जेल जाने से पहले लालू यादव को राहुल गांधी का वो अध्यादेश फाड़ना याद आ रहा होगा


रांची में सीबीआई की विशेष अदालत में सरेंडर करने जाने से पहले आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सियासी हलचल पर भी बोला.


रांची में सीबीआई की विशेष अदालत में सरेंडर करने जाने से पहले आरजेडी प्रमुख लालू यादव ने 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले सियासी हलचल पर भी बोला. पिछले 110 दिनों से जेल से बाहर रह कर इलाज करा रहे लालू यादव ने अबतक चुप्पी साध रखी थी. मीडिया से दूर थे. लेकिन, जेल जाने से पहले अगले लोकसभा चुनाव में विपक्षी तालमेल और एकजुटता की संभावनाओं पर खुलकर बात की.

2019 में विपक्षी दलों के महागठबंधन के मसले पर लालू यादव ने कहा कि विपक्ष इस वक्त एक मंच पर है, कहीं किसी तरह का कोई ईगो नहीं है. लालू ने साफ कर दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, टीएमसी सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, बीएसपी अध्यक्ष मायावती समेत सभी नेता मिलकर विपक्षी एकता के मुद्दे पर चर्चा कर लेंगे और सबकुछ ठीक-ठाक हो जाएगा.

दरअसल, विपक्षी एकता की जब भी चर्चा होती है तो उसके केंद्र में प्रधानमंत्री पद का मुद्दा सबसे पहले आ जाता है. सवाल यही उठता है कि मोदी को पटखनी देने के नाम पर सभी विपक्षी दल एक साथ होने की बात तो करते हैं लेकिन, चेहरा कौन होगा इस नाम पर सभी कन्नी काट जाते हैं. हकीकत यही है कि इस मुद्दे पर एक राय है ही नहीं.

लालू यादव का बयान भी उसी संदर्भ में देखा जा रहा है. चारा घोटाले में सजायाफ्ता लालू तो खुद तो चुनाव नहीं लड़ सकते हैं, ऐसे में उनके सपने देखने का तो कोई सवाल ही नहीं है. लेकिन, खुलकर लालू भी मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के युवा मुखिया राहुल गांधी के नाम पर हामी नहीं भर रहे हैं. शायद जेल जाने से पहले लालू यादव को राहुल गांधी का वो अध्यादेश फाड़ना याद आ रहा होगा, जिसमें सजायाफ्ता होने के बाद लालू को राहत नहीं मिल सकी थी.

कई मौकों पर लालू यादव से राहुल गांधी दूरी बनाते भी नजर आए हैं. लेकिन, राहुल गांधी के साथ लालू यादव के वारिस उनके छोटे बेटे तेजस्वी यादव की जुगलबंदी के बावजूद न ही लालू और न ही तेजस्वी ने राहुल गांधी के नाम पर हामी भरी है.

तेजस्वी यादव ने भी कई मौकों पर यह हिदायत दी है कि कांग्रेस को बिहार और यूपी जैसे राज्यों में अपने सहयोगियों के लिए त्याग करना होगा. दरअसल, बिहार में पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस ने मिलकर महागठबंधऩ बनाया था. इसका फायदा भी हुआ. बीजेपी की हार हुई थी. फायदा कांग्रेस को भी हुआ था. अब नीतीश कुमार के महागठबंधन से बाहर जाने के बाद कांग्रेस चुनाव में अपनी ज्यादा हिस्सेदारी की मांग कर रही है.

कांग्रेस की तरफ से लोकसभा की 40 सीटों में से 12 सीटों की मांग की जा रही है. कांग्रेस को लगता है कि जेल जाने के बाद लालू की गैर हाजिरी में अब आरजेडी से सौदेबाजी करना ज्यादा आसान होगा. लेकिन, आरजेडी इस बात को समझ रही है. तेजस्वी यादव ने पहले ही आरजेडी के खेमे में जीतनराम मांझी को शामिल कर लिया है. चर्चा उपेंद्र कुशवाहा को लेकर भी है. लिहाजा राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस से बिहार में त्याग करने की बात तेजस्वी की तरफ से की गई थी.

आरजेडी इस बात को समझती है कि कांग्रेस के मुकाबले अगर क्षेत्रीय दलों की तरफ से गठबंधऩ का नेतृत्व किया जाता है तो उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी ज्यादा मिलेगी. हकीकत यह भी है कि बिहार और यूपी जैसे राज्यों में कांग्रेस अब वैशाखी के ही सहारे चल रही है. ऐसे में अपनी वैशाखी के सहारे चलने वाली पार्टी को आरजेडी नहीं चाहेगी कि वो सत्ता के शिखर पर पहुंच कर नेतृत्व करे.

उधर, बात ममता बनर्जी और मायावती की करें तो उनकी तरफ से भी नेतृत्व के मुद्दे पर एक ही बात कही जा रही है कि चुनाव बाद इस मुद्दे को हल कर लिया जाएगा. यानी गठबंधन बनाने की बात तो हो रही है, लेकिन, इस गठबंधन का चेहरा कौन होगा इस पर विपक्षी दलों की तरफ से गोल-मोल जवाब दिया जा रहा है.

विपक्ष के गठबंधन की यही हकीकत भी है. विपक्ष के भीतर बीजेपी को हराने को लेकर एकजुटता की बात तो हो रही है, लेकिन, किसी एक को नेता मानने के लिए विपक्ष राजी नहीं हो रहा है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से भी प्रधानमंत्री के पद पर अपनी दावेदारी करने और फिर इससे पीछे हटने के पीछे भी यही कहानी है.

लालू यादव के बयान से भी साफ है मोदी के खिलाफ हमलावर विपक्षी खेमे के भीतर सीटों के तालमेल से लेकर नेतृत्व के फैसले तक कोई ठोस योजना नहीं है.

 

Raids at homes of activists with ‘Maoists links’ across India, several arrested

Outside the house of writer and activist P Varavara Rao in Hyderabad


Police claim the speeches made at the Elgaar Parishad, a day ahead of the bicentennial celebration of the battle of Bhima Koregaon, were one of the triggers to the violence that was witnessed in and around Pune the next day.


In the second such operation in three months, Pune police carried out simultaneous searches at multiple locations across the country and arrested a few prominent activists in connection with its investigations into the alleged Maoist involvement in the organisation of Elgaar Parishad on December 31 last year.

Police claim the speeches made at the Elgaar Parishad, a day ahead of the bicentennial celebration of the battle of Bhima Koregaon, were one of the triggers for the violence that was witnessed in and around Pune the next day.

In an early morning swoop, teams of Pune police landed on the doorsteps of activist and journalist Gautam Navlakha in Delhi, writer and activist P Varavara Rao in Hyderabad, civil rights lawyer Sudha Bhardwaj in Faridabad, activists Vernon Gonzalves and Arun Ferreira in Mumbai, Stan Swamy in Ranchi and Anand Teltumbde in Goa and searched their premises.

Some of them had already been arrested by afternoon, and others were likely to be arrested by the end of the day. Joint Police commissioner with Pune city police Shivaji Bhodke said Bhardwaj and Varavara Rao had been arrested. “More arrests are likely,” he said. The arrested persons are likely to be produced in a city court on Wednesday.

In Goa, writer and civil rights activist Anand Teltumbde, who teaches at the Goa Institute of Management, was the target of Pune police searches. Anand was not at home when the police came looking for him and he was informed about the raid by his institute’s director.

“The house in Goa was locked but they (Pune police team) opened it and carried out a search. I have not been arrested thus far,” Anand told The Indian Express.

 

Vernon Gonzalves’s residence in Mumbai

Today’s searches come about three months after a similar operation on June 6, in which the Pune police had arrested five “urban Maoist operatives” from Delhi, Nagpur and Mumbai. Those arrested at that time included Nagpur University professor Shoma Sen and Delhi-based activist Rona Wilson of the Committee of Release of Political Prisoners.

Others to be arrested in June were Sudhir Dhawale, leader of Mumbai-based Republican Panthers Jati Antachi Chalwal, Nagpur lawyer Surendra Gadling of Indian Association of People’s Lawyers, and Mahesh Raut who had in the past been Prime Minister’s Rural Development Fellow.

Police claim that today’s searches at the six places were a result of the interrogation of these arrested people, who are currently lodged at Yervada central prison in Pune in magisterial custody. They have been charged under the Unlawful Activities (Prevention) Act (UAPA).

While producing them in court a day after their arrests in June, police had claimed to have seized material that pointed to a plan to assassinate Prime Minister Narendra Modi in a”Rajiv Gandhi” -like manner”.

The Elgaar Parishad was organised to commemorate the 200thanniversary of the battle of Bhima Koregaon which happened on January 1 in 1818, in which a British army comprising of a large number of Dalit soldiers is said to have defeated the Peshwas. Every year on January 1, thousands of Dalits assemble in Pune and march to the village of Koregaon Bhima which has a war memorial (Jaystambh) in memory of those who died in that battle.

Among those who spoke at Elgaar Parishad were Gujarat MLA Jignesh Mevani and JNU student Umar Khalid. Police claim their investigations had shown that banned Maoist groups were involved in financing and organising the Elgaar Parishad event.

पीवी सिंधू ने 18वें एशियाई खेलों में रचा इतिहास


रियो ओलंपिक खेलों की रजत विजेता भारत की पीवी सिंधू ने सोमवार को 18वें एशियाई खेलों की बैडमिंटन स्पर्धा के महिला एकल स्वर्ण पदक मुकाबले में पहुंचकर इतिहास रच दिया।


सिंधू भारत की पहली बैडमिंटन खिलाड़ी बन गयी हैं जिन्होंने एशियन खेलों के फाइनल में प्रवेश पाया है। उन्होंने महिला एकल सेमीफाइनल मुकाबले में भारी उत्साह और भारतीय समर्थकों के सामने दूसरी सीड जापान की अकाने यामागुची के खिलाफ 66 मिनट तक चले रोमांचक मुकाबले को 21-17, 15-21, 21-10 से जीता।

विश्व की तीसरे नंबर की खिलाड़ी सिंधू ने यामागुची की चुनौती को स्वीकारते हुये बराबरी की टक्कर दिखाई। पहला गेम जीतने के बाद दूसरे गेम में हालांकि जापानी खिलाड़ी ने कहीं बेहतर खेल दिखाया और 8-10 से सिंधू से पिछड़ने के बाद लगातार भारतीय खिलाड़ी को गलती करने के लिये मजबूर किया और 11-10 तथा 16-12 से बढ़त बना ली।

सिंधू पर दबाव बढ़ता गया और एक समय यामागुची ने स्कोर 17-14 पहुंचा दिया और फिर 20-15 पर गेम प्वांइट जीतकर 21-15 से गेम जीता और मुकाबला 1-1 से बराबर पहुंचा दिया। निर्णायक गेम और भी रोमांचक रहा जिसमें यामागुची ने आत्मविश्वास के साथ शुरूआत करते हुये 7-3 की बढ़त बनाई।  लेकिन सिंधू लगातार अंक लेती रहीं और 5-10 से पिछड़ने के बाद लंबी रैली जीतकर बढ़त बनाई।

उन्होंने 11 अंकों की सबसे बढ़ी बढ़त ली और 16-10 से यामागुची को पीछे छोड़ा और 20-10 पर मैच प्वाइंट जीतकर निर्णायक गेम और मैच अपने नाम कर लिया। तीसरी वरीय खिलाड़ी के सेमीफाइनल मुकाबला जीतने के साथ ही स्टेडियम में बैठे लोगों ने तालियों की गड़गड़ाहट के साथ उनकी जीत का स्वागत किया।

सिंधू अब फाइनल में भारत को पहला एशियाड स्वर्ण दिलाने के लिये चीनी ताइपे की ताई जू यिंग के खिलाफ उतरेंगी जिन्होंने दिन के एक अन्य सेमीफाइनल में भारत की सायना नेहवाल को 21-17, 21-14 से पराजित किया।
सायना एशियाई खेलों में महिला एकल का पदक जीतने वाली पहली भारतीय खिलाड़ी हैं।

स्थिर सरकार, योग्य कार्यपालिका ने बदली बस्तर की तस्वीर, विकास ने यहाँ तो पैर पसार ही दिये


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है.


पिछले कई सालों से छत्तीसगढ़ की गिनती देश के नक्सल प्रभावित राज्यों में पहले नंबर पर की जाती है. कुछ समय पहले तक राज्य के बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर सहित लगभग 16 जिलों में नक्सलियों का खुलमखुल्ला तांडव चलता था. केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार भी नक्सलियों के सामने लाचार, विवश और बेसहारा बन कर यह सब देखते रहते थे.सारी मशीनरी नक्सलियों के सामने घुटने टेक देती थी.

30-40 साल बाद एक बार फिर से वही हाथ उठने लगे हैं, एक बार फिर से बंदूकों से गोलियां गरजने लगी हैं, लेकिन अब बंदूकों से निकलने वाली गोलियों की दिशा बदल गई है. जो आदिवासी पहले कभी नक्सली बन कर राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल हुआ करते थे, वही नक्सली अब छत्तीसगढ़ पुलिस में भर्ती हो कर दूसरे लोगों की जान की रक्षा करने में लग गए हैं. ये वही लोग हैं जो बाकी बचे-खुचे नक्सलियों के खिलाफ भी अब काल बन कर सामने खड़े हो गए हैं. ये लोग समाज की मुख्यधारा में वापस लौट कर समाज के लिए कुछ कर गुजरने की तमन्ना पाले हुए हैं.

जो लोग कुछ साल पहले तक नक्सली जुल्म का शिकार थे वो अब सहकारी समिति के माध्यम से पॉस्चराइजेशन प्लांट में दूध बेच कर पैसे कमा रहे हैं. इसके अलावा परम्परागत जैविक खेती कर चावल पैदा कर रहे हैं और मुंबई और चेन्नई जैसे बड़े व्यापारिक हब को निर्यात भी कर रहे हैं.

जिन सड़कों पर कभी आदिवासी महिलाएं सिर पर लकड़ी लेकर जाती थीं वही महिलाएं अब बेहतरीन सड़कों पर सार्वजनिक यातायात के जरिए गैस का सिलेंडर लेकर जाते हुए देखी जा सकती हैं. गांव की दुकानों और बाजारों में पहले जो वीरानी छाई रहती थी, उन दुकानों और बाजारों में अब रौनक रहती है.

दंतेवाड़ा जिले के बोमड़ा पारा ब्लॉक के जावंगा गांव की एक महिला बुड़िया, गांव की खूबसूरत सड़क के किनारे खड़ी होकर टूटी-फूटी हिंदी में बात करते हुए कहती हैं, मैं अब घर पर ही ज्यादा काम करने लगी हूं. अभी पति के साथ साइकिल से गांव से बाजार आई हूं. पति के साथ खेती में सहयोग करती हूं. दो बच्चे हैं, पांच साल का बेटा है और सात साल की बेटी. दोनों बच्चे स्कूल गए हैं, इसलिए हमलोग बाजार में सामान खरीदने आए हैं. पति जैविक खेती करते हैं. पति का भी सहकारी समिति में कुछ काम था इसलिए हमलोग दोनों एक साथ बाजार आए हैं.’

बुड़िया से पत्रकारों  ने सवाल किया कि आपके लिए राज्य के सीएम रमन सिंह ने क्या-क्या काम किया है तो उस पर बुडिया कहती हैं, ‘राशन अब समय पर मिलने लगा है. पहले हमलोग राशन लेने नहीं जाते थे. अपने खेत का उपजा हुआ चावल ही खाते थे. लेकिन, अब हमें सरकार की तरफ से मदद मिलने लगी है. गांव में बिजली भी आ गई है. 20 से 22 घंटे बिजली रहती है. गांव में ही पानी भी पहुंचने वाला है. कलेक्टर साहेब अक्सर गांव आते रहते हैं. पानी लाने के लिए हमें अब दूर नहीं जाना पड़ता है.’

आतंक की त्रासदी में दशकों जीने को मजबूर ये लोग अब अपने दम पर खड़े हो रहे हैं. छत्तीसगढ़ देश का अकेला ऐसा राज्य है, जिसमें अनाज का उत्पादन ही नहीं, उत्पादकता भी बढ़ी है. यानी लागत कम, अनाज ज्यादा. यहां के युवाओं को बीपीओ के जरिए रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. यहां के युवा किसी भी दूसरे शहर के लड़के-लड़कियों की तरह फर्राटेदार अंग्रेजी में बात करते मिल जाते हैं.

दंतेवाड़ा के एक बीपीओ में काम करने वाली और दंतेवाड़ा के ही पीजी कॉलेज से एमए पास मीना सेनापति कहती हैं, ‘पहले मेरी कम्यूनिकेशन स्किल अच्छी नहीं थी. मैंने 45 दिनों की बीपीओ ट्रेनिंग ली. मेरे बातचीत करने का तरीका बेहतर हुआ है. मुझे 8 हजार की नौकरी भी मिल गई है.’

दंतेवाड़ा के इसी बीपीओ में काम करने वाली नीता देशमुख कहती हैं, ‘मैं ग्रेजुएट हूं. दंतेवाड़ा में गीदम एक जगह है वहां की रहने वाली हूं. सात महीने पहले मैं इस बीपीओ में आई थी, तब मुझे कुछ नहीं आता था. मेरा सपना था कि मैं वेब डिजायनर बनूं, लेकिन पैसे की कमी के कारण मेरा सपना पूरा नहीं हो रहा था. लेकिन अब मुझे आठ हजार रुपए मिलते हैं, जिससे मैं अपना सपना पूरा कर सकती हूं. पापा राजमिस्त्री का काम करते हैं. मैं चार बहनों में दूसरे नंबर पर हूं. दो बहन की शादी हो चुकी है.’

इसी तरह बछेली की रहने वाली कांति नाग, दंतेवाड़ा की रहनेवाली निधि बैरागी और रवि प्रकाश बीपीओ में काम कर अपना सपना पूरा करना चाहते हैं. इन युवाओं को सरकार की तरफ से रोजगार मुहैया कराया जा रहा है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वाली हिना सिंह, जिनके पिता नौकरी करने सालों पहले कर्नाटक से दंतेवाड़ा आ गए थे, कहती हैं, ‘मैं एक ट्यूटर हूं. पिछले 21 सालों से ट्यूशन पढ़ाती आ रही हूं. इस बीपीओ के जरिए मुझे फिक्स्ड सैलेरी मिल रही है. पति ड्राइवर का काम करते हैं. यहां से छूटने पर मैं 10वीं क्लास तक के बच्चों को पढ़ाती भी हूं.’

दूसरी तरफ दिव्यांग बच्चों के लिए भी दंतेवाड़ा में एक शानदार मुकबधिर स्कूल चलाया जा रहा है. हाल ही में इस स्कूल में देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति ने दौरा किया था. यहां पढ़ने वाली दंतेवाड़ा के कुआकोंडा ब्लॉक के माड़ेंदा गांव की हड्मा हंस कर कहती हैं, ‘बहरेपन का इलाज नहीं होने पर भी वे इशारों में बात कर लेती थीं पर अब सरकारी इलाज के बाद यह फायदा हुआ है कि दूसरे उनके बारे में क्या कह रहे हैं यह सुन सकती हूं. आम लोगों की तरह संवाद कर सकती हूं.’

आज से कुछ साल पहले तक छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के सातों जिलों बस्तर, दंतेवाड़ा, जगदलपुर, बीजापुर, सुकमा, राजनांदगांव, कांकेर जिले का नाम सुनते ही लोगों के मन में भय तारी हो जाता था. कहा जाता था अगर एक तरफ से कोई हिंसक जानवर हमला करे और दूसरी तरफ से नक्सली तो लोग पहले की तरफ भागना पसंद करते थे. यही सोच कर कि जानवर तो सिर्फ एक झटके में मारेगा. तड़पना तो नहीं पड़ेगा.

सालों बाद आज स्थानीय अखबारों में खबर देखने को मिलती है कि इस अप्रतिमरूप से प्राकृतिक सौन्दर्य समेटे हाथ-से-हाथ न दीखने वाले जंगल से घिरे अमुक गांव मे एक-दो नक्सलियों ने मोबाइल छीन लिया. दरअसल स्थानीय मीडिया भी अब नक्सली और औसत अपराधी को समानार्थी समझने लगा है. यह स्थिति चरम वामपंथ जो पिछले 60 सालों में ‘राज्य-पोषित शोषण को हथियार से खत्म करने’ के नाम पर देश के 10-12 राज्यों में लंपटवादी आतंक का पर्याय बन गया था, अब पता चला कि सड़क-छाप गुंडई के रूप में अंतिम सांसें गिन रहा है.

यह सब कुछ संभव कैसे हुआ !

कुछ साल पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने अपनी कुछ प्रचार सामग्री (बुकलेट) छापी, जो बाहर से आने वाले किसी भी स्वतंत्र विश्लेषक को उपलब्ध होती है, लेकिन चूंकि यह सरकारी ज्ञान होता है, जिस पर सहज विश्वास करना मुश्किल होता है, लिहाजा तस्दीक के लिए हमारी टीम हाईवे के पास के गांव में निकल गई. सड़क के पास ही कुछ आदिवासी महिलाएं गैस सिलिंडर के साथ दिखीं. उनके चेहरे पर खुशी देखने को मिली. इन महिलाओं से पूछने की कोशिश की तो टूटी-फूटी हिंदी में कहती हैं, ‘सरकार ने दिया है. जलाना आता है का जवाब हंस कर देती हैं, घर जा कर किसी से पूछेंगे.

कैसे स्वतंत्र रूप से काम कर रहा है प्रशासन?

इस राज्य में एक व्यक्ति और एक पार्टी का शासन पिछले 15 साल से जारी है. छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों से युवा आईइएस और आईपीएस अधिकारियों में इस बात की होड़ लगी है कि कौन विकास के नए विचार अमल में लाता है या कौन कानून व्यवस्था को ज्यादा दुरुस्त करता है. विकास के 31 पैरामीटर्स पर कौन जिलाधिकारी इस माह किससे आगे या पीछे रह गया है, इसकी समीक्षा की जाती है. साथ ही, अधिकारियों को तबादले की चाबुक से डराने का खेल यहां नहीं चलता.

सौरभ कुमार सिंह

चार साल से भी ज्यादा समय से दंतेवाड़ा में तैनात 2009 बैच के आईएएस अधिकारी और जिले के डीएम सौरभ कुमार सिंह हमसे बात करते हुए कहते हैं, ‘मेरा मानना है कि एक आईएएस अधिकारी को काम करने के लिए बिहार, छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसे राज्य ही बने हैं. ये ऐसे राज्य हैं, जहां पर काम करने की संभावना सबसे ज्यादा हैं. किसी भी स्तर के अधिकारी को अगर सच में कुछ कर के दिखाना है तो दो चीजें होनी चाहिए, पहली काम करने के लिए ऐसी परिस्थितियां होनी चाहिए, जो आपके काम को प्रमोट करें. जिसके लिए पोलिटिकल स्टेबलिटी होना बहुत ही आवश्यक है. दूसरा, एक ऐसा एनवायरमेंट होना चाहिए जिससे आप एक निश्चित समय-सीमा में काम कर दिखा सकें. हम अगर बात करें साल 2015 या 2016 की तो जिले में संस्थागत प्रसव रेट 38 प्रतिशत था. आज की तारिख में यह 78 प्रतिशत है. अब महिलाएं अस्पताल में जाकर प्रसव करा रही हैं. ये सब तभी संभव हो पाता है जब आपको एक अच्छा प्लेटफॉर्म मिले. ये सब छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में ही आपको करने को मिलेगा. ’

सौरभ कुमार सिंह आगे कहते हैं, ‘दंतेवाड़ा में प्राइवेट सेक्टर में पिछले छह महीने में रोजगार डबल हो गए हैं. अगर जिले में योजनाओं की बात करें तो यहां पर एससीए या भारत सरकार की होम मिनिस्ट्री के जरिए जो पैसा आता है उससे कहीं अधिक पैसा दंतेवाड़ा जिले को माइनिंग फंड से मिलता है, जिसमें राज्य शासन ने जो नियम बनाए हैं उसमें ज्यादातर अधिकार जिले के कलेक्टर को दिए हैं. उसी के समकक्ष जिले में जो बड़ी इंडस्ट्री चल रही जैसे एनएमडीसी के सीएसआर का पैसा भी आता है. इन पैसों के इस्तेमाल का अधिकार राज्य शासन ने कलेक्टर को दे रखा है. मेरा मानना है कि सबके अंदर कुछ न कुछ कर के दिखाने की चाहत होती है चाहे वह नेता हों या अधिकारी. हम साल में एक हजार युवक और युवतियों को नौकरी देने का काम करते हैं तो इसमें हमें कौन रोक सकता है. हजारों महिलाओं को सिलाई की ट्रेनिंग दी जाती है ताकि ली कूपर और रेमंड जैसी कंपनियों से उनके पास सिलाई के ऑफर आ रहे हैं तो इसमें कौन रोक सकता है. चाहे नेता हों या जनता हो या फिर कोई और लोग सकारात्मक चीजों के साथ जुड़ना चाहते हैं.’

‘दंतेवाड़ा जिले में हमलोग यही काम कर रहे हैं. जिले में एक जैविक कैफे चल रहा है, जो किसानों की एक कंपनी चला रही है. हमको हरियाणा, पंजाब की तरह उत्पादकता में नहीं जाना है बल्कि अपने उत्पाद को अलग बनाना है. अगर रोजगार की बात करें तो हम गुरुग्राम और नोएडा से कंपेयर नहीं कर सकते हैं, पर अगर यहां के युवाओं को हम 8 हजार रुपए दे कर रोजगार दे रहे हैं तो क्या यह कम है. जिले की 150 महिला समूह ऑटो चला रही हैं. हमने सड़कें तो बना दी लेकिन लोगों के आय का लेवल इतना नहीं है कि वह ऑटो खरीद सकें. उनको हम ऑटो प्रोवाइड कर रहे हैं. 210 महिला समूह एक अलग जाति का कड़कनाथ मुर्गे का प्रजनन कर रहे हैं.’

दंतेवाड़ा के डीएम जहां जिले में विकास के नए आयाम स्थापित कर रहे हैं वहीं जिले के एसपी डॉ. अभिषेक पल्लव नक्सलियों के मंसूबे को तहस-नहस कर नक्सलियों को मुख्यधारा में जोड़ने का काम कर रहे हैं. और यह सब तब शायद संभव नहीं होता अगर राज्य सरकार के द्वारा युवा पुलिस अधिकारियों के लिए रणनीतिक परिवर्तन न किया होता.

इस प्रश्न पर कि सड़कों पर इस बीहड़ जंगल में भी पुलिस नहीं दिखाई दे रही है और क्या कहीं यह आत्ममुग्धता तो नहीं है या फिर पुलिस का अभाव है, दंतेवाडा के युवा पुलिस अधीक्षक डॉ. अभिषेक पल्लव कहते हैं, ‘नहीं अब पुलिस आप को ही नहीं, नक्सलियों को भी दिखाई नहीं देती बस उन्हें गोली की आवाज सुनाई देती है और उनके समझने के पहले वे इसका शिकार हो चुके होते हैं. आपको बता दें कि सीआरपीएफ छत्तीसगढ़ में 2003-04 में आई. इससे पहले हमलोग यहां की भाषा को नहीं जानते थे. यहां के लोगों के कल्चर के बारे में हमलोगों को पता नहीं रहता था. छत्तीसगढ़ पुलिस में भी जो लोग थे वह छत्तीसगढ़ के दूसरे हिस्सों के थे. स्थानीय भागादारी बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने काफी काम किया है. इसमें एक है सरेंडर और रिहैब पॉलिसी, जिसके अंदर कोई भी ग्रामीण या नक्सली सरेंडर करता है या पुलिस को मदद करता जिससे हम दूसरे नक्सलियों को पकड़ पाते हैं. ऐसे लोगों को एसपी के रिकंमडेशन पर आईजी सिपाही के तौर पर भर्ती कर लेते हैं. धीरे-धीरे काफी नक्सलियों ने सरेंडर किया है. अगर बात सिर्फ दंतेवाड़ा जिले की करें तो यहां पर 70 से 80 सिपाही सरेंडर्ड नक्सली हैं.’

अभिषेक पल्लव

अभिषेक पल्लव आगे कहते हैं, ‘राज्य सरकार ने कुछ साल पहले डिस्टिक रिजर्व ग्रुप के नाम से एक लोकल ग्रुप बनाया. इसमें बस्तर निवासियों को अपने जिले में ही पुलिस की नौकरी करने के लिए पद निकाले गए थे. ऐसे 200 पद दंतेवाड़ा जिले में भी रिलिज किए गए थे. ये दो ग्रुप हैं, जिससे लोकल लोग हमलोगों को मिलते हैं. हमारी इस नीति को सीआरपीएफ ने भी हाल ही में आजमाया है. पहली बार सीआरपीएफ ने बस्तरिया बटालियन के लिए 750 बस्तर के ही युवक और युवतियों को नियुक्त किया. हमारे लिए लोकल लोगों का पुलिस में आना काफी फायदेमंद रहा. इन लोगों और उनके परिवार के जरिए हमें काफी सूचनाएं मिलती हैं. इनकी सटीक सूचनाओं और नक्सलियों के काम करने की गतिविधि को उन्हीं के अंदाज में जवाब दे रहे हैं.

दंतेवाड़ा के रहने वाले योगेश मानवी, जो आठवीं पास हैं, 1998 में ही नक्सली बन गए थे. साल 2012 में आत्मसमर्पण के बाद आज 25 हजार की पगार पर छत्तीसगढ़ पुलिस में नौकरी कर रहे हैं. इसी तरह परशुराम आलमी 2007 में नक्सली बन गए थे. साल 2015 में सरेंडर के बाद छत्तीसगढ़ पुलिस में नक्सलियों को खत्म करने या मुख्यधारा में लौटने में मदद कर रहे हैं. आलमी पढ़े-लिखे नहीं हैं. इसी तरह 5वीं पास पोडिया तेलम 2001 में नक्सली बन गए थे. 2014 में समाज की मुख्यधारा में लौट कर परिवार का जीवन यापन कर रहे हैं.

सुरक्षा सिद्धांतों में इस रणनीति को अदृष्टिगोचर सिक्योरिटी कहते हैं. पहले जहां जंगल के ऊंचे टीलों से ये जवानों को शिकार बनाते थे. आज पुलिस का उन ठिकानों पर कब्जा है. डरकर नक्सली या तो मौत के डर से मुख्यधारा में जुड़ने लगे हैं या फिर अंदर जंगलों में तिल-तिल कर मर रहे हैं. अब अदिवासियों पर भी उनका खौफ नहीं रहा है और सामूहिक रूप से उन्हें नकारने की क्षमता भी आ गई है. पुलिस अधीक्षक से यह मुलाकात अचानक ही थी लेकिन बड़े भरोसे से उन्होंने कहा ‘आप जहां हैं सिर्फ थोड़ी दूर घने जंगलों में नजर डालें आपको पुलिस की अदृश्य लेकिन सतर्क मुश्तैदी का एहसास हो जाएगा. और यह बात तब सच लगी जब उनके साथ हमारी टीम घने जंगलों से चित्रकोट तक का सफर किया.

कुलमिलाकर कुछ साल पहले तक राज्य के नक्सल प्रभावित 16 से 18 जिलों में लोकतंत्र नाम की कोई चीज नहीं थी. खासकर बस्तर संभाग के सभी जिलों में रहने वाले आदिवासियों के जीवन को समझने वाला दूर-दूर तक कोई दिखाई नहीं देता था. इसका कारण था कि यहां पर नक्सलियों के द्वारा एक समानांतर सरकार चलाई जाती थी, लेकिन समय बदला, सरकार बदली और ब्यूरोक्रेसी ने भी अपनी जिम्मेदारी को बखुबी निभाया,जिसका नतीजा आज पूरे देश के सामने है. इन इलाकों में न केवल नक्सली घटनाओं में कमी आई बल्कि इन इलाकों के लोगों के जीवन स्तर से लेकर शिक्षा और स्वरोजगार में भी काफी सुधार देखने को मिल रहा है.

यादव ओर कुशवाहा बिहार में पका रहे राजनैतिक खीर


खीर में पंचमेवा की जरूरत को अति पिछड़ा, गरीब और दलित-शोषित लोग पूरा करेंगे, खीर में चीनी शंकर झा आजाद मिलाएंगे, तुलसी दल भूदेव चौधरी के यहां से ले लाएंगे, जुल्लीफार अली के यहां के दरस्तखान ले आएंगे


अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर सियासी समीकरण तेजी से बदल रहे हैं. एक तरफ जहां कुछ नेता पुराने गिले-शिकवे भुलाकर महागठबंधन में वापस आ रहे हैं, वहीं, कुछ नेता नई चुनावी चाल चल रहे हैं. रविवार को राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा ने महागठबंधन को लेकर बड़ा बयान दिया. अब राष्ट्रीय जनतांत्रिक दल (आरजेडी) नेता तेजस्वी यादव ने उपेंद्र को लेकर खुशी जाहिर की है.

तेजस्वी ने बताया पौष्टिक खीर है राजनीति की जरूरत

तेजस्वी ने ट्वीट किया, ‘नि:संदेह उपेंद्र जी, स्वादिष्ट और पौष्टिक खीर श्रमशील लोगों की जरूरत है. पंचमेवा के स्वास्थवर्धक गुण ना केवल शरीर बल्कि स्वस्थ समतामूलक समाज के निर्माण में भी ऊर्जा देता है. प्रेमभाव से बनाई गई खीर में पौष्टिकता स्वाद और ऊर्जा की भरपूर मात्रा होती है. यह एक अच्छा व्यंजन है.’

शनिवार को बीपी मंडल की 100वीं जयंती के मौके पर उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा कि यदुवंशियों (यादव) के दूध और कुशवंशियों (कोइरी) के चावल मिल जाये तो खीर बनने में देर नहीं लगती है. उपेन्द्र कुशवाहा ने कहा, ‘हमलोग साधारण परिवार से आते हैं. साधारण परिवार में जिस दिन घर में खीर बनती है तो दुनिया का सबसे स्वादिष्ट व्यंजन माना जाता है. खीर में पंचमेवा की जरूरत को अति पिछड़ा, गरीब और दलित-शोषित लोग पूरा करेंगे. खीर में चीनी शंकर झा आजाद मिलाएंगे. तुलसी दल भूदेव चौधरी के यहां से ले लाएंगे. जुल्लीफार अली के यहां के दरस्तखान ले आएंगे और फिर सभी लोग मिलकर स्वादिष्ट व्यंजन का आनंद लेंगे.’

जेडीयू ने कहा, ‘कहीं खीर से शुगर की बीमारी न हो जाए’

वहीं, महागठबंधन में शामिल होने को लेकर उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर जेडीयू ने तंज कसते हुए कहा है कि अगर उपेंद्र कुशवाहा दूध और चावल मिलाकर खीर बनाएंगे तो वह एक मीठा पदार्थ बनेगा. जिससे शुगर की बीमारी हो सकती है. जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि ऐसे में जरूरी है कि मीठा ना खाकर नमकीन खाया जाए जिससे शरीर को कोई हानि नहीं पहुंचती. यानी इशारों ही इशारों में जेडीयू ने भी उपेंद्र कुशवाहा को एनडीए में बने रहने की सलाह दी है.

सत्तलोलुप दलों द्वारा बिहार में अराजकता का माहौल बनाने की कोशिश


सत्ता का सुख भोग चुके लोग दोबारा सत्ता पाने के लिए बेचैन हैं. वो कुछ भी करने को तैयार हैं


कुछ साल पहले का एक रोचक प्रसंग है. राज्य में हुए विधानसभा चुनाव से कुछ सप्ताह पहले ‘राजा’ ने एक कड़क छवि के उभरते राजनेता को देर रात अपने आवास पर चुपके से बुलाया और कहा, ‘आप पूरे प्रदेश में घूम-घूमकर मुझे गाली दीजिए. इसके बदले जितना ‘राशन’ चाहिए आपके आवास पर पहुंच जाएगा.’ राजनेता ने ईमानदारी से अपना काम पूरा किया और दूसरी तरफ राजा ने भी अपना वचन निभाया.

चुनाव जीतने के बाद ‘राजा’ ने बताया कि ‘उनके गाली देने से मुझे बहुत चुनावी फायदा हुआ. ओबीसी और ईबीसी के मतदाता जो हमसे नाराज चल रहे थे फिर मेरे पक्ष में गोलबंद हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि एक उच्च जाति का नेता हेलीकाप्टर घुमा-घुमाकर गाली दे रहा है. इसका मतलब है कि हमारा राजा हमारे भले के लिए जरूर कोई नेक काम कर रहा है.’

इस कर्मकांड के नायक अभी जीवित हैं पर स्वयं निष्क्रिय हैं. लेकिन लगता है कि उनकी सोच अभी भी चलन में है. ये वही नेता हैं जिन्होंने सत्तर के दशक में मात्र अपने राजनीतिक लाभ के लिए आवाज बदलकर फोन से अपने मरने की झूठी खबर राज्यभर में फैला दी थी. इनका मानना रहा है कि सियासी लाभ व सत्ता को हथियाने के लिए जायज और नाजायज पर बहस नहीं की जाती है. येन, केन, प्रकारेण कुर्सी को झपट लिया जाता है.

खुद ही मर्ज बने और खुद ही हाकिम भी

गंभीरता से विवेचना करने पर दिख रहा है कि पिछले कुछ दिनों से राज्य में घट रही हिंसक और शर्मशार करने वाली घटनाएं ऊपर वर्णित विचार और सोच से बहुत अच्छी तरह मेल खा रही हैं. सत्ता का सुख भोग चुके लोग दोबारा सत्ता पाने के लिए बेचैन हैं. वो कुछ भी करने को तैयार हैं. अपने हित को साधने के क्रम में उन्हें सही-गलत की पहचान नहीं करनी है क्योंकि यही विचार और सोच उनको ‘विरासत’ में मिली है. घटनास्थल के दर्शन करने पर स्पष्ट और प्रमाणिक सबूत मिल रहा है कि इसी सोच के महारथी लोग जनता को दर्द दे रहे हैं और हाकिम बनकर दवा देने का भी नाटक कर रहे हैं. ऐसा कर-कराके वो अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे कि नहीं ये तो आने वाला समय ही बताएगा.

इसी विचार के लोगों ने भोजपुर जिला के विंहिया बाजार का आंचल 20 अगस्त को मैला किया है. लोग-बाग बताते हैं इस सोच के युवकों ने अफवाह फैलाने में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया और अनुसूचित समाज की महिला को निवस्त्र करके पूर बाजार में घंटों घुमाया. अब प्रशासन भी मान रही है कि अरेस्ट किए गए 15 संदिग्धों में कई लोग इस सोच के हैं. घटना के विरोध में प्रदर्शन करने का काम भी इसी जमात के लोग कर रहे थे. विंहिया की जनता बातचीत के क्रम में बता रही है कि दोषी और विरोधी दोनों एक ही चना के दाल हैं. फिर ये विरोध और हंगामा मजाक नहीं तो और क्या है?

अराजकता का माहौल बनाने की कोशिश

अगस्त 17 को भोजपुर जिला के सहार थाना में घटी घटना के पीछे भी इसी सोच के लोगों का हाथ है. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि एक दबंग विधायक ने सरकार को बदनाम करने के लिए चैकीदार के लड़के की हत्या पर बवंडर खड़ा करवाया और जब पुलिस लाश उठाने गई तो भीड़ जुटाकर पुलिस को पिटवाने का काम किया ताकि अराजकता का माहौल बने. एक महिला पुलिसकर्मी को भी बेदर्दी से पीटा गया. इसी भीड़ में से किसी ने तमंचे से दारोगा पर गोली दाग दी. दारोगा अभी भी अस्पताल में भर्ती हैं. घटना के दूसरे दिन वही भीड़ कानून को हाथ में लेकर सड़क जाम कर रही थी और देश और प्रदेश सरकार के खिलाफ नारा लगा रहीं थी.

उसी प्रकार, वैशाली जिला अंतर्गत जन्दाहा प्रखंड के ब्लाक प्रमुख मनीष कुमार सहनी की हत्या 13 अगस्त को दिन दहाड़े होती है. एफआईआर में रामबाबू सहनी और उनका बेटा अभय सहनी नामजद अभियुक्त बनाए गए हैं. मृतक का भाई ओम प्रकाश सहनी लिखता है कि रामबाबू के कहने पर उसका बेटा अभय सहनी पिस्टल से गोली मारता है. जनता दल यू के एमएलसी और प्रवक्ता नीरज कुमार बताते हैं कि ‘आरोपी एक राजनीतिक दल के प्रखंड अध्यक्ष हैं. अभी तक उनको दल से भी नहीं निकाला गया है.’ उनका सवाल है कि ‘कानून-व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह उठाने और चिल्लाने वाले नेताओं की मंशा क्या है?’

‘मन की बात’ का 47वां संस्करण

 

मोदी ने रविवार को आकाशवाणी अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 47वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि सुशासन को मुख्य धारा में लाने के लिए देश सदा वाजपेयी का आभारी रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वाजपेयी ने भारत को नई राजनीतिक संस्कृति दी और बदलाव लाने का प्रयास किया। इस बदलाव को उन्होंने व्यवस्था के ढांचे में ढालने की कोशिश की जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला सुनिश्चित है।

उन्होेंने कहा कि भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। पहला यह कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15 प्रतिशत तक सीमित किया गया। दूसरा यह कि दल-बदल विरोधी कानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किए गए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कई वर्षों तक भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े “जम्बो” मंत्रिमंडल कार्य के बंटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। वाजपेयी ने इसे बदल दिया। इससे पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई।

मोदी ने कहा कि यह अटल जी दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को पांच बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में संसद शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम पांच बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया।

मोदी ने कहा कि वाजपेयी के कारण ही देशवासियों को ‘एक और आज़ादी’ मिली। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई और 2002 में इसे अधिसूचित कर दिया गया। इस संहिता में कई ऐसे नियम बनाए गए जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के कारण अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने प्राण प्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब कर दिया। उन्होेंने कहा कि वाजपेयी ने चुनाव प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों से संबंधित प्रावधानों में साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूंगा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी।

वाजपेयी के योगदान का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बनर्जी और बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे के सुझावाें का जिक्र किया।

श्रावण पूर्णिमा एवं रक्षाबंधन की कोटी कोटी बधाई

श्रावण माह की पूर्णिमा: ओणम एवं रक्षाबंधन

 

श्रावण माह की पूर्णिमा बहुत ही शुभ व पवित्र दिन माना जाता है. ग्रंथों में इन दिनों किए गए तप और दान का महत्व उल्लेखित है. इस दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है. श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व है इस दिनयज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है.

ब्राह्मण वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं. हिन्दू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है. सावन माह भगवान शिव की पूजा उपासना का महीना माना जाता है. सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है.

इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. इस माह की पूर्णिमा तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है  अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है.

कजरी पूर्णिमा | Kajari Purnima

कजरी पूर्णिमा का पर्व भी श्रावण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है यह पर्व विशेषत: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है. श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव तैयारीयां आरंभ हो जाती हैं. कजरी नवमी के दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भरकर लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है.

कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएँ इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं .इस नवमी की पूजा करके स्त्रीयाँ कजरी बोती है. गीत गाती है तथा कथा कहती है. महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं.

श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में रक्षा बंधन के पर्व रुप में, दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम तथा गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है.

रक्षाबंधन | Rakshabandhan

रक्षाबंधन का त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं. रक्षाबंधन, राखी या रक्षासूत्र का रूप है राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता है.

इसके अतिरिक्त ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी रक्षासूत्र या राखी बांधी जाती है. इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीनयज्ञोपवीत धारण किया जाता है. वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं.

श्रावणी पूर्णिमा पर अमरनाथ यात्रा का समापन

पुराणों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री अमरनाथ की पवित्र छडी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है. कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन ही शिवलिंग पर जल चढया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है. इस दिन शिव जी का पूजन होता है पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचग्वया में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं.

श्रावण पूर्णिमा महत्व

श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है अत: इस दिन पूजा उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है, श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्वपूर्ण होता है अत: इस दिन स्नान के बाद गाय आदि को चारा खिलाना, चिंटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए इस दिन गोदान का बहुत महत्व होता है.

श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दे और भोजन कराया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है. विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है. इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए.

इतिहास में वर्णित कुछ प्रसंग:

श्रावण मास पूर्णिमा को मनाए जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है। इस बार 26 अगस्त रविवार को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है। इस त्योहार का प्रचलन सदियों पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार इस त्योहार की परंपरा उन बहनों ने रखी जो सगी बहनें नहीं थी। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों मनाया जाता हैं रक्षाबंधन का त्योहार।

राजा बलि और देवी-लक्ष्मी ने शुरू की भाई बहनों की राखी

राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान, वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। भगवान ने तीन पग में आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। तब राजा बलि ने अपनी भक्ति से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और भेंट में अपने पति को साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।

द्रौपदी और कृष्ण का रक्षाबंधन

राखी या रक्षा बंधन या रक्षा सूत्र बांधने की सबसे पहली चर्चा महाभारत में आती है, जहां भगवान कृष्ण को द्रौपदी द्वारा राखी बांधने की कहानी है। दरअसल, भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से चेदि नरेश शिशुपाल का वध कर दिया था। इस कारण उनकी अंगुली कट गई और उससे खून बहने लगा। यह देखकर विचलित हुई रानी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर कृष्ण की कटी अंगुली पर बांध दी। कृष्ण ने इस पर द्रौपदी से वादा किया कि वे भी मुश्किल वक्त में द्रौपदी के काम आएंगे। पौराणिक विद्वान, भगवान कृष्ण और द्रौपदी के बीच घटित इसी प्रसंग से रक्षा बंधन के त्योहार की शुरुआत मानते हैं। कहा जाता है कि कुरुसभा में जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, उस समय कृष्ण ने अपना वादा निभाया और द्रौपदी की लाज बचाने में मदद की।

कर्णावती-हुमायूं

मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। इससे चिंतित रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को एक चिट्टी भेजी। इस चिट्ठी के साथ कर्णावती ने हुमायूं को भाई मानते हुए एक राखी भी भेजी और उनसे सहायता मांगी। हालांकि मुगल बादशाह हुमायूं बहन कर्णावती की रक्षा के लिए समय पर नहीं पहुंच पाया, लेकिन उसने कर्णावती के बेटे विक्रमजीत को मेवाड़ की रियासत लौटाने में मदद की।

रुक्साना-पोरस

रक्षा बंधन को लेकर इतिहास में राजा पुरु (पोरस) और सिकंदर की पत्नी रुक्साना के बीच राखी भेजने की एक कहानी भी खूब प्रसिद्ध है। दरअसल, यूनान का बादशाह सिकंदर जब अपने विश्व विजय अभियान के तहत भारत पहुंचा तो उसकी पत्नी रुक्साना ने राजा पोरस को एक पवित्र धागे के साथ संदेश भेजा। इस संदेश में रुक्साना ने पोरस से निवेदन किया कि वह युद्ध में सिकंदर को जान की हानि न पहुंचाए।

कहा जाता है कि राजा पोरस ने जंग के मैदान में इसका मान रखा और युद्ध के दौरान जब एक बार सिकंदर पर उसका धावा मजबूत हुआ तो उसने यूनानी बादशाह की जान बख्श दी। इतिहासकार रुक्साना और पोरस के बीच धागा भेजने की घटना से भी राखी के त्योहार की शुरुआत मानते हैं।

जब युद्धिष्ठिर ने अपने सैनिको को बांधी राखी

राखी की एक अन्य कथा यह भी हैं कि पांडवो को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युद्धिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं कैसे सभी संकटो से पार पा सकता हूं। इस पर श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिको को रक्षासूत्र बांधे। इससे उसकी विजय सुनिश्चिच होगी। तब जाकर युद्धिष्ठिर ने ऐसा किया और विजयी बने। तब से यह त्योहार मनाया जाता है।

जब पत्नी सचि ने इन्द्रदेव को बांधी राखी

भविष्य पुराण में एक कथा हैं कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में ही हुई थी

पत्रकारों को झूठे मुकदमे दर्ज कर फंसाया जा रहा है

(श्रवण सिंह राठाैड़ दासपां )
एससी एसटी एक्ट का बाड़मेर के पत्रकार दुर्ग सिंह जी के खिलाफ बिहार में मुकदमा् दर्ज कराने वाला खुद ही मुकर गया। वो परिवादी बोल रहा है कि मुझे तो पता ही नहीं। मैं कभी बाड़मेर आया ही नहीं। दुर्ग सिंह राजपुरोहित को जानता ही नहीं हूं। मैंने तो मुकदमा ही दर्ज नहीं कराया। इस झूठे प्रकरण में दुर्ग सिंह जी राजपुरोहित गिरफ्तार हो कर बिहार की जेल में बंद है। ये क्या हो रहा है इस देश में। पत्रकारों को झूठे मुकदमे दर्ज कर फंसाया जा रहा है। कोई सुनने वाला नहीं है। क्या भाजपा सरकार इतनी कमजोर और डरपोक है, जो ऐसे घटियापन पर उतर आई है।
मतलब साफ है कि ये राजनीतिक षड़यंत्र के तहत परिवादी राकेश पासवान के किसी स्थानीय विवाद में मदद का बोलकर साइन करवाकर वहां के एक बड़े भाजपा नेता (मेयर ) ने दुर्ग सिंह के खिलाफ ये झूठी कारवाई करवाई है। भला बिहार के मेयर से बाड़मेर के दुर्ग सिंह से क्या दुश्मनी होगी ? क्या ये महामहिम राज्यपाल ने डोरा करने की कोशिश करवाईं थी ?? भगवान जाने? वैसे भी झूठ पांव नहीं होते हैं। सच्चाई सामने आ रही है। सब षड़यंत्र रचने वाले बेनकाब होंगे।
मैं राजस्थान सरकार से मांग करता हूं कि वो इस षड़यंत्र में सहयोग करने वाले बाड़मेर पुलिस अधीक्षक को तत्काल प्रभाव से हटाए। थोड़ी भी शर्म बची हो तो मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को इस प्रकरण की उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए। इस प्रकरण में चुप्प बैठकर तमाशा देखने वालों को भी अपनी अंतरात्मा से सवाल करना चाहिए। मैंने पहले दिन जब इस प्रकरण को सबसे पहले सोशल मीडिया और अपने दिल्ली और बिहार के पत्रकार मित्रों के माध्यम से उठाया तब मुझे कुई लोगों ने मना किया था कि दुर्ग सिंह जी की छवि अच्छी नहीं है, इसलिए आपको ऐसे व्यक्ति की पैरवी नहीं करनी चाहिए ! मैं सुनता सबकी हूं, करता अपने मन की हूं। मेरा मानना है कि हमें गलत को ग़लत और सही को सही बोलने की आदत डालने की जरूरत है। आज दुर्ग सिंह जी अंदर है, कल आपका नंबर भी लग सकता है। फिलहाल नितिश कुमार के नेतृत्व वाली भाजपा की भागीदारी वाली बिहार सरकार और वसुंधरा राजे के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार एससी-एसटी एक्ट के इस झूठे प्रकरण के लिए पूरी तरह दोषी है। हमें सरकार के इस नंगेपन के खिलाफ लोकनिंदा के माध्यम से विरोध करना चाहिए।
सत्यमेव जयते।

मोदी सरकार की ओर से संशोधित करके लागू किए गए एससी एसटी एक्ट के प्रभावशाली लोगों की ओर से दुरुपयोग का यह संभवतया पहला मामला है। बाडमेर के वरिष्ठ पत्रकार दुर्ग सिंह राजपुरोहित के खिलाफ दर्ज एफआईआर को मैंने पढ़ा है। अपने क्राइम रिपोर्टिंग के इतने सालों के अनुभव के आधार पर दावे से कह सकता हूं कि ये फर्जी और मनगढ़ंत प्रकरण है, जिसमें बिहार और राजस्थान पुलिस ने बड़े दबाव में फर्जी तरीके से ये गिरफ्तारी की गई है। अगर निष्पक्ष जांच हुई तो कई बड़े चेहरे बेनकाब होंगे और कई सलाखों के पीछे जाएंगे। बिहार के राकेश पासवान नाम के एक कथित मजदूर ने दुर्ग सिंह के खिलाफ बिहार में एफ आई आर दर्ज कराईं है। जिसमें आरोप लगाया है कि दुर्ग सिंह ने 7 मई को बिहार आकर नीच पासवान जाति का बोलकर अपमानित किया। साथ ही घर से बाहर निकालकर मारपीट की। रिपोर्ट में आरोप लगाया है कि दुर्ग सिंह का बाड़मेर में पत्थरों समेत कई तरह के व्यवसाय है। आरोप के मुताबिक पासवान बाड़मेर में दुर्ग सिंह के वहां मजदूरी करता था। छह महीने काम करके बिना मजदूरी लिए वो बिहार चला गया। दुर्ग सिंह 15 अप्रेल को बिहार उस मजदूर को लेने गया। रिपोर्ट के मुताबिक मजदूर ने माता पिता की बीमारी का हवाला देकर बिहार से बाड़मेर आने के लिए मना कर दिया। इसके बाद दुर्ग सिंह फिर 7 मई को 3-4 अज्ञात लोगों को लेकर बिहार राकेश पासवान के घर आकर बाड़मेर जबरन ले जाने के लिए धमकाने लगा। घर से घसीटकर बाहर ले कर आए। नीच जाति का बोलकर मारपीट की। मेरे 75 हजार मज़दूरी के भी नहीं दिए। ……………………………………….
बिहार में ये एफआई आर दर्ज होने के बाद कोर्ट से गिरफ्तारी वारंट जारी हो जाता है। उस वारंट को पटना के एसपी ने गंभीरता से लेते हुए तुरंत बाड़मेर एसपी को जरिए ईमेल और वाट्स अप के भिजवाया गया। एसपी बाड़मेर ने प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए एसपी ने रीडर के जरिए दुर्ग सिंह को उपस्थित होने की सूचना भिजवाई। दुर्ग सिंह जी तुरंत बाड़मेर एसपी आफिस गए। एसपी ने बिठाने कै बोला। दुर्ग सिंह को इतला दी कि आपके खिलाफ पटना में एससी एसटी एक्ट और अमानत में ख़यानत का प्रकरण दर्ज हुआ है। दुर्ग सिंह ने बोला कि मेरी तो सात पीढ़ियों में से कोई भी आज तक पटना नहीं गया है। उधर एसपी ने ग्रामीण थाने के एसएचओ को बुलाकर दुर्ग सिंह को एक हैड कांस्टेबल और दो सिपाहियों के साथ पटना लेकर जाने के निर्देश दिए गए। तुरंत एक हैड कांस्टेबल और दो सिपाही एक प्राइवेट गाड़ी करके दुर्ग सिंह जी को लेकर बाड़मेर से पटना रवाना हो गए। फोन ले लिया गया। राजस्थान पुलिस गाली गलौज के गंभीर मामले के मुलजिम दुर्ग सिंह को ले जाकर पटना पुलिस को सुपुर्द कर दिया है। वहां दुर्ग सिंह को कोर्ट ने ज्यूडिशियल कस्टडी में भेज दिया है।
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सवाल
1. दुर्ग सिंह इंडिया न्यूज में कार्यरत है, उसका कोई पत्थर खनन का काम नहीं है।
2. दुर्ग सिंह जिदंगी में कभी बिहार नहीं गए।
3. दुर्ग सिंह के मुताबिक उन्होंने कभी राकेश पासवान नाम के व्यक्ति को देखा ही नहीं।
4. दुर्ग सिंह के मुताबिक उसने बिहार के गवर्नर सतपाल मलिक के बाड़मेर में दौरे को लेकर एक पोस्ट लिखी थी, जिससे भाजपा नेता प्रियंका चौधरी उससे नाराज़ हैं।
5. दुर्ग सिंह का आरोप है कि ये गवर्नर विवाद कनेक्शन की वजह से उसे झूठे मामले में बिना जांच के फर्जी एससी-एसटी एक्ट का प्रकरण दर्ज करके गिरफ्तार किया गया है।
6. एफ आई आर में दुर्ग सिंह को 7 मई को बिहार में राकेश पासवान के घर पर जाकर नीच जाति का बोलकर अपमानित करने का आरोप लगाया है, जबकि फेसबुक पर 7 मई को दुर्ग सिंह बाड़मेर में एक पुस्तक के विमोचन का लाइव दिखा रहे थे। उसकी डिटेल मैंने इस पोस्ट में स्कि्रन शाट सलंग्न है।
7. एक मजदूर को जाति सूचक शब्दों से अपमानित करने के मामले में बिहार से आए वारंट में राजस्थान पुलिस पर किसका दबाव था, जिस वजह से दुर्ग सिंह को बिना किसी नोटिस के। गिरफ्तार कर एक हैड कांस्टेबल और दो सिपाहियों को प्राइवेट टैक्सी से बिहार जाकर वहां की पुलिस को सुपुर्द किया गया। ऐसा तो किसी आतंकी गतिविधियों के मामले में भी एक तरफा कार्यवाही नहीं हुई।
8. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को अपनी गौरव यात्रा से पहले ये स्पष्ट करना चाहिए कि उनकी पार्टी की नेता और राज्य की पुलिस का इस अनैतिक कारवाई में संलिप्तता की वो निष्पक्ष जांच करवाकर क्या तत्काल प्रभाव से बाड़मेर एसपी को वहां से हटाने और भाजपा की महिला नेता वियंका चौधरी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई करेगी ?
(श्रवण सिंह राठाैड़ दासपां की कलम से )