गठबंधन बचाने के फेर में कई सीटों के नतीजे एक तरफा होंगे

पटना : 

बिहार में गठबंधन के धाराशाही होते जान पड़ने पर स्थिति अजीब – ओ – गरीब बनी हुई है, ऐसा जान पड़ता है कि इस बार मतदाताओं के लिए यह लोक सभा परीक्षा बहुत ही कठिन होने वाली है, जिसमें उनको निर्णय लेने में मुश्किल आ सकती है। दिमागी कसरत के बिना मतदान होना एक टेढ़ी खीर है। मुजजफ्फरपूर सीट को ही लें तो उम्मीदवारों कि पृष्ठभूमि बहुत ही सबल है, एक ही जाती से संबन्धित दोनों निषाद ही जन साधारण में विख्यात हैं, इसी तरह नालंदा में एक अलग दृष्टिकोण से ऊमीद्वार उतरे गए हैं यहाँ भी गठबंधन कि असफलता मतदाता को आधार में खड़ा करने के लिए काफी है।

कैंडिडेट के नाम सामने आने के बाद बिहार में कुछ सीटों पर लड़ाई एकतरफा नजर आने लगी है. दोनों ही तरफ से ऐसी स्थिति बन रही है.

बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन की तरफ से लोकसभा चुनाव को लेकर लगभग सीट बंटवारे पर स्थिति साफ हो गई है. सीट बंटवारे से लेकर उम्मीवारों तक का चयन हो गया है. कैंडिडेट के नाम सामने आने के बाद बिहार में कुछ सीटों पर लड़ाई एकतरफा नजर आने लगी है. दोनों ही तरफ से ऐसी स्थिति बन रही है.

शुरुआत तिरहुत प्रमंडल के मुजफ्फरपुर सीट से करते हैं. यहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) है वहीं, दूसरी तरफ नई नवेली विकासशील इंशान पार्टी (वीआईपी). बीजेपी ने जहां वर्तमान और स्थानीय सांसद अजय निषाद को चुनावी मैदान में उतारा है वहीं, वीआईपी ने राजभूषण चौधरी निषाद को सिंबल दिया है. राजनीति में नेताओं की लोकप्रियता मायने रखती है. मुजफ्फरपुर मल्लाहों की सीट मानी जाती है. इसलिए दोनों ही तरफ से एक ही जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है.

BJP प्रत्याशी के साथ है पिता की विरासत
बीजेपी प्रत्याशी अजय निषाद के साथ उनके पिता की विरासत तो है ही, साथ ही पांच साल का उनका कार्यकाल भी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह लगभाग 50 प्रतिशत वोट लाकर चुनाव जीतने में सफल रहे थे. इसबार जेडीयू भी बीजेपी के साथ है. ऐसे में एक मजबूत समीकरण के सामने एक नई नवेली पार्टी का एक ऐसा उम्मीवार जिसे पहचानने के लिए मतदाताओं को दिमाग पर बल देना पड़े वह किस हद तक मुकाबला कर पाएंगे यह कहना मुश्किल है. वैसे राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है. कुछ भी संभव है. लेकिन मौजूद समीकरण के मुताबिक, महागठबंधन यहां एनडीए को वॉक ओवर देती ही नजर आ रही है.

सीतमढ़ी में जेडीयू ने दिया नए नवेले उम्मीदवार को टिकट
सीतामढ़ी को लेकर भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने जहां एक स्थानीय डॉक्टर वरुण कुमार को लोकसभा का टिकट दिया है वहीं, महागठबंधन की तरफ से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने पूर्व सांसद अर्जुन राय को चुनावी मैदान में उतारा है. 2014 में यह सीट राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) ने जीती थी. इस चुनाव में अर्जुन राय बतौर जेडीयू उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे. आरजेडी ने सीताराम यादव को चुनावी मैदान में उतारा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में एक तो आरएलएसपी और आरजेडी साथ-साथ चुनाव लड़ रही है वहीं, जेडीयू ने एक नए नवेले उम्मीवार को मैदान में उतारा है. ऐसी स्थिति में पलड़ा आरजेडी उम्मीवार का ही भारी दिख रहा है.

नालंदा में HAM का कमजोर कैंडिडेट
सीट बंटवारे में तेजस्वी यादव ने नालंदा सीट हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के खाते में देकर लगभग जेडीयू की राह आसान कर दी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र नालंदा से जेडीयू ने स्थानीय और वर्तमान सांसद कौशलेंद्र कुमार को फिर मौका दिया है. दूसरी तरफ, हम ने यहां से हम ने अशोक कुमार आजाद चंद्रवंशी को टिकट दिया है. 2014 के चुनाव परिणाम पर अगर नजर डालें तो इसबार जेडीयू उम्मीदवार और मजबूत स्थिति में उभर कर सामने आ रहे हैं. 2014 में इस सीट पर लड़ाई लोजपा और जेडीयू के बीच में थी. इस चुनाव में दोनों साथ हैं. बीते चुनाव के मत प्रतिशत को मिला दें तो यह आंकड़ा 68 प्रतिशत से अधिक का हो रहा है. ऐसे में इस सीट पर आप 2019 की लड़ाई का अंदाजा लगा सकते हैं.

सीवान में आरजेडी को हो सकता है फायदा
अब बात सीवान लोकसभा सीट की. एनडीए के बंटवारे में यह सीट जेडीयू के खाते में गई है. वहीं, महागठबंधन की तरफ से आरजेडी ने यहां से उम्मीदवार उतारा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ओमप्रकाश यादव को टिकट दिया था. उन्होंने आरजेडी के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को शिकस्त दी थी. ओमप्रकाश यादव के कद को जानने के लिए आपको 2009 के परिणाम को भी समझना होगा. इस चुनाव में बिहार में जारी प्रचंड नीतीश लहर में भी उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी के खाते से सीट छिनने पर वह खुलकर नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं. उनके बागी तेवर अपनाने की संभावना भी प्रबल है. ऐसे में जेडीयू उम्मीदवार कविता सिंह, हिना शहाब के सामने कमजोर प्रत्याशी साबित हो सकती हैं.

सिद्दीकी के उतरने बाद दरभंगा में बीजेपी के लिए मुश्किल लड़ाई 
दरभंगा सीट पर भी बीजेपी के लिए स्थिति कुछ उत्साहजनक नहीं है. सीट बंटवारे में पार्टी ने अपनी परंपरागत सीट तो बचा ली, लेकिन एक कमजोर प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतार दिया है. बीजेपी ने बेनीपुर से पूर्व विधायक गोपालजी ठाकुर को चुनावी मैदान में उतारा है, जो कि 2015 के विधानसभा चुनाव में अपनी सीट पर 25 हजार से अधिक मतों से चुनाव हार गए थे. उनका मुकाबला आरजेडी के कद्दावर नेता और बिहार के पूर्व वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी से होगा. बीते कई चुनावों में यहां से अली अशरफ फातमी चुनाव लड़ते आ रहे थे. लेकिन इस बार पार्टी ने उम्मीदवार बदला है. यह देखा गया है कि इस सीट पर ध्रुवीकरण की पूरी कोशिश की जाती है. लेकिन अब्दुल बारी सिद्दीकी का चेहरा सामने होने के कारण इसकी संभावना कम दिखती है. वहीं, दरभंगा सीट पर मल्लाह करीब 70 हजार जाति के वोटर हैं, जो कि इस बार दोनों ही गठबंधन का खेल बना या बिगाड़ सकते हैं

राहुल बताएं की 55 लाख 9 करोड़ कैसे बने: रवि शंकर प्रसाद

नई दिल्‍ली: 

चुनाव की तारीखें जैसे जैसे करीब आ रही हैं, राजनीतिक दलों के बीच आरोप प्रत्‍यारोप और तीखे होते जा रहे हैं. पहले कांग्रेस ने कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्‍पा के सहारे बीजेपी आलाकमान पर निशाना साधा. अब बीजेपी ने कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है. अब केंद्रीय मंत्री और पटना साहिब से बीजेपी उम्‍मीदवार रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए उनकी आय का स्रोत पूछ लिया है. उन्‍होंने कहा, राहुल गांधी बताएं कि उनकी संपत्‍त‍ि जो 2004 में 55 लाख थी, वह 2014 में बढ़कर 9 करोड़ कैसे हो गई.

रविशंकर प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस में पूछा, राहुल गांधी जब से राजनीति में आए हैं, उनकी आय का स्रोत सिर्फ सांसद का वेतन है. इसके अलावा कोई दूसरा आय का स्रोत नहीं है. उनके 2004 के एफिडेविट में उनकी अाय 55 लाख 38 हजार रुपए बताई गई थी. 2009 तक आते आते ये इनकम 2 करोड़ हो गई. वहीं जब उन्‍होंने 2014 का चुनाव लड़ा तो उनकी आय बढ़कर 9 करोड़ हो गई. रविशंकर प्रसाद ने निशाना साधते हुए कहा कि हम सब ये जानना चाहते हैं कि 55 लाख से आपकी इन्‍कम बढ़कर 9 करोड़ कैसे हो गई.

येदियुरप्पा डायरीपर स्पष्टीकरण दें प्रधानमंत्री : वेणुगोपाल
बता दें कि कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि येदियुरप्‍पा ने सीएम रहते हुए बीजेपी आलाकमान को करोड़ों रुपए दिए थे. कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा द्वारा भाजपा के नेताओं को कथित तौर पर धन दिए जाने से जुड़ी डायरी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और कहा कि इस मामले पर मोदी को स्पष्टीकरण देना चाहिए.

वेणुगोपाल ने एक बयान में कहा, ‘येदियुरप्पा डायरी से 1800 करोड़ रुपये के बड़े भ्रष्टाचार का संकेत मिलता है. इसकी जांच की जरूरत है क्योंकि इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के मोदी सरकार के दावे को भंडाफोड़ होता है.’

उन्होंने कहा, ‘इन डायरी से सामने आई बातों पर प्रधानमंत्री को स्पष्टीकरण देना चाहिए. प्रधानमंत्री इसका खुलासा करें कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने पैस लिए थे या नहीं.’ कांग्रेस महासचिव ने येदियुरप्पा से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मामले की जांच लोकपाल से होनी चाहिए.

बिहार कांग्रेस के खाते में 40 में से 9 सीटें, कन्हैया खाली हाथ

40 लोक सभा सीटों वाले बिहार में विपक्ष ने सीटों का बटवारा कर लिया है। लालू के परिवार ने कांग्रेस को 40 में से मात्र 9 सीटें दिन हैं, यकीन है की गठबंधन मजबूत रहेगा। अस्तित्व की लड़ाई के लिए तैयारी कर रही कांग्रेस के लिए यह कैसा समाचार है यह तो समय ही बताएगा फिलहाल सब ठीक ही जान पड़ता है।

नई दिल्‍ली :

बिहार में महागठबंधन की सीटों का ऐलान हो चुका है. काफी मशक्‍कत के बाद सभी दल सहमत हो गए हैं. इस समझौते के तहत सबसे ज्‍यादा सीटें आरजेडी को मिली हैं. महागठबंधन में सदस्य दलों के बीच बिहार की 40 सीटों पर हुये बंटवारे के तहत आरजेडी 20, कांग्रेस नौ, आरएलएसपी को पांच और वीआईपी एवं एचएएम को तीन तीन सीट दी गई हैं. सभी 40 सीटों का बंटवारा हो गया है लेकिन महागठबंधन ने सीपीआई को कोई सीट नहीं दी है. सीपीआई ने बेगूसराय से कन्‍हैया कुमार को अपना उम्‍मीदवार बनाया हुआ है. लेकिन अब ऐसा होता दिख नहीं रहा. महागठबंधन ने कोई भी सीट सीपीआई को नहीं दी है.

हालांकि आरजेडी की ओर से मनोज झा ने कहा है‍ कि वह एक सीट पर सीपीआई एमएल को समर्थन देंगे, सीपीआई को नहीं. महागठबंधन के नजरिए से सीपीआई काफी निराश है. लेकिन सबसे ज्‍यादा निराशा जेएनयू के पूर्व अध्‍यक्ष कन्‍हैया कुमार को होगी. हालांकि ये भी माना जाता है कि लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्‍वी यादव कन्‍हैया कुमार को पसंद नहीं करते हैं. कन्‍हैया और तेजस्‍वी एक ही उम्र के हैं. ऐसे में तेजस्‍वी को डर है कि कहीं कन्‍हैया उनकी ही जमीन हथिया कर राजनीति में आगे न बढ़ जाएं.

बेगूसराय पर रहेगी नजर

सीपीआई ने कन्‍हैया कुमार को बेगूसराय से अपना उम्‍मीदवार बनाया है. वह बेगूसराय के ही रहने वाले हैं. ये सीट भूमिहार बहुल है. माना जा रहा है कि बीजेपी यहां से गिरिराज सिंह को अपना उम्‍मीदवार बना सकती है. ऐसे में आरजेडी को लगता है कि वह गिरिराज के सामने कमजोर साबित होंगे.

आरजेडी मुस्‍लिम केंडीडेट पर दांव की फि‍राक में है

आरजेडी बेगूसराय सीट पर किसी मुस्‍लिम चेहरे को उतार सकती है. ये सीट कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी का बड़ा गढ़ रही है. पिछली बार यहां से बीजेपी के भोला सिंह जीते थे. उन्‍होंने भी अपनी राजनीति कम्‍यूनिस्‍ट पार्टी से हीशुरू की की थी. आरजेडी इस बार तनवीर हसन को अपना उम्‍मीदवार बनाना चाहती है जो 2014 के चुनाव में 60 हजार वोट से हार गए थे. 2009 में इस सीट को जेडीयू के मोनाजिर हसन ने जीता था.

लालू के वादे के बावजूद महागठबंधन से भाकपा को बाहर रखना दुखद : रेड्डी

भाकपा के महासचिव सुधाकर रेड्डी ने बिहार में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर महागठबंधन में भाकपा को शामिल नहीं करने पर दुख जताते हुये कहा है कि इस मामले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद से सहमति कायम होने के बावजूद इस पर अमल नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण है. रेड्डी ने शुक्रवार को महागठबंधन में राजद सहित अन्य दलों के बीच सीट बटवारे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा, ‘‘महागठबंधन में वामदलों को शामिल नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण है. भाकपा की बिहार इकाई बदली हुयी परिस्थितियों की 24 मार्च को समीक्षा कर भविष्य की रणनीति तय करेगी.’

रेड्डी ने कहा, ‘‘पिछले साल मुझसे मुलाकात के दौरान लालू प्रसाद ने मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमति जतायी थी. लालू जेल में हैं इसलिये मुझे नहीं मालूम लालू की बात को उनके बेटे के पास किस तरह पेश किया गया.’ भाकपा ने बिहार की बेगूसराय सीट पर जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. रेड्डी ने कहा कि लालू प्रसाद के आश्वासन के आधार पर पार्टी को उम्मीद थी कि इस सीट पर विपक्षी दल एकजुट होकर भाजपा को चुनौती देंगे.

उन्होंने कहा, ‘‘महागठबंधन का स्वरूप तय होने के बाद अब यह साफ है कि हमें बिहार में अपने बलबूते चुनाव लड़ना होगा. बेशक हम बिहार में चुनाव लड़ेंगे और इस बारे में स्पष्ट रणनीति पर जल्द फैसला किया जायेगा.’

Rahul may opt a safe seat in Karnatka or Maharashtra

Exactly five years ago, at the onset of the summer of 2014, the BJP surprised everyone by announcing Smriti Irani as its candidate from Amethi. Irani was BJP’s giant killer, to take on Rahul Gandhi, heir of ruling Congress and prince of India’s mightiest political family.

Amethi was Congress’ first family’s Pocket borough since the 1980s. The constituency has the distinction of sending Sanjay Gandhi, Rajeev Gandhi (four terms), Sonia Gandhi and whosoever it named, for example, Satish Sharma and Sanjay Singh. Rahul had won twice from Amethi, his victory margin in the election prior to 2014 was over 3.70 lakh votes. Congress had been projecting him as the future of the nation.

Smriti was tasked to take on the Gandhi scion on his home turf, which even the BJP, its supporters and Sangh Parivar thought was impenetrable. It was a challenge not many would like to take. She was a complete outsider to Uttar Pradesh. A television actor-turned-politician, Irani had contested one parliamentary election from Chandni Chowk against Kapil Sibal and lost it badly. She belonged to a community, Parsi (by marriage), which perhaps didn’t have any voter in that backward area called Amethi. It was brave on part of BJP and Irani to go to a state where caste was a guiding and in some cases the abiding principle of politics.

But Irani had the grit and appetite to take the challenge, and stamina to pursue it relentlessly to succeed. Over a period of time, having worked in various posts in the party — secretary, Mahila Morcha chief and vice-president — and as a Rajya Sabha MP and campaigner, Irani had proved that she was a fighter and had a propelling capability to leave a mark.

Her beginning in Amethi was tentative. Two persons who believed (who mattered most) in her capacity were Narendra Modi, the then prime ministerial candidate of BJP and Amit Shah the then general secretary in-charge of Uttar Pradesh.

Kumar Vishwas, who was then with the Aam Admi Party, had made an early beginning in Amethi. And the people in the constituency lent an ear to him. That made it clear that a big segment of the constituency was willing to accept somebody else as their leader, provided they had the right quality, grit and the strong backing of a strong party, to give Rahul a run for his money. Vishwas had great oratorical skills but didn’t have the party.

Irani with her energetic presence, sharp oratorical skills and the backing of BJP came as a person which the people, perhaps, had wanted to see for several decades. Still, not many in Amethi and outside the constituency believed that she may win.

Amethi had been a living example of how leaders, and that too the topmost leaders of the party which ruled India neglected their constituency and believed that only cosmetic work and occasional presence would ensure their victory in perpetuity. She was there to challenge that.

Though she had lost, as the result showed, she caused a great deal of scare in the Congress camp. Rahul’s victory margin was reduced from 3.70 lakh to 1.07 lakh.

Those in the rival camps dismissed her as a one time phenomenon in Amethi and believed that she may not return after the 20014 election. But contrary to their beliefs, Irani made Amethi her second home, preparing for 2019 elections, and taking up a series of developmental projects in the region.

Her name figured in the first list of BJP’s candidates for Lok Sabha, which was released on Thursday evening. No surprises this time. It was taken that she may be the candidate to challenge the Congress president.

The difference between Irani’s candidacy in 2014 and 2019 is noteworthy – this time around, the BJP and its sympathisers believe that she may win to write one of important chapters in India’s political history.

In the last five years, what Irani has done very effectively is, as they call “gherabandi (fencing)” of Amethi and Rahul Gandhi. Recently, a manufacturing unit for AK-203 Kalashnikov rifles, an India-Russia joint venture, was inaugurated in the presence of Prime Minister Narendra Modi, Uttar Pradesh chief minister Yogi Adityanath and Union Minister of Defence Nirmala Sitharaman. Ironically, Rahul had laid the foundation stone for the arms factory in 2007 but not much had moved from there because there were a series of confusions.

AK 203 to be manufactured at Amethi

By visiting Amethi to open a unit as big as this, Modi has clearly displayed his intent and purpose, how he values Irani as a leader and Amethi as her constituency.

In the upcoming election for the Amethi Lok Sabha constituency, Smriti has a strong start. She has already made Congress worry, forcing the party to look another seat for Rahul in Karnataka or in Maharashtra. One after another, senior Congress leaders from south and west India are offering a seat to Rahul in their state.

केजरीवाल को कांग्रेस की कोरी ना

आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष केजरीवाल शीला दीक्षित के गुनाहों की फ़ाइल कब की गुमा चुके हैं लेकिन शीला हैं की मानती ही नहीं। हर जगह हर बार कांग्रेस और दूसरे दलों से ठुकराये गए केजरीवाल, यशवंत सिन्हा के मार्फत फिर राहुल से गुहार लगाते देखे गए “प्लीज़ वाली”

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को कांग्रेस के साथ गठबंधन की खबरों को खारिज कर दिया. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से हमसे कह दिया था कि लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) के मद्देनजर कोई गठबंधन नहीं होगा. उन्होंने कहा कि हमारी कांग्रेस के साथ कोई बातचीत नहीं चल रही है. केजरीवाल ने उन मीडिया रिपोर्टस को गलत बताया, जिनमें कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन तय होने की बात कही जा रही थी.  

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमारा कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं हो रहा है. इस तरह की खबरें पर विराम लगाते हुए उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन तय होने की खबरें कांग्रेस के द्वारा ही फैलाई जा रही हैं. इसमें कोई सच्चाई नहीं है. कांग्रेस ने हमें पहले ही इसपर अपना पक्ष बता दिया है. हम कांग्रेस के साथ कोई बातचीत नहीं करेंगे. बता दें कि दिल्ली में कांग्रेस लगातार गठबंधन की खबरों को नकारती रही है. 

कांग्रेस का एक धड़ा अभी भी गठबंधन के पक्ष में है. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पीसी चाको गठबंधन के प्रयास कर रहे हैं. वहीं, दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित इस गठबंधन के खिलाफ मानी जा रही है. इसके साथ ही पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सलाह देते हुए ट्वीट किया कि प्लीज बिहार, झारखंड और दिल्ली में फैसला आज कर लें, पहले ही बहुत देर हो चुकी है. 

दरभंगा सीट किर्ति आज़ाद के लिए बनी चुनौती

भाजपा में हाशिये पर आए किर्ति आज़ाद अब कांग्रेस में भी अपनी ज़मीन तलाशते नज़र आ रहे हैं। उन्हे चुनोटी गठबंधन ही से मिल रही है। दरभंगा सीट पर कीर्ति आजाद और मधुबनी सीट पर अब्दुल बारी सिद्दीकि चुनाव लड़ने का दावा कर चुके हैं। दरअसल यह दोनों सीटें आरजेडी के खाते में जातीं जान पड़तीं है।

दरभंगाः महागठबंधन में सीटों का फॉर्मूला तय होने की बात कही जा रही है. हालांकि लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सीटों पर उम्मीदवारी की पेंच महागठबंधन से लेकर एनडीएतक फंसी है. महागठबंधन में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को लेकर कहा जा रहा है कि कांग्रेस 11 सीटों पर बिहार में चुनाव लड़ेगी. सूत्रों की माने तो 21+11+5+2+1 का फॉर्मूला अपनाया गया है. यानी की आरजेडी 21, कांग्रेस 11, आरएलएसपी 5, हम 2 और वीआईपी को 1 सीट मिलेगी. लेकिन उम्मीदवारी को लेकर कई सीटों पर गणित उलझ रही है. जिसमें अब दरभंगा और मधुबनी सीट को लेकर भी पेंच फंसती नजर आ रही है.

हाल ही में कांग्रेस में शामिल होने वाले कीर्ति आजाद के लिए यह अच्छी खबर नहीं है. लेकिन दरभंगा सीट पर कांग्रेस की ओर से ताल ठोकने वाले कीर्ति आजाद से यह सीट छिन सकती है. कीर्ति आजाद कांग्रेस ज्वाइन करने से पहले ही दरभंगा सीट पर लड़ने का दावा कर रहे थे. वहीं, कांग्रेस में आने के बाद भी वह दरभंगा सीट से ही लड़ने का दावा कर रहे थे. लेकिन अब इस सीट पर पेंच फंसती दिख रही है.

वहीं, दरभंगा सीट के अलावा मधुबनी सीट से चुनाव लड़ने वाले अब्दुल बारी सिद्दीकि के लिए भी अच्छी खबर नहीं है. माना जा रहा है कि दरभंगा सीट आरजेडी के पाले में जा सकती है और अब्दुल बारी सिद्दीकि मधुबनी के स्थान पर दरभंगा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसे में कीर्ति आजाद के खाते में कौन सी सीट होगी यह भी बड़ा सवाल उठ रहा है.

दरअसल, कांग्रेस विधायक भावना झा के एक बयान के बाद दरभंगा और मधुबनी सीट पर पेंच फंसने के कयास बिहार की राजनीति में शुरू हो गए. दरभंगा के बेनीपट्टी से विधायक भावना झा ने मधुबनी सीट पर शकील अहमद के लिए मांगा है. उन्होंने कहा कि सिद्दीकि साहब दरभंगा सीट से चुनाव लड़ें तो बेहतर होगा.

वहीं, दरभंगा सीट पर कीर्ति आजाद की दावेदारी को लेकर कहा कि वह बड़े नेता हैं. वह बड़े चेहरे हैं पूरे बिहार में कहीं से भी चुनाव लड़ेंगे तो वह जीत जाएंगे. लेकिन दरभंगा सीट पर सिद्दीकि साहब को मिलेगा तो बेहतर होगा. क्योंकि मधुबनी सीट पर शकील अहमद की मजबूत पकड़ हैं.

वहीं, सूत्रों की मानें तो कांग्रेस और आरजेडी इस बात पर पहले से विचार भी कर रही है. अगर ऐसा हुआ तो कीर्ति आजाद और अब्दुल बारी सिद्दीकि के लिए मुश्किलें बढ़ सकती है.

थरूर के मौसा-मौसी और 13 अन्य ने उठाई केरल में कमल की ज़िम्मेदारी

जब प्रियंका गांधी वाड्रा ने पूर्वी उत्तरप्रदेश की कमान संभाली तभी से वह राष्ट्र भर ए दौरों पर हैं। और तभी से कभी बिहार कभी उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात से वरिष्ठ नेता यहाँ तक की विधायक भी अपने पदों से इस्तीफा दे कर भाजपा का दामन पकड़ रहे हैं। अभी टॉम वादक्कन का मामला शांत भी नहीं हुआ था की शोभना शशिकुमार अपने पति और 13 अन्य सहित भाजपा में शामिल हो गईं। कांग्रेस के अपने को पुन:sथापित करने की राह में यह बड़ी रुकावट है। वहीं शशि थरूर के लिए भी यह अच्छी खबर नहीं है।

कोच्चि: कांग्रेस प्रवक्ता टॉम वडक्कन के भाजपा में शामिल होने के एक दिन बाद तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य शशि थरूर के मौसा-मौसी ने शुक्रवार को भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर ली. थरूर की मां की बहन, सोभना शशिकुमार और उनके पति शशिकुमार तथा 13 अन्य लोग बीजेपी में शामिल हो गए. बीजेपी के राज्य अध्यक्ष पी.एस. श्रीधरन पिल्लै ने सभी का पार्टी में स्वागत किया. थरूर के मौसा-मौसी ने कहा कि एक लंबे समय से वे भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा का अनुसरण कर रहे हैं.

 लोकसभा चुनाव 2019 चुनावों के समर में कांग्रेस प्रवक्‍ता टॉम वडक्‍कन ने बीजेपी का दामन थाम लिया था. केरल में शशि थरूर कांग्रेस के बड़े नेताओं में से एक हैं. वह इस समय त‍िरुवनंतपुरम से सांसद है. बीजेपी की लंबे समय से इस सीट पर नजर है. इस बार भी वह उनके सामने अपना मजबूत उम्‍मीदवार उतार सकती है. एेसी भी चर्चा है कि हाल ही में मिजोरम के राज्‍यपाल पद से इस्‍तीफा देने वाले कुम्‍मानम राजशेखरन यहां से चुनाव लड़ सकते हैं. पद संभालने के 10 महीने के बाद ही उन्होंने त्यागपत्र दे दिया था.

आरएसएस के निष्ठावान व्यक्ति माने जाने वाले और भाजपा की प्रदेश इकाई के पूर्व प्रमुख राजशेखरन (65) को केरल में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बेहतर मौका नजर आ रहा है. इस राज्य में पार्टी अभी तक अपना खाता नहीं खोल पायी है. भाजपा नेतृत्व ने उम्मीदवार सूची की घोषणा नहीं की है, लेकिन प्रदेश पार्टी के सूत्रों ने यहां कहा कि इसकी काफी संभावना है कि राजशेखरन बहुचर्चित तिरूवनंतपुरम सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. पार्टी राज्य में करीब छह सीटों पर अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद कर रही है और यह सीट भी उनमें से एक है.

केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ ने शुरू किया चुनावी अभियान, कांग्रेस व भाजपा के प्रत्याशी तय नहीं
केरल में लोकसभा चुनाव के लिए मतदान 23 अप्रैल को होना है और सत्तारूढ़ एलडीएफ ने इसके लिए सोशल मीडिया पर और घर-घर जाकर प्रचार शुरू कर दिया है. उधर, विपक्षी यूडीएफ तथा भाजपा नीत राजग अभी प्रत्याशियों के नामों पर माथापच्ची करने में जुटे हैं. माकपा नीत वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) ने बहुत पहले उम्मीदवार चयन की प्रक्रिया शुरू कर दी थी. इस मोर्चे ने चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की तारीखें घोषित करने से पहले ही अपने उम्मीदवारों के नाम सार्वजनिक कर दिये थे. वाम मोर्चे के उम्मीदवारों ने मतदाताओं से व्यक्तिगत रूप से मिलना शुरू कर दिया है जबकि विपक्षी दल अभी चुनावी समर में उतरने की तैयारी ही कर रहे हैं.

माकपा की ज्‍यादा से ज्‍यादा सीटों पर नजर
भाकपा के वरिष्ठ नेता और तिरूवनंतपुरम सीट से एलडीएफ के उम्मीदवार सी दिवाकरन ने यहां एक स्थानीय मंदिर में पूजा अर्चना के लिए आईं महिला श्रद्धालुओं से वोट मांगे. एलडीएफ ने अपने छह वर्तमान सांसदों और छह विधायकों को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला किया है. मोर्चे ने इसके अलावा वरिष्ठ नेताओं और अनुभवी पार्टी सदस्यों को टिकटें दी हैं. अधिक से अधिक सीटें हासिल करना माकपा के वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि लोकसभा चुनावों के नतीजों को उनकी तीन साल पुरानी सरकार के कामकाज के मूल्यांकन के तौर पर देखा जाएगा.

सबरीमाला मुद्दे का कितना होगा असर
विजयन को नतीजों के जरिये यह भी साबित करना है कि सबरीमला मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश को अनुमति के उच्चतम न्यायालय के फैसले को लागू करने के उनके निर्णय को आम लोगों से समर्थन प्राप्त हुआ. विपक्षी कांग्रेस नीत संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चे (यूडीएफ) और भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि वे सबरीमला मुद्दे तथा विजयन के ‘‘अड़ियल रवैये’’ को उठाएंगे.

बीजेपी को खाता खुलने की उम्‍मीद
इस बीच, खबर है कि पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी, केपीसीसी प्रमुख एवं वर्तमान सांसद मुल्लापल्ली रामचंद्रन और वरिष्ठ नेता वीएम सुधीरन सहित कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने लेाकसभा चुनाव लड़ने से अनिच्छा जाहिर की है जिससे कांग्रेसी नेतृत्व दुविधा में है. कांग्रेस नीत गठबंधन की चुनाव पूर्व सर्वेक्षणों ने भी आशाएं बढ़ा दी हैं, जिनमें कांग्रेस नीत मोर्चे का केरल में शानदार प्रदर्शन का पूर्वानुमान लगाया गया है. भाजपा नीत राजग इस दक्षिणी राज्य में अपने उम्मीदवारों पर माथापच्ची करने में जुटा है. उसे इस बार केरल में खाता खुलने की उम्मीद है. वर्ष 2014 लोकसभा चुनावों में, केरल की कुल 20 सीटों में से कांग्रेस नीत यूडीएफ ने 12 जबकि माकपा नीत एलडीएफ ने आठ सीटें जीती थीं.

आरएलएसपी के राम बिहारी पुन: राजग में शामिल

बिहार राजनीति के एक प्रमुख घटक रहे आरएलएसपी अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा राजग को छोड़ कांग्रेस और लालू से गलबहियाँ डालने चले गए थे। बहुत मनाने के बाद भी उन्होने अपना हाथ नहीं छोड़ा और अब उन्हें उनकी हठधर्मिता के चलते उनकी पार्टी ही में विघटन हो रहा है, अभी हाल ही में राम बिहारी सिंह का नाम भी इन्हीं कारणों से चर्चा में है।

पटनाः राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) से नेताओं के जाने का दौर जारी है. आरएलएसपी पार्टी से पहले ही कई बड़े नेता जो पार्टी के अहम पद पर पदस्थापित थे वह चले गए. अब पार्टी के संस्थापक सदस्यों में शामिल राम बिहारी सिंह ने शुक्रवार को पार्टी छोड़ दी. जिससे उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली इस पार्टी को लोकसभा चुनाव से पहले एक झटका लगा है.

आरएलएसपी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव राम बिहारी सिंह ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पर कई गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्होंने भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को छोड़कर विपक्ष के महागठबंधन में शामिल होकर लोगों के साथ ‘विश्वासघात’ करने का आरोप लगाया.

सिंह ने पत्रकारों से कहा, ‘‘मैं उन कुछ लोगों में से था जिन्होंने उस समय कुशवाहा का समर्थन किया था जब उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जद (यू) से अपना रास्ता अलग करने का फैसला किया था. लेकिन आज वह सर्वेसर्वा बन गये है. मैंने राजग छोड़कर महागठबंधन में शामिल होने के उनके निर्णय का भी विरोध किया था लेकिन उन्होंने किसी की नहीं सुनी और मनमाने ढ़ंग से निर्णय लिया. ऐसा करके उन्होंने राजग सहयोगी के रूप में उन्हें वोट देने वाले लोगों को धोखा दिया है.’’ 

उन्होंने आरोप लगाया कि टिकटों के बंटवारे में कुशवाहा कॉरपोरेट के हाथों खेल रहे है. हालांकि उन्होंने इस संबंध में विस्तृत रूप से नहीं बताया. लेकिन उन्होंने कहा कि एनडीए में भी उन्हें तीन सीट मिल रही थी. और महागठबंधन में भी इससे अधिक मिलने की उम्मीद नहीं है. ऐसे में वह एनडीए में मंत्री पद पर होने के बाद भी क्यों महागठबंधन में आ गए.

आपको बता दें कि आरएलएसपी के एनडीए छोड़ने के साथ ही पार्टी के दो विधायक और एक एमएलसी ने कुशवाहा का साथ छोड़ दिया. वहीं, हाल ही में पार्टी के दो बर्खास्त नेता नागमणि और प्रदीप मिश्रा ने कुशवाहा पर टिकटों को ‘बेचने’ का आरोप लगाया था. आरएलएसपी प्रमुख ने इन आरोपों को खारिज किया था.

शत्रु ने टिवीटर पर भाजपा को दिया तालाक

बिहार से सांसद और अपनी बात मुखरता से रखने वाले शत्रुघ्न सिन्हा ने अपनी फजीहत बचाते हुए भाजपा से किनारा करने की बात काही है। उन्हे यशवंत सिन्हा जसवंत सिंह और अरूण शोरिए की भांति मोदी विरोधी बताया जाता है। यह कहा जा सकता है की अब भाजपा से भी नेता कांग्रेस या अन्य दलों की ओर जा रहे हैं परंतु नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही से शत्रु मोदी और भाजपा के साथ शत्रुवत व्यवहार करने लगे थे। पूनम सिन्हा के सपा से चुनाव लड़ने की बात पहले ही हो चुकी है, अत: भाजपा छोडने की यह घोषणा औपचारिकता मात्र है

पटनाः बिहार के पटना साहिब से सांसद और बीजेपी के बागी नेता शत्रुघ्न सिन्हा ने अब जल्द ही अपनी अलग राह चुन सकते हैं. उन्होंने अब बीजेपी छोड़ने के सीधे संकेत दे दिए हैं. हालांकि इस बात के संकेत उन्होंने कई मौकों पर दिया है. लेकिन इस बार उन्होंने खास अंदाज में सीधे-सीधे तौर पर दे दिया है कि वह बीजेपी में नहीं होंगे. 

शत्रुघ्न सिन्हा काफी समय से अपनी पार्टी बीजेपी से नाराज चल रहे हैं. वह लगातार पार्टी लाइन से हट कर बयान दे रहे हैं साथ ही अपनी पार्टी को लगातार निशाना बना रहे हैं. वहीं, बीजेपी पार्टी ने भी सिन्हा से मुंह मोड़ लिया है. और बीजपी नेता साफ-साफ कह रहे हैं कि उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा.

शत्रुघ्न सिन्हा ने पार्टी छोड़ने का इशारा करते हुए ट्वीट किया है. उन्होंने शायराने अंदाज में लिखा है. ‘मोहब्बत करने वाले कम न होंगे, (शायद) तेरी महफिल में लेकिन हम न होंगे.’

Sir, the Nation respects you, but the only thing the leadership lacks is credibility & trust factor. “Leadership jo kar rahi hai or jo kah rahi hai, kya log uspe vishwas kar rahein hain? Shayad nahin!” Any way it all seems to be too little and too late? Promises made in the

past are still to be fulfilled. Hope, wish & pray, though I may not be with you anymore – “Mohabbat karne vaale kam na honge, (shayad) teri mehfil mein lekin hum na honge”.92410:26 AM – Mar 15, 2019Twitter Ads info and privacy365 people are talking about this

हालांकि शत्रुघ्न सिन्हा ने कई बार इस तरह के संकेत दिए हैं. उन्होंने पहले भी कहा था कि चुनाव लड़ने का उनका स्थान वहीं होगा लेकिन ठिकाना अलग हो सकता है. उन्होंने हाल ही में लालू यादव और उनकी परिवार से भी मुलाकात की है. वहीं, मीडिया को यह भी बताय था कि वह कांग्रेस से भी बात करेंगे. और जल्द ही सारी चीजें साफ कर देंगे.

सनद रहे: राजनाथ सिंह के खिलाफ पूनम सिन्हा होंगी सपा की उम्मीदवार: सूत्र

वहीं, शत्रुघ्न सिन्हा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर इशारा करते हुए एक अन्य ट्वीट में लिखा, ‘सर, राष्ट्र आपका सम्मान करता है, पर नेतृत्व में विश्वसनीयता और विश्वास की कमी है. नेतृत्व जो कर रहा है और कह रहा है, क्या लोग उसपर विश्वास कर रहे हैं? शायद नहीं. खैर, अब काफी देर हो चुकी है.’

उन्होंने कहा कि जनता से किए गए वादे अभी भी पूरे होने बाकी हैं जोकि अब पूरे हो भी नहीं पाएंगे. आशा, इच्छा और प्रार्थना, हालांकि मैं अब आपके साथ नहीं रह सकता.

चुनाव आयोग पश्चिम बंगाल प्रदेश को ही अतिसंवेदनशील क्षेत्र घोषित करें: भाजपा

निकाय चुनावों में बंगाल का राजनैतिक परिदृश्य कोई भी भूला नहीं है, जहां प्रत्याशियों को नामकङ्कन पत्र दाखिल करने तक नहीं दिया गया था। वहीं चुनाव लड़ने वाले कई प्रत्याशी ममता-सुतों द्वारा मौत की घाट उतार दिये गए थे। जीतने के बावजूद भाजपा कार्यकर्ता भाजपा से निष्कासित जीवन व्यतीत आर रहे हैं। भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं के मामले में बंगाल का नाम केरल के बाद दूसरे नंबर पर है। पुलिस व्यवस्था वाहन्न इन मंतमाई के गुंडों का साथ देती है और खासकर भाजपा कार्यकर्ताओं पर अक्सर धरणे प्रदर्शन के दौरान लाठीयान भाँजती है। वहीं बीरभूमी का इलाका घरेलू शस्त्र एवं आयुध निर्माण के लिए कुख्यात है और माना जाता है की इन सभी कारकों पर ममता का मंतमाई वरदहस्त है।

नई दिल्ली: BJP ने चुनाव आयोग जाकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के पीएम मोदी के बारे में दिए बयान की शिकायत दर्ज कराई है। इसके अलावा आयोग से BJP ने पूरे पश्चिम बंगाल प्रदेश को ही अतिसंवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की भी मांग की। BJP ने आयोग के सामने बंगाल में हिंसा की आशंका जताते हुए राज्य को अतिसंवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की अपील है। अपनी मांगों को लेकर BJP की ओर से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद, निर्मला सीतारमण, जेपी नड्डा समेत बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता आयोग दफ्तर पहुंचे थे।

Twitter पर छबि देखें

Union Minister Ravi Shankar Prasad after BJP delegation meeting with Election Commission in Delhi today: We’ve requested EC to take action against Rahul Gandhi for levelling unverified allegations against PM y’day in Ahmedabad, when the Model Code of Conduct is already in effect.4731:24 अपराह्न – 13 मार्च 2019182 लोग इस बारे में बात कर रहे हैंTwitter Ads की जानकारी और गोपनीयता

चुनाव आयोग के दफ्तर से बाहर आने के बाद केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि ‘चुनावों के मामले में पं. बंगाल का बहुत ही गंदा रिकॉर्ड रहा है। हाल ही में हुए लोकल बॉडी इलेक्शन्स में बंगाल में करीब 100 लोगों की हत्या की गई थी।’ उन्होंने कहा कि ‘हमने चुनाव आयोग से बंगाल में हिंसा की आशंका जताते हुए पूरे प्रदेश को अतिसंवेदनशील क्षेत्र घोषित करने की मांग की। हमने बूथ केंद्रों पर केंद्रीय पुलिस बल तैनात करने की भी मांग की।’

Union Minister Ravi Shankar Prasad after BJP delegation meeting with Election Commission in Delhi today: We have conveyed to the EC that Bengal’s track record in free & fair election is very very deplorable. Recently, 100 people were killed during local body&gram panchayat polls.ANI@ANIUnion Minister Ravi Shankar Prasad after BJP delegation meeting with Election Commission in Delhi today: We have demanded that the state of West Bengal should be declared as super-sensitive state. We’ve also demanded that central forces should be deployed at all polling booths.2321:38 अपराह्न – 13 मार्च 2019Twitter Ads की जानकारी और गोपनीयता100 लोग इस बारे में बात कर रहे हैं

बता दें कि राहुल गांधी ने मंगलवार को गुजरात के अहमदाबाद में रैली में पीएम मोदी पर राफेल डील में अनिल अंबानी को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए कहा था कि उन्होंने अंबानी की जेब में देश का पैसा डाला है। रविशंकर प्रसाद ने कहा, ‘राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के बारे में जो बोला, इतना पैसा उसकी जेब में डाला। मैं तो वह दोहरा भी नहीं सकता। हमने इस बयान की शिकायत कर आयोग से संज्ञान लेने की अपील की है।’