जेडीयू -122, भाजपा – 121, HAM – 7 और वीआईपी के सीटों के फार्मूले तय

नीतीश कुमार ने कहा, ‘कोई क्या बोल रहा है, उससे मतलब नहीं है। हमलोग मिलकर काम कर रहे हैं और आगे भी करेंगे।’ इससे पहले भाजपा के बिहार प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने दोहराया कि राजग बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव मैदान में है।

पटना (ब्यूरो):

बिहार में सत्ताधारी एनडीए गठबंधन की ओर से सीट बँटवारे का ऐलान कर दिया गया है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बताया कि जेडीयू इस बार 122 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, बीजेपी के खाते में 121 सीटें गई हैं। वहीं जीतनराम मांझी की पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (HAM) को 7 सीटें दी गई हैं। वहीं बीजेपी अपने कोटे से मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी को सीट देंगे।

इस दौरान नीतीश कुमार ने विपक्षी पार्टी खास तौर से आरजेडी पर जमकर निशाना साधा। पटना में बीजेपी-जेडीयू की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने फिर कहा कि नीतीश कुमार ही एनडीए के नेता हैं।

बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने कहा, “सीटों की सूची भी रिलीज कर दी जाएगी। हम लोग बिहार के विकास के लिए काम कर रहे हैं और आगे भी करते रहेंगे। बहुत सारे लोगों के द्वारा बेवजह बहुत बातें की जाती हैं मैं उन्हें मैं महत्व नहीं देता हूँ। हमसे पहले भी 15 साल दूसरे लोगों को मौका मिला, कहाँ कोई विकास का काम हुआ, क्या हालत थी बिहार की। हमने हमेशा कहा न्याय के साथ विकास। हमारे मन में कोई गलतफहमी नहीं है। बिहार को आगे बढ़ाना है, यही हमारा लक्ष्य है।”

सीएम नीतीश कुमार ने आगे कहा, “जनता मालिक है वो तय करेंगे। हमलोग बीजेपी के साथ हैं। हमलोग मिलकर काम करेंगे। किसी को अगर कुछ कहने से आनंद मिलता है कहें,हमें कोई फर्क नही पड़ता। हमलोगों के मन ने कोई कंफ्यूजन नहीं है। निर्णय लेने में थोड़ा विलम्ब किया, मगर अब सब साफ हो गया है। कुछ लोग होते हैं कुछ बोलेंगे उनका स्वभाव होता है।”

बिहार विधानसभा चुनाव में महज कुछ दिन बचे हैं। एनडीए से अलग होने के बाद बीजेपी और जेडीयू कितनी-कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे साफ हो गया है। बीजेपी और जेडीयू के संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह साफ कर दिया है कि एनडीए के नेता नीतीश कुमार ही रहेंगे और उन्ही के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाएगा।

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष संजय जयसवाल ने कहा कि बीजेपी के सबसे पुराने सहयोगी नीतीश कुमार के साथ पूरे बिहार का विकास हुआ है। 15 साल में एनडीए सरकार ने बदहाल बिहार को खुशहाल बिहार बनाया है। जेडीयू से हमारा अटूट बंधन है। लोजपा नेता रामविलास का सम्मान करते हैं। मगर बिहार में NDA के नेता नीतीश कुमार हैं और रहेंगे।

बीजेपी ने उम्मीदवारों की लिस्ट को लेकर भी चर्चा पूरी कर ली है। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी इस बार कैंडिडेट्स की लिस्ट में बड़ा सरप्राइज देने की तैयारी कर रही है। पार्टी इस बार पाँच से छ: मौजूदा विधायकों के टिकट काट सकती है। यही नहीं मौजूदा विधायकों के किसी करीबी और रिश्तेदार को भी टिकट नहीं देने पर विचार भी पार्टी कर रही है।

दलित नेता शक्ति मलिक की हत्या के मामले में तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव आरोपित

केहाट थानाध्यक्ष सुनील कुमार मंडल ने बताया कि मृतक की पत्नी खुशबू देवी के बयान के आधार पर नामजद प्राथमिकी दर्ज की गई है। इसमें तेजस्वी, तेजस्वी के साथ-साथ अनिल कुमार साधु (आरजेडी एससी-एसटी प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष), मनोज, सुनीता और कालो पासवान के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। उन्होंने बताया कि मलिक की पत्नी ने राजनीतिक साजिश के तहत अपने पति की हत्या किए जाने का आरोप लगाया और कई नेताओं के नाम लिए।

  • शक्ति मलिक की रविवार को गोली मारकर हत्या, पुलिस ने दर्ज किया केस
  • मर्डर केस में तेजस्वी-तेज प्रताप समेत 6 लोगों के खिलाफ एफआईआर
  • शक्ति मलिक की पत्नी ने बताया- आरजेडी से निकाले जाने के बाद उनके पति निदर्लीय चुनाव लड़ने की कर रहे थे तैयारी
  • हत्या के बाद शक्ति मलिक का तेजस्वी यादव पर लगाए गए आरोपों का वीडियो हुआ था वायरल

बिहार (ब्यूरो):

बिहार में 37 वर्षीय दलित नेता शक्ति मलिक की हत्या के मामले में तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव को आरोपित बनाया गया है। दलित नेता शक्ति मलिक की रविवार (अक्टूबर 4, 2020) को पूर्णिया स्थित उनके आवास के बाहर ही गोली मार कर हत्या कर दी गई थी। वो राष्ट्रीय जनता दल के ही नेता थे। मृतक नेता की पत्नी ने भी आरोप लगाया है कि उनकी हत्या राजनीतिक हत्या है। पुलिस मामले की छानबीन कर रही है।

इस मामले में राजद दलित सेल के अध्यक्ष अनिल कुमार साधु, अररिया से पार्टी के नेता कालो पासवान, सुनीता देवी और एक अन्य राजद नेता को भी इस मामले में आरोपित बनाया गया है। शक्ति मलिक को राजद सुप्रीमो लालू यादव ने पार्टी से निकाल दिया था, जिसके बाद उन्होंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमाने की ठानी थी। पुलिस इस हत्याकांड के खुलासे के लिए तलाशी अभियान चला रही है।

शक्ति मलिक ने एक वीडियो के माध्यम से आरोप लगाया था कि राजद नेता तेजस्वी यादव ने रानीगंज सीट से पार्टी का टिकट देने के एवज में उनसे 50 लाख रुपए का डोनेशन माँगा था। रविवार को तड़के सुबह 3 बजे मास्क पहने 3 अपराधी उनके घर में घुसे और उनकी गोली मार कर हत्या कर दी। उस समय घर में सिर्फ उनकी पत्नी, बच्चे और एक ड्राइवर थे। उन्हें सदर अस्पताल में ले जाया गया, जहाँ उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

के हाट पुलिस स्टेशन के एसएचओ सुनील कुमार मंडल ने कहा कि क्राइम सीन से एक देशी पिस्टल और एक खाली कारतूस बरामद किया गया है। एसपी विशाल शर्मा और सदर डीएसपी आनंद पांडेय ने भी घटनास्थल का दौरा किया। शक्ति मलिक को तीन गोलियाँ लगी थीं। पुलिस ने बताया कि हर एंगल से इस मामले की जाँच की जा रही है। क्राइम सीन से एक लोडेड हथियार की बरामदगी भी हुई है।

अब जब बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव में 1 महीने के आसपास बचे हुए हैं, जदयू ने राजद पर निशाना साधते हुए कहा है कि तेजस्वी यादव ने अपना असली रंग देश के सामने दिखा दिया है। शक्ति मलिक ने अपने वीडियो में ये भी आरोप लगाया था कि तेजस्वी यादव ने उनकी जाति को लेकर उन पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उनका कहना था कि वो राजद दलित प्रकोष्ठ के प्रमुख के साथ पूर्णिया दौरे पर आए थे, तब उन्होंने ऐसा किया था।

वीडियो में शक्ति मलिक के बयान के अनुसार, तेजस्वी यादव ने उन्हें ‘डो#’ जाति का बताते हुए कहा था कि तुम्हें विधानसभा नहीं जाने देंगे। उन्होंने अनिल कुमार साधु पर आरोप लगाते हुए कहा था कि उन्होंने यह कह कर धमकी दी थी, राजद में एक से बढ़ कर एक क्रिमिनल सब है। जब तुम क्षेत्र में जाओगे या अच्छा काम करोगे तो मार कर फेंकवा दिए जाओगे।जदयू के कई नेताओं ने इस हत्याकांड के लिए लालू परिवार पर निशाना साधा है।

बता दें कि बिहार में जब से विधानसभा चुनाव का ऐलान हुआ है, तब से हत्या की यह कोई पहली वारदात नहीं है। कुछ दिनों पहले भारतीय जनता पार्टी के उपाध्यक्ष राजेश कुमार झा उर्फ राजा बाबू की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। राजेश कुमार झा की पटना में हत्या हुई थी। वह बेउर थाना क्षेत्र के अंतर्गत तेज प्रताप नगर में अपने घर के नज़दीक टहलने के लिए निकले थे, तभी दो पहिया वाहन सवार नकाबपोश अपराधी उनके नज़दीक आए और उनकी कनपटी पर गोली मार दी। 

यौन अपराधियों के सरेआम चौराहों पर लगेंगे पोस्टर महिला सुरक्षा पर योगी का ‘ऑपरेशन दुराचारी’ शुरू

महिलाओं को गलत नजर से देखने वालों की अब खैर नहीं. अब ईव टीज़र्स की शामत आने वाली है क्योंकि प्रदेश सरकार ने सभी अपराधियों को सबक सिखाने के लिए एक ऑपरेशन की शुरुआत की है. ‘ऑपरेशन दुराचारी’ के तहत महिलाओं से किसी भी तरह का अपराध करने वाले को तो सजा मिलेगी ही, साथ ही उस एरिया की पुलिस फोर्स भी जिम्मेदार होगी. कहीं भी महिलाओं के साथ कोई आपराधिक घटना हुई तो वहां के बीट इंचार्ज, चौकी इंचार्ज, थाना प्रभारी और सर्किल ऑफिसर जवाबदेही होंगे. इस ऑपरेशन का मकसद है कि महिलाओं और बच्चियों के साथ किसी भी तरह की घटना को अंजाम देने वालों को समाज जाने. ऐसे लोगों के पोस्टर चौराहों पर लगाए जाएंगे. ऑपरेशन दुराचारी के तहत मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि छेड़खानी करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए.

यूप्र (ब्यूरो):

अपने नियमों व कानूनों को लागू कराने और अपराधियों पर नकेल कसने को लेकर विख्यात उत्तरप्रदेश की योगी सरकार ने अब महिला सुरक्षा को लेकर एक बड़ा फैसला लिया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने आज (24 सितंबर, 2020) निर्देश देते हुए कहा कि महिलाओं, लड़कियों और बच्चियों से छेड़खानी, दुर्व्यवहार, अपराध, यौन अपराध करने वाले अपराधियों के सरेआम चौराहों पर पोस्टर लगाए जाएँ। सरकार ने इसका नाम ‘ऑपरेशन दुराचारी’ रखा है।

सरकार द्वारा पुरानी सरकारों के सुस्त और लाचर प्रशासन को खत्म करके नई व्यवस्था कायम करने को लेकर यह सख्त कदम मनचलों को कड़ा सबक सिखाने का काम करेगा। योगी आदित्यनाथ ने कहा कि महिलाओं से किसी भी तरह का अपराध करने वालों को महिला पुलिसकर्मियों से दंडित करवाया जाए साथ ही उनका नाम सार्वजनिक किया जाए।

महिलाओं या बच्चियों के साथ अपराध करने वाले के बारे में समाज को जानना चाहिए, इसलिए उनके पोस्टर चौराहों-सड़को-दीवारों पर लगाए जाएँ। ताकि उनका समाज से बहिष्कार हो सके। साथ ही सीएम ने ऐसे अपराधियों और दुराचारियों की मदद करने वालों के नाम उजागर करने के भी निर्देश दिए हैं। ऐसा करने से उनके मददगारों में भी बदनामी का डर पैदा होगा।

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, बलात्कारियों में उन्हीं के नाम का पोस्टर छपेगा जिन्हें अदालत द्वारा दोषी करार दिया जाएगा। मिशन दुराचारी के तहत महिला पुलिसकर्मियों को जिम्मा दिया जाएगा। महिला पुलिस शहर के चौराहों पर नजर रखेगी। इसके अलावा सीएम ने यह भी निर्देश दिया है कि महिलाओं या बच्चियों के साथ किसी भी प्रकार का दुराचार होता है तो इसकी जवाबदेही के लिए संबंधित बीट इंचार्ज, चौकी इंचार्ज, थाना प्रभारी और सीओ जिम्मेदार होंगे।

मुख्यमंत्री ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि सरेराह छेड़खानी करने वाले शोहदों और आदतन दुराचारी के खिलाफ सख्ती से पेश आया जाए और कड़ी कार्रवाई की जाए। प्रदेश में महिला अपराध के कई मामले सामने आने के बाद सीएम योगी ने ये फैसला लिया है। ताकि अपराधियों में डर पैदा किया जा सके।

गौरतलब है कि इससे पहले योगी सरकार सीएए के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन करने वालों के पोस्टर भी लखनऊ में लगवाए थे। पिछले साल 19 दिसंबर को लखनऊ के कई स्थानों पर उपद्रवियों ने सीएए विरोध के नाम पर हिंसा की थी, जिसमें करोड़ों की सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया था। हिंसा में शामिल 57 लोगों के नाम और पते के साथ लखनऊ शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर कुल 100 होर्डिंग्स लगाए गए थे। प्रशासन ने इससे पहले आरोपितों पर 1.55 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाते हुए नोटिस जारी किया है, जिसके तहत 8 अप्रैल तक जुर्माने की रकम को जमा करवाना था।

पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय बिहार की राजनीति में पहले नौकरशाह नहीं

बिहार के पूर्व डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि मुझे बिहार की जनता बहुत प्यार करती है. मैं कहीं भी चुनाव लड़ना चाहता हूं तो जा सकता हूं और जीत सकता हूं. चुनाव से मेरे वीआरएस को जोड़ना गलत है. अगला गृह मंत्री बनने के सवाल पर गुप्तेश्वर पांडेय ने कहा कि भविष्य कौन जानता है. मेरे परिवार अनपढ़ था. मैं पहला आदमी हूं, जो चार पीढ़ियों के बाद स्कूल गया.

  • बीजेपी सांसद आरके सिंह मोदी सरकार में मंत्री
  • निखिल कुमार से लेकर मीरा कुमार तक सांसद रहीं
  • बिहार में अफसर का राजनीति से पुराना संबंध है

पटना(ब्यूरो):

बिहार विधानसभा चुनाव की भले ही औपचारिक घोषणा न हुई हो, लेकिन राजनीतिक पार्टियां सियासी समीकरण बनाने में जुटी हुई हैं. ऐसे में बिहार के पुलिस महानिदेशक रहे गुप्तेश्वर पांडेय ने सियासी पिच पर किस्मत आजमाने के लिए वीआरएस ले लिया है. वो किस पार्टी से और कौन सी सीट से चुनाव लड़ेंगे, इसकी तस्वीर साफ नहीं है. हालांकि, बिहार के राजनीतिक इतिहास में गुप्तेश्वर पांडेय पहले अफसर नहीं है, जिन्होंने चुनावी मैदान में उतरने का फैसला किया है.

बता दें कि हाल ही में बिहार के दो वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अपने पद से इस्तीफा देकर सियासत में अपना भाग्य आजमाने की तैयारी में हैं. इसमें बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडेय ही नहीं बल्कि सुनील कुमार का नाम शामिल है. पूर्व आईपीएस सुनील कुमार ने पुलिस भवन निर्माण निगम के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक पद से सेवानिवृत्त होने के बाद 29 अगस्त को जेडीयू का दामन थामा है. सुनील कुमार के भाई अनिल कुमार कांग्रेस के विधायक हैं. माना जा रहा गोपलगंज से सुनील कुमार चुनावी मैदान में तर सकते हैं. 

ये अफसर चुनावी पिच पर उतर चुके हैं

बिहार की राजनीति में अफसरों का आना कोई नई बात नहीं है. इससे पहले भी प्रदेश के कई आला अफसरों ने राजनीतिक दलों का दामन थामा है. निखिल कुमार, मीरा कुमार, यशवंत सिन्हा, रामचंद्र प्रसाद सिंह, बलबीर चंद्र, हीरालाल, केपी रमैया, अनूप श्रीवास्तव, आरके सिंह, एनके सिंह, अशोक कुमार गुप्ता और आशीष रंजन सिन्हा चुनावी पिच पर उतरकर किस्मत आजमा चुके हैं. आरके सिंह तो मौजूदा समय में मोदी सरकार में मंत्री हैं और दूसरी बार वो बीजेपी से सांसद चुने गए हैं. 

जेडीयू में नीतीश कुमार के बाद नंबर दो ही हैसियत रखने वाले आरसीपी सिंह आईएएस रहे हैं. मौजूदा समय में जेडीयू से राज्यसभा सदस्य हैं. आरसीपी उत्तर प्रदेश कैडर के आईएएस अधिकारी थे और बाराबंकी में डीएम रहे हैं. इसी दौरान बाराबंकी के रहने वाले और सपा के दिग्गज नेता बेनी प्रसाद वर्मा ने नीतीश से कह कर आरसीपी सिंह को राजनीति में एंट्री करायी थी. वहीं, पूर्व डीजी अशोक कुमार गुप्ता आरजेडी का दामन थामकर विधानसभा पहुंचने की जुगत में जुटे हैं. हालांकि, अशोक इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में पटना साहिब सीट से निर्दलीय किस्मत आजमा चुके हैं. 

2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में पुलिस सेवा के अधिकारी सोम प्रकाश औरंगाबाद जिले के ओबरा से निर्दलीय विधायक चुने गए थे. इसके बाद 2015 के चुनाव में वो हार गए थे. हालांकि इस बार मैदान में उतरने की तैयारी है. दारोगा की नौकरी से वीआरएस लेने वाले रवि ज्योति राजगीर से जेडीयू के विधायक हैं. इसी तरह मनोहर प्रसाद सिंह भी मनिहारी विधानसभा सीट से जीतकर लगातार दूसरी बार विधायक बने हैं और हैट्रिक लगाने की जुगत में हैं. 

नहर, ताज या पिरामिड की भांति एक स्मारक के रूप में प्रभावशाली है: आनंद महिंद्रा

पटना( ब्यूरो):

30 सालों तक लगातार फरसा और कुदाल चलाने की वजह से बिहार के लौंगी भुइयां को आज पूरा देश जान रहा है। बिहार के इस किसान के लगन और कड़ी मेहनत की ही देन है कि आनंद महिंद्रा ने उन्हें ब्रैंड न्यू ट्रैक्टर भेंट दिया है। बता दें कि लौंगी भुइयां ने 30 साल अकेले मेहनत कर अपने गांव और आसपास के लिए नहर खोद दी, जिसकी वजह से आज पहाड़ियों का पानी इस नहर की मदद से नीचे आ रहा है और 3 गांवों के 3000 लोगों को लाभ मिल रहा है।

दरअसल शनिवार को ट्विटर पर एक यूजर ने आनंद महिंद्रा को टैग कर के उन्हें लौंगी भुइयां की ज़रूरत के बारे में बताया था। इस ट्वीट में लिखा कि गया के लौंगी माँझी ने अपने ज़िंदगी के 30 साल लगा कर नहर खोद दी। उन्हें अभी भी कुछ नहीं चाहिए, सिवा एक ट्रैक्टर के। उन्होंने मुझसे कहा है कि अगर उन्हें एक ट्रैक्टर मिल जाए तो उनको बड़ी मदद हो जाएगी। जब यह ट्वीट वायरल हुआ तो आनंद महिंद्रा तक पहुँच गया और उन्होनें ट्वीट के जरिये लौंगी की मदद करने का आश्वासन दिया।

इसके बाद आनंद महिंद्रा की टीम लौंगी तक पहुंची और उन्हें शनिवार तक महिंद्रा की तरफ से ट्रैक्टर भेंट कर दिया गया। लौंगी को ट्रैक्टर के लिए कोई पैसा नहीं देना पड़ा। इसपर भुइयां का कहना है कि,” मैं बहुत खुश हूँ, मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि मुझे ट्रैक्टर मिल जाएगा”।

क्या है लौंगी भुइयां की कहानी
बिहार के गया जिले में लुटुआ नाम की एक पंचायत पड़ती है। इसी पंचायत के एक छोटे से गांव कोठिलवा का 70 साल का यह बुजुर्ग जब अपनी 30 साल की मेहनत की कहानी सुनाता है तो सामने वाले की आंखें अचरज से फैल जाती हैं। आज से 3 दशक पहले यानी 1990 के दशक का बिहार। बिहारी सब रोजगार की तलाश में अपने गांवों को छोड़ शहरों की ओर पलायन शुरू कर चुका था। पलायन करने वालों में बड़ी संख्या तो ऐसी थी, जिसे राज्य ही छोड़ना पड़ा थाय़ इसी पलायन करने वालों में लौंगी भुइयां का एक लड़का भी था। करता भी क्या, जीवन के लिए रोजगार तो करना ही था क्योंकि गांव में पानी ही नहीं था तो खेती क्या खाक होती। आज से तीन दशक पहले जब ये सब हो रहा था तो लौंगी भुइयां बस अपने आसपास से बिछड़ रहे चेहरों को देख रहे थे। एक दिन बकरी चलाते हुए उन्होंने सोचा, अगर खेती मजबूत हो जाए तो अपनी माटी को छोड़कर जा रहे लोगों का जत्था शायद रुक जाए। पर खेती के लिए तो पानी चाहिए था।

उस दिन लौंगी भइयां ने जो फावड़ा कंधे पर उठाया, आज तीन दशक बाद जब गांव में पानी आ पहुंचा है तब भी ये फावड़ा उनके कंधे पर ही मौजूद है। हां इतना जरूर है कि गांव तक पानी आ पहुंचा है। 30 साल की अथक मेहनत के बीच यह शख्स बूढ़ा हो गया लेकिन गांव की जवानी को गांव में ही रुकने की व्यवस्था देने में कामयाब जरूर हो गया। इतनी बातों का सार यह है कि लौंगी भइयां अकेले दम पर फावड़े से ही 3 किलोमीटर लंबी नहर खोद पहाड़ी के पानी को गांव तक लेकर चला आया। अब जब बारिश होती है तो पहाड़ी से नीचे बहकर पानी बर्बाद नहीं होता बल्कि लौंगी भुइयां की बनाई हुई नहर के रास्ते गांव के तालाब तक पहुंचता है। 3 किलोमीटर लंबी यह नहर 5 फीट चौड़ी और 3 फीट गहरी है। बारिश के पानी के संरक्षण की सरकारी कोशिशों का हाल तो सरकार जाने लेकिन लौंगी भुइयां की इस सफल कहानी से आसपास के 3 गांवों के 3000 लोगों को लाभ मिला है।

बिहार चुनाव: ओवैसी ने ताल ठोंकी कहा,” मुस्लिम वोटरों पर किसी का अधिकार नहीं है”

असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि मुस्लिम वोटरों पर किसी का अधिकार नहीं है। ये कोई दावा करते हैं तो किस हैसियत से करते हैं, ये समझ में नहीं आता। ओवैसी ने कहा कि हम किसी एक धर्म की राजनीति नहीं करते। हम पर जो आरोप लगाया जाता है वो गलत हैं। AIMIM और समाजवादी जनता दल गठबंधन को UDSA एलायंस नाम दिया गया है। वहीं अलकायदा के 9 संदिग्ध की गिरफ्तारी पर ओवैसी ने कहा कि NIA द्वारा संदिग्धों की गिरफ्तारी हुई है. NIA जांच रही है कि वे कौन हैं। राजद  द्वारा भाव नहीं दिए जाने पर ओवैसी ने कहा कि हम तो ट्विंकल ट्विंकल लीटल स्टार हैं, लेकिन बिहार की जनता देख रही है कौन-कौन किसको भाव दे रहा है।

पटना (ब्यूरो):

बिहार विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक पार्टियां कमर कस चुकी है। इस चुनाव के लिए ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी भी पार्टी को मजबूती प्रदान कर रहे हैं। इस क्रम में अब एआईएमआईएम और समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक (एसजेडीडी) के बीच गठबंधन तय हो गया है। जिससे बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के लिए भी खतरे की घंटी बज चुकी है।

एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने जानकारी देते हुए बताया कि बिहार चुनाव के लिए एआईएमआईएम और समाजवादी जनता दल डेमोक्रेटिक के बीच गठबंधन तय हुआ है। यूडीएसए गठबंधन देवेंद्र प्रसाद यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा। ऐसी पार्टियां, जो साम्प्रदायिकता के खिलाफ लड़ना चाहते हैं उनका स्वागत है। वहीं बिहार में यादव और मुस्लिम आरजेडी का वोट बैंक माना जाता है, ऐसे में एआईएमआईएम और एसजेडीडी के साथ आने से आरजेडी के वोट बैंक में सेंधमारी हो सकती है।

ओवैसी ने कहा कि हमारे बारे में पुराना रिकॉर्ड बताता है कि हम किसी से नहीं डरते हैं। हम चुनाव लड़ेंगे. लोकसभा में आरजेडी ने कितनी सीट जीती है। किशनगंज में अगर हमारी पार्टी नहीं खड़ी तो कांग्रेस वहां से नहीं जीत पाती। बीजेपी अगर जीत रही है तो उसकी जिम्मेदार आरजेडी है। हैदराबाद में मैंने बीजेपी को हराया, शिवसेना को हराया. महागठबंधन अब नहीं रहा।

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि कांग्रेस आज शिवसेना की गोद में बैठी है। कांग्रेस खुद को धर्मनिरपेक्षता का ठेकेदार समझती है। कांग्रेस की सोच सामंती है। कांग्रेस की गलत नीतियों का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है।

उम्मीदवारों का ऐलान

बता दें कि असदुद्दीन ओवैसी पहले ही बिहार विधानसभा चुना 2020 लड़ने का ऐलान कर चुके हैं। सितंबर महीने की शुरुआत में ओवैसी की पार्टी ने बिहार चुनाव के लिए अपने उम्मीदवारों का ऐलान भी कर दिया था। एआईएमआईएम 50 सीटों पर चुनाव लड़ने का पहले ही ऐलान कर चुकी है।

रघुवंश प्रसाद सिंह ने आरजेडी से इस्तीफा दे दिया, लालू ने कहीं न जाने की बात कही

आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के साथ हर वक्त साये की तरह खड़े पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल से इस्तीफा दे दिया। महज 38 शब्दों के लिखे पत्र में उन्होंने अपना पूरा दर्द बयां कर दिया। इस्तीफे का पत्र मीडिया में आते ही राजद में खलबली मच गई है। वहीं उनके बेहद खास लालू प्रसाद यादव भी बेचैन हो गए हैं। अब इसी बेचैनी को उन्होंने अपने पत्र के माध्यम से व्यक्त किया है और रघुवंश प्रसाद सिंह से कहा है कि वे राजद (RJD) छोड़ कहीं नहीं जा रहे हैं।

पटना(ब्यूरो):

बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान नहीं हुआ है। लेकिन हर बदलते दिन के साथ राजनीति नई करवट लेती जा रही है। इसी क्रम में दिल्ली के एम्स में बिस्तर पर लेटे-लेटे ही पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह ने राष्ट्रीय जनता दल (RJD) से इस्तीफा दे दिया है।

सादे कागज पर लालू प्रसाद यादव को संबोधित इस्तीफे में उन्होंने लिखा है, “जननायक कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 32 वर्षों तक आपके पीछे-पीछे खड़ा रहा। लेकिन अब नहीं। पार्टी नेता कार्यकर्ता और आमजनों ने बड़ा स्नेह दिया। मुझे क्षमा करें।” जून में उन्होंने पार्टी उपाध्यक्ष के पद से इस्तीफा दिया था। लेकिन उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया था और लालू ने खुद तेजस्वी यादव को रॉंची तलब कर उन्हें मनाने को कहा था।

रघुवंश प्रसाद सिंह के करीबियों ने ऑपइंडिया को बताया कि अब राजद से उनका रिश्ता टूट चुका है। पार्टी में बने रहने की कोई गुंजाइश नहीं है। केंद्रीय मंत्री रहे राजद नेता जयप्रकाश नारायण यादव से जब हमने इस संबंध में सवाल किया तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया।

रघुवंश प्रसाद सिंह RJD में पूर्व सांसद रामा सिंह को शामिल करने के प्रयासों को लेकर नाराज चल रहे थे। बाहुबली छवि के रामा सिंह लोकसभा चुनाव में वैशाली से रघुवंश प्रसाद सिंह को हरा भी चुके हैं। इसके अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष रहे जगदानंद सिंह से भी वे नाराज चल रहे थे। जून में लालू को लिखे पत्र में उन्होंने पार्टी की कार्यप्रणाली को लेकर सवाल भी उठाए थे।

बिहार में हर दल के अपने सामाजिक समीकरण हैं और चुनाव में मतदान उन्हीं समीकरणों के इर्द-गिर्द होता रहा है। ऐसे में सवाल है कि 74 साल के रघुवंश प्रसाद का जाना राजद के जमीनी समीकरणों को कितना प्रभावित करेगा?

रघुवंश प्रसाद सिंह के स्वजतीय राजपूत वोटर बिहार में 5 फीसदी के करीब हैं और पूरे राज्य में बिखरे हुए हैं। जब लालू ने ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा दिया था, उस दौर में भी राजपूत का बड़ा तबका उनके ही साथ रहा। इसकी वजह यकीनन रघुवंश प्रसाद और जगदानंद सिंह जैसे राजपूत नेता थे, जिनका सीमित क्षेत्रों में प्रभाव था। लेकिन, रघुवंश प्रसाद कभी भी बिहार के राजपूतों के एकमात्र नेता नहीं रहे।

बीजेपी के पास भी राधा मोहन सिंह और राजीव प्रताप रूडी जैसे चेहरे रहे हैं, जिनका अपने इलाके में और अपने स्वजातीय वोटरों के एक तबके पर प्रभाव है। इसके अलावा सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत को जिस तरह इस बार ‘बिहारी प्राइड’ से जोड़ा गया है, उससे भी इस वर्ग का झुकाव एनडीए की तरफ बढ़ा है।

फिर यह इस्तीफा राजद की चुनावी संभावनाओं को कैसे प्रभावित करेगा? इसका जवाब हाल ही में पटना विश्वविद्यालय के कुछ पूर्व प्राध्यापकों के बीच हुई चर्चा में छिपा है। यह चर्चा इसी विश्वविद्यालय के एक पूर्व छात्र और प्राध्यापक, जो कभी बीजेपी के बड़े नेता हुआ करते थे तथा चंद्रशेखर से लेकर वाजपेयी कैबिनेट तक में मंत्री रहे, की पहल पर हुई थी।

असल में राजनीति में अप्रसांगिक हो चुका यह नेता एक विजन डॉक्यूमेंट तैयार कर बिहार चुनाव के जरिए खुद के लिए संभावनाओं की पड़ताल कर रहा था। इसी क्रम में हुई चर्चा के दौरान बात 1955 में बिहार में हुए छात्र आंदोलन, जो स्वतंत्र भारत का पहला छात्र आंदोलन माना जाता है, जिसमें उस समय के प्रधानमंत्री रहे जवाहर लाल नेहरू तक को दखल देना पड़ा था, से शुरू हुई। फिर हर दौर पर बात हुई। आखिर में ये निष्कर्ष निकला कि बिहार की राजनीति में सामाजिक समीकरणों का प्रभाव है।

एक वर्ग जो इससे अप्रभावित है, उसके लिए तमाम नाराजगी के बावजूद आज भी नीतीश कुमार ही विश्वसनीय चेहरा हैं। तेजस्वी यादव में उनकी जगह लेने की क्षमता नहीं है। सामाजिक समीकरणों को भी कमजोर करने के लिए चेहरे की जरूरत है और 15 साल बाद भी नीतीश का विकल्प नहीं है। विकल्प के बिना एनडीए की संभावनाओं को प्रभावित करना मुश्किल है। विपक्ष के पास तेजस्वी की जगह कोई ऐसा विश्वसनीय चेहरा होना चाहिए जो छवि के मामले में नीतीश कुमार पर बीस पड़े।

फिर उस नेता ने तेजस्वी से संपर्क किया। तेजस्वी ने टका सा जवाब दिया- हमको पता है कि हम हार रहे हैं, फिर भी विपक्ष का नेता तो मैं ही रहूॅंगा न।

रघुवंश प्रसाद सिंह के इस्तीफे ने विधानसभा में विपक्ष के नेता बने रहने के तेजस्वी के इस गणित को फॅंसा दिया है। तेजस्वी फिलहाल राघोपुर से विधायक हैं। यह वो सीट है, जहॉं रघुवंश प्रसाद का प्रभाव है।

कुशीनगर में गुस्साई भीड़ ने हत्यारे को पीट पीट कर मार डाला

रामपुर बंगरा निवासी सुधीर सिंह सीमावर्ती प्रांत बिहार में शिक्षक थे. सोमवार को वे अपने घर में सो रहे थे. तभी करीब 8 बजे स्कूटी से आया बदमाश घर में घुस गया. उसने शिक्षक पर तीन गोलियां चलाकर उन्हें मार डाला और फिर छत पर चढ़कर हवाई फायरिंग करने लगा. 

  • तरयासुजान थाने के रामपुर बंगरा गांव का मामला
  • टीचर की अज्ञात बदमाश ने गोली मारकर की हत्या
  • भीड़ ने बदमाश को पीट-पीटकर मार डाला

कुशीनगर:

 उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में सोमवार को मॉब लिंचिंग का सनसनीखेज मामला सामने आया है. तरयासुजान थाना क्षेत्र के रामपुर बंगरा में एक युवक को गोली मारकर भाग रहे बदमाश को भीड़ ने घर की छत पर घेर लिया. इसके बाद पुलिस ने बदमाश को हिरासत में ले लिया. इस बीच गोली लगने से युवक की मौत हो गई. इसकी सूचना जैसे ही ग्रामीणों को मिली तो सभी उग्र हो गए और पुलिस कस्टडी से छुड़ाकर बदमाश को पीट-पीट कर मौत के घाट उतार दिया.

दरसअल, तरयासुजान थाना क्षेत्र के रामपुर बंगरा में सोमवार की सुबह घर में सो रहे व्यक्ति की एक स्कूटी सवार बदमाश ने गोली मारकर हत्या कर दी. गोली मारने के बाद बदमाश मृतक के घर के छत पर जाकर हवाई फायर कर दहशत फैलाने का प्रयास करने लगा. सूचना के बावजूद लगभग डेढ़ घंटे बाद मौके पर पुलिस पहुंची. नीचे ग्रामीण बदमाश की घेरेबंदी किये हुए थे.

जैसे ही हमलावर ने आत्मसमर्पण किया तो ग्रामीणों ने उसे पुलिस से छुड़ा कर लाठी-डंडे से पीटकर मौत के घाट उतार दिया. पुलिस बेबस खड़ी मूकदर्शक बनी रही. ग्रामीणों के आक्रोश के मद्देनजर मौके पर पुलिस व ग्रामीणों के बीच संघर्ष की स्थिति बनी हुई है.

एक टीचर हुई थी हत्या

रामपुर बंगरा निवासी सुधीर सिंह पुत्र मोहर सिंह सीमावर्ती बिहार प्रान्त में शिक्षक थे. सोमवार सुबह से आये अज्ञात हमलावर ने उनके घर में घुसकर फायर कर दिया. ग्रामीणों के अनुसार, सुधीर को सोते समय हमलावर ने तीन गोली मारी, जिससे उनकी मौके पर ही मौत हो गयी. घटना के बाद हमलावर मृतक के घर की छत पर चढ़कर हवाई फायर करके दहशत फैला दिया. घटना की जानकारी के बाद ग्रामीण लाठी-डंडा लेकर हमलावर की घेराबंदी करके पुलिस को सूचना दी. ग्रामीणों का आरोप है कि सूचना के बावजूद पुलिस लगभग डेढ़ घंटे की देरी से मौके पर पहुंची.

लाचार नजर आई पुलिस

प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक पुलिस को देखकर हमलावर दोनों हाथ ऊपर उठाकर आत्मसमर्पण करने की कोशिश करने लगा, लेकिन तभी गुस्साई भीड़ हमलावर पर टूट पड़ी. आक्रोशित ग्रामीणों ने लाठी डंडे से मारकर हमलावर को मौत के घाट उतार दिया. जबकि पुलिस पूरे घटनाक्रम में लाचार नजर आई. सीओ तमकुहीराज की अगुवाई में पुलिस ने बदमाश को ले जाने की कई बार कोशिश की लेकिन सफल नहीं हुई. ग्रामीण किसी भी दशा में हमलावर को पुलिस को सुपुर्द करने के पक्ष में नहीं थे. पूरे घटनाक्रम को लेकर क्षेत्र में दहशत का माहौल है. मौके पर तनाव की स्थिति बनी हुई है. एसपी विनोद कुमार मिश्र ने बताया कि पूरे मामले की जांच की जा रही है और इसमें जिसकी भी गलती सामने आएगी उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी.

पालघर साधुओं कि हत्या : फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कई चौंकाने वाले दावे किए

महाराष्ट्र के पालघर में अप्रैल में हुई दो साधुओं सहित तीन लोगों की हत्या की जांच करने वाली एक स्वतंत्र फैक्ट फाइंडिंग टीम ने कई चौंकाने वाले दावे किए हैं। साधुओं की हत्या के पीछे गहरी साजिश और नक्सल कनेक्शन की तरफ इशारा किया है। रिटायर्ड जज, पुलिस अफसर और वकीलों को लेकर बनी इस कमेटी ने इस बड़ी साजिश के पदार्फाश के लिए पॉलघर मॉब लिंचिंग की जांच सीबीआई और एनआईए से कराने की सिफारिश की है। टीम ने कहा है कि पुलिस कर्मी चाहते तो घटना को रोक सकते थे, लेकिन उन्होंने हिंसा की साजिश में शामिल होने का रास्ता चुना। कमेटी ने शनिवार को एक ऑनलाइन कार्यक्रम के दौरान रिपोर्ट के चौंकाने वाले अंश पेश किए।

पुणे (महाराष्ट्र ब्यूरो):

महाराष्ट्र के पालघर में हुई साधुओं की हत्या के मामले में एक फैक्ट-फाइंडिंग पैनल के सदस्य संतोष जनाठे का दावा है कि एक एनसीपी नेता को उस भीड़ के बीच देखा गया था, जो पालघर में साधुओं की लिंचिंग की घटना में शामिल थे। फैक्ट फाइंडिंग टीम ने जिस NCP नेता को इस भीड़ हिंसा के बीच पाया है, उसका नाम काशीनाथ चौधरी है।

काशीनाथ चौधरी शरद पवार की ‘नेशनलिस्ट कॉन्ग्रेस पार्टी’ का जिला सदस्य है। उन पर आरोप लगे हैं कि साधुओं की लिंचिंग कर उनकी निर्मम हत्या करने वाली भीड़ में वामपंथी पार्टी सीपीएम के पंचायत सदस्य व उसके साथ विष्णु पातरा, सुभाष भावर और धर्मा भावर भी शामिल थे।

इस भीड़ में एनसीपी और सीपीएम नेताओं की मौजूदगी कई सवाल खड़े करती है। एनसीपी महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी है और शिवसेना के साथ गठबंधन में मिल कर सरकार चला रही है।

फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। मसलन, झारखंड में नक्सल नेतृत्व वाले पत्थलगढ़ी आंदोलन की तर्ज पर पालघर में भी मुहिम चल रही है। कम्युनिस्ट कार्यकर्ता आदिवासियों को केंद्र और राज्य के कानूनों का पालन न करने के लिए भड़काने में जुटे हैं। आदिवासियों को अपने कानून का पालन करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। आदिवासियों को भ्रमित किया जा रहा है कि उनके पास सौ साल पुराना आदिवासी संविधान है। उन्हें सरकारी कानूनों का पालन करने की जगह आदिवासी संविधान का पालन करना चाहिए। कमेटी ने इस दावे के समर्थन में कुछ कम्युनिस्ट नेताओं के बयान और वीडियो भी जारी किए हैं।

फैक्ट फाइंडिंग समिति पहले भी इस निष्कर्ष पर पहुँच चुकी है कि क्षेत्र में काम करने वाले वामपंथी संगठन आदिवासियों के मन में सरकार और हिंदू धर्म गुरुओं, साधुओं और सन्यासियों के खिलाफ नफरत पैदा कर रहे हैं।

कमेटी ने करीब डेढ़ सौ पेज की जांच रिपोर्ट में कहा है, “झारखंड में नक्सल नेतृत्व वाले पत्थलगढ़ी आंदोलन की तर्ज पर पालघर में काम करने वाले वामपंथी संगठन संवैधानिक ढांचे और गतिविधियों के प्रति घृणा को बढ़ावा देने में लिप्त हैं। कम्युनिस्ट संगठन आदिवासी बाहुल्य गांवों की पूर्ण स्वायत्तता का दावा करते हुए संसद या राज्य के कानून का पालन न करने की घोषणा किए हैं। वामपंथी संगठनों की ओर से आदिवासियों में झूठ फैलाया जाता है कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं।”

उनकी जाँच से यह निष्कर्ष निकला था कि कैथोलिक बिशप कॉन्फ्रेंस ऑफ इंडिया, काश्तकारी संगठन, भूमिसेना, आदिवासी एकता परिषद, सीपीएम जैसे संगठनों के बढ़ते प्रभाव के साथ क्षेत्र में बढ़ती हिंसा, साधुओं की हत्या के रूप में सामने आई थी।

फैक्ट फाइंडिंग कमेटी ने कहा, “क्षेत्र में देश विरोधी गतिविधियां चल रहीं हैं। स्थानीय संगठन आदिवासियों के दिमाग में सरकार और साधुओं के खिलाफ नफरत पैदा कर रहे हैं। काश्तकारी संगठन, आदिवासी एकता परिषद, भूमि सेना और अन्य कई संगठन इसके लिए जिम्मेदार हैं। गांव में पत्थलगढ़ी आंदोलन की तरह संकल्प पारित करने के पीछे आदिवासी एकता परिषद के सदस्य का शामिल होना गहरी साजिश की तरफ इशारा करता है।”

जानें :- पत्थलगढ़ी आंदोलन : जानें कैसे उभरा आंदोलन और कहां तक इसका असर

इसके साथ ही इस केस को अभी तक भी सीबीआई के पास नहीं दिया गया है। बताया जा रहा है कि महाराष्ट्र सरकार ने इस केस में अपनी क्षेत्रीय गौरव को आगे रखा है और वह इसलिए भी नहीं चाहती कि यह केस सीबीआई के पास ट्रांसफर हो क्योंकि सीबीआई गृह मंत्रालय के दायरे में आती है। महाराष्ट्र सरकार की इस केस को लेकर बरती गई उदासीनता पर सुप्रीम कोर्ट पहले ही उन्हें फटकार लगा चुकी है।

सनद रहे कि महाराष्ट्र स्थित पालघर के गढ़चिंचले गाँव में गत 16 अप्रैल को दो साधुओं और उनके वाहन चालक की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। बाद में यह कहा गया कि वह बच्चों की चोरी होने के संदेह में पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। जबकि, ये दोनों साधु ड्राइवर के साथ अपने गुरुभाई के अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए सूरत जा रहे थे।

तबलीगी जमात को औरंगाबाद हाइ कोर्ट से राहत, एफ़आईआर रद्द, ओवैसी ने भाजपा पर साधा निशाना

मोदी सरकार ने कोरोना पर अपनी विफलता छुपाने के लिए तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया और मीडिया ने इस पर प्रॉपेगेंडा चलाया। बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। इस एक फैसले ने तबलिगी जमात के प्रति लोगों को अपने विचार बदलने पर मजबूर किया हो ऐसा नहीं है, हाँ मुसलमानों के एक तबके में राहत है और खुशी की लहर है। इस फैसले का मोदी सरकार के तथाकथित @#$%$ मीडिया वाली बात सच साबित होती दिखती है।

महाराष्ट्र(ब्यूरो):

बॉम्बे हाई कोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात मामले में देश और विदेश के जमातियों के खिलाफ दर्ज FIR को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में तबलीगी जमात को ‘बलि का बकरा’ बनाया गया। कोर्ट ने साथ ही मीडिया को फटकार लगाते हुए कहा कि इन लोगों को ही संक्रमण का जिम्मेदार बताने का प्रॉपेगेंडा चलाया गया। वहीं कोर्ट के इस फैसले के बाद असदुद्दीन ओवैसी ने बीजेपी पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि इस प्रॉपेगेंडा से मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा।

देश में जब दिल्ली के निज़ामुद्दीन में स्थित तबलीग़ी जमात के बने मरकज़ में फंसे लोगों की ख़बर निकल कर सामने आई और तबलीगी जमात में शामिल छह लोगों की कोविड-19 से मौत का मामला सामने आया, तब से ही भारतीया मीडिया ने तबलीग़ी जमात की आड़ में देश के मुस्लमानों पर फेक न्यूज़ की बमबारी कर दी । मीडिया ने चंद लम्हों में इसको हिंदू-मुस्लिम का मामला बना कर परोसना शुरू कर दिया । सरकार से सवाल पूछने के बजाए नेशनल चैनल पर अंताक्षरी खेलने वाली मीडिया को जैसे ही मुस्लमानों से जुड़ा कोई मामला मिला उसने देश भर के मुस्लमानों की छवि को धूमिल करना शुरू कर दिया । कोरोनावायरस जैसी जानलेवा बीमारी को भारत में फैलाने का ज़िम्मेदार मुस्लमानों को ठहराना शुरू कर दिया। : नेहाल रिज़वी

कोर्ट ने शनिवार को मामले पर सुनवाई करते हुए कहा, ‘दिल्ली के मरकज में आए विदेशी लोगों के खिलाफ प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बड़ा प्रॉपेगेंडा चलाया गया। ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की गई, जिसमें भारत में फैले Covid-19 संक्रमण का जिम्मेदार इन विदेशी लोगों को ही बनाने की कोशिश की गई। तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया गया।’

हाई कोर्ट बेंच ने कहा, ‘भारत में संक्रमण के ताजे आंकड़े दर्शाते हैं कि याचिकाकर्ताओं के खिलाफ ऐसे ऐक्शन नहीं लिए जाने चाहिए थे। विदेशियों के खिलाफ जो ऐक्शन लिया गया, उस पर पश्चाचाताप करने और क्षतिपूर्ति के लिए पॉजिटिव कदम उठाए जाने की जरूरत है।

वहीं हैदराबाद से सांसद और AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कोर्ट के इस फैसले की सराहना करते हुए इसे सही समय पर दिया गया फैसला करार दिया। ओवैसी ने ट्वीट कर कहा, ‘पूरी जिम्मेदारी से बीजेपी को बचाने के लिए मीडिया ने तबलीगी जमात को बलि का बकरा बनाया। इस पूरे प्रॉपेगेंडा से देशभर में मुस्लिमों को नफरत और हिंसा का शिकार होना पड़ा।’