बंगाल चुनाव से पहले क्या पंजाब चले गए ममता के रणनीतिकार ?

प्रशांत किशोर एक कुशल रणनीतिकार माने जाते हैं। 2014 में चाय पे चर्चा के साथ मोदी को एक तरफा जीत दिलाने वाले किशोर ने कभी यह दावा नहीं किया कि मोदी की जीत के पीछे उनकी रन नीतियां थीं। ठीक उसी प्रकार 2014 के बाद भाजपा में अमित शाह की आमद के पश्चात उनकी दूरियाँ बढ़ गयी और उन्होने कॉंग्रेस को यूपी (उत्तर प्रदेश में जीतने का बीड़ा उठाया और हात पर चर्चा शुरू की, जहां योगी ने यूपी ए लड़कों(अखिलेश और राहुल) की पार्टी की खाट ही खड़ी कर दी। किशोर ने हार का ठीकरा अपने सर नहीं फूटने दिया और वह नितीश के साथ गलबहियाँ डालते दिखे। बिहार में गठबंधन चुनाव जीत गया किशोर एक बार फिर sसुर्खियों में आए लेकिन जीत के दावे से दूर ही रहे। नितीश के यूपीए से अलग होने पर प्रशांत दीदी के खेमे में चले गए, और दीदी को जीत हासिल कारवाई लेकिन सेहरा अपने सर नहीं बांधने दिया। तो आज फिर ऐसा क्या हो गया की किशोर को बंगाल चुनावों में मुखर हो कर आना पड़ा? राजनैतिक विश्लेषकों की मानें तो किशोर एक कोच की तरह काम करते हैं, जिसका काम खिलवाने का होता है न कि खेलने का। बंगाल में टीएमसी में पड़ी फूट का एक बड़ा कारण प्रशांत किशोर भी माने जाते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि जब कोच मैदान में उतर पड़े तो हार निश्चित है कारण खिलाड़ी कमजोर, निराश और हताश है। क्या किशोर अब बंगाल छोड़ पंजाब आ रहे हैं,वह भी बंगाल चुनाव से पहले? तो क्या जो कयास हैं वह सही हैं? क्या भाजपा को बंगाल के लिए अग्रिम बधाई दे दी जाये?

चंडीगढ़:

पंजाब में 2017 के विधानसभा चुनाव में अपनी रणनीति के बूते कांग्रेस को जोरदार एकतरफा जीत दिलाने वाले चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर एक बार फिर कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ जुड़ गए हैं।  यह जानकारी खुद पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने ट्वीट कर दी है। कैप्टन ने लिखा उन्हें यह बताते हुए खुशी हो रही है कि प्रशांत किशोर उनके प्रधान सलाहकार के रूप में उनसे जुड़ रहे हैं| पंजाब के लोगों की भलाई के लिए हम एक साथ काम करने के लिए तत्पर हैं|

बता दें कि प्रशांत किशोर बंगाल विधानसभा चुनावों में TMC के चुनावी रणनीतिकार हैं। बीते दिनों उन्होंने दावा किया था, “मीडिया का एक वर्ग बीजेपी के समर्थन में माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है, हकीकत यह है कि बीजेपी दहाई के आँकड़े के लिए संघर्ष कर रही है। अगर बीजेपी बंगाल में बेहतर प्रदर्शन करती है तो मैं इस जगह को छोड़ दूँगा।”

प्रशांत किशोर के पिछले दावों और कैप्टन अमरिंदर सिंह की घोषणा के बाद ये चर्चा सोशल मीडिया पर तेज हो गई है कि क्या प्रशांत किशोर बंगाल चुनाव में पराजय की आहट से डर गए हैं? शैशव मित्तल लिखते हैं, “प्रशांत बंगाल से भागे क्योंकि उन्हें दिख रहा है कि अब उनकी दाल बंगाल में नहीं गलेगी। इसलिए नया काम ढूँढ लिया। वैसे उन्होंने कहा था कि अगर भाजपा 99 से ज्यादा सीट जीत गई तो वह जगह को छोड़ देंगे- क्या हुआ तेरा वादा।”

एक ट्वीट में कहा गया है कि प्रशांत किशोर सही खेल गए। उन्हें पता था कि बंगाल चुनाव के बाद उन्हें कहीं जॉब नहीं मिलेगी। ज्योतिष लिखते हैं कि इसे रणनीतिकार कहते हैं। अगर ये 2 मई तक का इंतजार करते तो शायद बिजनेस डील में नुकसान होता।

पिंटू यादव कहते हैं, “अब पंजाब की बारी है। ममता दीदी को डुबाने के बाद इन्होंने पंजाब का रुख किया है।” वहीं एक दूसरे अकाउंट से कहा गया है, “उन्होंने (प्रशांत ने) टीवी शो में कहा था कि बंगाल में अगर भाजपा 99 सीट लाई तो वह राजनीति छोड़ देंगे। उन्हें कम से कम कोई अन्य राजनीतिक जिम्मेदारी सँभालने से पहले 2 मई का इंतजार करना चाहिए। आखिर नैतिकता का सवाल है। “

गौरतलब है कि प्रशांत किशोर पहली बार कैप्टन अमरिंदर सिंह से नहीं जुड़े हैं। पंजाब के 2017 के विधानसभा चुनावों के समय भी उन्होंने कॉन्ग्रेसी की रणनीति तैयार करने में मदद की थी। उस समय अमरिंदर सिंह ने कहा भी था, “मैं बहुत बार कह चुका हूँ कि पीके और उनकी टीम के काम ने हमारी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।”

दिनेश त्रिवेदी का इस्तीफा, टीएमसी ब्यान बाज़ी पर उतरी

दिनेश त्रिवेदी ने राज्‍यसभा से आज इस्‍तीफा दिया है, लेकिन पार्टी से उनकी नाराजगी काफी पुरानी है. वह यूपीए सरकार में रेल मंत्री, स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार कल्‍याण राज्‍य मंत्री का पद भी संभाल चुके हैं.

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

नई दिल्‍ली. 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव से पहले तृणमूल कांग्रेस को एक और बड़ा झटका लगा है. टीएमसी (TMC) के राज्‍यसभा सांसद दिनेश त्रिवेदी (Dinesh Trivedi) ने शुक्रवार को सदन में बजट पर चर्चा के दौरान इस्‍तीफा दे दिया. त्रिवेदी पार्टी के संस्‍थापक सदस्‍य रहे हैं, वह पिछले काफी समय से पार्टी की कार्यशैली से नाराज चल रहे हैं. वह यूपीए सरकार में रेल मंत्री, स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री और परिवार कल्‍याण राज्‍य मंत्री का पद भी संभाल चुके हैं. पार्टी से उनकी नाराजगी और इस्‍तीफे के बीच की कहानी काफी लंबी है.

बता दें कि मनमोहन सिंह के नेतृत्‍व वाली यूपीए सरकार में निदेश त्रिवेदी काफी अहम पद संभाल चुके हैं. उन्‍होंने 2012 में बतौर रेल मंत्री रेल बजट पेश किया था. इस बजट में रेल किराया तो बढ़ाया गया था, लेकिन आधुनिकीकरण और सुरक्षा पर विशेष ध्‍यान दिया था. उस वक्‍त इस बजट को ‘सुधारवादी’ करार दिया गया. लेकिन शायद ममता बनर्जी को यह रास नहीं आया. बजट पेश करने के बाद त्रिवेदी को ममता बनर्जी और पार्टी के कुछ अन्‍य वरिष्‍ठ नेताओं के विरोध का सामना करना पड़ा.

इस बजट पर ममता बनर्जी ने खुलकर नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था, ‘रेल बजट बनाते समय दिनेश त्रिवेदी ने उनसे राय नहीं ली, अगर उन्‍होंने ऐसा किया होता तो वह कभी किराया बढ़ाने नहीं देतीं.’ ममता के इस बयान के बाद त्रिवेदी को काफी अपमानित होना पड़ा और मजबूरन उन्‍हें रेल मंत्री के पद से इस्‍तीफा देना पड़ा. उसके बाद टीएमसी के ही मुकुल राय को रेल मंत्री बना दिया गया. उस समय इस्‍तीफा देने के बाद त्रिवेदी ने कहा था कि अगर वह इस्‍तीफा नहीं देते तो सरकार गिर जाती. उन्‍होंने ममता बनर्जी की नाराजगी पर कहा था कि बजट से पहले ही उन्‍हें हटाने की रणनीति बन गई थी. पार्टी के नेता जानते थे कि बजट के बाद उनका इस्‍तीफा ले लिया जाएगा. पार्टी चीफ ने बजट आते ही किराया बढ़ाने के बहाने उन्‍हें हटा दिया.

पहले भी जता चुके हैं ममता बनर्जी से अलग राय

हालांकि यह ऐसा पहला मौका नहीं था जब ममता बनर्जी और दिनेश त्रिवेदी के बीच वैचारिक मतभेद सामने आए हों. शायद आपको याद हो, वर्ष 2012 में ममता का कार्टून बनाने का मामला सुर्खियों में आया था. उस समय कार्टून बनाने वाले प्रोफेसर को गिरफ्तार किया गया था. प्रोफेसर की गिरफ्तारी पर दिनेश त्रिवेदी ने कहा था कि कार्टून से किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए. कार्टून तो लोकतंत्र का अभिन्‍न अंग है.

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तन लेने के पश्चात दलित नहीं ले सकेंगे जातिगत आरक्षण का लाभ

हिन्दू धर्म में वर्ण व्यवस्था है, हिन्द धर्म 4 वर्णों में बंटा हुआ है, ब्राह्मण, क्षत्रिय, वेश्या एवं शूद्र। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात पीढ़ियों से वंचित शूद्र समाज को सामाजिक न्याय दिलाने के लिए संविधान में आरक्षण लाया गया। यह आरक्षण केवल (शूद्रों (दलितों) के लिए था। कालांतर में भारत में धर्म परिवर्तन का खुला खेल आरंभ हुआ। जहां शोषित वर्ग को लालच अथवा दारा धमका कर ईसाई या मुसलिम धर्म में दीक्षित किया गया। यह खेल आज भी जारी है। दलितों ने नाम बदले बिना धर्म परिवर्तन क्यी, जिससे वह स्वयं को समाज में नचा समझने लगे और साथ ही अपने जातिगत आरक्षण का लाभ भी लेते रहे। लंबे समय त यह मंथन होता रहा की जब ईसाई समाज अथवा मुसलिम समाज में जातिगत व्यवस्था नहीं है तो परिवर्तित मुसलमानों अथवा इसाइयों को जातिगत आरक्षण का लाभ कैसे? अब इन तमाम बहसों को विराम लग गया है जब एकेन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद सिंह ने सांसद में स्पष्ट आर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी।

नयी दिल्ली(ब्यूरो):

इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले दलितों को चुनावों में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों से चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं होगी। इसके अलावा वह आरक्षण से जुड़े अन्य लाभ भी नहीं ले पाएँगे। गुरुवार (11 फरवरी 2021) को राज्यसभा में एक प्रश्न का जवाब देते हुए क़ानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने यह जानकारी दी। 

हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म स्वीकार करने वाले अनुसूचित जाति के लोग आरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के योग्य होंगे। साथ ही साथ, वह अन्य आरक्षण सम्बन्धी लाभ भी ले पाएँगे। भाजपा नेता जीवी एल नरसिम्हा राव के सवाल का जवाब देते हुए रविशंकर प्रसाद ने इस मुद्दे पर जानकारी दी। 

आरक्षित क्षेत्रों से चुनाव लड़ने की पात्रता पर बात करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा, “स्ट्रक्चर (शेड्यूल कास्ट) ऑर्डर के तीसरे पैराग्राफ के अनुसार, कोई भी व्यक्ति जो हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म से अलग है, उसे अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जाएगा।” इन बातों के आधार पर क़ानून मंत्री ने स्पष्ट कर दिया कि इस्लाम या ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले दलितों के लिए आरक्षण की नीति कैसी रहेगी। 

क़ानून मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि संसदीय या लोकसभा चुनाव लड़ने वाले इस्लाम या ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वाले अनुसूचित जाति/जनजाति के व्यक्ति को निषेध करने के लिए संशोधन का प्रस्ताव मौजूद नहीं।    

नेहरू के जमाने में बंगाल ईस्ट पाकिस्तान के हिस्से में जा रहा था। पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए, तो बंगाल को बचाने का काम श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया: जेपी नड्डा

नड्डा ने मालदा में एक जनसभा को संबोधित करते हुए ममता बनर्जी सरकार पर बड़ा हमला बोला है.  बीजेपी के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष ने कहा कि पश्चिम बंगाल के किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना के लाभ से वंचित रखा गया. अब जब चुनाव आ गए हैं तो  ममता बनर्जी कह रही हैं कि हम पश्चिम बंगाल के किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि दिलाएंगे. उस पर रोक नहीं लगाएंगे. लेकिन ममता दीदी ‘अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत.

जेपी नड्डा ने ममता बनर्जी पर हमला करते हुए कहा कि ममता सरकार ने किसानों से अन्याय किया. पीएम किसान योजना ममता ने अपने अभियान, ईगो की वजह से लागू नहीं होने दिया. अब यहां जय श्री राम के नारे लगते हैं तो ममता को इतना गुस्सा क्यों आता है. नड्डा ने कहा, 10 जनवरी को कृषक सहयोग और सुरक्षा अभियान की शुरुआत मैंने की थी. हमने कहा था कि लगभग 40 हजार ग्रामसभा में हमारे ये कार्यक्रम होंगे. मुझे खुशी है कि आज 35 लाख किसान इस कृषक सुरक्षा अभियान से जुड़ गए हैं।

DF – कोलकाता/नईदिल्ली:

पश्चिम बंगाल में चुनावी माहौल गरमा गया है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा शुक्रवार को बंगाल में दो कार्यक्रमों में शामिल हुए। पहला कार्यक्रम माल्दा में और दूसरा नादिया के नवद्वीप में हुआ। नवद्वीप में नड्‌डा ने कहा कि नेहरू के जमाने में बंगाल ईस्ट पाकिस्तान के हिस्से में जा रहा था। पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए, तो बंगाल को बचाने का काम श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने किया।

नड्डा ने अपने भाषण में कहा, ‘मोदीजी ने बंगाल को हर बार सब कुछ देने की कोशिश की। लेकिन ममता ने क्या किया- हर बार होवे ना होवे ना यानी नहीं हो पाएगा, नहीं हो पाएगा। ममता जी जाएंगी, रास्ते का रोड़ा खत्म होगा और बंगाल की जनता को आयुष्यमान भारत योजना का फायदा मिलेगा। ममता जी जाएंगी और 70 लाख किसानों को सम्मान निधि मिलेगी। हर किसान को 14 हजार रुपए मिलेंगे। यह है परिवर्तन, जिसकी हम बात करते हैं।’

बंगाल में रेप के सबसे ज्यादा मामले: नड्डा
बंगाल में हिंसा का जिक्र करते हुए नड्डा ने कहा, ‘यह सरकार तानाशाही की सरकार है। हमारे 130 लोग मारे गए हैं। यह कैसी सरकार है। इसे जाना होगा। हमारे ऊपर अटैक कर सकते हैं तो हम समझ सकते हैं कि सामान्य आदमी की बंगाल में क्या हालत होगी। रेप के मामले सबसे ज्यादा बंगाल में हैं। राज्य में महिला मुख्यमंत्री हो और महिलाओं का सम्मान न हो, तो हमें परिवर्तन चाहिए।’

संस्कृति की रक्षा ममता के बस की बात नहीं
उन्होंने कहा कि संस्कृति की रक्षा की बात ममता जी करती हैं। यह विवेकानंदजी की धरती है, रविंद्रनाथ जी की धरती है। यहां की संस्कृति ममताजी आप नहीं संभाल सकेंगी। इसकी रक्षा भाजपा के लोग ही कर पाएंगे। आपने मेरे नाम के आगे एक विशेषण लगाया था। वह बताता है कि आपकी संस्कृति कितनी ओछी है।

माल्दा में नड्डा ने किसानों के साथ खाना खाया
​​​​​​​माल्दा में नड्डा ने किसानों के साथ खाना खाया और रोड शो किया। इसमें भारी भीड़ देखी गई। उन्होंने यहां एक रैली में कहा कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने ईगो (अहम) के चलते बंगाल में प्रधानमंत्री किसान निधि योजना को लागू नहीं होने दिया। पर अब कह रही हैं कि वे इसे लागू करेंगी। अब पछताए होत का, जब चिड़िया चुग गई खेत।

रैलीमें नड्डा के भाषण की 2 मुख्य बातें

1. ‘जय श्री राम’ से ममता की नाराजगी क्यों
अब तो बंगाल में जय श्री राम के नारे लग रहे हैं। उन्हें इन नारों पर गुस्सा क्यों आता है? किसानों की सेवा की होती तो ममता जी ये दिन नहीं देखने पड़ते। बंगाल विकास में 24वें स्थान पर खड़ा है। सिंचाई की व्यवस्था नहीं है, अनाज के स्टोरेज की व्यवस्था नहीं है। मेरा आपसे निवेदन है कि ममता जी को टाटा करें। बंगाल की जनता ने उन्हें नमस्ते करने का मन बना लिया है।

2. लोगों से पूछा- सरकार कैसी है
नड्डा ने जनता से पूछा कि टोल चोरी कौन कर रहा है, लोगों ने कहा- तृणमूल। नड्डा ने यह भी कहा कि ये मैं नहीं कह रहा, आप ही लोग कह रहे हैं। बंगाल के किसानों को फायदे के लिए महाराष्ट्र तक ट्रेन दे रहे हैं। आप बंगाल में कमल खिलाइए, उसके बाद बंगाल का जबर्दस्त विकास होगा।

बंगाल चुनाव में किसानों का मुद्दा हावी
बंगाल चुनाव के मद्देनजर भाजपा किसानों का मुद्दा जोर-शोर से उठा रही है। प्रधानमंत्री से लेकर भाजपा का हर बड़ा और छोटा नेता पीएम किसान योजना को लेकर ममता बनर्जी पर निशाना साध रहा है। इसको लेकर गृह मंत्री अमित शाह, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्‌डा समेत भाजपा के कई बड़े नेता बंगाल यात्रा के दौरान किसानों के घर खाना खा चुके हैं।

पूरे राज्य में 5 रथ यात्राएं निकालेगी भाजपा
भाजपा पूरे राज्य में 5 रथयात्राएं निकालेगी। इस अभियान को भाजपा ने परिवर्तन यात्रा नाम दिया है। इसकी शुरुआत के लिए नवद्वीप को चुना गया है। यह 15वीं शताब्दी के संत चैतन्य महाप्रभु की जन्मस्थली है।

  • भाजपा 5 रथयात्राएं निकालेगी, इसे रुकवाने के लिए PIL दायर; विजयवर्गीय बोले- लोगों के बीच जाना हमारा मूलभूत अधिकार
  • ये 5 रथयात्राएं
  • पहली- 6 फरवरी को नादिया जिले के नवद्वीप से शुरुआत।
  • दूसरी- 11 फरवरी को कूचबिहार में निकाली जाएगी। इसमें गृहमंत्री अमित शाह शामिल होंगे।
  • तीसरी झारग्राम,
  • चौथी काकद्वीप (दक्षिण 24 परगना) और
  • पांचवी रथयात्रा तारापीठ (बीरभूम) में निकाली जाएंगी। अभी इन रथयात्राओं की तारीख नहीं तय हो पाई हैं

पुलिस ने कहा- पब्लिक मीटिंग की इजाजत है, रथयात्रा की नहीं
रथ यात्रा के लिए परमिशन पर शुक्रवार शाम तक संशय बना रहा। भाजपा ने मार्च के लिए मंजूरी मिलने का दावा किया है। वहीं, पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने कहा कि हमने जेपी नड्‌डा की पब्लिक रैली को मंजूरी दी है। रथयात्रा जैसे किसी इवेंट के लिए अनुमति नहीं दी गई है।

घोष बोले- बंगाल में गेम चेंजर होंगी रथयात्राएं
इस हफ्ते की शुरुआत में पश्चिम बंगाल भाजपा ने महीने भर चलने वाले इस आयोजन के लिए राज्य सरकार से अनुमति मांगी थी। इसमें पार्टी के कई बड़े नेताओं के आने का प्रोग्राम है। राज्य सरकार ने इसके लिए स्थानीय जिला प्रशासन से अनुमति लेने के लिए कहा है।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि ये रथयात्राएं पश्चिम बंगाल की राजनीति में गेम चेंजर साबित होंगी। इससे भाजपा के समर्थन में लहर चलेगी और ये TMC सरकार के ताबूत में आखिरी कील बनेंगी। इसी वजह से TMC अनुमति देने में देरी कर रही है।

विदेशी खिलाड़ियों को सचिन कि नसीहत पर बिफरी कॉंग्रेस और वामपंथी

राष्ट्र विरोधी किसी का भी ब्यान क्यों न हो कॉंग्रेस उसके स्मैथन में खड़ी दीखती है। विदेशी कलाकारों , खिलाड़ियों के भारत के आंतरिक मामलों में आए द्र्भाग्यपूर्ण विवादों के पश्चात ही से कॉंग्रेस उन बयानों के पाक्स में होकर मौजूदा सरकार को घेरने को लेकर अतिऊत्साहित है। इनहि कलारों खिलाड़ियों को जिनको शायद भारत कि राजधानी अथवा यहाँ के राष्ट्रपति का नाम तक न पता हो वह हमारे आंतरिक मामलों में ब्यान दे देते है , जब सचिन ने उन हिलाड़ियों को अपने दायरे में रहने कि नसीहत दी तो कॉंग्रेस को यह बात नागवार गुज़री। कॉंग्रेस के युवा कार्यकर्ताओं ने उनके पटलों पर कालिख पोतनी शुरू आर दी।

क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर के पक्ष-विपक्ष में बिहार की राजनीतिक पिच पर बयानों   के चौके-छक्‍कों की बरसात हो रही है। राजद के राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष शिवानंद तिवारी ने सचिन को भारत रत्‍न (Bharat Ratna) की उपाधि देने को इस सम्‍मान और देश का अपमान बताया तो भाजपा नेता व राज्‍य सभा सदस्‍य सुशील कुमार मोदी ने भारत रत्‍न पर राजनीति करने के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी है। 

दिल्ली/पटना:

दिल्ली की सीमाओं पर चल रहे कथित किसान आंदोलन के नाम पर विदेशी प्रोपेगेंडा को हवा मिलने के बाद भारत की कई नामी हस्तियों ने विदेशी हस्तक्षेप के ख़िलाफ़ होकर देश के साथ एकजुटता दिखाई। बुधवार को इसी लिस्ट में एक नाम क्रिकेट लीजेंड सचिन तेंदुलकर का जुड़ा। सचिन ने भी फर्जी प्रोपेगेंडा के ख़िलाफ़ आवाज बुलंद की थी।

उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, “भारत की संप्रभुता से समझौता नहीं किया जा सकता। बाहरी ताकत दर्शक हो सकते हैं, लेकिन भागीदार नहीं। भारतीय नागरिक भारत के बारे में जानते हैं। हम एक राष्ट्र के तौर पर एकजुट रहें।”

अब बाहरी ताकतों के ख़िलाफ़ सचिन के आवाज उठाते ही कुछ लोगों में हलचल मच गई। सोशल मीडिया पर केरल वाले यूजर्स का एक धड़ा तो खुलकर न केवल सचिन का विरोध करने लगा, बल्कि देश के साथ खड़े होने के लिए उनका अपमान भी किया जाने लगा।

केरल के कोच्चि में शुक्रवार (5 फरवरी 2021) को युवा कॉन्ग्रेस के सदस्यों ने विरोध जताते हुए सचिन तेंदुलकर के कट आउट पर कालिख पोत दी। इसके बाद जमकर नारेबाजी की।

इस बीच कई यूजर्स ने रूस की टेनिस खिलाड़ी मारिया शारापोवा से माफी माँगनी शुरू कर दी है, जिसने एक दफा ये कहा था कि वह सचिन तेंदुलकर को नहीं जानती। शारपोवा ने 7 साल पहले एक प्रश्न के जवाब में अपनी बात कही थी, जब उनसे उनके मैच के दौरान सचिन की उपस्थिति पर पूछा गया था। 

इस घटना के बाद वर्चुअल स्पेस पर कई लोगों ने मारिया शारापोवा को उलटा सीधा बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लोगों ने पूछा था कि आखिर सदी से महान क्रिकेटर को कैसे वह जानने से इनकार कर सकती हैं। दिलचस्प बात यह थी कि ये धड़ा केरल से ही था।

अब यही वजह है कि मात्र सचिन के देश के साथ खड़े भर हो जाने से यही केरल वाले अपनी गलती का पश्चताप कर रहे हैं। तेंदुलकर पर नाराजगी दिखाने के लिए इन्होंने शारापोवा से माफी माँगी है। हैरानी की बात यह है कि भारत के तमाम मीडिया हाउसों ने ऐसी हरकत की निंदा करने की बजाय अप्रत्यक्ष रूप से उनको सराहते हुए अपनी रिपोर्ट पब्लिश की है।

नीचे कुछ रिपोर्ट के शीर्षक उदाहरण के साथ हैं।

भारत में हो रही घटनाओं के बीच मारिया शारापोवा पर केरल के सोशल मीडिया यूजर्स के ऐसे पोस्ट साफ तौर पर बताते हैं कि ये सब भारत के खेल जगत दिग्गजों  को निशाना बनाने के लिए चलाया जा रहा अभियान है, खासकर सचिन को, क्योंकि उन्होंने किसान आंदोलन को अपना समर्थन दिया।

पूरा पैटर्न देखें तो ये सोशल मीडिया यूजर्स ज्यादा से ज्यादा शारापोवा की टाइमलाइन पर जाकर सचिन की छवि मटियामेट करने में लगे हैं। खास बात यह है कि इनमें कुछ कॉमरेड हैं, कुछ कॉन्ग्रेस समर्थक और कई केरल के इस्लामी ट्रोल हैं।

यहाँ कुछ सोशल मीडिया अकाउंट हैं, जिन्होंने शारापोवा से गिड़गिड़ा कर माफी माँगी। 

 कॉमरेड

केरल में वामपंथी पार्टियों में से एक दल लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट के समर्थक सचिन तेंदुलकर पर निशाना साधने वाले पहले थे। हमने जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि इस सूची में कई और नाम हैं।

2024 आम चुनाव से पहले हो जाएगा राम मंदिर निर्माण, विपक्ष परेशान

राम मंदिर निर्माण पूरा होने की तारीख सामने आने से विपक्ष में घबराहट क्यों है? राम मंदिर आंदोलन के शुरू होने के साथ भाजपा-विरोधी एक सुर में भाजपा के नारे का मजाक उड़ाते हुए कहते थे- ‘मंदिर वहीं बनाएँगे, लेकिन तारीख नहीं बताएँगे’। अब जबकि राम मंदिर निर्माण के पूरा होने की तिथि सामने आ गई है तो उन्हीं भाजपा विरोधियों की साँस अटकने लगी है। विपक्षी दल यह मानकर बैठे हैं कि भाजपा मंदिर निर्माण 2024 के ठीक पहले पूरा करवाकर इसे आगामी लोकसभा चुनाव में मुद्दा बनाएगी।

चंडीगढ़ / नयी दिल्ली:

राम मंदिर के लिए देश भर में श्रीराम जन्मभूमि निधि समर्पण अभियान की शुरुआत 15 जनवरी को हो गई है। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राम मंदिर के लिए सबसे पहला चंदा दिया। कोविंद ने 5,00,100 रुपए की धनराशि दान दी। इसी के साथ राम मंदिर निर्माण के पूरा होने की तारीख भी नजदीक आ गई है।

राम मंदिर ट्रस्‍ट के महासचिव चंपत राय ने रायबरेली में हुए कार्यक्रम में 39 महीने के अंदर मंदिर बना देने का ऐलान कर दिया है। चंपत राय के अनुसार, लोकसभा चुनाव 2024 से पहले अयोध्‍या में राम मंदिर बन जाएगा। राम मंदिर निर्माण पूरा होने की तारीख सामने आते ही विपक्षी दलों में घबराहट फैल गई है।

2024 आम चुनाव से पहले हो जाएगा राम मंदिर निर्माण 

कई दशकों पुराने अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद से ही राम मंदिर के लिए तैयारियाँ शुरू हो गई थीं। ट्रस्ट बनने के साथ ही राम मंदिर निर्माण को लेकर अन्य चीजें भी तय हो गई। वहीं, अब राम मंदिर निर्माण पूरा होने की तारीख और निधि समर्पण अभियान की शुरुआत ने सियासी हलकों में भूचाल ला दिया है। 

इसके पीछे कई कारण हैं, लेकिन सबसे बड़ा कारण ‘तारीख’ ही है। कॉन्ग्रेस समेत लगभग सभी विपक्षी दलों ने ‘सुप्रीम फैसला’ आने से पहले तक भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल राम मंदिर निर्माण के मुद्दे को लेकर हमेशा ही सवाल उठाए हैं। 

भाजपा, आरएसएस और अन्य हिंदूवादी संगठनों के कार्यकर्ताओं के नारे ‘रामलला हम आएँगे, मंदिर वहीं बनाएँगे’ के आगे भाजपा विरोधी पार्टियों ने ‘तारीख नहीं बताएँगे’ का तुकांत जोड़ दिया था। यही ‘तारीख’ अब विपक्ष के गले की फाँस बनती नजर आ रही है।

चेंजमेकर के रूप में स्थापित हुई भाजपा

2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में लगातार दो बार बहुमत से ज्यादा सीटें पाकर भाजपा नीत एनडीए की सरकार बन चुकी है। भाजपा अपने चुनावी घोषणा पत्र के कई बड़े और तथाकथित विवादित मुद्दों का हल निकाल चुकी है। 

लोग मानें या ना मानें, लेकिन वो चाहे तीन तलाक का मामला हो, कश्मीर से धारा 370 और 35A हटाने का मामला हो या शरणार्थियों को नागरिकता देने के कानून का, भाजपा ने खुद को ‘चेंजमेकर’ के रूप में स्थापित कर लिया है। 

सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक के बाद आतंकवाद को लेकर ‘जीरो टॉलरेंस’ की नीति को लेकर शायद ही कुछ कहने की जरूरत पड़े। खैर, ये हुई भाजपा के घोषणा पत्र के वादों की बात, अब चलते हैं दूसरी ओर।

बन सकते हैं कई चुनावी समीकरण 

भाजपा ने दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्यों में दस्तक देने के साथ अपनी भौगोलिक पहुँच के विस्तार की शुरुआत भी कर दी है। 2021 में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल, असम और पुडुचेरी (केंद्र शासित प्रदेश) में विधानसभा चुनाव होने हैं। 

पश्चिम बंगाल में भाजपा सत्ता में आने के लिए हर सियासी समीकरण बनाने और रणनीतियाँ अपनाने में जुटी हुई है। पश्चिम बंगाल में 2011 के विधानसभा चुनाव में केवल 4 फीसदी वोट हासिल करने वाली भाजपा, 2016 के चुनाव में 10 फीसदी वोटों तक पहुँच गई। 

वहीं, 2019 लोकसभा चुनाव में चमत्कारिक प्रदर्शन करते हुए 40 फीसदी वोटरों का समर्थन हासिल कर लिया। ऐसे में इस साल होने वाली विधानसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन पर सभी की निगाहें टिकी हैं।

असम में भाजपा और सहयोगी दलों के गठबंधन के सामने विपक्षी दलों के सामने अपनी सत्ता बचाने की चुनौती है। फिलहाल, वहाँ भाजपा नीत एनडीए की सरकार मजबूत स्थिति में नजर आ रही है। 

दक्षिण भारत में कर्नाटक को छोड़ दें तो, भाजपा का तमिलनाडु और केरल में कोई खास जनाधार नजर नहीं आता है। लेकिन, स्थानीय चुनावों में भाजपा ने अपनी स्थिति थोड़ी-बहुत मजबूत कर ली है। 

2016 के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में महज चार सीटें हासिल करने वाली भाजपा ने बीते साल 48 सीटों पर अपना परचम लहराया है। इसे भाजपा की बड़ी उपलब्धि माना जा सकता है। लेकिन, पार्टी को ऐसा प्रदर्शन आगे भी जारी रखना होगा।

राम मंदिर से बदल सकते हैं कई विधानसभा चुनाव के नतीजे

अब आते हैं सबसे खास बात पर, राम मंदिर निर्माण के लिए चलाए जा रहे निधि समर्पण अभियान में 13 करोड़ परिवारों तक पहुँचने का लक्ष्य रखा गया है। निधि समर्पण अभियान 27 फरवरी तक चलाया जाएगा। 

इसके तहत भाजपा, विहिप और आरएसएस के कार्यकर्ता देश भर में घर-घर जाकर चंदा एकत्रित करेंगे। इस अभियान को 2024 लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा की घर-घर में पहुँच बनाने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है। 

खासकर हिंदी भाषी राज्यों में इस अभियान का व्यापक असर देखने को मिल सकता है। साथ ही 2024 के आम चुनाव से पहले हर साल होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों पर भी इसका असर पड़ेगा। 2022 के फरवरी-मार्च में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होंगे। 

इनमें उत्तर प्रदेश के अलावा चार राज्यों में भाजपा और कॉन्ग्रेस के बीच सीधा मुकाबला होना है। वहीं, 2022 के नवंबर-दिसंबर में गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होंगे। यहाँ भी कॉन्ग्रेस और भाजपा के बीच ही मुकाबला होना है। 2023 में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नगालैंड और त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव होंगे। ऐसे में राम मंदिर निर्माण की तारीख के ऐलान से विपक्ष की बेचैनी बढ़ना लाजिमी है।

साभार : रचना कुमारी

मंत्रिमंडल विस्तार पर भाजपा चुप, नितीश परेशान

बिहार में गठबंधन सरकार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। वैसे देखा जाये तो जेडीयू – भाजपा ही में कहीं न कहीं खटास है जिसका लाभ लालू का परिवार झपटने को तैयार बैठा है। भाजपा – जेडीयू अपने हालात से अनभिज्ञ नहीं हैं लेकिन मौन हैं। बिहार में लगातार मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा है लेकिन इसी के बीच अब एक मुद्दा गहराता दिख रहा है। BJP ने अभी तक मंत्रियों के नाम नहीं सौंपे हैं जिसको लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अब हैरान हैं।

पटना. 

बिहार में सरकार गठन के बाद से लेकर मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर सस्पेंस बना हुआ है। भाजपा की ओर से मंत्रिमंडल के लिए नामों की सूची सामने नहीं आने पर नीतीश कुमार ने हैरानी की बात कही है। उन्होंने आज पत्रकारों से कहा कि मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर उनकी भाजपा के साथ अभी कोई बातचीत नहीं हुई है।

नीतीश कुमार ने सचिवालय स्थित अपने कक्ष में बैठक से लौटने के बाद पत्रकारों के सवाल पर कहा कि इसके पहले कभी भी कैबिनेट विस्तार में इतनी देरी नहीं होती थी। हम लोग शुरू में ही कैबिनेट विस्तार कर लेते थे।

दरअसल, बिहार में कैबिनेट विस्तार में देरी होने पर वहां की वहां सियासी गर्मी बनी हुई है। भाजपा और जदयू के बीच समन्वय नहीं बन पाने की भी खबरें भी आती रहीं हैं। विधान सभा चुनाव 2020 के बाद एनडीए को बहुमत मिलने के बाद 16 नवंबर को सीएम नीतीश के साथ 15 मंत्रियों ने शपथ ली थी। चर्चा थी कि 14 जनवरी के बाद तुरंत मंत्रिमंडल विस्तार भी कर दिया जाएगा। एक दिन पहले बीजेपी के बड़े नेताओं की मुख्यमंत्री नीतीश के आवास पर मुलाकात के बाद यह माना जा रहा था कि नए मंत्रियों के नाम पर मुहर लगनी तय है, लेकिन अभी तक मंत्रिमंडल विस्तार को लेकर भाजपा की ओर से पत्ते नहीं खोले गए हैं। इसी को लेकर बिहार की राजनीति में कई तरह के कयास भी लग रहे हैं.नीतिश कुमार ने भी बयान देकर इस पर हैरानी जता दी है।

कॉंग्रेस के 19 में से 11 विधाया एनडीए में शामिल होने को तैयार : भरत सिंह

उत्तराखंड में इन्दिरा हृदयेश के ब्यान ने सियासी खलबली मचा दी थी वहीं अब बिहार से कांग्रेस नेता और पूर्व विधायक भरत सिंह का कहना है कि इस बार कांग्रेस के टिकट से 19 विधायक जीते हैं। लेकिन इनमें 11 विधायक ऐसे हैं जो भले ही कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते हों, लेकिन वो कांग्रेस के नहीं है। उन्होंने दावा किया कि इन लोगों ने पैसे देकर टिकट खरीदे और विधायक बन गए.कांग्रेस नेता ने अपने बयान में कहा कि ये सभी वैसे विधायक हैं जिन्होंने चुनाव के समय कांग्रेस का टिकट हासिल कर लिया था, लेकिन पार्टी से उनका कुछ लेना देना नहीं है। कांग्रेस के पूर्व विधायक भरत सिंह का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस खुद को एकजुट होने का दावा कर रही है। उनके इस बयान के बाद बिहार में सियासत गरमा गई है।

पटना/नयी दिल्ली:

कॉन्ग्रेस नेता भरत सिंह के दावे ने बिहार का सियासी पारा बढ़ा दिया है। उन्होंने दावा किया कि कॉन्ग्रेस के 19 में से 11 विधायक पार्टी छोड़ने का मन बना चुके हैं। कॉन्ग्रेस नेता भरत सिंह ने इस बात का भी दावा किया कि यह ज्यादातर विधायक वहीं हैं जिन्होंने पैसे के बल पर टिकट हासिल किया था। इसके बाद यह चुनाव जीत गए। भरत सिंह ने साफ-साफ कहा कि पार्टी के 11 विधायक आने वाले दिनों में एनडीए में जा सकते हैं। भरत सिंह ने तो यह भी दावा कर दिया कि कॉन्ग्रेस विधायक दल के नेता अजीत शर्मा भी ऐसे लोगों में शामिल हैं जो पार्टी को तोड़ना चाहते हैं।

सिंह की मानें तो मदन मोहन झा वही रास्ता अपना रहे हैं जो अशोक चौधरी ने अपनाया था। उन्होंने ये भी खुलासा किया कि कॉन्ग्रेस के 11 विधायकों ने पैसे देकर टिकट लिया और जीते। लेकिन अब ये ही 11 विधायक एनडीए में शामिल होने की तैयारी कर रहे हैं।

भरत सिंह ने तो यह भी कह दिया जो विधायक पार्टी छोड़ने को तैयार हैं उनका मार्गदर्शक प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष मदन मोहन झा, राज्यसभा सांसद अखिलेश प्रसाद सिंह और वरिष्ठ कॉन्ग्रेसी नेता सदानंद सिंह है। जेडीयू ने कॉन्ग्रेस के वरिष्ठ नेता के इस बयान पर प्रतिक्रिया दी है। पार्टी प्रवक्ता राजीव रंजन ने कहा है कि भरत सिंह का यह बयान जाहिर करता है कि कॉन्ग्रेस में भगदड़ की स्थिति बनी हुई है। संभवतः इसी कारण शक्ति सिंह गोहिल ने प्रभारी पद से इस्तीफा भी दिया है।

यह भी पढ़ें : इंदिरा हृदयेश के एक बयान ने उत्तराखंड की सियासत में खलबली मचा दी है

बता दें कि एक दिन पहले ही बिहार कॉन्ग्रेस प्रभारी और सांसद शक्ति सिंह गोहिल ने आलाकमान को अपने इस्तीफे की पेशकश की थी। उन्होंने एक ट्वीट के जरिए बताया था कि वह अपने स्वास्थ्य कारणों के कारण बिहार के प्रभार से मुक्त होना चाहते हैं। कॉन्ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल के पद छोड़ने की इच्छा को सहमति दे दी है। गोहिल को बिहार प्रभारी की जिम्मेदारी से मुक्त करते हुए भक्त चरण दास को यह दायित्व सौंप दिया गया है।

यही नहीं अपने दावे में भरत सिंह ने आरजेडी से कॉन्ग्रेस को अलग होने की सलाह भी दी है। आपको बता दें कि विधानसभा चुनाव 2020 में खराब प्रदर्शन के बाद बिहार कॉन्ग्रेस में विवाद की स्थिति बनी हुई है। पार्टी नेताओं में आपसी मतभेद की चर्चाएँ लगातार बनी हुई हैं।

वहीं भरत सिंह का बयान सामने आने के बाद बीजेपी प्रवक्ता निखिल आनंद ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तुष्टिकरण की राजनीति छोड़ने वालों का स्वागत है। उन्होंने कहा कि बीजेपी की राजनीति विचारधारा प्रेरित है, सत्ता प्रेरित नहीं है। हम किसी को तोड़ने-फोड़ने में विश्वास नहीं करते हैं। बीजेपी प्रवक्ता ने कहा, “कॉन्ग्रेस पार्टी में टूट की खबर पार्टी के भीतर से ही आ रही है। इससे साबित होता है कि पार्टी में भयंकर असंतोष है और दिल्ली या बिहार के नेतृत्व पर लोगों को अब भरोसा नहीं रह गया है। राहुल गाँधी का मन देश से ज्यादा विदेश में लगता है और कॉन्ग्रेस पार्टी अब एड-हॉक या प्रॉक्सी तरीके से चलाई जा रही है।”

देश के पूर्व गृह मंत्री और वरिष्ठ कॉंग्रेस नेता बूटा सिंह नहीं रहे वह 86 वर्ष के थे

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री सरदार बूटा सिंह का आज सुबह निधन हो गया. 86 साल के बूटा सिंह काफी समय से बीमारी चल रहे थे. पंजाब के जालंधर के मुस्तफापुर गांव में जन्मे बूटा सिंह 8 बार लोकसभा के सांसद रहें. उनकी पहचान पंजाब के बड़े दलित नेता के तौर पर रही. उनके परिवार में पत्नी, दो बेटे और एक बेटी हैं.

  • देश के पूर्व गृहमंत्री बूटा सिंह का हुआ निधन
  • लंबी बीमारी के बाद 87 वर्ष की उम्र में निधन
  • नेहरू-गांधी परिवार के विश्वासपात्र रहे सरदार बूटा सिंह कई वरिष्ठ पदों पर रहे आसीन

जयपुर
नए साल में राजस्थान
और देश की राजनीति को एक बड़ा दुख झेलना पड़ा है। देश की पूर्व गृह मंत्री 87 वर्षीय और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बूटा सिंह का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। उनके जाने के साथ ही देश-प्रदेश के राजनीतिक क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है। राजस्थान से भी बूटा सिंह का खास नाता रहा है। आपको बता दें कि सन 1984 से बूटा सिंह राजस्थान की जालोर सीट से चुनाव लड़ते आ रहे थे। 1999 तक उनका यहां बड़ा लंबा राजनैतिक इतिहास रहा है। लेकिन राजस्थान से उनका नाता कैसे जुड़ा , इसके पीछे एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। दरअसल नेहरू-गांधी परिवार के खास और विश्वासपात्र माने जाने वाले सरदार बूटा सिंह का राजस्थान की राजनीति में आना संयोगमात्र ही माना जा सकता है। लेकिन महत्वपूर्ण बात यह है कि जब राजस्थान से उनका नाता जुड़ा, तो राजनैतिक सफऱ के आखिर चुनाव तक उन्होंने राजस्थान को और राजस्थान ने उनका साथ नहीं छोड़ा ।

ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद राजीव गांधी ने दी सुरक्षित सीट
राजनीति के जानकारों की माने तो ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी चाहते थे कि बूटा सिंह को ऐसी सीट से चुनाव लड़वाया जाए, जहां से उनकी जीत निश्चित हो। लिहाजा बूटा सिंह को कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाली जालोर-सिरोही सीट से दी गई। इससे पहले बूटा सिंह 1966 से पंजाब की रोपड की सीट से चुनाव लड़ रहे थे। वहीं पंजाब के दलित कांग्रेसी नेता बूटा सिंह ने हरियाणा की साधना सीट से अपना पहला चुनाव लड़ा था।

पहली बार में जीते, तो दूसरी बार में हारे
आपको बता दें कि 1984 में हुए चुनाव में बूटा सिंह पहली ही मर्तबा में चुनाव जीत गए। लेकिन 1989 में दोबारा जब उन्होंने चुनाव लड़ा, तो बीजेपी और वरिष्ठ नेता भैरोंसिंह शेखावत को उस दौर के वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल को उनके सामने उतारा गया। लेकिन इस रोमांचक मुकाबले में जीत मेघवाल की हुई। कैलाश मेघवाल चुनाव जीत गए। बूटा सिंह जैसे दिग्गज नेता को हराने के बाद मेघवाल का कद भी बीजेपी में बढ़ गया। लेकिन खास बात यह रही है कि बूटा सिंह ने अपनी सीट नहीं छोड़ी, दोबारा 1991 में जालोर से ही चुनाव जीता। इसी तरह आगे 1999 में सिरोही से सांसद रहे। हालांकि 2004 में जालोर से चुनाव जीतने के बाद उन्हें बिहार का राज्यपाल बनाया गया।

जेडीयू – भाजपा में सब ठीक नहीं

केसी त्यागी ने कहा कि अरुणाचल प्रदेश की घटना को लेकर जेडीयू ने क्षोभ व्यक्त किया है. बीजेपी को अटल बिहारी वाजपेयी के अटल धर्म को अपनाना चाहिए. जेडीयू ने इस मसले पर बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से बात की है. जेडीयू के विधायकों को अरुणाचल के मंत्रिमंडल में शामिल करने की बात कही गई थी, लेकिन उन्होंने अपने पार्टी में ही शामिल कर लिया. इससे जदयू आहत है. त्यागी ने कहा कि लव जिहाद के घृणात्मक काम को लेकर समाज को बांटा जा रहा है , इसे ठीक नही माना जा रहा है. दरअसल, यूपी के बाद मध्य प्रदेश में भी लव जिहाद को लेकर कानून बनाया जा रहा है. हरियाणा समेत कई अन्य राज्यों में इसकी तैयारी है.

पटना.

बिहार में जेडीयू और भाजपा के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है. यह बात हम नहीं, बल्कि खुद जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह का वह बयान कह रहा है जिसमें वह अपने पुराने सहयोगी यानी बीजेपी को सब कुछ ठीक नहीं किये जाने की नसीहत दे रहे हैं. दरअसल, अरुणाचल प्रदेश में जेडीयू के 6 विधायकों का बीजेपी (BJP) में चला जाना पार्टी को बिल्कुल रास नहीं आ रहा है और यही कारण है कि इसकी तल्खी अब दोनों दलों के नेताओं के बयान में भी दिख रही है.

आरजेडी-जेडीयू

मंगलवार को खुद पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने जो कुछ कहा उससे स्पष्ट है कि बिहार में भी अरुणाचल प्रदेश के मामले का असर पूरी तरह से पड़ेगा और सब कुछ फिलहाल ठीक नहीं दिख रहा है. अरुणाचल प्रदेश मामले पर जेडीयू को कितना अंदर तक ज़ख़्म लगा है वो बयानो के ज़रिए सामने आने लगा है. पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने एक निजी चैनल से बातचीत में कहा कि ये ज़ख़्म बहुत गहरा है, ऐसा भविष्य में न हो इसे बीजेपी को देखना होगा. उन्होंने कहा कि हम तो समर्थन दे रहे थे, लेकिन बावजूद इसके जो घटना घटी वो ठीक नहीं है.

बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी के नीतीश कुमार के समर्थन में बोलने पर वशिष्ठ ने कहा कि सुशील कुमार मोदी जो देखते हैं वही बोलते हैं, लेकिन जो कुछ हो रहा है वो ठीक नहीं है. वशिष्ठ नारायण सिंह ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान आरसीपी सिंह को सौंपे जाने पर कहा कि आने वाले समय में JDU में एक पद एक व्यक्ति का सिद्धांत लागू हो सकता है, इसमें हर्ज क्या है