बीएसपी की जीत के मायने …..


बीएसपी ने राजस्थान में 2013 के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया है. यहां 4.0 फीसदी वोट के साथ उसे 6 सीटें हासिल हुई हैं


राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों में इस बार कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. इसके बाद बीजेपी को सबसे ज्यादा सीटें मिली हैं. इससे हटकर एक अन्य पार्टी भी है जिसे मिली तो 6 सीटें हैं, लेकिन ये पिछली बार के मुकाबले 2 गुना है. इन चुनावों में बीएसपी को 6 सीटों पर जीत मिली है.

जीतने वाले उम्मीदवारों में राजस्थान की करौली सीट से लखन सिंह, नदबाई से जोगिंदर सिंह अवाना, नगर से वाजिब अली, उदयपुर वटी से राजेंद्र सिंह गोधा, तिजारा से संदीप कुमार और किशनगढ़बास से दीप चंद हैं. अपनी जीत के बाद दीप चंद ने इलाके में विजय जुलूस निकाला और जनता से सारे वादे पूरा करने का भी वादा किया.

बीएसपी ने राजस्थान में 2013 के मुकाबले अच्छा प्रदर्शन किया है. यहां 4.0 फीसदी वोट के साथ उसे 6 सीटें हासिल हुई हैं, जबकि पिछले चुनाव में 3.37 फीसदी मत के साथ उसे महज सिर्फ 3 सीटें मिली थीं. हालांकि वो 2008 के अपने सबसे अच्छे प्रदर्शन को नहीं दोहरा सकी है. तब उसके खाते में 7.60 फीसदी वोट के साथ 6 सीटें आई थीं. पार्टी महासचिव राम अचल राजभर का कहना है कि कार्यकर्ताओं ने खूब मेहनत की इसलिए उसे हर वर्ग के लोगों का समर्थन मिला.

इन चुनावों में बीएसपी का प्रदर्शन का पार्टी में जान फूंकने वाला भी साबित हो सकता है क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों से शुरू हुई पार्टी की दुर्गति अभी तक लगातार जारी थी. यूपी में, जहां पार्टी का सबसे मजबूत जनाधार है, पिछले लोकसभा में पार्टी का खाता भी नहीं खुल पाया था तो जख्मों पर नमक छिड़का विधानसभा चुनावों ने. 18 सीट जीतकर पार्टी इस हैसियत में भी नहीं बची कि अपना एक सांसद राज्यसभा भेज सके.

अब राजस्थान में 6 सीटों से मिली संजीवनी का इस्तेमाल मायावती ने भविष्य की राजनीति के लिए करना भी शुरू कर दिया है. दरअसल कांग्रेस मध्य प्रदेश और राजस्थान में सबसे बड़ी पार्टी तो बन गई लेकिन बहुमत के जादुई आंकड़े से थोड़ा पीछे रह गई. मायावती ने बिना समय गंवाए कांग्रेस को दोनों राज्यों में समर्थन देकर सिर्फ तात्कालिक संकट दूर नहीं किया बल्कि 2019 की रणभेरी से पहले ही एक नए गठबंधन की सुगबुगाहट भी तेज कर दी है.

रेलवे की 5000 प्रवासी भारतीयों को इलाहाबाद से नई दिल्ली ले जाने के लिए चार-पांच विशेष ट्रेनें चलाने की योजना है


कुंभ मेले के लिए रेलवे ने दी सौगात, शुरू कीं 700 करोड़ की योजनाएं


भारतीय रेलवे ने अगले साल जनवरी में इलाहाबाद(प्रयागराज) में आयोजित होने वाले कुंभ मेले के लिए 41 परियोजनाएं शुरू की हैं, जिन पर 700 करोड़ रुपए की लागत आएगी.

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को बताया कि 41 परियोजनाओं में से 29 पूरी हो चुकी हैं. अन्य अंतिम चरण में हैं और जल्द पूरी होने वाली हैं.

उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) के महाप्रबंधक राजीव चौधरी ने बताया कि इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन पर चार बड़े कंपाउंड का निर्माण किया गया है जिनमें 10,000 तीर्थयात्रियों को सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं. इनमें वेडिंग स्टॉल, पानी के बूथ, टिकट काउंटर, एलसीडी टीवी, सीसीटीवी, महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग- अलग शौचालय होंगे. इसी तरह से अन्य स्टेशनों पर भी यात्री कंपाउंड बनाए गए हैं.

कुंभ मेले के दौरान मेले में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए इलाहाबाद जिले के विभिन्न स्टेशनों से करीब 800 विशेष ट्रेन चलाने का प्रस्ताव है. यह ट्रेनें एनसीआर की ओर से चलाई जाने वाली नियमित ट्रेनों से अलग होंगी.

रेलवे की 5000 प्रवासी भारतीयों को इलाहाबाद से नई दिल्ली ले जाने के लिए चार-पांच विशेष ट्रेनें चलाने की योजना है. ये प्रवासी भारतीय वाराणसी में होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस में शिरकत करने जाएंगे और वाराणसी से कुंभ मेले में हिस्सा लेने के लिए इलाहाबाद जाएंगे.

चौधरी ने बताया कि रेलवे, मेले के दौरान इस पवित्र शहर में यात्रियों की भारी भीड़ से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर टेक्नालॉजी का इस्तेमाल करेगा. उन्होंने कहा कि आईबीएम भीड़ नियंत्रण के लिए वीडियो विश्लेषण सेवा प्रदान करेगा, वहीं स्थिति पर नजर रखने के लिए बड़ी संख्या में सीसीटीवी कैमरे होंगे और एलईडी स्क्रीन भी लगाई जाएंगी.

विशेष तौर पर रेल मंत्रालय ने यह फैसला किया है कि इलाहाबाद क्षेत्र में पड़ने वाले 11 स्टेशनों से अनारक्षित रेलवे टिकटों की 15 दिन पहले से बुकिंग की इजाजत दी जाएगी. इलाहाबाद में उत्तर मध्य रेलवे ने रेल कुंभ सेवा मोबाइल ऐप का भी शुभारंभ किया है.

This is not Exit Poll of 2019 for BJP, history says so


Congress victories should not dishearten BJP; history shows 2019 polls likely to be a different ball game


Way back in March 1998, the National Democratic Alliance government under the leadership of Atal Bihari Vajpayee was sworn in at the Centre. The BJP won 182 Lok Sabha seats, a tremendous achievement (by then standards). The Congress was down to 141.

By end of that year, Assembly elections were held in Delhi, Rajasthan and Madhya Pradesh. The BJP was routed. The Congress scored massive victories, snatching Delhi and Rajasthan from the BJP and Djivijaya Singh triumphantly returned to power for a second term in undivided Madhya Pradesh.

Four months later, in April 1999, the Vajpayee government fell by one vote. Fresh parliamentary elections followed. The BJP under Vajpayee was back in power at the Centre, winning all seven seats from Delhi and performing well in the Hindi heartland.

Turn to December 2013, the BJP, the prime contender for power in New Delhi, lost the Assembly election to a newly founded Aam Aadmi Party, but won all seven Lok Sabha seats in April-May 2014 parliamentary elections.

Beyond a doubt, 11 December, 2018, will go down as an important date in the Indian political calendar: the day the Congress snatched power from the BJP in three Hindi heartland states. It is a big moment for the Congress — and an undoubtedly joyous one — and its president Rahul Gandhi, who tasted success after a string of failures.

Consider the results of Madhya Pradesh, Rajasthan, Chhattisgarh and Telangana and the percentage of votes major parties received:

The Madhya Pradesh House is basically hung, with the Congress emerging as the single largest party with 114 seats, but falling two short of the majority mark. The BJP is a close second with 109 seats. Ironically, the BJP secured more votes than the Congress: the saffron party received 15,642,980 votes and a 41 percent vote share while the Congress got 15,595,153 votes with 40.9 percent vote share. After being in power for three terms, it was a commendable performance by Shivraj Singh Chouhan, BJP workers and leaders.

Rajasthan again is a Hung House, Congress as the single largest party with 99 seats with two short of majority. The BJP won 73 seats. The difference between Congress and the BJP is only .50 percent. The Congress got 39.3 percent and BJP received 38.8 percent of vote. In Chhattisgarh, Congress won in a landslide.

Thus, for the BJP, results are not as bad as they looked at first glance. Madhya Pradesh has 25 Lok Sabha seats, Rajasthan 25, and Chhattisgarh 11.

Another important state which went to the polls in South India was Telangana. Some opinion polls predicted that Congress-TDP-Left coalition would give a tough fight to ruling TRS and may derail Chief Minister K Chandrashekar Rao, but Tuesday’s results showed a remarkable victory for KCR-led TRS. The party won 88 of 119 seats that went to the polls. Its poll percentage was 46.9, way ahead of Congress’s 28.4 percent. Chandrababu Naidu’s TDP only won two seats.

There is speculation, informed or otherwise, of a tacit understanding between BJP and TRS for a post-poll alliance. The Telangana Assembly result puts the new friendship between Rahul and Chandrababu under stress. It remains to be seen whether they go to parliamentary polls as allies or separate in fewer than six months.

किसानों की कर्ज़ माफी पर भाजपा रखेगी पैनी नज़र


कांग्रेस के सामने सरकार बनाने के बाद 10 दिनों में चुनावी वादों को पूरा करने की चुनौती है और ये वादा किसी और ने नहीं बल्कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किया है 

कांग्रेस शासित राज्यों में  अगर चुनावी वादे पूरे नहीं होते हैं तो बीजेपी इसका इस्तेमाल सत्ता विरोधी लहर के रूप में कर सकती है


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पुरजोर भरोसे के साथ कह रहे हैं कि जिस तरह बीजेपी को अभी हराया है उसी तरह साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी हराएंगे. कांग्रेस के आत्मविश्वास को संदेह से अब देखा नहीं जा सकता है क्योंकि चुनावी नतीजे गवाह हैं कि कांग्रेस ने किस तेजी से बीजेपी के खिलाफ तीन राज्यों में माहौल बदला. ये नतीजे लोकसभा चुनाव को लेकर बीजेपी के लिए खतरे की घंटी हैं.

लेकिन तीन राज्यों में मिली जीत के बावजूद कांग्रेस अपने ही बनाए चक्रव्यूह में फंस सकती है. क्योंकि कांग्रेस ने बीजेपी को हराने के लिए जिन मुद्दों और वादों का इस्तेमाल किया वही तीन महीने बाद उसके सामने मुंह खोल कर खड़े होंगे. कांग्रेस के सामने सरकार बनाने के बाद 10 दिनों में चुनावी वादों को पूरा करने की चुनौती है. ये वादा किसी और ने नहीं बल्कि खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने किया है.

दस दिनों में कर्ज नहीं किया माफ तो ग्यारहवें दिन बदल देंगे सीएम

बीजेपी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने एक बार कहा था कि बीजेपी को उम्मीद नहीं थी कि बड़े-बड़े वादे करने के बाद वो सत्ता में भी आ जाएगी. शायद कांग्रेस को भी उम्मीद नहीं होगी कि उसके चुनावी वादे उसे सत्ता पर काबिज कर देंगे. तभी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि तीन राज्यों में मिली जीत से कांग्रेस पर बड़ी जिम्मेदारी आई है. उनके इशारे को कर्जमाफी का वादा माना जा सकता है.

राहुल ने अपनी रैलियों में जगह-जगह ऐलान किया था कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने पर दस दिनों में किसानों का कर्ज माफ कर दिया जाएगा वर्ना ग्यारहवें दिन सीएम बदल दिया जाएगा. अब कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपने चुनावी वादे को पूरा करने की है क्योंकि कहीं ये वादे अधूरे छूटने पर  3 महीनों के भीतर ही सत्ता विरोधी लहर में न बदल जाएं.

बीजेपी को अब उन राज्यों में सतर्क रहने की जरूरत है जो 15 साल से उसके गढ़ थे. मध्यप्रदेश की 29, छत्तीसगढ़ की 11 और राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों को जीतने के लिए नए समीकरण बनाने की जरूरत है क्योंकि जो मुद्दे विधानसभा चुनाव में हावी रहे वो ही लोकसभा चुनाव में भी हुंकार भरेंगे.

ऐसे में कर्जमाफी जैसे दूसरे वादे पूरा न कर पाने पर साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इन राज्यों में कांग्रेस के खिलाफ ही सत्ता विरोधी लहर चल सकती है. जो लुभावने वादे कर कांग्रेस सत्ता में आई है अब वही वादे बीजेपी के लिए साल 2019 में माहौल बदलने के काम आ सकते हैं.

क्या कांग्रेस की जीत से बीजेपी को होगा फायदा?

कांग्रेस इस जीत से बेहद उत्साहित है. लेकिन बीजेपी के लिए राज्य की सत्ता से लोकसभा चुनाव से तीन-चार महीने पहले हटने के दूरगामी फायदे भी हो सकते हैं. बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने नतीजों पर कहा कि जनता ने दिल पर पत्थर रखकर कांग्रेस को वोट दिया. मायावती के बयान से क्या माना जाए कि जनता ने बीजेपी की राज्य सरकारों के प्रति गुस्से को कांग्रेस को वोट देकर निकाल बाहर कर दिया? अगर ये गुस्सा पंद्रह साल में उपजा तो फिर वोट शेयर में भारी गिरावट क्यों नहीं हुई.

मध्यप्रदेश में बीजेपी को 41 फीसदी वोट मिले जबकि कांग्रेस को 40.9 फीसदी. इसी तरह राजस्थान में भी बीजेपी को सत्ता विरोधी लहर के बावजूद 73 सीटें मिलीं. ये साफ संकेत है कि साल 2019 में इन राज्यों में वापसी के लिए बीजेपी के पास अभी कई मौके बाकी हैं.

हालांकि, साल 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए बीजेपी के सामने इस बार चुनौती ज्यादा है. न सिर्फ पांच साल सरकार के कामकाज का हिसाब देना है बल्कि इस बार सामने साल 2014 की तरह न तो बिखरा हुआ विपक्ष है और न ही यूपीए के दस साल के शासन की सत्ता विरोधी लहर का मौका. इस बार बीजेपी के सामने एनडीए को बिखराव से बचाने की चुनौती भी है.

शिवसेना नाराज है तो चंद्रबाबु नायडू जैसे एनडीए के पूर्व संयोजक ही साथ छोड़ गए और विपक्ष का महागठबंधन तैयार करने में जुटे हुए हैं. एनडीए छोड़कर जाने वाले दलों की वजह से बीजेपी को सीटों का कुछ नुकसान हो सकता है लेकिन उसके फायदे के लिए एक नया रास्ता टीआरएस खोल रही है.

टीआरएस के दांव से किसे होगा फायद किसका होगा नुकसान

तेलंगाना में सत्ता वापसी करने वाले केसीआर ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष के नए गठबंधन की बात की है जो कि गैर कांग्रेसी और गैर-बीजेपी हो. केसीआर की इस नई कहानी से विपक्ष की एकता के प्रतीक महागठबंधन की परिकल्पना का पटाक्षेप हो जाता है. आखिर बीजेपी और कांग्रेस विरोधी कितने दल एक साथ अलग-अलग आएंगे?

केसीआर के इस दांव से फायदा बीजेपी को ही होगा तो नुकसान उस विपक्ष को जो बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना चाहती है. अब जबकि राहुल विपक्ष के नंबर वन नेता बनकर उभरे हैं और उनकी लीडरशिप में विपक्षी महागठबंधन की संभावना दिखाई देती है तो टीआरएस नेता केसीआर का अलग राग विपक्षी महागठबंधन के तोड़ के रूप में नजर आता है.

भले ही राज्यों की हार की नैतिक जिम्मेदारी शिवराज, वसुंधरा और रमन सिंह ने ली लेकिन बीजेपी को ये नहीं भूलना चाहिए कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी किसान, बेरोजगारी, नोटबंदी, जीएसटी और भ्रष्टाचार के आरोपों को कांग्रेस मुद्दा बनाएगी.

ऐसे में राहुल के हमलों को हल्के में लेने की भूल दोहरानी नहीं चाहिए क्योंकि जनता ने राहुल को अब विपक्ष के नंबर एक नेता के तौर पर स्थापित कर दिया है. साथ ही अब बीजेपी के उन जिम्मेदार नेताओं को ये कहने से भी बचना होगा कि राहुल जितनी रैलियां करेंगे उसका फायदा बीजेपी को ही मिलेगा. राहुल केंद्रित रणनीति का ठीक वैसा ही नुकसान हो सकता है जैसा कि साल 2014 में कांग्रेस और दूसरे दलों ने मोदी-केंद्रित प्रचार रखा था.

बीजेपी के पास फिलहाल ‘वेट एंड वॉच’ का विकल्प है. कांग्रेस शासित राज्यों में  अगर चुनावी वादे पूरे नहीं होते हैं तो बीजेपी इसका इस्तेमाल सत्ता विरोधी लहर के रूप में कर सकती है. इतिहास गवाह रहा है कि तीन-तीन राज्यों में एक साथ चुनाव जीतने वाली पार्टी को भी छह महीने के भीतर ही एंटीइंकंबेंसी की वजह से लोकसभा चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ा है. इसलिए बीजेपी के लिए अभी सबकुछ खत्म नहीं हुआ है बल्कि नए सिरे से शुरू करने का अलार्म ही बजा है.

सिंधिया ने कमलनाथ के नाम पर प्रस्ताव दिया


सिंधिया ने कहा कि अगर उन्हें सीएम बनने का मौका दिया जाता है, तो ये उनके लिए बहुत सम्मान की बात होगी


मध्य प्रदेश में बहुत इंतजार के बाद आखिरकार कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और दूसरे दलों के समर्थन के बाद उसने बहुमत का आंकड़ा भी पार कर लिया. अब असली सवाल सामने खड़ा है- मुख्यमंत्री कौन?

यहां प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच सीएम के पद की रेस चल रही है. जहां विश्लेषक मानकर चल रहे हैं कि कमलनाथ को ही सीएम बनाया जाएगा, वहीं पार्टी के अंदर से समर्थकों की आवाजें सिंधिया के पक्ष में उठ रही हैं.

हालांकि सूत्रों के हवाले से खबर आ रही है कि बहुत माथापच्ची के बाद अब सिंधिया ने कमलनाथ के नाम पर प्रस्ताव दिया है. अब बस उनके नाम पर राहुल गांधी की मुहर लगने का इंतजार है.

खास बात है कि सिंधिया ने खुद कमलनाथ का नाम प्रस्तावित किया है, जबकि राज्य में खुद उनके नाम की दावेदारी पर जोर दिया जा रहा था. सिंधिया ने भी अपनी तरफ से कोई संकेत नहीं दिया था कि अपनी दावेदारी पर उनका क्या रुख है. लेकिन उनके एक बयान से लगा कि वो खुद को इस रेस से बाहर मानकर नहीं चल रहे हैं.

दरअसल, सिंधिया ने  पत्रकारों से कहा था कि अगर उन्हें सीएम बनने का मौका दिया जाता है, तो ये उनके लिए बहुत सम्मान की बात होगी.

इससे माना जा रहा था सिंधिया खुद को रेस से बाहर नहीं रख रहे हैं. हालांकि, कांग्रेस की जीत की घोषणा के बाद उन्होंने कई ट्वीट किए हैं, जिनमें उन्होंने जीत पर खुशी जताते हुए कार्यकर्ताओं को बधाई दी थी और विकास के लिए काम करने की प्रतिबद्धता जताई थी. उस वक्त तक उन्होंने सीएम के पद के लिए दावेदारी पर कोई संकेत नहीं दिया था.

उधर कमलनाथ कई बार कह चुके हैं कि सीएम के चेहरे पर फैसला हाई कमांड ही लेगा. मध्य प्रदेश में दोनों नेताओं के समर्थक अपने-अपने नेताओं का नाम चिल्ला रहे हैं.

बता दें कि कांग्रेस के सभी बड़े नेता बुधवार दिन में राज्यपाल आनंदी बेन पटेल से सरकार बनाने का दावा करने वाली चिट्ठी लेकर मिलने पहुंचे थे. लेकिन पटेल ने कहा कि कांग्रेस जब तक सीएम के लिए अपना चेहरा नहीं चुनती, वो सरकार बनाने के लिए न्योता नहीं देंगी.

शाम को कांग्रेस के नेताओं की बैठक होने वाली है, जिसके बाद मध्य प्रदेश के अगले मुख्यमंत्री की घोषणा की जाएगी. राज्य की कांग्रेस 14 दिसंबर तक शपथग्रहण समारोह करवा लेना चाहती है.

प्रधान मंत्री मोदी ने कांग्रेस को दो जीत की बधाई


पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे लगभग साफ हैं. छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाएगी


पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजें लगभग आ चुके हैं. मध्यप्रदेश के अलावा बाकी चारो राज्यों में तस्वीर साफ हो चुकी है. इसमें से छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाने वाली है.

जनता के इस आदेश को स्वीकार करते हुए पीएम मोदी ने आभार व्यक्त किया है. पीएम ने कहा- ‘हम जनता के आदेश को स्वीकार करते हैं. मैं छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान की जनता को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने हमें राज्य की सेवा का अवसर दिया. इन राज्यों में बीजेपी सरकार ने पूरे जोश से लोगों के विकास के लिए काम किया है.’


Narendra Modi

@narendramodi

I thank the people of Chhattisgarh, Madhya Pradesh and Rajasthan for giving us the opportunity to serve these states. The BJP Governments in these states worked tirelessly for the welfare of the people.


इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने जीत के लिए कांग्रेस और के चंद्रशेखर राव को भी बधाई दी. पीएम ने ट्वीट किया- ‘कांग्रेस को जीत के लिए बधाई. केसीआर गारु को तेलंगाना में शानदार जीत के लिए बधाई और मिजो नेशनल फ्रंट को भी मिजोरम में जीत के लिए बधाई.’


Narendra Modi

@narendramodi

Congratulations to KCR Garu for the thumping win in Telangana and to the Mizo National Front (MNF) for their impressive victory in Mizoram.


वसुंधरा ने दिया इस्तीफा

जयपुर:

राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया है. राज्य विधानसभा चुनाव में हुई बीजेपी के बाद उन्होंने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया.

कांग्रेस को जीत की बधाई देते हुए वसुंधरा राजे ने कहा 5 साल में बीजेपी ने अच्छे काम किए हैं.मुख्यमंत्री ने कहा कि हम प्रदेश की जनता की आवाज को सदन में उठाएंगे. मैं समस्त पार्टी कार्यकर्ताओं, पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को धन्यवाद देना चाहती हूं. जब पत्रकारों ने उनसे हार का कारण जानना चाहा तो वसुंधरा ने सवाल को टाल दिया.

वसुंधरा के कई मंत्री चुनाव हारे

बता दें राजस्थान में बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा है. वसुंधरा राजे सरकार में कद्दावर रहे कई मंत्री विधानसभा चुनाव हार गए हैं. इनमें परिवहन मंत्री युनुस खान, खान मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी, यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी शामिल हैं. जीतने वाले मंत्रियों में गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया व शिक्षा मंत्री किरण महेश्वरी का नाम प्रमुख है. वसुंधरा राजे के करीबी माने जाने वाले युनुस खान टोंक विधानसभा सीट से 54,179 मतों से हार गए. इस सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे सचिन पायलट जीते हैं.
वहीं जल संसाधन मंत्री डॉ. रामप्रताप हनुमानगढ़ सीट पर 15522 मतों से तो पशुपालन मंत्री रहे ओटाराम देवासी सिरोही सीट पर 10253 मतों से पराजित हुए. इसी तरह राजे सरकार के कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी अंता सीट पर 34059 मतों से हारे. उन्हें कांग्रेस के प्रमोद भाया ने हराया. खान मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी करणपुर सीट पर हारे और वह मुकाबले में तीसरे स्थान पर रहे.

खाद्य व आपूर्ति मंत्री बाबू लाल वर्मा बारां अटरू सीट पर 12248 मतों से हार गए. पर्यटन मंत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा नदबई सीट पर बसपा के जोगिंदर सिंह से 4094 मतों से हारीं जबकि यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी निंबाहेडा सीट पर 11908 मतों से हारे हैं.

सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अरूण चतुर्वेदी सिविल लाइंस सीट पर 18078 मतों से हार गए. उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत झोटवाड़ा सीट पर 10747 मतों से हार गए. वहीं गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने उदयपुर सीट पर कांग्रेस की गिरिजा व्यास को 9307 मतों से पराजित किया.

इन मंत्रियों को मिली सफलता

वसुंधरा राजे के जिन प्रमुख मंत्रियों ने जीत दर्ज करने में सफलता पाई है उनमें चिकित्सा मंत्री कालीचरण सर्राफ मालवीयनगर सीट पर 1704 मतों से, महिला व बाल विकास मंत्री अनिता भदेल अजमेर (दक्षिण) सीट पर 5700 मतों से व शिक्षामंत्री वासुदेव देवनानी अजमेर (उत्तर) सीट पर 8630 मतों से जीते हैं. बाली सीट पर ऊर्जा मंत्री पुष्पेंद्र सिंह 28081 मतों व शिक्षा मंत्री किरण महेश्वरी ने राजसमंद सीट पर 24532 मतों से जीत दर्ज की है

आला / हाई कमान के दिन बहुरे: कांग्रेस ने की जोरदार वापसी


काँग्रेस के घर होली दिवाली एक साथ 

आला / हाई कमान के दिन बहुरे 

कांग्रेस की ये जीत बीजेपी विरोधी पार्टियों को आगामी चुनाव तक गोलबंद करने में मददगार साबित होगी जिससे बीजेपी के समक्ष मजबूत चुनौती पेश की जा सके.


2014 लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस पार्टी का प्रदर्शन पहली बार काबिलेतारीफ रहा है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ‘पंजे’ के द्वारा ‘कमल’ को उखाड़ फेंका जाना दोनों राज्यों में उसके बेहतरीन प्रदर्शन की मिसाल है. वहीं मध्य प्रदेश में कांटे की टक्कर कांग्रेस द्वारा एक और राज्य में बेहतर प्रदर्शन को दर्शाती है. हिन्दीभाषी बीजेपी के गढ़ में कांग्रेस के बेहतर प्रदर्शन से कांग्रेस की बांछें खिल गई हैं और साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी का आत्मविश्वास पूरी तरह उफान पर है.

वैसे 2014 लोकसभा चुनाव के बाद साल 2017 तक विधानसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन बेहद खराब रहा है. एक-एक कर 14 राज्यों में सत्ता गंवा चुकी कांग्रेस के लिए लगातार मिल रही हार को छिपाना मुश्किल हो रहा था. पार्टी के अंदर और बाहर पार्टी में जान फूंके जाने के लिए लीडरशिप क्राइसिस की बात उठने लगी थी और बीजेपी के ‘कांग्रेस मुक्त’ भारत के नारे को लोग सच्चाई की कसौटी पर देखने लगे थे.

विधानसभा चुनावों में मिली जीत पर बेंगलुरु में कांग्रेस मुख्यालय पर खुशियां मनाते पार्टी कार्यकर्ता

विधानसभा चुनावों में मिली जीत पर बेंगलुरु में कांग्रेस मुख्यालय पर खुशियां मनाते पार्टी कार्यकर्ता

पिछले चार सालों में पंजाब की जीत ही एक ऐसी जीत थी, जिसको लेकर कांग्रेस अपनी पीठ थपथपा सकती थी लेकिन उस जीत में भी जीत का सेहरा कैप्टन अमरिंदर सिंह को दिया गया. ध्यान रहे पंजाब में भी कांग्रेस की सीधी लड़ाई शिरोमणी अकाली दल से थी और बीजेपी शिरोमणी अकाली दल के सहयोगी तौर पर चुनाव मैदान में थी.

महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बीजेपी की लगातार जीत से कांग्रेस की कमर टूट चुकी थी वहीं बिहार में महागठबंधन को मिली जीत के बावजूद कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा. यहां महागठबंधन के नेता मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आरजेडी और कांग्रेस से नाता तोड़कर बीजेपी की तरफ रुखसत कर गए और फिर से वहां एनडीए की सरकार बनाने में कामयाब हुए.

कुलमिलाकर कहा जाए तो 2014 लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी से सीधी लड़ाई में कांग्रेस कहीं भी कामयाब नहीं हुई थी. गोवा और मणिपुर में बीजेपी द्वारा हार का सामना करने के बाद भी राजनीतिक सूझबूझ से सरकार बना लेने से कांग्रेस का मनोबल पूरी तरह टूट चुका था. इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बन जाने के बाद कांग्रेस को सेल्फ गोल करने वाली पार्टी की संज्ञा दी जाने लगी. जाहिर है बीजेपी से एक के बाद दूसरी मिल रही हार से कांग्रेस के हौसले पस्त हो चुके थे.

ऐसे में तीन राज्यों में कांग्रेस का जोरदार प्रदर्शन 2019 लोकसभा चुनाव में संजीवनी बूटी की तरह है, जो उसे नया जीवन देने और उसके हौसले को पंख लगाने में काफी मददगार साबित होगा. कांग्रेस के नेता मानने लगे हैं कि इन तीनों राज्यों के नतीजों से बीजेपी विरोधी पार्टियों में राहुल गांधी नेता के रूप में पदस्थापित हो सकेंगे और बीजेपी विरोधी पार्टियों में कांग्रेस और उसके नेतृत्व को लेकर विश्वास बढ़ेगा.

दरअसल पिछले चार सालों में बीजेपी के साथ सीधी लड़ाई में पहली बार ऐसा हुआ है कि कांग्रेस बीजेपी को पछाड़ पाने में कामयाब हो सकी है. 90 सीटों वाले राज्य छत्तीसगढ़ में बीजेपी को कांग्रेस ने पूरी तरह उखाड़ फेंका है. वहां बीजेपी को 20 से कम सीटें मिली हैं वहीं कांग्रेस 70 सीटें पाकर पंद्रह साल बाद सत्ता पर काबिज हो रही है. रमण सिंह के अभेद्य किले में कांग्रेस की सेंध से पार्टी आत्म विश्वास से लवरेज है. पार्टी के नेता और कार्यकर्ता इस चुनाव को 2019 लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल करार दे रहे हैं.

राजस्थान में भी ‘हाथ’ के करिश्मे के आगे कमल खिल नहीं सका. बीजेपी की मजबूत जड़ को हिला कांग्रेस अपना परचम लहराने में कामयाब रही है. कांग्रेस शतक पार कर बहुमत के आंकड़े को छू चुकी है वहीं बीजेपी 72 के आसपास सिमट कर रह गई है. सूबे के दिग्गज कांग्रेस नेता अशोक गेहलोत और सचिन पायलट पर्दे के पीछे मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए दावेदारी पेश कर रहे हैं. जाहिर है दोनों जीत का सेहरा राहुल गांधी के सिर बांध रहे हैं और जनता की अदालत के इस फैसले को साल 2019 की लोकसभा के रिजल्ट की झांकी करार दे रहे हैं. वैसे राजस्थान का रिकॉर्ड ये बताता है कि हर पांच साल में यहां सरकार बदलती है और ये सिलसिला पिछले 25 सालों से बरकरार हैं.

वहीं मध्य प्रदेश में भी शिवराज सिंह चौहान के पंद्रह साल के शासन को चुनौती देकर कांग्रेस सीधे तौर पर विजय के मार्ग पर आगे बढ़ रही है. जाहिर है राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की ये पहली ऐसी विजय है जिसको लेकर पार्टी का हौसला बुलंदियों पर है. कांग्रेस में उम्मीद जगी है कि लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी विरोधी पार्टियों को लामबंद करने में कांग्रेस को कामयाबी मिल सकेगी और बीजेपी विरोधी तमाम पार्टियों के बीच कांग्रेस नेतृत्व को लेकर विश्वास बढ़ेगा. ऐसी तमाम क्षेत्रीय पार्टियां जो कांग्रेस के नेतृत्व को लेकर असमंजस की स्थिति में थी और राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर पाने में असहज हो रही थी उनके बीच राहुल गांधी की स्वीकार्यता को लेकर भरोसा बढ़ेगा.

वैसे राहुल गांधी कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि 2019 का चुनाव बीजेपी बनाम विपक्षी पार्टियां होंगी लेकिन विपक्ष को गोलबंद कर पाने में वो अब तक कामयाब नहीं हो पाए थे. छ्त्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में एसपी, बीएसपी का कांग्रेस से अलग चुनाव लड़ना कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल खड़े करता रहा है. ऐसे में कांग्रेस की ये जीत बीजेपी विरोधी पार्टियों को आगामी चुनाव तक गोलबंद करने में मददगार साबित होगी जिससे बीजेपी के समक्ष मजबूत चुनौती पेश की जा सके.

आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों से ज्यादा वोट नोटा को मिले हैं


हालांकि मध्यप्रदेश के सिंगरौली में आप नेता रानी अग्रवाल शुरुआत में बढ़त बनाए हुए थीं, लेकिन अब वो भी पिछड़ गई हैं


पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजे आने शुरु हो गए हैं. मतगणना अभी जारी है लेकिन राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम में तस्वीर साफ हो गई है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार बना रही है. वहीं तेलंगाना में टीआरएस सत्ता पर काबिज हो गई.

पूर्वोत्तर राज्य में कांग्रेस का आखिरी किला भी ढह गया है. मिजोरम में कांग्रेस के 10 साल से मुख्यमंत्री ललथनहवला दो सीटों पर चुनाव लड़े थे और उन्हें दोनों ही सीटों पर करारी हार का सामना करना पड़ा. मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट सरकार बना रही है.

चुनावों में दिलचस्प आंकड़े सामने आ रहे हैं. दिल्ली में सरकार में बैठी और आंदोलन से उपजी आम आदमी पार्टी ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपने उम्मीदवार खड़े किए थे. तीनों ही राज्यों में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को जनता ने सिरे से नकार दिया. हालांकि मध्यप्रदेश के सिंगरौली में आप नेता रानी अग्रवाल शुरुआत में बढ़त बनाए हुए थीं, लेकिन अब वो भी पिछड़ गई हैं.

तीन राज्यों में आप बनाम नोटा का आंकड़ा

आलम ये है कि आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों से ज्यादा वोट नोटा (इनमें से कोई नहीं) को मिले हैं.

मध्यप्रदेश में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को 1,17,968 वोट मिले. वहीं 2,63,835 लोगों ने नोटा का विकल्प चुना.

छत्तीसगढ़ में नेताओं को 44020 वोट मिले वहीं नोटा पर 1,05,919 वोट पड़े.

राजस्थान में मिले 99,266 वोट मिले और नोटा पर 3,56,185 वोट पड़े.

 कांग्रेस की जीत पर में कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह

 

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