देश के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का निधन

नई दिल्ली : देश के पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस के निधन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शोक प्रकट किया है. उन्होंने ट्वीट कर शोक संवेदना व्यक्त की है. उन्होंने जार्ज फर्नांडिस को सरल और निडर व्यक्तिव वाला नेता बताया, जिन्होंने सदैव दूरदर्शी सोच के साथ राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दिया. पीएम ने अपने ट्विट में लिखा है कि वह गरीबों और पिछड़ों के अधिकार के लिए लड़ने वाले सबसे असरदार आवाज थे.

पीएम मोदी ने एक के बाद एक तीन ट्वीट किए. अपने दूसरे ट्वीट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘हम जार्ज फर्नांडिस को सबसे अहम और उग्र ट्रेड यूनियन नेता के तौर पर याद करते हैं, जिन्होंने अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी. हम उन्हें एक ऐसे नेता के तौर पर याद करते हैं, जिन्होंने चुनाव के मैदान में मजबूत से मजबूत नेताओं को धूल चटाया. जार्ज साहब ने बतौर रेल और रक्षा मंत्री भारत को सुरक्षित और मजबूत किया.’

Narendra Modi✔@narendramodi George Sahab represented the best of India’s political leadership.

Frank and fearless, forthright and farsighted, he made a valuable contribution to our country. He was among the most effective voices for the rights of the poor and marginalised.

Saddened by his passing away.

पीएम मोदी ने कहा, ‘अपने लंबे सार्वजनिक जीवन में जार्ज साहब ने कभी राजनीतिक विचारधारा से भटके नहीं. इमरजेंसी के दौरान उन्होंने जमकर खिलाफत किया. उनकी सादगी और विनम्रता उल्लेखनीय थी. मेरी संवेदना उनके परिवार, दोस्त और तमाम शोकाकुल लोगों के साथ है. भगवान उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.’

इस मौके पर देश के गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा, ‘जॉर्ज फर्नांडिस रक्षा और रेल मंत्री रहते हुए देश की सेवा की. उन्होंने कई मजदूर आंदोलन का नेतृत्व किया और उनके अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. रक्षा मंत्री का उनका कार्यकाल सर्वश्रेष्ठ था.’

ANI✔@ANI
Rajnath Singh: #GeorgeFernandes ji served the nation in several capacities &held key portfolios like Defence&Railways at different times. He led many labour movements&fought against the injustice towards them. His tenure as Def Minister was outstanding.May his soul rest in peace.

केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने जॉर्ज फर्नांडिस के निधन पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि उन्होंने देश के लिए अपना जीवन दे दिया. उन्होंने मजदूरों के लिए लड़ाई लड़ी. मैंने उन्हें अपना आइकन माना.

अविवादित ज़मीन ‘न्यास’को लौटाई जाये ताकि निर्माण आरंभ हो: केंद्र सरकार

केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है.

नई दिल्‍ली : अयोध्‍या विवाद पर केंद्र की मोदी सरकार ने मंगलवार को बड़ा कदम उठाते हुए  सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है. इसमें मोदी सरकार ने कहा है कि 67 एकड़ जमीन सरकार ने अधिग्रहण की थी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बरकरार रखने का आदेश दिया है. सरकार का कहना है कि जमीन का विवाद सिर्फ 2.77 एकड़ का है, बल्कि बाकी जमीन पर कोई विवाद नहीं है. इसलिए उस पर यथास्थित बरकरार रखने की जरूरत नहीं है. सरकार चाहती है जमीन का कुछ हिस्सा राम जन्भूमि न्यास को दिया जाए और सुप्रीम कोर्ट से इसकी इजाजत मांगी है.

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि वह अपने 31 मार्च, 2003 के यथास्थिति बनाए रखने के आदेश में संशोधन करे या उसे वापस ले. केंद्र सरकार ने SC में अर्जी दाखिल कर अयोध्या की विवादित जमीन को मूल मालिकों को वापस देने की अनुमति देने की अनुमति मांगी है. इसमें 67 एकड़ एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया गया था, जिसमें लगभग 2.77 एकड़ विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि का अधिग्रहण किया था.

केंद्र का कहना है कि राम जन्मभूमि न्यास से 1993 में जो 42 एकड़ जमीन अधिग्रहित की थी सरकार उसे मूल मालिकों को वापस करना चाहती है. केंद्र ने कहा है कि अयोध्या जमीन अधिग्रहण कानून 1993 के खिलाफ मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिसमें उन्‍होंने सिर्फ 0.313 एकड़ जमीन पर ही अपना हक जताया था, बाकि जमीन पर मुस्लिम पक्ष ने कभी भी दावा नहीं किया है.

अर्जी में कहा गया है कि इस्माइल फारुकी नाम के केस के फैसले में सुप्रीमकोर्ट ने कहा था कि सरकार सिविल सूट पर इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद विवादित भूमि के आसपास की 67 एकड़ जमीन अधिग्रहित करने पर विचार कर सकती है. केंद्र का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला दिया है और इसके खिलाफ अपील सुप्रीम कोर्ट के सामने लंबित है, गैर-उद्देश्यपूर्ण उद्देश्य को केंद्र द्वारा अतिरिक्त भूमि को अपने नियंत्रण में रखा जाएगा और मूल मालिकों को अतिरिक्त जमीन वापस करने के लिए बेहतर होगा.

बता दें कि अयोध्‍या मामले पर सुप्रीम कोर्ट में 29 जनवरी को सुनवाई होनी थी, लेकिन इसके लिए बनाई गई जजों की बेंच में शामिल जस्‍ट‍िस बोबड़े के मौजूद न होने पर अब ये सुनवाई आगे के लिए टल गई है. अभी इस मामले में सुनवाई के लिए तारीख भी तय नहीं हुई है. इससे पहले पीठ के गठन और जस्‍ट‍िस यूयू ललित के हटने के कारण भी सुनवाई में देरी हुई थी.

इससे पहले 25 जनवरी को अयोध्या मामले की सुनवाई के लिए चीफ जस्‍ट‍िस रंजन गोगोई ने नई बेंच का गठन कर दि‍या था. इस बैंच में CJI रंजन गोगोई के अलावा एसए बोबडे, जस्टिस चंद्रचूड़, अशोक भूषण और अब्दुल नज़ीर शामि‍ल हैं. पिछली बैंच में कि‍सी मुस्‍ल‍िम जस्‍ट‍िस के न होने से कई पक्षों ने सवाल भी उठाए थे.

इससे पहले बनी पांच जजों की पीठ में जस्‍ट‍िस यूयू ललित शामि‍ल थे, लेकिन उन पर मुस्‍लि‍म पक्ष के वकील राजीव धवन ने  सवाल उठाए थे. इसके बाद वह उस पीठ से अलग हो गए थे. इसके बाद चीफ जस्‍ट‍िस ने नई पीठ गे गठन का फैसला किया था. वहीं अयोध्‍या में राम मंदिर निर्माण की मांग कर रहे साधु-संतों की ओर से प्रयागराज में चल रहे कुंभ में परम धर्म संसद का आगाज सोमवार को हो चुका है. स्‍वामी स्‍वरूपानंद सरस्‍वती के नेतृत्‍व में 30 जनवरी तक प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में परम धर्म संसद का आयोजन होगा.

वहीं साधु और संतों ने इस संबंध में बड़ा ऐलान भी किया हुआ है. उनका कहना है कि राम मंदिर सविनय अवज्ञा आंदोलन के जरिये बनाया जाएगा. प्रयागराज में चल रहे कुंभ मेले में इस समय साधु और संतों का जमावड़ा लगा हुआ है. यहां विश्‍व हिंदू परिषद (विहिप) की धर्म संसद से पहले शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती परम धर्म संसद का आयोजन कर रहे हैं. यह परम धर्म संसद कुंभ में 28, 29 और 30 जनवरी तक चलेगी. इसमें राम मंदिर निर्माण के लिए चर्चा और रणनीति बनेगी. बता दें कि विश्‍व हिंदू परिषद 31 जनवरी को राम मंदिर मुद्दे पर धर्म संसद का आयोजन कर रही है.

11 वें आदिवासी युवा आदान-प्रदान समारोह समाप्त

पंचकूला 29 जनवरी:

उपायुक्त मुकुल कुमार ने कहा कि विभिन्न प्रदेशों के आदिवासी क्षेत्रों से आए युवा हरियाणा की समृद्ध एवं सभ्य संस्कृति का देश के अन्य क्षेत्रों में अवश्य आदान प्रदान करें ताकि वहां के नागरिक भी हमारी संस्कृति के बारे में जागरूक हो सके।

  उपायुक्त माता मनसा देवी मंदिर परिसर मंें स्थित सत्संग भवन में भारत सरकार के खेल एवं युवा कार्यक्रम मामले, गृह मंत्रालय भारत सरकार के सहयोग से आयोजित 11 वें आदिवासी युवा आदान प्रदान कार्यक्रम के समापन अवसर पर उपस्थित युवाओं को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि युवाओं ने अवश्य ही हरियाणा की संस्कृति के बारे में सीखा है तथा पंचकूला व आसपास के दर्शनीय स्थलों का भ्रमण भी किया है। यह कार्यक्रम मनसादेवी में दूसरी बार आयोजित किया गया है और युवाओं को इसका भूरपूर लाभ मिला है।

  उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार ने प्रदेश में खेल नीति लागू की है और युवाओं के कल्याण के लिए अनेक स्कीमें भी लागू की है जिनका युवाओं को भरपूर लाभ मिल रहा है। सरकार की ओर से खिलाड़ियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर करोड़ों रूपए की नकद राशि भी प्रदान की जा रही है। इस  प्रकार हरियाणा खेलों के मामले में अग्रणीय राज्य बन रहा है। कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए अतिरिक्त उपायुक्त जगदीप ढांडा नेे युवाओं से आह्वान करते हुए कहा कि जो भी इस सात दिवसीय प्रशिक्षण शिविर मे उन्होंने सीखा है और उन्हे जो अच्छा लगा है उनको अपने अपने क्षेत्रों में जाकर अन्य लोगो से भी सांझा करें ताकि हमारे प्रदेश की संस्कृति अन्य क्षेत्रों में भी जानकर वहां के लोग राष्ट्र की एकता ओर अखण्डता को भी मजबूतकर सके। कार्यक्रम मंे विभिन्न क्षेत्रों से आए युवाओं ने संबधित संस्कृति में पारम्परिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुती भी दी।

  उपायुक्त ने वाद विवाद प्रतियोगिता में प्रथम रही बिहार की वनिता को 20 हजार रुपए, द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाली बिहार की सनोज को 15 हजार रुपए तथा उडीसा के सोगबेसवाल को तीसरा स्थान पाने पर 5 हजार रुपए की नकद राशि प्रदान कर सम्मानित किया। इसके अलावा सांस्कृतिक कार्यक्रम में तेलंगना प्रथम, महाराष्ट्र द्वितीय तथा बिहार तृतीय स्थान पर रहने उन्हें भी नकद राशि देकर पुरस्कृत किया। गायन कार्यक्रम में बिहार की वनिता  प्रथम, महाराष्ट्र की बबीता द्वितीय तथा उड़ीसा की मारिया ने तीसरा स्थान पाया। इसी प्रकार लड़कों की गायन प्रतियोगिता में सुनील कुमार ने प्रथम, सुजीत ने द्वितीय तथा नैंनदी ने तृतीय स्थान पाया। इस अवसर पर नेहरू युवा केन्द्र के समन्वयक डा. जी एस बाजवा ने भी शिविर में उपस्थित होने पर सभी राज्यों के युवाओं का आभार व्यक्त किया। नेहरू युवा केन्द्र की शशि बाला, करनाल से राजकुमार गौड, मोरनी से प्रदीप सिंह, अमित शर्मा, सिमरन, ललित, सरोज, जगदीप मलिक, एमडीसी सदस्य शारदा प्रजापति सहित कई अधिकारी व कर्मचारी उपस्थित थे। 

शत्रु के साथ शत्रुता निभाएगी भाजपा कोई कार्यवाई नहीं होगी

बीजेपी ने बागी चल रहे बिहार के पटना साहिब से लोकसभा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा पर कोई कार्रवाई नहीं करना का फैसला किया है. पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, लेकिन इसके बदले पार्टी उनका टिकट काट सकती है. अगर ऐसा होता है तो इस भी पार्टी की तरफ से कार्रवाई के रूप में ही देखा जाएगा.

सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी शत्रुघ्न सिन्हा को पार्टी से निकालना नहीं चाहता क्योंकि इसका फायदा उन्हें आगामी चुनाव में सहानुभूति के रूप में मिलेगा. पिछले लंबे समय से शत्रुघ्न सिन्हा ने बगावती तेवर अपनाए हुए हैं, लेकिन संसद में पार्टी के खिलाफ व्हिप जारी होने की स्थिति में पार्टी के साथ खड़े हो जाते हैं.

वहीं दूसरी तरफ शत्रुघ्न सिन्हा पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की मेगा रैली में पहुंचे थे. यहां उन्होंने बीजेपी पर जमकर निशाना साधा था. उन्होंने कहा था ‘इससे ज्यादा जानदार, शानदार और दमदार रैली मैंने कभी नहीं देखी। मेरी जवाबदेही पहले जनता के लिए बनती है, इसलिए जो देश के हित में होता है जो जनता के हित में होता है वही मैं बोलता हूं. मुझसे लोग सवाल करते हैं कि जब आप बीजेपी में हैं तो बीजेपी के खिलाफ क्यों बोलते हैं? क्या आप बागी हैं? तो मैं कहता हूं कि अगर सच कहना बगावत है तो हां मैं बागी हूं.’

इसके बाद बीजेपी नेता राजीव प्रताप रूडी ने कहा था कि कुछ लोग अपनी सुविधा के लिए बीजेपी के नाम का इस्तेमाल कह रहे हैं.

यूपी, बिहार के बाद आंध्र भी कांग्रेस मुक्त गठबंधन

चंद्रबाब नायडू ने गुरुवार को वाईएसआर कांग्रेस एवं बीजेपी पर निशाना साधा और आरोप लगाते हुए कहा, ‘ये सभी (पार्टियां) केवल षड्यंत्र रचना जानती हैं.’

अमरावती: कांग्रेस द्वारा आंध्र प्रदेश में चुनाव अकेले लड़ने की घोषणा करने के एक दिन बाद राज्य के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू ने गुरुवार को संकेत दिया कि उनकी पार्टी टीडीपी का भी राज्य में राष्ट्रीय पार्टी के साथ कोई चुनावी गठबंधन नहीं होगा. नायडू ने एक टेलीकान्फ्रेंसिंग के दौरान टीडीपी नेताओं से कहा कि राज्यों में गठबंधन संबंधित दलों की इच्छा पर आधारित होगा. उन्होंने कहा, ‘हम राष्ट्रीय स्तर पर साथ मिलकर बीजेपी के खिलाफ लड़ रहे हैं. हम देश बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, एकजुट भारत के नारों के साथ एक साझा मंच पर साथ आये हैं.’ 

‘संविधान की रक्षा 23 गैर बीजेपी दलों का एजेंडा है’ 
नायडू ने कहा कि तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस का पश्चिम बंगाल में कोई चुनावी गठबंधन नहीं है. उन्होंने कहा, ‘इसके बावजूद कांग्रेस नेता कोलकाता में विपक्षी रैली में शामिल हुए. हम सभी बेंगलुरू और कोलकाता में एक मंच पर एक साथ आये हैं. संविधान की रक्षा 23 गैर बीजेपी दलों का एजेंडा है.’ टीडीपी प्रमुख ने गुरुवार को वाईएसआर कांग्रेस एवं बीजेपी पर निशाना साधा और आरोप लगाते हुए कहा, ‘ये सभी (पार्टियां) केवल षड्यंत्र रचना जानती हैं.’

कांग्रेस महासचिव एवं केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा था कि कांग्रेस पार्टी राज्य की सभी 175 विधानसभा सीटों और 25 लोकसभा सीटों पर चुनाव अकेले लड़ेगी. चांडी ने कहा, ‘टीडीपी ने हमारे साथ केवल राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन किया है, इसलिए हमारा राज्य में (उसके साथ) कोई लेनदेन नहीं होगा.’ 

बिहार में भी कांग्रेस मुक्त गठबंधन की तैयारी

  • आरजेडी के 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के विरोध के कारण कांग्रेस भी आरजेडी से दूर होकर देश में यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि आरजेडी ने सवर्ण आरक्षण का विरोध किया था, इस कारण अलग हुए
  • कांग्रेस कम से कम 16 सीटें मांग रही है और यह संकेत भी दे रही है कि कांग्रेस किसी भी हाल में 12 से कम सीटों पर समझौता नहीं करेगी. 
  • आरजेडी सूत्र कहा कि तेजस्वी बिना कांग्रेस के छोटे दलों के साथ गठबंधन को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं

पटना: बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) नीत महगठबंधन में पहले छोटे दलों के आकर्षण से महागठबंधन के नेता उत्साहित नजर आ रहे थे लेकिन अब इन दलों की मांग ने महागठबंधन में सीट बंटवारा चुनौती हो गई है. ऐसे में उत्तर प्रदेश की तर्ज पर बिना कांग्रेस के गठबंधन बनाए जाने के कयास लगाए जाने लगे हैं. कांग्रेस के एक नेता की मानें तो पहले कांग्रेस के 12 से 20 सीटों पर लड़ने पर सहमति बनी थी लेकिन धीरे-धीरे अन्य दलों के इस गठबंधन में शामिल होने के बाद अब गठबंधन में सीट बंटवारे को लेकर किचकिच शुरू हो गई है.

अब इस गठबंधन में पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के अलावा जीतन राम मांझी का हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), मुकेश साहनी की विकासशील इंसान पार्टी शामिल है. माना जाता है वामपंथी दल भी इस महागठबंधन में शामिल होंगे, हालांकि अब तक इसकी औपचारिक घोषणा नहीं की गई है. कांग्रेस सूत्रों के मुताबिक, बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस कम से कम 16 सीटें मांग रही है और यह संकेत भी दे रही है कि कांग्रेस किसी भी हाल में 12 से कम सीटों पर समझौता नहीं करेगी. 

कांग्रेस के इस मांग के बाद आरजेडी ने अपने दूसरे फॉर्मूले पर काम शुरू कर दिया है, जिसमें कांग्रेस शामिल नहीं है. आरजेडी सूत्र कहा कि तेजस्वी बिना कांग्रेस के छोटे दलों के साथ गठबंधन को ज्यादा तरजीह दे रहे हैं. सूत्रों का कहना है कि इसे लेकर उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा और मुकेश सहनी की पार्टी विकासशील इंसान पार्टी के नेताओं से बातचीत भी हो चुकी है. 

बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले और राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि यह बड़ी बात नहीं होगी. उन्होंने कहा कि हाल में हुए विधानसभा चुनाव के परिणामों से उत्साहित कांग्रेस आरजेडी की सोच से ज्यादा सीट की मांग कर रही है. ऐसे में इतना तय है कि कांग्रेस 10 सीट से नीचे नहीं जाएगी. 

किशोर कहते हैं, “आरजेडी के 10 प्रतिशत सवर्ण आरक्षण के विरोध के कारण कांग्रेस भी आरजेडी से दूर होकर देश में यह संदेश देने की कोशिश करेगी कि आरजेडी ने सवर्ण आरक्षण का विरोध किया था, इस कारण अलग हुए. इस बहाने को लेकर आरजेडी भी कांग्रेस से अलग होकर अपने वोटबैंक को मजबूत करने की बात को लेकर चुनावी मैदान में उतरेगी.” 

ऐसे में कांग्रेस और आरजेडी के अलग होना कोई बड़ी बात नहीं है. उन्होंने सीट बंटवारे को लेकर भी कहा कि महागठबंधन में दलों की संख्या अधिक हो गई है, जिसे कोई नकार नहीं सकता. ऐसे में कोई भी दल सीट को लेकर त्याग करने की स्थिति में नहीं है. इस बीच, कांग्रेस ने अपने शक्तिप्रदर्शन को लेकर तीन फरवरी को पटना के गांधी मैदान में रैली की घोषणा कर दी है. इस रैली में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अलावा प्रियंका गांधी के भी आने की संभावना है. रैली को लेकर कांग्रेस के नेता उत्साहित हैं. 

वरिष्ठ पत्रकार कन्हैया भेलारी कहते हैं कि महागठबंधन में सीट बंटवारे का पेंच कांग्रेस के कारण फंसा हुआ है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी है, ऐसे में वह सम्मानजनक सीटों से कम पर समझौता नहीं कर सकती है. उत्तर प्रदेश की रणनीति पर आरजेडी यहां काम कर सकती है, इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है. भेलारी भी मानते हैं कि रालोसपा किसी हाल में चार सीटों से कम पर समझौता नहीं करेगी. कांग्रेस और हम की अपनी-अपनी मांगें हैं. ऐसे में आरजेडी के पास कांग्रेस को छोड़कर गठबंधन बनाने का अलावा कोई दूसरा उपाय नहीं बचता. 

वैसे, आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर कहा, “आरजेडी अपनी वैकल्पिक योजना पर काम कर रही है परंतु कांग्रेस के साथ बातचीत विफल नहीं हुई है. यह सही है कि कांग्रेस तीन राज्यों में विजयी हुई है परंतु बिहार में भी उसकी स्थिति में सुधार हुआ है, ऐसा नहीं है. कांग्रेस को अपनी क्षमता के अनुसार मांग करनी चाहिए.” 

कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने कितनी सीटें जीती थी, उसे यह याद रखना चाहिए. यह विधानसभा चुनाव नहीं है, जहां मतदाता क्षेत्रीय दलों को मत देंगे, यह लोकसभा चुनाव है, जहां मतदाता राष्ट्रीय दलों को देखते हैं. बहरहाल, महागठबंधन में सीटों को लेकर पेंच फंसा हुआ है. यही कारण है कि महागठबंधन के नेताओं के खरमास यानी 15 जनवरी के बाद होने वाला सीट बंटवारा अब तक नहीं हुआ है. 

आरजेडी के स्वर्णों के कोटा विरोध ने कांग्रेस की मुश्किल बढ़ाई

कांग्रेस पार्टी आरजेडी के वोट बैंक के साथ अगड़ों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन अब वैसा हो पाना उन्हें टेढ़ी खीर मालूम पड़ने लगा है

90 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति के बीच बिहार में पिछड़ों के मसीहा के तौर पर लालू यादव का उभार हुआ था. दूसरी तरफ, मंडल के जवाब में कमंडल की राजनीति ने बीजेपी को भी धीरे-धीरे बिहार में अपने-आप को खड़ा करने का मौका दे दिया. लेकिन, इन दोनों के बीच में फंस गई कांग्रेस. बिहार में लालू के उभार ने ही कांग्रेस के अवसान की पटकथा लिख दी थी. लेकिन, मजबूर कांग्रेस सब कुछ जानते हुए भी लालू से तब भी पीछा नहीं छुड़ा पाई और अभी भी जेल में बंद लालू के पीछे-पीछे चलने को मजबूर दिख रही है.

कांग्रेस की रणनीति फेल?

लेकिन, लगभग दो दशक के दौर के बाद अब लालू यादव की पार्टी आरजेडी के खिलाफ सवर्णों की नाराजगी को कम करने का बीड़ा कांग्रेस ने उठाया था. लालू की गैरहाजिरी में उनके बेटे तेजस्वी यादव को आगे कर कांग्रेस सवर्णों के एक तबके के बीच यह संदेश देने की कोशिश कर रही थी कि आरजेडी अब वो आरजेडी नहीं रह गई. गंगा में बहुत पानी बह चुका है.

मोदी विरोध के नाम पर बिहार में महागठबंधन बनाने की तैयारी में लगी कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा था जिसमें लालू यादव के यादव और मुस्लिम वोट के साथ कांग्रेस सवर्ण तबके के लोगों को भी अपने नाम पर जोड़ने की तैयारी में थी. कांग्रेस में मदनमोहन झा और अखिलेश प्रसाद सिंह सरीखे सवर्ण नेताओं को आगे बढाकर आरजेडी के रघुवंश प्रसाद सिंह और जगदानंद सिंह जैसे चेहरों के सहारे कांग्रेस एक बार फिर से सवर्ण तबके को महागठबंधन से जोड़ने की तैयारी कर रही थी.

सूबे में कांग्रेस आरजेडी के बराबर सीट पर लड़ने का दावा कर रही थी. बीजेपी द्वारा एसएसी और एसटी एक्ट पर लिए गए फैसले के खिलाफ सवर्ण मतदाताओं की नाराजगी को भुनाने का मंसूबा पाल चुकी कांग्रेस बिहार में आरजेडी के साथ गठबंधन कर बेहतरीन प्रदर्शन की उम्मीद लगाए बैठी थी. लेकिन सवर्णों को आरक्षण दिए जाने संबंधी सदन में कवायद जैसे ही शुरू हुई राजनीतिक फिजा प्रदेश में बदलने लगी. खासकर आरजेडी के विरोध के फैसले के बाद आरजेडी के सवर्ण नेता सहित कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक गणित उलझने लगा है.

स्टेट लेवल के एक सीनियर कांग्रेसी नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि अगड़ी जाति के बीच आरजेडी के रुख को समझ पाना मुश्किल होगा और इससे आगामी लोकसभा चुनाव में आरजेडी और कांग्रेस के गठबंधन पर प्रतिकूल असर पड़ेगा.

लेकिन, सामान्य वर्ग के गरीब तबके को मिलने वाले दस फीसदी आरक्षण वाले विधेयक पर आरजेडी के संसद में विरोध के बाद कांग्रेस की सारी रणनीति फेल होती दिख रही है. झटका आरजेडी के उन सवर्ण नेताओं को भी लगा है जो इस बार सवर्णों के वोट बैंक के सहारे चुनाव में उतरने की तैयारी में थे.

आरजेडी के सवर्ण नेताओं में बेचैनी

आरजेडी के वरिष्ठ नेता रघुवंश प्रसाद सिंह की तरफ से आया बयान उसी झुंझलाहट और बेचैनी को दिखाता है. आरजेडी के सवर्ण नेता पार्टी के स्टेंड को लेकर उलझन में हैं कि वो लोकसभा चुनाव में सवर्ण मतदाताओं से वोट किस आधार पर मांगेंगे, उन दिग्गज नेताओं में रघुवंश प्रसाद सिंह,जगदानंद सिंह और शिवानंद तिवारी सरीखे नेता शामिल हैं जिन्हें आरजेडी के द्वारा लिया गया सवर्ण आरक्षण विरोधी फैसला असहज करने लगा है. इसलिए आरजेडी द्वारा लिए गए फैसले को चूक बताकर रघुवंश प्रसाद सिंह ने डैमेज कंट्रोल करने की कोशिश भी शुरू कर दी है.

उन्होंने ऐसा वक्तव्य देकर अगड़ी जाति को रिझाने की कोशिश की है. दरअसल रघुवंश प्रसाद सिंह आरजेडी के सवर्ण चेहरा हैं. वो पांच दफा सांसद चुने जा चुके हैं. उनका चुनाव क्षेत्र वैशाली है जहां राजपूतों की संख्या निर्णायक फैसला कराने का मादा रखती है.

साल 1996 से लेकर 2009 तक लगातार रघुवंश प्रसाद सिंह वहां के सांसद रह चुके हैं. जातिगत समीकरण के तहत यादव और राजपूत जाति का एक साथ गोलबंद होना रघुवंश बाबू को संसद तक पहुंचाता रहा है लेकिन 2014 में रामा सिंह की इंट्री की वजह से एलजेपी और बीजेपी के गठबंधन ने रघुवंश प्रसाद सिंह को छठी बार सांसद बनने से रोक दिया था.

वजह साफ है कि राजपूत और यादव समाज का गठबंधन पिछले चुनाव में मज़बूत नहीं हो पाया था और आरजेडी के सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर अपनाए गए रुख से रघुवंश प्रसाद सिंह सरीखे नेता की राजनीतिक जमीन चौपट हो सकती है. इसके लिए रघुवंश प्रसाद सिंह ने पार्टी से अलग लाइन लेकर मुद्दे को माइल्ड करने की कोशिश की है. ध्यान रहे राजपूत और यादव का गठजोड़ वैशाली के आसपास तीन लोकसभा क्षेत्र में सीधा असर डाल सकता है इसलिए बदली परिस्थितियों में उन्हें एक साथ रख पाना आसान नहीं दिखाई पड़ रहा है. यही हालत कमोबेश कई संसदीय क्षेत्र में है जिनमें मुंगेर, बलिया, बेगूसराय, नवादा, दरभंगा, मुज़्फ्फरपुर, औरंगाबाद की सीटें प्रमुख हैं.

लालू यादव के इशारे पर हुआ था विरोध!

सूत्रों की मानें तो आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव से सलाह मशविरा करने के बाद ही पार्टी ने लोकसभा और राज्यसभा में सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर विरोध करने का फैसला किया था. राज्य सभा में मनोज झा ने बिल का विरोध करते हुए कहा था कि ‘कहानियां हमेशा से काल्पनिक आधार पर गढ़ी जाती रही हैं और उसका वास्तविकता से दूर-दूर का वास्ता नहीं होता है.’ उन्होंने कहा था कि ‘हम सबने बचपन में पढ़ा है कि एक गरीब ब्राह्मण था लेकिन एक गरीब दलित था , एक गरीब यादव था या एक गरीब कुर्मी था ऐसी कहानी कभी नहीं पढ़ी है.’

ज़ाहिर है मनोज झा ऐसी कहानी सुना कर साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि सवर्ण को गरीब बताया जाना मनगढ़ंत कहानी है और इसका हकीकत से कोई लेना देना नहीं है. मनोज झा पार्टी लाइन के हिसाब से सदन में बोल रहे थे और बाहर पार्टी के युवा नेता और लालू प्रसाद के वारिस तेजस्वी यादव सवर्ण आरक्षण के मुद्दे पर आए संविधान संशोधन विधेयक का विरोध यह कहते हुए कर रहे थे कि यह आरक्षण दलित,पिछड़े और आदिवासी को मिल रहे आरक्षण को खत्म करने की एक साजिश है. इतना ही नहीं तेजस्वी यादव ने विरोध करते हुए यह भी कहा था कि 15 फीसदी आबादी को 10 फीसदी आरक्षण दिए जाने की कोशिश हो रही है तो 52 फीसदी ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण का दायरा बढ़ाया जाना चाहिए.

तेजस्वी पिता लालू प्रसाद से गंभीर मंत्रणा के बाद ही ऐसी लाइन ले रहे थे. उन्हें मालूम था कि ऐसी पार्टी लाइन आरजेडी को सूट करती है और वो मोदी सरकार द्वारा लाए गए सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़ा राजनीति करने में ठीक वैसे ही कामयाब होंगे जैसे उनके पिता लालू प्रसाद 90 के दशक में मंडल कमीशन लागू किए जाने के बाद सत्ता के शिखर तक पहुंचे थे.

अगड़ा बनाम पिछड़ा की रणनीति कितनी कारगर?

बिहार में अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति के दम पर लालू प्रसाद की राजनीति खूब चमकती रही है. इसकी वजह यह है कि अगड़ी जाति में जो चार जाति आती हैं, उनमें ब्राह्मण की आबादी 5.7 फीसदी है वहीं कायस्थ 1.5 फीसदी, भूमिहार 4.7 फीसदी और राजपूत 5.2 फीसदी हैं. आरजेडी अगड़ों के खिलाफ अतिपिछड़ा 21.7 फीसदी, यादव 14.4 फीसदी, बनिया 7.1 फीसदी, कुर्मी 3 और कोईरी 4 फीसदी को गोलबंद कर बिहार में अपनी राजनीति चमकाने की फिराक में है.

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लेकिन 90 के दशक की राजनीति का वो तरीका अब कारगर हो पाएगा उसकी उम्मीद कम ही दिखाई पड़ती है. मंडल कमीशन के दौर की राजनीति के बाद बिहार में तमाम दलों के नेतृत्वकर्ता पिछड़े और अति पिछड़े समाज से ही आते हैं, इसलिए आरजेडी की राजनीति से ज्यादा राजनीतिक लाभ मिल पाएगा ऐसा प्रतीत होता नजर नहीं आता है. प्रदेश में अगड़ा बनाम पिछड़ा की राजनीति फिर से शुरू हो सके इसकी गुंजाइश नहीं दिखाई पड़ती है.

यही वजह है कि महागठबंधन के घटक दलों में सवर्ण आरक्षण मुद्दे पर आरजेडी के विरोध के बाद असहज स्थिति पैदा होने लगी है. आरजेडी के सवर्ण नेता भले ही डैमेज कंट्रोल करने में लगे हों लेकिन कांग्रेस के भीतर भी आरजेडी के स्टैंड को लेकर मायूसी है. कांग्रेस पार्टी आरजेडी के वोट बैंक के साथ अगड़ों को एक साथ लाने की रणनीति पर काम कर रही थी लेकिन अब वैसा हो पाना उन्हें टेढ़ी खीर मालूम पड़ने लगा है.

Misa Bharti: इस केंद्रीय मंत्री का गंडासे से हाथ काटनी चाहती थी लालू यादव की बेटी मीसा भारती

2014 के लोकसभा चुनाव में रामकृपाल यादव ने राजद से बगावत कर बीजेपी के टिकट पर राजद की मीसा भारती के खिलाफ पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत गये थे.

नई दिल्ली:बिहार की सियासत में इन दिनों बयानबाजी की बयार सी बह रही है. हर कोई अपने प्रतिद्वंदी पर वार करने का एक भी मौका छोड़ना नहीं चाह रहा है. इसी क्रम में आरजेडी से राज्यसभा सांसद और लालू यादव की सबसे बड़ी बेटी मीसा भारती ने पटना के बिक्रम में हो रहे कर्यक्रम में केंद्रीय मंत्री रामकृपाल यादव पर आपत्तिजनक बयान दिया है.

बिक्रम में आरजेडी के कार्यकर्ता सम्मेलन के दौरान मीसा भारती ने रामकृपाल यादव के हाथ काटने की बात कह डाली. उन्होंने कहा कि कुछ साल पहले तक रामकृपाल यादव का वो बहुत सम्मान करती थीं, लेकिन ये सम्मान तब खत्म हो गया, जब उन्होंने सुशील कुमार मोदी के साथ हाथ मिला लिए. उन्होंने विवादित बयान देते हुए कहा कि जिस दिन वो सुशील मोदी की किताब लेकर वह हाथ में खड़े थे, उस दिन मेरी अंदर से इच्छा हुई कि उसी कुटी काटने वाले गडासे से उसका हाथ काट दें.   

मीसा भारती ने राजद नेताओं और कार्यकर्ताओं को नसीहत देते हुए कहा कि राजद के कोई भी संभावित उम्मीदवार अपनी दावेदारी पर खुलकर बात न करें. सीटों पर अभी फाइनल फैसला आना बाकी है. कोई भी निर्णय राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू यादव हीं लेंगे इसलिए कार्यकर्ता क्षेत्र में अपना काम करते रहें. 

आपको बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव में रामकृपाल यादव ने राजद से बगावत कर बीजेपी के टिकट पर राजद की मीसा भारती के खिलाफ पाटलीपुत्रा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था और जीत गये थे. 2014 की हार पर मीसा भारती ने कहा कि मैं तब हार गई थी, क्योंकि अचानक रामकृपाल यादव पलटी मार गये थे और कुछ अपने लोग भी नाराज थे.

‘‘जब बहनजी ने उन्हें छोड़ दिया, तब यह स्वभाविक है कि वह दीदी (ममता) को याद करेंगे.’’ स्मृति ईरानी

‘‘विपक्षी दल बार – बार कह रहे हैं कि वे बीजेपी से अकेले नहीं लड़ सकते और इससे उनकी नाकामी उजागर होती है.’
मोदी ने अक्सर ही इस बात पर जोर दिया है कि देश को एक मजबूत सरकार चाहिए, ना कि एक मजबूर सरकार. 

नई दिल्लीः तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की विपक्षी दलों की रैली का समर्थन करने को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर शुक्रवार को बीजेपी ने तंज कसते हुए कहा कि यह स्वभाविक है कि ‘बहनजी’ के छोड़ने के बाद वह ‘दीदी’ को याद करेंगे. 

कोलकाता के ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में आज बीजेपी के खिलाफ होने वाली इस रैली में 20 से अधिक विपक्षी दलों के नेताओं के शरीक होने की उम्मीद है. बीजेपी की इस टिप्पणी में संभवत: बहनजी का जिक्र बसपा प्रमुख मायावती और दीदी का जिक्र पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए किया गया है.

केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि रैली से भगवा पार्टियों के प्रतिद्वंद्वियों के बारे में यह खुलासा होता है कि वे अपने बूते मुकाबला नहीं कर सकते हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या ममता को राहुल के समर्थन पत्र से विपक्ष की मजबूती प्रदर्शित होती है, स्मृति ने जवाब दिया, ‘‘जब बहनजी ने उन्हें छोड़ दिया, तब यह स्वभाविक है कि वह दीदी (ममता) को याद करेंगे.’’ 

उन्होंने उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के हाल ही में गठबंधन की घोषणा किए जाने की ओर संभवत: इशारा करते हुए यह कहा. दरअसल, उप्र में दोनों दलों (सपा और बसपा) ने गठबंधन में कांग्रेस को शामिल नहीं किया है. केंद्रीय मंत्री ने भरोसा जताया कि लोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करेंगे. उन्होंने कहा कि उन्होंने (मोदी ने) अक्सर ही इस बात पर जोर दिया है कि देश को एक मजबूत सरकार चाहिए, ना कि एक मजबूर सरकार. 

उन्होंने रैली का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘विपक्षी दल बार – बार कह रहे हैं कि वे बीजेपी से अकेले नहीं लड़ सकते और इससे उनकी नाकामी उजागर होती है.’

क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों की बिसात है ममता की महारैली

लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्षी एकता का इसे प्रदर्शन माना जा रहा है. “क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए.” : टीएमसी
भाजपा से पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी गेगोंग अपांग और शत्रुघ्न सिन्हा भी शिरकत करेंगे

कोलकाता: उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ बने समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के गठबंधन के बाद कोलकाता में शनिवार को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी की विपक्षी दलों की महारैली होने जा रही है. लोकसभा चुनाव 2019 से पहले विपक्षी एकता का इसे प्रदर्शन माना जा रहा है. यह रैली यहां ऐतिहासिक ब्रिगेड परेड मैदान में होगी. हालांकि, विपक्ष के कई नेता इस रैली में नजर नहीं आएंगे.  

उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव रैली में भाग लेंगे जबकि बसपा की ओर से पार्टी के वरिष्ठ नेता सतीश चंद्र मिश्रा के शिरकत करने की संभावना है. हालांकि बसपा सुप्रीमो मायावती खुद इस रैली में हिस्सा नहीं लेंगी. आरएलडी के अजीत सिंह और जयंत चौधरी भी मौजूद रहेंगे. वहीं, रैली में कांग्रेस का प्रतिनिधित्व पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे करेंगे. 

उत्तर प्रदेश में नया चुनावी समीकरण बनाने वाली सपा और बसपा सहित सभी बड़ी विपक्षी पार्टियों की इस रैली में मौजूदगी काफी मायने रखती है. वहीं, कांग्रेस को भी यह लगता है कि विपक्ष की महारैली से उत्तर प्रदेश में राजनीतिक समीकरण के बारे में गलतफहमी नहीं होनी चाहिए. रैली का आयोजन कर रही तृणमूल कांग्रेस ने कहा, “क्षेत्रीय राजनीतिक मजबूरियों को इस प्रस्तावित रैली से जुड़े बड़े राजनीतिक उद्देश्यों में नहीं मिलाना चाहिए.”

इस रैली में जिन अन्य नेताओं के शामिल होने की उम्मीद है, उनमें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एवं जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एवं तेदेपा प्रमुख एन चंद्रबाबू नायडू शामिल हैं. इनके अलावा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के भी शामिल होने की उम्मीद है. कांग्रेस से खड़गे और पार्टी के वरिष्ठ नेता अभिषेक मनु सिंघवी रैली में भाग लेंगे. 

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख एवं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ – साथ एनसीपी प्रमुख शरद पवार, पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी, पाटीदार नेता हार्दिक पटेल, दलित नेता जिग्नेश मेवाणी और झारखंड विकास मोर्चा के बाबूलाल मरांडी भी मंच पर नजर आएंगे. मंगलवार को भाजपा छोड़ने वाले अरूणाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री गेगोंग अपांग भी रैली में शामिल होंगे.