भाजपा से सम्मानित एचएस फूलका ने किसी भी राजनैतिक दल में जाने की बात नकारी

केंद्रीय मंत्री विजय गोयल की ओर से आयोजित एक समारोह में सिख विरोधी दंगा पीड़ितों के पक्ष में फूलका की कानूनी लड़ाई के लिए रविवार को सम्मानित किया गया.

नई दिल्ली : आम आदमी पार्टी के पूर्व विधायक एवं अधिवक्ता एच एस फूलका ने केंद्र में सत्तारूढ़ BJP के विधायकों के साथ अपनी ‘‘नजदीकियां’’ स्वीकार की है लेकिन किसी भी राजनीतिक दल में शामिल होने से रविवार को इंकार कर दिया. दरअसल, केंद्रीय मंत्री विजय गोयल की ओर से आयोजित एक समारोह में सिख विरोधी दंगा पीड़ितों के पक्ष में फूलका की कानूनी लड़ाई के लिए रविवार को सम्मानित किया गया. इस कार्यक्रम में गोयल ने कहा कि भाजपा के दरवाजे सभी “अच्छे” लोगों के लिए खुले हैं. फूलका का बयान इसके बाद आया है.

वरिष्ठ अधिवक्ता ने संवाददाताओं को बताया, ‘‘सिख विरोधी दंगों के पीड़ितों के लिए संघर्ष में भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा हम लोगों का समर्थन किया. मैं कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद और गृह मंत्री राजनाथ सिंह से मिला और उन्होंने मेरे रूख का समर्थन किया.’ उन्होंने, हालांकि, भाजपा में शामिल होने की अटकलों से इंकार कर दिया.

फूलका ने कहा, ‘‘मैं किसी राजनीतिक दल में शामिल नहीं हो रहा हूं.’ गोयल ने फूलका को ‘‘अच्छा आदमी’’ तथा अपना मित्र बताया और कहा कि उन्होंने 1984 के सिख विरोधी दंगा पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया. उन्होंने कहा, ‘‘यह कोई मायने नहीं रखता है कि वह आम आदमी पार्टी से जुड़े थे. वह एक अच्छे व्यक्ति हैं जिन्होंने अच्छा काम किया है. यही कारण है कि हम उन्हें सम्मानित कर रहे हैं. लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या वह मेरी पार्टी में शामिल होंगे. भाजपा चाहती है कि सभी अच्छे लोग पार्टी में शामिल हों.’

फूलका ने इस महीने की शुरूआत में आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे दिया था. फूलका ने इसके लिए कोई कारण नहीं बताया. इन अटकलों के बीच कि वह भाजपा में शामिल हो सकते हैं, फूलका ने चार जनवरी को गोयल से उनके जन्मदिन पर उन्हें बधाई देने के लिए उनसे मुलाकात की थी. आम आदमी पार्टी से फूलका के इस्तीफे के बारे में गोयल ने कहा, ‘‘उन्होंने हाल ही में आप छोड़ी है. देर आयद दुरूस्त आयद.’

आप छोड़ने के लिए फूलका ने कोई कारण नहीं बताया था. उन्होंने पंजाब में गैर सरकारी संगठन चलाने की इच्छा जाहिर की थी. उनके बारे में माना जा रहा है कि वह आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच किसी प्रकार के गठजोड़ के भी खिलाफ थे. सूत्रों ने यह भी दावा किया कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी से भारत रत्न वापस लिये जाने की मांग के आप के रुख से भी फूलका नाराज थे.

लोहड़ी पर्व: राय अब्दुल्लाह खान जिसकी स्मृति में हम नाचते गाते हैं

संकलन: राजविरेन्द्र वसिष्ठ

इतिहास ने कितने ही ऐसे नामों को संजोया जो हमें हमारे होने पर मान करवाते हैं। एक इतिहास है जो किताबों में लिखा गया और पाठशालाओं में हमने पढ़ा, और एक इतिहास वो जो लोगों के दिलों में रचा बसा, दादी नानी की कहानियों में, गावों से शहरों तक आये लोक गीतों में झूमता-डोलता है। कितने ही वीर सूरमा, कितने प्यार के परवाने, कितने भक्ति में डूबे दीवाने, कितने हंसी-ठट्ठा करते-कराते शेख़चिल्ली, कितने दानी धीर-वीर, सदियों से दिनों-दिन बदलते समाज के ढाँचे में लगे ईंट-पत्थर के समान उसकी सांस्कृतिक इमारत को बुलंद रखे हुए, बने हैं इन्हीं गीतों-कहानियों के ज़रिये हमारी आत्मा के प्रबल सम्बल। जिस समाज की कहानियाँ जितनी पुरानी हैं, उतनी ही गहरी है उसके शीलाचार, शिष्टाचार एवं सिद्धांतों की नींव। समय की आँधियाँ उस समाज के लोगों की प्रतीक्षित परीक्षाएं ही तो हैं। अपने बड़े-पुरखों की कहानियों में रचित जिजीविषा से प्रेरित वह समाज नयी कहानियाँ रचता है, परन्तु कभी समाप्त नहीं होता, बल्कि नया इतिहास बनाता है – पुरानी कहानियाँ-गीत संजोता है, और नए नए विचार गुनता है। 

ऐसी ही भाग्यशाली शगुनों के ख़ुशी-भरे नाच-गानों में संजोयी एक खूबसूरत कहानी है, वीर सूरमा ‘दुल्ला भट्टी’ की जो लोहड़ी (मकर संक्रांति) के शुभ त्यौहार के दिन उत्तर भारत में घर-घर में न सिर्फ़ गायी जाती है, अपितु नाची भी जाती है। राय अब्दुल्लाह खान लोक-वाणी में ‘दुल्ला भट्टी’ नाम से प्रचलित हैं। हम में से कितनों की ज़बान पर यह नाम बिना इसकी सही जानकारी के लोहड़ी त्यौहार के प्रचलित लोक गीत में थिरकता है कि यह एक श्रद्धांजलि है एक ऐतिहासिक राजपूत वीर को जिसने सम्राट अक़बर के समय छापामार युद्ध किये, और आततायियों की सतायी कितनी ही स्त्रियों के जीवन पुनः बसाये। 

पंजाब में फ़ैसलाबाद के पास के संदलबार इलाक़े में जन्मे दुल्ले की माँ का नाम लड्डी और पिता का नाम फ़रीद खान था, दादा थे संदल खान। ‘संदलबार’ (संदल की बार) का इलाका उन्ही संदल खान के नाम से पड़ा, रावी और चनाब नदियों के बीच का यह इलाक़ा अब पाकिस्तान में है और यहीं मिर्ज़ा-साहिबां की अमर प्रेमगाथा भी प्रसिद्ध हुई। दुल्ला के दादे-नाने यहीं संदलबार में पिंडी भट्टियाँ के राजपूत शासक थे। मुग़लों के शासन काल में पिंडी भट्टियां के राजपूत लड़ाकों नें विद्रोह करते हुए कर देना बंद कर दिया व मुगल सैनिकों से छापामार युद्धों की शुरुआत की। इस विद्रोह को डर से कुचलने के लिए पकड़े गए विद्रोहियों को मारकर उनकी मृत लाशों की चमड़ी उधड़वा, उनमें भूसा भर कर गावों के बाहर लटकाया गया, इन्हीं में दुल्ले के पिता और दादा भी थे। पंजाबी लोकगीतों ‘दुल्ले दी वार’ और ‘सद्दां’ में दुल्ले की यह गाथा मिलती है । इस शहादत के बारे में ‘सद्दां’ में ऐसे लिखा गया है – 

“तेरा सांदल दादा मारया, दित्ता बोरे विच पा, मुग़लां पुट्ठियाँ खालां ला के, भरया नाल हवा…. ”

दुल्ला, जिसका कि जन्म इस घटना के बाद हुआ, ओजस्वी अनख वाली राजपूत माँ का पुत्र था जिसके बारे में एक कहानी यह भी है कि अक़बर का पुत्र सलीम भी उसी समय के दौरान पैदा हुआ किन्तु वह एक कमज़ोर शिशु था, और अक़बर की आज्ञा से पिंडी भट्टियां की लड्डी को सलीम को दूध पिलाने की दाई रखा गया। क़रीब 12-13 वर्ष तक सलीम और दुल्ला इकट्ठे पले-बढ़े, एक ही दाई माँ की परवरिश में। लड्डी को जब उसकी इस सेवा से निवृत किया गया, और जब वह वापिस पिंडी भट्टियाँ आयी तो उसने दुल्ले को उसके पिता-दादा की शूरवीरता की कहानियाँ सुनाई, और उनके हश्र की भी। ज़ाहिर है कि उन दोनों के वापिस आने पर गाँव के बड़े-बूढ़ों की जुबां पर भी यही वीर-गाथाएं दिन-रात थिरकती रहती होंगी। दुल्ला ने अपने अंदर के दावानल को मुगलों की ताक़त के ख़िलाफ़ पूरे वेग से लगा दिया। दुल्ला ने फिर से अपने लोगों को इकट्ठा कर एक बार पुनः विद्रोह को जमाया, छापामार युद्ध किये, राजसी टोलों को लूट कर, लूट के धन को जनता में बांटा, संदलबार में लोगों ने फिर से ‘कर’ देना बंद कर दिया। कहानी है कि विद्रोह इस हद तक बढ़ा और फैला कि मुगलों को अपनी शहंशाही राजधानी दो दशकों तक लाहौर बनानी पड़ी।

यह राजपूत वीर सूरमा न सिर्फ़ राज-विद्रोह के लिए लोगों के मन में बसा, बल्कि इसने उस समय के समाज में हो रही स्त्रियों की दुर्दशा के ख़िलाफ़ ऐसे कदम उठाये जो कि उसको एक अनूठे समाज सुधारक की श्रेणी में ला खड़ा करते हैं। पंजाब की सुन्दर हिन्दू लड़कियां जिन्हें ज़बरन उठा लिया जाता था और मध्यपूर्वी देशों में बेच दिया जाता या शाही हरम के लिए या मुग़ल ज़मींदारों के लिए, दुल्ले ने उनको न सिर्फ़ आततायियों से छुटकारा दिलवाया बल्कि उनके एक नयी रीति से विधिपूर्वक विवाह भी रचाये। सोचिये, हम बात कर रहे हैं सोहलवीं सदी की – जिन लड़कियों को छुड़वाया गया, उनके दामन दाग़दार, इज्ज़त रूठी हुई , आबरू के आँचल कमज़ोर, झीने और ज़ार ज़ार थे। ऐसे में अत्याचारियों से छुड़वा कर उनको उनके घर वापिस ले जाना कैसे सम्भव हुआ होगा?  कौन-सा समाज ऐसी कुचली हुई दुखी आत्माओं के लिए भूखे भूतों का जंगल नहीं है? ये सभी माँएं, बहनें, बेटियां उन सभी रिश्तों को खो तब किस हश्र के हवाले थी? लेकिन दुल्ले ने उसी समाज में से ऐसे ऐसे सुहृदय पुरुष ढूँढ निकाले जिन्होंने इन स्त्रियों को सम्बल दिया, घर-परिवार व सम्मान दिया और विवाहसूत्र में उनके साथ बंध गये।

ये सभी बनी दुल्ले की बेटियां – किसी पंडित के न मिलने पर हिन्दू विवाह की रीति निभाने के लिए शायद ‘राइ अब्दुल्लाह खान’ उर्फ़ मुसलमान राजपूत दुल्ला भट्टी ने स्वयं ही अग्नि के आस पास फेरे दिलवा, आहुति डाल उनके विवाह करवाये, न जाने कितनी ऐसी बेटियों का कन्यादान दिया, उनका दहेज बनाया जो एक सेर शक्कर के साथ उनको दिया जाता और इन विवाहों की ऐसी रीति बना दी कि दुल्ले के करवाये इन्ही विवाहों की गाथा आज हम लोहड़ी के दिन ‘जोड़ियां जमाने’ के लिए गाते हैं, विवाहों में समन्वय और ख़ुशी के संचार के लिए अग्नि पूजा करके गाते और मनाते हैं। –

12000 सैनिकों की सेना से युद्ध के बावजूद जांबाज़ दुल्ला को पकड़ न पाने पर धोखे से उसे या ज़हर दे कर मार देने का उल्लेख है, या बातचीत का झांसा दे दरबार बुला कर गिरफ़्तार कर जनता के सामने कोतवाली में फांसी दिए जाने का। धरती के इस सच्चे सपूत के जनाज़े में सूफ़ी संत शाह हुसैन ने भाग लिया और अंतिम दफ़न का काम पूर्ण किया, दुल्ला भट्टी की क़ब्र मियानी साहिब कब्रिस्तान (लाहौर, पंजाब, पाकिस्तान) में है। आज भी इस दरगाह पर फूल चढ़ते हैं। 

उत्तर भारत में लोहड़ी का त्यौहार जो मकर संक्रांति की पूर्व संध्या का उत्सव है दुल्ले की याद की अमरता से जुड़ा है। अब जब हर साल लोहड़ी पर अग्नि में आशीर्वाद के लिए मूंगफली और फुल्ले डालें, उसके फेरे लें और “सुन्दर मुंदरिये” पर नाचते गाते बच्चों के थाल भरेंगे तो मन में इस अनूठे समाज सुधारक वीर सूरमा दुल्ला भट्टी को भी याद कर नमन करें और स्वयं भी अच्छे कर्म करने का संकल्प लें। 

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लोकगाथाओं के सही सही काल का पता लगाना अक्सर मुश्किल होता है। समय की अनेकानेक परतों से गुज़रती यह गाथाएं कहीं कहीं कल्पनाशील अतिश्योक्तियों से पूर्ण भी होती हैं। मैं कोई शोधकर्ता नहीं, किन्तु जीवन और संस्कृति के प्रति जिज्ञासु ज़रूर हूँ। राय अब्दुल्लाह खान भट्टी की इस कथा के जालघर पर कोई २-४ वर्णन मिलते हैं। सन १९५६ में “दुल्ला भट्टी” नामक एक पंजाबी चलचित्र में भी यह कहानी दर्शायी गयी है। मेरा यह लेख इन्ही सूत्रों से प्रेरित है, हाँ, इसमें मामूली सी कल्पना की छौंक मेरी भी है, जो बस इस जोशभरी कहानी को जान लेने के बाद आयी एक स्वाभाविक उत्सुकता है जिसको सांझा करना सही समझती हूँ। कहीं उल्लेख है कई स्त्रियों के विवाह का, कहीं सिर्फ़ एक का, कहीं बताया है के ‘सुन्दर मुंदरिये’ गीत दुल्ले ने ही गाया। कहीं अक़बर की राजधानी दिल्ली से लाहौर ले जाने की बात है – जो कि लिखित इतिहास के अनुसार न कभी दिल्ली थी और न ही कभी लाहौर! तो ख़ैर, लेख लिखते समय मेरे लिए शायद यह एक बहुत ही बड़ी बात थी कि जिस गीत को मैं बचपन से गाती आ रही हूँ लोहड़ी पर वह उस वीर सुरमा की शौर्य गाथा है न कि कोई शादी का ‘दूल्हा’!! मेरा बाल-मन बस उछल उठा ‘दुल्ला भट्टी’ के कारनामों को पढ़ के और देख के, और अब आप से सांझा कर के। 
साभार: विभा चसवाल

लोहड़ी के लोक गीत

सुन्दर मुंदरिये, — हो 
तेरा कौन विचारा, — हो 
दुल्ला भट्टीवाला, —हो 
दुल्ले धी व्याही, —-हो 
सेर शक्कर पायी, — हो 
कुड़ी दा लाल पताका, —- हो 
कुड़ी दा सालू पाटा, —- हो 
सालू कौन समेटे, —- हो 
मामे चूरी कुट्टी, —-हो, 
जिमींदारां लुट्टी, —- हो
ज़मींदार सुधाये, —-हो 
गिन गिन पोले लाए, — हो 
इक पोला घट गया! —-हो 
ज़मींदार वोहटी ले के नस गया —-हो 
इक पोला होर आया —-हो 
ज़मींदार वोहटी ले के दौड़ आया —-हो 
सिपाही फेर के ले गया, —–हो 
सिपाही नूं मारी इट्ट —-हो 
भावें रो ते भावें पिट्ट। —-हो 


साहनूं दे लोहड़ी, तेरी जीवे जोड़ी! 
साहनूं दे दाणे तेरे जीण न्याणे!! 

‘पा नी माई पाथी तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी
हाथी उत्ते जौं तेरे पुत्त पोते नौ! 
नौंवां दी कमाई तेरी झोली विच पाई 
टेर नी माँ टेर नी 
लाल चरखा फेर नी! 
बुड्ढी साह लैंदी है 
उत्तों रात पैंदी है 
अन्दर बट्टे ना खड्काओ 
सान्नू दूरों ना डराओ! 
चार क दाने खिल्लां दे 
पाथी लैके हिल्लांगे 
कोठे उत्ते मोर सान्नू 
पाथी देके तोर!        

कंडा कंडा नी कुड़ियो
कंडा सी 
इस कंडे दे नाल कलीरा सी 
जुग जीवे नी भाबो तेरा वीरा नी, 
पा माई पा,
काले कुत्ते नू वी पा 
काला कुत्ता दवे वधाइयाँ, 
तेरियां जीवन मझियाँ गाईयाँ, 
मझियाँ गाईयाँ दित्ता दुध, 
तेरे जीवन सके पुत्त, 
सक्के पुत्तां दी वदाई, 
वोटी छम छम करदी आई।’

और मेरे पसंदीदा थे

जहां से लोहड़ी मिल जाती थी वहाँ
कंघा बी कंघा
एह घर चंगा

और जहां से ना मिले

हुक्का बी हुक्का
एह घर भुक्खा

हम किसी के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि हमें कानून के अनुसार चलना चाहिए: खड़गे

आज जब सीबीआई प्रमुख पद से हटाये गए आलोक वर्मा ने स्वयं ही इस्तीफा दे दिया है तब मलिकार्जुन खडगे जी का ब्यान संदेहास्पद है। कुछ बातें संदेह उपजातीं हैं। क्या आलोक वर्मा की बहाली कांग्रेस की सोची समझी चाल थी? कहीं नलिनी चिदम्बरम की गिरफ्तारी तो आलोक वर्मा के निलम्बन के आड़े नहीं आ रही थी? आज जब नलिनी को मद्रास हाई कोर्ट से बेल मिल गयी है तो खडगे जी के स्वर क्यों एक दम नर्म पड़ गए? कुछ तो गड़बड़ है

सेलेक्शन कमेटी की बैठक के बाद सीबीआई चीफ आलोक वर्मा को उनके पद से हटा दिया गया. यह फैसला 2-1 से लिया गया. कमेटी में शामिल विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस फैसले पर असहमति जताई थी जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सुप्रीम कोर्ट के जस्ट‍िस ए. के. सीकरी ने इसका समर्थन किया था. सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा को बहाल करते हुए कहा था कि उन्हें हटाए जाने की प्रक्रिया गलत थी.

कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खड़गे ने पूर्व सीबीआई प्रमुख आलोक वर्मा पर कहा- बैठक बुलाए बिना, निदेशक को हटा दिया गया. बैठक बुलाने के बाद भी, सभी दस्तावेज समिति के समक्ष प्रस्तुत नहीं किए गए. सीवीसी की रिपोर्ट के आधार पर ही कार्रवाई की गई. इसमें जस्टिस पटनायक की रिपोर्ट शामिल नहीं थी.

मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा- हम किसी के पक्ष में नहीं हैं, लेकिन हम चाहते हैं कि हमें कानून के अनुसार चलना चाहिए. हम आलोक वर्मा का बचाव नहीं कर रहे हैं. सवाल नियुक्ति और समाप्ति की प्रक्रिया के बारे में है. दोनों पक्षों को सुना जाना चाहिए. केवल एक रिपोर्ट देखी गई और निर्णय लिया गया.

सीवीसी को कोई अधिकारी नहीं चाहता था कि सीबीआई चीफ को हटाए. सि‍लेक्शन कमेटी सीबीआई चीफ का चुनाव करती है और सि‍लेक्शन कमेटी ही उन्हें हटा सकती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आलोक वर्मा ने पद संभाल लिया था. कोर्ट ने आदेश दिया था कि वह कोई नीतिगत फैसले नहीं लेंगे, लेकिन उन्होंने आते ही कार्यवाहक सीबीआई चीफ के एम नागेश्वर राव के आदेश को पलटते हुए उनके किए ट्रांसफर रद्द कर दिए थे.

बताया गया कि नागेश्वर ने जिनके ट्रांसफर किए वे आलोक वर्मा से जुड़े लोग थे. बैठक के दौरान खड़गे ने कहा कि वर्मा को दंडित नहीं किया जाना चाहिए और उनका कार्यकाल 77 दिन के लिए बढ़ाया जाना चाहिए, क्योंकि इस अवधि के लिए वर्मा को छुट्टी पर भेजा गया था. यह दूसरा मौका था जब खड़गे ने वर्मा को पद से हटाने पर आपत्ति जताई. सूत्रों के मुताबिक बैठक के दौरान जस्टिस सीकरी ने कहा कि वर्मा के खिलाफ कुछ आरोप हैं, इस पर खड़गे ने कहा था, ‘आरोप कहां हैं’?’

नलिनी चिदम्बरम को शारदा चिटफंड मामले में मद्रास उच्च न्यायालय से 4 हफ्तों की अग्रिम जमानत

न्यायमूर्ति जी. के. इलान्तिरैयन ने नलिनी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उन्हें चार हफ्ते की अंतरिम जमानत दी

मद्रास उच्च न्यायालय ने पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी नलिनी को शारदा चिट फंट मामले में सीबीआई की गिरफ्तारी से शनिवार को अंतरिम सुरक्षा दे दी. उन्हें यह सुरक्षा तब तक दी गई है जब तक उन्हें पश्चिम बंगाल में एक अदालत से अग्रिम जमानत नहीं मिल जाती.

न्यायमूर्ति जी. के. इलान्तिरैयन ने नलिनी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अंतरिम आदेश पारित किया. उन्होंने नलिनी को चार हफ्ते की अंतरिम जमानत दी और उन्हें यहां एगमोर के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष आत्मसमर्पण करने और जमानत देने के निर्देश दिए. इसके बाद उन्हें पश्चिम बंगाल में अदालत का रुख करने और नियमित अग्रिम जमानत हासिल करने के निर्देश दिए गए.

वहीं विशेष लोक अभियोजक (प्रवर्तन निदेशालय) जी. हेमा ने याचिका का विरोध किया और दलील दी कि अदालत को नलिनी की याचिका पर सुनवाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि यह मामला उसके अधिकार क्षेत्र का नहीं है. ईडी ने धन शोधन निरोधक कानून के तहत इस मामले में प्रवर्तन मामला प्राथमिकी रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज की थी.

सरकार ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ के लिए केंद्रीय एजेंसियों का कर रही है दुरुपयोग

वरिष्ठ वकील नलिनी ने गिरफ्तारी की आशंका से यह याचिका दायर की. इससे एक दिन पहले सीबीआई ने कोलकाता की एक कोर्ट में उनके खिलाफ आरोपपत्र दायर किया जिसमें कहा गया है कि उन्होंने शारदा समूह की कंपनियों से 1.4 करोड़ रुपए प्राप्त किए. ये कंपनियां चिटफंड घोटाले में शामिल हैं.

नलिनी ने अपनी याचिका में कहा कि यह राशि पॉजीटिव टीवी के संबंध में मनोरंजन सिंह की तरफ से शारदा रियलिटी लिमिटेड ने वैध भुगतान किया था. उन्होंने कहा कि कथित चिटफंड घोटाले के संबंध में शारदा समूह के मालिक सुदिप्तो सेन और उनकी कंपनियों के खिलाफ सीबीआई के पूर्व आरोपपत्रों में उनका नाम नहीं है.

नलिनी की ओर से पेश वकील ने कहा,‘पूर्ववर्ती आरोपपत्र के विपरीत 11 जनवरी को सीबीआई ने आईपीसी के तहत साजिश समेत अन्य अपराधों के लिए पश्चिम बंगाल के समक्ष छठा पूरक आरोपपत्र दायर किया जिसमें घोटाले में उनके शामिल होने का आरोप लगाया गया.’

उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ के कारण उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ झूठ मामले दायर करके केंद्रीय एजेंसियों का दुरुपयोग कर रही है. सीबीआई ने आरोप लगाया था कि नलिनी ने सेन और अन्य आरोपियों के साथ मिलकर शारदा समूह की कंपनियों के फंड का गबन करने और धोखाधड़ी करने की साजिश रची.

राष्ट्रपति की आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी कोटा बिल को मंजूरी

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने सामान्य श्रेणी में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए 10 फीसदी कोटा बिल को मंजूरी दे दी है. इसके साथ ही अब सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में सामान्य वर्ग के परिवार जिनकी आमदनी 8 लाख रुपए सालाना से कम है वो 10 फीसदी आरक्षण हासिल कर सकेंगे. आर्थिक तौर पर पिछड़े सवर्णों को दस फीसदी आरक्षण दिए जाने वाले बिल पर राष्ट्रपति की मुहर लगते ही अब ये बिल कानून बन गया है.

रिपोर्ट्स के मुताबिक एक हफ्ते में इसका लाभ भी उठाया जा सकेगा. इस दौरान सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के जरिए एक हफ्ते के भीतर कानून से जुड़े प्रावधानों को अंतिम रूप दिया जाएगा.

दरअसल, नरेंद्र मोदी कैबिनेट ने 7 जनवरी को सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को नौकरी और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण देने के फैसले पर मुहर लगाई थी. 8 जनवरी को लोकसभा में संविधान का 124वां संशोधन विधेयक 2019 पेश किया गया. उसी दिन इसे लोकसभा में पास करवा लिया गया. इसके समर्थन में 323 वोट पड़े.

अगले ही दिन 9 जनवरी को इस बिल को राज्यसभा में लाया गया. इसके लिए राज्यसभा की बैठक को एक दिन के लिए बढ़ा दिया गया था. राज्यसभा में भी इस बिल को हरी झंडी मिल गई थी. राज्यसभा में इस बिल के पक्ष में 165 वोट पड़े थे, जबकि विरोध में 7 वोट रहे. दोनों सदनों से बिल पास होने के बाद इसे आखिरकार राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई है.

3.5 करोड़ की कमाई के साथ द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर ने की अछि शुरुआत

नई दिल्ली: बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर और अक्षय खन्ना की फिल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ शुक्रवार (11 जनवरी) को सिनेमाघरों में रिलीज हो हुई. सच्‍ची घटना पर आधारित इस फिल्‍म को दर्शकों ने काफी पसंद किया है और यही वजह है कि इस ने पहले ही दिन बॉक्स ऑफिस पर हंगामा मचा दिया है. यह फिल्म भारतीय नीति विश्लेषक संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर, द मेकिंग एंड एनमेकिंग ऑफ मनमोहन सिंह’ पर आधारित है. उन्होंने इसे पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के जीवन में हुई घटनाओं के आधार पर लिखा था. संजय बारू उनके मीडिया सलाहकार भी रहे हैं. हंसल मेहता ने इस किताब पर फिल्म बनाई है और डायरेक्शन विजय रत्नाकर गुट्टे ने किया है

बॉक्स ऑफिस इंडिया के अनुसार इस फिल्म ने अपने रिलीज के पहले दिन लगभग 3.5 करोड़ रुपये की कमाई करने में सफलता हासिल की है. गौरतलब है कि अपने ट्रेलर के रिलीज के बाद से ही यह फिल्म विवादों में घिर चुकी थी. फिल्म को लेकर कई नेताओं के बयान भी सामने आए थे. यहां तक कि ‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ के ट्रेलर पर प्रतिबंध लगाने की याचिका भी दिल्ली हाइकोर्ट में दायर की गई थी, जिसे बाद में कोर्ट ने खारिज कर दिया था.

‘द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर’ की कहानी की बात की जाए तो यह फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और गांधी परिवार के बीच रिश्तों पर आधारित है या यह कह लें कि यह फिल्म न्यूक्लियर डील को लेकर पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और गांधी परिवार के बीच जो विवाद थे उसी पर आधारित है. राजनीति में दिलचस्प रखने वालों लोगों के लिए ये एक जबरदस्त फिल्म है, लेकिन राजनीति से दूर रहने वालों को शायद ही यह फिल्म ज्यादा समक्ष में आए.

फिल्म में अभिनय की बात की जाए, तो सभी किरदारों ने जबरदस्त भूमिका निभाई है. डॉ. मनमोहन सिंह की भूमिका में अनुपम खेर और सोनिया गांधी की भूमिका में सुजैन बर्नर्ट के अलावा संजय बारू के किरदार में अक्षय खन्ना ने तो मानो फिल्म में जान फूंक दी हो. फिल्म में अक्षय खन्ना संजय बारू के किरदार में है, जो मनमोहन सिंह के मीडिया सलाहकार थे. फिल्म में अक्षय आपको स्टोरी सुनाते नजर आएंगे. अक्षय खन्ना का किरदार फिल्म की जान है. 

मकर संक्रांति को प्रात: आदित्य ह्रदय स्तोत्र का करें पाठ

नई दिल्ली: हिंदू धर्म के प्रमुख त्यौहारों में से एक मकर संक्रांति पूरे देश में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. इस दिन भगवान सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं, इसलिए इसे मकर संक्रांति कहा जाता है. हिंदू धर्म में सूर्य की पूजा की जाती है और उन्हें सूर्य देवता के रूप में पूजा जाता है, जो पृथ्वी पर सभी जीवित प्राणियों का पोषण करते हैं. इस बार मकर मकर संक्रांति के पर्व पर एक खास योग बन रहा है. साल 2019 में मकर संक्रांति सर्वार्थ सिद्धि योग में मनाया जायेगा.

खत्म होगा मलमास
सूर्य के मकर राशि में आने से मलमास समाप्त होगा, जिससे मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाएंगे. सूर्य जब मकर, कुंभ, मीन, मेष, वृष और मिथुन राशि में सूर्य रहता है, तब ये ग्रह उत्तरायण होता है. जब सूर्य शेष राशियों कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक और धनु राशि में रहता है, तब दक्षिणायन होता है. 

ऐसे करें पूजा
मकर संक्रांति पर सुबह जल्दी उठें और स्नान करें.
संभव हो तो तीर्थ स्नान पर स्नान करें, इससे पुण्य की प्राप्ति होती है. 
स्नान के बाद तांबे के लोटे में लाल फूल और चावल डालकर सूर्य को जल चढ़ाएं. 
मंदिर में गुड़ और काले तिल का दान करें. ये शुभ होता है. 
भगवान को गुड़-तिल के लड्डू का भोग लगाएं और भक्तों को प्रसाद वितरित करें. 

आदित्य ह्रदय स्तोत्र का करें पाठ
ज्योतिष के अनुसार, सूर्य के मकर राशि में प्रवेश पर उसकी किरणों से अमृत की बरसात होने लगती है. इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. इसलिए मकर संक्रांति पर सूर्य की पूजा का विशेष महत्व है. ऐसे में अगर भाषा व उच्चारण शुद्ध हो तो आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ अवश्य करें क्योंकि यह एक बहुत ही फलदायक रहेगा. 

इस मंत्र का करें जाप
सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम: का जाप 108 बार करें, लाभ होगा. 

बीएसपी और एसपी के नेताओं के प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा है, वे जो करना चाहते हैं उन्हें करने का अधिकार है: राहुल गांधी

हालांकि एसपी-बीएसपी के इस गठबंधन में दो सीटें छोटी पार्टियों के लिए छोड़ी गई हैं. जबकि अमेठी और रायबरेली की दो सीटें कांग्रेस पार्टी के लिए छोड़ना तय किया गया है. हालांकि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं है.

बीएसपी-एसपी गठबंधन पर चहुं ओर से प्रतिक्रियाएँ आ रहीं हैं कांग्रेस की ओर से आने वाली प्रतिक्रियाएँ संभावित ही हैं। बसपा सुप्रीमो ने जहां अपनि पत्रकार वार्ता में कांग्रेस पर दोषारोपण करते हुए कई बातें कहीं और अपना विरोध जताया वहीं उन्होने अमेठी और रायबरेली की सीट पीआर गठबंधन द्वारा की भी प्रत्याशी न उतरे जाने की बात कह अपने गठबंधन के कुछ रोशदान खुले रखने की ओर संकेत दिया है। जहां आज कांग्रेस के दिग्गजों में भरी निराशा व्याप्त थी वहीं राहुल गांधी के शब्द बहुत नपे तुले और संजीदा थे।

एसपी और बीएसपी लोकसभा चुनाव 2019 में गठबंधन के तहत उत्तर प्रदेश की 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. दोनों पार्टियों ने लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन का ऐलान किया है. इस गठबंधन पर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा है कि एसपी और बीएसपी जो करना चाहते हैं, उन्हें वो करने का अधिकार है.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यूएई के दौरे पर है. दुबई में उन्होंने कहा ‘कांग्रेस पार्टी के पास उत्तर प्रदेश के लोगों को देने के लिए बहुत कुछ है. बीएसपी और एसपी के नेताओं के प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा है, वे जो करना चाहते हैं उन्हें करने का अधिकार है.’

राहुल गांधी ने कहा ‘बीएसपी और एसपी ने एक राजनीतिक निर्णय लिया है. यह हम पर है कि उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को कैसे मजबूत किया जाए. हम अपनी पूरी क्षमता के साथ लड़ेंगे.’

दुबई में पाकिस्तान को लेकर राहुल गांधी ने कहा  ‘मैं पाकिस्तान के साथ शांतिपूर्ण संबंध के समर्थन में हूं, लेकिन मैं पाकिस्तानी के जरिए निर्दोष भारतीयों पर की जा रही हिंसा को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करूंगा.’

दूसरी तरफ एसपी-बीएसपी के गठबंधन में दो सीटें छोटी पार्टियों के लिए छोड़ी गई हैं. जबकि अमेठी और रायबरेली की दो सीटें कांग्रेस पार्टी के लिए छोड़ना तय किया गया है. हालांकि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं है.

वहीं इस गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किए जाने के बारे में मायावती ने कहा कि कांग्रेस के सालों के शासन के दौरान गरीबी, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार में इजाफा हुआ. उन्होंने कहा कि सरकार बदलती है लेकिन नीतियां नहीं बदलती. पहले भी रक्षा सौदे में भ्रष्टाचार होता था और अब भी हो रहा है.

शायद यह अंतिम शब्द नहीं है: चिदंबरम

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पी चिदंबरम ने कहा- शायद यह अंतिम शब्द नहीं है, चुनाव के दृष्टिकोण के अनुसार कुछ पुनर्विचार होगा

अखिलेश माया के 38-38 के फार्मूले पर जहां भाजपा खेमे में मिलीजुली प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है वहीं कांग्रेस में तो बिलकुल हताशा वाली स्थिति है। एक के बाद एक कांग्रेस के दिग्गज नेता ब्यान दे रहे हैं की यह अंतिम वाक्य नहीं है। भाजपा और खासकर मोदी को सत्ता से दूर रखने के लिए जब सभी दलों का यही मत है तो चुनाव लड़ने को लेकर कोई कैसे अलग रह सकता है? कुछ को उम्मीद है की गठबंधन तो चुनावों के पश्चात भी तो किए जा सकते हैं तो फिर निराश क्यों हुआ जाये। परंतु प्रतक्ष्य: चेहरे उतरे हुए और वाणी धीमी है।

साल 1993 में एक साथ चुनाव लड़ने के 25 साल बाद समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने शनिवार को एकबार फिर से आगामी लोकसभा चुनाव साथ में लड़ने का ऐलान कर दिया. एसपी मुखिया अखिलेश यादव और बीएसपी सुप्रीमो ने लखनऊ में सांझा प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित कर इस बात का ऐलान किया. एसपी और बीएसपी आगामी लोकसभा चुनाव में गठबंधन के तहत उत्तर प्रदेश की 38-38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे. दो सीटें छोटी पार्टियों के लिए छोड़ी गई हैं जबकि अमेठी और रायबरेली की दो सीटें कांग्रेस पार्टी के लिए छोड़ना तय किया गया है. हालांकि कांग्रेस इस गठबंधन में शामिल नहीं है.

एसपी-बीएसपी गठबंधन पर कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा- शायद यह अंतिम शब्द नहीं है, चुनाव के दृष्टिकोण के अनुसार कुछ पुनर्विचार होगा. सही मायने में यूपी में व्यापक आधार वाला गठबंधन बनाया जाएगा. अगर जरूरत पड़ी तो कांग्रेस पार्टी अपने बल पर चुनाव लड़ेगी.

‘भले ही हमारा मुश्किल वक्त चल रहा है, लेकिन हमें नजरअंदाज करना बड़ी भूल होगी.’अभिषेक मनु सिंघवी

भले ही माया- अखिलेश का गठबंधन हो गया हो परंतु इतिहास गवाह है की राष्टवादी ताकतों को रोकने के लिए और सत्ता प्राप्ति हेतु कांग्रेस चुनाव पश्चात भी गठजोड़ कर सकती है, जनता को पुन: चुनाव में न धकेलने की बात कह कर।

2019 के लोकसभा चुनावों के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी में गठबंधन का ऐलान हो चुका है. अखिलेश यादव और मायावती ने 2019 के रण को जीतने के लिए एक दूसरे पर भरोसा दिखाया है. हालांकि, महीनों से खबरें महागठबंधन की भी थीं. लेकिन दोनों पार्टियों ने कांग्रेस को किनारे लगा दिया और अब एक साथ मैदान में कूद रही हैं, जाहिर है कांग्रेस अलग-थलग पड़ गई है.

एसपी-बीएसपी गठबंधन पर कांग्रेस को लगता है कि अगले चुनावों में उसे नजरअंदाज करना बड़ी भूल होगी. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने संभावित गठबंधन पर सवाल पूछे जाने पर शुक्रवार को कहा कि ‘भले ही हमारा मुश्किल वक्त चल रहा है, लेकिन हमें नजरअंदाज करना बड़ी भूल होगी.’

सूत्रों के मुताबिक, सिंघवी ने कहा कि सभी विपक्षी पार्टियों का सबसे बड़ा उद्देश्य केंद्र में बीजेपी और उसकी तानाशाही सरकार को हटाना होना चाहिए. उन्होंने आगे ये भी जोड़ा कि चूंकि सबका यही मानना है तो उन्हें लगता है कि भविष्य में उनका सामंजस्यपूर्ण गठबंधन जरूर होगा.

इसी तर्ज पर उत्तर प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव बक्शी ने भी कहा कि पार्टी लोकसभा चुनावों में अकेले ही लड़ने को तैयार थी. उन्होने कहा कि ‘हमारे पास लोकसभा में अकेले 45 सीटें हैं, जो किसी भी क्षेत्रीय पार्टी से ज्यादा हैं.’ उन्होंने ये भी कहा कि लोकसभा चुनावों में महागठबंधन किसी राष्ट्रीय चेहरे के इर्द-गिर्द होना चाहिए.

बता दें कि हाल ही में मायावती और अखिलेश ने दिल्ली में मुलाकात की थी, जिसके बाद इन संभावनाओं को तूल मिल गया था कि एसपी और बीएसपी लोकसभा चुनावों में गठबंधन कर रही हैं.

इसके बाद शुक्रवार को खबर आई कि माया और अखिलेश शनिवार को दोपहर 12 बजे जॉइंट प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले हैं. इसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि इस पीसी में गठबंधन का ऐलान हो सकता है.

वहीं ये भी कहा जा रहा है कि दोनों पार्टियों के बीच सीट शेयरिंग पर बात बन गई है. खबर है कि दोनों पार्टियां 38-38 सीटों पर कैंडीडेट खड़ा करेंगी. खबर ये भी है कि वो राहुल गांधी और सोनिया गांधी के गढ़ अमेठी और रायबरेली पर अपना कोई उम्मीदवार नहीं उतारेंगी और न ही अपना दल के उम्मीदवार के खिलाफ अपना उम्मीदवार खड़ा करेंगी.