ताजमहल बनाने वाले वंशजों ने पटना में बनाया ISCKON का मंदिर

पटना के बुद्ध मार्ग स्थित नवनिर्मित मंदिर का उद्घाटन में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई गणमान्य लोगों के आने की संभावना है। इस मंदिर के उद्घाटन के लिए पांच दिवसीय विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। 4 मंजिला यह मंदिर 2 एकड़ के क्षेत्र में फैला है। पटना के बुद्ध मार्ग पर स्थित इस विशाल मंदिर को नागर शैली में बनवाया गया है। इस्कॉन मंदिर का निर्माण ताजमहल बनाने वाले कारीगरों के खानदान ने किया है। मंदिर में लगाया गया संगमरमर विश्व प्रसिद्ध उसी मरकाना का है जिससे ताजमहल का निर्माण हुआ है। इस मंदिर में प्रेक्षागृह, गोविंदा रेस्टोरेंट और अतिथिशाला का निर्माण किया गया है। भगवान के सभागार के साथ तीन और सभागार हैं जहां एक साथ हजारों लोग इक्ट्ठा हो सकेंगे।

  • गर्भगृह में राधा बांके बिहारी जी ललिता व विशाखा के साथ विराजमान होंगे
  • दूसरा राम दरबार होगा, जिसमें सीता के साथ राम-लक्ष्मण व हनुमान जी रहेंगे
  • तीसरे दरबार में चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद महाप्रभु रहेंगे। तीन बड़े हॉल बनाए गए हैं।

पटना(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

बिहार की राजधानी पटना में प्रदेश का सबसे बड़ा इस्कॉन मंदिर बनकर तैयार हो गया है। पटना (Patna) के बुद्धमार्ग में 100 करोड़ के लागत से तैयार हुआ भव्य इस्कॉन मंदिर कई मायनों में अनूठा है. इस इस्कॉन मंदिर का तीन मई को विधिवत उदघाटन होगा जिसमें कई गणमान्य लोग शामिल रहेंगे. इस्कॉन मंदिर में उद्घाटन समारोह सहित पूरा कार्यक्रम पांच दिनों का होगा जिसमें एक मई से कार्यक्रम की शुरुआत होगी. पटना इस्कॉन (Patna ISKCON Temple) के अध्यक्ष श्री कृष्ण कृपादास ने बताया कि श्री राधा बांके बिहारी जी और वैदिक संस्कार केंद्र के नाम से इस मंदिर का भव्य उदघाटन किया जाएगा.

नीतीश कुमार ने मुकेश सहनी को अपने मंत्रिमंडल से बरख़ास्त किया

बीते बुधवार की शाम को मुकेश सहनी के सभी विधायकों ने उनका साथ छोड़ कर बीजेपी का दामन थाम लिया था। विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के तीनों विधायकों राजू सिंह, सवर्णा सिंह और मिश्री लाल यादव ने दल बदल कानून के तहत पार्टी छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने और विधानसभा में वीआईपी का विलय बीजेपी में कराने का पत्र विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा को सौंपा था।

मुकेश सहनी, मंत्रिमंडल, बिहार

पटना:(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट:  

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने रविवार को वीआईपी प्रखुख और मतस्य मंत्री मुकेश सहनी को मंत्री पद से बर्खास्त करने की अनुशंसा कर दी है। भारतीय जनता पार्टी ने सीएम नीतीश कुमार को अनुशंसा पत्र भेजा। इस पर संज्ञान लेते हुए मुख्यमंत्री ने राज्यपाल फागू चौहान के पास भेज दिया है। राज्यपाल जल्द इस पर फैसला ले सकते हैं। सूत्रों के मुताबिक, भाजपा कोटे से मंत्री बने मुकेश सहनी को बर्खास्त करने के लिए बीजेपी ने सीएम नीतीश कुमार से कहा था।

उनका विधान परिषद का कार्यकाल भी इस साल जुलाई से पहले समाप्त हो रहा है। ऐसे में अब उनकी पार्टी में एक भी विधायक या विधान पार्षद नहीं होगा। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कई सीटों पर उम्मीदवार उतार कर उन्होंने भाजपा को नुकसान पहुँचाया था। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने आरोप लगाया है कि मुकेश सहनी के कार्यकाल में राज्य के मत्स्य जीवी समाज को खासा नुकसान उठाना पड़ा है। उप-मुख्यमंत्री रेणु देवी ने भी इशारों-इशारों में उन्हें इस्तीफे की सलाह दे डाली थी।

राजभवन से इससे सम्बंधित पत्र जारी होते ही मुकेश सहनी अपना मंत्री पद खो देंगे। लगातार माँग के बावजूद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा देने से इनकार कर दिया था। उन्होंने ‘आरक्षण कार्ड’ खेल कर भाजपा-जदयू को ब्लैकमेल करने की कोशिश की थी। हालाँकि, उन्हें इसका अंदाज़ा था। इसीलिए, उन्होंने सरकारी गाड़ी छोड़ दी थी और अपना नेम प्लेट हटा कर निजी गाड़ी इस्तेमाल कर रहे थे। बोचहाँ विधानसभा उपचुनाव के लिए VIP ने भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार उतार दिया, जिसके बाद भाजपा ने उन्हें हटाने की सिफारिश की।

हाल ही में मुकेश सहनी की VIP के तीनों विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे। 2022 के विधानसभा चुनाव में इनकी पार्टी जीती तो 4 सीटों पर थी, लेकिन मुजफ्फरपुर के बोचहाँ विधायक मुसाफिर पासवान के लंबी बीमारी से निधन होने के बाद उनके पास ये तीन विधायक बचे थे – मुजफ्फरपुर के साहेबगंज से राजकुमार सिंह, दरभंगा के गौरा बौराम से स्वर्णा सिंह और उसी जिले के अलीनगर से मिश्रीलाल यादव। तीनों अब भाजपा में हैं।

थोड़ी भी नैतिकता बची है तो इस्‍तीफा दे दें मुकेश सहनी, भाजपा

विधानसभा अध्यक्ष को समर्थन पत्र सौंपने तथा वहां चली लंबी बैठक के बाद तीनों विधायक, पार्टी के शीर्ष नेताओं संग भाजपा प्रदेश कार्यालय पहुंचे। उन्होंने भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल और दोनों उप मुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद और रेणु देवी के समक्ष पार्टी की सदस्यता भी ग्रहण कर ली। मालूम हो कि वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में एनडीए में शामिल वीआईपी के चार उम्मीदवार विजयी हुए थे। इनमें अलीनगर से मिश्रीलाल यादव, गौराबौराम से स्वर्णा सिंह, साहेबगंज से राजू सिंह और बोचहां से मुसाफिर पासवान जीते थे। मुसाफिर पासवान की मृत्यु के बाद बोचहां में 12 अप्रैल को उपचुनाव है। हर‍िभूषण ठाकुर बचौल ने मीडिया से बात करते हुए कहा अब तो बोचहां की जनता तय करेगी कि किसके साथ क्‍या करना है। लेकिन सबने देखा कि किसने किसे धोखा दिया। जिसने बनाया उसके खिलाफ ही लड़ रहे हैं तो फिर इस्‍तीफा क्‍यों नहीं दे देते। हालांकि‍ उनकी नै‍तिकता इसी को सही मानती है तो वे जानें। ले‍किन बोचहां में भाजपा प्रत्‍याशी की जीत तय है।

पटना(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

अब VIP (विकासशील इंसान पार्टी) सुप्रीमो मुकेश सहनी का क्या होगा? राजनीतिक कार्यकर्ता बिहार की राजनीति में ऊपजे इस सवाल पर सबसे अधिक चर्चा कर रहे हैं। सहनी का MLC का कार्यकाल 21 जुलाई 2022 को खत्म हो रहा है। विनोद नारायण झा, बेनीपट्टी से विधानसभा चुनाव जीते थे और उसके बाद उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता छोड़ दी थी। इसी सीट पर मुकेश सहनी को BJP ने MLC बनाया था, जबकि वह 6 साल यानी पूरे टर्म वाली सीट चाहते थे, लेकिन भाजपा ने ‘छोटे कूपन वाली सीट’ देना ही मुनासिब समझा।

विधायक हरिभूषण ठाकुर ने कहा कि ”मुकेश सहनी के अंदर अगर थोड़ी बहुत भी नैतिकता बची हो तो उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। उत्तर प्रदेश में वह बीजेपी को हराने गए थे, उनका हश्र क्या हुआ यह सबको पता चल गया। मुकेश सहनी का कोई जनाधार नहीं है। उपचुनाव में उनके बूथ पर जदयू चुनाव हार गई थी। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में अब वह प्रसांगिक नहीं रह गए हैं. उनका चैप्टर क्लोज हो चुका है।”

भाजपा ने अपने कोटे में आई 121 सीट में से 11 सीट VIP को दी थी। यह भाजपा का अतिपिछड़ा कार्ड था। 11 में से चार सीट पर VIP को जीत भी मिली। इसी के साथ सहनी की ताकत राजनीति में बढ़ गई। उनको वह विभाग दिया गया जिस मछुआरे की लड़ाई वे लड़ते रहे और आरक्षण की मांग करते रहे। पहली बार मंत्री बने। अब बदलती राजनीति में 21 जुलाई के बाद सहनी का मंत्री बना रहना भी मुश्किल हो सकता है। भाजपा उन्हें हटाकर अतिपिछड़ा वोट बैंक को आहत नहीं करना चाहती। सहनी इससे पहले क्या कदम उठाते हैं यह उनके राजनीतिक विवेक पर निर्भर करेगा। वे 21 जुलाई के पहले मंत्री पद छोड़ देंगे या फिर टर्म खत्म होने का इंतजार कर सकते हैं। दोनों का अलग-अलग मैसेज जाएगा।

सहनी की अभी की राजनीति की खासियत यह है कि वे BJP का विरोध करते हैं, पर नीतीश कुमार या JDU के खिलाफ कुछ नहीं बोलते। यहां यह समझ लेना चाहिए कि नीतीश अतिपिछड़ा राजनीति को ताकत देने वाले नेता हैं और यह उनका बड़ा वोट बैंक है। कई जातियों को उन्होंने पिछड़ा से अतिपिछड़ा में शामिल करवाया, लेकिन सहनी के लिए नीतीश कुमार खुलकर सामने आएंगे, ऐसा नहीं लगता। ऐसे ही भाजपा और JDU के बीच तनातनी दिखती रही।

अंदर की बात यह है कि सहनी की पार्टी के विधायक भाजपा में जाने के लिए बेचैन हैं। भाजपा ने उनको ढील तो दी, पर रस्सी अपने हाथ में रखी। सहनी के विधायक भाजपा के ही लोग हैं। इसलिए सहनी या नीतीश कुमार चाहें भी कि VIP के विधायक, JDU में चले जाएं तो यह मुश्किल है।

सीसहनी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में यहां तक कह दिया था, ‘हमको वोट देना हो तो दें नहीं तो भाजपा को हराने वाले को वोट दें’। उन्होंने भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार भी दिया था। UP में उम्मीदवार JDU ने भी दिया था, लेकिन वहां प्रचार करने न तो नीतीश कुमार गए और न ही JDU की तरफ से भाजपा को आहत करने वाला बड़ा बयान किसी ने दिया। इसलिए बोचहां सीट पर बेबी कुमारी को उतारकर भाजपा जैसे पश्चाताप कर रही है।

बेबी का हक मारकर ही भाजपा ने VIP को यहां से टिकट दिया था और मुसाफिर पासवान की जीत हुई थी। अब भाजपा को 21 जुलाई का इंतजार है और इसका भी इंतजार है जब सहनी का मंत्री पद भी जाएगा। भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल तो यहां तक कहते हैं, ‘नैतिकता के आधार पर मुकेश सहनी को इस्तीफा दे देना चाहिए।’

VIP के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव मिश्रा कहते हैं, ‘मुकेश सहनी की असली लड़ाई मछुआरा समाज को आरक्षण दिलाना है। वे राजनीति में सिर्फ मंत्री बनने या विधायक बनने नहीं आए हैं। NDA के अंदर छोटा भाई कह रहा अपने बड़े भाई से कि ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए, लेकिन बड़ा भाई एकतरफा फैसले ले रहा है। भाजपा को छोटे भाई की भावना का सम्मान करना चाहिए।’

मुकेश सहनी की पार्टी VIP के 3 विधायक तोड़े, अगर मांझी और निर्दलीय गए तो भी NDA सरकार सुरक्षित

यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान से ही भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोलने वाले बिहार सरकार में पशुपालन मंत्री मुकेश सहनी को विधानसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से ही झटके पे झटका दे रही है। बोचहां विधानसभा उपचुनाव में अपना कैंडिडेट उतारने के बाद बीजेपी ने वीआईपी में बड़ी सेँधमारी कर दी। बुधवार शाम वीआईपी के सभी तीन विधायक स्वर्णा सिंह, मिश्रीलाल यादव और राजू सिंह ने बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा से मिलकर बीजेपी के पक्ष में अपना समर्थन पत्र सौंपा।

पटना(ब्यूरो), डेमोरेटिक फ्रंट :

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की समाप्ति के बाद से पड़ोसी बिहार में सियासी उठापटक तेज हो गई है। बोचहां विधानसभा उपचुनाव को लेकर गरमाई बिहार की राजनीति में बुधवार को एक बड़ा उलटफेर हुआ है। नीतीश सरकार में कैबिनेट मंत्री मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी के सभी विधायकों ने भाजपा का दामन थाम लिया है। बिहार विधानसभा में वीआईपी के चार विधायक थे, एक के निधन के बाद तीन ही बचे थे।

तीनों विधायकों के भाजपा में शामिल होने के बाद अकेले पड़े मुकेश सहनी का पहला रिएक्शन सामने आया है। एबीपी के मुताबिक, मंत्री मुकेश सहनी ने कहा, “मंत्रिमंडल में रखना या हटाना मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है। हम संघर्ष करेंगे। बीजेपी ने जेडीयू के भी छह विधायकों को तोड़ा था। हमारे चार गए हैं तो चालीस जीतेंगे। आरक्षण के लिए अंतिम साँस तक लड़ेंगे।”

रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगर यही स्थिति रही तो उनका (मुकेश सहनी) मंत्री पद भी खतरे में पड़ सकता है। मालूम हो कि 30 जून 2022 को सहनी की विधानपरिषद की सदस्यता की अवधि भी समाप्त हो रही है।

बता दें कि बिहार में 24 सीटों पर विधान परिषद का चुनाव भी होना है। इस चुनाव के लिए मुकेश सहनी की पार्टी ने बीजेपी के खिलाफ 7 सीटों पर अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा की है। इसके अलावा मुजफ्फरपुर की बोचहां विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है। इसके लिए 12 अप्रैल को वोट डाले जाएँगे और 16 अप्रैल को नतीजे घोषित होंगे।

जयंत-अखिलेश पर लेटर बम फोड़ RLD यूपी चीफ मसूद अहमद का इस्तीफा

मसूद ने चंद्रशेखर रावण के अपमान का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे दलित वोट गठबंधन से छिटक कर बीजेपी में चला गया। उन्होंने जयंत चौधरी और अखिलेश यादव पर सुप्रीमो कल्चर अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि संगठन को दरकिनार कर दिया गया। मसूद ने आगे लिखा, ”जौनपुर सदर जैसी सीटों पर्चा भरने में आखिरी दिन तीन बार टिकट बदले गए। एक सीट पर सपा के तीन-तीन उम्मीदवार हो गए। इससे जनता में गलत संदेश गया। नतीजा ये कि ऐसी कम से कम 50 सीटें हम 200 से 10000 मतों के अंतर से हार गए। 

लखनऊ(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट : लखनऊ(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी गठबंधन की हार ने राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) में भूचाल ला दिया है। रालोद चीफ जयंत चौधरी की ओर से पार्टी के सभी प्रदेश, क्षेत्रीय, जिला और फ्रंटल संगठन रद्द किए जाने के बाद अब पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मसूद अहमद ने 7 पेज का ओपन लेटर लिखकर कई सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। उन्होंने जयंत चौधरी और अखिलेश यादव पर पैसे लेकर टिकट बांटने के भी आरोप लगाए हैं और दावा किया है कि हापुड़ सीट का टिकट 8 करोड़ रुपए में बेचा गया।

मसूद ने जो बातें लेटर में लिखी हैं उससे जाहिर होता है कि चुनाव के बीच गठबंधन साथियों में दरार थी। कम सीटें मिलने की वजह से जयंत को अकेले भी चुनाव में उतरने की सलाह पार्टी ने दी थी। मसूद ने लिखा, ”12 जनवरी 2022 को मैंने आपके आदेश पर पार्टी का प्रतिनिधित्व करते हुए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार अखिलेश जी से बातचीत की। इसमें अखिलेश जी ने गठबंधन के सभी घटकों से सीटों की चर्चा करने से इनकार कर दिया। इसकी सूचना मैंने आपको दी। इस अपमान के चलते मेरे और पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने आपसे चुनाव में अकेले उतरने का आह्वान किया, लेकिन आखिरी फैसला आपके ऊपर छोड़ दिया। आपके द्वारा कई दौर की वार्ता के बाद पार्टी को आश्वस्त किया कि हमें 36 सीटों पर चुनाव लड़ना है, जिसमें पूरब की 3 सीटें, 1 सीट लखीमपुर, 1-1 सीट बुंदेलखंड और प्रयागराज मंडल की भी होंगी। आपने यह भी आश्वस्त किया कि कुछ सीटें हम एक दूसरे के सिंबल पर भी लड़ेंगे, जिस क्रम में 10 समाजवादी नेता रालोद के निशान पर लड़ाए गए जबकि सपा ने रालोद के एक भी नेता को अपने निशान पर नहीं लड़ाया।”

मसूद ने खुले खत में लिखा वह 2015-16 में चौधरी अजित सिंह के आह्वान पर पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह जी के मूल्यों और जाट-मुस्लिम एकता के साथ किसानों, शोषित, वंचित वर्गों के अधिकार के लिए संघर्ष करने को रालोद में शामिल हुए थे। 2016-17 में उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। मसूद ने कहा कि उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए उन्होंने पार्टी के बुरे दौर में अथक प्रयास किया। 

मसूद ने चंद्रशेखर रावण के अपमान का आरोप लगाते हुए कहा कि इससे दलित वोट गठबंधन से छिटक कर बीजेपी में चला गया। उन्होंने जयंत चौधरी और अखिलेश यादव पर सुप्रीमो कल्चर अपनाने का आरोप लगाते हुए कहा कि संगठन को दरकिनार कर दिया गया। मसूद ने आगे लिखा, ”जौनपुर सदर जैसी सीटों पर्चा भरने में आखिरी दिन तीन बार टिकट बदले गए। एक सीट पर सपा के तीन-तीन उम्मीदवार हो गए। इससे जनता में गलत संदेश गया। नतीजा ये कि ऐसी कम से कम 50 सीटें हम 200 से 10000 मतों के अंतर से हार गए। 

जयंत को लिखे ओपन लेटर में मसूद ने लिखा है, ”चुनाव शुरू होते ही बाहरी लोगों को टिकट दिया जाने लगा और पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं ने इस पर आपत्ति व्यक्त की। मैं यह जानकर स्तब्ध रह गया कि पार्टी के प्रत्याशियों से दिल्ली कार्यालय में बैठे लोग करोड़ों की मांग कर रहे हैं। संगठन के दबाव में मैंने आपको सूचित किया। लेकिन आपने कोई कार्रवाई नहीं की। आपके द्वारा इसे पार्टी हित में बताकर मुद्दा टाल दिया गया। दिन में 2 बजे पार्टी में आए गजराज सिंह को उसी दिन 4 बजे हापुड़ विधानसभा का टिकट दे दिया गया, जिससे पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया। हापुड़ विधानसभा सीट पर 8 करोड़ रुपए लेकर टिकट बेचे जाने से पार्टी कार्यकर्ताओं में रोष हुआ, जिसकी मेरे द्वारा आपको सूचना दी गई।”

‘अखिलेश यादव ने धन संकलने करते हुए टिकट बांटे’
पैसे लेकर टिकट बांटे जाने का आरोप लगाते हुए मसूद ने लिखा है, ”धन संकलन के चक्कर में प्रत्याशियों का समय रहते ऐलान नहीं हुआ। बिना तैयारी के चुनाव लड़ा गया। सभी सीटों पर लगभग आखिरी दिन पर्चा भरा गया। पार्टी कार्यकर्ताओं में रोष उत्पन्न हुआ और चुनाव के दिन सुस्त रहे। किसी भी प्रत्याशी को यह नहीं बताया गया कि कौन कहां से चुनाव लड़ेगा। कीमती समय में कार्यकर्ता लखनऊ और दिल्ली आप और अखिलेश जी के चरणों में पड़े रहे और चुनाव की तैयारी नहीं हो पाई। अखिलेश जी ने जिसको जहां मर्जी आई धन संकलन करते हुए टिकट दिए, जिससे गठबंधन बिना बूथ अध्यक्षों के चुनाव लड़ने पर मजबूर हुआ। उदाहरण के तौर पर स्वामी प्रसाद मौर्य जी को बिना सूचना के फाजिलनगर भेजा गया और वह चुनाव हार गए। अखिलेश जी और आपने तानाशाह की तरह काम किया, जिससे गठबंधन को हार का मुंह देखना पड़ा। मेरा आपको यह सुझाव है कि जब तक अखिलेश जी बराबर का सम्मान नहीं देते तब तक गठबंधन स्थगति करन दिया जाए।”  

मसूद ने लिखा है, ”बीजेपी के दोबारा सत्ता में आ जाने से मुसलमानों पर जान माल का संकट उत्पन्न हो गया है। जीता हुआ चुनाव टिकट बेचने और अखिलेश जी के घमंड में चूर होने से और आपके सुस्त रवैये से हम हार गए। दुख तो यह कि अभी भी कोई परिवर्तन नजर नहीं आ रहा है। मेरा आपसे अनुरोध है कि आप और अखिलेश जी इन सवालों का उत्तर दें ताकि ये गलतियां दोबारा ना दोहराई जाएं। यदि आप चाहें तो मुझे पार्टी से निष्कासित कर दें, लेकिन इन सवालों के जवाब 21 मार्च को होने वाली बैठक में या उससे पहले जनता के सामने रखें। यह पार्टी और गठबंधन के हित में होगा। यदि आप दोनों इन प्रश्नों का उत्तर 21 मार्च तक नहीं देते हैं तो इस पत्र को मेरा पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र माना जाए।”

होलिका दहन के दिन ना करें ये गलतियां

धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़ – डेमोक्रेटिक फ्रंट:

फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होलिका दहन का उत्सव मानाया जाता है। होलिका दहन की पूजा शुभ मुहूर्त में करना काफी महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि शुभ मुहूर्त में किया गया काम शुभ फल देता है। धार्मिक मान्यता है होलिका की पूजा से जीवन के सारे कष्टों से छुटाकारा मिलता है। इस साल होलिका दहन गुरुवार 17 मार्च को किया जाएगा. होलिका दहन के दिन कुछ कार्यों को करना बेहद अशुभ माना जाता है। ऐसे में जानते हैं कि होलिका दहन के दिन क्या नहीं करना चाहिए।

होलिका दहन के दिन ना करें ये गलतियां

https://youtu.be/NJw0wHz8CPg
  • होलिका दहन की अग्नि को जलती हुई चिता का प्रतीक माना गया है. इसलिए नए शादीशुदा जोड़ों को होलिका दहन की अग्नि को जलते हुए नहीं देखना चाहिए। दरअसल ऐसा करना अशुभ माना गया है. माना जाता है कि ऐसा करने में जीवन में वैवाहिक जीवन में तमाम तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता ह।
  • होलिका दहन के दिन किसी भी व्यक्ति को उधार नहीं देना चाहिए. ऐसा करने से घर में बरकत नहीं होती है. साथ ही आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
  • माता-पिता के इकलौते संतान को कभी भी होलिका में आहुति नहीं देनी चाहिए. दरअसल इसे अशुभ माना जाता है।  अगर दो बच्चे हैं तो होलिका की अग्नि को जला सकते हैं।
  • होलिका की अग्नि में भूलकर भी पीपल, बरगद और आम की लकड़ी का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।  ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसा करने से जीवन में नकारात्मकता आती है. होलिका दहन के लिए गूलर और एरंड की लकड़ी शुभ मानी जाती है।  
  • होलिका दहन के दिन भूल से भी किसी महिला का अपमान नहीं करना चाहिए।  इस दिन माता-पिता का आशीर्वाद जरूर लेना चाहिए. ऐसा करने से भगवान श्रीकृष्ण की कृपा बनी रहती है।

साभार ज्योतिष विद् पार्मिंदर सिंह

स्पीकर विजय सिन्हा पर भड़के सीएम नीतीश कुमार, कहा- इस तरह से नहीं चलेगा सदन

बिहार विधानसभा के प्रश्नकाल के दौरान सीएम नीतीश ने आपा खो दिया। स्पीकर विजय सिन्हा ने बड़े ही शांति से सीएम नीतीश की नीति को गलत करार दे साफ कर दिया कि अब पुरान जमाना भूल जाइए। स्पीकर ने साफ कह दिया कि विधायिका का अपमान बर्दाश्त नहीं करेंगे। पहले तो सीएम नीतीश ने स्पीकर विजय सिन्हा की जमकर खरी-खोटी सुनाई। लेकिन इस बार दांव उल्टा पड़ गया। बड़े ही गंभीर अंदाज में अध्यक्ष विजय सिन्हा ने सुशासन की पोल खोल कर रख दी। साथ ही यह मैसेज दे दिया कि अब दबाया नहीं जा सकता। सीएम नीतीश ने जब स्पीकर पर गंभीर आरोप लगाए तो अध्यक्ष विजय सिन्हा ने कह दिया कि कहां गई आपके जीरो टॉलरेंस वाली नीति ?

पटना(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

सरस्वती पूजा के दौरान लखीसराय जिले में वहां की स्थानीय पुलिस और विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा के बीच हुए विवाद को लेकर आज बिहार विधानसभा में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और बिहार विधानसभा के अध्यक्ष विजय सिन्हा के बीच कहासुनी हो गयी। नीतीश कुमार ने विधानसभा अध्यक्ष से कहा कि आप संविधान का खुलेआम उल्लंघन कर रहे हैं इस तरह से सदन नहीं चलेगा। दरअसल लखीसराय की घटना को लेकर बिहार विधानसभा में पिछले कई दिनों से गतिरोध जारी है। सोमवार को भी बीजेपी के विधायक संजय सरावगी ने लखीसराय में 9 लोगों की हत्या का मामला उठाया और पुलिस पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया।

सीएम नीतीश आज विस अध्यक्ष पर फूट पड़े। ऐसी स्थिति शायद ही कभी देखने को मिली होगी जब मुख्यमंत्री ने अध्यक्ष के निर्णय पर सवाल खड़े किये और जमकर हतोत्साहित किया।   सदन में सीएम नीतीश अध्यक्ष विजय सिन्हा पर भड़कते हुए कहा कि संविधान के अनुसरूप काम होगा। न हम किसी को फंसाते हैं और न बचाते हैं। आप इस तरह से हाऊस चलायेंगे? आप गलत कर रहे हैं। हम ऐसा नहीं चलने देंगे। इस तरह की चर्चा हाउस में नहीं की जाती। सदन में स्पीकर विजय सिन्हा ने भी सीएम नीतीश को करारा जवाब दिया। विजय सिन्हा ने कहा कि यह मेरे क्षेत्र का मसला है। तीन दिनों तक सदन में यह सवाल उठते रहा। लेकिन सरकार की तरफ से कोई सकारात्मक जवाब नहीं आया। स्पीकर ने कहा कि हम विधायिका का अपमान नहीं होने देंगे। दोनों तरफ से काफी नोकझोक हुई।  अगर आप न किसी को फंसाते हैं और न किसी को बचाते हैं इस फार्मूले पर चलते हैं तो लखीसराय मसले पर भी यह नीति लागू होनी चाहिए। आपकी नीति सही नहीं है।

ब्यूरो रिपोर्ट

मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा कि संविधान से सिस्टम चलता है। क्राइम की रिपोर्ट कोर्ट में जाती है, सदन में नहीं। नीतीश ने कहा कि हम पुलिस के काम में दखल नहीं देते। स्पीकर ने कहा कि यह मेरे क्षेत्र का मामला है और दोषियों पर कार्रवाई न करके निर्दोष को फंसाया गया है। मामले को लेकर सदन में काफी देर तक हमामा हुआ।विधानसभा अध्यक्ष विजय सिन्हा ने कहा कि पुलिस के द्वारा लखीसराय की घटना पर खानापूर्ति की जा रही है। उन्होंने कहा कि जहां तक संविधान की बात है तो मुख्यमंत्री हमसे ज्यादा जानते हैं। मैं आपसे सीखता हूं। स्पीकर ने कहा कि जिस मामले की बात हो रही है उसके लिए तीन बार सदन में हंगामा हो चुका है। मैं विधायकों का कस्टोडियन हूं। मैं जब भी क्षेत्र में जाता हूं तो लोग सवाल पूछते हैं कि थाना प्रभारी और डीएसपी की बात नहीं कह पा रहे हैं। आसन को हतोत्साहित करने की बात ना हो। सरकार गंभीरता से इस पर कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है।आप लोगों ने ही मुझे विधानसभा अध्यक्ष बनाया है।

मीडिया से बातचीत में मनेर के राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा कि स्पीकर विजय कुमार सिन्हा के विधानसभा क्षेत्र में न डीएसपी किसी की बात मानता है न थानाध्यक्ष सुनता है। बिहार में सीएम अधिकारियों को बचाते हैं। विधायकों का अपमान कराते हैं। नीतीश मामले में पर्दा डालना चाहते हैं। राजद प्रवक्ता ने कहा कि हम तो इस मामले को काफी दिन से उठा रहे हैं। अब जब बीजेपी से सवाल किया तो नीतीश भड़क रहे हैं।

ब्यूरो रिपोर्ट

दरअसल, लखीसराय में सरस्वती पूजा के दौरान कोरोना गाइडलाइन का उल्लंघन करने के आरोप में पुलिस ने एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया था। गिरफ्तार व्यक्ति स्पीकर का करीबी है। इसे लेकर स्पीकर ने पुलिस के प्रति नाराजगी जताई थी। किंतु अभी तक कार्रवाई नहीं की गई। मामला अभी विधानसभा की विशेषाधिकार समिति के पास है।

आज महर्षि याज्ञवल्क्य जयंती है

महर्षि याज्ञवल्क्य, जिन्हें चारों वेदों, ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद तथा अथर्ववेद के ज्ञाता का दर्जा प्राप्त है उनकी जयंती को याज्ञवल्क्य जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष कार्तिक शुक्ल की द्वादशी, यानि कि आज 07 मार्च 2022, शुक्रवार के दिन याज्ञवल्क्य जयंती मनाई जाएगी। बताया जाता है कि महर्षि याज्ञवल्क्य आध्यात्म से जुड़ी बातों के एक बेहतरीन वक्ता, होने के साथ-साथ एक महान ज्ञानी, योगी, उच्च कोटि के धर्मात्मा और श्रीराम कथा के वक्ता के रूप में भी जाने जाते हैं।

डेमोक्रेटिक फ्रंट, धर्म/संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़ :

भारतीय ऋषि-परंपरा के अनुसार महर्षि याज्ञवल्क्य को ऋषियों-मुनियों में सबसे उच्च दर्जा दिया गया है। इसके अलावा पुराणों में महर्षि याज्ञवल्क्य को ब्रह्मा जी का साक्षात् अवतार भी माना गया है, यही वजह है जिसके चलते महर्षि याज्ञवल्क्य को ब्रह्मर्षि के नाम से भी जाना जाता है। यज्ञ संपन्न कराने में उन्होंने जो महारत हासिल की थी उसके चलते उनका नाम याज्ञवल्क्य पड़ा। महर्षि याज्ञवल्क्य को याज्ञिक सम्राट का दर्जा प्राप्त था। बताया जाता है कि यज्ञ समपन्न कराने में वो इस कदर निपुण हो चुके थे मानो वो उनके बाएं हाथ का खेल हो। 

महर्षि याज्ञवल्क्य का जन्म फाल्गुन कृष्ण पंचमी को मिथिला नगरी के निवासी ब्रह्मरथ और सुनंदा के घर हुआ था। श्रीमद्भागवत के अनुसार, इनका जन्म देवराज के पुत्र के रूप में हुआ था। सातवें वर्ष में याज्ञवल्क्य ने अपने मामा वैशंपायन से शिक्षा ग्रहण कर वेद की समस्त ऋचाएं कंठस्थ कर ली थीं। बाद में इन्होंने उद्धालक आरुणि ऋषि से अध्यात्म तो ऋषि हिरण्यनाम से योगशास्त्र की शिक्षा ली। आगे की शिक्षा के लिए वे वर्धमान नगरी के गुरु शाकल्य के आश्रम में ऋग्वेद का विशेष अध्ययन करने के लिए गए। लेकिन वहां के राजा सुप्रिय की अधार्मिक व विलासी प्रवृत्ति और गुरु शाकल्य का उनके प्रति पूज्य भाव देख वे अपने गुरु से विमुख हो गए और आश्रम छोड़ दिया। फिर राजा जनक का शिष्य बन आगे की विद्या प्राप्त की।

युवावस्था में महर्षि याज्ञवल्क्य का विवाह कात्यायनी से हुआ तथा एक पुत्र हुआ कात्यायन। इधर राजा जनक के यहां एक ऋषि मित्र की कन्या मैत्रेयी ने भी मन ही मन याज्ञवल्क्य को पति मान लिया था। जब ऋषि अपनी पुत्री के लिए वर खोजने निकले, तब मैत्रेयी ने बताया कि मैंने मन ही मन याज्ञवल्क्य को पति स्वीकार कर किया है। तब पिता ने पुत्री से कहा कि वे तो विवाहित हैं और एक पुत्र के पिता हैं, तो यह कैसे संभव है। इस पर मैत्रेयी ने कहा कि वे कात्यायनी को बड़ी बहन व पुत्र कात्यायन को सगे पुत्र जैसा ही प्यार देंगी। फिर कात्यायनी की ही इच्छा से याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी का विवाह हुआ।

एक बार राजा जनक ने एक शास्त्रार्थ का आयोजन कराया जिसमें ये शर्त रखी गयी कि जो कोई भी इंसान ब्रह्मविद्या का सर्वोच्च ज्ञानी होगा उसे इनाम में सोने के सींगों वाली एक हज़ार गायें दी जाएँगी। आपको जानकर अचरज होगा कि इस शास्त्रार्थ में महर्षि याज्ञवल्क्य के अलावा और किसी ने भाग तक नहीं लिया। शास्त्रार्थ में महर्षि याज्ञवल्क्य से अनेकों जटिल प्रश्न पूछे गए जिसके जवाब में महर्षि याज्ञवल्क्य एक बार भी नहीं अटके या रुके। और अंत में महर्षि याज्ञवल्क्य इस शास्त्रार्थ में विजयी हुए। इसके परिणामस्वरूप राजा जनक ने उन्हें अपने गुरू और सलाहकार के रूप में अपने साथ ही रख लिया।

याज्ञवल्क्य को ‘वाजसनी’ भी कहा गया है, क्योंकि प्रतिदिन भोजन, दान के बाद ही अन्नग्रहण करते थे। एक बार याज्ञवल्क्य ने घोर जप-तप कर सूर्यदेव को प्रसन्न किया। सूर्यदेव ने वरदान मांगने को कहा। याज्ञवल्क्य बोले, ‘मुझे आपसे यजुर्वेद का ज्ञान प्राप्त करना है।’ सूर्यदेव के अनुग्रह से मां शारदे आचार्य के मुख में प्रविष्ट हुईं। ऐसा होते ही महर्षि याज्ञवल्क्य के पूरे शरीर में जलन होने लगी और वे पानी में कूद पड़े। तुरंत सूर्यदेव प्रकट हुए और कहा, ‘इस पीड़ा के समाप्त होते ही तुम्हारे मन-मस्तिष्क में समस्त वेद प्रतिष्ठित हो जाएंगे।’ हुआ भी ऐसा ही, याज्ञवल्क्य सम्पूर्ण वेद-पुराण में पारंगत हो गए। याज्ञवल्क्य की कृतियों में शुक्ल यजुर्वेद संहिता, याज्ञवल्क्य स्मृति, याज्ञवल्क्य शिक्षा, प्रतिज्ञा सूत्र, शतपथ ब्राह्मण, योगशास्त्र आदि का विशेष महत्व है। इनकी कृति वृहदारण्यकोपनिषद् के तीन भाग में द्वितीय भाग इन्हीं के नाम पर ‘याज्ञवल्क्य कांड’ के नाम से प्रसिद्ध है। महर्षि याज्ञवल्क्य के सैकड़ों शिष्य हुए, इनमें वेदज्ञ विश्वासु का नाम सबसे प्रमुख है। 

 चन्द्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ने के लिए अहिंसा छोड़, सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग चुना

वर्ष 1870 में सक्स-कोबर्ग के राजकुमार अल्फ्रेड एवं गोथा प्रयागराज (तब, इलाहाबाद) के दौरे पर आए थे। इस दौरे के स्मरण चिन्ह के रूप में 133 एकड़ भूमि पर इस पार्क का निर्माण किया गया जो शहर के अंग्रेजी क्वार्टर, सिविल लाइन्स के केंद्र में स्थित है। वर्ष 1931 में इसी पार्क में क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चन्द्र शेखर आज़ाद को अंग्रेज़ों द्वारा एक भयंकर गोलीबारी में वीरगति प्राप्त हुई। आज़ाद की मृत्यु 27 फ़रवरी 1931 में 24 साल की उम्र में हो गई।

मैं भगतसिंह का साधक, 
मृत्यु साधना करता हूँ |
मैं आज़ाद का अनुयायी, 
राष्ट्र आराधना करता हूँ |

: राष्ट्रीय चिंतक मोहन नारायण 

स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास डेस्क : डेमोक्रेटिक फ्रंट

राष्ट्रिय स्वतन्त्रता के ध्येय को जीने वाले स्वाधीनता संग्राम के अनेकों क्रांतिकारियों में से कुछ योद्धा बहुत ही विरले हुए। जिनकी बहादुरी और स्वतंत्रता प्राप्ति की प्रबल महात्वाकांक्षा ने उन्हें जनमानस की स्मृति में चिरस्थायी कर दिया। उनके शौर्य की कहानियों को दोहराए बिना राष्ट्र की स्वाधीनता का इतिहास बया ही नहीं किया जा सकता है। जब भी हम देश के क्रांतिकारियों, आजादी के संघर्षों को याद करते है तो हमारे अंतर्मन में एक खुले बदन, जनेऊधारी, हाथ में पिस्तौल लेकर मूछों पर ताव देते बलिष्ठ युवा की छवि उभर कर आ जाती है। मां भारती के इस सपूत का नाम था चंद्रशेखर आजाद. जिनकी आज पुण्यतिथि है।

इस घटना के तार जुड़े है, 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग में हुए भीषण नरसंहार से जिसके बाद से ही देश भर के युवाओं में राष्ट्रचेतना का तेजी से प्रसार हुआ। बाद में जिसे सन 1920 में गांधीजी ने असहयोग आन्दोलन का रुप दिया। इस समय चन्द्रशेखर भी बतौर छात्र सडकों पर उतर आये। महज 15 साल की उम्र के चंद्रशेखर को आन्दोलन में भाग लेने वाले क्रांतिकारियों के साथ गिरफ्तार किया गया। मामले में जब कोर्ट में जज के सामने इन्हें पेश किया गया तब कोई नहीं जानता था कि यहां भारत का इतिहास गढ़ा जाने वाला है जो सदियों के लिए इस देश की अमर बलिदानी परंपरा में एक उदाहरण जोड़ देगी। जज को दिए सवालों के जवाब ने चंद्रशेखर के जीवन को नई दिशा दी. उन्होंने जज के पूछने पर अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्रता, घर का पता जेल बताया। जिससे अंग्रेज जज तिलमिला उठा और उसने उन्हें 15 कोड़ों की सजा सुना दी। कच्ची उम्र के इस बालक के नंगे बदन पर पड़ता हर एक बेत (कोड़ा) चमड़ी उधेड़ कर ले आता। लेकिन इसके मुंह से बुलंद आवाज के साथ सिर्फ भारत माता की जय… वंदे मातरम के नारे ही सुनाई देते। वहां मौजूद लोगों ने आजाद की इस सहनशीलता और राष्ट्रभक्ति को देख दांतों तले उंगलियां दबा ली।

आजादी की लड़ाई को नई दिशा देने वाले इस विरले योद्धा का जन्म झाबुआ जिले के भाबरा गांव (वर्तमान के अलीराजपूर जिले के चन्द्रशेखर आजाद नगर) में 23 जुलाई सन् 1906 को पण्डित सीताराम तिवारी के यहां हुआ था। इस वीर बालक को अपनी कोख से जन्म देने वाली और अपने रक्त व दूध से सींचने वाली वीरमाता थी जगरानी देवी। चंद्रशेखर ने अपना बचपन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में गुजारा था। जहां वे भील बालकों के साथ खूब धनुष-बाण चलाया करते थे, जिसके कारण उनका निशाना अचूक हो गया था। उनका यह कौशल आगे चलकर भारत की स्वाधीनता के संघर्ष में खूब काम आया।

अपने क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत तो आजाद ने अहिंसा के आंदोलन से की थी लेकिन उन्होंने अंग्रेजों के बढ़ते अत्याचारों और अपमान को अधिक समय तक नहीं सहा और मां भारती को परतंत्रता की बेड़ियों से मुक्त कराने के लिए सशस्त्र क्रान्ति का मार्ग चुन लिया। आजाद के साथ क्रांतिकारी तो कई थे लेकिन राम प्रसाद बिस्मिल से उनकी खूब बनी। इनकी जोड़ी ने अंग्रेजों की जड़ें हिला कर रख दी।

एक समय तक देश के सभी युवा गांधीजी के नेतृत्व में आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे लेकिन फरवरी सन् 1922 में ऐतिहासिक चौरी-चौरा घटना ने सशस्त्र क्रांति की चिंगारी को हवा दे दी। उस समय में ब्रिटिश भारत के संयुक्त प्रांत उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी चौरा शहर में गांधीजी के असहयोग आंदोलन में प्रदर्शनकारियों का पुलिस से संघर्ष हुआ। भीड़ पर काबू करने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाईं जिसके बाद हालात तेजी से बिगड़े और भीड़ ने 22 पुलिसकर्मियों को थाने में बंद कर आग के हवाले कर दिया. इस घटना में हुई 3 नागरिकों और 22 पुलिसकर्मियों की मौत से आहत महात्मा गांधी ने तुरंत ही प्रभावी रुप से चल रहे असहयोग आंदोलन को रोक दिया। जिससे युवा क्रांतिकारियों के दल में भारी रोष उठा और उन्होंने अपना मार्ग गांधी से अलग कर लिया

इसके बाद ही चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़े और उसके सक्रिय सदस्य बने। इसी दौरान उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में 9 अगस्त 1925 को काकोरी लूट को अंजाम दिया और फरार हो गए। ब्रिटिश सरकार ने इसमें हिंदुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल 40 क्रान्तिकारियों के विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने व यात्रियों की हत्या करने का मुकदमा चलाया जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी, पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को फांसी दे दी गई और अन्य को कठोर कारावास के लिए कालापानी भेज दिया गया।

अपने साथियों के बलिदान के बाद आजाद ने उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारी दलों को एकजुट करके हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) का गठन किया। जिसमें उनके साथी भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव, जयदेव कपूर समेत कई क्रांतिकारी थे. जिन्होंने साथ मिलकर उग्र दल के नेता लाला लाजपतराय की हत्या का बदला अंग्रेजी अफसर सॉण्डर्स का वध करके लिया। आजाद कभी नहीं चाहते थे कि भगतसिंह खुद दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड की घटना को अंजाम दे क्योंकि वो जानते थे कि इसके बाद एक बार फिर संगठन बिखर जायेगा लेकिन भगत नहीं माने और इस घटना को अंजाम दिया गया।

 जिसने ब्रिटिश सरकार की रातों की नींद हराम कर दी लेकिन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) बिखर गया। आजाद ने असेम्बली बम कांड के मुकदमे में गिरफ्तार हुए अपने साथियों को छुड़ाने के लिए भरसक प्रयास किए, वे इस संदर्भ में पंडित गणेश शंकर विद्यार्थी और पंडित जवाहरलाल नेहरू से भी मिले लेकिन बात नहीं बनी। उन्होंने वीरांगना दुर्गा भाभी (क्रांतिकारी भगवती चरण वोहरा की धर्मपत्नी) को भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव की फांसी रुकवाने के लिए गांधीजी के पास भी भेजा लेकिन गांधीजी ने भी उन्हें निराश कर दिया और उनके तीन और साथी आजादी के लिए फांसी पर झूल गए।

इन सारी घटनाओं के बावजूद चंद्रशेखर आजाद अंग्रेजों की नजरों से अब तक बचे हुए थे। वो अपने निशानेबाजी की कला के साथ वेश बदलने की कला में भी माहिर थे। जिसने अंग्रेजों के लिए उन्हें पकड़ने की चुनौती को और बढ़ा दिया था, कहा जाता है कि आजाद को सिर्फ पहचानने के लिए उस समय अंग्रेजी हुकूमत ने 700 लोगों को भर्ती कर रखा था बावजूद उसके वो कभी सफल नहीं हो पाए। लेकिन उन्हीं के संगठन हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के सेंट्रल कमेटी मेम्बर वीरभद्र तिवारी आखिर में अंग्रेजो के मुखबिर बन गए और वो दिन आया जब मां भारती के इस लाल को इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क (वर्तमान में प्रयागराज के चंद्रशेखर आजाद पार्क) में घेर लिया गया।

ये दिन था 27 फरवरी 1931 का, आजाद अपने साथी क्रांतिकारी सुखदेव राज से मिलने पहुंचे थे। वे दोनों पार्क में घूम ही रहे थे कि तभी अंग्रेज अफसर नॉट बावर अपने दल-बल के साथ वहां पर आ धमका जिसके बाद दोनों ओर से धुंआधार गोलीबारी शुरू हो गई। अचानक हुए इस घटनाक्रम में आजाद को एक गोली जांघ पर और एक गोली कंधे पर लग चुकी थीं। बावजूद इसके उनके हाव भाव सामान्य बने हुए थे। वे अपने साथी सुखदेव के साथ एक जामुन के पेड़ के पीछे जा छिपे और स्थिति को हाथ से निकलता देख अपने साथी सुखदेव को वहां से सुरक्षित निकाल दिया। इस दौरान आजाद ने 3 गोरे पुलिसवालों को भी ढेर कर दिया लेकिन अब उनके शरीर में लगी गोलियां अपना असर दिखाने लगी थीं।  

वहीं नॉट बावर अपने सिपाहियों के साथ अंधाधुंध गोलियां बरसा रहा था, आखिरकार आजाद की पिस्तौल खाली होने को आ गई! अब पास की गोलियां भी खत्म हो चुकी थीं लिहाजा इस वीर योद्धा ने अपनी पिस्तौल में बची अंतिम गोली को स्वयं की नियति में ही लिखने का साहसिक फैसला कर लिया। आजाद के मूर्छाते नेत्रों में अब भी उनका ध्येय ‘आजाद थे, आजाद है और आजाद रहेंगे!’ स्पष्ट था। अब पार्क में सन्नाटा पसर गया नॉट बावर के तरफ से भी फायरिंग थम गई थीं आजाद हर्षित मन से जीवन की अंतिम घड़ियों में अपने देश की माटी और उसकी आबोहवा को महसूस कर रहे है और यकायक उनकी पिस्तौल आखिर बार गरजी और ये वो क्षण था जब उन्होंने उस पिस्तौल में बची अंतिम गोली को अपनी कनपटी पर दाग लिया था।

‘बमतुल बुखारा’

मां भारती ने अपने लाल को खो दिया था लेकिन उसका ख़ौफ अंग्रेजों में इस कदर हावी था कि गोरे सिपाही उसके मृत शरीर के पास तक आने से कतरा रहे थे और लगातार उन पर गोलियां बरसाए जा रहे थे। आखिर में चंद्रशेखर आजाद की इस बहादुरी से नॉट बावर इतना प्रभावित हो चुका था कि उसने खुद टोपी उतार कर आजाद को सलामी दी और उनकी पिस्तौल को (जिसे आजाद ‘बमतुल बुखारा’ कहते थे) अपने साथ अपने देश ले गया था, जिसे आजादी के बाद वापस भारत लाया गया।

व्साभार नागेश्वर पवार

मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा अनुकंपा नियुक्ति का पात्र है

अदालत ने कहा है कि मृतक कर्मचारी की दूसरी पत्नी से पैदा हुआ बच्चा अनुकंपा नियुक्ति का पात्र है। कोर्ट का मानना है कि कानून आधारित किसी भी नीति में वंश समेत अन्य आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट्ट और पीएस नरसिंह की बेंच ने यह फैसला सुनाया।

नयी दिल्ली(ब्यूरो), डेमोक्रेटिक फ्रंट :

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति अनुच्छेद 16 के तहत संवैधानिक गारंटी का अपवाद है, लेकिन अनुकंपा नियुक्ति की नीति संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुरूप होनी चाहिए। जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस पीएस नरसिंह की पीठ ने 18 जनवरी 2018 के पटना उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया और कहा कि मुकेश कुमार की अनुकंपा नियुक्ति पर योजना के तहत केवल इसलिए विचार करने से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि वह दूसरी पत्नी का बेटा है और रेलवे की मौजूदा नीति के अनुसार उसके मामले पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है।

पीठ ने कहा, ‘अधिकारियों को यह परखने का अधिकार होगा कि अनुकंपा नियुक्ति के लिए आवेदन कानून के अनुसार अन्य सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है या नहीं। आवेदन पर विचार करने की प्रक्रिया आज से तीन महीने की अवधि के भीतर पूरी कर ली जाएगी।’

इसने कहा, ‘कानून के आधार वाली अनुकंपा नियुक्ति की नीति में वंशानुक्रम सहित अनुच्छेद 16(2) में वर्णित किसी भी आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। इस संबंध में, ‘वंश’ को किसी व्यक्ति के पारिवारिक मूल को शामिल करने के लिए समझा जाना चाहिए।’

शीर्ष अदालत ने मामले के इन तथ्यों का उल्लेख किया कि जगदीश हरिजन 16 नवंबर, 1977 को नियुक्त भारतीय रेलवे का कर्मचारी था और अपने जीवनकाल में उसकी दो पत्नियां थीं।

गायत्री देवी उसकी पहली पत्नी थी और कोनिका देवी दूसरी पत्नी थी तथा याचिकाकर्ता मुकेश कुमार दूसरी पत्नी से पैदा हुआ पुत्र है।

हरिजन की 24 फरवरी 2014 को सेवा में रहते मृत्यु हो गई थी और उसके तुरंत बाद गायत्री देवी ने 17 मई 2014 को एक अभ्यावेदन देकर अपने सौतेले बेटे मुकेश कुमार को योजना के तहत अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति देने की मांग की। केंद्र ने 24 जून 2014 को अभ्यावेदन खारिज कर दिया और कहा कि कुमार दूसरी पत्नी का बेटा होने के नाते ऐसी नियुक्ति का हकदार नहीं है।

केंद्रीय प्रशसनिक अधिकरण और पटना हाई कोर्ट में दायर याचिकाएं भी बाद में खारिज हो गईं। इसके बाद मामला शीर्ष अदालत तक पहुंचा।मामले में अधिवक्ता मनीष कुमार सरन ने याचिकाकर्ता की ओर से और अधिवक्ता मीरा पटेल ने केंद्र की ओर से दलीलें रखीं।