स्वर्णों के लिए कांग्रेस ओर भाजपा एक समान


स्वर्णों ने दिग्विजय को सत्ताच्युत किया था अब शिवराज उर्फ भाजपा की बारी है , नोटा की तैयारी है

स्वर्णों को अपनी मलकीयत समझने वाली भाजपा ने अपना जनाधार खो दिया 


मध्यप्रदेश में सवर्ण समाज द्वारा बुलाया गया भारत बंद का व्यापक असर देखने को मिला. चंबल संभाग में सवर्णों ने पुलिस की गाड़ियों पर पथराव किया. एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ हुए इस बंद की सबसे ज्यादा हलचल भारतीय जनता पार्टी में देखी गई. भिंड में बीजेपी विधायक नरेन्द्र सिंह कुशवाह के पुत्र पुष्पेन्द्र सिंह बंद को सफल बनाने के लिए सवर्ण समाज के साथ सड़क पर उतर आए. रैली निकालने की कोशिश में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया.

वहीं रीवा में वरिष्ठ नेता लक्ष्मण तिवारी ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. बंद की व्यापक सफलता को भारतीय जनता पार्टी के लिए बड़ी चुनौती के तौर पर देखा जा रहा है. राज्य में सवर्णों की नाराजगी को उभारने के पीछे पार्टी के असंतुष्टों का हाथ भी देखा जा रहा है. दो माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में सवर्ण आक्रोश का असर देखने को मिल सकता है. प्रदेश में सवर्णों ने सड़क पर अपनी ताकत का प्रदर्शन पहली बार किया है. लेकिन,2003 के विधानसभा चुनाव में वह अपने वोट से तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को वनवास दे चुकी है.

शिवराज को याद आया राजधर्म कहा, वंचित वर्ग उनकी प्राथमिकता में है

शिव राज कुर्सी की राजनीति में मई के लाल को भूल बैठे

2 अप्रैल के दलित आंदोलन के दौरान बड़े पैमाने पर हुई हिंसा को देखते हुए ग्वालियर-चंबल संभाग में सुरक्षा के बड़े पैमान पर इंतजाम किए गए थे. इस संभाग के अशोकनगर, गुना, भिंड और मुरैना में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव की छिटपुट घटनाएं हुईं. अशोकनगर में प्रदर्शनकारियों ने रेल की पटरी पर बैठकर पटरी जाम करने की कोशिश की. जबलुपर में भी इस तरह की कोशिश सफल नहीं हुई.

उज्जैन जिले में दो वर्ग जरूर आमने-सामने आ गए. राज्य के गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह लगातार हालात पर नजर रखे हुए थे. प्रदर्शनकारियों ने भूपेन्द्र सिंह के बंगले का भी घेराव किया गया था. गृह मंत्री भूपेन्द्र सिंह ने कहा कि बंद के दौरान कोई अप्रिय स्थिति कही निर्मित नहीं हुई है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी जनआशीर्वाद यात्रा के तहत खंडवा जिले में सभाएं कर रहे थे. मुख्यमंत्री के कार्यक्रम के दौरान भी कोई व्यधान की घटना नहीं है. सीएम के यात्रा मार्ग पर सवर्णों ने अपने घर पर एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ बैनर लगा रखे थे.

कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया मैहर में परिवर्तन रैली कर रहे थे. वहां भी सभा और रोड शो में सवर्णों के बंद का असर नहीं दिखा. एट्रोसिटी एक्ट का सवर्णों द्वारा किए जा रहे विरोध के बारे में पूछे गए सवाल पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कोई सीधा जवाब नहीं दिया.

उन्होंने कहा कि सबके मन की बात सुनकर, सबके हित की बात की जाएगी. जब उनसे माई के लाल वाले बयान के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि संबल योजना हर वर्ग के लिए है. मुख्यमंत्री ने कहा कि वे राजधर्म का पालन करेंगे. वहीं भोपाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के पुत्र कार्तिकेय चौहान ने विट्टन मार्केट स्थित अपनी फूलों की दुकान भी नहीं खोली. बुधवार को दमोह में सवर्णों की नाराजगी का शिकार हुए प्रहलाद पटेल ने सफल बंद के बाद कहा कि जरूरी हुआ तो कानून में संशोधन किया जाएगा.

पुलिस के लचीले रवैये के कारण बनी रही शांति

भारत बंद के आह्वान के चलते सीबीएसई और एमपी बोर्ड से मान्यता प्राप्त स्कूलों में छुट्टी का एलान कर दिया गया था. कॉलेज भी बंद रहे. बंद के चलते राज्य के तीस से अधिक जिलों में धारा 144 लागू की गई थी. इसके बाद भी कई स्थानों पर सैकड़ों प्रदर्शनकारी सड़कों पर दिखाई दिए. जलूस की शक्ल में अधिकारियों को ज्ञापन देने गए. पुलिस प्रशासन को डर इस बात का था कि यदि प्रदर्शनकारियों पर किसी तरह का बल प्रयोग किया गया तो पूरे प्रदेश में बड़े पैमाने पर हिंसा फैल सकती है. इंटेलिजेंस इनपुट यह भी था कि भीम अर्मी प्रतिक्रिया स्वरूप सड़कों पर आ सकती है. इस कारण पुलिस ने प्रदेश भर में अंबेडकर प्रतिमा की सुरक्षा बढ़ा दी थी.

पुलिस बल में भी आंदोलन को लेकर दो विचार धाराएं देखने को मिल रही थीं. राज्य के मुख्य सचिव बसंत प्रताप सिंह ने सुरक्षा इंतजामों की समीक्षा के दौरान इस बात की ओर इशारा करते हुए पुलिस अधीक्षकों से कहा था कि प्राथमिकता कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने में दी जाना चाहिए. शहडोल की घटना को पुलिस बल में विपरीत विचारधाराओं के टकराव के तौर पर देखा जा रहा है.

शहडोल में धारा 144 लागू नहीं थे. लोग गांधी चौक पर जमा थे. अचानक लाठी चार्ज हो गया. शहडोल एसपी कुमार सौरभ पर इरादतना हिंसा फैलाने के उद्देश्य से लाठी चार्ज कर गायब हो जाने का आरोप सपाक्स ने लगाया है. शहडोल एसपी हटाए जाने की मांग को लेकर सवर्ण समाज के लोगों ने नेशनल हाईवे जाम कर दिया. कलेक्टर अनुभा श्रीवास्तव ने मामले की जांच मजिस्ट्रेट से कराने का आश्वासन दिया. इसके बाद ही स्थिति कुछ सामान्य हुई.

2003 में दिग्विजय सिंह को सत्ता से बाहर करने में थी सवर्णों की भूमिका

मई के लालों ही ने डिग्गी राजा को सत्ता से बाहर किया था

वर्ष 1998 में लगातार दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में राज्य में लगातार दूसरी बार कांग्रेसी सरकार बनी थी. सरकार बनने के बाद दिग्विजय सिंह ने अपनी सरकार की नीतियों के जरिए सवर्णों की उपेक्षा करना शुरू कर दिया था. वर्ष 2000 तक छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश का ही हिस्सा था. राज्य में विधानसभा की कुल 320 सीटें थीं. इसमें 75 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित थीं. कुल 43 सीटें दलित वर्ग के लिए आरक्षित. 1998 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की जीत की बड़ी वजह आरक्षित सीटों को ही माना जाता था. दिग्विजय सिंह ने वर्ष 2003 के चुनाव का एजेंडा 1998 के नतीजों के बाद से ही तय करना शुरू कर दिया था.

दलित एजेंडा के जरिए उन्होंने सवर्णों के एकाधिकार को समाप्त करने की सरकारी कोशिश तेज कर दी थी. सरकारी सप्लाई और सरकारी ठेके देने में भी आरक्षण लागू कर दिया था. यह व्यवस्था अभी भी जारी है. दिग्विजय सिंह निजी क्षेत्र में भी आरक्षण लागू करना चाहते थे. संवैधानिक मजबूरियों के चलते वे इसे लागू नहीं कर पाए थे. दिग्विजय सिंह को अपने दलित एजेंडा पर इतना भरोसा था कि उन्होंने एक कार्यक्रम में उत्साहित होकर यहां तक कह दिया कि उन्हें सवर्णों के वोटों की जरूरत नहीं है.

वर्ष 2003 का विधानसभा चुनाव हारने के कुछ समय बाद दिग्विजय सिंह ने अपने इस बयान पर सफाई देते हुए कहा था कि जो मैने कहा नहीं था, उसे अखबारों ने हेडलाइन बनाकर छाप दिया. दिग्विजय सिंह के दलित एजेंडा को आदिवासी वर्ग ने भी मान्यता नहीं दी थी. आदिवासी खुद को दलित के साथ जोड़े जाने से नाराज थे. चुनाव नतीजों में दिग्विजय सिंह का दलित एजेंडा कहीं नहीं दिखा था. कांग्रेस अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित सीटों को भी नहीं बचा पाई थी. आदिवासी इलाकों में भी करारी हार का सामना करना पड़ा था. सवर्णों ने खुलकर बीजेपी का साथ दिया था.

बीजेपी और शिवराजके लिए मुसीबत बन गया है ‘कोई माई लाल’

सवर्णों को अपने पक्ष में बांधे रखने के लिए शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में दिग्विजय सिंह सरकार के दिनों की याद वोटरों को दिलाती है. बीजेपी लगातार तीन चुनाव दलित एजेंडा के डर को दिखाकर जीतती रही है. भाजपा की चौथी जीत के रास्ते में बड़ी रुकावट, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का अति उत्साह में कहा गया शब्द कि कौन माई का लाल है जो पदोन्नति में आरक्षण को रोक दे? बना हुआ है.

शिवराज सिंह चौहान ने यह चुनौती अनुसूचित जाति,जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संगठन (अजाक्स) के कार्यकम में दी थी. पहले तो यह माना जा रहा था कि सवर्ण संगठित होकर इसका जवाब नहीं दे पाएंगे. सवर्णों ने धीरे-धीरे संगठित होना शुरू किया. मैं हूं माई का लाल लिखी हुई टोपी लगाकर शिवराज सिंह चौहान का विरोध शुरू करना शुरू कर दिया. स्थिति वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव के जैसी ही बन गई हैं. दिग्विजय सिंह का बयान सवर्णों के वोट नहीं चाहिए और शिवराज सिंह चौहान का बयान कौन माई का लाल है जो पदोन्नति में आरक्षण रोक दे, सवर्णों को एक समान ही लग रहे हैं.

जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है


धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं


जनमाष्टमी यानी कृष्ण के जन्म का उत्सव. कृष्ण के जन्म से दो बिल्कुल कड़ियां अलग जुड़ती हैं. एक ओर मथुरा की काल कोठरी है जहां वासुदेव और देवकी जेल में अपनी आठवीं संतान की निश्चित हत्या का इंतजार कर रहे हैं. दूसरी तरफ गोकुल में बच्चे के पैदा होने की खुशियां हैं. कृष्ण के जन्म का ये विरोधाभास उनके जीवन में हर जगह दिखता है. धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं. और समय-समय पर उनके बारे में जो नई कहानियां गढ़ी गईं उन्हें समझना भी किसी समाजशास्त्रीय अध्ययन से कम नहीं है.

अब देखिए वृंदावन कृष्ण की जगह है, लेकिन वृंदावन में रहना है तो ‘राधे-राधे’ कहना है. ऐसा नहीं हो सकता कि आप अयोध्या में रहकर सिया-सिया, लुंबिनी में यशोधरा-यशोधरा या ऐसा कुछ और कहें. यह कृष्ण के ही साथ संभव है. कान्हा, मुरली और माखन के कथाओं में कृष्ण का बचपन बेहद सुहावना लगता है. लेकिन कृष्ण का बचपन एक ऐसे शख्स का बचपन है, जिसके पैदा होने से पहले ही उसके पिता ने उसकी हत्या की जिम्मेदारी ले ली थी. वो एक राज्य की गद्दी का दावेदार हो सकता था तो उसको मारने के लिए हर तरह की कोशिशें की गईं. बचपन के इन झटकों के खत्म होते-होते पता चलता है कि जिस परिवार और परिवेश के साथ वो रह रहा था वो सब उसका था ही नहीं.

कहानियां यहीं खत्म नहीं होतीं. मथुरा के कृष्ण के सामने अलग चुनौतियां दिखती हैं. जिस राज सिंहासन को वो कंस से खाली कराते हैं उसे संभालने में तमाम मुश्किलें आती हैं. अंत में उन्हें मथुरा छोड़नी ही पड़ती है. महाभारत युद्ध में एक तरफ वे खुद होते हैं दूसरी ओर उनकी सेना होती है. वो तमाम योद्धा जिनके साथ उन्होंने कई तैयारियां की होंगी, युद्ध जीते होंगे. अब अगर कृष्ण को जीतना है तो उनकी सेना को मरना होगा. इसीलिए महाभारत के कथानक में कृष्ण जब अर्जुन को ‘मैं ही मारता हूं, मैं ही मरता हूं’ कहते हैं तो खुद इसे जी रहे होते हैं.

महाभारत से इस्कॉन तक कृष्ण

अलग-अलग काल के साहित्य और पुराणों में कृष्ण के कई अलग रूप हैं. मसलन महाभारत में कृष्ण का जिक्र आज लोकप्रिय कृष्ण की छवि से बिलकुल नहीं मिलता. भारतीय परंपरा के सबसे बड़े महाकाव्य में कृष्ण के साथ राधा का वर्णन ही नहीं है. वेदव्यास के साथ-साथ श्रीमदभागवत् में भी राधा-कृष्ण की लीलाओं का कोई वर्णन नहीं है. राधा का विस्तृत वर्णन सबसे पहले ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है. इसके अलावा पद्म पुराण में भी राधा का जिक्र है. राधा के शुरुआती वर्णनों में कई असमानताएं भी हैं. कहीं दोनों की उम्र में बहुत अंतर है, कहीं दोनों हमउम्र हैं.

इसके बाद मैथिल कोकिल कहे जाने वाले विद्यापति के पदों में राधा आती हैं. यह राधा विरह की ‘आग’ में जल रही हैं. 13वीं 14वीं शताब्दी के विद्यापति राधा-कान्हा के प्रेम के बहाने, शृंगार और काम की तमाम बातें कह जाते हैं. इसके कुछ ही समय बाद बंगाल से चैतन्य महाप्रभु कृष्ण की भक्ति में लीन होकर ‘राधे-राधे’ का स्मरण शुरू करते हैं. यह वही समय था जब भारत में सूफी संप्रदाय बढ़ रहा था, जिसमें ईश्वर के साथ प्रेमी-प्रेमिका का संबंध होता है. चैतन्य महाप्रभु के साथ जो हरे कृष्ण वाला नया भक्ति आंदोलन चला उसने भक्ति को एक नया आयाम दिया जहां पूजा-पाठ साधना से उत्सव में बदल गया.

अब देखिए बात कृष्ण की करनी है और जिक्र लगातार राधा का हो रहा है. राधा से शुरू किए बिना कृष्ण की बात करना बहुत मुश्किल है. वापस कृष्ण पर आते हैं. भक्तिकाल में कृष्ण का जिक्र उनकी बाल लीलाओं तक ही सीमित है. कृष्ण ब्रज छोड़ कर जाते हैं तो सूरदास और उनके साथ बाकी सभी कवि भी ब्रज में ठहर जाते हैं. उसके आगे की कहानी वो नहीं सुनाते हैं. भक्तिकाल के कृष्ण ही सनातन परंपरा में पहली बार ईश्वर को मानवीय चेहरा देते हैं. भक्तिकाल के बाद रीतिकाल आता है और कवियों का ध्यान कृष्ण की लीलाओं से गोपियों और राधा पर ज्यादा जाने लगता है. बिहारी भी जब श्रृद्धा के साथ सतसई शुरू करते हैं, तो ‘मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोए’ ही कहते हैं. इन सबके बाद 60 के दशक में इस्कॉन जैसा मूवमेंट आता है जो उस समय दुनिया भर में फैल रहे हिप्पी मूवमेंट के साथ मिलकर ‘हरे कृष्णा’ मूवमेंट बनाता है.

ईश्वर का भारतीय रूप हैं कृष्ण

कृष्ण को संपूर्ण अवतार कहा जाता है. गीता में वे खुद को योगेश्वर भी कहते हैं. सही मायनों में ये कृष्ण हैं जो ईश्वर के भारतीय चेहरे का प्रतीक बनते हैं. अगर कथाओं के जरिए बात कहें तो वे छोटी सी उम्र में इंद्र की सत्ता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हैं. जीवन भर युद्ध की कठोरता और संघर्षों के बावजूद भी उनके पास मुरली और संगीत की सराहना का समय है. वहीं वह प्रेम को पाकर भी प्रेम को तरसते रहते हैं. यही कारण है कि योगेश्वर कृष्ण की ‘लीलाओं’ के बहाने मध्यकाल में लेखकों ने तमाम तरह की कुंठाओं को भी छंद में पिरोकर लिखा है. उनका यह अनेकता में एकता वाला रूप है जिसके चलते कृष्ण को हम बतौर ईश्वर अलग तरह से अपनाते हैं.

तमाम जटिलताएं

इसमें कोई दो राय नहीं कि कृष्ण की लीलाओं के नाम पर बहुत सी अतिशयोक्तियां कहीं गईं हैं. बहुत कुछ ऐसा कहा गया है जो, ‘आप करें तो रास लीला…’ जैसे मुहावरे गढ़ने का मौका देता है. लेकिन इन कथाओं की मिलावटों को हटा देने पर जो निकल कर आता है वो चरित्र अपने आप में खास है. अगर किसी बात को मानें और किसी को न मानें को समझने में कठिनाई हो तो एक काम करिए, कथानकों को जमीन पर जांचिए. उदाहरण के लिए वृंदावन और मथुरा में कुछ मिनट पैदल चलने जितनी दूरी है. मथुरा और गोकुल या वृंदावन और बरसाने का सफर भी 2-3 घंटे पैदल चलकर पूरा किया जा सकता है. इस कसौटी पर कसेंगे तो समझ जाएंगे कि कौन-कौन सी विरह की कथाएं कवियों की कल्पना का हिस्सा हैं.

कृष्ण के जीवन में बहुत सारे रंग हैं. कुछ बहुत बाद में जोड़े गए प्रसंग हैं जिन्हें सही मायनों में धार्मिक-सामाजिक हर तरह के परिवेश से हटा दिया जाना चाहिए. राधा के वर्णन जैसी कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो महाभारत और भागवत में नहीं मिलती मगर आज कृष्ण का वर्णन उनके बिना संभव नहीं है. इन सबके बाद भगवद् गीता है जो सनातन धर्म के एक मात्र और संपूर्ण कलाओं वाले अवतार की कही बात. जिसमें वो अपनी तुलना तमाम प्रतीकों से करते हुए खुद को पीपल, नारद कपिल मुनि जैसा बताते हैं. आज जब तमाम चीजों की रक्षा के नाम पर हत्याओं और अराजकता एक सामान्य अवधारणा बनती जा रही है. निर्लज्जता, झूठ और तमाम तरह की हिंसा को कथित धर्म की रक्षा के नाम पर फैलाया जा रहा है, ऐसे में कृष्ण के लिए अर्जुन का कहा गया श्लोक याद रखना चाहिए यतः सत्यं यतो धर्मो यतो ह्लीराजर्वं यतः. ततो भवति गोविंदो यतः कृष्णोस्ततो जयः यानी जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है. अंतिम बात यही है कि कृष्ण होना सरस होना, क्षमाशील होना, नियमों की जगह परिस्थिति देख कर फैसले लेना और सबसे ज़रूरी, निरंकुशता के प्रतिपक्ष में रहना है.

Sudha Bhardwaj denies Maharashtra police’s claims, terms letter “concocted”, “fabricated”

Sudha-Bhardwaj


At a press conference in Mumbai on Friday, the Maharashtra Police said that Bharadwaj had written a letter to a certain “Comrade Prakash”.


Activist Sudha Bharadwaj, who was arrested along with four others on 28 August, rejected the Maharashtra Police’s accusation that the accused had “clear links” with Maoists. In a hand-written statement issued on 1 September, Bharadwaj, who is currently under house arrest, said the police had “totally concocted” a letter to implicate her.

“It is a totally concocted letter fabricated to criminalise me and other human rights lawyers, activists and organisations,” the letter read.

Bharadwaj’s statement was shared through her lawyer Vrinda Grover.

At a press conference in Mumbai on Friday, the Maharashtra Police said that Bharadwaj had written a letter to a certain “Comrade Prakash”. The police had also read out passages from seized letters allegedly establishing the links between the Naxals and those arrested.

Bharadwaj, a visiting professor of Law-Poverty and tribal rights at the National Law University (NLU), Delhi, said that the purported letter shown by the police is a “mixture of innocuous”.

She claimed a number of human rights lawyers, activists and organisations were deliberately named to cast a stigma over them, obstruct their work and incite hatred against them.

“I categorically state that I have never given Rs 50,000 to hold any programme in Moga. Nor do I know any Comrade Ankit who is in touch with Kashmiri separatists,” she wrote.

The activist, who is also the general secretary of People’s Union for Civil Liberties (PUCL) in Chhattisgarh, said that she knows Gautam Navlakha as “a senior and respected human rights activist whose name has been mentioned in a manner to criminalise and incite hatred against him”.

Navlakha is journalist and civil rights activist who is also involved with PUCL. He has also served as a convener for International People’s Tribunal for Human Rights and Justice in Kashmir. He was picked up by the Pune Police from New Delhi on the same day as the other four.

Early this week, the police raided the homes of activists and lawyers from five states – Varavara Roa in Hyderabad, Vernon Gonsalves and Arun Ferreira in Mumbai, Bharadwaj in Fariadabad and Navalakha in Delhi. All five were arrested.

Lawyers of the arrested activists slammed the Pune Police for trying to indulge in media trial by publicly sharing sensitive information that is part of investigation.

“What police has done today in the press conference is wrong. Even defence lawyers do not have access to these documents, which the police claim as evidence against accused persons. It is clear that the police is indulging in media trial to put pressure on the judiciary,” Rohan Nahar, lawyer for P Varavara Rao, was quoted as saying by Indian Express.

Vernon Gonsalves’ lawyer Tosif Shaikh, too, backed the “media trial” claim stating that the police does not have strong evidence to prove allegations.

On Friday, ADG (Law and Order), Maharashtra Police, Parambir Singh said at a press conference in Mumbai that the arrests were made only after “we were confident that clear links have been established”.

“Evidence clearly establishes their roles with Maoists,” he said adding that letters exchanged between the activists point to the plotting of a “Rajiv Gandhi-like” incident

तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं: अनिल विज

 

 

अम्बाला- जैन मुनि तरुण सागर जी के निधन पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने व्यक्त किया शोक।

अम्बाला- विज ने कहा समाज को सही दिशा दिखाने में हमेशा याद किया जायेगा तरुण सागर जी का योगदान।

अम्बाला- विज ने कहा- तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं।

Activists had Maoist links, planned to end Modi-raj: Maharashtra police


Activists had Maoist links, planned to end Modi-raj: Maharashtra police


The Maharashtra Police said on Friday there were “clear links” between the five arrested activists and Naxals.

“When we were confident that clear links have been established then only we moved to take action against these people, in different cities. Evidence clearly establishes their roles with Maoists,” ADG (Law and Order), Maharashtra Police, Parambir Singh said at a press conference in Mumbai.

He added that letters exchanged between the activists point to the plotting of a “Rajiv Gandhi-like” incident.

“An email letter, between Rona Wilson and a CPI-Maoist leader, speaks of ending ‘Modi-raj’ with a ‘Rajiv Gandhi-type incident’,” Singh told reporters.

“Case was registered on 8 January about an incident of 31 December 2017 where hate speeches were delivered. Sections were imposed for spreading hatred. Investigation was conducted. Almost all the accused were associated with Kabir Kala Manch,” he was quoted as saying by ANI.

According to the Pune police, speeches made by some arrested activists at the Elgaar Parishad conclave, a day before the bicentennial celebration of the battle of Bhima Koregaon, were one of the triggers for the violence that was gripped Pune on 1 January 2018. The violence left one person dead and ended with Maharashtra shutdown on 3 January called by the Bharipa Bahujan Mahasangh, headed by Prakash Ambedkar, grandson of BR Ambedkar.

The senior police officer added that investigation revealed a big controversy being plotted by Maoist organisations.

“Police has seized “thousands of letters” exchanged between the overground and the underground of Maoists,” the senior police officer said.

“The accused were helping them to take their goals forward,” he said, adding that a terrorist organisation was also involved following which, on 17 May, sections under Unlawful Activities (Prevention) Act were imposed.

According to the police, the letter also sought money for procuring grenade launchers.

The police said that the Central Committee of Maoists never communicates directly with overground workers and instead chooses a network of couriers and password-protected devices to exchange messages.

The ADG said that the Pune police was able to crack the password-protected evidences obtained from the accused containing the messages exchanged between the overground workers and Maoists.

He added that the five activists arrested on Tuesday, 28 August, only after thorough analysis of the evidences over a period of two months.

At the press conference, the ADG also read out passages from the letters obtained from the accused.

House arrest of five activists

The five activists arrested are Varavara Rao (Telangana), Vernon Gonsalves and Arun Pereira (Mumbai), Sudha Bharadwaj (Chhattisgarh), Gautam Navlakha (Delhi).

On Wednesday, 29 August, the Supreme Court issued a notice to the Centre and the Maharashtra government asking them to explain the grounds on which five eminent human rights activists of the country were arrested in a coordinated operation conducted across states.

A three-judge bench comprising Chief Justice Deepak Misra, and Justices AM Khanwilkar and DY Chandrachud, also prevented the police from keeping the five activists into custody but said they can be kept under house arrest.

Hearing a petition filed by historian Romila Thapar, economist Prabhat Patnaik, Satish Deshpande, economist Devaki Jain and human rights activist Maya Daruwala, the apex court observed that “dissent is the safety valve of democracy. If dissent is not allowed then the pressure cooker may burst”.

The petitioners said that the arrests are an attempt “to silence dissent, stop people from helping the downtrodden and marginalised people across the Nation and to instil fear in minds of people”.

“The timing of this action leaves much to be desired and appears to be motivated to deflect people’s attention from real issues,” the petition read.

The apex court has scheduled the next hearing for Thursday, 6 September, by which time both the Centre and the Maharashtra government will have to file their responses.

Who else has been arrested?

The police had also arrested prominent human rights activists like Surendra Gadling, Mahesh Raut, Shoma Sen, Rona Wilson, Sudhir Dhawale besides raiding Harshali Potdar, Jyoti Jagtap, Ramesh Gaychor and Sagar Gorke in June.

The same month Pune police had allegedly recovered a letter mentioning a plan to assassinate Prime Minister Narendra Modi from the house of one of the five persons arrested in connection with the Bhima Koregaon violence.

It also referred to requirement of Rs 8 crore to purchase an M-4 rifle and four lakh rounds to execute the plot. The letter reportedly mentioned Varvara Rao’s name.

Mega NRI Convention on December 15 in Chandigarh

 

Chandigarh:

A Mega NRI Convention is being organized in Chandigarh this year. The Indus Canada Foundation is organizing this convention on the occasion of 550th Jayanti of Nankana Sahib.

Chairman of Indus Canada Foundation Gurinder Sodhi and President Vikram Bajwa announced the program in a joint press conference. They told that the upcoming NRI Convention will be held from December 15 to December 19. The inauguration of this event will be held in Chandigarh. He said that Nankana Sahib Hockey competition will be organized in Shahabad of Haryana, Ludhiana, Jalandhar and Amritsar of Punjab. For this, there will be Pakistan Punjab XI and India Punjab XI teams competing against each other.

They told that Union External Affair Minister Sushma Swaraj, Punjab Chief Minister Capt. Amarinder Singh and Haryana Chief Minister Manohar Lal Khattar have been invited to inaugurate the NRI Convention in Chandigarh.

On December 19, at the closing ceremony of the convention in Amritsar, Union Information and Sports Minister, Vijay Vardhan Rathore has been invited. He will present the prizes to the hockey teams.

Both of them appreciated the efforts of both governments for opening Kartar Pur Border for Nankana Sahib and said that this will strengthen the relations between the two countries.

About 2000 NRIs will take part in the Mega NRI Convention this year.

Maoist crackdown: Kiren Rijiju slams Rahul Gandhi over his tweet on RSS


Congress spokesperson Jaipal Reddy also condemned the raids and arrests saying no human rights activists should be arrested without a case.


Congress president Rahul Gandhi hit out at the Central government on Tuesday over the arrest of prominent activists for suspected Maoist links, saying there was place for only one NGO — the RSS — in the “new India”.

In a major crackdown in connection with the Bhima-Koregaon riots case of January 2018, the Maharashtra Police raided the homes of various activists in several states on Tuesday  and arrested at least five of them.

“There is only place for one NGO in India and it’s called the RSS. Shut down all other NGOs. Jail all activists and shoot those that complain. Welcome to the new India,” Gandhi said in a tweet with the hashtag Bhima Koregaon.

Earlier, Congress spokesperson Jaipal Reddy condemned the raids and arrests saying no human rights activists should be arrested without a case.

“I condemn those arrests in unqualified terms. No human rights activist should be arrested. For that matter, no Indian can be arrested without proper case.

“I defend the rights of everybody, more particularly human rights protesters. They are selfless NGOs, activists, who are obliged to fight the enveloping darkness of dictatorial tendencies,” he told reporters when asked about the arrests of some activists by the Pune police.

The raids took place at 10 places in Mumbai and Pune in Maharashtra, Goa, Telangana, Chhattisgarh, Delhi, and Haryana.

Those arrested include Vernon Gonsalves, Arun Ferreira, Sudha Bharadwaj, and Gautam Navlakha.

Activists Sudha Bharadwaj and Gautam Navlakha have been put under house arrest, while others will be produced before a court in Pune today.

Raids at homes of activists with ‘Maoists links’ across India, several arrested

Outside the house of writer and activist P Varavara Rao in Hyderabad


Police claim the speeches made at the Elgaar Parishad, a day ahead of the bicentennial celebration of the battle of Bhima Koregaon, were one of the triggers to the violence that was witnessed in and around Pune the next day.


In the second such operation in three months, Pune police carried out simultaneous searches at multiple locations across the country and arrested a few prominent activists in connection with its investigations into the alleged Maoist involvement in the organisation of Elgaar Parishad on December 31 last year.

Police claim the speeches made at the Elgaar Parishad, a day ahead of the bicentennial celebration of the battle of Bhima Koregaon, were one of the triggers for the violence that was witnessed in and around Pune the next day.

In an early morning swoop, teams of Pune police landed on the doorsteps of activist and journalist Gautam Navlakha in Delhi, writer and activist P Varavara Rao in Hyderabad, civil rights lawyer Sudha Bhardwaj in Faridabad, activists Vernon Gonzalves and Arun Ferreira in Mumbai, Stan Swamy in Ranchi and Anand Teltumbde in Goa and searched their premises.

Some of them had already been arrested by afternoon, and others were likely to be arrested by the end of the day. Joint Police commissioner with Pune city police Shivaji Bhodke said Bhardwaj and Varavara Rao had been arrested. “More arrests are likely,” he said. The arrested persons are likely to be produced in a city court on Wednesday.

In Goa, writer and civil rights activist Anand Teltumbde, who teaches at the Goa Institute of Management, was the target of Pune police searches. Anand was not at home when the police came looking for him and he was informed about the raid by his institute’s director.

“The house in Goa was locked but they (Pune police team) opened it and carried out a search. I have not been arrested thus far,” Anand told The Indian Express.

 

Vernon Gonzalves’s residence in Mumbai

Today’s searches come about three months after a similar operation on June 6, in which the Pune police had arrested five “urban Maoist operatives” from Delhi, Nagpur and Mumbai. Those arrested at that time included Nagpur University professor Shoma Sen and Delhi-based activist Rona Wilson of the Committee of Release of Political Prisoners.

Others to be arrested in June were Sudhir Dhawale, leader of Mumbai-based Republican Panthers Jati Antachi Chalwal, Nagpur lawyer Surendra Gadling of Indian Association of People’s Lawyers, and Mahesh Raut who had in the past been Prime Minister’s Rural Development Fellow.

Police claim that today’s searches at the six places were a result of the interrogation of these arrested people, who are currently lodged at Yervada central prison in Pune in magisterial custody. They have been charged under the Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA).

While producing them in court a day after their arrests in June, police had claimed to have seized material that pointed to a plan to assassinate Prime Minister Narendra Modi in a”Rajiv Gandhi” -like manner”.

The Elgaar Parishad was organised to commemorate the 200thanniversary of the battle of Bhima Koregaon which happened on January 1 in 1818, in which a British army comprising of a large number of Dalit soldiers is said to have defeated the Peshwas. Every year on January 1, thousands of Dalits assemble in Pune and march to the village of Koregaon Bhima which has a war memorial (Jaystambh) in memory of those who died in that battle.

Among those who spoke at Elgaar Parishad were Gujarat MLA Jignesh Mevani and JNU student Umar Khalid. Police claim their investigations had shown that banned Maoist groups were involved in financing and organising the Elgaar Parishad event.

पीवी सिंधू ने 18वें एशियाई खेलों में रचा इतिहास


रियो ओलंपिक खेलों की रजत विजेता भारत की पीवी सिंधू ने सोमवार को 18वें एशियाई खेलों की बैडमिंटन स्पर्धा के महिला एकल स्वर्ण पदक मुकाबले में पहुंचकर इतिहास रच दिया।


सिंधू भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी बन गयी हैं जिन्होंने एशियन खेलों के फाइनल में प्रवेश पाया है। उन्होंने महिला एकल सेमीफाइनल मुकाबले में भारी उत्साह और भारतीय समर्थकों के सामने दूसरी सीड जापान की अकाने यामागुची के खिलाफ 66 मिनट तक चले रोमांचक मुकाबले को 21-17, 15-21, 21-10 से जीता।

विश्व की तीसरे नंबर की खिलाड़ी सिंधू ने यामागुची की चुनौती को स्वीकारते हुये बराबरी की टक्कर दिखाई। पहला गेम जीतने के बाद दूसरे गेम में हालांकि जापानी खिलाड़ी ने कहीं बेहतर खेल दिखाया और 8-10 से सिंधू से पिछड़ने के बाद लगातार भारतीय खिलाड़ी को गलती करने के लिये मजबूर किया और 11-10 तथा 16-12 से बढ़त बना ली।

सिंधू पर दबाव बढ़ता गया और एक समय यामागुची ने स्कोर 17-14 पहुंचा दिया और फिर 20-15 पर गेम प्वांइट जीतकर 21-15 से गेम जीता और मुकाबला 1-1 से बराबर पहुंचा दिया। निर्णायक गेम और भी रोमांचक रहा जिसमें यामागुची ने आत्मविश्वास के साथ शुरूआत करते हुये 7-3 की बढ़त बनाई।  लेकिन सिंधू लगातार अंक लेती रहीं और 5-10 से पिछड़ने के बाद लंबी रैली जीतकर बढ़त बनाई।

उन्होंने 11 अंकों की सबसे बढ़ी बढ़त ली और 16-10 से यामागुची को पीछे छोड़ा और 20-10 पर मैच प्वाइंट जीतकर निर्णायक गेम और मैच अपने नाम कर लिया। तीसरी वरीय खिलाड़ी के सेमीफाइनल मुकाबला जीतने के साथ ही स्टेडियम में बैठे लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी जीत का स्वागत किया।

सिंधू अब फाइनल में भारत को पहला एशियाड स्वर्ण दिलाने के लिये चीनी ताइपे की ताई जू यिंग के खिलाफ उतरेंगी जिन्होंने दिन के एक अन्य सेमीफाइनल में भारत की सायना नेहवाल को 21-17, 21-14 से पराजित किया।
सायना एशियाई खेलों में महिला एकल का पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं।

स्थिर सरकार, योग्य कार्यपालिका ने बदली बस्तर की तस्वीर, विकास ने यहाँ तो पैर पसार ही दिये


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है.


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है. कुछ समय पहले तक राज्य के बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर सहित लगभग 16 जिलों में नक्सलियों का खुलमखुल्ला तांडव चलता था. केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार भी नक्सलियों के सामने लाचार, विवश और बेसहारा बन कर यह सब देखते रहते थे.सारी मशीनरी नक्सलियों के सामने घुटने टेक देती थी.

30-40 साल बाद एक बार फिर से वही हाथ उठने लगे हैं, एक बार फिर से बंदूकों से गोलियां गरजने लगी हैं, लेकिन अब बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की दिशा बदल गई है. जो आदिवासी पहले कभी नक्सली बन कर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे, वही नक्सली अब छत्तीसगढ़ पुलिस में भर्ती हो कर दूसरे लोगों की जान की रक्षा करने में लग गए हैं. ये वही लोग हैं जो बाकी बचे-खुचे नक्सलियों के खिलाफ भी अब काल बन कर सामने खड़े हो गए हैं. ये लोग समाज की मुख्यधारा में वापस लौट कर समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना पाले हुए हैं.

जो लोग कुछ साल पहले तक नक्सली जुल्म का शिकार थे वो अब सहकारी समिति के माध्यम से पॉस्चराइजेशन प्लांट में दूध बेच कर पैसे कमा रहे हैं. इसके अलावा परम्परागत जैविक खेती कर चावल पैदा कर रहे हैं और मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े व्यापारिक हब को निर्यात भी कर रहे हैं.

जिन सड़कों पर कभी आदिवासी महिलाएं सिर पर लकड़ी लेकर जाती थीं वही महिलाएं अब बेहतरीन सड़कों पर सार्वजनिक यातायात के जरिए गैस का सिलेंडर लेकर जाते हुए देखी जा सकती हैं. गांव की दुकानों और बाजारों में पहले जो वीरानी छाई रहती थी, उन दुकानों और बाजारों में अब रौनक रहती है.

दंतेवाड़ा जिले के बोमड़ा पारा ब्लॉक के जावंगा गांव की एक महिला बुड़िया, गांव की खूबसूरत सड़क के किनारे खड़ी होकर टूटी-फूटी हिंदी में बात करते हुए कहती हैं, मैं अब घर पर ही ज्यादा काम करने लगी हूं. अभी पति के साथ साइकिल से गांव से बाजार आई हूं. पति के साथ खेती में सहयोग करती हूं. दो बच्चे हैं, पांच साल का बेटा है और सात साल की बेटी. दोनों बच्चे स्कूल गए हैं, इसलिए हमलोग बाजार में सामान खरीदने आए हैं. पति जैविक खेती करते हैं. पति का भी सहकारी समिति में कुछ काम था इसलिए हमलोग दोनों एक साथ बाजार आए हैं.’

बुड़िया से पत्रकारों  ने सवाल किया कि आपके लिए राज्य के सीएम रमन सिंह ने क्या-क्या काम किया है तो उस पर बुडिया कहती हैं, ‘राशन अब समय पर मिलने लगा है. पहले हमलोग राशन लेने नहीं जाते थे. अपने खेत का उपजा हुआ चावल ही खाते थे. लेकिन, अब हमें सरकार की तरफ से मदद मिलने लगी है. गांव में बिजली भी आ गई है. 20 से 22 घंटे बिजली रहती है. गांव में ही पानी भी पहुंचने वाला है. कलेक्टर साहेब अक्सर गांव आते रहते हैं. पानी लाने के लिए हमें अब दूर नहीं जाना पड़ता है.’

आतंक की त्रासदी में दशकों जीने को मजबूर ये लोग अब अपने दम पर खड़े हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ देश का अकेला ऐसा राज्य है, जिसमें अनाज का उत्पादन ही नहीं, उत्पादकता भी बढ़ी है. यानी लागत कम, अनाज ज्यादा. यहां के युवाओं को बीपीओ के जरिए रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. यहां के युवा किसी भी दूसरे शहर के लड़के-लड़कियों की तरह फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते मिल जाते हैं.

दंतेवाड़ा के एक बीपीओ में काम करने वाली और दंतेवाड़ा के ही पीजी कॉलेज से एमए पास मीना सेनापति कहती हैं, ‘पहले मेरी कम्यूनिकेशन स्किल अच्छी नहीं थी. मैंने 45 दिनों की बीपीओ ट्रेनिंग ली. मेरे बातचीत करने का तरीका बेहतर हुआ है. मुझे 8 हजार की नौकरी भी मिल गई है.’

दंतेवाड़ा के इसी बीपीओ में काम करने वाली नीता देशमुख कहती हैं, ‘मैं ग्रेजुएट हूं. दंतेवाड़ा में गीदम एक जगह है वहां की रहने वाली हूं. सात महीने पहले मैं इस बीपीओ में आई थी, तब मुझे कुछ नहीं आता था. मेरा सपना था कि मैं वेब डिजायनर बनूं, लेकिन पैसे की कमी के कारण मेरा सपना पूरा नहीं हो रहा था. लेकिन अब मुझे आठ हजार रुपए मिलते हैं, जिससे मैं अपना सपना पूरा कर सकती हूं. पापा राजमिस्त्री का काम करते हैं. मैं चार बहनों में दूसरे नंबर पर हूं. दो बहन की शादी हो चुकी है.’

इसी तरह बछेली की रहने वाली कांति नाग, दंतेवाड़ा की रहनेवाली निधि बैरागी और रवि प्रकाश बीपीओ में काम कर अपना सपना पूरा करना चाहते हैं. इन युवाओं को सरकार की तरफ से रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली हिना सिंह, जिनके पिता नौकरी करने सालों पहले कर्नाटक से दंतेवाड़ा आ गए थे, कहती हैं, ‘मैं एक ट्यूटर हूं. पिछले 21 सालों से ट्यूशन पढ़ाती आ रही हूं. इस बीपीओ के जरिए मुझे फिक्स्ड सैलेरी मिल रही है. पति ड्राइवर का काम करते हैं. यहां से छूटने पर मैं 10वीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाती भी हूं.’

दूसरी तरफ दिव्यांग बच्चों के लिए भी दंतेवाड़ा में एक शानदार मुकबधिर स्कूल चलाया जा रहा है. हाल ही में इस स्कूल में देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दौरा किया था. यहां पढ़ने वाली दंतेवाड़ा के कुआकोंडा ब्लॉक के माड़ेंदा गांव की हड्मा हंस कर कहती हैं, ‘बहरेपन का इलाज नहीं होने पर भी वे इशारों में बात कर लेती थीं पर अब सरकारी इलाज के बाद यह फायदा हुआ है कि दूसरे उनके बारे में क्या कह रहे हैं यह सुन सकती हूं. आम लोगों की तरह संवाद कर सकती हूं.’

आज से कुछ साल पहले तक छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सातों जिलों बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर जिले का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय तारी हो जाता था. कहा जाता था अगर एक तरफ से कोई हिंसक जानवर हमला करे और दूसरी तरफ से नक्सली तो लोग पहले की तरफ भागना पसंद करते थे. यही सोच कर कि जानवर तो सिर्फ एक झटके में मारेगा. तड़पना तो नहीं पड़ेगा.

सालों बाद आज स्थानीय अखबारों में खबर देखने को मिलती है कि इस अप्रतिमरूप से प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हाथ-से-हाथ न दीखने वाले जंगल से घिरे अमुक गांव मे एक-दो नक्सलियों ने मोबाइल छीन लिया. दरअसल स्थानीय मीडिया भी अब नक्सली और औसत अपराधी को समानार्थी समझने लगा है. यह स्थिति चरम वामपंथ जो पिछले 60 सालों में ‘राज्य-पोषित शोषण को हथियार से खत्म करने’ के नाम पर देश के 10-12 राज्यों में लंपटवादी आतंक का पर्याय बन गया था, अब पता चला कि सड़क-छाप गुंडई के रूप में अंतिम सांसें गिन रहा है.

यह सब कुछ संभव कैसे हुआ !

कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी कुछ प्रचार सामग्री (बुकलेट) छापी, जो बाहर से आने वाले किसी भी स्वतंत्र विश्लेषक को उपलब्ध होती है, लेकिन चूंकि यह सरकारी ज्ञान होता है, जिस पर सहज विश्वास करना मुश्किल होता है, लिहाजा तस्दीक के लिए हमारी टीम हाईवे के पास के गांव में निकल गई. सड़क के पास ही कुछ आदिवासी महिलाएं गैस सिलिंडर के साथ दिखीं. उनके चेहरे पर खुशी देखने को मिली. इन महिलाओं से पूछने की कोशिश की तो टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं, ‘सरकार ने दिया है. जलाना आता है का जवाब हंस कर देती हैं, घर जा कर किसी से पूछेंगे.

कैसे स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है प्रशासन?

इस राज्य में एक व्यक्ति और एक पार्टी का शासन पिछले 15 साल से जारी है. छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से युवा आईइएस और आईपीएस अधिकारियों में इस बात की होड़ लगी है कि कौन विकास के नए विचार अमल में लाता है या कौन कानून व्यवस्था को ज्यादा दुरुस्त करता है. विकास के 31 पैरामीटर्स पर कौन जिलाधिकारी इस माह किससे आगे या पीछे रह गया है, इसकी समीक्षा की जाती है. साथ ही, अधिकारियों को तबादले की चाबुक से डराने का खेल यहां नहीं चलता.

सौरभ कुमार सिंह

चार साल से भी ज्यादा समय से दंतेवाड़ा में तैनात 2009 बैच के आईएएस अधिकारी और जिले के डीएम सौरभ कुमार सिंह हमसे बात करते हुए कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि एक आईएएस अधिकारी को काम करने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य ही बने हैं. ये ऐसे राज्य हैं, जहां पर काम करने की संभावना सबसे ज्यादा हैं. किसी भी स्तर के अधिकारी को अगर सच में कुछ कर के दिखाना है तो दो चीजें होनी चाहिए, पहली काम करने के लिए ऐसी परिस्थितियां होनी चाहिए, जो आपके काम को प्रमोट करें. जिसके लिए पोलिटिकल स्टेबलिटी होना बहुत ही आवश्यक है. दूसरा, एक ऐसा एनवायरमेंट होना चाहिए जिससे आप एक निश्चित समय-सीमा में काम कर दिखा सकें. हम अगर बात करें साल 2015 या 2016 की तो जिले में संस्थागत प्रसव रेट 38 प्रतिशत था. आज की तारिख में यह 78 प्रतिशत है. अब महिलाएं अस्पताल में जाकर प्रसव करा रही हैं. ये सब तभी संभव हो पाता है जब आपको एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिले. ये सब छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में ही आपको करने को मिलेगा. ’

सौरभ कुमार सिंह आगे कहते हैं, ‘दंतेवाड़ा में प्राइवेट सेक्टर में पिछले छह महीने में रोजगार डबल हो गए हैं. अगर जिले में योजनाओं की बात करें तो यहां पर एससीए या भारत सरकार की होम मिनिस्ट्री के जरिए जो पैसा आता है उससे कहीं अधिक पैसा दंतेवाड़ा जिले को माइनिंग फंड से मिलता है, जिसमें राज्य शासन ने जो नियम बनाए हैं उसमें ज्यादातर अधिकार जिले के कलेक्टर को दिए हैं. उसी के समकक्ष जिले में जो बड़ी इंडस्ट्री चल रही जैसे एनएमडीसी के सीएसआर का पैसा भी आता है. इन पैसों के इस्तेमाल का अधिकार राज्य शासन ने कलेक्टर को दे रखा है. मेरा मानना है कि सबके अंदर कुछ न कुछ कर के दिखाने की चाहत होती है चाहे वह नेता हों या अधिकारी. हम साल में एक हजार युवक और युवतियों को नौकरी देने का काम करते हैं तो इसमें हमें कौन रोक सकता है. हजारों महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि ली कूपर और रेमंड जैसी कंपनियों से उनके पास सिलाई के ऑफर आ रहे हैं तो इसमें कौन रोक सकता है. चाहे नेता हों या जनता हो या फिर कोई और लोग सकारात्मक चीजों के साथ जुड़ना चाहते हैं.’

‘दंतेवाड़ा जिले में हमलोग यही काम कर रहे हैं. जिले में एक जैविक कैफे चल रहा है, जो किसानों की एक कंपनी चला रही है. हमको हरियाणा, पंजाब की तरह उत्पादकता में नहीं जाना है बल्कि अपने उत्पाद को अलग बनाना है. अगर रोजगार की बात करें तो हम गुरुग्राम और नोएडा से कंपेयर नहीं कर सकते हैं, पर अगर यहां के युवाओं को हम 8 हजार रुपए दे कर रोजगार दे रहे हैं तो क्या यह कम है. जिले की 150 महिला समूह ऑटो चला रही हैं. हमने सड़कें तो बना दी लेकिन लोगों के आय का लेवल इतना नहीं है कि वह ऑटो खरीद सकें. उनको हम ऑटो प्रोवाइड कर रहे हैं. 210 महिला समूह एक अलग जाति का कड़कनाथ मुर्गे का प्रजनन कर रहे हैं.’

दंतेवाड़ा के डीएम जहां जिले में विकास के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं वहीं जिले के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव नक्सलियों के मंसूबे को तहस-नहस कर नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ने का काम कर रहे हैं. और यह सब तब शायद संभव नहीं होता अगर राज्य सरकार के द्वारा युवा पुलिस अधिकारियों के लिए रणनीतिक परिवर्तन न किया होता.

इस प्रश्न पर कि सड़कों पर इस बीहड़ जंगल में भी पुलिस नहीं दिखाई दे रही है और क्या कहीं यह आत्ममुग्धता तो नहीं है या फिर पुलिस का अभाव है, दंतेवाडा के युवा पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव कहते हैं, ‘नहीं अब पुलिस आप को ही नहीं, नक्सलियों को भी दिखाई नहीं देती बस उन्हें गोली की आवाज सुनाई देती है और उनके समझने के पहले वे इसका शिकार हो चुके होते हैं. आपको बता दें कि सीआरपीएफ छत्तीसगढ़ में 2003-04 में आई. इससे पहले हमलोग यहां की भाषा को नहीं जानते थे. यहां के लोगों के कल्चर के बारे में हमलोगों को पता नहीं रहता था. छत्तीसगढ़ पुलिस में भी जो लोग थे वह छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों के थे. स्थानीय भागादारी बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने काफी काम किया है. इसमें एक है सरेंडर और रिहैब पॉलिसी, जिसके अंदर कोई भी ग्रामीण या नक्सली सरेंडर करता है या पुलिस को मदद करता जिससे हम दूसरे नक्सलियों को पकड़ पाते हैं. ऐसे लोगों को एसपी के रिकंमडेशन पर आईजी सिपाही के तौर पर भर्ती कर लेते हैं. धीरे-धीरे काफी नक्सलियों ने सरेंडर किया है. अगर बात सिर्फ दंतेवाड़ा जिले की करें तो यहां पर 70 से 80 सिपाही सरेंडर्ड नक्सली हैं.’

अभिषेक पल्लव

अभिषेक पल्लव आगे कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने कुछ साल पहले डिस्टिक रिजर्व ग्रुप के नाम से एक लोकल ग्रुप बनाया. इसमें बस्तर निवासियों को अपने जिले में ही पुलिस की नौकरी करने के लिए पद निकाले गए थे. ऐसे 200 पद दंतेवाड़ा जिले में भी रिलिज किए गए थे. ये दो ग्रुप हैं, जिससे लोकल लोग हमलोगों को मिलते हैं. हमारी इस नीति को सीआरपीएफ ने भी हाल ही में आजमाया है. पहली बार सीआरपीएफ ने बस्तरिया बटालियन के लिए 750 बस्तर के ही युवक और युवतियों को नियुक्त किया. हमारे लिए लोकल लोगों का पुलिस में आना काफी फायदेमंद रहा. इन लोगों और उनके परिवार के जरिए हमें काफी सूचनाएं मिलती हैं. इनकी सटीक सूचनाओं और नक्सलियों के काम करने की गतिविधि को उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रहे हैं.

दंतेवाड़ा के रहने वाले योगेश मानवी, जो आठवीं पास हैं, 1998 में ही नक्सली बन गए थे. साल 2012 में आत्मसमर्पण के बाद आज 25 हजार की पगार पर छत्तीसगढ़ पुलिस में नौकरी कर रहे हैं. इसी तरह परशुराम आलमी 2007 में नक्सली बन गए थे. साल 2015 में सरेंडर के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस में नक्सलियों को खत्म करने या मुख्यधारा में लौटने में मदद कर रहे हैं. आलमी पढ़े-लिखे नहीं हैं. इसी तरह 5वीं पास पोडिया तेलम 2001 में नक्सली बन गए थे. 2014 में समाज की मुख्यधारा में लौट कर परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं.

सुरक्षा सिद्धांतों में इस रणनीति को अदृष्टिगोचर सिक्योरिटी कहते हैं. पहले जहां जंगल के ऊंचे टीलों से ये जवानों को शिकार बनाते थे. आज पुलिस का उन ठिकानों पर कब्जा है. डरकर नक्सली या तो मौत के डर से मुख्यधारा में जुड़ने लगे हैं या फिर अंदर जंगलों में तिल-तिल कर मर रहे हैं. अब अदिवासियों पर भी उनका खौफ नहीं रहा है और सामूहिक रूप से उन्हें नकारने की क्षमता भी आ गई है. पुलिस अधीक्षक से यह मुलाकात अचानक ही थी लेकिन बड़े भरोसे से उन्होंने कहा ‘आप जहां हैं सिर्फ थोड़ी दूर घने जंगलों में नजर डालें आपको पुलिस की अदृश्य लेकिन सतर्क मुश्तैदी का एहसास हो जाएगा. और यह बात तब सच लगी जब उनके साथ हमारी टीम घने जंगलों से चित्रकोट तक का सफर किया.

कुलमिलाकर कुछ साल पहले तक राज्य के नक्सल प्रभावित 16 से 18 जिलों में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं थी. खासकर बस्तर संभाग के सभी जिलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन को समझने वाला दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता था. इसका कारण था कि यहां पर नक्सलियों के द्वारा एक समानांतर सरकार चलाई जाती थी, लेकिन समय बदला, सरकार बदली और ब्यूरोक्रेसी ने भी अपनी जिम्मेदारी को बखुबी निभाया,जिसका नतीजा आज पूरे देश के सामने है. इन इलाकों में न केवल नक्सली घटनाओं में कमी आई बल्कि इन इलाकों के लोगों के जीवन स्तर से लेकर शिक्षा और स्वरोजगार में भी काफी सुधार देखने को मिल रहा है.