घर द्वार तक राशन पहुँचने वाली दिल्ली में 3 बच्चियों की भूख से हुई मौत

 

दिल्ली के मंडावली में भूख से तीन लड़कियों की मौत के मामले में महिला आयोग ने दिल्ली पुलिस से रिपोर्ट मांगी है. वहीं इस मामले में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि 25 हजार की फौरन मदद उपलब्ध करवाई गई है. लड़की की मां को अस्पताल में भर्ती कराया गया है और यह सुनिश्चित किया गया है कि उन्हें बेहतर इलाज मिले. जैसे ही लड़कियों के पिता वापस आएंगे, हम उन्हें और आर्थिक मदद उपलब्ध करवाएंगे.

सिसोदिया ने कहा कि हमारा सिस्टम फेल हो चुका है. हमने इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विस से रिपोर्ट मांगकर पूछा है कि क्या ये लोग हमारे रिकॉर्ड में थे. अगर ऐसा है तो इन लड़कियों की मदद क्यों नहीं की गई.

बता दें कि पूर्वी दिल्ली के मंडावली इलाके में तीन बहनों की मौत हो गई थी. शुरुआती पोस्टमार्टम रिपोर्ट में इस बात का संकेत मिला था कि उनकी मौत भुखमरी से हुई है. मामला चर्चा में आते ही दिल्ली सरकार ने मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिए थे. इन तीनों की उम्र दो, चार और आठ साल थी. बुधवार की दोपहर में करीब एक बजे उनकी मां और एक मित्र उन्हें अस्पताल लेकर आए थे. जिसके बाद अस्पताल प्रशासन ने पुलिस को उनकी मौत के बारे में सूचित किया.

 

गाय मुस्लिम के लिए तो प्रेम दलित के लिए लिंचिंग का कारण बने


भारत पाकिस्तान सरहद पर बसे बाड़मेर के सरहदी गांव में एक दलित युवक को प्रेमप्रसंग के चलते पीट पीटकर मार दिया गया


अलवर में अकबर की घटना के बाद देश में एक तरफ़ तो मॉब लांचिंग को लेकर संसद से सड़क तक घमासान मचा हुआ है, वहीं दूसरी तरफ़ भारत पाकिस्तान सरहद पर बसे बाड़मेर के सरहदी गांव में एक दलित युवक को प्रेमप्रसंग के चलते पीट पीटकर मार दिया गया. मामले में पुलिस ने दर्जनभर आरोपियों में से दो लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है.

वारदात बाड़मेर के मेकरनवाला गांव में शुक्रवार रात को हुई थी. वहां दर्जनभर के लोगों पीट-पीटकर एक दलित युवक भिण्डे का पार निवासी खेताराम भील की हत्या कर दी. हत्या के बाद शव को उठाकर नजदीक सूनसान स्थित ढाणी में फेंक दिया. हत्या के पीछे अल्प संख्यक युवती से उसका प्रेम प्रसंग बताया जा रहा है. शनिवार को युवक का शव पड़ा देखकर ग्रामीणों ने पुलिस को इसकी जानकारी दी. इस पर पुलिस ने शव की शिनाख्त करवाकर पोस्मार्टम के बाद परिजनों के सुपुर्द कर दिया.

गांव में बनाई अस्थाई चौकी

मामले के बाद पुलिस ने सांप्रदायिक माहौल बिगड़ने की आशंका के चलते गांव में अस्थाई चौकी बना दी है. वहीं मामले की जांच वृत्ताधिकारी स्तर के अधिकारी को दी गई है. पूरे मामले में परिजनों ने करीब एक दर्जन लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करवाया है. पुलिस ने इस मामले में दो युवकों पठाई खान व अनवर खां निवासी मेकरनवाला को गिरफ्तार किया है. दोनों ने पूछताछ ने यह बात क़बूली है कि प्रेम प्रसंग के चलते इन्होंने खेताराम की पीट पीटकर हत्या की है. आरोपियों को मंगलवार को कोर्ट में पेशकर सात दिन के रिमांड पर लिया गया है.

2019: कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है

क्या कांग्रेस 1977 के चुनावी फॉर्मूले को लेकर 2019 का चुनाव जीतने का ख्वाब संजो रही है? 1977 में जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ समूचा विपक्ष एकजुट हुआ था क्या वो ही तस्वीर 2019 में बीजेपी के खिलाफ दिखाई देगी?

दरअसल बीजेपी की इस वक्त मजबूत स्थिति 1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस की स्थिति को दर्शा रही है. कांग्रेस की ही तरह बीजेपी आज देश की सबसे बड़ी राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर राज्य दर राज्य अपनी विजय यात्रा जारी रखे हुए है. बीजेपी के विजयी रथ को रोकने के लिये कांग्रेस वर्किंग कमेटी में गहन मंथन हुआ. पूर्व गृहमंत्री पी चिदंबरम ने 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘मिशन 300’ का प्लान पेश किया है.

chidambaram

चिदंबरम का मानना है कि 12 राज्यों में कांग्रेस के मजबूत जनाधार को देखते हुए 150 सीटों का लक्ष्य रखा जाए. कांग्रेस अगर अपनी मौजूदा सीटों की संख्या को तीन गुना बढ़ा कर 150 तक पहुंचा ले तो बाकी 150 सीटों का बचा हुआ काम क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन पूरा कर सकते हैं. जिससे 272 के ‘मैजिक फिगर’ को यूपीए-3 पार कर सकती है.

चिदंबरम का मानना है कि तकरीबन 270 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों के साथ रणनीतिक गठबंधन की मदद से 150 सीटें जीती जा सकती हैं. चिदंरबरम फॉर्मूले के तहत कांग्रेस 300 सीटों पर अकेले और 250 सीटों पर रणनीतिक गठबंधन के साथ चुनाव लड़े.

साल 2004 में भी कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में 145 सीटें मिली थीं जिसके बाद उसने केंद्र में यूपीए-1 की सरकार बनाई थी. लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल 44 सीटें ही जीत सकी थी.

कांग्रेस की रणनीति ये हो सकती कि वो जिन राज्यों में मजबूत स्थिति या फिर नंबर दो पर हो वहां बीजेपी से सीधा मुकाबला करे. लेकिन जिन राज्यों में उसकी स्थिति नंबर 4 की हो तो वहां क्षेत्रीय दलों को बीजेपी से टक्कर के लिये आगे बढ़ाए और खुद पीछे रह कर समर्थन करे.

एनसीपी नेता शरद पवार ने भी ऐसा ही सुझाव कांग्रेस को सुझाया था. पवार ने चुनाव पूर्व महागठबंधन की कल्पना अव्यावाहरिक बताया था. उन्होंने महागठबंधन के आड़े आ रही क्षेत्रीय दलों की निजी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की मजबूरी को सामने रखा था. उनका कहना था कि चुनाव में क्षेत्रीय दल पहले अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत करना चाहेंगे. भले ही बाद में बीजेपी विरोधी दल समान विचारधारा के नाम पर एक छाते के नीचे महागठबंधन बना लें.

लेकिन सवाल ये उठता है कि कांग्रेस के लिये आखिर 150 का आंकड़ा भी कैसे और किन राज्यों से आ सकेगा? इमरजेंसी के बाद कांग्रेस ने जिस तरह से सत्ता में धमाकेदार वापसी की थी, वैसा ही करिश्मा दिखाने के लिये कांग्रेस के पास आज न ज़मीन है और न ही चेहरा.

दरअसल इमरजेंसी के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी की सबसे बड़ी वजह खुद जनता पार्टी भी थी. जनता पार्टी की सरकार अंदरूनी कलह की वजह से गिर गई थी. जिसका फायदा उठाते हुए कांग्रेस जनता को ये समझाने में कामयाब रही कि सिर्फ कांग्रेस ही देश में शासन चला सकती है. उस वक्त कांग्रेस के पास इंदिरा गांधी जैसा करिश्माई चेहरा भी था. पाकिस्तान से 1971 की जंग जीतने के सेहरा उनके राजनीतिक बायोडाटा में दर्ज था. ‘इंदिरा इज़ इंडिया’ जैसे नारों की गूंज थी. लेकिन आज कांग्रेस के पास बीजेपी के भीतर भूचाल लाने वाले चेहरे का शून्य साफ देखा जा सकता है.

जहां कांग्रेस के लिये यूपीए 3 को लेकर चुनाव पूर्व गठबंधन की राहें इतनी आसान नहीं है तो वहीं चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर भी आशंकाएं दिनों-दिन गहराने का ही काम कर रही हैं. अविश्वास प्रस्ताव में बीजेडी और टीआरएस जैसी पार्टियों के रुख ने कांग्रेस को झटका देने का काम किया है. इन दोनों ही पार्टियों ने खुद को वोटिंग से अलग रख कर बीजेपी का ही एक तरह से साथ दिया है. जबकि महागठबंधन को लेकर एसपी,बीएसपी और टीएमसी जैसी पार्टियों ने अब तक अपना रुख साफ नहीं किया है. कांग्रेस के साथ गठबंधन करने में इन पार्टियों को अपने जनाधार खिसकने का भी डर है.

समान विचारधारा के नाम पर भी ये पार्टियां यूपीए3 का हिस्सा बनने से कतरा रही हैं क्योंकि कांग्रेस के ‘मुस्लिम पार्टी’ के ठप्पा का डर इन्हें भी लगने लगा है. यूपी विधानसभा चुनाव में एसपी का मुस्लिम-यादव समीकरण का सत्ता दिलाने का हिट फॉर्मूला फेल हो गया तो बीएसपी की सोशल इंजीनियरिंग का किला भी ध्वस्त हो गया था. साफ है कि अब एसपी-बीएसपी भी लोकसभा चुनाव में हर कदम फूंक-फूंक कर रखेंगीं. ऐसे में कमजोर कांग्रेस के साथ चुनावी तालमेल की संभावना सियासी सौदेबाजी के कई चरणों के बाद ही हो सकती है.

बिहार की राजनीति में कांग्रेस अपने ही वजूद के लिये संघर्ष कर रही है. ऐसे में यहां उसके पास यूपीए के सहयोगी आरजेडी के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई चारा नहीं है. बिहार की राजनीति में मुख्य लड़ाई आरजेडी और बीजेपी-जेडीयू के बीच ही होगी.

जबकि पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी पार्टी टीएमसी की नेता ममता बनर्जी का ज्यादा जोर थर्ड फ्रंट बनाने पर दिखता रहा है. लेकिन टीआरएस के बदले-बदले से मिजाज को देखकर वो भी अब खुद की पार्टी को ही चुनाव में मजबूत करने का काम करना चाहेंगीं. इसी तरह तमिलनाडु और केरल जैसे दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस की उम्मीदें डीएमके और सीपीएम जैसी पार्टियों पर है. इन राज्यों में कांग्रेस को अपने ही धैर्य का इम्तिहान लेना होगा. सीपीएम कभी हां-कभी ना के साथ कांग्रेस के साथ दिखाई देती है तो वहीं डीएमके भी बदलते राजनीतिक समीकरणों के चलते कोई नया दांव चल सकती है.

दरअसल सवाल सभी क्षेत्रीय दलों के अपने वजूद का भी है जो कि मोदी लहर की वजह से गड़बड़ाने के बाद अबतक सम्हल नहीं सका है.

ऐसे में कांग्रेस को मिशन 150 के लिये बीजेपी की मिशन 300+ की रणनीति से ही कुछ सीक्रेट फॉर्मूले निकालने होंगे. एक वक्त तक बीजेपी को सवर्णों की पार्टी कहा जाता था तो कांग्रेस को दलित-मुसलमानों के मसीहा के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाता था. लेकिन आज बीजेपी ने सवर्णों की पार्टी के टैग को हटा कर सोशल इंजीनियरिंग की जो मिसाल पेश की उसकी काट किसी के पास नहीं है. कांग्रेस को भी एक नए समीकरण की तलाश करनी होगी क्योंकि उसका वोट बैंक क्षेत्रीय दल लूट चुके हैं.

यूपी में कांग्रेस को फिलहाल मंथन करने की जरूरत नहीं है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को केवल 2 सीटें ही मिलीं. जबकि साल 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे सिर्फ 7 सीटें मिलीं. गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में उसकी जमानत भी जब्त हुई. ऐसे में यहां ज्यादा एक्सपेरीमेंटल होने की जरुरत नहीं है. यूपी की 80 लोकसभा सीटों को देखते हुए कांग्रेस को एसपी-बीएसपी गठबंधन पर ही भरोसा दिखाना होगा. कांग्रेस के पास यूपी में कोई करिश्माई चेहरा नहीं है. ऐसे में कांग्रेस सौदेबाजी की हालत में नहीं है. यहां वो दर्शन ठीक है कि जो मन का हो जाए तो ठीक है और न हो तो और भी ठीक है.

हालांकि साल 2009 की तर्ज पर कांग्रेस यहां सभी 80 सीटों पर दांव भी खेल सकती है क्योंकि उसके पास यहां खोने को कुछ नहीं है. अगर दांव चल गया तो कांग्रेस के लिये सबसे अप्रत्याशित एडवांटेज होगा.

गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं. साल 2014 में गुजरात में कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत पाई थी. लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव में ‘ट्रेलर’ दिखाने वाली कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में पूरी ‘पिक्चर’ दिखाएगी. गुजरात कांग्रेस का दावा है कि वो लोकसभा चुनाव में सभी बीजेपी विरोधी ताकतों को साथ लाकर मोदी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलेगी.

गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने हार्दिक पटेल, अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी जैसे नेताओं के साथ गठबंधन कर बीजेपी के ‘क्लीन-स्वीप’ के तिलिस्म को तोड़ दिया था. ऐसे में इस बार गुजरात में कांग्रेस को संभावना दिख रही हैं जो कि उसकी 150 सीटों के लक्ष्य को हासिल करने के लिये बूंद-बूंद से घड़ा भरने का काम कर सकती है.

इस बार पंजाब और राजस्थान को लेकर कांग्रेस आत्मविश्वास से लबरेज है. पंजाब में कांग्रेस ने सत्ता में वापसी की है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में हारी कांग्रेस ने 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में जबरदस्त वापसी की. इस चुनाव से न सिर्फ उसकी सीटों में इजाफा हुआ बल्कि वोट प्रतिशत में भी बढ़ोतरी हुई. विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 38.5 फीसदी मत मिले. वहीं गुरुदासपुर लोकसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मिली जीत से कांग्रेस उत्साहित है. ऐसे भी संकेत मिल रही हैं कि लोकसभा चुनाव में बीजेपी और शिरोमणि अकाली दल को कड़ी टक्कर देने के लिये कांग्रेस आम आदमी पार्टी से भी हाथ मिला सकती है. आम आदमी पार्टी ने पंजाब के विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय मुकाबले में बदल दिया था.

इसी साल मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में चुनाव होने वाले हैं. मध्य प्रदेश में लोकसभा की 29 सीटों में कांग्रेस के पास केवल 2 ही सीटें हैं. ये सीटें ज्योतिरादित्य सिंधिया ने गुना और कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में जीती थीं. लेकिन इस बार कांग्रेस को एमपी में एंटीइंकंबेंसी से काफी उम्मीदें हैं. शिवराज के 15 साल के शासनकाल में उपजी सत्ताविरोधी लहर के भरोसे कांग्रेस न सिर्फ विधानसभा चुनाव जीतने का सपना देख रही है बल्कि उसे लोकसभा सीटें मिलने की भी उम्मीदें है.

इसी तरह छत्तीगढ़ में लोकसभा की 11 सीटें हैं. लेकिन कांग्रेस के पास यहां विद्याचण शुक्ल जैसा पुराना चेहरा नहीं है. नक्सली हमले में कांग्रेस ने अपने कई बड़े नेताओं को खो दिया था. बीजेपी के मुख्यमंत्री रमन सिंह का फिलहाल कांग्रेस के पास यहां कोई तोड़ नहीं दिखाई देता है.

राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता में आने का पूरा भरोसा है. यहां हर पांच साल में सरकार बदलने की परंपरा है. विधानसभा चुनाव के साथ ही कांग्रेस को यहां लोकसभा सीटें भी जीतने की उम्मीद है. साल 2014 में राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट कांग्रेस नहीं जीत सकी थी. लेकिन इस बार उपचुनावों में उसने लोकसभा की दो और विधानसभा की एक सीट जीती.

उत्तर-पूर्वी राज्यों में एक वक्त कांग्रेस का एकछत्र राज होता था. लेकिन बीजेपी ने अपनी रणनीति के तहत उत्तर-पूर्वी राज्यों में ताकत झोंक दी. बीजेपी ये जानती है कि यूपी में साल 2014 का करिश्मा दोहरा पाना आसान नहीं होगा. इसलिये उसने वैकल्पिक सीटों के लिये उत्तर-पूर्वी राज्यों को खासतौर से टारगेट किया. ये इलाके कांग्रेस और लेफ्ट का गढ़ होने के बावजूद अब भगवामय हो चुके हैं.

असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और त्रिपुरा में बीजेपी की सरकार है. वहीं नागालैंड में नागा पीपुल्स फ्रंट-लीड डेमोक्रेटिक गठबंधन को बीजेपी का समर्थन मिला हुआ. ऐसे में कांग्रेस को उत्तर-पूर्वी राज्यों में कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी क्योंकि बीजेपी ने पूर्वोत्तर की 25 लोकसभा सीटों के लिये साल 2014 से ही तमाम परियोजनाओं के जरिये साल 2019 की तैयारी शुरू कर दी थी.

सबसे ज्यादा असम के पास 14 लोकसभा सीटें हैं. असम में बीजेपी की सरकार है. बीजेपी ने पूर्वोत्तर को कांग्रेस मुक्त बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. कांग्रेस पांच राज्यों से सिमट कर मेघालय और मिजोरम तक ठहर गई है.

महाराष्ट्र को लेकर कांग्रेस थोड़ी सी आशान्वित हो सकती है. महाराष्ट्र के वोटरों में हर पांच साल में सरकार बदलने की मानसिकता रही है. यूपी के बाद महाराष्ट्र ही लोकसभा की सबसे ज्यादा 48 सीटें देता है. यहां असली मुकाबला कांग्रेस-एनसीपी और बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के बीच है. फिलहाल जो राजनीतिक हालात हैं उसे देखकर लग रहा है कि बीजेपी यहां पर अकेले दम पर चुनाव लड़ सकती है क्योंकि शिवसेना के साथ रिश्ते काफी बिगड़ चुके हैं. कांग्रेस और एनसीपी इसका फायदा उठा सकते हैं.

कर्नाटक में भले ही कांग्रेस दोबारा सरकार नहीं बना पाई लेकिन उसे जेडीएस के रूप में साल 2019 का लोकसभा पार्टनर मिल गया है. कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में कांग्रेस को साल 2014 में केवल 9 सीटें ही मिली थीं. ऐसे में कांग्रेस और जेडीएस का गठबंधन इस बार चुनाव में बीजेपी का गेम-प्लान बिगाड़ने का काम कर सकता है.

चिदंबरम के गेम-प्लान के मुताबिक अगर कांग्रेस को 150 सीटें हासिल करनी है तो उसे मध्यप्रदेश,छत्तीसगढ़, राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और पूर्वोत्तर के राज्यों में जोरदार मेहनत करनी होगी तो वहीं क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले राज्यों में गठबंधन को ही रणनीति बनानी होगी.

चिदंबरम के फॉर्मूले में अंकगणित के हिसाब से कागजों पर कांग्रेस करिश्मा देख सकती है. लेकिन बड़ा सवाल ये है कि मोदी-विरोधी मोर्चा केंद्र सरकार के खिलाफ किन मुद्दों पर मैदान में ताल ठोंक सकेगा? सिर्फ मोदी विरोध के नाम पर चुनाव जीतने की गलतफहमी कांग्रेस को साल 2014 की ही तरह दोबारा ‘हाराकीरी’ पर मजबूर ही करेगी.

कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी होगी. पीएम मोदी के खिलाफ आपत्तिजनक बयानों से बचना होगा. इसकी शुरुआत खुद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को ही करनी पड़ेगी तभी दूसरे वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जबान पर लगाम रखेंगे. अब राहुल भी ये जान चुके हैं कि ‘आंखों में आंख न डाल पाने वाले’ मोदी अविश्वास प्रस्ताव पर कैसे विरोधियों को धूल चटा गए हैं.

कांग्रेस में पीएम मोदी पर बोलने के नाम पर ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ का ‘भरपूर इस्तेमाल’ करने वाले नेता ही अपनी पार्टी का काम तमाम करते आए हैं. तभी राहुल को सीडब्लूसी की बैठक में बड़बोले नेताओं की बोलती बंद करने के लिये कड़ी कार्रवाई की धमकी देनी पड़ी है.

बहरहाल, कांग्रेस ये सोचकर खुद में आत्मविश्वास भर सकती है कि इस साल लोकसभा की दस सीटों पर हुए उपचुनावों में बीजेपी 8 सीटों पर हारी है. वहीं बीजेपी भी 8 सीटों की हार से 2019 के अपने मिशन 300+ की दोबारा समीक्षा कर सकती है. फिलहाल सौ साल पुरानी कांग्रेस को 150 सीटों की सख्त दरकार है. ये चुनौती इसलिये भी बड़ी है क्योंकि कांग्रेस के पास 272 के ‘मैजिक फिगर’ के लिये कोई जादुई छड़ी नहीं है.

वसुंधरा की मौजूदगी में किरोड़ी लाल मीणा ने थामा कमल

 

राजस्थान में एनपीपी प्रमुख किरोड़ी लाल मीणा की करीब 10 साल बाद रविवार को भारतीय जनता पार्टी में वापसी हो गई है. राजधानी के बीजेपी मुख्यालय पर मीणा को गर्मजोशी से स्वागत किया गया. मीणा की वापसी पर आयोजित एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, बीजेपी प्रदेश अध्‍यक्ष अशोक परनामी सहित कई मंत्री शामिल हुए.

किरोड़ी लाल मीणा अपनी पत्नी और विधायक गोलमा देवी के साथ बीजेपी मुख्यालय पहुंचे. उनके साथ विधायक गीता देवी भी रहीं. बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष अशोक परनामी ने पार्टी मुख्यालय पर उनका स्वागत किया. मीणा को पार्टी का दुपट्टा और माला पहनाकर स्वागत किया गया.

भाजपा प्रदेश अध्‍यक्ष अशोक परनामी ने मीणा के पार्टी में पुनर्वापसी पर कहा कि विचारधारा में विचारधारा शामिल हो रही है. पार्टी का विस्‍तार करना है. इसलिए सबको गले लगाना चाहते हैं. परनामी ने आगे कहा कि पार्टी के द्वार सभी के लिए खुले हुए हैं. पुराने साथी आ सकते हैं. अभी तो किरोड़ी लाल मीणा पार्टी में शामिल हो रहे हैं. हालांकि मीणा के राज्‍यसभा टिकट पर चर्चा न करते हुए उन्होंने कहा कि फिलहाल उनकी पार्टी में वापसी पर फोकस है.

बता दें कि किरोड़ी लाल मीणा के सियासी संबंध राजस्‍थान की मुख्‍यमंत्री वसुंधरा राजे के साथ ठीक नहीं हैं. 2008 में इन दोनों के सियासी रिश्‍तों में खटास आ गई थी. जिसके बाद किरोड़ी लाल मीणा ने वसुंधरा मंत्रिमंडल से इस्‍तीफा दे दिया था

वसुंधरा ही रहेंगी भाजपा की मुख्यमंत्री की उम्मीदवार


शाह ने कहा कि राजस्थान में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की परंपरा इस बार टूटने जा रही है. उन्होंने कहा कि वसुंधरा राजे की सरकार ने राजस्थान में बहुत काम किया है


बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह शनिवार को प्रदेश बीजेपी कार्यसमिति की दो दिन की बैठक के समापन सत्र को संबोधित करने के लिए जयपुर पहुंचे. उन्होंने बैठक में ऐलान किया कि भावी विधानसभा चुनाव में मौजूदा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया ही मुख्यमंत्री की उम्मीदवार होंगी.

शाह ने इस बैठक में आगामी विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों की समीक्षा की. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे, प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष मदनलाल सैनी और अन्य लोगों ने सांगानेर हवाई अड्डे पर शाह की अगवानी की.

शाह के स्वागत के लिए हवाई अड्डे के बाहर बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता मौजूद थे. तोतूका भवन में शाह प्रदेश कार्यसमिति के दो दिवसीय समापन समारोह को संबोधित किया.

शाह ने कहा कि राजस्थान में एक बार बीजेपी और एक बार कांग्रेस की परंपरा इस बार टूटने जा रही है. उन्होंने कहा कि वसुंधरा राजे की सरकार ने राजस्थान में बहुत काम किया है. भामाशाह योजना, मुख्यमंत्री जल स्वावलंबन अभियान और गौरव पथ जैसी कई योजनाओं को देशभर में यश मिला है.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस नकारात्मक राजनीति कर अफवाहें फैलाने का काम कर रही है. यह लोकतंत्र पर अघोषित हमला है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी देश से अपना जुड़ाव महसूस नहीं कर सकते. कांग्रेस बीजेपी का मुकाबला नहीं कर सकती. कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा खत्म हो गया है. अब तो कांग्रेस में भ्रष्टाचारियों को जमघट बचा है.’

उन्होंने कहा, ‘पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, केरल, तमिलनाडु, कनार्टक जब तक नहीं जीत लेते तब तक हमारी जीत पूरी नहीं है. मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने कहा कि हम विधानसभा चुनावों में पिछली बार से भी अधिक सीटें जीतेंगे. पिछली जीत से भी इस बार की जीत बड़ी होगी. हम लोकसभा चुनाव में सभी 25 सीटें जीतकर एक बार फिर नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाएंगे. प्रदेश की जनता कांग्रेस की चालों को समझ गई है. हमारे पास चुनाव जीतने की हर वजह मौजूद है.

एक अन्य बैठक में शाह ने जयपुर के राज मंदिर सिनेमा घर में सोशल मीडिया सेल के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि प्रदेश में सोशल मीडिया की हमारी टीम ही बीजेपी को जीत दिलाएगी.

28 years youth lynched in Alwar


A 28-year-old was allegedly lynched by villagers on suspicion of cow smuggling in Alwar on Friday night, the police said.


A 28-year-old was allegedly lynched by villagers on suspicion of cow smuggling in Alwar on Friday night, the police said. The victim Akbar, along with Aslam, were transporting cows on foot when they were questioned by villagers in Ramgarh police jurisdiction, Ramgarh police station Sub Inspector Subhash Chand said.

“They were taking two cows on foot sometime between 12 -1 am last night when villagers stopped them. However, they tried to run away and the mob chased them and caught them. While Akbar was assaulted, Aslam managed to escape,” Chand said, adding that “Akbar succumbed to his injuries.”

“We retrieved two cows and sent to a nearby gaushala. We have also registered an FIR under IPC Sections 302 (murder), 143 (unlawful assembly), 341 (wrongful restraint), 323 (voluntarily causing hurt), 34 (acts done by several persons in furtherance of common intention),” he said.

Rajasthan Chief Minister Vasundhara Raje condemned the incident and assured strict action against the perpetrators. She tweeted, “The incident of alleged lynching of a person transporting bovines in Alwar district is condemnable. Strictest possible action shall be taken against the perpetrators.”

No arrests have been made in the case.


The incident of alleged lynching of a person transporting bovines in Alwar district is condemnable. Strictest possible action shall be taken against the perpetrators.


हामीद अंसारी की परेशानी जोशी की जुबानी

 

नई दिल्ली. संघ और भाजपा से जुड़े रहे पूर्व प्रचारक संजय विनायक जोशी फिर से जोश में आ गए हैं. अचानक उन्होंने एक ब्लॉग लिखकर अपने तेवर दिखा दिए हैं. यूं तो उन्होंने पूर्व उप-राष्ट्रपति हामिद अंसारी पर निशाना साधा है लेकिन सीधे तौर पर उनके निशाने पर भारत ही नहीं दुनियां भर के मुसलमान और इस्लाम तो है ही, उनकी तरफदारी करने वाले लोग भी हैं. इस ब्लॉग को उनकी फौरी प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जाए या भविष्य का कोई संकेत, ये तो आने वाले वक्त में ही पता चलेगा, लेकिन उनके तेवर काफी सख्त हैं.

जोशी बिना लाग लपेट के सीधे हामिद अंसारी पर सवाल उठाते हुए लिखते हैं कि, ‘हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने कहा था कि देश के मुस्लिमों में बेचैनी का अहसास और असुरक्षा की भावना है. अभी-अभी आ रही एक बेहद सनसनीखेज खबर से साबित हो गया है कि आखिर हामिद अंसारी जैसे लोगों में असुरक्षा की भावना क्यों पनप रही है. खबर है कि उत्तराखंड में मदरसों में पढ़ने वाले करीब 2 लाख मुस्लिम बच्चे रातों-रात गायब हो गए हैं’. दरअसल उन्होंने व्यंग्यात्मक लहजे में आधार लिकिंग के बाद उत्तराखंड में वजीफों में आई कमी को हामिद अंसारी के बयान से जोड़ दिया है.

वो आगे लिखते हैं, ‘ये तो अकेले उत्तराखंड का मामला है, अब आप खुद ही समझ सकते हैं कि जब सीएम योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश में मदरसों को अपना रजिस्ट्रेशन करवाने को कहा तो क्यों इतना हंगामा खड़ा कर दिया गया. इस बात से साबित हो गया है कि बीजेपी की सरकार आने के बाद से मुस्लिम खुद को क्यों असुरक्षित महसूस कर रहे हैं’. वजीफे के मुद्दे पर ही नहीं वो मदरसों को और भी बातों के लिए निशाने पर लेते हैं, ‘उत्तर प्रदेश में तो और भी काफी कुछ चल रहा है. सरकारी पैसों की लूट वहां भी ऐसे ही की जा रही है, साथ ही खुफिया एजेंसियों ने ये भी अलर्ट दिया है कि कई मदरसों में बच्चों को कट्टरपंथी शिक्षा भी दी जा रही है. इस तरह की गड़बड़ियों को देखते हुए सीएम योगी ने सभी मदरसों का रजिस्ट्रेशन जरूरी कर दिया है. राज्य में कई मदरसे बिना रजिस्ट्रेशन के चल रहे हैं, उन्हें फंड कहाँ से आता है, इसकी किसी को कोई जानकारी तक नहीं है.इन मदरसों में क्या पढ़ाया जा रहा है, इस पर भी सरकार का कोई नियंत्रण नहीं होता. जबकि ऐसे छात्रों को लगातार अल्पसंख्यक कल्याण योजनाओं के तहत तमाम फायदे मिलते रहते हैं.’.

हामिद अंसारी पर निशाना साधते हुए संजय जोशी लिखते हैं, ‘उत्तर प्रदेश सरकार राज्य में चल रहे लगभग 800 मदरसों पर प्रतिवर्ष 4000करोड़ रुपये खर्च करती है. मगर हैरत की बात है कि इसका एक बड़ा हिस्सा छात्रों तक पहुंचने की जगह उन लोगों की जेब में जा रहा है, जिन्हें लेकर हामिद अंसारी जैसे लोग परेशान हो रहे हैं’. मदरसों के बाद वो अपने ब्लॉग में इंटरनेशनल लेवल पर हो रही घटनाओं को इस्लाम से जोड़ देते हैं, ‘वैसे देखा जाय तो पाकिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है ? अफगानिस्तान में मुसलमानों को कौन मार रहा है? सीरिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है? यमन में मुसलमानों को कौन मार रहा है? इराक में मुसलमानों को कौन मार रहा है? लीबिया में मुसलमानों की हत्या कौन कर रहा है? कौन है जो मिस्र में मुसलमानों को मार रहा है? जो सोमालिया में मुसलमानों को मार रहा है? बलूचिस्तान में भी मुसलमानों को मार रहा है? अब मैं सोच रहा हूँ जब ये सभी देश इस्लामिक हैं… तब शान्ति कहाँ है? मैं इस्लाम पर सवाल नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि सभी लोग जानते हैं की इस्लाम एक शांतिपूर्ण धर्म है… लेकिन शांति रहस्यमय रूप से से गायब है….!! अफगानिस्तान, इराक, सीरिया, लेबनान, यमन और मिस्र को किसने बर्बाद किया है ? या वहां दंगा करने के लिए कौन जिम्मेदार हैं ?’.

लग रहा है कि संजय जोशी इस्लाम से जुड़े एक एक पहलू पर लिखने के मूड में थे, वो देश की बात भी करते हैं और उसके ‘गद्दारों’ की भी, ‘अजीब विडम्बना है , कुछ गद्दारों के लियें यहाँ इशरत बेटी है, कन्हैया बेटा है, दाऊद भाई है, अफजल गुरू है, लेकिन भारत माता नहीं !आखिर…ऐसा क्यों है……..’.

वो आगे लिखते हैं, ‘अब थोड़ा और ध्यान दीजिए…मुस्लिम + हिन्दू = समस्या, मुस्लिम + बौद्ध =समस्या, मुस्लिम + ईसाई = समस्या, मुस्लिम + सिख = समस्या, मुस्लिम + नास्तिक = समस्या, मुस्लिम + मुस्लिम =बहुत बड़ी समस्या! उदाहरण देखिए, हां-जहां मुस्लिम बहुसंख्यक है, वहाँ वे सुखी नहीं रहते हैं और न दूसरे को रहने देते हैं!

देखिए …मुस्लिम सुखी नहीं, गाजा में मुस्लिम सुखी नहीं ,म्हलचज में मुस्लिम सुखी नहीं, लीबिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,मोरोक्को में मुस्लिम सुखी नहीं, ईरान में मुस्लिम सुखी नहीं, ईराक में मुस्लिम सूखी नहीं, यमन में मुस्लिम सुखी नहीं, अफगानिस्तान में मुस्लिम सुखी नहीं, किस्तान में मुस्लिम सुखी नहीं ,सीरिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,लेबनान में मुस्लिम सुखी नहीं ,नाइजीरिया में मुस्लिम सुखी नहीं ,केन्या में मुस्लिम सुखी नहीं सूडान में ,अब गौर कीजिए ………! मुस्लिम सुखी वहां हैं, जहाँ कम संख्या में है…? मुस्लिम सुखी है आस्ट्रेलिया में, मुस्लिम सुखी है इंग्लैंड में, मुस्लिम सुखी है बेल्जियम में, मुस्लिम सुखी है फ्रांस में, मुस्लिम सुखी है इटली में, मुस्लिम सुखी है जर्मनी में, मुस्लिम सुखी है स्वीडन में, मुस्लिम सुखी है कनाडा में, मुस्लिम सुखी है भारत में, मुस्लिम सुखी है नार्वे में, मुस्लिम सुखी है नेपाल में, क्योंकि यहां जेहाद के नाम पर सब कुछ संभव हैं.

आखिरी लाइन वो उस विषय पर लिखते हैं जोकि उनके ब्लॉग का टाइटल है, ‘आतंकवादी का मजहब क्या होता है?’. वो लिखते हैं, ‘मुसलमान हर उस देश में सुखी है ! जो इस्लामिक देश नही है ……..और देखिये कि वो उन्हीं देशो को दोषी ठहराते है जो इस्लामिक नहीं हैं….! या जहां मुस्लिमो की लीडरशिप नही है…..! मुस्लिम हमेशा उन देशो को ब्लेम करते है जहां वे सुखी हैं…….! और मुस्लिम उन देशों को बदलना चाहते हैं….. जहां वे सुखी हैं ! और बदल कर वे उन देशों की तरह कर देना चाहते हैं! जहां वे सुखी नही हैं……..!और अंत तक वो इसके लिए लड़ाई करते हैं….! और इसको ही बोलते हैं..आदि और भी हैं ऐसे ही इस्लामिक जेहादी आतंकवादी संगठन! अब इतना तो आप सभी, जरूर समझ गए होंगे कि……आतंकवादी का मजहब क्या होता है…..?’

संजय जोशी अपने आप को बीजेपी का सदस्य कहते हैं, ये अलग बात है कि बीजेपी उन्हें आधिकारिक रूप से कही नहीं बुलाती. अब ऐसे में उनका ये ‘मुस्लिम विरोधी’ ब्लॉग विवादों में आता है, या उन्हीं की तरह गुमनामी में जाएगा, वक्त ही बताएगा.

……. और कारवां गुज़र गया

 

 जन्म 04 जनवरी 1924
 निधन 19 जुलाई 2018
 उपनाम नीरज
 जन्म स्थान पुरावली, इटावा, उत्तर प्रदेश, भारत
 कुछ प्रमुख कृतियाँ
दर्द दिया है, प्राण गीत, आसावरीगीत जो गाए नहीं, बादर बरस गयो, दो गीत, नदी किनारे, नीरज की गीतीकाएँ, नीरज की पाती, लहर पुकारे, मुक्तकी, गीत-अगीत, विभावरी, संघर्ष, अंतरध्वनी,बादलों से सलाम लेता हूँकुछ दोहे नीरज के कारवां गुजर गया
 विविध
2007 में पद्म भूषण सहित अनेकप्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित

राजस्थान मे 15 लाख वाला वादा पूरा किया: सैनी


मदनलाल सैनी ने कहा ‘किसी को नकद नहीं दिया गया, लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं की गई हैं कि गरीबों को 15 लाख रुपए का लाभ दिया जा सके.’


राजस्थान बीजेपी के नए प्रेसिडेंट मदनलाल सैनी ने एक इंटरव्यू में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो 15 लाख देने का वादा किया था वह अप्रत्यक्ष रूप से पूरा कर दिया है.

हिंदुस्तान टाइम्स  के मुताबिक, सैनी ने कहा ‘किसी को नकद नहीं दिया गया, लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं की गई हैं कि गरीबों को 15 लाख रुपए का लाभ दिया जा सके.’ सैनी ने केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि गरीबों को इसका लाभ मिला है. उन्होंने कहा ‘अगर आप सभी फायदों को देखेंगे तो गरीबों को 15 लाख रुपए मिले हैं.’

राजस्थान बीजेपी चीफ ने बीजेपी के 2013 में किए गए नौकरी देने के वादे का भी जिक्र किया. 2013 में बीजेपी ने वादा किया था कि राजस्थान में 1.5 मिलियन नौकरियां हर साल दी जाएंगी. इस पर बोलते हुए सैनी ने कहा ‘हमने 2-3 लाख सरकारी नौकरियां दी हैं. यहां अन्य रोजगार के अवसर भी दिए हैं. अगर आप सभी को जमा करेंगे तो हमने 15 लाख नौकरियां दी हैं.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि सरकार बनने के बाद वह विदेशों में जमा काले धन को वापस लेकर आएंगे. सरकार बनने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि यह सिर्फ एक जुमला था और कहा था कि यदि विदेशों में जमा काला धन वापस आ गया तो वह भारतीयों के खाते में नहीं जाएगा.

राजस्थान मे भाजपा जिला संगठन प्रभारियों में किया फेरबदल


भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के राजस्थान दौरे से पहले प्रदेश में पहला फेरबदल करते हुए जिला संगठन प्रभारियों में बदलाव किया है


पार्टी की ओर से जारी विज्ञप्ति के अनुसार प्रदेश के सभी जिलों में संगठन प्रभारियों को बदल दिया गया है। पार्टी की ओर से किए गए इस बदलाव में एक पूर्व विघायक, प्रदेश कार्यसमिति के पूर्व सदस्यों के साथ ही पूर्व अध्यक्षों को जगह दी गई है।

पार्टी की ओर से नियुक्त किए गए प्रभारियों में बीकानेर देहात से पूर्व विधायक रामेश्वर भाटी, श्रीगंगानगर से विजय आचार्य, हनुमानगढ़ से जालम सिंह भाटी, बीकानेर शहर से महेन्द्र सोढ़ी, चूरू से रामगोपाल सुथार, जयपुर शहर से महेश शर्मा, जयपुर देहात से संजय शर्मा, सीकर से काशीराम गोदारा, झुंझुनू से पंकज गुप्ता, अलवर से शैलेन्द्र भार्गव, दौसा से प्रेमप्रकाश शर्मा (पूर्व अध्यक्ष ) भरतपुर से बृजेष शर्मा (प्रदेश कार्यसमिति ), करौली से सत्येन्द्र गोयल, धौलपुर से भैरों सिंह जादौन, सवाई माधोपुर मनीश पारीक (पूर्व उप महापौर), अजमेर शहर से तुलसीराम शर्मा-प्रदेश विभाग संयोजक, अजमेर देहात से प्रसन्न मेहता, भीलवाड़ा से पुखराज पहाडिया (पूर्व जिला प्रमुख) शामिल है।

इसके अलावा टोंक से अखिल शुक्ला (प्रदेश कार्यसमिति) नागौर से शहर नन्दकिशोर सोलंकी, नागौर देहात से सुरेश टांक, कोटा शहर से श्याम शर्मा, कोटा देहात से रमेश जिंदल, बूंदी से शंकरलाल, बारां से दिनेश जैन, उदयपुर शहर से लक्ष्मीनारायण डाड, उदयपुर देहात से हीरेन्द्र शर्मा, बांसवाड़ा से इन्द्रमल सेठिया, प्रतापगढ़ से ओम पालीवाल, चित्तौड़गढ़ से ताराचंद जैन, राजसमन्द से हरीश पाटीदार, जोधपुर से शहर महेन्द्र बोहरा, जोधपुर देहात से दिलीप पालीवाल, फलोदी से गोविन्द मेघवाल, जैसलमेर से घनश्याम डागा, सिरोही से नरेन्द्र कच्छावा, पाली से देवीशंकर भूतड़ा और जालौर से जगतनारायण जोशी को संगठन प्रभारी बनाया गया है।