2019: कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है

क्या कांग्रेस 1977 के चुनावी फॉर्मूले को लेकर 2019 का चुनाव जीतने का ख्वाब संजो रही है? 1977 में जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था क्या वो ही तस्वीर 2019 में बीजेपी के खिलाफ दिखाई देगी?

दरअसल बीजेपी की इस वक्त मजबूत स्थिति 1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस की स्थिति को दर्शा रही है. कांग्रेस की ही तरह बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर राज्य दर राज्य अपनी विजय यात्रा जारी रखे हुए है. बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिये कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गहन मंथन हुआ. पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिशन 300’ का प्लान पेश किया है.

chidambaram

चिदंबरम का मानना है कि 12 राज्यों में कांग्रेस के मजबूत जनाधार को देखते हुए 150 सीटों का लक्ष्य रखा जाए. कांग्रेस अगर अपनी मौजूदा सीटों की संख्या को तीन गुना बढ़ा कर 150 तक पहुंचा ले तो बाकी 150 सीटों का बचा हुआ काम क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पूरा कर सकते हैं. जिससे 272 के ‘मैजिक फिगर’ को यूपीए-3 पार कर सकती है.

चिदंबरम का मानना है कि तकरीबन 270 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन की मदद से 150 सीटें जीती जा सकती हैं. चिदंरबरम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 300 सीटों पर अकेले और 250 सीटों पर रणनीतिक गठबंधन के साथ चुनाव लड़े.

साल 2004 में भी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 145 सीटें मिली थीं जिसके बाद उसने केंद्र में यूपीए-1 की सरकार बनाई थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटें ही जीत सकी थी.

कांग्रेस की रणनीति ये हो सकती कि वो जिन राज्यों में मजबूत स्थिति या फिर नंबर दो पर हो वहां बीजेपी से सीधा मुकाबला करे. लेकिन जिन राज्यों में उसकी स्थिति नंबर 4 की हो तो वहां क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से टक्कर के लिये आगे बढ़ाए और खुद पीछे रह कर समर्थन करे.

एनसीपी नेता शरद पवार ने भी ऐसा ही सुझाव कांग्रेस को सुझाया था. पवार ने चुनाव पूर्व महागठबंधन की कल्पना अव्यावाहरिक बताया था. उन्होंने महागठबंधन के आड़े आ रही क्षेत्रीय दलों की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की मजबूरी को सामने रखा था. उनका कहना था कि चुनाव में क्षेत्रीय दल पहले अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहेंगे. भले ही बाद में बीजेपी विरोधी दल समान विचारधारा के नाम पर एक छाते के नीचे महागठबंधन बना लें.

लेकिन सवाल ये उठता है कि कांग्रेस के लिये आखिर 150 का आंकड़ा भी कैसे और किन राज्यों से आ सकेगा? इमरजेंसी के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी, वैसा ही करिश्मा दिखाने के लिये कांग्रेस के पास आज न ज़मीन है और न ही चेहरा.

दरअसल इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह खुद जनता पार्टी भी थी. जनता पार्टी की सरकार अंदरूनी कलह की वजह से गिर गई थी. जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस जनता को ये समझाने में कामयाब रही कि सिर्फ कांग्रेस ही देश में शासन चला सकती है. उस वक्त कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी जैसा करिश्माई चेहरा भी था. पाकिस्तान से 1971 की जंग जीतने के सेहरा उनके राजनीतिक बायोडाटा में दर्ज था. ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ जैसे नारों की गूंज थी. लेकिन आज कांग्रेस के पास बीजेपी के भीतर भूचाल लाने वाले चेहरे का शून्य साफ देखा जा सकता है.

जहां कांग्रेस के लिये यूपीए 3 को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन की राहें इतनी आसान नहीं है तो वहीं चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर भी आशंकाएं दिनों-दिन गहराने का ही काम कर रही हैं. अविश्वास प्रस्ताव में बीजेडी और टीआरएस जैसी पार्टियों के रुख ने कांग्रेस को झटका देने का काम किया है. इन दोनों ही पार्टियों ने खुद को वोटिंग से अलग रख कर बीजेपी का ही एक तरह से साथ दिया है. जबकि महागठबंधन को लेकर एसपी,बीएसपी और टीएमसी जैसी पार्टियों ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में इन पार्टियों को अपने जनाधार खिसकने का भी डर है.

समान विचारधारा के नाम पर भी ये पार्टियां यूपीए3 का हिस्सा बनने से कतरा रही हैं क्योंकि कांग्रेस के ‘मुस्लिम पार्टी’ के ठप्पा का डर इन्हें भी लगने लगा है. यूपी विधानसभा चुनाव में एसपी का मुस्लिम-यादव समीकरण का सत्ता दिलाने का हिट फॉर्मूला फेल हो गया तो बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग का किला भी ध्वस्त हो गया था. साफ है कि अब एसपी-बीएसपी भी लोकसभा चुनाव में हर कदम फूंक-फूंक कर रखेंगीं. ऐसे में कमजोर कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल की संभावना सियासी सौदेबाजी के कई चरणों के बाद ही हो सकती है.

बिहार की राजनीति में कांग्रेस अपने ही वजूद के लिये संघर्ष कर रही है. ऐसे में यहां उसके पास यूपीए के सहयोगी आरजेडी के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं है. बिहार की राजनीति में मुख्य लड़ाई आरजेडी और बीजेपी-जेडीयू के बीच ही होगी.

जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी की नेता ममता बनर्जी का ज्यादा जोर थर्ड फ्रंट बनाने पर दिखता रहा है. लेकिन टीआरएस के बदले-बदले से मिजाज को देखकर वो भी अब खुद की पार्टी को ही चुनाव में मजबूत करने का काम करना चाहेंगीं. इसी तरह तमिलनाडु और केरल जैसे दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस की उम्मीदें डीएमके और सीपीएम जैसी पार्टियों पर है. इन राज्यों में कांग्रेस को अपने ही धैर्य का इम्तिहान लेना होगा. सीपीएम कभी हां-कभी ना के साथ कांग्रेस के साथ दिखाई देती है तो वहीं डीएमके भी बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते कोई नया दांव चल सकती है.

दरअसल सवाल सभी क्षेत्रीय दलों के अपने वजूद का भी है जो कि मोदी लहर की वजह से गड़बड़ाने के बाद अबतक सम्हल नहीं सका है.

ऐसे में कांग्रेस को मिशन 150 के लिये बीजेपी की मिशन 300+ की रणनीति से ही कुछ सीक्रेट फॉर्मूले निकालने होंगे. एक वक्त तक बीजेपी को सवर्णों की पार्टी कहा जाता था तो कांग्रेस को दलित-मुसलमानों के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता था. लेकिन आज बीजेपी ने सवर्णों की पार्टी के टैग को हटा कर सोशल इंजीनियरिंग की जो मिसाल पेश की उसकी काट किसी के पास नहीं है. कांग्रेस को भी एक नए समीकरण की तलाश करनी होगी क्योंकि उसका वोट बैंक क्षेत्रीय दल लूट चुके हैं.

यूपी में कांग्रेस को फिलहाल मंथन करने की जरूरत नहीं है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिलीं. जबकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 7 सीटें मिलीं. गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में उसकी जमानत भी जब्त हुई. ऐसे में यहां ज्यादा एक्सपेरीमेंटल होने की जरुरत नहीं है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों को देखते हुए कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन पर ही भरोसा दिखाना होगा. कांग्रेस के पास यूपी में कोई करिश्माई चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सौदेबाजी की हालत में नहीं है. यहां वो दर्शन ठीक है कि जो मन का हो जाए तो ठीक है और न हो तो और भी ठीक है.

हालांकि साल 2009 की तर्ज पर कांग्रेस यहां सभी 80 सीटों पर दांव भी खेल सकती है क्योंकि उसके पास यहां खोने को कुछ नहीं है. अगर दांव चल गया तो कांग्रेस के लिये सबसे अप्रत्याशित एडवांटेज होगा.

गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं. साल 2014 में गुजरात में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘ट्रेलर’ दिखाने वाली कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में पूरी ‘पिक्चर’ दिखाएगी. गुजरात कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में सभी बीजेपी विरोधी ताकतों को साथ लाकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी.

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं के साथ गठबंधन कर बीजेपी के ‘क्लीन-स्वीप’ के तिलिस्म को तोड़ दिया था. ऐसे में इस बार गुजरात में कांग्रेस को संभावना दिख रही हैं जो कि उसकी 150 सीटों के लक्ष्य को हासिल करने के लिये बूंद-बूंद से घड़ा भरने का काम कर सकती है.

इस बार पंजाब और राजस्थान को लेकर कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है. पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हारी कांग्रेस ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की. इस चुनाव से न सिर्फ उसकी सीटों में इजाफा हुआ बल्कि वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38.5 फीसदी मत मिले. वहीं गुरुदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है. ऐसे भी संकेत मिल रही हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल को कड़ी टक्कर देने के लिये कांग्रेस आम आदमी पार्टी से भी हाथ मिला सकती है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब के विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया था.

इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में कांग्रेस के पास केवल 2 ही सीटें हैं. ये सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना और कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में जीती थीं. लेकिन इस बार कांग्रेस को एमपी में एंटीइंकंबेंसी से काफी उम्मीदें हैं. शिवराज के 15 साल के शासनकाल में उपजी सत्ताविरोधी लहर के भरोसे कांग्रेस न सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है बल्कि उसे लोकसभा सीटें मिलने की भी उम्मीदें है.

इसी तरह छत्तीगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं. लेकिन कांग्रेस के पास यहां विद्याचण शुक्ल जैसा पुराना चेहरा नहीं है. नक्सली हमले में कांग्रेस ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया था. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह का फिलहाल कांग्रेस के पास यहां कोई तोड़ नहीं दिखाई देता है.

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आने का पूरा भरोसा है. यहां हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा है. विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस को यहां लोकसभा सीटें भी जीतने की उम्मीद है. साल 2014 में राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत सकी थी. लेकिन इस बार उपचुनावों में उसने लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट जीती.

उत्तर-पूर्वी राज्यों में एक वक्त कांग्रेस का एकछत्र राज होता था. लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों में ताकत झोंक दी. बीजेपी ये जानती है कि यूपी में साल 2014 का करिश्मा दोहरा पाना आसान नहीं होगा. इसलिये उसने वैकल्पिक सीटों के लिये उत्तर-पूर्वी राज्यों को खासतौर से टारगेट किया. ये इलाके कांग्रेस और लेफ्ट का गढ़ होने के बावजूद अब भगवामय हो चुके हैं.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है. वहीं नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-लीड डेमोक्रेटिक गठबंधन को बीजेपी का समर्थन मिला हुआ. ऐसे में कांग्रेस को उत्तर-पूर्वी राज्यों में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि बीजेपी ने पूर्वोत्तर की 25 लोकसभा सीटों के लिये साल 2014 से ही तमाम परियोजनाओं के जरिये साल 2019 की तैयारी शुरू कर दी थी.

सबसे ज्यादा असम के पास 14 लोकसभा सीटें हैं. असम में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कांग्रेस पांच राज्यों से सिमट कर मेघालय और मिजोरम तक ठहर गई है.

महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस थोड़ी सी आशान्वित हो सकती है. महाराष्ट्र के वोटरों में हर पांच साल में सरकार बदलने की मानसिकता रही है. यूपी के बाद महाराष्ट्र ही लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें देता है. यहां असली मुकाबला कांग्रेस-एनसीपी और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बीच है. फिलहाल जो राजनीतिक हालात हैं उसे देखकर लग रहा है कि बीजेपी यहां पर अकेले दम पर चुनाव लड़ सकती है क्योंकि शिवसेना के साथ रिश्ते काफी बिगड़ चुके हैं. कांग्रेस और एनसीपी इसका फायदा उठा सकते हैं.

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस दोबारा सरकार नहीं बना पाई लेकिन उसे जेडीएस के रूप में साल 2019 का लोकसभा पार्टनर मिल गया है. कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को साल 2014 में केवल 9 सीटें ही मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन इस बार चुनाव में बीजेपी का गेम-प्लान बिगाड़ने का काम कर सकता है.

चिदंबरम के गेम-प्लान के मुताबिक अगर कांग्रेस को 150 सीटें हासिल करनी है तो उसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में जोरदार मेहनत करनी होगी तो वहीं क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले राज्यों में गठबंधन को ही रणनीति बनानी होगी.

चिदंबरम के फॉर्मूले में अंकगणित के हिसाब से कागजों पर कांग्रेस करिश्मा देख सकती है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मोदी-विरोधी मोर्चा केंद्र सरकार के खिलाफ किन मुद्दों पर मैदान में ताल ठोंक सकेगा? सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर चुनाव जीतने की गलतफहमी कांग्रेस को साल 2014 की ही तरह दोबारा ‘हाराकीरी’ पर मजबूर ही करेगी.

कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी. पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों से बचना होगा. इसकी शुरुआत खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ही करनी पड़ेगी तभी दूसरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जबान पर लगाम रखेंगे. अब राहुल भी ये जान चुके हैं कि ‘आंखों में आंख न डाल पाने वाले’ मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर कैसे विरोधियों को धूल चटा गए हैं.

कांग्रेस में पीएम मोदी पर बोलने के नाम पर ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का ‘भरपूर इस्तेमाल’ करने वाले नेता ही अपनी पार्टी का काम तमाम करते आए हैं. तभी राहुल को सीडब्लूसी की बैठक में बड़बोले नेताओं की बोलती बंद करने के लिये कड़ी कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी है.

बहरहाल, कांग्रेस ये सोचकर खुद में आत्मविश्वास भर सकती है कि इस साल लोकसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी 8 सीटों पर हारी है. वहीं बीजेपी भी 8 सीटों की हार से 2019 के अपने मिशन 300+ की दोबारा समीक्षा कर सकती है. फिलहाल सौ साल पुरानी कांग्रेस को 150 सीटों की सख्त दरकार है. ये चुनौती इसलिये भी बड़ी है क्योंकि कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है.

शराबबंदी कानून में संशोधन पर जाम के बरसे तेजस्वी


बिहार विधानसभा में सदन ने विपक्ष की अनुपस्थिति में ही बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद विधेयक 2018 पारित कर दिया


मंगलवार को बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने मद्यनिषेध और उत्पादन संशोधन विधेयक 2018 को थानों की कमाई का जरिया करार दिया. इसी के साथ उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से सवाल किया कि क्या वे स्वीकार करते हैं कि उन्होंने पहले वाला कानून अंहकार के कारण बनाया था.

दरअसल आरजेडी सहित अन्य विपक्षी दल बिहार में सुखाड़ पर चर्चा कराने को ज्यादा महत्वपूर्ण बता रहे थे. इस पर चर्चा ना कराए जाने के चलते विपक्षी दल सदन से वाकआउट कर गए. इसके बाद बिहार विधानसभा में सदन ने विपक्ष की अनुपस्थिति में ही बिहार मद्यनिषेध और उत्पाद विधेयक 2018 पारित कर दिया.

इस पर तेजस्वी ने बिहार विधानसभा परिसर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए आरोप लगाया कि शराबबंदी कानून में संशोधन थानों की कमाई का जरिया बनेगा. तेजस्वी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पर निशाना साधते हुए कहा ‘पहले वह शराबबंदी से किसी प्रकार का समझौता नहीं करने की बात कहते थे. अब छूट दे रहे हैं. मुख्यमंत्री बिहार में शराब को कल रेगुलर भी कर सकते हैं.’

तेजस्वी ने नीतीश पर प्रधानमंत्री बनने के फेर में शराबबंदी क़ानून को लागू करने का आरोप लगाते हुए पूछा कि मुख्यमंत्री जी इससे तबाह हुए परिवारों के बारे में आपने क्या सोचा? आरजेडी नेता ने कहा कि मुख्यमंत्री जी ने ज़ोर-शोर से नीरा से लाखों लोगों को रोज़गार देने की बात कही थी. सरकार बताए नीरा से अबतक कितने लोगों रोज़गार मिला. ताड़ी तोड़ने वाले ग़रीब पासी जाति के लोगों के पेट पर सरकार ने लात मारी लेकिन अभी तक किसी वैकल्पिक रोज़गार की कोई व्यवस्था नहीं की.

शराब बंदी के बावजूद भी राज्य में शराब बरामद होने पर सवाल करते हुए तेजस्वी ने कहा कि यह शराब कहां से आ रही है. इसी के साथ उन्होंने कहा कि शराब को पटना पहुंचाने के लिए तस्कर को कई जिलों के पुलिस थानों से गुजरना पड़ता है. क्या इन जिलों के पुलिस अधीक्षक और सभी थानों की पुलिस नकारा है. जो तस्कर सभी की आंखों में धूल झोंक देते हैं.


जब विपक्ष किसी काम के हो जाने पर हो हल्ला मचाये तब जान लो कि कुछ तो ठीक हुआ होगा: राजनाइटिक धुरंधर

राहुल इकलौते प्रधान मंत्री पद के उम्मेदवार नहीं: तेजस्वी


बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता ने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य है कि विपक्ष ऐसे नेता को पीएम उम्मीदवार के लिए चुने जो संविधान की रक्षा कर सके


आरजेडी और बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के मंगलवार को दिए ताजा बयान ने विपक्ष के बीच प्रधानमंत्री पद को लेकर आपसी रस्साकशी की उजागर कर दिया है. तेजस्वी यादव ने कहा कि विपक्ष की तरफ से राहुल गांधी अकेले पीएम पद की दौड़ में नहीं हैं. तेजस्वी यादव ने पटना में पत्रकारों से कहा कि सभी विपक्षी दल एक साथ बैठेंगे और प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के नाम पर फैसला करेंगे. सिर्फ राहुल गांधी इस रेस में अकेले नहीं हैं.

उन्होंने कहा कि विपक्ष में और भी नेता हैं जैसे ममता बनर्जी, चंद्रबाबू नायडू, शरद पवार और मायावती. तेजस्वी यादव ने साफ कहा कि उनकी पार्टी उस व्यक्ति का पूरा समर्थन करेगी जिसके नाम पर पूरा विपक्ष एकजुट होकर मुहर लगाएगा. हालांकि तेजस्वी यादव ने यह भी कहा कांग्रेस एक अखिल भारतीय पार्टी है. उन्होंने कहा कि हमारा मुख्य उद्देश्य है कि विपक्ष ऐसे नेता को चुने जो संविधान की रक्षा कर सके. राहुल गांधी भी यह नेता हो सकते हैं. राहुल गांधी को एक मजबूत महागठबंधन बनाने के लिए सभी गैर-बीजेपी दलों को एकजुट करना होगा.

आरजेडी नेता ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री का पद मुख्य मुद्दा नहीं है और देश के लिए बहुत से वास्तविक महत्वपूर्ण मुद्दे हैं. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी राहुल गांधी का पुरजोर समर्थन करते रहे हैं और आरजेडी लंबे समय से कांग्रेस की सहयोगी पार्टी है.

पंडित त्रिपाठी पर राहू…ल का प्रकोप, पार्टी से निष्कासित


आरजेडी के राष्ट्रीय प्रवक्ता शंकर चरण त्रिपाठी ने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाने की आलोचना की थी जिसपर पार्टी ने उनके खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें निकाल बाहर किया


 

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अक्सर बीजेपी और एनडीए के निशाने पर रहते हैं लेकिन अब यूपीए के ही एक सहयोगी पार्टी के नेता ने उनपर सवाल उठाया है.

न्यूज़ एजेंसी एएनआई के अनुसार राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के राष्ट्रीय प्रवक्ताने अविश्वास प्रस्ताव के दौरान लोकसभा में राहुल गांधी के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गले लगाने पर तंज कसा. आरजेडी नेता ने पीएम मोदी को गले लगाने को लेकर राहुल की आलोचना की.

मामला सामने आने के बाद आरजेडी ने शंकर चरण त्रिपाठी के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उन्हें पार्टी से निष्काषित कर दिया है.

मायावती ने कहा कि बसपा में अनुशासनहीनता को ना तो पहले कभी बर्दाश्त किया है और ना ही आगे कभी इसे सहन किया जाएगा। इसीलिए पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व नेशनल कोआर्डिनेटर जयप्रकाश सिंह को पहले सभी पार्टी पदों से हटाया गया और अब बसपा से भी निकाल दिया गया है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को व्यक्तिगत तौर पर आक्षेप करते हुए उन्हें ‘गब्बर सिंह भी कहा था। पार्टी सुप्रीमो ने कहा कि बसपा को सत्ताधारी पार्टी भाजपा कतई नहीं बनने देना है, जो सत्ता के लालच व अहंकार में आकर मर्यादाओं की हर सीमा को लांघने में लगी हुई है। हालांकि जयप्रकाश को बाहर का रास्ता दिखाने की कार्रवाई तब की गई, जब कांग्रेस ने इसकी आलोचना की।

क्या है पूरा मामला-
मायावती ने हाल ही में जयप्रकाश सिंह को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ दिए बयान के चलते उन्हें पार्टी के राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर पद से हटा दिया था। जयप्रकाश सिंह ने बयान दिया था कि राहुल गांधी कभी भी देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते हैं क्योंकि उनकी मां विदेश मूल की हैं। जिसके बाद मायावती ने कहा था, ‘मुझे बीएसपी के राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर जयप्रकाश सिंह के भाषण के बारे में पता चला है जो बीएसपी की विचारधारा के खिलाफ है। साथ ही, उन्होंने विरोधी पार्टी नेतृत्व के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणी की है। क्योंकि यह उनकी व्यक्तिगत राय है, उन्हें पार्टी के पद से फौरन प्रभाव से हटाया जा रहा है।’

आरजेडी के मायावती की ही तरह इस मामले में त्वरित कार्रवाई करने को यूपीए की सहयोगी आरजेडी के डैमैज कंट्रोल की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है.

बिहार कांग्रेस्स ने रखी राहुल के भूचाल की लाज

 

 

 

 

 

 


 

 

 

 

 



राहुल गांधी ने देश से वादा किया था कि अगर वो संसद में बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा, वह संसद में बहुत बोले, भूकंप नहीं आया लेकिन बिहार के कांग्रेसियों ने उनके दावे की लाज रख ली


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश से वादा किया था कि अगर वो संसद में बोलेंगे तो भूकंप आ जाएगा. वह संसद में बहुत बोले. भूकंप नहीं आया. लेकिन, बिहार के कांग्रेसियों ने उनके दावे की लाज रख ली. राहुल शुक्रवार को संसद में बोल रहे थे. इधर भागलपुर में कांग्रेसियों की बैठक में भूकंप का नजारा चल रहा था. नेता-कार्यकर्ता एक दूसरे को धकिया कर बैठक वाले कांग्रेस भवन से बाहर कर रहे थे. बिल्कुल भूकंप जैसा माहौल था. बुजुर्ग कांग्रेसी सदानंद सिंह, जो इस समय विधायक दल के नेता हैं, विधानसभा के साथ-साथ कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं, इस आपाधापी में गश खाकर गिर गए. सबको एक रहने की हिदायत देने आए कांग्रेस के प्रभारी सचिव वीरेंद्र सिंह राठौर बमुश्किल जान बचा कर भागे.

यह उसी समय में हो रहा था, जब संसद में केंद्र सरकार के खिलाफ पेश अविश्वास प्रस्ताव पर बहस चल रही थी. कांग्रेस के नगर विधायक अजीत शर्मा और पार्टी के नेता प्रवीण कुशवाहा के समर्थक अपना जौहर दिखा रहे थे. तभी यह दृश्य उपस्थित हुआ. इस अप्राकृतिक ‘भूकंप’ की चपेट में आए सदानंद सिंह ने दोषी नेताओं के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है. दरअसल, राज्य में कांग्रेस लंबे समय से नेतृत्वविहीन है. इधर आलाकमान ने एक महासचिव और दो सचिवों को राज्य में पार्टी की मजबूती का जिम्मा दिया है. कांग्रेसी इसी तरीके से अपनी ताकत का अहसास कराते रहते हैं.

90 के बाद खानाबदोश की जिंदगी

बिहार में कांग्रेस 1990 में सत्ता से बेदखल हुई. तभी से वह खानाबदोश वाली जिंदगी बसर कर रही है. लंबे समय तक वह आरजेडी के आसरे रही. बीच में कुछ दिनों के लिए उसे जेडीयू का भी सहारा मिला. आजकल फिर आरजेडी के साथ है. इस अवधि में कभी भी आलाकमान की ओर से इस बात की गंभीर कोशिश नहीं की गई कि कांग्रेस को अपने पैरों पर खड़ा किया जाए.

इस दौर में जितने अध्यक्ष बने, सबको गुटबाजी का शिकार होना पड़ा. लंबे समय तक सत्ता में रहने के कारण कांग्रेसियों की सड़क पर उतर कर संघर्ष करने की क्षमता खत्म होती गई. पार्टी में पूर्व सांसद और पूर्व विधायक इफरात में हैं. इन्हें रेलवे में मुफ्त सफर की सुविधा है. दिल्ली में रहने के लिए बिहार भवन के कमरे आसानी से मिल जाते हैं. इन सुविधाओं का इस्तेमाल कांग्रेसियों ने आलाकमान के सामने एक दूसरे की कब्र खोदने के लिए किया. आप कांग्रेस के बड़े नेताओं के रोजनामा पर गौर करें तो पाएंगे कि क्षेत्र से अधिक इनके दौरे दिल्ली के होते हैं.

करीब 20 वर्षों से आलाकमान से मुलाकात की खबरों का एक फॉर्मेट बना हुआ है-‘आलाकमान से मुलाकात हुई. राज्य की राजनीतिक स्थिति पर गंभीर चर्चा हुई.’ चर्चा कितनी गंभीर हुई, इसका पता आजतक किसी को नहीं चला. क्योंकि 2015 के विधानसभा चुनाव परिणाम को छोड़ दें तो राज्य में कांग्रेस की कामयाबी हमेशा गिरते क्रम में रही है. 1990 के विधानसभा चुनाव में 71, 1995 में 29, 2000 में 23, 2005 के फरवरी में 10, अक्टूबर में 09 और 2010 में सिर्फ चार विधायक जीत पाए. इस चुनाव की खासियत यह थी कांग्रेस अपने दम पर लड़ी थी. सभी 243 सीटों पर उसके उम्मीदवार खड़े थे. आठ फीसदी से अधिक वोट मिले थे.

अंदरूनी संकट का कारण पिछला चुनाव परिणाम भी है

असल में राज्य कांग्रेस में मौजूद अंदरूनी संकट का कारण विधानसभा का पिछला परिणाम भी है. 41 सीटों पर लड़ाई. उसमें 27 पर जीत. लगता है कि कांग्रेसियों ने इस जीत में अपने योगदान को माइनस कर दिया है. सबके सब इस बहस में उलझे हुए हैं कि इतनी शानदार जीत किसके चलते हुई. वह चुनाव महागठबंधन के बैनर तले हुए था. आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद और सीएम नीतीश कुमार जोर लगाए हुए थे. आने वाले नवंबर में उस चुनाव को हुए तीन साल पूरे हो जाएंगे, कांग्रेसी अभी तक यह तय नहीं कर पाए हैं कि उस जीत का असली श्रेय किसे दिया जाए.

कुछ विधायक इसका श्रेय नीतीश कुमार को देते हैं. एहसान चुकाने की गरज से ही प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष डा अशोक चौधरी विधान परिषद के दो अन्य सदस्यों के साथ जेडीयू में चले गए. इधर जो विधायक हैं, उनके मन में संघर्ष चल रहा है- कांग्रेस में रहें, इधर(आरजेडी) रहें कि उधर (जेडीयू) चले जाएं. उनकी बेचैनी समझने लायक है. कई बार विधायक और एक बार सांसद रहे बुजुर्ग कांग्रेसी रामदेव राय भी नीतीश कुमार की तारीफ करते नहीं थकते. उन्होंने कहा, मैं खांटी कांग्रेसी की हैसियत से नीतीश के कामकाज की तारीफ करता हूं. सच्चा कांग्रेसी कभी झूठ नहीं बोलता. राय के वक्तव्य को कांग्रेस में भूकंप की आशंका के तौर पर देखा जा रहा है.

असर मापने का कोई पैमाना नहीं बन सका

कांग्रेस के किस नेता का राज्य में कितना असर है? इसके मूल्यांकन की अजीबोगरीब प्रणाली अपनाई गई है. आलाकमान ने हमेशा अपने प्रभारी की रिपोर्ट पर भरोसा किया. प्रभारी की रिपोर्ट में जो कुछ कहा गया, आंख मूंदकर उस पर अमल किया गया. लिहाजा कांग्रेसी उतने ही समय तक सक्रिय रहते हैं, जितने समय तक प्रभारी राज्य में मौजूद रहते हैं.

पटना एयरपोर्ट से लेकर प्रदेश मुख्यालय सदाकत आश्रम तक पार्टी की सक्रियता उस दिन देखते ही बनती है, जिस दिन प्रभारी, कांग्रेस के किसी बड़े नेता या आलाकमान की ओर से तैनात किसी प्रतिनिधि का पटना आगमन होता है. नई-पुरानी गाड़ियों का काफिला यह बताते चलता है कि कांग्रेस में बड़ी जान है. प्रभारी के सामने ताकत का प्रदर्शन अक्सर मारपीट के जरिए ही होता रहा है. इससे पहले सदाकत आश्रम में मारपीट की कई घटनाएं हो चुकी हैं. भागलपुर में भी वही हुआ. हां, उस घटना के बाद प्रभारी एहतियात बरत रहे हैं. अब उनकी हिफाजत का खास खयाल रखा जा रहा है.

प्रभारियों के साथ एक और बात होती है. सत्ता में न रहने के बावजूद उनपर रिश्वतखोरी के आरोप लग जाते हैं. पहले वाले प्रभारी महासचिव सीपी जोशी पर ऐसे आरोप इफरात में लगे. राज्य में पार्टी के प्रति आलाकमान की गंभीरता का अंदाजा इस तथ्य से लगाइए कि प्रदेश अध्यक्ष का पद करीब साल भर से प्रभार में चल रहा है. यह अलग बात है कि जिस दिन नए प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हुई, गुटबाजी फिर तेज हो जाएगी.

हामीद अंसारी की परेशानी जोशी की जुबानी

 

नई दिल्ली. संघ और भाजपा से जुड़े रहे पूर्व प्रचारक संजय विनायक जोशी फिर से जोश में आ गए हैं. अचानक उन्होंने एक ब्लॉग लिखकर अपने तेवर दिखा दिए हैं. यूं तो उन्होंने पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी पर निशाना साधा है लेकिन सीधे तौर पर उनके निशाने पर भारत ही नहीं दुनियां भर के मुसलमान और इस्लाम तो है ही, उनकी तरफदारी करने वाले लोग भी हैं. इस ब्लॉग को उनकी फौरी प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जाए या भविष्य का कोई संकेत, ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा, लेकिन उनके तेवर काफी सख्त हैं.

जोशी बिना लाग लपेट के सीधे हामिद अंसारी पर सवाल उठाते हुए लिखते हैं कि, ‘हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा था कि देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है. अभी-अभी आ रही एक बेहद सनसनीखेज खबर से साबित हो गया है कि आखिर हामिद अंसारी जैसे लोगों में असुरक्षा की भावना क्यों पनप रही है. खबर है कि उत्तराखंड में मदरसों में पढ़ने वाले करीब 2 लाख मुस्लिम बच्चे रातों-रात गायब हो गए हैं’. दरअसल उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में आधार लिकिंग के बाद उत्तराखंड में वजीफों में आई कमी को हामिद अंसारी के बयान से जोड़ दिया है.

वो आगे लिखते हैं, ‘ये तो अकेले उत्तराखंड का मामला है, अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि जब सीएम योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में मदरसों को अपना रजिस्ट्रेशन करवाने को कहा तो क्यों इतना हंगामा खड़ा कर दिया गया. इस बात से साबित हो गया है कि बीजेपी की सरकार आने के बाद से मुस्लिम खुद को क्यों असुरक्षित महसूस कर रहे हैं’. वजीफे के मुद्दे पर ही नहीं वो मदरसों को और भी बातों के लिए निशाने पर लेते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में तो और भी काफी कुछ चल रहा है. सरकारी पैसों की लूट वहां भी ऐसे ही की जा रही है, साथ ही खुफिया एजेंसियों ने ये भी अलर्ट दिया है कि कई मदरसों में बच्चों को कट्टरपंथी शिक्षा भी दी जा रही है. इस तरह की गड़बड़ियों को देखते हुए सीएम योगी ने सभी मदरसों का रजिस्ट्रेशन जरूरी कर दिया है. राज्य में कई मदरसे बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं, उन्हें फंड कहाँ से आता है, इसकी किसी को कोई जानकारी तक नहीं है.इन मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है, इस पर भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता. जबकि ऐसे छात्रों को लगातार अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं के तहत तमाम फायदे मिलते रहते हैं.’.

हामिद अंसारी पर निशाना साधते हुए संजय जोशी लिखते हैं, ‘उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में चल रहे लगभग 800 मदरसों पर प्रतिवर्ष 4000करोड़ रुपये खर्च करती है. मगर हैरत की बात है कि इसका एक बड़ा हिस्सा छात्रों तक पहुंचने की जगह उन लोगों की जेब में जा रहा है, जिन्हें लेकर हामिद अंसारी जैसे लोग परेशान हो रहे हैं’. मदरसों के बाद वो अपने ब्लॉग में इंटरनेशनल लेवल पर हो रही घटनाओं को इस्लाम से जोड़ देते हैं, ‘वैसे देखा जाय तो पाकिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है ? अफगानिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है? सीरिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है? यमन में मुसलमानों को कौन मार रहा है? इराक में मुसलमानों को कौन मार रहा है? लीबिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है? कौन है जो मिस्र में मुसलमानों को मार रहा है? जो सोमालिया में मुसलमानों को मार रहा है? बलूचिस्तान में भी मुसलमानों को मार रहा है? अब मैं सोच रहा हूँ जब ये सभी देश इस्लामिक हैं… तब शान्ति कहाँ है? मैं इस्लाम पर सवाल नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि सभी लोग जानते हैं की इस्लाम एक शांतिपूर्ण धर्म है… लेकिन शांति रहस्यमय रूप से से गायब है….!! अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लेबनान, यमन और मिस्र को किसने बर्बाद किया है ? या वहां दंगा करने के लिए कौन जिम्मेदार हैं ?’.

लग रहा है कि संजय जोशी इस्लाम से जुड़े एक एक पहलू पर लिखने के मूड में थे, वो देश की बात भी करते हैं और उसके ‘गद्दारों’ की भी, ‘अजीब विडम्बना है , कुछ गद्दारों के लियें यहाँ इशरत बेटी है, कन्हैया बेटा है, दाऊद भाई है, अफजल गुरू है, लेकिन भारत माता नहीं !आखिर…ऐसा क्यों है……..’.

वो आगे लिखते हैं, ‘अब थोड़ा और ध्यान दीजिए…मुस्लिम + हिन्दू = समस्या, मुस्लिम + बौद्ध =समस्या, मुस्लिम + ईसाई = समस्या, मुस्लिम + सिख = समस्या, मुस्लिम + नास्तिक = समस्या, मुस्लिम + मुस्लिम =बहुत बड़ी समस्या! उदाहरण देखिए, हां-जहां मुस्लिम बहुसंख्यक है, वहाँ वे सुखी नहीं रहते हैं और न दूसरे को रहने देते हैं!

देखिए …मुस्लिम सुखी नहीं, गाजा में मुस्लिम सुखी नहीं ,म्हलचज में मुस्लिम सुखी नहीं, लीबिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,मोरोक्को में मुस्लिम सुखी नहीं, ईरान में मुस्लिम सुखी नहीं, ईराक में मुस्लिम सूखी नहीं, यमन में मुस्लिम सुखी नहीं, अफगानिस्तान में मुस्लिम सुखी नहीं, किस्तान में मुस्लिम सुखी नहीं ,सीरिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,लेबनान में मुस्लिम सुखी नहीं ,नाइजीरिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,केन्या में मुस्लिम सुखी नहीं सूडान में ,अब गौर कीजिए ………! मुस्लिम सुखी वहां हैं, जहाँ कम संख्या में है…? मुस्लिम सुखी है आस्ट्रेलिया में, मुस्लिम सुखी है इंग्लैंड में, मुस्लिम सुखी है बेल्जियम में, मुस्लिम सुखी है फ्रांस में, मुस्लिम सुखी है इटली में, मुस्लिम सुखी है जर्मनी में, मुस्लिम सुखी है स्वीडन में, मुस्लिम सुखी है कनाडा में, मुस्लिम सुखी है भारत में, मुस्लिम सुखी है नार्वे में, मुस्लिम सुखी है नेपाल में, क्योंकि यहां जेहाद के नाम पर सब कुछ संभव हैं.

आखिरी लाइन वो उस विषय पर लिखते हैं जोकि उनके ब्लॉग का टाइटल है, ‘आतंकवादी का मजहब क्या होता है?’. वो लिखते हैं, ‘मुसलमान हर उस देश में सुखी है ! जो इस्लामिक देश नही है ……..और देखिये कि वो उन्हीं देशो को दोषी ठहराते है जो इस्लामिक नहीं हैं….! या जहां मुस्लिमो की लीडरशिप नही है…..! मुस्लिम हमेशा उन देशो को ब्लेम करते है जहां वे सुखी हैं…….! और मुस्लिम उन देशों को बदलना चाहते हैं….. जहां वे सुखी हैं ! और बदल कर वे उन देशों की तरह कर देना चाहते हैं! जहां वे सुखी नही हैं……..!और अंत तक वो इसके लिए लड़ाई करते हैं….! और इसको ही बोलते हैं..आदि और भी हैं ऐसे ही इस्लामिक जेहादी आतंकवादी संगठन! अब इतना तो आप सभी, जरूर समझ गए होंगे कि……आतंकवादी का मजहब क्या होता है…..?’

संजय जोशी अपने आप को बीजेपी का सदस्य कहते हैं, ये अलग बात है कि बीजेपी उन्हें आधिकारिक रूप से कही नहीं बुलाती. अब ऐसे में उनका ये ‘मुस्लिम विरोधी’ ब्लॉग विवादों में आता है, या उन्हीं की तरह गुमनामी में जाएगा, वक्त ही बताएगा.

Mangal Pandey ‘The Lone Runner’


The chapters of India’s independence chapter began to be written in true sense in 1857 but it is said that the rebel of the rebellion against Angaji’s rule was played by the soldier with one of them. The aura of that soldier was such that when the forerunners ordered the other soldiers to confront him, they all retreated and the turn of martyrdom turned out to be the executioners refused to hang him.


The chapters of India’s independence chapter began to be written in true sense in 1857 but it is said that the rebel of the rebellion against Angaji’s rule was played by the soldier with one of them. The aura of that soldier was such that when the forerunners ordered the other soldiers to confront him, they all retreated and the turn of martyrdom turned out to be the executioners refused to hang him. Perhaps that Indian soldier was a warrior of independence. He was none other than Mangal Pandey, born in 1827 in a Sarayuparan Brahmin family in Nagawa, a small village in Ballia, Uttar Pradesh. Today (July 19th) is the birth anniversary of Mangal Pandey. Pandey was admitted to the army of East India Company at the age of 22 as a constable. He was a soldier of the East India Company’s 34th Bengal Infantry. In the memory of Mangal Pandey, the Government of India issued a stamp in 1984. Films and dramas have become their life. Historians have different opinions about Mangal Pandey’s revolt.

One of the historians wrote that rumors of Indian soldier being killed by the European soldiers for making and opposing Indian soldiers forcibly terrorized Mangal Pandey and on 29 March 1857, in the drunken cannabis, Had rebelled against the rule. Some historians said that due to the rebellion he became an enfield gun, in which the cartridge had to be cut off by teeth. When the soldiers came to know that the outer shell of the cartridge was made of cow and pig fat to save the seal, Mangal Pandey had raised the voice against it. English historian Kim E. Wagner wrote in his book “The Great Fear of 1857 – Rumors, Conspiracy and Making of the Indian Unmissing”, “Knowing the fear of the sepoys, Major General J. B. Heyersi, on the Hindustani soldiers It was quite rumored to have called the assault as rumor, but it is quite possible that the heresy was able to spoil the situation by confirming the rumors reached to the soldiers. The soldiers who were terrorized by Major General’s speech were also Mangal Pandey of the 34th Bengal Native Infantry. “

British historian Rosie Lilvelan Jones has also presented some similar arguments in his book “The Great Upcoming In India 1857 – 58 Untold Stories, Indian and British”. According to these historians, Mangal Pandey fired at Sergeant Major James Hewison but he survived. This incident has been told by the hand of Sheikh Paltu. During the conflict, when the lieutenant Benpade Bag reached the spot, Pandey shot him, but the target missed, Bagh also fired on Pandey with his pistol, he did not even target. If the British officers asked the soldiers to capture Mangal Pandey, all the chase was withdrawn. Paltu tried to overcome Pandey.According to Jones, when Paltu told the jamadar Ishwari Pandey that he sent four soldiers to capture Mangal Pandey, Ishwari Prasad had told Paltu a gun and said that if Mangal does not let Pandey escape then he will shoot him.

According to Jones, Mangal Pandey has cursed his colleagues and said that “you people have provoked me and now you are not with me”, and many pedestrians, including the cavalry, come towards him, Pandey has put a gun in his chest with his chest The trigger was pressed by thumb but he was saved. On April 8, 1857, Pandey was executed by the hangers of Kolkata on refusal by local hangers.

Ishwar Prasad was also hanged after Mangal Pandey. This spark of rebellion imposed by Mangal Pandey is not extinguished again. After a month, on May 10, 1857, a revolt was started in Meerut Cantonment and after seeing this fire took the whole of North India into its grip. It is said that the British had imposed 34,735 laws on Indian revolt with the rebellion so that no one like Mangal Pandey could retain his head again.

……. और कारवां गुज़र गया

 

 जन्म 04 जनवरी 1924
 निधन 19 जुलाई 2018
 उपनाम नीरज
 जन्म स्थान पुरावली, इटावा, उत्तर प्रदेश, भारत
 कुछ प्रमुख कृतियाँ
दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरीगीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएँ, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी,बादलों से सलाम लेता हूँकुछ दोहे नीरज के कारवां गुजर गया
 विविध
2007 में पद्म भूषण सहित अनेकप्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित

लालू जमानत की शर्तों का सरेआम उल्लंघन कर रहे हैं: सुशील मोदी


बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने मांग की है कि सीबीआई राजनीतिक मुलाकातें करने वाले लालू की जमानत रद्द कराए


बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने बुधवार को मांग की कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) राजनीतिक मुलाकातें करने वाले आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव की जमानत रद्द कराए.

सुशील ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आरोप लगाया कि चारा घोटाला के चार मामलों में सजायाफ्ता लालू को राजनीतिक कार्यों से अलग रहने की शर्त पर केवल इलाज के लिए जमानत मिली थी, लेकिन वह लगातार शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि आरजेडी प्रमुख ने पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत से बात की और उसके बाद तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के तीन सांसदों ने उनसे मुलाकात कर राजनीतिक चर्चाएं की. इस आधार पर सीबीआई को लालू की जमानत तत्काल रद्द करानी चाहिए.

सुशील ने कहा कि लालू से मंगलवार को मुलाकात करने वाले टीडीपी सांसदों ने स्वीकार किया था कि उन लोगों ने हालचाल पूछने के नाम पर लालू से भेंट की और संसद के मानसून सत्र में संभावित अविश्वास प्रस्ताव (आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ) पर उनकी पार्टी का समर्थन मांगा.

उन्होंने कहा कि टीडीपी और आरजेडी, दोनों दलों ने लालू से राजनीतिक बातचीत की पुष्टि कर यह साबित किया है कि इन्हें जमानत की शर्तों का पालन करने की कोई परवाह नहीं है. यह अदालत की अवमानना का मामला भी है.

सुशील ने कहा कि चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता होने के कारण लालू के चुनाव लड़ने पर पहले ही रोक लग चुकी है. सीबीआई को लालू की सेहत और उनकी राजनीतिक गतिविधियों की समीक्षा कर तुरन्त फैसला लेना चाहिए.

सख्त तय समयसीमा के साथ पूर्वाञ्चल एक्सप्रेसस्वे का शिलानियास हुआ आज, 2021 तक होगा तैयार


सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए सख्त डेडलाइन तय की है. अनुमान है कि 2021 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को आजमगढ़ में 23 हजार करोड़ के पूर्वांचल एक्सप्रेसवे की नींव रखी. 354 किलोमीटर लंबा यह एक्सप्रेसवे लखनऊ से गाजीपुर को जोड़ेगा. एक्सप्रेसवे की वजह से 6 घंटे का रास्ता केवल साढे 4 घंटे का रह जाएगा.

अखिलेश यादव की सरकार में इस एक्सप्रेसवे का नाम समाजवादी पूर्वांचल एक्सप्रेस रखा गया था. इसके जरिए 302 किमी लंबे लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे और 165 किमी लंबे यमुना एक्सप्रेसवे से भी जुड़ा जा सकेगा. एक्सप्रेसवे का कुल नेटवर्क 800 किलोमीटर का हो जाएगा.

एक्सप्रेसवे की शुरुआत आजमगढ़ से होगी जोकि समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव का क्षेत्र है. हालांकि वाराणसी तक एक्सप्रेसवे को जोड़ने का प्रस्ताव रखा गया है. योगी सरकार ने इस प्रोजेक्ट को पूरा करने के लिए पंजाब नेशनल बैंक से 12 हजार करोड़ का लोन पारित करा लिया है.

93 फीसदी जमीन खरीदने में खर्च हुए 6500 करोड़ रुपए

यूपी के प्रिंसिपल सेक्रेटरी अवनीश अवस्थी ने बताया कि 6500 करोड़ रुपए 93 फीसदी जमीन को खरीदने में खर्च हुए. 11 जुलाई को राज्य सरकार ने पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के लिए पांच बोलीदाताओं को 340 किलोमीटर के एक्सप्रेसवे के आठ हिस्सों के लिए अनुबंध सौंपकर टेंडर की प्रक्रिया पूरी की.

सरकार ने प्रोजेक्ट के लिए सख्त डेडलाइन तय की है. अनुमान है कि 2021 तक यह प्रोजेक्ट पूरा हो जाएगा. अधिकारियों का कहना है कि वह 24 से 26 महीनों में प्रोजेक्ट को पूरा करने की कोशिश करेंगे.

हालांकि सपा और बीजेपी के बीच इस प्रोजेक्ट का श्रेय लेने की होड़ मची है. सपा इस प्रोजेक्ट से जुड़े फोटो शेयर कर रही है जिसमें 22 दिसंबर 2016 को अखिलेश यादव इस प्रोजेक्ट की नींव रख रहे हैं वहीं क्षेत्रीय पार्टी के नेताओं ने आजमगढ़ में रैली लगाकर इस प्रोजेक्ट पर अपना दावा पेश किया.

वहीं इन्फ्रास्ट्रक्चर और इंडस्ट्री मामलों के मंत्री सताश महाना ने कहा कि 2016 में रखी गई नींव फर्जी थी. उन्होंने दावा किया कि पुरानी सरकार ने इस टेंडर को ऊंचे दामों में पास किया था.