रेलवे की 5000 प्रवासी भारतीयों को इलाहाबाद से नई दिल्ली ले जाने के लिए चार-पांच विशेष ट्रेनें चलाने की योजना है


कुंभ मेले के लिए रेलवे ने दी सौगात, शुरू कीं 700 करोड़ की योजनाएं


भारतीय रेलवे ने अगले साल जनवरी में इलाहाबाद(प्रयागराज) में आयोजित होने वाले कुंभ मेले के लिए 41 परियोजनाएं शुरू की हैं, जिन पर 700 करोड़ रुपए की लागत आएगी.

रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बुधवार को बताया कि 41 परियोजनाओं में से 29 पूरी हो चुकी हैं. अन्य अंतिम चरण में हैं और जल्द पूरी होने वाली हैं.

उत्तर मध्य रेलवे (एनसीआर) के महाप्रबंधक राजीव चौधरी ने बताया कि इलाहाबाद जंक्शन रेलवे स्टेशन पर चार बड़े कंपाउंड का निर्माण किया गया है जिनमें 10,000 तीर्थयात्रियों को सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं. इनमें वेडिंग स्टॉल, पानी के बूथ, टिकट काउंटर, एलसीडी टीवी, सीसीटीवी, महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग- अलग शौचालय होंगे. इसी तरह से अन्य स्टेशनों पर भी यात्री कंपाउंड बनाए गए हैं.

कुंभ मेले के दौरान मेले में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए इलाहाबाद जिले के विभिन्न स्टेशनों से करीब 800 विशेष ट्रेन चलाने का प्रस्ताव है. यह ट्रेनें एनसीआर की ओर से चलाई जाने वाली नियमित ट्रेनों से अलग होंगी.

रेलवे की 5000 प्रवासी भारतीयों को इलाहाबाद से नई दिल्ली ले जाने के लिए चार-पांच विशेष ट्रेनें चलाने की योजना है. ये प्रवासी भारतीय वाराणसी में होने वाले प्रवासी भारतीय दिवस में शिरकत करने जाएंगे और वाराणसी से कुंभ मेले में हिस्सा लेने के लिए इलाहाबाद जाएंगे.

चौधरी ने बताया कि रेलवे, मेले के दौरान इस पवित्र शहर में यात्रियों की भारी भीड़ से निपटने के लिए बड़े पैमाने पर टेक्नालॉजी का इस्तेमाल करेगा. उन्होंने कहा कि आईबीएम भीड़ नियंत्रण के लिए वीडियो विश्लेषण सेवा प्रदान करेगा, वहीं स्थिति पर नजर रखने के लिए बड़ी संख्या में सीसीटीवी कैमरे होंगे और एलईडी स्क्रीन भी लगाई जाएंगी.

विशेष तौर पर रेल मंत्रालय ने यह फैसला किया है कि इलाहाबाद क्षेत्र में पड़ने वाले 11 स्टेशनों से अनारक्षित रेलवे टिकटों की 15 दिन पहले से बुकिंग की इजाजत दी जाएगी. इलाहाबाद में उत्तर मध्य रेलवे ने रेल कुंभ सेवा मोबाइल ऐप का भी शुभारंभ किया है.

‘याचना नहीं अब रण होगा, संघर्ष बड़ा भीषण होगा’: उपेंद्र कुशवाहा


कुशवाहा 2019 के लोकसभा चुनावों में इस बार पार्टी को महज दो सीटें दिए जाने से नाराज हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीनों ही सीटों पर उसे जीत मिली थी


बीजेपी गठबंधन के सदस्य और आएलएसपी पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा अब आर पार की लड़ाई के मूड में हैं. इसी कारण वो अब खुलकर बीजेपी के खिलाफ बोल रहे हैं. कुशवाहा जी ने बीजेपी पर कई आरोप लगाए और उसे जुमला पार्टी तक कह डाला. इसके जवाब में बिहार सरकार में मंत्री और बीजेपी के नेता प्रमोद कुमार ने जहानाबाद में कहा कि- ‘बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और लालू यादव भी बीजेपी को ‘जुमला’ पार्टी कहा करते थे. अब नीतीश कुमार कहां हैं और लालू यादव कहां?’


Bihar Minister & BJP leader Pramod Kumar in Jehanabad on Upendra Kushwaha calling BJP a ‘jumla’ party: Bihar CM Nitish Kumar & Lalu Yadav also used to call BJP a ‘jumla’ party, now where is Nitish Kumar & where is Lalu Yadav?


इसके पहले बिहार के मोतिहारी में पार्टी अधिवेशन में कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए आरएलएसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा ने आर-पार की लड़ाई का ऐलान कर दिया. कुशवाहा ने दिनकर की कविता का जिक्र करते हुए कहा, ‘याचना नहीं अब रण होगा, संघर्ष बड़ा भीषण होगा.’ कुशवाहा के इस बयान से साफ हो गया कि अब एनडीए के भीतर उनके लिए जगह नहीं है और उन्होंने अब सीधी लड़ाई का मन बना लिया है.

दरअसल, कुशवाहा 2019 के लोकसभा चुनावों में इस बार पार्टी को महज दो सीटें दिए जाने से नाराज हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी आरएलएसपी ने 3 सीटों पर चुनाव लड़ा था और तीनों ही सीटों पर उसे जीत मिली थी. लेकिन, अब जबकि जेडीयू की दोबारा एनडीए में वापसी हो गई है तो फिर कुशवाहा को महज 2 सीटें दी जा रही थीं. बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, कुशवाहा इसके लिए तैयार नहीं थे. उनका दावा था कि अब उनकी पार्टी का जनाधार पांच सालों में पहले से बढ़ गया है, लिहाजा उनकी हिस्सेदारी ज्यादा होनी चाहिए.

Bengal BJP chief’s vehicle attacked, TMC blamed

Dilip Ghosh was attacked when he was on his way to Mathabhanga in Cooch Behar district to attend the party’s Rathyatra.

West Bengal:

Bharatiya Janata Party president Dilip Ghosh’s vehicle was attacked Thursday at Sitalkuchi area of Cooch Behar district by unidentified miscreants.

Mr. Ghosh is in the district to take part in the saffron party’s ‘Rathyatra’. He was attacked when he was on his way to Mathabhanga in the district.

“TMC leaders attacked my car and shouted slogans demanding that I should go back. Some of my party workers were injured during the violence. The police were watching merely as mute spectators,” he said after the incident at Sitai More in Sitalkuchi.

Senior TMC leader Rabindranath Ghosh termed the allegation as baseless and said the attack was a fallout of infighting in BJP.

The district police administration said they are looking into the incident.

Save Democracy Rally

BJP president Amit Shah is scheduled to kickstart the party’s ‘Save Democracy Rally’, comprising three ‘Rath Yatras’, in the state.

BJP has claimed that the Rath Yatra would be a “game changer” in West Bengal politics and Shah had set a target of winning 22 out of 42 Lok Sabha seats in the state.

Apart from Prime Minister Narendra Modi and Shah, several top BJP leaders and chief ministers such as Rajnath Singh, Arun Jaitley, Nitin Gadkari, Nirmala Sitharaman, Raman Singh, Yogi Adityanath, Uma Bharati and Giriraj Singh will participate in the campaign.

Mr. Modi is likely to attend four rallies to give a thrust to the party’s campaign in the state ahead of the 2019 Lok Sabha polls.

सोमनाथ मंदिर को सोने से मढ़ने का संकल्प लेना चाहिए: अमित शाह


शाह ने कहा, ‘एकमात्र जवाब है…मंदिर के वैभव को बहाल करने के लिए एक संकल्प लें. जिस गति से कार्य चल रहा है, आप जल्द ही मंदिर के ऊपर लगे सभी कलशों को स्वर्ण में मढ़ा देखेंगे.’


बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने गुरुवार को कहा कि लोगों को ऐतिहासिक सोमनाथ मंदिर को लूटने वालों के खिलाफ क्रोध की भावना नहीं रखनी चाहिए बल्कि उसे ‘पूरी तरह से सोने से मढ़कर’ उसके पुराने गौरव को बहाल करने का संकल्प लेना चाहिए.

सोमनाथ ट्रस्ट के न्यासी शाह ने यह टिप्पणी पास के तट के किनारे एक पर्यटक पैदल पथ की आधारशिला रखने के बाद की. शाह ने कहा, ‘करीब एक करोड़ श्रद्धालु यहां प्रत्येक वर्ष आते हैं. ट्रस्ट ने भीड़ के लिए इंतजाम के वास्ते कई पहल की हैं. यद्यपि मेरा मानना है कि मंदिर का विकास अधूरा है.’

उन्होंने कहा, ‘मेरे जैसे लोग जो इस मंदिर से बचपन से जुड़े हुए हैं, उनके लिए उसका विकास तब तक बेमतलब है जब तक इसे पूरी तरह से स्वर्ण से मढ़ नहीं दिया जाता.’

उन्होंने कहा कि ऐतिहासिक रिकार्ड से पता चलता है कि यह मंदिर कभी सोने और चांदी से ढका हुआ था और उसकी रक्षा के लिए कितने लोगों ने अपने प्राणों की आहूति दी.

उन्होंने कहा, ‘मंदिर को हालांकि पूर्व में कई बार नष्ट किया गया और लूटा गया, लेकिन लोगों को कोई द्वेष नहीं रखना चाहिए और बदला लेने के बारे में नहीं सोचना चाहिए.’

शाह ने कहा, ‘एकमात्र जवाब है…मंदिर के वैभव को बहाल करने के लिए एक संकल्प लें. जिस गति से कार्य चल रहा है, आप जल्द ही मंदिर के ऊपर लगे सभी कलशों को स्वर्ण में मढ़ा देखेंगे.’

डॉ राजेंद्र प्रसाद स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति आज उनकी जयंती है

डॉ. राजेंद्र प्रसाद 

Dr Rajendra Prasad भारतीय लोकतंत्र के पहले राष्ट्रपति थे। साथ ही एक भारतीय राजनीती के सफल नेता, और प्रशिक्षक वकील थे। भारतीय स्वतंत्रता अभियान के दौरान ही वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस में शामिल हुए और बिहार क्षेत्र से वे एक बड़े नेता साबित हुए। महात्मा गांधी के सहायक होने की वजह से, प्रसाद को ब्रिटिश अथॉरिटी ने 1931 के नमक सत्याग्रह और 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में जेल में डाला।

राजेन्द्र प्रसाद ने 1934 से 1935 तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में भारत की सेवा की। और 1946 के चुनाव में सेंट्रल गवर्नमेंट की फ़ूड एंड एग्रीकल्चर मंत्री के रूप में सेवा की। 1947 में आज़ादी के बाद, प्रसाद को संघटक सभा में राष्ट्रपति के रूप में नियुक्त किया गया।

1950 में भारत जब स्वतंत्र गणतंत्र बना, तब अधिकारिक रूप से संघटक सभा द्वारा भारत का पहला राष्ट्रपति चुना गया। इसी तरह 1951 के चुनावो में, चुनाव निर्वाचन समिति द्वारा उन्हें वहा का अध्यक्ष चुना गया।
राष्ट्रपति बनाने के बाद वह स्वतंत्र एवं निष्पक्ष रूप से काम करना चाहते थे अत: उन्होने कांग्रेस पार्टी से सन्यास ले लिया।

राष्ट्रपति बनते ही प्रसाद ने कई सामाजिक भलाई के काम किये, कई सरकारी दफ्तरों की स्थापना की और उसी समय उन्होंने कांग्रेस पार्टी से भी इस्तीफा दे दिया। राज्य सरकार के मुख्य होने के कारण उन्होंने कई राज्यों में पढाई का विकास किया कई पढाई करने की संस्थाओ का निर्माण किया और शिक्षण क्षेत्र के विकास पर ज्यादा ध्यान देने लगे।

उनके इसी तरह के विकास भरे काम को देखकर 1957 के चुनावो में चुनाव समिति द्वारा उन्हें फिर से राष्ट्रपति घोषित किया गया और वे अकेले ऐसे व्यक्ति बने जिन्हें लगातार दो बार भारत का राष्ट्रपति चुना गया।

एक नजर में  डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जानकारी 

  • 1906 में राजेंद्र बाबु के पहल से ‘बिहारी क्लब’ स्थापन हुवा था। उसके सचिव बने।
  • 1908 में राजेंद्र बाबु ने मुझफ्फरपुर के ब्राम्हण कॉलेज में अंग्रेजी विषय के अध्यापक की नौकरी मिलायी और कुछ समय वो उस कॉलेज के अध्यापक के पद पर रहे।

  • 1909 में कोलकत्ता सिटी कॉलेज में अर्थशास्त्र इस विषय का उन्होंने अध्यापन किया।
  • 1911 में राजेंद्र बाबु ने कोलकता उच्च न्यायालय में वकीली का व्यवसाय शुरु किया।
  • 1914 में बिहार और बंगाल इन दो राज्ये में बाढ़ के वजह से हजारो लोगोंको बेघर होने की नौबत आयी। राजेंद्र बाबु ने दिन-रात एक करके बाढ़ पीड़ितों की मदत की।
  • 1916 में उन्होंने पाटना उच्च न्यायालय में वकील का व्यवसाय शुरु किया।
  • 1917 में महात्मा गांधी चंपारन्य में सत्याग्रह गये ऐसा समझते ही राजेंद्र बाबु भी वहा गये और उस सत्याग्रह में शामिल हुये।
  • 1920 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में वो शामील हुये। इसी साल में उन्होंने ‘देश’ नाम का हिंदी भाषा में साप्ताहिक निकाला।
  • 1921 में राजेंद्र बाबुने बिहार विश्वविद्यालय की स्थापना की।
  • 1924 में पाटना महापालिका के अध्यक्ष के रूप में उन्हें चुना गया।
  • 1928 में हॉलंड में ‘विश्व युवा शांति परिषद’ हुयी उसमे राजेंद्र बाबुने भारत की ओर से हिस्सा लिया और भाषण भी दिया।
  • 1930 में अवज्ञा आंदोलन में ही उन्होंने हिस्सा लिया। उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेजा गया। जेल में बुरा भोजन खाने से उन्हें दमे का विकार हुवा। उसी समय बिहार में बड़ा भूकंप हुवा। खराब तबियत की वजह से उन्हें जेल से छोड़ा गया। भूकंप पीड़ितों को मदत के लिये उन्होंने ‘बिहार सेंट्रल टिलिफ’की कमेटी स्थापना की। उन्होंने उस समय २८ लाख रूपयोकी मदत इकठ्ठा करके भूकंप पीड़ितों में बाट दी।
  • 1934 में मुबंई यहा के कॉग्रेस के अधिवेशन ने अध्यपद कार्य किया।
  • 1936 में नागपूर यहा हुये अखिल भारतीय हिंदी साहित्य संमेलन के अध्यक्षपद पर भी कार्य किया।
  • 1942 में ‘छोडो भारत’ आंदोलन में भी उन्हें जेल जाना पड़ा।
  • 1946 में जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में अंतरिम सरकार स्थापन हुवा। गांधीजी के आग्रह के कारन उन्होंने भोजन और कृषि विभाग का मंत्रीपद स्वीकार किया।
  • 1947 में राष्ट्रिय कॉग्रेस के अध्यक्ष पद पर चुना गया। उसके पहले वो घटना समिती के अध्यक्ष बने। घटना समीति को कार्यवाही दो साल, ग्यारह महीने और अठारह दिन चलेगी। घटने का मसौदा बनाया। 26 नवंबर, 1949 को वो मंजूर हुवा और 26 जनवरी, 1950 को उसपर अमल किया गया। भारत प्रजासत्ताक राज्य बना। स्वतंत्र भारत के पहले राष्ट्रपति होने का सम्मान राजेन्द्रबाबू को मिला।
  • 1950 से 1962 ऐसे बारा साल तक उनके पास राष्ट्रपती पद रहा। बाद में बाकि का जीवन उन्होंने स्थापना किये हुये पटना के सदाकत आश्रम में गुजारा।

हम डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को आज़ाद भारत के पहले राष्ट्रपति के रूप में याद करते है लेकिन इसके साथ ही उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता अभियान में भी मुख्य भूमिका निभाई थी और संघर्ष करते हुए देश को आज़ादी दिलवायी थी।

डॉ. राजेन्द्र प्रसाद में भारत का विकास करने की चाह थी। वे लगातार भारतीय कानून व्यवस्था को बदलते रहे और उपने सहकर्मियों के साथ मिलकर उसे और अधिक मजबूत बनाने का प्रयास करने लगे। हम भी भारत के ही वासी है हमारी भी यह जिम्मेदारी बनती है की हम भी हमारे देश के विकास में सरकार की मदद करे। ताकि दुनिया की नजरो में हम भारत का दर्जा बढ़ा सके।

शर्मनाक कृत्य के लिए हिंदू छात्रों से माफी मांगे एएमयू प्रशासन : निखिल महेश्वरी

एएमयू के हॉल में हिंदू छात्रों को मीट तले हुए तेल में पूड़ी सब्जी बनाने की घटना को भाजपा युवा मोर्चा के महानगर अध्यक्ष निखिल महेश्वरी ने निंदनीय और शर्मनाक बताया है।

निखिल महेश्वरी ने कहा कि यह कृत्य एएमयू प्रशासन के इशारे पर ही होता है। इस तरह से हिंदू छात्रों को मानसिक व शारीरिक रूप से परेशान किया जाता है।

उन्होंने मांग की है कि इस कृत्य के लिए यह एएमयू प्रशासन हिंदू छात्रों से माफी मांगे और ऐसा कृत्य करने वालों के खिलाफ कठोर कार्यवाही की जाए।

NDA का साथ छोड़ने के मुद्दे पर RSLP में अकेले ही न रह जाएं उपेंद्र कुशवाहा


आरएलएसपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगवान सिंह कुशवाहा ने कहा, ‘हमारा मानना है कि कुशवाहा जी को यूपीए में एनडीए जितनी इज्जत नहीं मिलेगी’


राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के एनडीए छोड़ने के कयासों के बीच बिहार में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदल रहा है. आरएलएसपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भगवान सिंह कुशवाहा के एक बयान से इसमें नया ट्विस्ट आता दिख रहा है. उन्होंने कहा कि कुशवाहा को एनडीए ने बहुत इज्जत दी है और उन्हें एनडीए में ही रहना चाहिए. भगवान सिंह के इस बयान से उपेंद्र कुशवाहा एनडीए छोड़ने के मुद्दे पर अपनी ही पार्टी में अकेले पड़ते नजर आ रहे हैं.

भगवान सिंह ने कहा कि रामविलास पासवान की पार्टी एलजेपी के छह सांसद होने के बावजूद एक ही मंत्री बनाया. जबकि आरएलएसपी के तीन ही सांसद थे, तब भी एक मंत्री पद दिया गया. उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि कुशवाहा जी को यूपीए में एनडीए जितनी इज्जत नहीं मिलेगी. हम दिल की गहराई से आग्रह करते हैं कि आरएलएसपी एनडीए मे ही बना रहे.’

आरएलएसपी के नेता चाहते हैं एनडीए में बने रहना

आरएलएसपी के सांसद राम कुमार शर्मा भी एनडीए में ही रहने के संकेत दे चुके हैं. इसके साथ ही पार्टी के दोनों विधायक, सुधांशु शेखर और ललन पासवान ने भी एनडीए में ही बने रहने के संकेत दिए थे. वे 27 नवंबर को बीजेपी विधानमंडल दल की बैठक में शामिल भी हुए थे. इससे पहले 10 नवंबर को इन्ही दोनों विधायकों ने जेडीयू में जाने का संकेत दिया था.

आरएलएसपी के सांसद राम कुमार शर्मा भी एनडीए में ही रहने के संकेत दे चुके हैं. इसके साथ ही पार्टी के दोनों विधायक, सुधांशु शेखर और ललन पासवान ने भी एनडीए में ही बने रहने के संकेत दिए थे. वे 27 नवंबर को बीजेपी विधानमंडल दल की बैठक में शामिल भी हुए थे. इससे पहले 10 नवंबर को इन्ही दोनों विधायकों ने जेडीयू में जाने का संकेत दिया था.

राजनाथ सिंह बोले- आंध्र प्रदेश से अलग करके ‘तेलंगाना’ में कितना विकास हुआ?


तेलंगाना में विधानसभा चुनाव सात दिसंबर को होने वाले हैं और मतगणना 11 दिसंबर को होगी

‘अटलजी ने जिन 3 राज्यों को बनाया वो आज विकसित राज्यों की श्रेणी में हैं लेकिन क्या तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अलगाव के बाद कोई विकास हुआ है?’


गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने आंध्र प्रदेश से अलग करके बनाए गए राज्य तेलंगाना पर सवाल खड़े किए हैं. उन्होंने तेलंगाना के आसिफाबाद में कहा, ‘पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 3 नए राज्य बनाए थे. उन्होंने मध्य प्रदेश से अलग करके छत्तीसगढ़ बनाया था, बिहार से अलग करके झारखंड बनाया था और उत्तर प्रदेश से अलग करके उत्तराखंड बनाया था.’

राजनाथ ने कहा, ‘अटलजी ने जिन 3 राज्यों को बनाया वो आज विकसित राज्यों की श्रेणी में हैं लेकिन क्या तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अलगाव के बाद कोई विकास हुआ है?’

तेलंगाना में विधानसभा चुनाव सात दिसंबर को होने वाले हैं और मतगणना 11 दिसंबर को होगी. चुनावों को देखते हुए सभी दल अपनी तैयारियों में जुटे हुए हैं और एक दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे हैं.

गौरतलब है कि तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग होकर भारत का 29वां राज्य बना था. इसके लिए यह व्यवस्था की गई थी कि हैदराबाद को 10 साल के लिए तेलंगाना और आंध्र प्रदेश की संयुक्त राजधानी बनाई जाएगी.

इस नए राज्य के लिए ड्राफ्ट बिल को 5 दिसम्बर 2013 को कैबिनेट ने मंजूरी दी थी और यह बिल 18 फरवरी 2014 को लोक सभा से पास हो गया था. दो दिनों के बाद इसे राज्यसभा में भी मंजूरी मिल गई थी.

The Muzaffarpur shelter home case, ”Every time I read this file, I find it tragic. My hair stands on its ends,”: Justice Gupta


Supreme Court finds the Bihar police were lagging in their probe.”Every time I read this file, I find it tragic. My hair stands on its ends,” says Justice Gupta.


The CBI may take over the investigation into cases of abuse and aggravated sexual attacks on inmates of 17 shelter homes, nine of them housing children, after the Supreme Court on Tuesday found the Bihar police lagging in their probe.

The 11 FIRs registered by the State police did not contain serious offences or provided a true picture of the horrors perpetrated on the inmates, including children the court said.

“If a person is dead, the FIR filed is that of a case of ‘simple hurt’. Is this acceptable? A child is sodomised and theBihr government is saying it will file FIR after a week? The truth is not coming out,” a visibly angry Justice Madan B. Lokur addressed the Bihar Chief Secretary, who had been summoned in the previous hearing.

Justice Deepak Gupta said, “Every time I read this file, I find it tragic. My hair stands on its ends… yet this is the attitude of the Bihar government.”

Justice Abdul S. Nazeer said the State government’s assurances to the court that it would set everything right in the case and make amends in the FIRs seemed hollow. “They do not evoke confidence,” he addressed the Bihar government side.

‘Last serious offences put in FIRs’

Justice Gupta said usually the tendency of the police while registering FIRs was to include the most serious offences. “Here it is otherwise. The least serious offences have been put in these FIRs,” he pointed out.

Justice Lokur said the TISS report on the abuses in shelter homes in the state  came in May, but it was only now that the Bihar government had set its eyes on it. It was a survey team from the TISS (Tata Institute of Social Sciences) that brought to light the abuses and torture suffered by children in the Muzaffarpur shelter home run by an NGO.

The TISS had categoried the 17 shelter homes presently under the apex court scanner as ‘homes of grave concern’. While nine pertain to children, eight house beggars, destitutes and senior citizens.

The court gave a red-faced Bihar government 24 hours to show reasons why the probe into all the 17 homes should not be taken over by the CBI from the State police. The Muzaffarpur shelter home case is already under CBI investigation.

An affidavit filed by the Bihar government shows that as on November 1, 86 child care institutions (CCIs) in the State are run under the purview of the Social Welfare Department. These include 22 children’s homes for boys, 11 children’s homes for girls, nine open shelters and 28 specialised adoption agencies for children in need of care and protection. There is one children’s home for boys and girls each in Patna and another in Begusarai. All other homes in the State are being run through NGOs.

There are 14 observation homes, one place of safety and one special home run directly by the government.

काश्मीर के रास्ते आपना फायदा ढूंढती कांग्रेस


कांग्रेस ने सिर्फ कश्मीर का हित नहीं देखा है. बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक दाव चला है


जम्मू कश्मीर के राज्यपाल ने विधानसभा भंग करने का फैसला किया है. इस फैसले की आलोचना हो रही है. पीडीपी, कांग्रेस, नेशनल कॉन्फ्रेंस पहली बार एक साथ आ रहे थे. गवर्नर के फैसले के बाद ये सभी दल हतप्रभ हैं. अब ये दल बीजेपी पर आरोप लगा रहे हैं कि केंद्र सरकार के इशारे पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को रोका गया है.

PDP का रवैया ज्यादा तल्ख है. राज्यपाल के रवैये से नाराज़ पीडीपी की नेता ने कहा कि बीजेपी के नेता उनकी पार्टी को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे, जब इसमें कामयाबी नहीं मिली तो केंद्रीय एजेंसियों का डर दिखाया गया, अब जब सरकार बनने जा रही थी तो बीजेपी ने राज्यपाल के ज़रिए ये फैसला करा दिया है.

कश्मीर के इस राजनीतिक शह मात में कांग्रेस को कामयाबी मिली है. कांग्रेस ने बीजेपी के बरअक्स ये साबित करने का प्रयास किया है कि वो राज्य में चुनी हुई सरकार को तरजीह दे रही थी. वहीं कांग्रेस ने पीडीपी के साथ जो तल्खी थी वो भी कम कर ली है. एनसी के साथ कांग्रेस के रिश्ते पहले से ही ठीक थे.

अब इस फैसले से कांग्रेस ने एक बड़ा राजनीतिक संदेश भी दिया है. कर्नाटक के बाद कश्मीर में भी कांग्रेस बीजेपी को रोकने के लिए कुर्बानी दे रही थी. इससे छोटे दलों को लोकसभा चुनाव से पहले एक मैसेज है कि कांग्रेस सब को साथ लेकर चलने के लिए तैयार है.

कई दौर की मंत्रणा के बाद फैसला

जम्मू कश्मीर में बीजेपी के समर्थन वापसी के बाद से ही कांग्रेस में कशमकश चल रही थी. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के यहां कई दौर की बैठक भी हुई, जिसमें राहुल गांधी भी शामिल हुए, कांग्रेस के सूत्रों का दावा है कि राजनीतिक हित की जगह कश्मीर के हित में फैसला लिया गया कि वहां घाटी की सबसे बड़ी पार्टियों के साथ ही जाना चाहिए.

इन बैठकों में कांग्रेस के राज्य के नेताओं के साथ बातचीत की गई, इसके अलावा जो लोग कश्मीर के बारे में जानकार हैं उनसे भी राय मशविरा किया गया था. कांग्रेस पहले भी राज्य में पीडीपी और एनसी को सरकार बनाने के लिए समर्थन दे चुकी है, इसलिए फैसला लेना मुश्किल नहीं था.

 

कांग्रेस का राजनीतिक दाव

कांग्रेस ने सिर्फ कश्मीर का हित नहीं देखा है. बल्कि लोकसभा चुनाव से पहले बड़ा राजनीतिक दाव चला है. कांग्रेस ने ये दिखाने की कोशिश की है कि जब कांग्रेस पीडीपी और एनसी को साथ ला सकती है, तो लोकसभा चुनाव में रीजनल पार्टियों को इकट्ठा कर सकती हैं. जिस तरह से दो दल साथ आए हैं उसको कांग्रेस उदाहरण के तौर पर पेश कर सकती है. जो रीजनल पार्टियां एक दूसरे के खिलाफ हैं, वो भी कांग्रेस के साथ आ सकती हैं. यही नहीं कांग्रेस ये भी दिखाने का प्रयास कर रही है कि सत्ता पाना महत्वपूर्ण नहीं है जितना बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना है.

बीजेपी बनाम कांग्रेस

बीजेपी 2014 के बाद जिस तरह से मजबूत हुई है. उससे सहयोगी दलों के प्रति बीजेपी का रवैया बदला है. कश्मीर में पीडीपी से अलग होने का फैसला अचानक लिया गया था. इस तरह टीडीपी के साथ बीजेपी ने रिश्ता निभाने का प्रयास नहीं किया है. बल्कि टीआरएस और वाईएसआर कांग्रेस के साथ नज़दीकी बढ़ाई गई. यही हाल बिहार में आरएलएसपी के साथ हो रहा है. शिवसेना भी नाराज़ चल रही है. एआईडीएमके में टूट का आरोप भी बीजेपी पर है, लेकिन इन सब मुद्दों पर बीजेपी बेपरवाह नज़र आ रही है.

इस तरह का रवैया पहले मज़बूत कांग्रेस का रहता था. कांग्रेस पर कभी सहयोगी दलों को ही तोड़ने का आरोप लगाया जाता था. कांग्रेस के बारे में ये कहा जाता था कि जो नज़दीक गया उसका राजनीतिक वजूद खत्म हो जाता था. राजनीतिक बाज़ी उलट गयी है. अब यही आरोप बीजेपी पर लग रहा है. जो काम पहले अटल बिहारी वाजपेयी के समय बीजेपी करती थी वो अब कांग्रेस करने लगी है.

90 के दशक में बीजेपी ने शिवसेना की सरकार का समर्थन किया. ममता बनर्जी और नीतीश कुमार को पूरा सहयोग दिया. नेशनल कॉन्फ्रेंस को भी एनडीए के साथ रखा गया, डीएमके एनडीए की सहयोगी बनी रही, ओडिशा और आन्ध्र में नवीन पटनायक और टीडीपी के काम में कोई दखल नहीं दिया गया. यूपी में मुलायम सिंह की सरकार को बनवाने में बीजेपी की अहम भूमिका थी.

अब ये काम कांग्रेस कर रही है, कर्नाटक में जेडीएस का समर्थन, कश्मीर का फैसला सब यही दर्शाता है कि कांग्रेस गठबंधन को लेकर बीजेपी की नीति पर चल रही है. वही बीजेपी पुराने कांग्रेसी ढर्रे पर चल रही है.

महागठबंधन का एजेंडा

कांग्रेस लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सामने बड़ा गठबंधन खड़ा करने की कोशिश कर रही है. हालांकि अभी कोई खास सफलता नहीं मिल पाई है. लेकिन कश्मीर का फैसला कांग्रेस की राह आसान कर सकता है.

उत्तर भारत में कई राज्यों का चुनाव चल रहा है, इसमें कांग्रेस को महागठबंधन बनाने में कामयाबी नहीं मिली है. कांग्रेस को गंभीरता से इस ओर ध्यान देने की ज़रूरत है. हालांकि कई बड़े दल का साथ मिला है. कर्नाटक में जेडीएस का साथ मिला है जिसका अच्छा नतीजा उपचुनाव में देखने को मिला है.

टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू भी कांग्रेस के साथ हैं, जिसका नतीजा तेलंगाना चुनाव के बाद पता चलेगा. लेकिन टीडीपी के मुखिया कई सरकारों का सहयोग कर चुके हैं. 1996 में जनता दल की सरकार और बाद में एनडीए की सरकार के संयोजक भी थे. बीजेपी से हाल फिलहाल में ही अलग हुए हैं. कांग्रेस को साउथ में साथी मिल गए हैं, आंध्र और तेलंगाना में टीडीपी, कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडु में डीएमके और केरल में यूडीएफ चल रहा है.

महाराष्ट्र में एनसीपी के साथ सीटों के तालमेल पर बातचीत जारी है. कांग्रेस के नज़रिए से अच्छा हल निकलने की उम्मीद है. लेकिन कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती उत्तर और पूर्वोत्तर भारत में है.

 

कांग्रेस की चुनौती

कांग्रेस की बड़ी चुनौती उत्तर प्रदेश में है. जहां से लोकसभा की 80 सीट है. बीजेपी और सहयोगी दल के पास 73 सीट हैं. कांग्रेस के सामने परेशानी है कि एसपी-बीएसपी के प्रस्तावित गठबंधन में शामिल होने के लिए दोनों दलों को मनाए, ऐसा हो जाने पर सम्मानजनक सीट हासिल करने का सिर दर्द है. कांग्रेस के लिए यूपी में अपने सभी बड़े नेताओं को चुनाव लड़ाने के लिए सीटों की दरकार है.

दिल्ली में कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि आप से कोई तालमेल करना है या अकेले लड़ना है. पार्टी के केंद्रीय नेताओं और राज्य के नेताओं के बीच मतभेद है. राज्य के नेता अकेले लड़ने के पैरोकारी कर रहे हैं. हालांकि बिहार में कांग्रेस का गठबंधन आरजेडी के साथ है, लेकिन इसमें आरएलएसपी या लोक जनशक्ति पार्टी के तड़के की ज़रूरत है.

कांग्रेस की सबसे बड़ा सिरदर्द बंगाल है. जहां टीएमसी और लेफ्ट को एक साथ लेकर चलना आसान नहीं है. हालांकि राज्य में बीजेपी की ताकत बढ़ रही है लेकिन दोनों दल आमने सामने है. ऐसे में टीएमसी की नेता को लेफ्ट के साथ लाना मुश्किल काम है. कश्मीर फॉर्मूला कितना कारगर होगा ये कयास लगाना आसान नहीं है

वहीं असम में बीजेपी मजबूत है. बीजेपी को हराने के लिए एआईयूडीएफ का साथ ज़रूरी है. लेकिन असम में इस गठबंधन को पार लगाने के लिए तरुण गेगोई को बैकसीट पर रखना ज़रूरी है. हालांकि जिस तरह राहुल गांधी तरुण गोगोई के साथ हैं उससे ये फैसला लेना आसान नहीं है.

कांग्रेस की मजबूरी

कांग्रेस की मजबूरी है कि उत्तर भारत के तकरीबन 175 सीटों पर बीजेपी के मुकाबले रीजनल पार्टियां हैं, कांग्रेस इन्हीं दलों के आसरे पर है. बीजेपी धीरे-धीरे ओडिशा और बंगाल में पैर पसार रही है. रीजनल पार्टियों और कांग्रेस का वोट बैंक एक समान है इसलिए तालमेल में परेशानी हो रही है