Promoting Hindi language is my duty: Pankaj Tripathi

Pankaj-Tripathi


Generally, I don’t use common Hindi words while communicating. I use a bit difficult Hindi words on set.


Pankaj Tripathi says he is a Hindi cinema actor so, promoting the Hindi language is his duty.

“Being a responsible citizen of India and coming from a Hindi medium school, I believe it’s my responsibility and duty to teach and correct Hindi. While shooting for Shakeela biopic, my director Indrajit Lankesh used to tell me to speak in Hindi with him so that his Hindi could improve,” Pankaj said in a statement.

“Generally, I don’t use common Hindi words while communicating. I use a bit difficult Hindi words on set. Crew members often used to ask me the meaning of those Hindi words. They were excited to learn meaning of new Hindi words. It wasn’t difficult communicating with Bengaluru crew members on sets of Shakeela biopic. I am a Hindi cinema actor, promoting Hindi language is my duty,” he added.

The film is based on South Indian glamour actress Shakeela.

सत्ता विमुख दलों में हाशिये पर जाते मुस्लिम नेता


कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने हाल ही में यह कह सियासी तूफान मचा दिया है कि अब उनकी पार्टी के हिंदू नेता कार्यक्रमों में बुलाने से डरने लगे हैं.


कांग्रेस नेता गुलाम नबी आज़ाद ने हाल ही में यह कह सियासी तूफान मचा दिया है कि अब उनकी पार्टी के हिंदू नेता कार्यक्रमों में बुलाने से डरने लगे हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में वहां के छात्रों से मुखातिब आज़ाद ने कहा कि पहले उन्हें अपने कार्यक्रमों में बुलाने वालों में 95 फीसदी हिंदू हुआ करते थे. अब सिर्फ 20 फीसदी हिंदू ही उन्हें बुलाते हैं. पिछले चार साल में देश में ऐसा माहौल बन गया है कि वोट कटने के डर से हिंदू नेता मुस्लिम नेताओं को अपने कार्यक्रमों में बुलाने से कन्नी काटने लगे हैं.

आज़ाद के इस बयान पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए इसे हिंदुओं का अपमान करार दिया. बीजेपी इसे लेकर कांग्रेस पर हमालावर हो गई है. कांग्रेस प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा है कि ऐसा बयान देकर आज़ाद ने हिंदुओं को नीचा दिखाने की कोशिश की है. बीजेपी ऐसे ही मुद्दों की तलाश में रहती है जिससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हो और उसे चुनावी फायदा पहुंचे. पाच राज्यों में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं. इनमें से तीन में बीजेपी की सरकारें हैं. राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुसलमान करीब 10 फीसदी हैं, इन राज्यों में बीजेपी आज़ाद के इस बयान को बड़ा मुद्दा बनाकर ध्रुवीकरण कर सकती है.

आज़ाद कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं. वो उन गिने-चुने नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के साथ काम किया है और अब राहुल गांधी के साथ उनके बेहद करीबी और विश्वास पात्र नेताओं की हैसियत से उनकी टीम मे शामिल हैं. पार्टी में उनकी हैसियत और अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस ने उन्हें राज्यसभा में विपक्ष बनाया गया हैं. लिहाज़ा यह नहीं माना जा सकता कि पार्टी और देश राजनीतिक मिजाज को समझने में उसे किसी तरह की चूक हुई होगी. जो उन्होंने महसूस किया बोल दिया. शायद यह बात कहने का समय उन्होंने गलत चुना है.

आजम खान

आजाद की हिम्मत की दाद देनी होगी कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर उन्होंने मुंह खोला. और बगैर लाग लपेट साफ बात की. समाज को आईना दिखाया. हो सकता है कि उनका यह बयान राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए नुकसान का सबब बन जाए. पिछले साल गुजरात चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी ने यह कह कर बाजी पलट दी थी कि अगर कांग्रेस जीती तो अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाएगी. पाकिस्तान अहमद पटेल को मुख्यमंत्री बनाना चाहता है. यह सच्चाई है कि इस प्रचार के बाद गुजरात में बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकरण हुआ था. इससे बीजेपी को चुनाव जीतने में काफी मदद मिली था.

गुजरात का यह प्रयोग इस बात का सबूत है कि तेजी से बदलते भारत में मुसलमानों के खिलाफ नफरत नित नए आयाम ले रही है. इसकी शुरुआत कब हुई यह तो रिसर्च का विषय है. लेकिन यह बात पक्के तौर पर कही जा सकती है कि जब से बीजेपी ने हिंदुत्व को खुले रूप से अपने एजेंडे में शामिल किया है तब से राजनीतिक परिदृश्य से मुसलमान कम होते गए हैं. साल 2014 में केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद राजनीति में मुसलमान लुप्तप्राय प्राणी बन गए हैं. सिर्फ कांग्रेस ही क्यों मुसलमानों के दम पर राजनीति करने वाली सपा, बसपा, राजद, जदयू और रालोद जैसी पार्टियों ने अपने मुस्लिम चेहरों पर नकाब डाल दिया है.

कांग्रेस ने गुजरात के पिछले तीन विधानसभा चुनावों में अहमद पटेल को छोड़कर किसी दूसरे मुस्लिम नेता प्रचार में नहीं भेजा. कांग्रेस आलाकमान को डर रहता है कि ज्यादा मुस्लिम चेहरे दिखेंगे तो कांग्रेस को नुकसान होगा. इस बार कर्नाटक के चुनाव में भी कांग्रेस ने मुस्लिम नेताओं को दूर रखा था. चुनावी नतीजे आने के बाद वहां सरकार बनाने के लिए गुलाम नबी आज़ाद के बड़ी ज़िम्मेदारी ज़रूर दी गई. राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस के मुस्लिम नेताओं को अलग रखा गया है. ज़ाहिर है कांग्रेस मुस्लिम नेताओं को चुनाव प्रचार में नहीं भेजकर धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण की गुंजाइश कम करना चाहती है.

कांग्रेस में टिकटों के बंटवारे में भी इस बात का खास ख्याल रखा जाता है कि कहीं मुसलमानों को ज्यादा टिकट देने से उसका हिंदू वोट बैंक न खिसक जाए. गुजरात के पिछले तीन चुनाव के आंकड़े देखिए कांग्रेस 6-7 से ज्यादा टिकट मुसलमानों को नहीं देती. इसी तरह राजस्थान और मध्य प्रदेश में भी पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवारों का आंकड़ा दहाई के अंक को नहीं छूता. इन राज्यों में मुसलमानों की आबादी 10 फीसदी है.

अहमद पटेल

इस हिसाब से देखें तो कांग्रेस को इन राज्यों में कम से कम 15-20 मुस्लिम उम्मीदवार उतारने चाहिए. लेकिन हिंदू जनाधार खिसकने का डर कांग्रेस को ऐसा करने से रोकता है.

मुसलमानों का डर दिखाकर सिर्फ बीजेपी ही राजनीतिक फायदा नहीं उठाती. कांग्रेस इस इस खेल की माहिर रही है. कांग्रेस मौका मिलने अब भी नहीं चूकती. साल 2011 में असम के विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने अनौपचारिक रूप से यही प्रचार किया था कि अगर हिंदुओं ने उस वोट नहीं दिया तो बदरुद्दीन अजमल राज्य के मुख्यमंत्री बन जाएंगे. तब असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने सॉफ्ट हिंदुत्व की राह पर चलकर ही अपनी सत्ता बचाई थी. ये खुली सच्चाई है. अब यही काम बीजेपी खुलेआम कर रही है.

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने राजनीति में धर्म का ऐसा तड़का लगाया था कि उसकी खुशबू राजनीतिक माहौल में रच बस गई है. पीएम बनने बाद मोदी ने देश विदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में सार्वजनिक रूप से विशेष पूजा करके देश के बहुंसख्यंक समाज के बीच एक मजबूत हिंदू नेता की छवि बना ली है. इसकी काट कांग्रेस और बाकी पार्टियां ढूंढ ही नहीं पा रहीं. अब राहुल गांधी भी मंदिर-मंदिर चक्कर लगा कर खुद को मोदी से बेहतर हिंदू साबित करने में जुटे हैं. वहीं अखिलेश और मुलायम कभी कृष्ण को राम से बड़ा भगवान बताकर उनकी मूर्ती लगवाने की बात करते हैं तो कभी विष्णु भगवान की मूर्ती लगवाने का ऐलान करते है.

मौजूदा राजनीतिक हालात में बीजेपी को छोड़ हर पार्टी के सामने अपना वजूद बचाने की चुनौती है. ऐसे में मुसलमानों की चिंता के लिए भला किसके पास वक्त बचा है. मुलायम यिंह यादव और अमर सिंह 2009 के लोकसभा चुनाव में हर रोज दाढ़ी वाले मुसलमानों के साथ टीवी चैनलों पर दिखते थे. साल 2012 के विधानसभा चुनावों के दौरान पूरे यूपी में मुलायम, अखिलेश और शिवपाल की हरे चैक के रूमाल और सिर पर मुस्लिम टोपी वाले पोस्टर लगे थे. वहीं 2017 के विधानसभा चुनाव में अखिलेश ने एक भी लंबी दाढ़ी और टोपी वाले मुसलमान को अपने आसपास भी नहीं फटकने दिया. सपा के जन्म से ही उसका चेहरा रहे आज़म खान आज पार्टी में अपनी जगह ढूंढ रहे हैं.

लगभग सभी राजनीतिक दलों में मुस्लिम नेताओं का हालात आज़म खान और गुलाम नबी आज़ाद की तरह होती जा रही है. मायावती ने कभी बसपा में पार्टी की रीढ़ माने जाने वाले नसीमुद्दीन सिद्दीकी को एक झटके से पार्टी से निकाल फेंका था. मुसलमानों के वोटों पर राजनीति करने वाले राजद, जदयू ने भी मौके की नजाकत को देखते हुए अपने मुस्लिम नेताओं को चुपचाप पिछली कतार में बैठा दिया है. ऐसा लगता है कि कभी मुसलमानों के वोट हासिल करने का जरिया रहे ये मुस्लिम नेता उनके लिए आज बोझ बन गए है. आज इस बोझ को कोई ढोना नहीं चाहता.

गुलाम नबी आज़ाद

गुलाम नबी आज़ाद ने जब यह मुद्दा छेड़ ही दिया है तो उनसे भी कुछ सवाल बनते हैं. आज़ाद को खुद से और अपनी पार्टी के बड़े नेताओं से भी पूछना चाहिए कि अगर देश में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण इस हद तक पहुंच गया है कि मुस्लिम नेताओं की मौजूगी भर से पार्टी के हिंदू वोटर खिसक जाते हैं तो फिर इसका जिम्मेदार कौन है? अगर संघ परिवार और बीजेपी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर अपनी सांप्रदायिक सोच को देश के बड़े तबके के बीच ले जाने में कामयाब हुए हैं तो फिर पांच दशकों तक केंद्र की सत्ता और कई दशकों तक राज्यों की सत्ता में रहने के बावजूद कांग्रेस ऐसा माहौल क्यों नहीं पैदा कर पाई जिसमें समाज का कोई तबका किसी दूसरे के मुकाबले खुद को कमतर या असुरक्षित महसूस न करे. इसकी जिम्मेदारी तो किसी न किसी को लेनी होगी. लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पर इसकी ज्यादा जिम्मेदारी आती है.

नेताजी, पटेल और आंबेडकर के सम्मान से कांग्रेस को क्यों ऐतराज है: शाहनवाज हुसैन


शाहनवाज हुसैन ने कहा, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरूषों का सम्मान किए जाने का तो कांग्रेस को स्वागत करना चाहिए


मोदी सरकार पर इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास करने के कांग्रेस के आरोप पर पलटवार करते हुए बीजेपी ने सोमवार को कहा कि नेताजी, सरदार पटेल, बाबा साहब आंबेडकर जैसे महापुरूषों के सम्मान पर विपक्षी दल को ऐतराज क्यों हो रहा है?

बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सैयद शाहनवाज हुसैन ने कहा, ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जैसे महापुरूषों का सम्मान किए जाने का तो कांग्रेस को स्वागत करना चाहिए. लेकिन उसे इस पर ऐतराज है, क्यों?’

उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार इतिहास को फिर से लिखने का प्रयास नहीं कर रही है, बल्कि इन महापुरूषों के साथ जो नाइंसाफी हुई, जिस प्रकार इन्हें कांग्रेस ने भुलाने का काम किया, उसे दूर करते हुए उन्हें सम्मान देने का प्रयास किया जा रहा है.

हुसैन ने कहा कि 75 साल में पहली बार, अखंड भारत की पहली सरकार को सम्मानपूर्वक, समारोह में याद किया गया. कांग्रेस पर निशाना साधते हुए बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि नेताजी की तरह ही सरदार पटेल और बाबा साहब आंबेडकर का योगदान भुलाने की कोशिश की गई. 31 अक्टूबर को सरदार पटेल की याद में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ का अनावरण किया जा रहा है.

स्वतंत्रता संग्राम में आरएसएस के योगदान पर कांग्रेस द्वारा सवाल उठाने के विषय पर हुसैन ने कहा कि कांग्रेस के लिए एक ही परिवार का योगदान मायने रखता है जबकि आजादी की लड़ाई में नागरिक होने के नाते अनेकानेक लोगों ने योगदान दिया और देश से मोहब्बत रखने वाला संगठन होने के नाते संघ ने भी योगदान दिया.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने बीजेपी नीत केंद्र सरकार पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस की धरोहर हथियाने के लिए ‘षडयंत्रपूर्ण प्रयास’ करने का आरोप लगाते हुए रविवार को कहा था कि बीजेपी इतिहास फिर से लिखने के लिए व्याकुल है.

कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि ‘व्याकुल बीजेपी इतिहास फिर से लिखने की कोशिश कर रही है और सरदार पटेल एवं जवाहरलाल नेहरू के बीच तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस एवं नेहरू के बीच एक काल्पनिक प्रतिद्वंद्विता पैदा कर रही है. इसने शुभ अवसरों का इस्तेमाल ओछे राजनीतिक हथकंडों के लिए किया है.’

इससे पहले आजाद हिंद सरकार की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर रविवार को आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि यह दुखद है कि एक परिवार को बड़ा बताने के लिए, देश के अनेक सपूतों के योगदान को भी भुलाने का प्रयास किया गया.

दुर्गा पुजारियों से दबंगाई और डॉक्टरों से मारपीट इसी के सहारे कम्यूनिस्ट पार्टी में जीवन फूंकेंगे कन्हैया


  • कन्हैया को कम्यूनिस्ट पार्टी की खून खराबे की राजनीति बहुत भाति है, वह पूरे बिहार को अपनी इसी राजनीति की चपेट में देखना चाहते हैं

  • दुर्गा पूजा के पंडाल में लोगों से मार पीट ओर एम्स मे डॉक्टरों से दबंगाई लाल बनाम भगवा की लड़ाई बनाते जा रहे हैं कन्हैया

  • कन्हैया पार्टी के भीतर अपनी साख बढ़ाने और मोदी विरोधियों को लामबंद करने के लिए राजनीतिक स्टंट अपनाने से बाज नहीं आ रहे


कन्हैया एक बार फिर सुर्खियो में हैं और वजह है बेगूसराय में उनके समर्थकों द्वारा दुर्गा पूजा आयोजन समिति के लोगों का पीटा जाना. स्थानीय पत्रकारों के मुताबिक कन्हैया बेगूसराय के मंसूरचक से सभा कर लौट रहे थे और रास्ते में उनका काफीला एक ऐसी जगह पर रुका जहां पास में दुर्गा पूजा का पंडाल लगा था. वक्त आरती का था इसलिए लोगों की भीड़ ठसाठस थी. वैसे भी बिहार में दशहरा बेहद धूमधाम से मनाया जाता है और आम लोग सड़कों पर दुर्गा पूजा पंडाल देखने परिवार के साथ आते हैं.

कन्हैया के काफिले में कई गाड़ियां थीं जिनमें उनके समर्थक मौजूद थे. गाड़ी बीच सड़क पर रोके जाने की वजह से आयोजन समिति के लोगों ने ऐतराज जताया. उस दरम्यान कन्हैया पास के एक कोंचिग संस्थान के डायरेक्टर से मुलाकात कर रहे थे. मामूली कहासुनी हुई और कन्हैया समर्थकों ने आयोजन समिति के लोगों को पीट दिया. बाद में लोकल लोगों की नाराजगी को देखते हुए कन्हैया और उनकी टोली को भागना पड़ा.

स्थानीय लोगों के मुताबिक ये कोई राजनीतिक लड़ाई थी ही नहीं. ये महज कन्हैया के लोगों की दबंगई थी कि उन्हें सड़क के किनारे गाड़ी लगाने के लिए क्यूं कहा जा रहा है. हो सकता है आयोजन समिति के लोगों के कहने के तरीके में थोड़ी तल्खी हो लेकिन उनकी तल्खी का जवाब उन्हें पीटकर दिया गया.

स्थानीय पत्रकार सत्येन्द्र कुमार कहते हैं, ‘कन्हैया के काफिले की गाड़ी तोड़ी गई, ये स्थानीय लोगों के गुस्से का इजहार था लेकिन बेरहमी से मारपीट को अंजाम कन्हैया के लोगों ने ही दिया ये साफ प्रतीत होता है.

वहीं प्रसार भारती के संवाददाता रह चुके अमरेन्दर कुमार कहते हैं, ‘मामले दोनों तरफ से दर्ज किए गए हैं जबकि घायल पूजा समिति के लोग हुए हैं. कन्हैया की गाड़ी को लोगों ने गुस्से में तोड़ा है. कन्हैया के लोग पूजा आयोजन समिति के लोगों को मारकर भाग रहे थे. इसलिए इसे कोई राजनीतिक रंग देना सोची समझी रणनीति है.’

कुछ दिन पहले पटना के एम्स में भी डॉक्टर्स ने कन्हैया और उनके समर्थकों पर बदसलूकी और मारपीट का आरोप लगाया था जब कि कन्हैया और उनके समर्थकों ने इसे बीजेपी द्वारा प्रायोजित करार देकर मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की थी. दोनों घटनाओं पर गौर फरमाया जाए तो साफ दिखता है कि कन्हैया यूनिवर्सिटी पॉलिटिक्स वाली तल्खी राजनीति के असली मैदान में भी बरकरार रखना चाहते हैं.

Kanhaiya Kumar

ध्यान रहे कन्हैया बखूबी जानते हैं कि उनकी हर गतिविधि को मीडिया खूब उठाएगा, इसलिए हर बात पर बीजेपी पर ठीकरा फोड़ने का कोई मौका वो गंवाते नहीं हैं. बेगूसराय कम्यूनिस्टों का गढ़ रहा है. एक जमाने में उसे मिनी मॉस्को भी कहा जाता था. कन्हैया महागठबंधन के उम्मीदवार होंगे, ऐसा लगभग सुनिश्चित माना जा रहा है. इसलिए कन्हैया हर मौके को बीजेपी बनाम कन्हैया बना देने का कोई कसर छोड़ते नहीं हैं.

वैसे उनकी पार्टी के भीतर लोकसभा में उनको टिकट दिए जाने को लेकर बेहद नाराजगी है. कई जमीनी कार्यकर्ता उन्हें ऊपर से थोपा हुआ करार देकर चुनाव में मजा चखाने की बात भी कर रहे हैं. पार्टी कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि सालों से राजनीतिक जमीन पर पसीना बहाने वाले स्थानीय नेताओं को दरकिनार कर कन्हैया को ऊपर से थोपा जा रहा है. ये कम्यूनिस्ट कल्चर के खिलाफ है और स्थानीय कम्यूनिस्ट नेता और पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह, दिग्गज नेता राजेन्द्र सिंह और रामरतन सिंह सरीखे नेता का अपमान भी.

कन्हैया बेगूसराय संसदीय क्षेत्र में पार्टी की अंदरूनी राजनीति से भी बखूबी परिचित हैं. इसलिए हर मौके पर बीजेपी के खिलाफ लड़ने में अपने को अग्रसर दिखा वो पार्टी के अंदर और बाहर एक लंबी लकीर खींचने का कोई मौका हाथ से जाने देना नहीं चाहते. यही वजह है कि पटना एम्स के डॉक्टर्स और गार्डस और पूजा समिति के लोग जिसमें बीजेपी जेडीयू और कम्यूनिस्ट सबके लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. उसे कन्हैया बनाम भगवा बना दिया गया.

युवाओं को लुभाने के लिए आक्रामकता का सहारा

कन्हैया जानते हैं कि कम्यूनिस्ट पार्टी का जहां एक समय बोलबाला था, वहां जमींदोज हो चुकी पार्टी को जिंदा करने के लिए आक्रामकता बेहद जरूरी है. जो युवा 90 के दशक में मंडल के बाद कम्यूनिस्ट पार्टी से मुंह मोड़ चुके थे उन्हें साथ लाने के लिए एससी/एसटी पर बीजेपी के रवैये को लेकर अगड़ी जाति के युवाओं में नाराजगी को भुनाने को कोई मौका गंवाते नहीं हैं.

वहीं पिछड़ों और दलित का दिल जीतने के लिए एक सप्ताह पहले कन्हैया ने एक सभा की जिसमें जिग्नेश मेवाणी के साथ बीजेपी के खिलाफ जमकर आग उगली. पिछड़ा खास कर यादव जाति के लोगों को लुभाने के लिए वो लालू को निर्दोष भी बताते हैं.

कन्हैया ने इतिहास को दोहराने की भी कोशिश की और जिस जगह का चुनाव किया उसका नाम बखरी है. यहां से कॉमरेड चंद्रशेखर ने 60 के दशक में कांग्रेस के खिलाफ बिगुल फूंक कर उसकी जड़ें हिला दी थी लेकिन पिछले लोकसभा में सीपीआई ने जेडीयू के साथ मिलकर चुनाव लड़ा फिर भी उसे तीसरे स्थान से संतोष करना पड़ा था. इससे जनाधार की असली हकीकत पता की जा सकती है. इतना ही नहीं 2015 के विधानसभा चुनाव में बेगूसराय संसदीय क्षेत्र की 6 विधानसभा सीटों पर दूसरे या तीसरे नंबर पर रहना उसके खिसकते जनाधार की हकीकत को बखूबी बयां करता है. जाहिर है हाशिए पर जा चुकी पार्टी में जान फूंकने के लिए कन्हैया युवाओं को अपनी आक्रामकता से लुभाना चाहते हैं और लालू और जिग्नेश मेवाणी का साथ दिखाकर वो दलित और पिछड़े खासकर यादवों और मुसलमानों का समर्थन हासिल कर बाजी जीतने का दांव भी खेल रहे हैं.

1980 के दशक के खूनी खेल में न तब्दील जाए ये आक्रामकता?

murder husband

राजनीति क्या करवट लेगी ये कोई नहीं जानता क्योंकि बेगूसराय में राजनीतिक खूनी खेल का दौर तब से खत्म हुआ है जबसे कम्यूनिस्ट मोटे तौर पर बेहद कमजोर हुए हैं. 60 के दशक में पार्टी का नेतृत्व कॉमरेड चंद्रशेखर और कॉमरेड ब्रह्म देव के हाथों था. जिनकी सादगी और जोरदार भाषणों से कम्यूनिस्ट पार्टी की जड़ें मजबूत हो रही थीं. चंद्रशेखर के पिता कांग्रेस सरकार में दिग्गज मंत्री थे लेकिन बेटे चंद्रशेखर ने कांग्रेस का विरोध कर बेगूसराय के गांव और खेत-खलिहानों के मजदूरों के लिए संघर्ष करना जरूरी समझा. लोगों की नजरों में चंद्रशेखर की छवी बेहद लोकप्रिय नेता के रूप में थी.

इसलिए 60 और 70 के दशक में कम्यूनिस्ट पार्टी का झंडा घर-घर में लहराने लगा लेकिन इस दौर में भी कांग्रेसी नेता के मर्डर के आरोप में चंद्रशेखर सिंह और सूर्यनारायण सिंह नामजद हुए थे.

80 के दशक में कम्यूनिस्ट दफ्तर पर पुलिस की रेड हुई. जिसमें उस समय के एक बाहुबली कारबाइन जैसे हथियार के जखीरे के साथ धरे गए थे. कम्यूनिस्ट पार्टी की मिलिटेंट विंग इतनी पावरफुल थी कि उससे बचने के लिए काग्रेस को बाहुबलियों का सहारा लेना पड़ता था. घात प्रतिघात का एक लंबा दौर चला. विधायक सहित योगी सिंह और इंद्रदेव सिंह तक की हत्या हुई. योगी सिंह और इंद्रदेव सिंह मिलिटेंट विंग के नेता थे. इनकी हत्या कांग्रेस समर्थित बाहुबली किशोर सिंह के द्वारा की गई.

किशोर जेल में बंद थे और उनकी हत्या अस्सी के दशक में जेल को तोड़कर की गई. इस हत्या में जो लोग नामजद हुए थे वो बेगूसराय की कम्यूनिस्ट पार्टी के बड़े नेता थे. इतना ही नहीं अस्सी के दशक में एक खूनी खेल सीपीआई और सीपीएम के बीच भी हुआ, जिसमें तीन दर्जन से ज्यादा हत्याएं हुई लेकिन 90 के दशक में समाजवादी पार्टियों और बीजेपी के मजबूत हो जाने से राजनीतिक हिंसा का दौर थम सा गया. 90 के बाद शांति हुई. अब राजनीतिक हत्याओं का दौर खत्म हो चुका है.

लेकिन जमीदोज हो चुकी कम्यूनिस्ट पार्टी को किसी चमत्कार की तलाश है. कम्यूनिस्ट पार्टी लोकसभा में भी बेहद खराब प्रदर्शन से हतोत्साहित है. पार्टी के भीतर कलह है और पुराने नेता और पूर्व सांसद शत्रुघ्न प्रसाद सिंह और राजेन्द्र सिंह आमने-सामने हैं. पिछले लोकसभा में पार्टी जब तीसरे नंबर पर आई तो इसके लिए एक दूसरे पर आरोप मढ़ने में मीडिया का भी सहारा लिया गया. जाहिर है पार्टी को पुनर्जीवित करना कन्हैया के लिए एक चुनौती है. खासकर तब जब पार्टी के कार्यकर्ता उनकी उम्मीदवारी को लेकर भी शीर्ष नेतृत्व से नाराज हैं.

इसलिए कन्हैया पार्टी के भीतर अपनी साख बढ़ाने और मोदी विरोधियों को लामबंद करने के लिए राजनीतिक स्टंट अपनाने से बाज नहीं आ रहे लेकिन ये स्टंट मंसूरचक की घटना के बाद महज राजनीतिक ही रहे यही बेहतर होगा

फ़ैज़ाबाद = श्री अयोध्या जी ??


विश्व हिंदू परिषद और राम जन्मभूमि न्यास फैजाबाद जिले और अयोध्या जिले को मिलाकर उसको ‘श्री अयोध्या’ का नया नाम देने की मांग उठा रहे हैं


इलाहाबाद का नाम बदलने के बाद जल्द ही उत्तर प्रदेश के कुछ और शहरों का भी नाम बदला जा सकता है. इस कड़ी में अगला नंबर फैजाबाद का हो सकता है. विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) और राम जन्मभूमि न्यास फैजाबाद और अयोध्या को मिलाकर उसको ‘श्री अयोध्या’ का नया नाम देने की मांग कर रहे हैं.

वीएचपी के प्रवक्ता शरद शर्मा ने कहा, योगी आदित्यनाथ सरकार का इलाहाबाद शहर का नाम बदलकर प्रयागराज करने का फैसला स्वागतयोग्य है. सरकार को जनभावनाओं का ख्याल रखना चाहिए और फैजाबाद का भी नाम बदलकर श्री अयोध्या रख देना चाहिए.’

उन्होंने कहा कि योगी सरकार, जिसने पिछले साल अयोध्या फैजाबाद नगर निगम का गठन किया था, उसे यहां के साधु-संतों की मांग का ख्याल रखते हुए आने वाली दीवाली के ‘दीपोत्सव’ उत्सव के दौरान शहर का नाम बदल देना चाहिए.

वीएचपी के सेंट्रल एडवायजरी बोर्ड के सदस्य पुरुषोत्तम सिंह ने भी ऐसी ही इच्छी जताई. उन्होंने कहा, ‘जब इलाहाबाद का नाम प्रयागराज बदल सकता है तो फिर फैजाबाद को अयोध्या क्यों नहीं हो सकता? फैजाबाद जिले और अयोध्या जिले को मिला देना चाहिए और उसका नया नाम अयोध्या कर देना चाहिए’

योगी सरकार के मंत्रिमंडल ने मंगलवार को सर्वसम्मति से इलाहाबाद का नाम बदलकर उसे प्रयागराज कर दिया. डेढ़ वर्ष पूर्व सत्ता में आने के बाद से सरकार ने यह तीसरा बड़ा नाम बदला है.

बीजेपी सरकार ने इससे पहले दो रेलवे स्टेशनों का नाम बदला था- पहला आगरा के पास फराह और दूसरा मुगलसराय जंक्शन. मुगलसराय जंक्शन का नाम पार्टी के संस्थापकों में से एक दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर रखा गया है.

कन्हैया पर दो दिनों में मारपीट, दंगा भड़काने ओर हत्या के प्रयास की दो प्राथमिकियां दर्ज़


सन 2011 से जेएनयू से अफ्रीका पर पीएचडी कर रहे कन्हैया, अब सीपीआई द्वारा महागठबंधन के बेगुसराय से चुनावी उम्मीदवार। 

बिहार को जेएनयू समझने वाले कन्हैया क्या जानबूझ कर ब्राह्मणों को अपनी हिंसा का शिकार बनाते हैं, सोनू कुमार भारद्वाज ओर डॉविश्वनाथ पांडे, दो ही दिनों में दो पुलिस प्राथमिकियों का सामना करना पड़ गया।

कन्हैया का व्यवहार हस्पताल, प्रशासन ओर पुलिस सभी के लिए मुसीबत बन रहा है। स्वस्थ्य मंत्री ने भी इसकी तसदीक की है। 

अब पुलिस कन्हैया को बेल मिलने तक उसकी तालाश जारी रखेगी। 


पटना में ऑल इंडिया इंस्‍टीच्‍यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्‍स) में मारपीट की एफआइआर के बाद जवाहरलाल नेहरू विवि छात्र संघ के पूर्व अध्‍यक्ष कन्‍हैया कुमार फिर नई मुसीबत में हैं। ताजा मामला बेगूसराय के भगवानपुर बाजार स्थित दुर्गा मंदिर के समीप दुर्गा पूजा समिति के सदस्‍यों से मारपीट का है।

मिली जानकारी के अनुसार मंगलवार की देर शाम जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार के समर्थकों एवं स्थानीय पूजा समिति के कार्यकर्ताओं के बीच जमकर मारपीट हुई। मारपीट में पूजा समिति के दो कार्यकर्ताओं के सिर फट गए। उग्र लोगों ने कन्हैया के काफिले में शामिल आधा दर्जन वाहनों के शीशे तोड़ दिए। दोनों ओर से अलग-अलग थानों में प्राथमिकी दर्ज कराई गई है।

दुर्गा पूजा समिति सदस्‍यों से मारपीट

कन्हैया की मंसूरचक में सभा थी। वे वाहनों के काफिले के साथ सभा कर अपने गांव बीहट लौट रहे थे। रास्ते में भगवानपुर बाजार स्थित बाइक शोरूम के प्रथम तल पर संचालित एक निजी कोचिंग संस्थान के संचालक से मिलने के लिए कन्हैया रुक गए। उनके काफिले की सारी गाडिय़ां सड़क पर रुक गईं। इससे जाम लग गया।

इसपर बगल में सजे दुर्गा पूजा पंडाल समिति के कार्यकर्ताओं ने गाडिय़ों को साइड करने को कहा। इसी पर दोनों पक्षों में विवाद शुरू हो गया। देखते-देखते मारपीट शुरू हो गई।

जमकर चले लाठी-डंडे, दो के सिर फटे

कन्हैया के समर्थकों ने गाड़ी में मौजूद लाठी-डंडों से पूजा समिति के कार्यकर्ताओं पर हमला बोल दिया। पूजा समिति के सदस्य दहिया निवासी सानू कुमार भारद्वाज एवं एक अन्य कार्यकर्ता के सिर फट गए। आधा दर्जन अन्य कार्यकर्ताओं को भी चोटें आईं। यह देख लोगों का आक्रोश फूट पड़ा और उन्होंने आधा दर्जन वाहन क्षतिग्रस्त कर दिए। इसके बाद दोनों पक्षों में जमकर लाठियां चलीं।

कन्हैया व उनके समर्थक बवाल बढ़ते देख वहां से निकल बरौनी थाने जा पहुंचे। भगवानपुर थानाध्यक्ष दीपक कुमार ने बताया कि घायल पूजा समिति के कार्यकर्ताओं का उपचार कराया जा रहा है। घायलों के आवेदन पर कन्हैया और उनके समर्थकों पर  प्राथमिकी दर्ज की गई है। दूसरी ओर, बरौनी थाना अध्यक्ष गजेंद्र सिंह ने बताया कि कन्हैया ने भी जानलेवा हमले की शिकायत दर्ज कराई है।

एसएचओ दीपक कुमार ने बताया, ‘147, 149, 307, 504, 295 समेत कई अन्य धाराओं में कन्हैया कुमार के खिलाफ सोनू कुमार ने मुकदमा दर्ज कराया है। हम इस कोशिश में जुटे हुए हैं कि जल्द से जल्द कन्हैया कुमार का पता कर उनको गिरफ्तार किया जा सके।’

बता दें कि सोमवार को पटना एम्स प्रशासन ने आरोप लगाया था कि कन्हैया और उनके समर्थकों ने जूनियर डॉक्टरों से हाथापाई की। इस मामले में भी फुलवारी शरीफ पुलिस स्टेशन में कन्हैया समेत एआईएसएफ नेता सुशील कुमार के खिलाफ नामजद और 80-100 अज्ञात समर्थकों के खिलाफ एम्स प्रशासन ने एफआईआर दर्ज कराई है।

 

यह है पूरा मामला

 

पटना स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) प्रशासन ने अस्पताल परिसर में घुस कर डॉक्टरों के साथ धक्कामुक्की करने और सुरक्षा गार्ड्स के साथ हाथापाई करने का आरोप लगाते हुए जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ अध्यक्ष के पूर्व छात्र कन्हैया कुमार  के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है.

कन्हैया  अपने समर्थकों के साथ रविवार को ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन के नेता सुशील कुमार को देखने पटना एम्स पहुंचे थे. बताया जा रहा है कि वहां ऑर्थोपेडिक्स विभाग में डॉक्टरों से उनकी झड़प हो गई. खास तौर पर डॉक्टर विश्वनाथ पांडे ने कन्हैया पर बदतमीजी करने का आरोप लगाया. कन्हैया पर गार्डों के साथ बकझक करने का भी आरोप लगाया गया है.

इस बीच बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने कन्हैया कुमार को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा है कि “अस्पताल में उनकी शरारतें नहीं चलेंगी. उन्होंने कहा, कन्हैया को बता देना चाहता हूं कि बिहार दिल्ली का जेएनयू नहीं हैं जहां कुछ भी कर के चले जाइएगा. मैंने एम्स के निदेशक से कहा है कि जल्दी मामले की रिपोर्ट दें. कन्हैया पर कड़ी कार्रवाई होगी.”


मंगल पांडे ने कहा कि कन्हैया उपद्रवी तत्व है, उसकी पहचान उसी तरीके की है. उन्होंने कहा, “मैं उन्हें बताना चाहता हूं कि अगर बिहार के अंदर सरकारी असप्ताल मे हंगामा करेंगे तो कानून अपना काम करेगा. अस्पताल में डॉक्टरों ने उनके साथ सही सलूक किया है. जब तक पुलिस आती तब तक कन्हैया भाग गए थे.”

बता दें कि कन्हैया कुमार सीपीआई के टिकट पर बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं.

तकरीबन 450 साल बाद संगम को मिला पुराना नाम “प्रयाग”


कांग्रेस के इतिहास में इलाहाबाद का बहुत महत्व है इलाहाबाद का नाम बदले जाने के कारण ओर कांग्रेस के कुछ भी न कर पाने के कारण उनका मुस्लिम वोट बैंक ओर छिटकता नज़र आता है

अखिलेश यादव भी आज कल हिन्दू कहलाने में शर्म नहीं महसूस करते, अपने कार्यकाल में तो उन्हें भवनों ओर दूसरी बातों से मुक्ति न मिली अन्यथा इलाहाबाद आज “प्रयाग कुम्भ” होता, आज उन्हे भाजपा द्वारा इल्लाहबाद को पुन: “प्रयाग” कहलवाने में परम्पराओं का ह्रास दीख पड़ता है, परंतु किसकी परम्पराएँ???


इलाहाबाद शहर एक बार फिर सुर्खियों में है। इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयागराज कर दिया गया है। यानी लगभग 450 साल बाद यह शहर एक बार फिर से अपने पुराने नाम यानी प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा।

गौर हो कि 15वीं शताब्दी में इस पौराणिक भूमि पर मुगलों ने कब्जा कर लिया और इसका नाम प्रयागराज से बदलकर अलाहाबाद कर दिया। अलाहाबाद इलाह+आबाद को मिलाकर बनता है जो एक फारसी शब्द है। इलाह का मतलब अल्लाह और आबाद का मतलब बसाया हुआ यानी अल्लाह का बसाया हुआ शहर। मुगल सम्राट अकबर के अलाहाबाद करने से पहले इसका नाम प्रयागराज ही था। बोलचाल की प्रचलन के मुताबिक अलाहाबाद ,इलाहाबाद और एलाहाबाद के नाम से भी पुकारा जाने लगा।

 

कांग्रेस के इतिहास में इलाहाबाद का बहुत महत्व है,कांग्रेस के ओंकार सिंह ने बताया कि आजादी की लड़ाई के दौरान इलाहाबाद प्रेरणा का एक मुख्य केंद्र रहा था. उन्होंने कहा कि 1888, 1892 और 1910 में कांग्रेस महाधिवेशन यहीं हुआ था. इसी शहर से देश को अपना पहला प्रधानमंत्री मिला. इसके अलावा अगर इलाहाबाद का नाम बदला गया तो इलाहाबाद यूनिवर्सिटी अपनी पहचान खो देगी. इलाहाबाद का नाम बदले जाने के कारण ओर कांग्रेस के कुछ भी न कर पाने के कारण उनका मुस्लिम वोट बैंक ओर छिटकता नज़र आता है

संगम नगरी इलाहाबाद का नाम बदलकर ‘प्रयागराज‘ किए जाने की तैयारियों के बीच समाजवादी पार्टी अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे परंपरा और आस्था के साथ खिलवाड़ करार दिया. सोमवार को अखिलेश ने ट्वीट करते हुए कहा कि प्रयाग कुंभ का नाम केवल प्रयागराज किया जाना और अर्द्धकुंभ का नाम बदलकर ‘कुंभ‘ किया जाना परंपरा और आस्था के साथ खिलवाड़ है.

देश के धार्मिक, शैक्षिक और राजनीतिक लिहाज से महत्वपूर्ण शहर इलाहाबाद को अब प्रयागराज के नाम से जाना जाएगा, लेकिन क्या आपको पता है कि इस शहर का नाम कैसे और क्यों बदला गया? दरअसल ऐतिहासिक और पौराणिक दोनों ही रूप से प्रयागराज समृद्ध है। इस जिले को ब्रह्मा की यज्ञस्थली के रूप में जाना जाता है। यहां आर्यों ने भी अपनी बस्तियां बसाई थीं। आंकड़ों के मुताबिक 160 साल बाद जिले का नाम इलाहाबाद से प्रयागराज हो रहा है।

जानिए प्रयाग से इलाहाबाद और फिर प्रयागराज तक का सफर-

1- पुराणों में कहा गया है, ”प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।” अर्थात् प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है। हिंदू मान्यताओं के मुताबिक सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने इसकी रचना से बाद प्रयाग में पहला यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग यानी यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना।
2- कुछ मान्यताओं के मुताबिक ब्रह्मा ने संसार की रचना के बाद पहला बलिदान यहीं दिया था, इस कारण इसका नाम प्रयाग पड़ा। संस्कृत में प्रयाग का एक मतलब ‘बलिदान की जगह’ भी है। इसके अलावा प्रयाग ऋषि भारद्वाज, ऋषि दुर्वासा और ऋषि पन्ना की ज्ञानस्थली भी है।
3- 1575 में संगम के सामरिक महत्व से प्रभावित होकर सम्राट अकबर ने इलाहाबास के नाम से शहर की स्थापना की जिसका अर्थ है- अल्लाह का शहर। उन्होंने यहां इलाहाबाद किले का निर्माण कराया, जिसे उनका सबसे बड़ा किला माना जाता है।
4- इसके बाद 1858 में अंग्रेजों के शासन के दौरान शहर का नाम इलाहाबाद रखा गया तथा इसे आगरा-अवध संयुक्त प्रांत की राजधानी बना दिया गया।
5- आजादी की लड़ाई का केंद्र इलाहाबाद ही था। वर्धन साम्राज्य के राजा हर्षवर्धन के राज में 644 CE में भारत आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने अपने यात्रा विवरण में पो-लो-ये-किया नाम के शहर का जिक्र किया है, जिसे इलाहाबाद माना जाता है।
6- उन्होंने दो नदियों के संगम वाले शहर में राजा शिलादित्य (राजा हर्ष) द्वारा कराए एक स्नान का जिक्र किया है, जिसे प्रयाग के कुंभ मेले का सबसे पुराना और ऐतिहासिक दस्तावेज माना जाता है।
7-वैसे थो इलाहाबाद नाम मुगल शासक अकबर की देन है लेकिन इसे फिर से प्रयागराज बनाने की मांग समय-समय पर होती रही है।
8- महामना मदनमोहन मालवीय ने अंग्रेजी शासनकाल में सबसे पहले यह आवाज उठाई और फिर अनेक संस्थानों ने समय-समय पर मांग दोहराई।
9- मालवीय ने इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम भी छेड़ी थी। 1996 के बाद इलाहाबाद का नाम बदलने की मुहिम फिर से शुरू हुई। अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत नरेद्र गिरी भी नाम बदलने की मुहिम में आगे बताया।
10- आजादी के बाद पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के समक्ष भी नाम इलाहाबाद का नाम बदलने की मांग की गई। वर्तमान में साधू संतों ने सरकार के सामने प्रस्ताव दिया था।

# mee too आरोपों पर एमजे अकबर लेंगे कानूनी सलाह.


जब युवा थी तब मेरे साथ कुकृत्य किया गया तब मैं लाज और अपने करियर के डर से चुप थी, पर आज जब मैं कहीं भी नहीं हूँ और मुझे कहीं कोई शर्म या डर भी नहीं रहा तो मुझे एक विकल्प मिला #me too.

भेड़िया आया भेड़िया आया के शोर में असल पीड़ितों कि भी आवाज़ का मज़ाक बन जाएगा.


#MeToo कैंपेन के तहत हाल ही में एक अमेरिकी महिला पत्रकार समेत 10 महिला पत्रकारों ने पत्रकार से राजनेता बने पर छेड़छाड़ और यौन शोषण के गंभीर आरोप लगाए हैं. जिसके बाद एमजे अकबर ने अपना बयान जारी करते हुए कहा है कि वो यौन उत्पीड़न के आरोपों के खिलाफ लीगल एक्शन लेंगे.

एमजे अकबर ने पहली बार #MeToo पर अपना बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि उनके खिलाफ लगे सभी आरोप झूठे और बेबुनियाद हैं. वो पहले इस मामले में नहीं बोल पाया क्योंकि वो विदेश के दौरे पर थे.

एमजे अकबर का कहना है, ‘यह लहर आम चुनाव से ठीक पहले उठने की क्या वजह है. क्या यह कोई एजेंडा है? आप जज हैं. ये झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाए जा रहे हैं ताकि मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया जा सके.’

एमजे अकबर ने कहा, ‘बिना सबूत के आरोप लगाना वायरल फीवर की तरह बढ़ रहा है. जो भी मामला हो, अब मैं लौट आया हूं. मेरे वकील इस बेबुनियाद मामले की जांच कर रहे हैं और मैं इसके खिलाफ लीगल एक्शन लूंगा.’

एमजे अकबर का कहना है कि झूठ के पैर नहीं होते हैं लेकिन उनमें जहर होता है.

उन्होंने कहा कि प्रिया रमानी ने एक साल पहले एक मैगजीन में लेख लिखकर यह कैंपेन शुरू किया था. तब उन्होंने मेरा नाम नहीं लिया था क्योंकि उन्हें पता था कि यह झूठी कहानी है. हाल ही में उनसे पूछा गया कि उन्होंने नाम क्यों नहीं लिया तो उन्होंने ट्वीट करके जवाब दिया था, ‘उनका नाम कभी इसलिए नहीं लिया क्योंकि उन्होंने कुछ किया ही नहीं है.’ अकबर का कहना है कि अगर उन्होंने कुछ नहीं किया तो ये कहानी क्या है ?

 

पत्रकार, सम्पादक, प्रवक्ता और राजनेता: एम् जे अकबर


एम जे अकबर एक प्रमुख भारतीय पत्रकार, लेखक और राजनेता हैं, वह विदेश मामलों के राज्य मंत्री और मध्य प्रदेश से राज्यसभा में संसद सदस्य भी हैं, 5 जुलाई 2016 को उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल किया गया था


एम जे अकबर (मोबासर जावेद अकबर) का जन्म 11 जनवरी 1951 में हुआ था. वह एक प्रमुख भारतीय पत्रकार, लेखक और राजनेता हैं. एम जे अकबर विदेश मामलों के राज्य मंत्री और मध्य प्रदेश से राज्यसभा में संसद सदस्य भी हैं. आपको बता दें कि 5 जुलाई 2016 को उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा केंद्रीय मंत्री परिषद में शामिल किया गया था. आपको बता दें कि अक्टूबर 2012 में अपने इस्तीफे तक लिविंग मीडिया समूह द्वारा प्रकाशित भारत के प्रमुख साप्ताहिक अंग्रेजी समाचार पत्रिका ‘इंडिया टुडे’ के संपादकीय निदेशक रह चुके हैं. इस दौरान उन्हें मीडिया कंपनियों के संगठन तथा अंग्रेजी समाचार चैनल ‘हेडलाइंस टुडे’ की देखरेख के लिए एक अतिरिक्त जिम्मेदारी भी मिली हुई थी.

2010 में साप्ताहिक समाचार पत्र ‘दि संडे गार्जियन’ का शुभारंभ किया

एम जे अकबर ‘द टेलीग्राफ’ के संपादक भी रह चुके हैं. एक समय तो यह भी कहा जाता था कि मंत्री और मुख्यमंत्री लोग मनाते थे कि एम जे अकबर उनकी कवर स्टोरी न छापें क्योंकि कवर स्टोरी छपी नहीं कि कुर्सी गई, जैसा माहौल बन गया था. उन्होंने 2010 में साप्ताहिक समाचार पत्र ‘दि संडे गार्जियन’ का शुभारंभ किया था और वह लगातार इसके प्रधान संपादक रहे. इससे पहले वह दक्षिण भारत की प्रमुख अंग्रेजी पत्रिका ‘एशियन एज’ के संस्थापक और वैश्विक परिप्रेक्ष्य के साथ इसके दैनिक मल्टी संस्करण भारतीय समाचार पत्र के प्रबंध निदेशक भी रह चुके हैं. वह हैदराबाद के दैनिक समाचार पत्र ‘डेक्कन क्रॉनिकल’ के प्रधान संपादक भी रह चुके हैं. एम जे अकबर साल 2002 में ‘स्टार न्यूज’ (अब एबीपी न्यूज ) के लिए ‘अकबर का दरबार’ कार्यक्रम करते थे. एम जे अकबर नैरेटिव जर्नलिज्म के बेताज बादशाह रहे हैं.

अकबर ने जवाहर लाल नेहरू की जीवनी ‘द मेकिंग ऑफ इंडिया’ लिखी

उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी है जिसमें जवाहर लाल नेहरू की जीवनी ‘द मेकिंग ऑफ इंडिया’ और कश्मीर पर आधारित ‘द सीज विदिन’ काफी चर्चित रही है. वह ‘दि शेड ऑफ शोर्ड और ए कोहेसिव हिस्टरी ऑफ जिहाद’ के भी लेखक हैं. उनकी हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘ब्लड ब्रदर्स’ है, जिसमें भारत में घटनाओं की जानकारी और दुनिया, खासकर हिंदू-मुस्लिम के बदलते संबंधों के साथ तीन पीढ़ियों की गाथा का उल्लेख है. उनकी यह पुस्तक ‘फ्रेटेली डी संग’ के नाम से इतालवी में अनुवादित हुई है, जो 15 जनवरी 2008 को रोम में जारी किया गया था. पाकिस्तान में पहचान के संकट और वर्ग संघर्ष पर आधारित उनकी पुस्तक ‘टिंडरबॉक्स: दि पास्ट एंड फ्यूचर ऑफ पाकिस्तान’ जनवरी 2012 में प्रकाशित हुई है.

एम जे अकबर राजनीति में भी काफी सफल रहे

एम जे अकबर राजनीति में भी काफी सफल रहे हैं. वह 1989 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में पहली बार बिहार के किशनगंज से लोकसभा के लिए चुने गए थे. वह किशनगंज से 2 बार सांसद रह चुके हैं. साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रवक्ता भी रहे हैं. मार्च 2014 में वह बीजेपी में शामिल हुए हैं और वर्तमान में उसके प्रवक्ता हैं.

माँ दुर्गा का पांचवां रूप : स्कंदमाता

 

 

नवरात्रि के पांचवें दिन स्कंद माता की पूजा करनी चाहिए। यह दिन इस बार नवरात्रि 2018  में 14  अक्टूबर को आएगी। देवी स्कंद माता वात्सल्य की मूर्ति है। दरअसल माता के इस रूप से साधक यह विचार कर सकते हैं कि उन्हें किसी तरह की हानि कोई भी व्यक्ति नहीं पहुंचा सकता है, अन्यथा मां क्रोध में आकर अपने साधक, भक्त या पुत्र को नुकसान पहुंचाने वाले का सर्वस्व मिटा सकती है। जब इंद्र कार्तिकेय को परेशान कर रहे थे, तब मां ने उग्र रूप धारण कर लिया। चार भुजा और शेर पर सवार मां प्रकट हुई। मां ने कार्तिकेय को गोद में उठा लिया। इसके बाद इंद्र आदि देवताओं ने मां की स्कंदमाता के रूप में आराधना की।

संतान सुख देती है स्कंदमाता 

स्कंद माता की आराधना करने से संतान सुख की प्राप्ति भी होती है। नवरात्रि के पांचवें दिन लाल चुनरी, पांच तरह के फल, सुहाग का सामान आदि से धान/ चावल से मां की गोद भरनी चाहिए। इससे मां खुश होती है और भक्तों को संतान प्राप्ति का आशीर्वाद देती है।

बच्चे खुश तो मां खुश

स्कंद माता की कृपा तभी प्राप्त होती है, जब उनके भक्तों को नहीं सताया जाए। अनावश्यक मां के भक्तों को परेशान करने वालों से मां नाराज हो जाती है। इस दिन कार्तिकेय की पूजा का भी विधान है। लोगों को चाहिए कार्तिकेय की पूजा के बाद मां की पूजा करें और पांच कन्याओं के साथ छोटे बालकों को भी खीर का प्रसाद खिलाएं।

बुद्धिमता, ज्ञान की देवी : माँ स्कंदमाता

देवी माँ का पाँचवाँ रूप स्कंदमाता के नाम से प्रचलित्त है। भगवान् कार्तिकेय का एक नाम स्कन्द भी है जो ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति के एक साथ सूचक है। स्कन्द इन्हीं दोनों के मिश्रण का परिणाम है। स्कन्दमाता वो दैवीय शक्ति है,जो व्यवहारिक ज्ञान को सामने लाती है – वो जो ज्ञान को कर्म में बदलती हैं।

शिव तत्व आनंदमय, सदैव शांत और किसी भी प्रकार के कर्म से परे का सूचक है। देवी तत्व आदिशक्ति सब प्रकार के कर्म के लिए उत्तरदायी है। ऐसी मान्यता है कि देवी इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति का समागम है। जब शिव तत्व का मिलन इन त्रिशक्ति के साथ होता है तो स्कन्द का जन्म होता है। स्कंदमाता ज्ञान और क्रिया के स्रोत, आरम्भ का प्रतीक है.इसे हम क्रियात्मक ज्ञान अथवा सही ज्ञान से प्रेरित क्रिया, कर्म भी कह सकते हैं।

प्रायः ऐसा देखा गया की है कि ज्ञान तो है, किंतु उसका कुछ प्रयोजन या क्रियात्मक प्रयोग नहीं होता। किन्तु ज्ञान ऐसा भी है, जिसका ठोस प्रोयोजन, लाभ है, जिसे क्रिया द्वारा अर्जित किया जाता है। आप स्कूल, कॉलेज में भौतिकी, रसायन शास्त्र पड़ते हैं जिसका प्रायः आप दैनिक जीवन में कुछ अधिक प्रयोग करते। और दूसरी ओर चिकित्सा पद्धति, औषधि शास्त्र का ज्ञान दिन प्रतिदिन में अधिक उपयोग में आता है। जब आप टेलीविज़न ठीक करना सीख जाते हैं तो अगर कभी वो खराब हो जाए तो आप उस ज्ञान का प्रयोग कर टेलीविज़न ठीक कर सकते हैं। इसी तरह जब कोई मोटर खराब हो जाती है तो आप उसे यदि ठीक करना जानते हैं तो उस ज्ञान का उपयोग कर उसे ठीक कर सकते हैं। इस प्रकार का ज्ञान अधिक व्यवहारिक ज्ञान है। अतः स्कन्द सही व्यवहारिक ज्ञान और क्रिया के एक साथ होने का प्रतीक है। स्कन्द तत्व मात्र देवी का एक और रूप है।

हम अक्सर कहते हैं, कि ब्रह्म सर्वत्र, सर्वव्यापी है, किंतु जब आपके सामने अगर कोई चुनौती या मुश्किल स्थिति आती है, तब आप क्या करते हैं? तब आप किस प्रकार कौनसा ज्ञान लागू करेंगे या प्रयोग में लाएँगे? समस्या या मुश्किल स्थिति में आपको क्रियात्मक होना पड़ेगा। अतः जब आपका कर्म सही व्यवहारिक ज्ञान से लिप्त होता है तब स्कन्द तत्व का उदय होता है। और देवी दुर्गा स्कन्द तत्व की माता हैं।

 

इस मंत्र से करें मां की पूजा- 

 

सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।

शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥

 

 इसके बाद इस मंत्र का जाप करना सुखद होता है।

या देवी सर्वभू‍तेषु मां स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

 

 

स्कंदमाता को प्रसन्न करके मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञान प्राप्त कर सकता है 

भगवान स्कंद ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं। पुराणों में स्कंद को कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है। देवी स्कन्दमाता की तीन आंखें और चार भुजाएं हैं। स्कंदमाता अपने दो हाथों में कमल का फूल धारण करती हैं और एक भुजा में भगवान स्कन्द या कुमार कार्तिकेय को सहारा देकर अपनी गोद में लिये बैठी हैं जबकि मां का चौथा हाथ भक्तों को आशीर्वाद देने की मुद्रा मे होता है। ऐसा कहा जाता है कि मां स्कंदमाता की पूजा करने से, मूर्ख व्यक्ति भी ज्ञानी या बुद्धिमान बन सकता है। जीवनमें परिवर्तन पाने के लिए आज ही मेरु पृष्ठ श्री यंत्र का प्रयोग करें।

 

देवी स्कंदमाता अपने अमोघ भक्तों को मुक्ति प्रदान करती है 

नवरात्रि के पांचवें दिन, भक्त का मन विशुद्धा चक्र तक पहुंच जाता है और इसी में रहता है। इस स्थिति में, भक्त का मन अत्यधिक शांत रहता है। स्कंदमाता  की पूजा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है। इसके अलावा ये भक्त के लिए मुक्ति का रास्ता खोलती है और सूर्य की भांति अपने भक्तों को असाधारण तेज और चमक प्रदान करती है।

मां स्कंदमाता का मंत्र और संबंधित तथ्यः 

 

ध्यान

 

स्कंदमाता का मंत्रः ॐ ह्रीं सः स्कंदमात्रये नमः , इस मंत्र का 108 बार जाप करें। 

 

पांचवें दिन का रंग : क्रीम

 

पांचवें दिन का प्रसादः केसर पिश्ता वाला श्रीखंड

पूजा मे उपयोगी वस्तु

पंचमी तिथि के दिन पूजा करके भगवती दुर्गा को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद ब्राह्मण को दे देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है।

स्कन्द माता की आरती

जय तेरी हो अस्कंध माता
पांचवा नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहू मै
हरदम तुम्हे ध्याता रहू मै
कई नामो से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कही पहाड़ो पर है डेरा
कई शेहरो मै तेरा बसेरा
हर मंदिर मै तेरे नजारे
गुण गाये तेरे भगत प्यारे
भगति अपनी मुझे दिला दो
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इन्दर आदी देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये
तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई
‘भक्त’ की आस पुजाने आई