क्यों? एक ओर सैकड़ो हिंदू कारसेवक मारे गए, साथ ही मुंबई बम धमाकों में दोनों पक्ष (हिंदू एवं मुस्लिम समुदाय) के सैकड़ों लोग मारे गए. अगर फैसला सुप्रीम कोर्ट को ही करना था तो यह नरसंहार एवं खूनखराबा क्यों?’ उद्धव ठाकरे नीत पार्टी ने आगे पूछा कि क्या बीजेपी- आरएसएस इन हत्याओं और खूनखराबे की जिम्मेदारी लेने के लिए तैयार है.
संपादकीय में कहा गया, ‘सिखों के नरसंहार (1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद) के लिए जिस तरह से कांग्रेस को माफी मांगनी पड़ी उसी प्रकार हमें भी उन लोगों की भावनाओं को समझना होगा जो हिंदुओं के नरसंहार के लिए (बीजेपी से) माफी की मांग करते हैं.’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/Uddhav-Thackeray_Shiv-Sena-770x433.jpg433770Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 16:21:052019-01-03 16:21:082019 चुनावों से पहले यदि राम मंदिर का निर्माण आरंभ नहीं हुआ तो बीजेपी- आरएसएस को लोगों से माफी मांगनी होगी: शिव सेना
पंजाब में PM मोदी का नया नारा- जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान, ….
..पंजाब में पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि विज्ञान ने देश के विकास में उल्लेखनीय योगदान दिया है। विज्ञान को सामान्य लोगों से जोड़ना होगा और देश के उन्नति के लिए सस्ते व कारगर तकनीक विकसित करनी होगी। उन्होेंने सस्ती तकनीक और कारगर इस्तेमाल का मंत्र दिया। इसके साथ ही उन्होंने देश के लिए नया नारा दिया- जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान’।……………
पीएम मोदी ने जालंधर में लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी (एलपीयू ) 106वीं इंडियन साइंस कांग्रेस का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री पहले आदमपुर एयरपोर्ट पर पहुंचे और वहां से हेलीकाप्टर से एलपीयू पहुंचे। उनका यहां पहुंचने पर भव्य स्वागत किया गया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि साइंस को सामान्य लोगों से जाेड़ना होगा। हमें दुनिया की लीडरशिप लेने के लिए बहुत कुछ करना है। लोगों के जीवन के सभी पहलुओं को आसान बनाने के लिए काम करना होगा। विज्ञान का देश की प्रगति और लोगों के कल्याण में बहुत महत्व है। आज जरुरी है कि कम कीमत मेें कारगर तकनीक विकसित किए जाने की जरूरत है।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/download-2.jpg168300Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 16:08:162019-01-03 16:08:22जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान और जय अनुसंधान
बीजेपी से मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान की सत्ता छीन लेने के बाद कांग्रेस अति उत्साह में है. दूसरी तरफ, राजस्थान में हार की समीक्षा के बाद बीजेपी अब नेता प्रतिपक्ष के मुद्दे में उलझी है. लेकिन जीत और हार की लाइन के आरपार दोनों तरफ से बयानों के तीर दे दना दन छोड़े जा रहे हैं. नई सरकार ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि पिछली सरकार ने कुछ काम नहीं किया. पिछली सरकार के लोग ये बताने की कोशिश कर रहे हैं कि नए वाले काम छोड़कर सिर्फ ‘चाटुकारिता’ कर रहे हैं.
कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ये आरोप लगाती रही है कि वे 60 साल के कांग्रेस राज और विशेषकर पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के योगदान को जानबूझकर कमतर दिखाने की कोशिश करते हैं. लेकिन राजस्थान में सत्ता में आने के बाद यही खेल कांग्रेस भी करती नजर आ रही है.
गहलोत रो रहे खाली खजाने का रोना
किसान कर्ज़ माफ़ी पर सत्ता में पहुंची कांग्रेस ने शुरुआती 10 दिन में इसका ऐलान तो कर दिया. लेकिन अब इससे बचने के बहाने बनाने भी शुरू कर दिए गए हैं. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने एकबार फिर पूर्व सीएम वसुंधरा राजे पर राजस्थान की राजकोषीय स्थिति को बिगाड़ देने का आरोप लगाया है. गहलोत के मुताबिक 2013 में जब उन्होने सीएम ऑफिस छोड़ा था, तब राज्य पर 1.39 लाख करोड़ का कर्ज़ था. लेकिन 5 साल बाद जब लौटे हैं तो उन्हे ये कर्ज़ 3 लाख करोड़ रुपए का बताया गया है. उन्होने पूछा है कि 66 साल में जितना कर्ज़ नहीं हुआ, उससे ज्यादा 5 साल में ही कैसे हो गया. सितंबर, 2018 में 8 हजार करोड़ की किसान कर्ज़ माफी को भी उन्होने नई सरकार पर डाल देने का आरोप लगाया है.
गहलोत पिछले 10 दिन में दसियों बार राजस्थान के खाली खजाने का रोना रो चुके हैं. शायद कोशिश हो कि आने वाले लोकसभा चुनाव तक अगर किसानों की कर्ज़ माफ़ी वास्तविक रूप में नहीं हो पाती है तो उनसे सवाल पूछने से पहले ही जनता के दिमाग में ये बात बैठ जाए कि सरकार तो खुद ही तंगहाली से जूझ रही है.
कर्ज माफ़ी की गेंद केंद्र पर डालने की कोशिश
खाली खजाने और सरकार पर भारी कर्ज़ की बार-बार दुहाई के साथ ही एक कोशिश और शुरू कर दी गई है. कोशिश है कि किसानों की कर्ज़ माफ़ी का मुद्दा केंद्र के पाले में डाल दिया जाए. अभी तक कर्ज माफी की सिर्फ घोषणा हुई है. उसका रोडमैप पेश नहीं किया गया है. अभी किसी को भी ये नहीं पता कि 2 लाख रुपए तक का कर्ज़ कैसे माफ होगा, किसका माफ होगा, कब तक माफ होगा और इसकी पूर्ति कहां से की जाएगी.
फिलहाल, सरकार इस मामले का खाका खींचने के लिए एक समिति बनाने की बात कह रही है. अब इस तरह के बयान सामने आ रहे हैं कि किसानों का कर्ज़ राज्य क्यों माफ करें. इसे केंद्र की मोदी सरकार को माफ करना चाहिए. गहलोत ने मीडिया से कहा कि यूपीए सरकार ने 72 हजार करोड़ का कर्ज माफ किया था. उसी तर्ज पर अब केंद्र सरकार को ही राज्यों के किसानों की कर्ज माफी को वहन करना चाहिए.
केंद्र पर दबाव बनाने के लिए अगले हफ्ते कांग्रेस एक किसान रैली का आयोजन भी कर रही है. किसानों को धन्यवाद के नाम पर बुलाई जा रही इस रैली की अध्यक्षता राहुल गांधी करेंगे. राहुल गांधी ने चुनाव जीतने के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा भी था कि वे केंद्र सरकार पर पूरे देश के किसानों की कर्ज़ माफ़ी का दबाव बनाएंगे.
कांग्रेस पर काम नहीं चाटुकारिता के आरोप
पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया भी बयानों के तीर छोड़ने में गहलोत से पीछे नहीं हैं. राजे ने सोशल मीडिया पर ट्वीट के जरिए कांग्रेस पर सिर्फ गांधी परिवार की चाटुकारिता में ही बिजी रहने के आरोप लगाए हैं. राजे के मुताबिक उनके विधानसभा इलाके में एक किसान की ठंड से मौत हो गई. मेवाड़ में एक किसान ने सर्दी से फसल खराब हो जाने पर खुदकुशी कर ली. जबकि सैकड़ों किसानों ने खेतों में खड़ी प्याज की फसल पर इसलिए ट्रैक्टर चला दिया क्योंकि मौजूदा भाव पर उसे मंडी में ले जाने की लागत ही नहीं निकल सकती.
वसुंधरा राजे ने आरोप लगाया है कि सरकार अचानक मिली सत्ता के मद में चूर है और कर्ज़ माफी के ऐलान के बाद किसानों के मुद्दे से आंखें मूंद ली हैं. वैसे, सरकार की मंशा पर अब बुद्धिजीवी लोग भी अंगुली उठाने लगे हैं. कर्ज़माफी के सीधे-सीधे मुद्दे को हल करने के बजाय समिति बनाने जैसे सरकारी कदम उसे उलझाते हुए से लग रहे हैं.
2013 में बीजेपी सरकार ने आते ही बॉर्डर इलाके में रॉबर्ट वाड्रा की खरीदी जमीनों की जांच की बात कही थी. 2013 में इस तरह के बयान भी आए थे कि गहलोत सरकार के आखिरी 6 महीनों के काम की समीक्षा की जाएगी. तब कांग्रेस ने इस पर बड़ा हंगामा किया था. लेकिन अब कांग्रेस सरकार ने बीजेपी के फैसलों की समीक्षा के लिए मंत्री समूह गठित कर दिया है. इस समूह में स्वायत्त शासन मंत्री शांति धारीवाल, ऊर्जा मंत्री बी डी कल्ला और खाद्य-आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा शामिल हैं.
समस्या सुलझाने के बजाय बना दिए मंत्री समूह
यूपीए सरकार में दर्जनों मंत्री समूह (GoMs और EGoMs) बने हुए थे. 2014 में मोदी सरकार ने आते ही इन्हे खत्म कर दिया था. तर्क था कि ये काम को सुलझाने के बजाय उसकी गति को धीमा करते हैं. लेकिन पुराने ढर्रे पर चलते हुए गहलोत सरकार ने 3 मंत्री समूह (GoM) बना दिए हैं. कहा गया है कि ये मंत्री समूह कांग्रेस के चुनावी वादों को तेजी से पूरा करने के तरीकों पर सिफारिशें देंगे.
दिक्कत ये है कि एक-एक मंत्री कई-कई समूहों में शामिल है. क्या ये उसपर कार्यभार नहीं बढ़ाएगा. मंत्री के पास अपने विभाग का ही वर्कलोड कम नहीं होता. उस पर उसे एकाधिक मंत्री समूहों में शामिल करना काम के दबाव को कई गुना बढ़ा सकता है. इस तरह वास्तव में अपने पोर्टफोलियो के साथ एक मंत्री कितना न्याय कर पाएगा ?
ऊर्जा मंत्री बी.डी कल्ला, बीजेपी के फैसलों की समीक्षा करने वाले मंत्री समूह के अलावा उस समूह में भी शामिल हैं जिसे संविदाकर्मियों को नियमित करने पर राय देने के लिए बनाया गया है. इस समूह में कुल 5 मंत्री हैं. इसके अलावा, राज्यपाल के अभिभाषण के लिए भी 3 सदस्यीय मंत्री समूह बनाया गया है. इस समूह में शामिल रघु शर्मा दूसरे मंत्री समूह में भी हैं.
ऐसा लग रहा है कि किसानों का मुद्दा सिर्फ चुनाव जीतने के लिए ही बना है. विपक्ष में रहते कांग्रेस बीजेपी पर असंवेदना के आरोप लगाती थी. लेकिन अब सरकार बनने के बाद भी किसान वैसी ही समस्याएं झेल रहे हैं. फर्क बस ये आया है कि अब वही आरोप बीजेपी नेता लगा रहे हैं. गेहूं के किसानों को यूरिया नहीं मिल रहा है, प्याज के किसान फसल उखाड़ रहे हैं. मूंग के किसान हाईवे जाम कर रहे हैं और मूंगफली के किसान मंडियों के बाहर इंतजार में बैठे हैं. कुल मिलाकर सरकार बदलने के बावजूद किसान वैसे ही बेहाल हैं, जैसे पहले थे.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/06/666741-rahul-gehlot-dna.jpg7201280Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 07:44:062019-01-03 07:44:08कर्जमाफ़ी के बहाने अब केंद्र पर ठीकरा फोड़ने की तैयारी
CBI court on Thursday granted bail to former Haryana Chief Minister Bhupinder Singh Hooda and senior Congress leader Motilal Vora in AJL Land allotment case.
In the last hearing, the special CBI Judge Jagdeep Singh had issued notice to former CM Haryana Hooda and Vora and had directed them to appear in person on January 3.
On Thursday, both Hooda and Vora had appeared in Panchkula CBI court. The court has now fixed February 6 as next date of hearing
On December 1 last year, the CBI had filed chargesheet against Hooda, Motilal Vora and Associated Journals Ltd (AJL), publisher of the National Herald newspaper, in special CBI court in Panchkula, for allegedly illegal re-allotment of land to AJL, in Panchkula in 2005.
The chargesheet was filed in the court of special CBI Judge Jagdeep Singh under sections 120 B and 420 of IPC and Sections 13 (I) (d) read with 13 (2) of prevention of corruption act.
As per the allegations, an industrial plot at Panchkula was illegally re-allotted to Associated Journal Ltd (AJL), which is reportedly controlled by senior congress leaders including Gandhi family through Young India Ltd. Founded by former prime minister, Jawahar Lal Nehru, AJL runs National Herald newspaper. The allegations are that by abusing his position and against the legal opinion of authorities and advice of Legal Remembrancer for re-advertising the said plot, the plot was re-allotted to AJL by the then CM cum Chairman Haryana Urban Development Authority (HUDA), Bhupinder Singh Hooda in 2005 at original rates plus interest. Allotment of plot caused loss to exchequer and wrongful enrichment to the company.
The CBI then filed an FIR under Sections 409, 420 and 120-B of the Indian Penal Code on the written requests of the Haryana government, the notification of the Union Government and on the complaint of vigilance bureau. The FIR was registered by the CBI on April 6, 2017.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.png00Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 07:09:472019-01-03 07:10:49AJL Plot Allotment: CBI court grants bail to Bhupinder Singh Hooda and Motilal Vora
वाइज़ शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर, या वोह जगह दिखा दे जहां पर खुदा ना हो
उत्तर प्रदेश के जिला नोएडा में एक पार्क में नमाज़ पढ़ने पर लोगों ने आपत्ति जगाई थी। नोएडा पुलिस ने नोटिस जारी कर इस पर रोक लगा दी थी। देश का एक बुद्धिजीवी वर्ग इसे धार्मिक असहनशीलता की नज़र से देखने लगा है। सोशल मीडिया पर इसे भड़काने की कोशिश हो रही है। यह विश्लेषण किसी एक धर्म या नमाज़ को ले कर नहीं बल्कि उस सोच पर है जिसके तहत लोग सड़कों पर प्रदर्शन करते हैं। धार्मिक भावनाओं की जगह अपने दिल में ओर अपने घर में होनी चाहिए, सड़कों या पार्कों में नहीं। किसी भी ऐसे कार्यक्र्म को जिससे लोगों को परेशानी हो, धार्मिक नहीं माना जा सकता है। धार्मिक कार्यक्रमों के लिए लाउडस्पीकर का प्रयोग ख़त्म कर देना चाहिए। इससे लोगों को परेशानी होती है और ध्वनि प्रदूषण भी फैलता है। लाउडस्पीकर का प्रयोग तो मद्धम आवाज़ में और जन कल्याण की घोषणाओं इत्यादि के लिए ही होना चाहिए।
विडम्बना यह है की हमारे
देश में अल्पसंख्यकों के हितों की बातें करने को धर्मनिरपेक्षता माना जाता है और
बहुसंख्यकों की बात करने को असहनशीलता से जोड़ दिया जाता है। किसी की धार्मिक
भावनाओं को ठेस पहुंचाना मेरा मकसद नहीं है।
यह सारा विवाद नोएडा के एक पार्क से शुरू हुयथा। जहां आस पास की बहुत सी कंपनियों में काम करने वाले मुस्लिम कर्मचारी इस पार्क में अक्सर नमाज़ पढ़ते हैं। स्थानीय लोगों के मुताबिक पहले नमाज़ पढ़ने वालों की संख्या कम होती थी बल्कि सिर्फ दफ्तरों में काम करने वाले ही आते थे, लेकिन अब तो आस पास के लोग भी जुडते गए और कारवां बढ़ता गया। अब तो 500 से 700 लोग हर जुम्मे को जुम्मा करने आने लगे हैं। इसके साथ बिरयानी और दूसरे व्यंजन बेचने वालों का भी जमावड़ा शुरू हो गया है।
यू॰पी॰ पुलिस ने उचित
कार्यवाही करते हुए संबन्धित लोगों को नोएडा प्रकरण से एन॰ओ॰सी॰ ले कर अनुमति लेने
को कहा गया है। सिटी मेजिस्ट्रेट के आदेशों के आभाव में उन्हे वहाँ नमाज़ पढ़ने से
माना गया है। बिना आदेश के किसी भी धर्म के लोगों को सार्वजनिक स्थान पर
कार्यक्र्म करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है, एस एस॰एस॰पि डॉ। अजयपाल
शर्मा का कहना है कंपनियों को कहा गया है कि अपने कर्मचारियों को बताएं कि पार्कों
में नमाज़ पढ़ने न जाएँ, और अगर इसका उल्लंघन हुआ तो इसकी ज़िम्मेदारी इनहि
कंपनियों कि होगी।
इसके बाद इस मुद्दे पर पूरे देश में चर्चा होने लगी, कि खुले में नमाज़ पढ़ना जायज है कि नहीं? हमारे देश में जीतने भी लोग अपने आप को धर्म निरपेक्ष या सेकुलर कहने वाले हैं वह खड़े हो गए और कहने लगे कि यह तो बे इंसाफ़ी है। इस मामले में कुछ शरारती तत्त्व भी माहौल बिगाड़ने में जुट गए हैं। पार्कों के अलावा लोग ट्रैफिक जाम करते हैं और सड़कों पीआर नमाज़ पढ्न शुरू कर देते हैं। लोग धर्म का मामला मान कर डर जाते हैं और आपत्ति करने से घबराते हैं। लेकिन इस्लाम के कई जानकार इसे ठीक नहीं मानते। उनका कहना है कि जिस कि जगह पर नमाज पढ़ने के लिए उनसे इजाज़त लेना ज़रूरी है। हमारा संविधान सभी को अपने धर्म कि उपासना करने कि इजाज़त देता है। संविधान के आर्टिकल 25 के अनुसार देश के हर व्यक्ति को अपनी इच्छा से किसी भी धर्म को मानने, उसकी उपासना करने का अधिकार है। सड़कों पर नमाज़ पढ़ने कि समस्या सिर्फ भारत के लिए ही नहीं बल्कि कई और देशों में भी खड़ी हुई थी।
2011 में फ्रांस में ऐसे
ही नज़ारे सामने आए। फ्रांस में अपना मुत्तल्ला बिछा कर सड़कों पर नमाज़ अता कि जाती
थी। लोगों को बहुत परेशानी हुई और इसके बाद विरोध शुरू हुआ। सितंबर 2011 में फ्रांस की सरकार ने सड़कों पर
नमाज़ पढ़ने पर पाबंदी लगा दी। दुबई में पिछले साल अक्तूबर में सड़क के किनारे नमाज़
पढ़ते हुए लोगों पर एक कर जिसका टायर फट गया था, चढ़ गयी। इससे 2 लोगों की
मृत्यु हो गयी। इसके बाद दुबई में सड़क किनारे नमाज़ पढ़ने वालों पर 1000 दरहम (लगभग
19,000/= रुपए) के जुर्माने का प्रावधान रखा गया। चीन के शिंजियांग
प्रांत में सरकारी स्कूल, दफ्तरों ओर करप्रेत दफ्तरों में नमाज़ पढ़ने पर
पाबंदी है।
इस्लाम के जान कार और लेखक
‘तारिक फतेह’ जो कि आजकल टोरंटो में रहते हैं ने कहा कि “नमाज़
मस्जिद में पढ़नी चाहिए, अगर मस्जिद नहीं है तो घर में जा कर पढ़ें। अगर घर
से दूर हों तो आप जहां भी हों वहीं पर नमाज़ पढ़ सकते हैं,
लेकिन आप किसी और कि जगह पर जा कर, कबजा कर नमाज़ पढ़ें या जुम्मा करें यह मुमकिन
नहीं।“ आपकी नमाज़ से इसी और को नुकसान पँहुचे यह बिलकुल गैर इस्लामिक बात है।
फ्रांस, लंदन, स्टोकहोम में भी यही सभी कुछ हुआ। उससे सिर्फ एक
नियत नज़र आती है और वह है शरारत की। जैसा की आप भारत (नोएडा) की बात कर रहे हैं,
यह कभी भी मान्य नहीं हो सकता।
हमारे देश में इन मुद्दों को बहुत संवेदनशील माना जाता है, और सरकारें भी जान बूझ कर इनसे दूरी बनाए रखतीन हैं। केंद्र और राजी सरकारे मानती हैं कि नमाज़ के बारे में हाथ डालेंगी तो उनके वोट बैंक खतरे में पड़ सकता है, इसीलिए तो इन सब चीजों को नज़रअंदाज़ करतीं हैं, जो कि आगे चल कर नासूर बन जातीं हैं। स्थानीय लोग शिकायत करते हैं ओर सरकारें इन्हे अनसुना कर देतीं हैं। लेकिन यह बात सिर्फ खुले में नमाज़ पर ही लागू नहीं होती, रोजाना हमारे शहर में गली, मुहल्ले या सड़क पर धार्मिक आयोजन, शादी ब्याह व्गैराह होते रहते हैं, बड़े बड़े लाउडस्पीकर बजते रहते हैं, शोर मचाया जाता है, पूरे सड़क,, गली या मोहल्ले को रोक दिया जाता है, औ यह सब बहुत ही भक्तिभाव से किया जाता है।
भारत में ध्वनि प्रदूषण के चले रात 10 बजे से सुयह 6 बजे तक लाउडस्पीकर य पी॰ए॰ सिस्टम का इस्तेमाल करना गैर कानूनी है। लेकिन इस कानून की हर दिन रात और शाम धज्जियां उड़ाई जातीं हैं। लोग इस बात से बी डरते हाँ कि पड़ौसी से दुश्मनी लेना शायद ठीक नहीं होगा।
सार्वजनिक स्थानों पर
धार्मिक आयोजन (सभी तरह के) एवं नमाज़ वगैराह बंद कर देने चाहिये। असली पूजा व
इबादत तो मन में उठने वाले विचारों से होती है उसके लिए दूसरों को परेशान करने कि
ज़रूरत नहीं।
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/namaz-2.jpg385696Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-01-03 05:35:472019-01-03 05:53:40खुले में नमाज़ – एक विश्लेषण
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