राहुल गांधी ने कहा कि हिंदू धर्म में गुरु का काफी महत्व है. गुरु शिष्य का रिश्ता बेहद महत्वपूर्ण है. राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी ने अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी को जूता मारकर स्टेज से उतार दिया.
चंद्रपुर :
लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी लगातार चुनावी रैलियां कर रहे हैं. राहुल अपनी रैलियों में बीजेपी और पीएम नरेंद्र मोदी पर तीखे हमले बोल रहे हैं. शुक्रवार को चंद्रपुर की रैली में राहुल गांधी ने पीएम नरेंद्र मोदी पर लालकृष्ण आडवाणी का अपमान करने का आरोप लगाया. राहुल गांधी ने कहा कि पीएम मोदी ने अपने गुरु लालकृष्ण आडवाणी को जूता मारकर स्टेज से उतार दिया.
राहुल गांधी ने कहा कि लालकृष्ण आडवाणी पीएम मोदी के गुरु हैं लेकिन यह शिष्य अपने गुरु के सामने हाथ तक जोड़कर नहीं जाता. यह शिष्य अपने गुरु को स्टेज से नीचे उतार देता है. राहुल गांधी ने कहा कि हिंदू धर्म में गुरु का काफी महत्व है. गुरु शिष्य का रिश्ता बेहद महत्वपूर्ण है.
पीएम मोदी ने किए झूठे वादे
राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के
चंद्रपुर के चांदा क्लब में राहुल गांधी ने एक चुनावी सभा को संबोधित किया. राहुल
गांधी ने कहा कि हर खाते में 15 लाख रुपए जमा करवाने का पीएम मोदी का वादा झूठा था.
‘मेरा किया वादा सच्चा है‘
उन्होंने दावा किया कि उनका
गरीबों को हर साल 72 हजार रुपए
और पांच साल में 3.60 लाख रुपए देने का वादा सच्चा है. राहुल गांधी ने कहा कि जिनकी आमदनी 12 हजार रुपए से कम है उन्हे ये मदद दी जाएगी.
कांग्रेस अध्यक्ष ने आरोप लगाया
कि पिछले पांच साल के दोरान पीएम मोदी ने 15 लोगों को लाखों करोड़ों रुपए दिए
हैं. पीएम मोदी कहते हैं कि वे चौकीदार हैं लेकिन इन्होंने सिर्फ पैसेवालों की
चौकीदारी की है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/08/rahul-gandhi-pti-2.jpg443760Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-04-05 16:47:222019-04-05 16:47:24मोदी ने आडवाणी को जूता मार कर स्टेज से उतार दिया: राहुल
राजनीति में कब किसके सितारे बुलंद हो जाए, इसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल होता है. कुछ यूं
ही दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के साथ हुआ है. निरहुआ कभी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव
से मिलने का जुगाड़ लगाया करते थे. अब भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव आज़मगढ़
लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश
यादव भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
नई दिल्ली: राजनीति में कब किसके सितारे बुलंद हो जाए, इसका अनुमान लगाना बेहद मुश्किल होता है. कुछ यूं ही दिनेश लाल यादव उर्फ निरहुआ के साथ हुआ है. भोजपुरी कलाकार दिनेश लाल यादव को बीजेपी ने पूर्वी यूपी की आज़मगढ़ लोकसभा सीट से प्रत्याशी घोषित किया है. इसी सीट से समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष व यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
भोजपुरी
स्टार दिनेश लाल यादव एक ज़माने में समाजवादी पार्टी के नेताओं के बेहद करीबी माने
जाते थे. निरहुआ सपा के लिए चुनाव प्रचार भी कर चुके हैं. निरहुआ सपा नेता सुभाष
पाषी के बेहद अजीज़ दोस्त माने जाते हैं. यूपी की सियासत से जुड़े कई महत्वपूर्ण
लोगों ने बताया कि यही निरहुआ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से मिलने का जुगाड़ लगाया
करते थे. बीजेपी में शामिल होने से कुछ महीनों पहले भी निरहुआ सपा नेता सुभाष पासी
के माध्यम से अखिलेश से मिलने का समय मांग रहे थे. यही नहीं एक वक्त ऐसा भी था जब
निरहुआ सपा का स्टाक प्रचारक भी बनना चाह रहे थे.
लेकिन अब
वक्त का पहिया कुछ यूं घूमा कि दिनेश लाल यादव उसी नेता के ख़िलाफ़ चुनावी मैदान
में उतर रहे हैं, जिनसे
मिलने का समय मांगा करते थे. हालांकि निरहुआ के लिए आज़मगढ़ सीट से चुनाव लड़ना
बेहद चुनौती भरा होगा. क्योंकि ये सीट सपा की परंपरागत सीट मानी जाती है. फिलहाल
आज़मगढ़ लोकसभा सीट से मुलायम सिंह यादव सांसद हैं. पूर्वांचल में आज़मगढ़ को
समाजवादियों का गढ़ भी कहा जाता है.
निरहुआ के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के स्थानीय
नेता होंगे. पिछली बार रमाकांत यादव आज़मगढ़ से लोकसभा का चुनाव लड़े थे और हार गए
थे. रमाकांत का आज़मगढ़ में अच्छा दबदबा है. इस बार भी रमाकांत आज़मगढ़ से चुनाव
लड़ना चाह रहे थे लेकिन बीजेपी ने रमाकांत को टिकट नहीं दिया. रमाकांत की नाराज़गी
निरहुआ पर भारी पड़ सकती है. कांग्रेस अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ अपना प्रत्याशी नहीं
उतारेगी, इससे
मुस्लिम वोटों में बंटवारा नहीं होगा. 2017 के विधानसभा चुनाव में आज़मगढ़ की
10 विधानसभा
सीट में से सपा- 5, बीएसपी- 4 और बीजेपी सिर्फ 1 सीट जीती थी. आज़मगढ़ लोकसभा सीट
का जातीय समीकरण देखें तो यह सीट यादव-मुस्लिम बाहुल्य मानी जाती है.
आज़मगढ़ का जातीय समीकरण:
यादव- 3.5 लाख
मुस्लिम- 3 लाख
दलित- 2.5 लाख
ठाकुर- 1.5 लाख
ब्राह्मण- 1 लाख
राजभर- 1 लाख
विश्वकर्मा-
70 हज़ार
भूमिहार- 50 हज़ार
निषाद- 50 हज़ार
चौहान- 75 हज़ार
वैश्य- 1 लाख
प्रजापति- 60 हज़ार
पटेल- 60 हज़ार
अगर
आज़मगढ़ के इस जातीय समीकरण का विश्लेषण करें तो यादव, मुस्लिम, दलित, विश्वकर्मा, चौहान और प्रजापति सपा का वोट
माना जाता है और ठाकुर, ब्राह्मण, भूमिहार, निषाद, वैश्य, पटेल बीजेपी के परंपरागत वोटर
माने जाते हैं. अब देखना ये होगा कि क्या निरहुआ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की
साइकिल की पीछा कर पाएंगे?
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/04/general-elections-2019akhleshniruha-52_5.jpg455730Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-04-03 18:05:392019-04-03 18:05:42निरहुया अखिलेश के लिए चुनौती बन पाएंगे
आम आदमी पार्टी से गठबंधन की बैठक को शीला दीक्षित बीच ही में छोड़ कर क्यों चलीं गईं थीं, कांग्रेस आज सार दिन इस सवाल से बचती नज़र आई। केजरीवाल के शीला दीक्षित को महत्वपूर्ण नेता न मानने पर भी कांग्रेस की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई। शाम होते होते 4/3 के फार्मूले पर कयास लगने लग पड़े। लगा की बात तकरीबन बन चुकी है। पूछे जाने पर भी कोई ठीक उत्तर नहीं मिला।
नई दिल्ली: दिल्ली में आम आदमी पार्टी के साथ लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन के बारे में सवाल को टालते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मंगलवार को कहा कि पूरे देश में गठबंधनों को लेकर उनकी पार्टी का रुख लचीला है.
राहुल गांधी ने दिल्ली में आप के साथ गठबंधन के सवाल पर सीधे उत्तर नहीं देते हुए कहा,‘इस पर कोई असमंजस नहीं है. स्थिति बहुत स्पष्ट है. देश भर में हमने गठबंधन किए हैं. हमारे दरवाजे गठबंधन के लिए खुले हुए हैं. इस मुद्दे पर हमारा रुख लचीला है.’
राहुल ने की शीला दीक्षित और पीसी चाको के साथ बैठक इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष ने मंगलवार को सुबह पार्टी की दिल्ली इकाई की अध्यक्ष शीला दीक्षित और राज्य के पार्टी प्रभारी पीसी चाको के साथ एक बैठक की. गौरतलब है कि आप के साथ गठबंधन को लेकर अब तक दिल्ली कांग्रेस के नेताओं में भिन्न भिन्न राय सामने आई है.
पिछले दिनों कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बैठक के दौरान डीपीसीसी अध्यक्ष शीला दीक्षित और तीनों कार्यकारी अध्यक्षों राजेश लिलोठिया, देवेंद्र यादव और हारून यूसुफ तथा पूर्व अध्यक्ष जेपी अग्रवाल ने गठबंधन का विरोध किया तो अजय माकन, सुभाष चोपड़ा, अरविंदर सिंह लवली तथा कुछ अन्य नेताओं ने तालमेल के पक्ष में राय जाहिर की. दिल्ली में सभी सात सीटों के लिए 12 मई को वोट डाले जाएंगे. 23 मई को मतगणना होगी.
हालांकि इससे पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सोमवार को कहा था कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव के लिए नयी दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) के साथ गठबंधन करने से इनकार कर दिया है. ‘आप’ प्रमुख ने कहा था कि उन्होंने हाल ही में राहुल गांधी से मुलाकात की थी. कांग्रेस अध्यक्ष ने ‘आप के साथ चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया.’
दिल्ली कांग्रेस की अध्यक्ष शीला दीक्षित के उनसे संपर्क ना करने के बयान पर केजरीवाल ने कहा, ‘हमने राहुल गांधी से मुलाकात की थी. दीक्षित इतनी महत्वपूर्ण नेता नहीं हैं.’ केजरीवाल लोकसभा चुनाव में भाजपा को सत्ता से दूर रखने के लिए लगातार कांग्रेस से गठबंधन करने की अपील कर रहे हैं.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/01/Arvind-Kejriwal-and-Sheila-Dikshit.jpg498885Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-04-02 17:41:522019-04-02 17:43:28शीला की कीमत पर गठबंधन होगा??
मोदी ने दिल्ली के तालकटोरा मैदान से ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान के तहत समर्थकों को संबोधित किया
पाक को छोड़ दो वह अपनी मौत मरेगा, हम आगे बढ़ने पर ध्यान दें
कांग्रेस पर तंज कसा- जनता के पैसों पर कोई पंजा नहीं पड़ने दूंगा
प्रधानमंत्री बोले- पिछले लोकसभा चुनाव से पहले आलोचकों ने मेरा ज्यादा प्रचार किया
नई दिल्ली:प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने
रविवार को ‘मैं भी
चौकीदार’ अभियान के
तहत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से पेशेवर, कारोबारियों व चौकीदारों से
बातचीत की. इस दौरान पीएम मोदी ने अपने चिरपरिचित अंदाज में भाषण की शुरुआत भारत
माता की जय के नारे के साथ की. प्रधानमंत्री मोदी ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए
कहा कि मैं देश की जनता के पैसों पर पंजा नहीं पड़ने दूंगा. उन्होंने कहा कि एक चौकीदार के रूप में मैं अपनी
जिम्मेदारी निभाऊंगा.
लोगों को
संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर अप्रत्यक्ष रूप से
निशाना साधा. पीएम ने कहा कि कुछ लोगों का विकास नहीं हो पाता है. यह विकास
बौद्धिक स्तर पर रुक जाता है. उन्होंने कहा कि देश की जनता मुझे चौकीदार के रूप
में पसंद करती है. जनता को राजा-महाराजा पसंद नहीं आते हैं. उन्होंने कहा कि
चौकीदार न कोई व्यवस्था है, न कोई
यूनिफॉर्म की पहचान है. उन्होंने कहा कि चौकीदार एक भावना है. यह भावना देश की
जनता में लगातार बढ़ रही है.
उन्होंने
कहा कि स्वच्छता का आंदोलन देश की जनता का आंदोलन हो गया है. सवा सौ करोड़ लोगों
ने चौकीदारी की जिम्मेदारी निभाई. उन्होंने कहा कि चौकीदारी का सिद्धांत महात्मा
गांधी ने देश को दिया था. यह गांधी का सिद्धांत है. 2014 में भाजपा ने मुझे दायित्व दिया
उसके बाद मुझे देश के कोने-कोने में जाने की जरूरत पड़ी. तब मैंने देश के लोगों से
कहा था कि आप मुझे जो दायित्व दे रहे हैं उसका मतलब है कि आप एक चौकीदार बैठा रहे
हैं.
पीएम मोदी ने कहा कि राजनीतिक हितों से ऊपर उठकर, नफा-नुकसान को किनारे रखकर देश को सबसे ऊपर रखा. पीएम ने बालाकोट हमले के सवाल पर यह उत्तर दिया. उन्होंने कहा कि पूर्ण बहुमत की सरकार देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. दुनिया में भारत की आवाज सुनाई देने का सीधा अर्थ बहुमत की सरकार है. उन्होंने कहा कि बालाकोट पर कार्रवाई मैंने नहीं की, देश के जवानों ने की, हमारे सुरक्षा बलों ने की.
पीएम मोदी
ने कहा कि दुनिया का कोई नेता जब मुझसे हाथ मिलाता है या गले मिलता है, तो उसे मोदी नहीं दिखता, पूर्ण बहुमत वाली सरकार के माध्यम
से सवा सौ करोड़ देशवासी दिखते हैं. पीएम मोदी ने कहा कि मेरे लिए चुनाव नही देश
प्राथमिकता है. उन्होंने आतंकवाद पर निशाना साधते हुए कहा कि हम आतंकियों को
उन्हीं की भाषा में उनकी ही जमीन पर जवाब देंगे. उन्होंने कहा कि बहुमत की सरकार
ही ऐसे कड़े फैसले ले सकती है.
पीएम मोदी
ने भ्रष्टाचार के सवाल पर कहा कि हमारी सरकार ने कई लोगों को जेल के दरवाजे तक
पहुंचा दिया है. उन्होंने कहा कि कुछ लोग जमानत पर चल रहे हैं, कुछ जमानत के लिए कोशिश में लगे
हैं. उन्होंने कहा कि लुटेरों को देश की पाई-पाई चुकानी होगी. उन्होंने कहा कि कुछ
लोग विदेश की अदालतों में कहते हैं कि भारत की जेलों की स्थिति अच्छी नहीं है. अब
इनको कोई महल में थोड़ी रखेगा. अंग्रेजों ने गांधी जी को जिस जेल में रखा था, मैं उनको उससे अच्छी जेल नहीं दे
सकता हूं. उन्होंने कहा कि 2019 के बाद कई और भ्रष्टाचारी जेल जाएंगे.
उन्होंने कहा कि अगर मोदी अपने राजनीतिक भविष्य का सोचता, तो वो मोदी नहीं होता. उन्होंने कहा कि अगर इसी राजनीतिक पैंतरेबाजी से देश चलाना होता, तो मोदी की देश को कोई जरूरत नहीं थी. उन्होंने कहा कि हमारा देश 6वीं आर्थिक ताकत बन गया है.
उन्होंने
कहा कि मैंने देश में एक माहौल बनाया है और आगे भी बनाना है कि हमे दुनिया की
बराबरी करनी है. हमने बहुत सारा समय भारत-पाकिस्तान करने में ही गुजार दिया.
पाकिस्तान अपनी मौत मरेगा उसे छोड़ दो, हमे आगे बढ़ना है बस इसी पर हमारा
ध्यान रहना चाहिए.
पीएम मोदी ने कहा कि कांग्रेस के झूठ सीजनल होते हैं. सीजन के
हिसाब से वो झूठ बोलते हैं, फिर मैदान
में छोड़ते हैं और इनका ईको सिस्टम इसे उठाता है. उन्होंने कहा कि असहिष्णुता जैसे
झूठ अब देश में नजर नहीं आते हैं. उन्होंने कहा कि उनके झूठ की उम्र भी ज्यादा
नहीं, कुछ झूठ की
तो ‘बालमौत’ हो जाती है, लेकिन फिर भी उसे खींचते रहते
हैं. उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि एक तरफ झूठ की फैक्ट्री चली है, रोज नए-नए झूठ आ रहे हैं.
पीएम मोदी
ने अप्रत्यक्ष रूप से राहुल गांधी पर निशाना साधते हुए कहा कि जो झूठ बोलता है तो
उसके लिए पहली शर्त होती है कि उसकी मेमोरी पावर तेज होनी चाहिए. लेकिन वो एक दिन
एक आंकड़ा बोले, अगले दिन
दूसरा, उनकी झूठ
की फैक्ट्री उन्हें पकड़ा देती है. मेमोरी पावर कम होने के कारण वो पकड़े जाते
हैं.
उन्होंने
कहा कि आजकल कुछ लोग चुनावी वादों की रेवड़ियां बांट रहे हैं. पहली बार वोट देने
वालों से कहना चाहता हूं कि वादे करने वालों का ट्रैक रिकॉर्ड देखिए, उनके टेप रिकॉर्डर को मत सुनिए.
उन्होंने कहा कि बीते 5 वर्ष देश
की आवश्यकताओं को पूरा करने को मैंने प्राथमिकताएं दी. अगले 5 वर्ष में मेरा फोकस आकांक्षाओं को
पूर्ण करने पर होगा. आने वाले दिनों में मेरा पहला काम होगा देश को लूटने वालों के
प्रति और ज्यादा कड़क होना और देश को 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी के क्लब में
ले जाना हैं.
पीएम मोदी ने कहा कि वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के
माध्यम से 500 से ज्यादा जगहों पर लाखों लोगों से संवाद
करने का मौका मिला. इस दौरान उन्होंने वहां मौजूद लोगों के सवालों के भी जवाब दिए.
पीएम मोदी
ने मिशन शक्ति पर कहा किहमारे एक बुद्धिमान नेता कहते हैं कि इसे सीक्रेट रखना
चाहिए था, सबके सामने
नहीं लाना चाहिए था. मैं उन बुद्धिमान से कहना चाहता हूं कि कुछ सामान्य बुद्धि का
प्रयोग कर लीजिए. जब अमेरिका, चीन और रूस ने इसे डंके की चोट पर किया तो हम गुपचुप क्यों
करें.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/04/pariksha-par-charcha-2-0_14535dd4-23c1-11e9-a405-f80f48f5557a1-1.jpg545970Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-04-01 02:33:532019-04-01 02:33:56मैं देश की जनता के पैसों पर पंजा नहीं पड़ने दूंगा: चौकीदार नरेंद्र मोदी
बिहार में गठबंधन के धाराशाही होते जान पड़ने पर स्थिति अजीब – ओ – गरीब बनी हुई है, ऐसा जान पड़ता है कि इस बार मतदाताओं के लिए यह लोक सभा परीक्षा बहुत ही कठिन होने वाली है, जिसमें उनको निर्णय लेने में मुश्किल आ सकती है। दिमागी कसरत के बिना मतदान होना एक टेढ़ी खीर है। मुजजफ्फरपूर सीट को ही लें तो उम्मीदवारों कि पृष्ठभूमि बहुत ही सबल है, एक ही जाती से संबन्धित दोनों निषाद ही जन साधारण में विख्यात हैं, इसी तरह नालंदा में एक अलग दृष्टिकोण से ऊमीद्वार उतरे गए हैं यहाँ भी गठबंधन कि असफलता मतदाता को आधार में खड़ा करने के लिए काफी है।
कैंडिडेट के नाम सामने आने के बाद बिहार में कुछ सीटों पर लड़ाई एकतरफा नजर आने लगी है. दोनों ही तरफ से ऐसी स्थिति बन रही है.
बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) और महागठबंधन की तरफ से लोकसभा चुनाव को लेकर लगभग सीट बंटवारे पर स्थिति साफ हो गई है. सीट बंटवारे से लेकर उम्मीवारों तक का चयन हो गया है. कैंडिडेट के नाम सामने आने के बाद बिहार में कुछ सीटों पर लड़ाई एकतरफा नजर आने लगी है. दोनों ही तरफ से ऐसी स्थिति बन रही है.
शुरुआत तिरहुत प्रमंडल के मुजफ्फरपुर सीट से करते हैं. यहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) है वहीं, दूसरी तरफ नई नवेली विकासशील इंशान पार्टी (वीआईपी). बीजेपी ने जहां वर्तमान और स्थानीय सांसद अजय निषाद को चुनावी मैदान में उतारा है वहीं, वीआईपी ने राजभूषण चौधरी निषाद को सिंबल दिया है. राजनीति में नेताओं की लोकप्रियता मायने रखती है. मुजफ्फरपुर मल्लाहों की सीट मानी जाती है. इसलिए दोनों ही तरफ से एक ही जाति के उम्मीदवार को मैदान में उतारा गया है.
BJP प्रत्याशी के साथ है पिता की विरासत बीजेपी प्रत्याशी अजय निषाद के साथ उनके पिता की विरासत तो है ही, साथ ही पांच साल का उनका कार्यकाल भी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में वह लगभाग 50 प्रतिशत वोट लाकर चुनाव जीतने में सफल रहे थे. इसबार जेडीयू भी बीजेपी के साथ है. ऐसे में एक मजबूत समीकरण के सामने एक नई नवेली पार्टी का एक ऐसा उम्मीवार जिसे पहचानने के लिए मतदाताओं को दिमाग पर बल देना पड़े वह किस हद तक मुकाबला कर पाएंगे यह कहना मुश्किल है. वैसे राजनीति अनिश्चितताओं का खेल है. कुछ भी संभव है. लेकिन मौजूद समीकरण के मुताबिक, महागठबंधन यहां एनडीए को वॉक ओवर देती ही नजर आ रही है.
सीतमढ़ी में जेडीयू ने दिया नए नवेले उम्मीदवार को टिकट सीतामढ़ी को लेकर भी स्थिति कुछ ऐसी ही है. जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने जहां एक स्थानीय डॉक्टर वरुण कुमार को लोकसभा का टिकट दिया है वहीं, महागठबंधन की तरफ से राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने पूर्व सांसद अर्जुन राय को चुनावी मैदान में उतारा है. 2014 में यह सीट राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (आरएलएसपी) ने जीती थी. इस चुनाव में अर्जुन राय बतौर जेडीयू उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे थे. आरजेडी ने सीताराम यादव को चुनावी मैदान में उतारा था. 2019 के लोकसभा चुनाव में एक तो आरएलएसपी और आरजेडी साथ-साथ चुनाव लड़ रही है वहीं, जेडीयू ने एक नए नवेले उम्मीवार को मैदान में उतारा है. ऐसी स्थिति में पलड़ा आरजेडी उम्मीवार का ही भारी दिख रहा है.
नालंदा में HAM का कमजोर कैंडिडेट सीट बंटवारे में तेजस्वी यादव ने नालंदा सीट हिन्दुस्तान आवाम मोर्चा (हम) के खाते में देकर लगभग जेडीयू की राह आसान कर दी है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह क्षेत्र नालंदा से जेडीयू ने स्थानीय और वर्तमान सांसद कौशलेंद्र कुमार को फिर मौका दिया है. दूसरी तरफ, हम ने यहां से हम ने अशोक कुमार आजाद चंद्रवंशी को टिकट दिया है. 2014 के चुनाव परिणाम पर अगर नजर डालें तो इसबार जेडीयू उम्मीदवार और मजबूत स्थिति में उभर कर सामने आ रहे हैं. 2014 में इस सीट पर लड़ाई लोजपा और जेडीयू के बीच में थी. इस चुनाव में दोनों साथ हैं. बीते चुनाव के मत प्रतिशत को मिला दें तो यह आंकड़ा 68 प्रतिशत से अधिक का हो रहा है. ऐसे में इस सीट पर आप 2019 की लड़ाई का अंदाजा लगा सकते हैं.
सीवान में आरजेडी को हो सकता है फायदा अब बात सीवान लोकसभा सीट की. एनडीए के बंटवारे में यह सीट जेडीयू के खाते में गई है. वहीं, महागठबंधन की तरफ से आरजेडी ने यहां से उम्मीदवार उतारा है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने ओमप्रकाश यादव को टिकट दिया था. उन्होंने आरजेडी के बाहुबली नेता शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब को शिकस्त दी थी. ओमप्रकाश यादव के कद को जानने के लिए आपको 2009 के परिणाम को भी समझना होगा. इस चुनाव में बिहार में जारी प्रचंड नीतीश लहर में भी उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जीत दर्ज की थी. बीजेपी के खाते से सीट छिनने पर वह खुलकर नाराजगी व्यक्त कर चुके हैं. उनके बागी तेवर अपनाने की संभावना भी प्रबल है. ऐसे में जेडीयू उम्मीदवार कविता सिंह, हिना शहाब के सामने कमजोर प्रत्याशी साबित हो सकती हैं.
सिद्दीकी के उतरने बाद दरभंगा में बीजेपी के लिए मुश्किल लड़ाई दरभंगा सीट पर भी बीजेपी के लिए स्थिति कुछ उत्साहजनक नहीं है. सीट बंटवारे में पार्टी ने अपनी परंपरागत सीट तो बचा ली, लेकिन एक कमजोर प्रत्याशी को चुनावी मैदान में उतार दिया है. बीजेपी ने बेनीपुर से पूर्व विधायक गोपालजी ठाकुर को चुनावी मैदान में उतारा है, जो कि 2015 के विधानसभा चुनाव में अपनी सीट पर 25 हजार से अधिक मतों से चुनाव हार गए थे. उनका मुकाबला आरजेडी के कद्दावर नेता और बिहार के पूर्व वित्त मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी से होगा. बीते कई चुनावों में यहां से अली अशरफ फातमी चुनाव लड़ते आ रहे थे. लेकिन इस बार पार्टी ने उम्मीदवार बदला है. यह देखा गया है कि इस सीट पर ध्रुवीकरण की पूरी कोशिश की जाती है. लेकिन अब्दुल बारी सिद्दीकी का चेहरा सामने होने के कारण इसकी संभावना कम दिखती है. वहीं, दरभंगा सीट पर मल्लाह करीब 70 हजार जाति के वोटर हैं, जो कि इस बार दोनों ही गठबंधन का खेल बना या बिगाड़ सकते हैं
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/03/Untitled-design-4-4.jpg5641008Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-03-31 04:36:182019-03-31 04:36:20गठबंधन बचाने के फेर में कई सीटों के नतीजे एक तरफा होंगे
चुनाव की तारीखें जैसे जैसे करीब आ रही हैं, राजनीतिक दलों के बीच आरोप प्रत्यारोप और तीखे होते जा रहे हैं. पहले कांग्रेस ने कर्नाटक के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा के सहारे बीजेपी आलाकमान पर निशाना साधा. अब बीजेपी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है. अब केंद्रीय मंत्री और पटना साहिब से बीजेपी उम्मीदवार रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी पर हमला बोलते हुए उनकी आय का स्रोत पूछ लिया है. उन्होंने कहा, राहुल गांधी बताएं कि उनकी संपत्ति जो 2004 में 55 लाख थी, वह 2014 में बढ़कर 9 करोड़ कैसे हो गई.
रविशंकर
प्रसाद ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में पूछा, राहुल गांधी जब से राजनीति में आए
हैं, उनकी आय का
स्रोत सिर्फ सांसद का वेतन है. इसके अलावा कोई दूसरा आय का स्रोत नहीं है. उनके 2004 के एफिडेविट में उनकी अाय 55 लाख 38 हजार रुपए बताई गई थी. 2009 तक आते आते ये इनकम 2 करोड़ हो गई. वहीं जब उन्होंने 2014 का चुनाव लड़ा तो उनकी आय बढ़कर 9 करोड़ हो गई. रविशंकर प्रसाद ने
निशाना साधते हुए कहा कि हम सब ये जानना चाहते हैं कि 55 लाख से आपकी इन्कम बढ़कर 9 करोड़ कैसे हो गई.
‘येदियुरप्पा डायरी’ पर स्पष्टीकरण दें प्रधानमंत्री :
वेणुगोपाल
बता दें कि
कांग्रेस ने आरोप लगाया था कि येदियुरप्पा ने सीएम रहते हुए बीजेपी आलाकमान को
करोड़ों रुपए दिए थे. कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कर्नाटक के
पूर्व मुख्यमंत्री बी एस येदियुरप्पा द्वारा भाजपा के नेताओं को कथित तौर पर धन दिए
जाने से जुड़ी डायरी को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और कहा कि
इस मामले पर मोदी को स्पष्टीकरण देना चाहिए.
वेणुगोपाल ने एक बयान में कहा, ‘येदियुरप्पा डायरी से 1800 करोड़ रुपये के बड़े भ्रष्टाचार
का संकेत मिलता है. इसकी जांच की जरूरत है क्योंकि इससे भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने
के मोदी सरकार के दावे को भंडाफोड़ होता है.’
उन्होंने कहा, ‘इन डायरी
से सामने आई बातों पर प्रधानमंत्री को स्पष्टीकरण देना चाहिए. प्रधानमंत्री इसका
खुलासा करें कि भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने पैस लिए थे या नहीं.’ कांग्रेस महासचिव ने येदियुरप्पा
से जुड़े भ्रष्टाचार के आरोपों का उल्लेख करते हुए कहा कि इस मामले की जांच लोकपाल
से होनी चाहिए.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/03/283629017-ravishankarrahulgandhi_6.jpg450980Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-03-23 14:50:542019-03-23 14:54:55राहुल बताएं की 55 लाख 9 करोड़ कैसे बने: रवि शंकर प्रसाद
40 लोक सभा सीटों वाले बिहार में विपक्ष ने सीटों का बटवारा कर लिया है। लालू के परिवार ने कांग्रेस को 40 में से मात्र 9 सीटें दिन हैं, यकीन है की गठबंधन मजबूत रहेगा। अस्तित्व की लड़ाई के लिए तैयारी कर रही कांग्रेस के लिए यह कैसा समाचार है यह तो समय ही बताएगा फिलहाल सब ठीक ही जान पड़ता है।
नई दिल्ली:
बिहार में महागठबंधन की सीटों का ऐलान हो चुका है. काफी मशक्कत के बाद सभी दल सहमत हो गए हैं. इस समझौते के तहत सबसे ज्यादा सीटें आरजेडी को मिली हैं. महागठबंधन में सदस्य दलों के बीच बिहार की 40 सीटों पर हुये बंटवारे के तहत आरजेडी 20, कांग्रेस नौ, आरएलएसपी को पांच और वीआईपी एवं एचएएम को तीन तीन सीट दी गई हैं. सभी 40 सीटों का बंटवारा हो गया है लेकिन महागठबंधन ने सीपीआई को कोई सीट नहीं दी है. सीपीआई ने बेगूसराय से कन्हैया कुमार को अपना उम्मीदवार बनाया हुआ है. लेकिन अब ऐसा होता दिख नहीं रहा. महागठबंधन ने कोई भी सीट सीपीआई को नहीं दी है.
हालांकि आरजेडी की ओर से मनोज झा ने कहा है कि वह एक सीट पर सीपीआई एमएल को समर्थन देंगे, सीपीआई को नहीं. महागठबंधन के नजरिए से सीपीआई काफी निराश है. लेकिन सबसे ज्यादा निराशा जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार को होगी. हालांकि ये भी माना जाता है कि लालू प्रसाद यादव के बेटे तेजस्वी यादव कन्हैया कुमार को पसंद नहीं करते हैं. कन्हैया और तेजस्वी एक ही उम्र के हैं. ऐसे में तेजस्वी को डर है कि कहीं कन्हैया उनकी ही जमीन हथिया कर राजनीति में आगे न बढ़ जाएं.
बेगूसराय पर रहेगी नजर
सीपीआई ने कन्हैया कुमार को बेगूसराय से अपना उम्मीदवार बनाया है. वह बेगूसराय के ही रहने वाले हैं. ये सीट भूमिहार बहुल है. माना जा रहा है कि बीजेपी यहां से गिरिराज सिंह को अपना उम्मीदवार बना सकती है. ऐसे में आरजेडी को लगता है कि वह गिरिराज के सामने कमजोर साबित होंगे.
आरजेडी मुस्लिम केंडीडेट पर दांव की फिराक में है
आरजेडी बेगूसराय सीट पर किसी मुस्लिम चेहरे को उतार सकती है. ये सीट कम्यूनिस्ट पार्टी का बड़ा गढ़ रही है. पिछली बार यहां से बीजेपी के भोला सिंह जीते थे. उन्होंने भी अपनी राजनीति कम्यूनिस्ट पार्टी से हीशुरू की की थी. आरजेडी इस बार तनवीर हसन को अपना उम्मीदवार बनाना चाहती है जो 2014 के चुनाव में 60 हजार वोट से हार गए थे. 2009 में इस सीट को जेडीयू के मोनाजिर हसन ने जीता था.
लालू के वादे के बावजूद महागठबंधन से भाकपा को बाहर रखना दुखद : रेड्डी
भाकपा के महासचिव सुधाकर रेड्डी ने बिहार में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर महागठबंधन में भाकपा को शामिल नहीं करने पर दुख जताते हुये कहा है कि इस मामले में राजद प्रमुख लालू प्रसाद से सहमति कायम होने के बावजूद इस पर अमल नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण है. रेड्डी ने शुक्रवार को महागठबंधन में राजद सहित अन्य दलों के बीच सीट बटवारे पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा, ‘‘महागठबंधन में वामदलों को शामिल नहीं करना दुर्भाग्यपूर्ण है. भाकपा की बिहार इकाई बदली हुयी परिस्थितियों की 24 मार्च को समीक्षा कर भविष्य की रणनीति तय करेगी.’
रेड्डी ने कहा, ‘‘पिछले साल मुझसे मुलाकात के दौरान लालू प्रसाद ने मिलकर चुनाव लड़ने पर सहमति जतायी थी. लालू जेल में हैं इसलिये मुझे नहीं मालूम लालू की बात को उनके बेटे के पास किस तरह पेश किया गया.’ भाकपा ने बिहार की बेगूसराय सीट पर जेएनयू के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार को अपना उम्मीदवार घोषित किया है. रेड्डी ने कहा कि लालू प्रसाद के आश्वासन के आधार पर पार्टी को उम्मीद थी कि इस सीट पर विपक्षी दल एकजुट होकर भाजपा को चुनौती देंगे.
उन्होंने कहा, ‘‘महागठबंधन का स्वरूप तय होने के बाद अब यह साफ है कि हमें बिहार में अपने बलबूते चुनाव लड़ना होगा. बेशक हम बिहार में चुनाव लड़ेंगे और इस बारे में स्पष्ट रणनीति पर जल्द फैसला किया जायेगा.’
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/03/kanhaiya-kumar-jnu-01-450x300.jpg300450Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-03-22 19:14:332019-03-22 19:19:31बिहार कांग्रेस के खाते में 40 में से 9 सीटें, कन्हैया खाली हाथ
Exactly five years ago, at the onset of the summer of 2014, the
BJP surprised everyone by announcing Smriti Irani as its candidate from Amethi.
Irani was BJP’s giant killer, to take on Rahul Gandhi, heir of ruling Congress
and prince of India’s mightiest political family.
Amethi was Congress’ first family’s Pocket borough since the
1980s. The constituency has the distinction of sending Sanjay Gandhi, Rajeev
Gandhi (four terms), Sonia Gandhi and whosoever it named, for example, Satish
Sharma and Sanjay Singh. Rahul had won twice from Amethi, his victory margin in
the election prior to 2014 was over 3.70 lakh votes. Congress had been
projecting him as the future of the nation.
Smriti was tasked to take on the Gandhi scion on his home turf,
which even the BJP, its supporters and Sangh Parivar thought was impenetrable.
It was a challenge not many would like to take. She was a complete outsider to
Uttar Pradesh. A television actor-turned-politician, Irani had contested one
parliamentary election from Chandni Chowk against Kapil Sibal and lost it
badly. She belonged to a community, Parsi (by marriage), which perhaps didn’t
have any voter in that backward area called Amethi. It was brave on part of BJP
and Irani to go to a state where caste was a guiding and in some cases the
abiding principle of politics.
But Irani had the grit and appetite to take the challenge, and
stamina to pursue it relentlessly to succeed. Over a period of time, having
worked in various posts in the party — secretary, Mahila Morcha chief and
vice-president — and as a Rajya Sabha MP and campaigner, Irani had proved that
she was a fighter and had a propelling capability to leave a mark.
Her beginning in Amethi was tentative. Two persons who believed (who mattered most) in her capacity were Narendra Modi, the then prime ministerial candidate of BJP and Amit Shah the then general secretary in-charge of Uttar Pradesh.
Kumar Vishwas, who was then with the Aam Admi Party, had made an
early beginning in Amethi. And the people in the constituency lent an ear to
him. That made it clear that a big segment of the constituency was willing to
accept somebody else as their leader, provided they had the right quality, grit
and the strong backing of a strong party, to give Rahul a run for his money.
Vishwas had great oratorical skills but didn’t have the party.
Irani with her energetic presence, sharp oratorical skills and
the backing of BJP came as a person which the people, perhaps, had wanted to
see for several decades. Still, not many in Amethi and outside the constituency
believed that she may win.
Amethi had been a living example of how leaders, and that too
the topmost leaders of the party which ruled India neglected their constituency
and believed that only cosmetic work and occasional presence would ensure their
victory in perpetuity. She was there to challenge that.
Though she had lost, as the result showed, she caused a great
deal of scare in the Congress camp. Rahul’s victory margin was reduced from
3.70 lakh to 1.07 lakh.
Those in the rival camps dismissed her as a one time phenomenon
in Amethi and believed that she may not return after the 20014 election. But
contrary to their beliefs, Irani made Amethi her second home, preparing for
2019 elections, and taking up a series of developmental projects in the region.
Her name figured in the first list of BJP’s candidates for Lok
Sabha, which was released on Thursday evening. No surprises this time. It was
taken that she may be the candidate to challenge the Congress president.
The difference between Irani’s candidacy in 2014 and 2019 is
noteworthy – this time around, the BJP and its sympathisers believe that she
may win to write one of important chapters in India’s political history.
In the last five years, what Irani has done very effectively is, as they call “gherabandi (fencing)” of Amethi and Rahul Gandhi. Recently, a manufacturing unit for AK-203 Kalashnikov rifles, an India-Russia joint venture, was inaugurated in the presence of Prime Minister Narendra Modi, Uttar Pradesh chief minister Yogi Adityanath and Union Minister of Defence Nirmala Sitharaman. Ironically, Rahul had laid the foundation stone for the arms factory in 2007 but not much had moved from there because there were a series of confusions.
By visiting Amethi to open a unit as big as this, Modi has
clearly displayed his intent and purpose, how he values Irani as a leader and
Amethi as her constituency.
In the upcoming election for the Amethi Lok Sabha constituency,
Smriti has a strong start. She has already made Congress worry, forcing the
party to look another seat for Rahul in Karnataka or in Maharashtra. One after
another, senior Congress leaders from south and west India are offering a seat
to Rahul in their state.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/07/RAHUL-1-1-1.jpg498884Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-03-22 17:31:482019-03-22 17:31:51Rahul may opt a safe seat in Karnatka or Maharashtra
आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष केजरीवाल शीला दीक्षित के गुनाहों की फ़ाइल कब की गुमा चुके हैं लेकिन शीला हैं की मानती ही नहीं। हर जगह हर बार कांग्रेस और दूसरे दलों से ठुकराये गए केजरीवाल, यशवंत सिन्हा के मार्फत फिर राहुल से गुहार लगाते देखे गए “प्लीज़ वाली”।
नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी के अध्यक्ष और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने मंगलवार को कांग्रेस के साथ गठबंधन की खबरों को खारिज कर दिया. अरविंद केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से हमसे कह दिया था कि लोकसभा चुनाव 2019 (Lok Sabha Elections 2019) के मद्देनजर कोई गठबंधन नहीं होगा. उन्होंने कहा कि हमारी कांग्रेस के साथ कोई बातचीत नहीं चल रही है. केजरीवाल ने उन मीडिया रिपोर्टस को गलत बताया, जिनमें कांग्रेस और आम आदमी पार्टी का गठबंधन तय होने की बात कही जा रही थी.
अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमारा कांग्रेस के साथ कोई गठबंधन नहीं हो रहा है. इस तरह की खबरें पर विराम लगाते हुए उन्होंने कहा कि आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन तय होने की खबरें कांग्रेस के द्वारा ही फैलाई जा रही हैं. इसमें कोई सच्चाई नहीं है. कांग्रेस ने हमें पहले ही इसपर अपना पक्ष बता दिया है. हम कांग्रेस के साथ कोई बातचीत नहीं करेंगे. बता दें कि दिल्ली में कांग्रेस लगातार गठबंधन की खबरों को नकारती रही है.
कांग्रेस का एक धड़ा अभी भी गठबंधन के पक्ष में है. कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी पीसी चाको गठबंधन के प्रयास कर रहे हैं. वहीं, दिल्ली की पूर्व सीएम शीला दीक्षित इस गठबंधन के खिलाफ मानी जा रही है. इसके साथ ही पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी नेता यशवंत सिन्हा ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को सलाह देते हुए ट्वीट किया कि प्लीज बिहार, झारखंड और दिल्ली में फैसला आज कर लें, पहले ही बहुत देर हो चुकी है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/07/arvind-1.jpg362640Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-03-19 18:53:352019-03-19 18:53:37केजरीवाल को कांग्रेस की कोरी ना
भाजपा में हाशिये पर आए किर्ति आज़ाद अब कांग्रेस में भी अपनी ज़मीन तलाशते नज़र आ रहे हैं। उन्हे चुनोटी गठबंधन ही से मिल रही है। दरभंगा सीट पर कीर्ति आजाद और मधुबनी सीट पर अब्दुल बारी सिद्दीकि चुनाव लड़ने का दावा कर चुके हैं। दरअसल यह दोनों सीटें आरजेडी के खाते में जातीं जान पड़तीं है।
दरभंगाः महागठबंधन में सीटों का फॉर्मूला तय होने की बात कही जा रही है. हालांकि लोकसभा चुनाव 2019 के लिए सीटों पर उम्मीदवारी की पेंच महागठबंधन से लेकर एनडीएतक फंसी है. महागठबंधन में सीट शेयरिंग के फॉर्मूले को लेकर कहा जा रहा है कि कांग्रेस 11 सीटों पर बिहार में चुनाव लड़ेगी. सूत्रों की माने तो 21+11+5+2+1 का फॉर्मूला अपनाया गया है. यानी की आरजेडी 21, कांग्रेस 11, आरएलएसपी 5, हम 2 और वीआईपी को 1 सीट मिलेगी. लेकिन उम्मीदवारी को लेकर कई सीटों पर गणित उलझ रही है. जिसमें अब दरभंगा और मधुबनी सीट को लेकर भी पेंच फंसती नजर आ रही है.
हाल ही में कांग्रेस में शामिल होने वाले कीर्ति आजाद के लिए यह अच्छी खबर नहीं है. लेकिन दरभंगा सीट पर कांग्रेस की ओर से ताल ठोकने वाले कीर्ति आजाद से यह सीट छिन सकती है. कीर्ति आजाद कांग्रेस ज्वाइन करने से पहले ही दरभंगा सीट पर लड़ने का दावा कर रहे थे. वहीं, कांग्रेस में आने के बाद भी वह दरभंगा सीट से ही लड़ने का दावा कर रहे थे. लेकिन अब इस सीट पर पेंच फंसती दिख रही है.
वहीं, दरभंगा सीट के अलावा मधुबनी सीट से चुनाव लड़ने वाले अब्दुल बारी सिद्दीकि के लिए भी अच्छी खबर नहीं है. माना जा रहा है कि दरभंगा सीट आरजेडी के पाले में जा सकती है और अब्दुल बारी सिद्दीकि मधुबनी के स्थान पर दरभंगा सीट से चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसे में कीर्ति आजाद के खाते में कौन सी सीट होगी यह भी बड़ा सवाल उठ रहा है.
दरअसल, कांग्रेस विधायक भावना झा के एक बयान के बाद दरभंगा और मधुबनी सीट पर पेंच फंसने के कयास बिहार की राजनीति में शुरू हो गए. दरभंगा के बेनीपट्टी से विधायक भावना झा ने मधुबनी सीट पर शकील अहमद के लिए मांगा है. उन्होंने कहा कि सिद्दीकि साहब दरभंगा सीट से चुनाव लड़ें तो बेहतर होगा.
वहीं, दरभंगा सीट पर कीर्ति आजाद की दावेदारी को लेकर कहा कि वह बड़े नेता हैं. वह बड़े चेहरे हैं पूरे बिहार में कहीं से भी चुनाव लड़ेंगे तो वह जीत जाएंगे. लेकिन दरभंगा सीट पर सिद्दीकि साहब को मिलेगा तो बेहतर होगा. क्योंकि मधुबनी सीट पर शकील अहमद की मजबूत पकड़ हैं.
वहीं, सूत्रों की मानें तो कांग्रेस और आरजेडी इस बात पर पहले से विचार भी कर रही है. अगर ऐसा हुआ तो कीर्ति आजाद और अब्दुल बारी सिद्दीकि के लिए मुश्किलें बढ़ सकती है.
https://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2019/03/555897-525781-kirtiazad-pti.jpg7201280Demokratic Front Bureauhttps://demokraticfront.com/wp-content/uploads/2018/05/LogoMakr_7bb8CP.pngDemokratic Front Bureau2019-03-16 14:58:542019-03-16 14:59:12दरभंगा सीट किर्ति आज़ाद के लिए बनी चुनौती
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