यूपी शिक्षक भर्ती: सपा शासन में हुई 12460 शिक्षकों की भर्ती भी रद्द


गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है और रद्द करने लायक  है।


हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले की गाज समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए 12 हजार 460 सहायक अध्यापकों के चयन पर गिरी है। न्यायालय ने बोर्ड ऑफ बेसिक एजूकेशन द्वारा किए गए इन चयनों को रद्द कर दिया है। इन भर्तियों के लिए 21 दिसंबर 2016 को विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया शुरू की गई थी।

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि उक्त भर्तियां यूपी बेसिक एजूकेशन टीचर्स सर्विस रूल्स 1981 के नियमों का पूरी तरह पालन करते हुए नए सिरे से काउंसलिग करा के पूरी की जाएं। नई चयन प्रकिया के लिए वही नियम लागू किए जाएंगे जो कि पूर्व में प्रकिया प्रारम्भ करते समय बनाए गए थे। न्यायालय नई प्रकिया पूरी करने के लिए तीन माह का समय दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने तमाम अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल दर्जनों याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाओं में 26 दिसंबर 2016 के उस नोटिफिकेशन को खारिज किए जाने की मांग की गई थी, जिसके तहत उन जिलों में जहां कोई रिक्ति नहीं थी, वहां के अभ्यर्थियों को काउंसलिंग के लिए किसी भी जिले को प्रथम वरीयता के तौर पर चुनने की छूट दी गई थी।

याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर की दलील थी कि 26 दिसंबर 2016 के नोटिफिकेशन द्वारा नियमों में उक्त बदलाव भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद किया गया जबकि नियमानुसार एक बार भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। वहीं राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का तर्क था कि नियमों में बदलाव इस लिए किया गया था ताकि काउंसलिंग में अधिक संख्या में अभ्यर्थियों को शामिल किया जा सके।

गौरतलब  है कि होई कोर्ट ने 19 अप्रैल 2018 के एक अंतरिम आदेश जारी कर पहले ही सफल अभ्यर्थियों को नियुक्त पत्र देने पर रोक लगा दी थी। गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है और रद्द करने लायक  है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस में बिजली फूंक दी बस सिंधिया-दिग्विजय कैंप के बीच चल रही जंग से होने वाले नुकसान का डर है


बीजेपी भले ही राहुल को ‘कन्फ्यूज़’ करार दे लेकिन मध्यप्रदेश में फ्यूज़ चल रही कांग्रेस में अब करंट दौड़ने लगा है


मध्यप्रदेश में साल 2004 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था. उसके बाद से ही कांग्रेस सत्ता का वनवास झेल रही है. हालांकि मध्यप्रदेश में भी सरकार बदलने की परंपरा देखी जाती रही है. कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस सत्ता में रही है. लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस के ‘दिग्विजय-काल’ के बाद से हालात बदल गए. पहले दिग्विजय सिंह ने दस साल राज किया तो अब शिवराज सिंह पंद्रह साल से सत्ता पर हैं. ‘दिग्विजय-दौर’ के दस साल के बाद जनता ने मालवा के शिवराज को हर पांच साल बाद पांच साल का ‘एक्स्ट्रा बोनस’ देने का काम किया जिससे कांग्रेस का वनवास सरकते-सरकते 15 साल तक पहुंच गया. अब कांग्रेस उसी मालवा से मिन्नतें कर रही है ताकि सत्ता का सूखा खत्म हो.

मालवा-निमाड़ अंचल को सत्ता का गलियारा कहा जाता है. इसकी बड़ी वजह है कि ये एमपी की विधानसभा में सबसे ज्यादा विधायक भेजता है. इस बार भी मध्यप्रदेश में विधानसभा के आर-पार के मुकाबले में मालवा-निमाड़ की बड़ी भूमिका है. मालवा-निमाड़ की 66 में से 56 सीटें बीजेपी के कब्जे में हैं.

सिवनी जिले के बुधनी से शिवराज सिंह चौहान विधायक हैं तो सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता इंदौर का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं अतीत में सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र सखलेचा और कैलाश जोशी जैसे नेता मालवा अंचल से उदीयमान हुए तो आरएसएस को कुशाभाऊ ठाकरे जैसा चेहरा मिला.

यही वजह है कि मालवा-निमाड़ अंचल अपनी राजनीतिक महत्ता की वजह से बीजेपी और कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह  इंदौर से महा जनसंपर्क अभियान की शुरुआत करते हैं तो सीएम शिवराज सिंह चौहान मालवा से ही जन आशीर्वाद यात्रा शुरू करते हैं. मालवा का आध्यात्मिक और राजनीतिक महत्व ही समझते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उज्जैन में महाकाल का आशीर्वाद लिया तो झाबुआ में आदिवासियों के सामने परिवार के इतिहास को याद दिलाया.

लेकिन राहुल के मध्यप्रदेश दौरे ने इस बार राजनीति के समीकरणों को बदलने का काम किया है. राहुल के मालवा दौरे से पहले तक बीजेपी विधानसभा चुनाव को साल 2013 के ‘एक्शन-रीप्ले’ की तरह ही देख रही थी क्योंकि बीजेपी के सामने कांग्रेस अपनी अंदरूनी गुटबाजी के चलते कमजोर नजर आ रही थी. लेकिन राहुल के दौरे से मध्यप्रदेश की सियासत में गर्मी आ गई है. राहुल की वजह से 15 साल से सोई कांग्रेस की उम्मीद भी जगी है. राहुल को सुनने के लिए उमड़ी भीड़ में कांग्रेस अब सत्ता विरोधी लहर देखने लगी है.

रोड शो और रैलियों में उमड़ी भीड़ से उत्साहित राहुल ने मध्यप्रदेश के किसानों से वादा किया है कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो सिर्फ 10 दिनों में किसानों का कर्जा माफ किया जाएगा और ऐसा न करने वाले सीएम को ग्यारहवें दिन बदल दिया जाएगा.

 

भले ही राहुल गांधी की ‘कन्फ्यूज़ियत’ पर बीजेपी खुश हो लेकिन राहुल का अंदाज उन किसानों में उम्मीद जगा सकता है जिन्होंने मंदसौर किसान आंदोलन देखा. अब कांग्रेस के लिए किसान आंदोलन की फसल काटने का समय है. वैसे भी मंदसौर के निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत से वहां की जनता का मिज़ाज समझा जा सकता है. तभी राहुल को मध्यप्रदेश में एंटी इंकंबेंसी दिखाई दे रही है और वो कह रहे हैं कि इस बार मध्यप्रदेश में वोट स्विंग हो सकता है जिसका फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा.

हालांकि साल 2013 में मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर काफी बड़ा था. बीजेपी को जहां 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे तो कांग्रेस को 36.38 प्रतिशत वोट ही मिले थे. ऐसे में राहुल गांधी का आशावादी नजरिया संदेह पैदा करता है.

लेकिन, राहुल के दौरे से कांग्रेस अब बीजेपी के मुकाबले में जरूर खड़ी हो गई है. पहले मंदसौर किसान आंदोलन ने शिवराज सरकार की नींद उड़ाने का काम किया तो अब राहुल का मालवा-निमाड़ अंचल का दौरा बीजेपी के लिए चिंता की लकीरें खींच गया है.  उज्जैन, धार, महू, खरगोन, झाबुआ में रैली तो इंदौर में रोड शो,  छप्पन दुकान में नाश्ता, कारोबारियों से बातचीत और पत्रकारों से बिना लाग-लपेट के बातचीत तो स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दे उठाकर राहुल ने कांग्रेस को दौड़ में बना दिया है. राहुल कह रहे हैं कि वो फ्रंट पर खेल रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को राहुल के हिट-विकेट का डर नहीं है. बस डर उन्हें सिंधिया-दिग्विजय कैंप के बीच चल रही जंग से होने वाले नुकसान का है. बहरहाल, बीजेपी भले ही राहुल को ‘कन्फ्यूज़’ करार दे लेकिन मध्यप्रदेश में फ्यूज़ चल रही कांग्रेस में अब करंट दौड़ने लगा है.

मैं भी चाहती हूं कि अयोध्या में बने राम मंदिर: अपर्णा यादव


अपर्णा यादव ने कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए हमें जनवरी तक मामले की सुनवाई शुरु होने का इंतजार करना चाहिए


राम मंदिर मुद्दे को लेकर मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने बयान दिया है. गुरुवार को अपर्णा यादव ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उन्हें भी राम मंदिर बनने का इंतजार है.

उन्होंने कहा कि मुझे सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास है. मेरा विचार है कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए. अपर्णा यादव गुरुवार को बाराबंकी के देवा शरीफ पहुंची थी. यहां उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए हमें जनवरी तक  मामले की सुनवाई शुरु होने का इंतजार करना चाहिए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक जब उनसे पूछा गया कि क्या मस्जिद नहीं बनना चाहिए, तो उन्होंने कहा कि, ‘मैं तो मंदिर के पक्ष में हूं, क्योंकि रामायण में भी राम जन्मभूमि का उल्लेख आता है.’ वहीं जब उनसे बीजेपी का साथ देने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, ‘ मैं राम के साथ हूं.’

वहीं चाचा शिवपाल के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में शिवपाल के अलग होने से असर पड़ेगा क्योंकि पार्टी को मजबूत करने में उनका भी अहम योगदान रहा है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला तो अखिलेश या शिवपाल में से वह अपने चाचा शिवपाल और नेता जी मुलायम सिंह यादव को चुनेंगी.

कानून या फिर बिल लाकर महज माहौल बनाने की तैयारी हो रही है या फिर मंदिर बनेगा


पार्टी की रणनीति देखकर यही लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम ही राम मंदिर मुद्दे पर अगले कदम और अगली रणनीति तय करेगा.


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए प्राइवेट मेंबर बिल लाने का ऐलान कर दिया है. राज्यसभा सांसद सिन्हा ने प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कहते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती समेत कई विपक्षी पार्टी के नेताओं को चुनौती देते हुए उनका स्टैंड पूछा है.


Prof Rakesh Sinha

@RakeshSinha01

जो लोग @BJP4India @RSSorg को उलाहना देते रहते हैं कि राम मंदिर की तारीख़ बताए उनसे सीधा सवाल क्या वे मेरे private member bill का समर्थन करेंगे ? समय आ गया है दूध का दूध पानी का पानी करने का .@RahulGandhi @yadavakhilesh @SitaramYechury @laluprasadrjd @ncbn


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा की तरफ से किए गए इस ऐलान के बाद से मंदिर मुद्दे पर सियासत गरमा गई है. आखिरकार राकेश सिन्हा ने इस तरह का बयान क्यों दिया. क्या राकेश सिन्हा ने अपनी मर्जी से बयान दिया या फिर उनके पीछे बीजेपी की भी सोच है या फिर संघ के लाइन को ही आगे बढ़ाते हुए सिन्हा ने एक कदम आगे बढ़ा दिया है.

सिन्हा को संघ का समर्थन!

दरअसल, राकेश सिन्हा संघ विचारक हैं. मीडिया में सघ की बात प्रमुखता से रखने वाले राकेश सिन्हा को संघ के आलाकमान का वरदहस्त प्राप्त है. संघ के समर्थन की बदौलत ही उन्हें राज्यसभा भेजा गया है. ऐसे में उनकी तरफ से प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर रास्ता साफ करने के लिए कदम उठाए जाने के पीछे संघ का ही हाथ माना जा रहा है.

गौरतलब है कि सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी की अपनी सालाना बैठक में साफ-साफ शब्दों में सरकार से अयोध्या विवाद के समाधान करने और वहां राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त करने के लिए रुकावटों को दूर करने के लिए कानून बनाने की मांग कर दी है. संघ परिवार के मुखिया की तरफ से आए इस बयान के बाद भगवा ब्रिगेड इस मुद्दे पर अब और आक्रामक हो गया है.

वीएचपी और साधु-संतों का कड़ा रुख

विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी के अलावा साधु-संतों ने भी अपना रुख कड़ा कर लिया है. संतों की उच्चाधिकार समिति की बैठक में पहले ही इस बात का ऐलान किया जा चुका है कि राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर देश भर में जनजागरण कार्यक्रम चलाने के अलावा उनकी तरफ से सांसदों को उनके ही संसदीय क्षेत्र में मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपा जाएगा. वीएचपी के साथ मिलकर साधु-संतों की योजना हर राज्य मे गवर्नर से भी मिलने की है. आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर भी कानून बनाने की मांग की जाएगी.

दूसरी तरफ, संतों के एक वर्ग ने 3 और 4 नवंबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में राम मंदिर निर्माण के लिए माहौल बनाने के लिए एक सम्मेलन करने जा रहा है. यह सम्मेलन अखिल भारतीय संत समिति की तरफ से कराया जा रहा है जिसका नेतृत्व जगद्गुरू रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य जी कर रहे हैं. संतों की मांग है कि सरकार कानून बनाकर या फिर अध्यादेश के जरिए अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी तक टाल देने के बाद आरएसएस, वीएचपी और कई दूसरे हिंदू संगठनों की तरफ से केंद्र की मोदी सरकार पर राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने का दबाव बनाया जा रहा है.

भागवत के बयान से भगवा ब्रिगेड को मिला मौका

खासतौर से मोहन भागवत के बयान ने बीजेपी के उन नेताओं को भी खुलकर बोलने का मौका दिया है जो इस मुद्दे पर प्रखर रहे हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी राम मंदिर के मुद्दे पर बयान देकर माहौल गरमा दिया है.

बीजेपी के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के अलावा बीजेपी के यूपी के अंबेडकर नगर से लोकसभा सांसद हरिओम पांडे ने भी प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कही है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि इस बार अयोध्या में दीवाली के दौरान वे राम मंदिर निर्माण से जुड़ी अच्छी खबर लेकर जाएंगे.

उधर, शिवसेना ने भी इस मसले पर सहयोगी बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है. शिवसेना पहले से ही राम मंदिर मुद्दे को लेकर बीजेपी सरकार पर निशाना साध रही है. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे 25 नवंबर को अयोध्या भी जा रहे हैं.शिवसेना नेता संजय राउत का कहना है कि ठाकरे अयोध्या पहुंचकर मोदी जी और बीजेपी सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए याद दिलाएंगे. शिवसेना का मानना है कि अगर कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे तो हमें एक हजार साल इंतजार करना पड़ेगा. ऐसे में जल्द से जल्द कानून के जरिए सरकार इस मसले पर आगे बढ़े.

विपक्षी दलों का बीजेपी पर हमला

लेकिन, विपक्षी दलों की तरफ से इस मुद्दे पर बीजेपी पर प्रहार हो रहा है. विपक्षी दल अगले चुनाव को ध्यान में रखकर मूल मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश के तौर पर मंदिर मुद्दे को देख रहे हैं. बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा के ऐलान पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि राम या अल्लाह वोट करने नहीं आएगें, जनता को ही वोट करना होगा.

उधर, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा ने कहा है कि ‘कांग्रेस का स्टैंड क्लीयर है, हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानेंगे. राकेश सिन्हा यह नौटंकी बंद करें.’ॉ

सरकार के लिए सहयोगियों को साधना मुश्किल

लेकिन, बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी ही सहयोगी दलों से है. सहयोगी जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि, ‘अगर न्यायपालिका समाधान का रास्ता खोज रही हो तो उस पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए.’

संघ परिवार, साधु-संतों, सहयोगी शिवसेना के अलावा अपनी ही पार्टी के सांसदों की मांग के बाद बीजेपी पर भी राम मंदिर मुद्दे को लेकर दबाव बन रहा है. लेकिन, जेडीयू जैसी सहयोगी की तरफ से आ रहे बयान और गठबंधन की राजनीति की मजबूरी को बीजेपी भी समझ रही है. पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा के इस बयान में इस बात की झलक भी मिल रही है.

पात्रा ने इस मसले पर कहा, ‘प्राइवेट मेंबर बिल पार्लियामेंट की संपत्ति होती है, भविष्य में इस विषय पर बिल संसद में आएगा, इसपर मैं अभी से टिप्पणी करूं यह उचित नहीं होगा. मगर इसमें कोई संशय नहीं है कि जहां तक राम मंदिर निर्माण का सवाल है बीजेपी एक मात्र ऐसी पॉलिटिकल पार्टी है जिसने 1989 के पालनपुर के कांक्लेव में यह प्रतिज्ञा की है कि मंदिर का निर्माण हमारा लक्ष्य है, यह हमारा ध्येय है, हमारा लक्ष्य है और यह हमेशा ध्येय रहेगा.’

संबित पात्रा के बयान से साफ है कि बीजेपी के सांसद भले ही प्राइवेट मेंबर बिल की बात करें लेकिन, अभी पार्टी की तरफ से इस मुद्दे को गरमाए रखने से उसे ही फायदा होगा. पार्टी की तरफ से पात्रा ने आधिकारिक तौर पर इस बिल के पक्ष में कुछ नहीं कहा, लेकिन, उनकी तरफ से विपक्षी दलों को राम विरोधी दिखाना बीजेपी की रणनीति को दिखा रहा है.

विपक्ष पर पात्रा का प्रहार

पात्रा ने विपक्षी दलों को कठघड़े में खड़ा करते हुए कहा, ‘अगर आप एक सूची बनाएं और एक तरफ यह लिखें की मंदिर बनाने वाले और दूसरी तरफ लिखें मंदिर नहीं बनाने वाले, तो मंदिर बनाने वालों में विश्व हिंदू परिषद, संघ, बीजेपी और साधु-संतों का नाम आएगा. लेकिन, मंदिर नहीं बनाने वालों में पहले कांग्रेस का नाम आएगा, जिसने राम के वजूद को ही नकारा है. समाजवादी पार्टी का नाम आएगा, बीएसपी का नाम आएगा और इसके अलावा वो तमाम विपक्षी पार्टी जो हमारी उलाहना करने का काम कर रही हैं उन सबका नाम आएगा.’

हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि संघ परिवार की तरफ से मुद्दा गरमाए जाने के बावजूद बीजेपी की तरफ से इस मुद्दे पर आगे बढ़ना आसान नहीं होगा, क्योंकि पार्टी को अपने सहयोगियों को भी साधना है. पार्टी की रणनीति देखकर यही लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम ही राम मंदिर मुद्दे पर अगले कदम और अगली रणनीति तय करेगा.

राम मंदिर पर प्राइवेट बिल ला सकती है बीजेपी: राकेश सिन्हा


राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है. जिसमें राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने के बारे में कहा गया है


नयी दिल्ली, 1 नवम्बर, 2018:

चुनावी मौसम के बीच एक बार राम मंदिर का मुद्दा गरमा गया है. राम मंदिर को लेकर बीजेपी पर कांग्रेस लगातार निशाना साधती रही है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है. अब इस मुद्दे पर बीजेपी को विपक्ष लगातार घेर रहा है.

राज्यसभा सांसद और संघ विचारक राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है. जिसमें राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने के बारे में कहा गया है. सिन्हा ने पूछा है कि अगर बीजेपी राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आती है तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, लालू यादव, सीताराम येचुरी और मायावती का स्टैंड क्या होगा? सिन्हा ने विपक्ष के नेताओं को इस पर अपना स्टैंड साफ करने के लिए कहा है.


Prof Rakesh Sinha

@RakeshSinha01

Will @RahulGandhi @SitaramYechury @laluprasadrjd Mayawati ji support Private member bill on Ayodhya? They frequently ask the date ‘तारीख़ नही बताएँगे ‘ to @RSSorg @BJP4India ,now onus on them to answer


सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मुद्दे पर सुनवाई अगले साल जनवरी तक के लिए टाल दी है. मामले की सुनवाई टलने के बाद साधु-संतों में भी नाराजगी देखने को मिल रही है.

मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प को नकारा नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर इस मुद्दे को सर्वसम्मति से हल नहीं किया जा सकता है, तो फिर दूसरे विकल्पों को भी खंगाला जा सकता है.

राहुल गांधी ग्रामोफोन की तरह अटक गए हैं, लोग उनके दावों का मजाक उड़ाते हैं: मोदी


डिजिटल इंडिया का विपक्ष की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग जिन जिन मुद्दों पर जोर जोर से झूठ बोलने लगे तब समझना चाहिए कि हम अपने काम में सफल रहे हैं


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दावों पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि ग्रामोफोन की तरह उनकी पिन अटक गई है जिसके कारण वह ऐसी बचकानी बाते कर रहे हैं और लोग उनके दावों का मजाक उड़ाते हैं.

मोदी ने कहा कि इनको समझ नहीं आ रहा है कि वक्त बदल गया है, जनता को मूर्ख समझना बंद करें. ‘इस प्रकार की बचकानी बातें किसी के गले नहीं उतरती है और लोग मजाक उड़ाते हैं.’

बीजेपी के एक कार्यकर्ता द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि इसकी चिंता न करें. पहले ग्रामोफोन के रिकार्ड में पिन अटक जाती है तो कुछ ही शब्द बार बार सुनाई देती है. ऐसे ही कुछ लोग भी होते हैं जिनकी पिन अटक जाती है. एक ही चीज दिमाग में भर जाती है जो बार बार एक ही बात बोलते हैं. ऐसे में इन बातों का मजा उठाना चाहिए, आनंद लेना चाहिए.

मोदी ने कहा, ‘चुनाव की आपाधापी में इन चीजों का आनंद उठाएं.’

प्रधानमंत्री ने ‘मेरा बूथ, सबसे मजबूत’ कार्यक्रम के तहत नरेंद्र मोदी ऐप के जरिए मछलीशहर, महासमंद, राजसमंद, सतना, बैतूल के बीजेपी कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जितना कीचड़ उछालोगे, उतना कमल खिलेगा. कांग्रेस को सच नहीं, झूठ पर भरोसा है.

सत्ता में आने पर मध्यप्रदेश में मोबाइल फोन बनाने के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष के बयान के संबंध में पूछे जाने पर मोदी ने सवाल किया, ‘मोबाइल का आविष्कार क्या 2014 के बाद हुआ था? 2014 के पहले भी मोबाइल थे, जिन लोगों ने इतने साल राज किया, उनके समय में सिर्फ दो ही मोबाइल फैक्टरियां क्यों थीं?’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने इतने साल शासन किया उनके समय में सिर्फ दो मोबाइल फैक्टरियां थी और पिछले चार सालों में 100 से ज्यादा कंपनियां मोबाइल फोन बना रही हैं.

वन रैंक, वन पेंशन लागू करने के राहुल गांधी के बयान के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज ये लोग वन रैंक, वन पेंशन की बातें कर रहे हैं. दशकों से यह मामला लंबित था, तब क्यों कुछ नहीं किया. ‘जब हमने वन रैंक, वन पेंशन लागू कर दी, तब जाकर वे कह रहे हैं कि हम देंगे.’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि इतने दशकों तक इनकी सरकार रही, सेना के जवान 40 सालों से मांग कर रहे थे, उसे सुनने की फुर्सत नहीं थी. जब हमने इसे कर दिया तब परेशान हो रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में उनसे मिलने गए सेवानिवृत्त सैनिकों के एक समूह से कहा कि सत्ता में आने पर कांग्रेस ’वन रैंक, वन पेंशन’ (ओआरओपी) के मु्द्दे पर किए अपने सभी वादों को पूरा करेगी. इससे पहले राहुल ने भोपाल में आयोजित कार्यकर्ता संवाद के दौरान कहा था, ‘आपके हाथ में जो मोबाइल है, वह ‘मेड इन चाइना’ है, यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो हम ‘मेड इन मध्य प्रदेश’ मोबाइल बनाएंगे.

डिजिटल इंडिया का विपक्ष की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग जिन जिन मुद्दों पर जोर जोर से झूठ बोलने लगे तब समझना चाहिए कि हम अपने काम में सफल रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज डिजिटल इंडिया कदम कदम पर सुदूर गांव तक लोगों की मदद को खड़ा है. डिजिटल इंडिया के माध्यम से लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आ रहा है.

उन्होंने कहा कि जब लोग और सरकार मिलकर काम करते हैं तभी सकारात्मक परिणाम आता है. सरकार कहती है कि पराली मत जलाओ, पराली मत जलाओ. लेकिन यह जनभागीदारी से ही संभव होगा.

गरीबी उन्मूलन के अपने सरकार के प्रयासों का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि पहले की सरकारों की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उनके लिये गरीबी शब्द चुनावी वोट बैंक का हिस्सा थी और उनके राजनीतिक फायदे में थी. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार गरीब कल्याण के कार्य में जुटी है.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का हमेशा से ही आग्रही रहा हूं. सरकार भी इसी दिशा में काम कर रही है.’ उन्होंने कहा कि आज कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से करोड़ों भारतीयों का न सिर्फ जीवन आसान हुआ है, बल्कि उनका भविष्य भी संवर रहा है.

मोदी ने कहा कि पहले अगर किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी होती थी, तो गांव में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन आज वाई-फाई और ऑनलाइन स्टडी ने युवाओं की इस सबसे बड़ी परेशानी का हल कर दिया है.

उन्होंने कहा कि मनरेगा की योजना तो पहले से चली आ रही है. लेकिन पहले क्या होता था. अपने पैसे लेने के लिए कई-कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. ऊपर से बिचौलिया भी कुछ पैसे मार लेता था, लेकिन आज टेक्नोलॉजी की मदद से मजदूरी आसानी से मिल जाती है. आज छात्रों के खाते में छात्रवृति पहुंच जाती है.

प्रधानमंत्री ने अपने संवाद के दौरान गुजरात में सरदार बल्लभभाई पटेल की प्रतिमा राष्ट्र को समर्पित करने का उल्लेख किया और कहा कि यह उनके मन को संतोष देने वाला पल था.

मोदी ने नरेंद्र मोदी एप के जरिए पार्टी कोष में चंदा एकत्र करने के अभियान का भी जिक किया.

तालिबानी दौर में प्रवेश कर चुकी है नक्सली विचारधारा, अपने गढ़ में सड़कों को दुश्मन मानते हैं नक्सली


दूरदर्शन कैमरापर्सन अच्युतानंद साहू की हत्या ने यहां पत्रकारों के लिए मौत का डर बहुत करीब ला दिया है- खासकर उन लोगों के लिए जो छत्तीसगढ़ राज्य के बाहर से असाइनमेंट पर माओवादी युद्धक्षेत्र में जाते हैं


छत्तीसगढ़ में एक पत्रकार की हत्या नक्सलवाद और भारत सरकार के बीच चल रही लड़ाई में नया मोड़ है. कश्मीरी आतंकवादियों और उत्तर-पूर्व के विद्रोहियों के उलट छत्तीसगढ़ के माओवादियों ने कभी पत्रकारों को सीधे निशाना नहीं बनाया है- अतीत में दो उदाहरणों को छोड़कर. लेकिन मंगलवार सुबह दूरदर्शन कैमरापर्सन अच्युतानंद साहू की हत्या ने यहां पत्रकारों के लिए मौत का डर बहुत करीब ला दिया है- खासकर उन लोगों के लिए जो छत्तीसगढ़ राज्य के बाहर से असाइनमेंट पर माओवादी युद्धक्षेत्र में जाते हैं. साहू के अलावा, दो पुलिसकर्मी- सब इंस्पेक्टर रूद्र प्रताप और असिस्टेंट कांस्टेबल मंगलू की मौत हो गई.

कभी वह वामपंथी चरमपंथियों (एलडब्ल्यूई) की विचारधारा ही थी, जो उन्हें दूसरे आतंकवादी गुटों से अलग करती थी, क्योंकि मीडिया में उनके खिलाफ आलोचनाओं के बावजूद अतीत में कभी भी पत्रकारों पर हमला नहीं किया गया था. नक्सल आज भी खुद को बौद्धिक रूप से सर्वश्रेष्ठ और अपनी ‘क्रांतिकारी’ विचारधारा के लिए कठोरता से प्रतिबद्ध मानते हैं.

लेकिन ऐसा लगता है कि विचारधारा का अंत हो गया है. संघर्ष क्षेत्र बस्तर पर करीबी नजर डालने पर- यह हमें दो स्थानीय पत्रकारों- नेमिचंद जैन और साई रेड्डी की याद दिलाता है, जिन्हें 2013 में माओवादियों ने बेरहमी से मार डाला था. स्थानीय हिंदी दैनिक समाचार पत्रों के लिए काम करने वाले संवाददाता जैन की फरवरी में सुकमा जिले के तोंगपाल में, जबकि हिंदी पत्रकार रेड्डी की दिसंबर में बीजापुर जिले के बसगुडा में हत्या की गई थी.

माओवादियों ने दावा किया था कि पत्रकारों की इसलिए हत्या की गई क्योंकि क्योंकि वे ‘पुलिस के खबरी’ थे- यह एक ऐसी सफाई है जो हमेशा एलडब्ल्यूई कैडर द्वारा दी जाती है, जब वो हमला कर किसी निर्दोष नागरिक या आदिवासी ग्रामीण की हत्या करते हैं या जन अदालत के नाम से मशहूर अपनी ‘कानून की अदालत’ में मुकदमा चलाते हैं.

साई रेड्डी के मामले में, सीपीआई (माओवादी) की दक्षिण क्षेत्रीय समिति ने दिसंबर 2013 में एक बयान जारी किया था और 51 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार की हत्या को न्यायसंगत ठहराते हुए आरोप लगाया था कि वह दक्षिण बस्तर से सीपीआई (माओवादी) का खात्मा करने के लिए पुलिस के साथ मिलकर काम कर रहे थे. 27 सितंबर 2017 को बीजापुर प्रेस क्लब में तीस सेकेंड की एक ऑडियो क्लिप जारी की गई थी, जिसमें एक कथित बातचीत में एक पुरुष आवाज जंगल में माओवादी घटनाओं की रिपोर्टिंग करने जाने वाले पत्रकारों को मार डालने की धमकी दे रही है. हालांकि, इस ऑडियो क्लिप की प्रामाणिकता की पुष्टि नहीं की जा सकी.

उस जगह का मैप जहां पत्रकार पर हमला हुआ.

दंतेवाड़ा के पुलिस अधीक्षक अभिषेक पल्लव और दूरदर्शन के कैमरा असिस्टेंट मोर मुकुट शर्मा के अनुसार जब अच्युतानंद साहू अपने दल के साथ निलवाया जंगल में सड़क से आगे बढ़ रहे थे और अपने असाइनमेंट के सिलसिले में शूटिंग कर रहे थे, तो माओवादियों ने उन पर गोलीबारी शुरू कर दी.

माओवादियों और तालिबानियों में कोई फर्क नहीं है

एलडब्ल्यूई पर काम कर रहे विशेषज्ञ अब माओवादियों को तालिबान आतंकवादियों जैसा ही मानते हैं. आतंकवाद विरोधी विश्लेषक अनिल कांबोज ने फ़र्स्टपोस्ट को बताया, “माओवादियों ने अपनी विचारधारा को बहुत पीछे छोड़ दिया है. वे तालिबान आतंकवादियों से अलग नहीं हैं और उन्हीं के रास्ते पर चल रहे हैं. असल में माओवादी विकास विरोधी हैं. वे चाहते हैं कि स्थानीय लोग शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं, विकास और आधुनिक सुविधाओं से वंचित रहें जिससे कि वे उन पर शासन कर सकें.” वह कहते हैं, “अब माओवादी पत्रकारों को निशाना बना रहे हैं क्योंकि वे उनके खिलाफ और उनके असली मकसद के बारे में लिख रहे हैं. नक्सलियों पर सवाल उठाने वाला कोई भी शख्स उनका दुश्मन है.

सरेंडर कर चुके 28 वर्षीय माओवादी ने फ़र्स्टपोस्ट के साथ एक खास बातचीत में कहा था, ‘मुझे लगता है कि लोग धीरे-धीरे क्रांति की माओवादी विचारधारा के पीछे के झूठ को समझने लगे हैं. यह सिर्फ निर्दोषों का विनाश और हत्या है. हमारी आदिवासी आबादी नक्सली आंदोलन से कुछ हासिल नहीं कर रही है क्योंकि हम उनके द्वारा उनके छिपे मकसद के लिए इस्तेमाल किए जा रहे हैं. अब माओवादी नेता लुटेरे बन चुके हैं.

हताशा में उठाया कदम

विशेषज्ञों के अलावा, छत्तीसगढ़ सरकार भी गहराई से महसूस करती है कि माओवादियों ने दूरदर्शन टीम पर हताशा में हमला किया है, क्योंकि वे दंतेवाड़ा जिले के पलनार गांव से 19 किमी दूर निलवाया वन क्षेत्र में सड़क निर्माण स्थल को सुरक्षा दे रहे थे. अशांत क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण की रक्षा सुरक्षा बलों के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है.

छत्तीसगढ़ पुलिस के विशेष महानिदेशक (नक्सल विरोधी अभियान) डीएम अवस्थी कहते हैं, ‘सरकार के विकास एजेंडे को ध्यान में रखते हुए, पिछले तीन वर्षों में बस्तर में तेजी से सड़कों का निर्माण हुआ है. सुरक्षा बलों के दबाव के साथ इस फैक्टर ने माओवादियों को रक्षात्मक स्थिति में धकेल दिया है. आज का हमला हताशा की कार्रवाई है क्योंकि माओवादी सामली से निलवाया तक सड़क के निर्माण का विरोध कर रहे हैं. हमें घटनास्थल से एक पोस्टर मिला है कि जिसमें चेतावनी दी गई है कि उन लोगों को मौत की सजा दी जाती है, जो जनविरोधी काम करते हैं. उन्होंने मौके पर घेराबंदी की और पत्रकार को गोली मार दी.’

दंतेवाड़ा से जगरगुंडा (सुकमा में) की सड़क का विस्तार मौत का फंदा साबित हुआ है. यहां 2017 में भी माओवादियों ने भेज्जी और बुरकापाल में सड़क निर्माण की सुरक्षा में तैनात सुरक्षा बलों पर हमला किया गया था. जाहिर है कि पुलिस और सुरक्षा बलों के बाद, नक्सली गढ़ों में बनाई गई सड़कें माओवादियों के सबसे बड़े दुश्मन के रूप में उभरी हैं. छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में एलडब्ल्यूई कैडर ने सड़क निर्माण की रक्षा के लिए तैनात सीआरपीएफ जवानों को मार डाला है या आईईडी धमाकों से सड़कों को बर्बाद कर दिया है.

एलडब्लूई सुरक्षा बलों, उनके वाहन, सड़क निर्माण में लगे कर्मचारियों को निशाना बनाने और बस्तर डिवीजन में अशांत क्षेत्रों में निर्मित सड़कों को नुकसान पहुंचाने के लिए आईईडी का इस्तेमाल कर रहे हैं. पिछले कुछ वर्षों में, सीआरपीएफ कर्मियों के हताहत होने की अधिकांश घटनाएं सड़क निर्माण सुरक्षा के दौरान हुई हैं.

इंजेरम-भेज्जी रोड, डोर्नपाल-जागरगुंडा रोड, बीजापुर-बसगुडा रोड इत्यादि जैसी कुछ सड़कों को ‘खूनी सड़क’ कहा जाता है क्योंकि इन सड़कों के निर्माण के दौरान बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों और मजदूरों की हत्या हुई थी. सुकमा जिले में डोर्नपाल-जागरगुंडा रोड पर सबसे अधिक मौतें हुई हैं.

‘केंद्रीय सुरक्षा बलों और पुलिस के कई जवान इंजेरम-भेज्जी रोड के 20 किलोमीटर के विस्तार में शहीद हो चुके हैं. छत्तीसगढ़ पुलिस में बस्तर रेंज के महानिरीक्षक विवेकानंद कहते हैं, “सुकमा से कोंटा तक 76 किलोमीटर लंबे सीमेंट-कंक्रीट रोड का निर्माण एक दशक से अधिक समय तक लटका रहा है, जो अब पूरा हो रहा है.’

यह चुनाव ना होने देने की कोशिश भी हो सकती है

डीएम अवस्थी का कहना है, ‘आज के हमले का छत्तीसगढ़ में आगामी विधानसभा चुनाव के साथ कुछ लेना-देना नहीं है. हमले का मकसद चुनाव रोकना नहीं था, बल्कि सड़क निर्माण का विरोध करना था.’ लेकिन, बस्तर में स्थानीय लोग पुलिस के दावे को स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. एक पखवाड़ा पहले ही माओवादियों ने बस्तर में मतदान का बहिष्कार करने की चेतावनी जारी की थी. 27 अक्टूबर को, माओवादियों ने बीजापुर में सीआरपीएफ के माइन प्रोटेक्शन वाहन (एमपीवी) को धमाके से उड़ा दिया था, जिसमें चार सुरक्षाकर्मी मारे गए.

बस्तर में काम करने वाले एक पत्रकार नाम न छापने की शर्त के साथ कहते हैं, ‘सड़क निर्माण हमेशा एक गंभीर मुद्दा रहा है क्योंकि माओवादी पुरजोर तरीके से विकास का विरोध करते हैं और नहीं चाहते कि दूरदराज के गांवों को जोड़ने वाली सड़कों का निर्माण हो. इसके अलावा, माओवादी छत्तीसगढ़ में चुनाव में गड़बड़ी करना चाहते हैं. उन्होंने पहले से ही चेतावनियां जारी कर दी हैं और ग्रामीणों से 12 नवंबर के मतदान का बहिष्कार करने या नतीजे भुगतने के लिए कहा है. ऐसा पहले भी हुआ है.’

प्रतीकात्मक तस्वीर

यहां तक कि 2013 में पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों से पहले इंटेसिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने चेतावनी दी थी कि छत्तीसगढ़ के माओवादियों ने एलटीटीई से मानव बम बनाने के लिए प्रशिक्षण लिया है और इसका इस्तेमाल चुनाव रैलियों के दौरान राजनीतिक नेताओं को निशाना बनाने के लिए किया जा सकता है.

अतीत में बस्तर में नक्सलियों के खिलाफ अभियान का नेतृत्व करने वाले अनिल कांबोज कहते हैं, ‘चुनावों से पहले, माओवादियों ने इस तरह आईईडी विस्फोटों के माध्यम से आतंक पैदा करने और सुरक्षा बलों पर हमला कर मीडिया का ध्यान खींचने व अपनी ताकत दिखाने के लिए हमला किया है.’

सरदार पटेल की मूर्ति के लोकार्पण

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को सरदार वल्लभ भाई पटेल की विश्वविक्रमी प्रतिमा का लोकार्पण किया.

उन्होंने कहा कि “ये मेरा सौभाग्य कि मुझे बतौर प्रधानमंत्री सरदार पटेल की इस प्रतिमा ‘स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी’ को देश को समर्पित करने का मौक़ा मिला.”

देश को एक सूत्र में बांधने वाले आज़ाद भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल की आज 143वीं जयंती है.

इस अवसर पर गुजरात के गवर्नर, सूबे के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, भाजपा के अध्यक्ष अमित भाई शाह और कुछ विदेशी अतिथि भी मौजूद थे.

सरदार पटेल की इस मूर्ति की ऊंचाई 182 मीटर है जो कि दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है.

लोकार्पण कार्यक्रम की शुरुआत सरदार पटेल की विशाल मूर्ति की डिजिटल प्रस्तुति से हुई. इसके बाद भारतीय वायु सेना के विमानों ने प्रतिमा के ऊपर से फ़्लाई पास्ट किया.

अपने भाषण से पहले नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल की प्रतिमा के शिल्पकार बताये जा रहे राम सुतार और उनके पुत्र अनिल सुतार को भी मंच पर आमंत्रित किया.

नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारत को ‘एक भारत, अखंड भारत’ बनाने का पुण्य काम किया.

अपने संबोधन की शुरुआत नरेंद्र मोदी ने दो नारों के साथ की. उन्होंने कहा, “मैं बोलूंगा सरदार पटेल और आप मेरे साथ बोलेंगे अमर रहें.”

इसके बाद उन्होंने कहा, “देश की एकता, जिंदाबाद-जिंदाबाद.”

विरोध प्रदर्शन

लेकिन आज भी इस इलाके के कुछ लोगों ने विरोध प्रदर्शन किया. भारतीय ट्राइबल पार्टी और भिलीस्तान टाइगर सेना के कार्यकर्ताओं ने डेडियापाडा-राजपिपला सड़क मार्ग को ब्लॉक कर दिया.

ट्राइबल नेता प्रफ़ुल्ल वसावा ने बीबीसी को बताया, “स्टैच्यू के आस-पास के इलाक़ों में बुलाया गया बंद कामयाब रहा है. हमने आसमान में काले गुब्बारे छोड़कर अपना विरोध दर्ज किया है.”

डेडियापाडा के एक किसान गुरजी गुलाबसिंह ने कहा कि उन्हें तो पास के डैम से पानी तक नहीं मिलता. आम जीवन जीना मुश्किल होता है. क्योंकि हम खेतीबाड़ी के लिए बारिश पर निर्भर हैं.

पढ़िए, नरेंद्र मोदी के भाषण की मुख्य बातें:

  • नर्मदा नदी के किनारे पर खड़े होकर मुझे ये कहने में बहुत गर्व हो रहा है कि आज पूरा देश सरदार पटेल की स्मृति में राष्ट्रीय एकता दिवस मना रहा है.
  • भारत सरकार ने भारत के स्वर्णिम पुत्र को सम्मान देने का काम किया है.
  • हम आजादी के इतने साल तक एक अधूरापन लेकर चल रहे थे, लेकिन आज भारत के वर्तमान ने सरदार के विराट व्यक्तित्व को उजागर करने का काम किया है. आज जब धरती से लेकर आसमान तक सरदार साहब का अभिषेक हो रहा है, तो ये काम भविष्य के लिए प्रेरणा का आधार है.
  • इस प्रतिमा को बनाने के लिए हमने हर किसान के घर से लोहा और मिट्टी ली. इस योगदान को देश याद रखेगा.
  • किसी भी देश के इतिहास में ऐसे अवसर आते हैं, जब वो पूर्णता का अहसास कराते हैं. आज वही पल है जो देश के इतिहास में हमेशा के लिए दर्ज हो जाता है, जिसे मिटा पाना मुश्किल है.
  • सरदार साहब का सामर्थ्य तब भारत के काम आया था जब माँ भारती साढ़े 500 से ज़्यादा रियासतों में बंटी थी. दुनिया में भारत के भविष्य के प्रति घोर निराशा थी. निराशावादियों को लगता था कि भारत अपनी विविधताओं की वजह से ही बिखर जाएगा.
  • सरदार पटेल में कौटिल्य की कूटनीति और शिवाजी के शौर्य का समावेश था.
  • कच्छ से कोहिमा तक, करगिल से कन्याकुमारी तक आज अगर बेरोकटोक हम जा पा रहे हैं तो ये सरदार साहब की वजह से है. ये उनके संकल्प से ही संभव हो पाया है.

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  • सरदार साहब ने संकल्प न लिया होता, तो आज गीर के शेर को देखने के लिए, सोमनाथ में पूजा करने के लिए और हैदराबाद चार मीनार को देखने के लिए हमें वीज़ा लेना पड़ता.
  • सरदार साहब का संकल्प न होता, तो कश्मीर से कन्याकुमारी तक की सीधी ट्रेन की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी.
  • ये प्रतिमा, सरदार पटेल के उसी प्रण, प्रतिभा, पुरुषार्थ और परमार्थ की भावना का प्रकटीकरण है.
  • ये प्रतिमा भारत के अस्तित्व पर सवाल उठाने वालों को ये याद दिलाने के लिए है कि ये राष्ट्र शाश्वत था, शाश्वत है और शाश्वत रहेगा.
  • प्रतिमा की ये ऊंचाई, ये बुलंदी भारत के युवाओं को ये याद दिलाने के लिए है कि भविष्य का भारत आपकी आकांक्षाओं का है, जो इतनी ही विराट हैं. इन आकांक्षाओं को पूरा करने का सामर्थ्य और मंत्र सिर्फ और सिर्फ एक ही है- ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’.
  • स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी हमारे इंजीनियरिंग और तकनीकि सामर्थ्य का भी प्रतीक है. बीते क़रीब साढ़े तीन वर्षों में हर रोज़ कामगारों ने, शिल्पकारों ने मिशन मोड पर काम किया है. राम सुतार जी की अगुवाई में देश के अद्भुत शिल्पकारों की टीम ने कला के इस गौरवशाली स्मारक को पूरा किया है.
  • आज जो ये सफ़र एक पड़ाव तक पहुँचा है, उसकी यात्रा 8 वर्ष पहले आज के ही दिन शुरू हुई थी. 31 अक्तूबर 2010 को गुजरात के अहमदाबाद शहर में मैंने इसका विचार सबके सामने रखा था.
  • जब ये कल्पना मन में चल रही थी, तब मैं सोच रहा था कि यहां कोई ऐसा पहाड़ मिल जाए जिसे तराशकर मूर्ति बना दी जाए. लेकिन वो संभव नहीं हो पाया, फिर इस रूप की कल्पना की गई.
  • सतपुड़ा और विंध्य के इस अंचल में बसे आप सभी जनों को प्रकृति ने जो कुछ भी सौंपा है, वो अब आधुनिक रूप में आपके काम आने वाला है.
  • देश ने जिन जंगलों के बारे में कविताओं के ज़रिए पढ़ा, अब उन जंगलों, उन आदिवासी परंपराओं से पूरी दुनिया प्रत्यक्ष साक्षात्कार करने वाली है.
  • सरदार साहब के दर्शन करने आने वाले टूरिस्ट सरदार सरोवर बांध, सतपुड़ा और विंध्य के पर्वतों के दर्शन भी कर पाएंगे.
  • कई बार तो मैं हैरान रह जाता हूँ, जब देश में ही कुछ लोग हमारी इस मुहिम को राजनीति से जोड़कर देखते हैं. सरदार पटेल जैसे महापुरुषों, देश के सपूतों की प्रशंसा करने के लिए भी हमारी आलोचना होने लगती है. ऐसा अनुभव कराया जाता है मानो हमने बहुत बड़ा अपराध कर दिया है.
  • आज देश के लिए सोचने वाले युवाओं की शक्ति हमारे पास है. देश के विकास के लिए, यही एक रास्ता है, जिसको लेकर हमें आगे बढ़ना है.
  • देश की एकता, अखंडता और सार्वभौमिकता को बनाए रखना, एक ऐसा दायित्व है, जो सरदार साहब हमें देकर गए हैं.
  • हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश को बांटने की हर तरह की कोशिश का पुरज़ोर जवाब दें. इसलिए हमें हर तरह से सतर्क रहना है. समाज के तौर पर एकजुट रहना है.

सीबीआई विवाद: अस्थाना को सर्वोच्च नयायालय द्वारा गुरुवार तक गिरफ्तारी से राहत


सीबीआई अपने स्पेशल डायरेक्टर के मामले में अब तक अपने जांच पर कायम है जिसमें अस्थाना को 1 नवंबर 2018 तक छुट्टी पर भेज दिया गया है


सीबीआई विवाद में दिल्ली हाई कोर्ट ने आज एक अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा रिश्वत के मामले में घिरे सीबीआई के नंबर दो ऑफिसर राकेश अस्थाना को अगले गुरुवार तक गिरफ्तार नहीं किया जा सकता. दिल्ली उच्च न्यायालय ने सीबीआई विवाद से जुड़े मामले में ये टिप्पणी की है. सीबीआई अपने स्पेशल डायरेक्टर के मामले में अब तक अपने जांच पर कायम है जिसमें अस्थाना को 1 नवंबर 2018 तक छुट्टी पर भेज दिया गया है. जस्टिस नजमी वजीरी की बेंच ने सीबीआई की जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर क्यों अस्थाना और दूसरे अधिकारियों की एफआईआर पर रिपोर्ट क्यों नहीं जमा की. वहीं हाई कोर्ट ने सीबीआई को गुरुवार से पहले रिपोर्ट फाइल करने का निर्देश दिया है.

दिल्ली उच्च न्यायालय में मनोज प्रसाद के वकील ने कहा कि यह दो हाथी और एक चूहे के बीच की लड़ाई है. बता दें कि मनोज प्रसाद दुबई स्थित एक इंवेस्टमेंट बैंकर हैं जिन पर रिश्वत लेने का आरोप है. मनोज प्रसाद को राकेश अस्थाना केस में 17 अक्टूबर को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था.

सीबीआई के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार के मामले में दिल्ली हाई कोर्ट में सीबीआई के वकील ने कहा कि उन्हें काउंटर रिप्लाई फाइल करने के लिए थोड़ा और समय चाहिए.

Supreme Court adjourns Ayodhya dispute matter, 3-judge bench led by CJI Gogoi says date of hearing will be fixed in January


70 years, 2 minutes, indefinite date of January 2019

Why if one sees Congress Connection in SC

Sibal is obeyed today

When parties indicate urgency and an early hearing, CJI-led Bench clarifies that it cannot really say when hearing will begin.


A three-judge Bench of the Supreme Court, led by Chief Justice of India (CJI) Ranjan Gogoi, on Monday posted the Ayodhya title suit appeals in January before an appropriate Bench to fix a date for hearing the case.

When parties indicated urgency and an early hearing, the CJI-led Bench clarified that it cannot really say when hearing would begin. It left it to the discretion of the “appropriate Bench” before which the matter would come up on January.

“We have our own priorities… whether hearing would take place in January, March or April would be decided by an appropriate Bench,” the CJI said.

The CJI repeated that all the court was ordering was that the appeals would come up in January first week before a Bench “not for hearing but for fixing the date of hearing”.

On September 27, a three-judge Bench of the court led by then Chief Justice Dipak Misra, in a majority opinion, decided against referring the question ‘whether offering prayers in a mosque is an essential part of Islam’ to a seven-judge Constitution Bench.

With this, the court had signalled that it would decide the appeals like any other civil suit, based on evidence, and pay little heed to arguments about the “religious significance” of the Ayodhya issue and the communal strife it has led to over the past many years.

The Misra Bench’s judgment, authored by Justice Ashok Bhushan on the Bench, directed the hearing in the appeals to start from October 29. This last paragraph in the September 27 judgment led to questions whether the court would deliver a judgment in the appeals before the May 2019 general election.

These appeals are against the September 30, 2010 verdict of the Allahabad High Court to divide the disputed 2.77 acre area among the Sunni Waqf Board, the Nirmohi Akhara and Ram Lalla. The Bench had relied on Hindu faith, belief and folklore.

Lord Ram’s birthplace

The High Court concluded that Lord Ram, son of King Dashrath, was born within the 1,482.5 square yards of the disputed Ramjanmabhoomi-Babri Masjid premises over 900,000 years ago during the Treta Yuga. One of the judges said the “world knows” where Ram’s birthplace was while another said his finding was an “informed guess” based on “oral evidences of several Hindus and some Muslims” that the precise birthplace of Ram was under the central dome.

The final hearings in the Ayodhya appeals began before the Misra Bench, also comprising Justice S. Abdul Nazeer, on December 5 last.

The day happened to be the eve of the 25th anniversary of the demolition of the 15th century Babri Masjid by kar sevaks on December 6, 1992. The appeals were taken up after a delay of almost eight years. They remained shelved through the tenures of eight Chief Justices of India from 2010.

However, the Muslim appellants, a cross-section of Islamic bodies like the Sunni Wakf Board and individuals, had drawn the Bench’s attention to certain paragraphs in a 1994 five-judge Constitution Bench judgment in the Dr Ismail Faruqui case. One of these paragraphs stated that “a mosque is not an essential part of the practice of the religion of Islam and namaz [prayer] by Muslims can be offered anywhere, even in open”.

Mosque and Islam

“So is the mosque not an essential part of Islam? Muslims cannot go to the garden and pray,” their lawyer and senior advocate Rajeev Dhavan had asked the court. He asked the Bench to freeze the Ayodhya appeals’ hearing till this question is referred and decided by a seven-judge Bench.

In their majority view, Chief Justice (retired) Misra and Justice Bhushan refused to send the question to a seven-judge Bench. Their opinion said the observations were made in the context of the Faruqui case which was about public acquisition of places of religious worship. It should not be dragged into the Ayodhya appeals. The minority decision authored by Justice Nazeer dissented with the majority on the Bench, and said this observation about offering prayer in a mosque influenced the Allahabad High Court in 2010. He questioned the haste of the court.

During the maiden Supreme Court hearing of the Ayodhya appeals last year, senior advocate Kapil Sibal suggested to the court to post the Ayodhya hearings after July 15, 2019.

Along with Mr. Sibal, senior advocate Dushyant Dave and Mr. Dhavan argued that the Ayodhya dispute was not just another civil suit. The case covered religion and faith and dates back to the era of King Vikramaditya. It is probably the most important case in the history of India which would “decide the future of the polity”. The appeals would have the court decide “whether this is a country where a mosque can be destroyed”.

“These appeals go to the very heart of our secular and democratic fabric,” Mr. Dhavan had submitted.

Mr. Sibal had alleged the government was using the judiciary to realise its agenda for a Ram mandir assured in the ruling BJP’s 2014 election manifesto.