59 मिंट में पा सके हैं 1 करोड़ का ओद्योगिक लोन


इसके लिए एक स्पेशल पोर्टल भी लॉन्च किया गया है. जिसके मदद से आसानी आप एक घंटे से भी कम समय में लोन पा सकते हैं 


प्रधानमंत्री मोदी ने शुक्रवार को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए 59 मिनट में 1 करोड़ का लोन देने की घोषणा की है. इस बीच पीएम मोदी ने ईज ऑफ डुइंग बिजनेस रैंकिंग में भारत की उछाल की भी तारीफ की.

इसके लिए एक स्पेशल पोर्टल भी लॉन्च किया गया है. जिसके मदद से आसानी आप एक घंटे से भी कम समय में लोन पा सकते हैं. लोन लेने के लिए आपका छोटा या मध्यम उद्योग का जीएसटी रजिस्ट्रेशन होना चाहिए. पीएम ने कहा कि पहली बार लोन लेने पर GST रजिस्टर्ड MSMEs पर ब्याज दर में 2 प्रतिशत की छूट दी जाएगी. पहली बार लोन लेने पर इसकी ब्याज दर 3 प्रतिशत होगी इसके बाद यह 5 प्रतिशत हो जाएगा. केंद्र सरकार ने MSMEs को बूस्ट करने के लिए 12 अहम फैसले लिए हैं.

यह जरूरी है कि वो सभी कंपनियां जिनकी टर्नओवर 500 करोड़ से ज्यादा है वह TReDS प्लेटफॉर्म यानी व्यापार प्राप्तियां ई-छूट प्रणाली में शामिल हों. ताकि MSMEs को कैश फ्लो में कोई परेशानी ना उठानी पड़े.

इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा, मैं 59 मिनट में लोन अप्रूव करने वाली यह पोर्टल आपको समर्पित कर रहा हूं. यह अभी से ही एमएसएमई बिजनेसमैन को फायदा पहुंचाने लगी है.

पीएम ने कहा, यह हमारे लिए गर्व की बात है कि भारत ने इज ऑफ डूइंग बिजनेस में 77 वें नंबर पर अपनी जगह बना ली है. 4 साल पहले जब हमारी सरकार सत्ता में नहीं थी तो हम 142 वें रैंक पर थे. वो दिन ज्यादा दूर नहीं जब हम अपनी जगह टॉप 50 में बना लेंगे.

सिंधिया की राह में रुकावट बन रहे हैं परंपरागत विरोधी


राज्य में मैदानी कार्यकर्ता लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग कर रहा है. लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राज्य में किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट न करने का फैसला कर लिया है


सारिका तिवारी

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण के कुछ घंटे पहले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच कथित तौर पर हुई तू-तू,मैं-मैं की खबर से कांग्रेस की राजनीति में एक बार फिर गुटबाजी हावी होती दिखाई दे रही है. हालांकि कांग्रेस के प्रवक्ता किसी भी विवाद से इनकार कर रहे हैं. लेकिन, विवाद की खबरों को कांग्रेसी असामान्य घटना भी नहीं मानते हैं. सिंधिया-दिग्विजय सिंह का विवाद अक्सर सामने आता रहता है. सिंधिया का संसदीय क्षेत्र और दिग्विजय सिंह का गृह जिला एक ही है.

सिंधिया और दिग्विजय सिंह के बीच विवाद दूरी होने के कुछ एतिहासिक कारण हैं जो राजे-रजवाड़ों के दौर से जुड़े हुए हैं. ग्वालियर के महल और राघोगढ़ के किले के बीच स्थिति हमेशा टकराव की रही है. दिग्विजय सिंह राघोगढ़ के राज परिवार से हैं. इसका असर आज भी कांग्रेस और बीजेपी की राजनीति में देखने को मिलता है. राज्य कांग्रेस में पिछले चार दशक से राजनीति सिंधिया के समर्थन और विरोध के बीच ही चल रही है. माधवराव सिंधिया भी इसी राजनीति के चलते कभी राज्य के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए थे.

ज्योतिरादित्य सिंधिया को नहीं बनने दिया मुख्यमंत्री का चेहरा

राज्य में मैदानी कार्यकर्ता लगातार ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने की मांग कर रहा है. लेकिन, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राज्य में किसी भी नेता को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट न करने का फैसला कर लिया है. ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्य में कांग्रेस की कमान थामने के लिए भी तैयार थे. लेकिन, विरोध कमलनाथ और दिग्विजय सिंह की ओर से हो रहा था. ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्य की राजनीति में रोकने के लिए ही कमलनाथ ने मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के लिए अपनी दावेदारी को आगे बढ़ाया था. कमलनाथ की इस दावेदारी को दिग्विजय सिंह का पूरा समर्थन था. दिग्विजय सिंह दस साल तक मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं. उन्हें कमलनाथ का खुला समर्थन मिला हुआ था.

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दिग्विजय सिंह को अर्जुन सिंह गुट का ही माना जाता रहा है. अस्सी के दशक से राज्य कांग्रेस की राजनीति दो गुटों में बंटी रही है- अर्जुन सिंह और माधवराव सिंधिया. दिल्ली की राजनीति में अर्जुन सिंह को कमलनाथ का साथ हमेशा ही मिलता रहा है. कमलनाथ की मदद से ही अर्जुन सिंह हमेशा ही माधवराव सिंधिया को मुख्यमंत्री बनने से रोकने में सफल होते रहे हैं. साल 1989 में चुरहट लाटरी कांड में हाईकोर्ट के फैसले के बाद अर्जुन सिंह को मुख्यमंत्री का पद छोड़ना पड़ा था. तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी, माधवराव सिंधिया को राज्य का मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे, लेकिन विधायकों के बहुमत के आधार पर अर्जुन सिंह, सिंधिया के नाम पर सहमत नहीं हुए. तीन दिन तक भोपाल में कांग्रेसी विधायक अर्जुन सिंह के करीबी माने जाने वाले हरवंश सिंह के निवास पर नजरबंद रहे. बाद में सहमति मोतीलाल वोरा के नाम पर बनी.

चार दशक बाद भी राज्य की राजनीति में कोई बड़ा परिवर्तन दिखाई नहीं दिया है. कांग्रेस की राजनीति अभी भी सिंधिया विरोधी और सिंधिया समर्थकों के बीच बंटी हुई दिखाई दे रही है. कमलनाथ-दिग्विजय सिंह के अलावा राज्य की राजनीति में प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह भी लड़ाई का महत्वपूर्ण चेहरा हैं. अजय सिंह, स्वर्गीय अर्जुन सिंह के पुत्र हैं. दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह कांग्रेस के विधायक हैं. पीढ़ी बदलने के बाद भी राज्य की राजनीति में गुटिय लड़ाई में बदलाव नहीं आया है.

ज्योतिरादित्य सिंधिया को अलग-थलग करने की राजनीति

राज्य के कांग्रेसी नेताओं के बीच की गुटबाजी पर लगाम लगाने के लिए हर बड़े नेता को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई है. कमलनाथ को अध्यक्ष बनाने के साथ ही ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रचार समिति का अध्यक्ष और दिग्विजय सिंह को समन्वय की जिम्मेदारी दी गई. पिछले तीन चुनावों में कांग्रेस को मिली हार के पीछे जो बड़ी वजह सामने आई थी, उसमें दिग्विजय सिंह समर्थकों द्वारा भितरघात करना प्रमुख था. दिग्विजय सिंह राज्य के अकेले ऐसे नेता हैं, जिनके समर्थक गांव-गांव में हैं. दिग्विजय सिंह के समर्थक पिछले पंद्रह साल में उनको (दिग्विजय सिंह) लेकर वोटरों की नाराजगी को दूर नहीं कर पाए हैं.

भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में दिग्विजय सिंह शासनकाल की याद दिलाकर अपनी सत्ता बचाने में कामयाब रही है. साल 2003 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद दिग्विजय सिंह ने अपनी प्रतिज्ञा के चलते दस साल तक राज्य की राजनीति में कोई सक्रिय भूमिका अदा नहीं की. साल 2008 का विधानसभा चुनाव पार्टी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री सुरेश पचौरी के नेतृत्व में लड़ा था. उस वक्त भी टिकट के बंटवारे को लेकर विवाद की स्थिति बनी थी. सुरेश पचौरी ने दस जनपथ के अपने संपर्कों के आधार पर समर्थकों को टिकट तो दिला दिए लेकिन, सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं जुटा सके. सुरेश पचौरी को भी राज्य की राजनीति का महत्वपूर्ण चेहरा माना जाता है. किसी दौर में वे मोती-माधव एक्सप्रेस का हिस्सा रहे थे. वर्तमान में वे कमलनाथ के ज्यादा नजदीक माने जा रहे हैं. वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भी तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रचार अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया था.

प्रदेश कांग्रेस की कमान कांतिलाल भूरिया को सौंपी गई थीं. भूरिया आदिवासी नेता हैं. वे भी दिग्विजय सिंह गुट के ही माने जाते रहे हैं. भूरिया के नेतृत्व में हुए चुनाव में सिंधिया के चेहरे का उपयोग गुटबाजी के चलते नहीं किया गया. नतीजा कांग्रेस फिर एक बार चुनाव हार गई. स्थिति में कोई बड़ा बदलाव अभी भी देखने को नहीं मिल रहा है. सिंधिया, प्रचार समिति के प्रमुख जरूर हैं लेकिन, प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने प्रचार के लिए उनका उपयोग अब तब नहीं किया है. सिंधिया ने राज्य के बीस से अधिक जिलों में रैलियां की हैं.

टिकट के बंटवारे से पक्की करना चाहते हैं मुख्यमंत्री की कुर्सी

ज्योतिरादित्य सिंधिया, पिता माधवराव सिंधिया की विमान दुर्घटना में हुई मौत के बाद वर्ष 2002 में कांग्रेस की सक्रिय राजनीति में आए. राज्य में उनका मुकाबला पिता माधवराव सिंधिया के परंपरागत विरोधियों से हो रहा है. पिछले सोलह साल में कई मौकों पर सिंधिया को अलग-थलग करने की कोशिश विरोधी गुट द्वारा की जाती रही है. सिंधिया चुनाव के बाद मुख्यमंत्री न बन जाएं इसकी कवायद विरोधी गुट ने टिकट वितरण में ही करना शुरू कर दी.

दिग्विजय सिंह अपने कुछ समर्थकों को कमलनाथ के जरिए टिकट दिलाना चाहते हैं. अजय सिंह भी कमलनाथ की मदद ले रहे हैं. सुरेश पचौरी, सिंधिया और कमलनाथ दोनों के ही जरिए अपने समर्थकों को टिकट दिलाने में लगे हुए हैं. ऊपरी तौर देखा जाए तो यह लगता है कि कांग्रेस छोटे-छोटे गुटों में बंटी हुई है. वास्तविक रूप में आज भी कांग्रेस में दो गुट ही दिखाई दे रहे हैं. एक गुट सिंधिया का है. दूसरा गुट दिग्विजय सिंह का है, जिसका नेतृत्व कमलनाथ कर रहे हैं. सिंधिया विरोधी गुट अपने आपको अलग-अलग दिखाकर ज्यादा टिकट हासिल करना चाहता है.

इसके पीछे रणनीति यह है कि चुनाव बाद यदि बहुमत आता है तो विधायकों की संख्या के आधार पर मुख्यमंत्री का चुनाव हो सके. यहां उल्लेखनीय है कि साल 1980 में जब अर्जुन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था, उस वक्त बहुमत शिवभानु सिंह सोलंकी के साथ था. लेकिन, कमलनाथ ने संजय गांधी की मदद से अर्जुन सिंह को मुख्यमंत्री बनवा दिया था. वर्तमान राजनीति में राहुल गांधी के सबसे करीबी नेताओं में ज्योतिरादित्य सिंधिया का नाम लिया जाता है.

दिवंगत इनेलो विधायक के पुत्र ने भाजपा में जताई आस्था : मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात के बाद लिया निर्णय


चंडीगढ़:

वीरवार देर शाम जींद विधानसभा से दो बार प्रतिनिधित्व करने वाले दिवंगत डॉ हरिचन्द मिड्डा के पुत्र कृष्ण मिड्डा ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात उपरांत भाजपा में आस्था जताने की घोषणा की है। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने उनका पार्टी में आने पर स्वागत किया और कहा कि भाजपा की नीतियों और व्यवस्था परिवर्तन की स्वीकार्यता निरन्तर बढ़ रही है। उन्होंने कृष्ण मिड्डा को पूरा मान-सम्मान दिलाने का भरोसा दिया।
इनेलो से दो बार विधायक डॉ हरिचन्द मिड्डा के निधन उपरांत आज उनके पुत्र कृष्ण मिड्डा ने मुख्यमंत्री आवास पर मुख्यमंत्री मनोहर लाल से मुलाकात की। उन्होंने उनके विधायक पिता के निधन उपरांत विधानसभा सत्र के लिए लगाए गए प्रश्नों को पूरा अधिमान दिए जाने और मुख्यमंत्री मनोहर लाल द्वारा इस दिशा में की गई घोषणाओं से उनके मन पर बड़ा असर पड़ा। मुख्यमंत्री द्वारा स्वयं सदन के दिवंगत जनप्रतिनिधि के प्रति इतना सम्मान दिखाने और उनके निरन्तर बदलाव की नीतियों पर सोच-विचार करते हुए इनेलो छोड़कर भाजपा की सदस्यता लेने का मन बनाया और वीरवार शाम भाजपा में शामिल हुए। मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने कृष्ण मिड्डा के भाजपा में शामिल होने पर खुशी जताते हुए कहा कि उन्हें भरपूर मान-सम्मान दिया जाएगा। इस अवसर पर सहकारिता मंत्री मनीष ग्रोवर एवं कृष्ण मिड्डा के समर्थक मौजूद रहे।

इन मीडियाई कामरेडो को सरदार पटेल की मूर्ति ही व्यर्थ क्यों लगती है ??

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

3 साल पहले रवीश कुमार ने अपने ब्लॉग पर स्टेचू ऑफ यूनिटी पर यह लिखा था कि यह भी नरेंद्र मोदी की तमाम घोषणाओं की तरह एक हवा हवाई है और कहीं कोई काम नहीं हो रहा है

कल जब मैंने एनडीटीवी देखा तो मैं इस आदमी का दोगलापन देखकर चौक गया कि यह आदमी दुनिया भर के गरीबी के आंकड़े गिना रहा था …कितने लोग आवास हीन है यह दिखा रहा था ..कितने बच्चे कुपोषित हैं यह बता रहा था

मगर इस ने कभी यह जिक्र नहीं किया देश की राजधानी दिल्ली जहां जमीने सोने से भी महंगी है वहां पर 272 एकड़ में नेहरू की समाधि 100 एकड़ में इंदिरा गांधी की समाधि डेढ़ सौ एकड़ में राजीव गांधी की समाधी बनी है ..इतना ही नहीं जिस आवास में नेहरू रहते थे उसे नेहरू म्यूजियम बना दिया गया है जिस सरकारी आवास तीन मूर्ति भवन में इंदिरा गांधी रहती थी उसे भी म्यूजिक बना गया है ….जहां राजीव गांधी की हत्या हुई यानी श्रीपेरंबदूर में वहां 400 एकड़ में राजीव गांधी स्मारक बना दिया गया है

देश में लाखों की संख्या में लगे गांधी नेहरू और अंबेडकर की मूर्तियों पर तो यह यह तर्क देते हैं कि इससे लोगों को प्रेरणा मिलेगी….. इन मीडियाई कामरेडो को सरदार पटेल की मूर्ति ही व्यर्थ क्यों लगती है ??

अगर आज इस मूर्ति को बनाने में 3000 करोड़ का खर्चा हुआ यदि कांग्रेस ऐसी मूर्ति 50 साल पहले बना देती तो शायद 50 करोड़ में ही काम हो जाता ..गलती तो कांग्रेस की है कि जिसने सरदार पटेल जैसे व्यक्तित्व को भुला दिया जो भारत के बिस्मार्क हैं यानी वह बिस्मार्क जिन्होंने जर्मनी के छोटे-छोटे टुकड़ों को इकट्ठा करके एक संयुक्त जर्मनी बनाया ठीक उसी तरह सरदार पटेल ने 562 रियासतों को मिलाकर एक अखंड भारत बनाया और जूनागढ़ और हैदराबाद जैसे जो भारत में नहीं मिलना चाहती थी उन्हें लाठी मारकर मिलाया

आप गुजरात आइए यहां ऐसे तमाम बुजुर्ग आपको मिलेंगे जो जूनागढ़ या सोमनाथ दर्शन करने जाते थे तो केशोद के पास स्थित एक जूनागढ़ रियासत के बनाए ऑफिस में उन्हें परमिट लेना पड़ता था और उन्हें कहीं और घूमने की इजाजत नहीं होती थी

आज अगर सरदार पटेल नहीं होते तो सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, गीर का विशाल जंगल, जूनागढ़ शहर यह सब पाकिस्तान में होते क्योंकि जूनागढ़ के नवाब महावत खान बॉबी ने अपनी रियासत को पाकिस्तान में मिलाने का ऐलान कर दिया था

पेरेंट्स एजुकेशन लोन नहीं चुका पाएंगे तो माफ कर दिया जाएगा: नीतीश


नीतीश कुमार ने कहा है कि हमें बिहार का वही पुराना गौरवशाली सम्मान दोबारा हासिल करना है


‘कभी बिहार का गौरवशाली इतिहास था. इसे ज्ञान की धरती कहा जाता था. आज हमें वही पुराना गौरवशाली सम्मान दोबारा हासिल करना है.’ गोपालगंज जिले को पॉलिटेक्निक कॉलेज की सौगात देते हुए सीएम नीतीश कुमार ने गुरुवार को ये बातें कही. सीएम ने कहा कि स्टूडेंट क्रेडिट से छात्रों को पढ़ने के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं. छात्रों को कम ब्याज पर पैसे उपलब्ध कराए जाएंगे.

उन्होंने कहा कि अगर पढ़ाई के बाद भी छात्रों के अभिभावक पैसे वापस करने में सक्षम नहीं होंगे तो उनके ऋण भी माफ कर दिए जाएंगे.इस अवसर पर उन्होंने जिले में एक इंजीनियरिंग कॉलेज भी खोलने की घोषणा की. मुख्यमंत्री ने कहा कि करीब 5 एकड़ भूमि में निर्मित इस कॉलेज भवन के निर्माण के लिए भवन निर्माण विभाग को 44 करोड़ 90 लाख की राशि आवंटित की गई थी, लेकिन भवन निर्माण विभाग ने कॉलेज का निर्माण महज 34 करोड़ रुपए की लागत से ही रिकॉर्ड समय में कर दिखाया है.

मुख्यमंत्री ने इस उपलब्धि के लिए भवन निर्माण विभाग के अधिकारियों को बधाई भी दी. मुख्यमंत्री ने कहा कि बाबू बृज किशोर नारायण सिंह के नाम से यह पॉलिटेक्निक कॉलेज उनको श्रद्धांजलि है. आपको बता दें कि बैकुंठपुर के मान टेंगराही गांव में बृज किशोर नारायण सिंह राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेज की स्थापना की गई है.

बिहार की लड़कियां देश के बाहर भी जाकर कर सकेंगी काम

मुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में शैक्षणिक संस्थानों को विकसित किया जा रहा है. सात निश्चय के तहत उच्च शिक्षण संस्थान खोले जा रहे हैं. पूरे देश में केरल से नर्स आती हैं, लेकिन अब बिहार में ही नर्सों को ट्रेनिंग दी जा रही है. इस ट्रेनिंग के बाद बिहार की लड़कियां दूसरे राज्यों में जाकर काम तो करेंगी ही अगर वे चाहेंगी तो देश के बाहर भी जाकर काम कर सकेंगी.

सीएम ने कहा कि स्टूडेंट क्रेडिट से छात्रों को पढ़ने के अवसर उपलब्ध कराए जा रहे हैं. छात्रों को महज चार प्रतिशत, जबकि छात्राओं को महज एक प्रतिशत ब्याज दर पर स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड से पैसे उपलब्ध कराए जाएंगे. उन्होंने कहा कि अगर पढ़ाई के बाद भी छात्रों के अभिभावक पैसे वापस करने में सक्षम नहीं होंगे तो वे ऋण भी माफ कर दिए जाएंगे. सीएम ने कहा कि इंटर के बाद ही स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड देने का प्रावधान था, लेकिन अब मैट्रिक के बाद भी पॉलिटेक्निक करने वाले छात्रों को इस क्रेडिट कार्ड का लाभ मिलेगा.

मुख्यमंत्री ने शराबबंदी का भी जिक्र करते हुए कहा कि कुछ लोग उनका मजाक उड़ाते हैं, लेकिन बता दें कि शराब पीना उनका मौलिक अधिकार नहीं है. संविधान में लिखा है कि शराब पीना अपराध है. सीएम ने सोशल मीडिया पर हेट कैंपेन चलाने वालों को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि कुछ लोग देश में कटुता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. वे सोशल मीडिया पर झूठ फैला रहे हैं, लेकिन इससे सचेत रहने की जरूरत है.

सीटों के बंटवारों को लेकर ज्योतिरादित्य से अनबन की बात से दिग्विजय सिंह ने किया इंकार


दिग्विजय सिंह ने कहा है कि जो खबरें मीडिया में दिखाई जा रही हैं वो पूरी तरह गलत हैं


मध्यप्रदेश में टिकट के बंटवारे को लेकर कांग्रेस में मतभेद की खबरें तेज हैं. कहा जा रहा था कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिग्विजय सिंह में भी सीटों को लेकर बहस हुई है, लेकिन दिग्विजय सिंह ने खुद इन खबरों को गलत करार दिया है.

उन्होंने कहा, ‘जो खबरें मीडिया में दिखाई जा रही हैं वह पूरी तरह से गलत हैं. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में हम सब एक हैं और भ्रष्ट बीजेपी सरकार को हराने के लिए दृढ़ हैं.’

इससे पहले यह खबर तेज थी कि राहुल गांधी के सामने ही दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया में जमकर तू-तू मैं-मैं हुई है. दोनों के बीच बहस इतनी तेज़ होने लगी कि राहुल गांधी भी नाराज़ हो गए. बाद में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने दोनों के बीच मतभेद सुलझाने के लिए अहमद पटेल और अशोक गहलोत सरीखे वरिष्ठ नेताओं की एक कमेटी बना दी. शिवराज चौहान को हराने के लिए पूरा दम लगाने का दावा करने वाले राहुल के लिए पार्टी नेताओं में फूट बड़ी समस्या बन गई है.

सिंधिया के गढ़ गुना और दिग्गी के गढ़ राघोगढ़ में ज्यादा दूरी नहीं है लिहाज़ा आस-पास की विधानसभा सीटों पर दोनों के समर्थक टिकट मांग रहे हैं. इसके अलावा भी राज्य के कई हिस्सों में दोनों के समर्थकों के बीच तनातनी है. यही तनातनी राहुल गांधी के सामने खुलकर आ गई.

अपनी पसंद के उम्मीदवार को टिकट दिलाने को लेकर प्रदेश के दो बड़े नेताओं में राहुल गांधी के सामने ही झगड़ा हो गया. पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और सीएम बनने की चाह रखने वाले सिंधिया ने अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए राहुल की अध्यक्षता वाली बैठक में ही तू-तू मैं-मैं कर लिया.

कजरी ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बीजेपी के कहने पर लाखों मतदाताओं के नाम हटाए जाने का आरोप लगाया


आरोपों कि राजनीति करने वाले अरविन्द आज फिर आरोपों कि नयी फेरहिस्त लेकर सामने आये, निशाने पर मतदाता सूची 


दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने गुरुवार को मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत को पत्र लिखा और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में बीजेपी के कहने पर लाखों मतदाताओं के नाम हटाए जाने का आरोप लगाया.

उन्होंने इस मामले में बातचीत करने के लिए रावत से समय मांगा. केजरीवाल ने पत्र में लिखा, ‘हमारे संज्ञान में आया है कि दिल्ली में पिछले विधानसभा चुनाव के बाद लाखों मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं. अधिकतर नाम दुर्भावना के साथ हटवाए गए हैं. नाम हटाने के लिए कानून में अंकित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.’

केजरीवाल ने आरोप लगाया कि मतदाताओं को मतदान से रोकने के लिए बीजेपी के कहने पर कुछ अधिकारियों द्वारा यह किया गया हो सकता है. उन्होंने कहा, ‘यह बड़ा घोटाला लगता है. लोकतंत्र पर इसके प्रभाव गंभीर हैं.’ केजरीवाल ने चुनाव आयोग द्वारा समयबद्ध तरीके से पारदर्शी जांच की मांग की.

यूपी शिक्षक भर्ती: सपा शासन में हुई 12460 शिक्षकों की भर्ती भी रद्द


गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है और रद्द करने लायक  है।


हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले की गाज समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए 12 हजार 460 सहायक अध्यापकों के चयन पर गिरी है। न्यायालय ने बोर्ड ऑफ बेसिक एजूकेशन द्वारा किए गए इन चयनों को रद्द कर दिया है। इन भर्तियों के लिए 21 दिसंबर 2016 को विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया शुरू की गई थी।

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि उक्त भर्तियां यूपी बेसिक एजूकेशन टीचर्स सर्विस रूल्स 1981 के नियमों का पूरी तरह पालन करते हुए नए सिरे से काउंसलिग करा के पूरी की जाएं। नई चयन प्रकिया के लिए वही नियम लागू किए जाएंगे जो कि पूर्व में प्रकिया प्रारम्भ करते समय बनाए गए थे। न्यायालय नई प्रकिया पूरी करने के लिए तीन माह का समय दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने तमाम अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल दर्जनों याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाओं में 26 दिसंबर 2016 के उस नोटिफिकेशन को खारिज किए जाने की मांग की गई थी, जिसके तहत उन जिलों में जहां कोई रिक्ति नहीं थी, वहां के अभ्यर्थियों को काउंसलिंग के लिए किसी भी जिले को प्रथम वरीयता के तौर पर चुनने की छूट दी गई थी।

याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर की दलील थी कि 26 दिसंबर 2016 के नोटिफिकेशन द्वारा नियमों में उक्त बदलाव भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद किया गया जबकि नियमानुसार एक बार भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। वहीं राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का तर्क था कि नियमों में बदलाव इस लिए किया गया था ताकि काउंसलिंग में अधिक संख्या में अभ्यर्थियों को शामिल किया जा सके।

गौरतलब  है कि होई कोर्ट ने 19 अप्रैल 2018 के एक अंतरिम आदेश जारी कर पहले ही सफल अभ्यर्थियों को नियुक्त पत्र देने पर रोक लगा दी थी। गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है और रद्द करने लायक  है।

मध्य प्रदेश कांग्रेस में बिजली फूंक दी बस सिंधिया-दिग्विजय कैंप के बीच चल रही जंग से होने वाले नुकसान का डर है


बीजेपी भले ही राहुल को ‘कन्फ्यूज़’ करार दे लेकिन मध्यप्रदेश में फ्यूज़ चल रही कांग्रेस में अब करंट दौड़ने लगा है


मध्यप्रदेश में साल 2004 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा था. उसके बाद से ही कांग्रेस सत्ता का वनवास झेल रही है. हालांकि मध्यप्रदेश में भी सरकार बदलने की परंपरा देखी जाती रही है. कभी बीजेपी तो कभी कांग्रेस सत्ता में रही है. लेकिन मध्यप्रदेश में कांग्रेस के ‘दिग्विजय-काल’ के बाद से हालात बदल गए. पहले दिग्विजय सिंह ने दस साल राज किया तो अब शिवराज सिंह पंद्रह साल से सत्ता पर हैं. ‘दिग्विजय-दौर’ के दस साल के बाद जनता ने मालवा के शिवराज को हर पांच साल बाद पांच साल का ‘एक्स्ट्रा बोनस’ देने का काम किया जिससे कांग्रेस का वनवास सरकते-सरकते 15 साल तक पहुंच गया. अब कांग्रेस उसी मालवा से मिन्नतें कर रही है ताकि सत्ता का सूखा खत्म हो.

मालवा-निमाड़ अंचल को सत्ता का गलियारा कहा जाता है. इसकी बड़ी वजह है कि ये एमपी की विधानसभा में सबसे ज्यादा विधायक भेजता है. इस बार भी मध्यप्रदेश में विधानसभा के आर-पार के मुकाबले में मालवा-निमाड़ की बड़ी भूमिका है. मालवा-निमाड़ की 66 में से 56 सीटें बीजेपी के कब्जे में हैं.

सिवनी जिले के बुधनी से शिवराज सिंह चौहान विधायक हैं तो सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेता इंदौर का प्रतिनिधित्व करते हैं. वहीं अतीत में सुंदरलाल पटवा, वीरेंद्र सखलेचा और कैलाश जोशी जैसे नेता मालवा अंचल से उदीयमान हुए तो आरएसएस को कुशाभाऊ ठाकरे जैसा चेहरा मिला.

यही वजह है कि मालवा-निमाड़ अंचल अपनी राजनीतिक महत्ता की वजह से बीजेपी और कांग्रेस के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह  इंदौर से महा जनसंपर्क अभियान की शुरुआत करते हैं तो सीएम शिवराज सिंह चौहान मालवा से ही जन आशीर्वाद यात्रा शुरू करते हैं. मालवा का आध्यात्मिक और राजनीतिक महत्व ही समझते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उज्जैन में महाकाल का आशीर्वाद लिया तो झाबुआ में आदिवासियों के सामने परिवार के इतिहास को याद दिलाया.

लेकिन राहुल के मध्यप्रदेश दौरे ने इस बार राजनीति के समीकरणों को बदलने का काम किया है. राहुल के मालवा दौरे से पहले तक बीजेपी विधानसभा चुनाव को साल 2013 के ‘एक्शन-रीप्ले’ की तरह ही देख रही थी क्योंकि बीजेपी के सामने कांग्रेस अपनी अंदरूनी गुटबाजी के चलते कमजोर नजर आ रही थी. लेकिन राहुल के दौरे से मध्यप्रदेश की सियासत में गर्मी आ गई है. राहुल की वजह से 15 साल से सोई कांग्रेस की उम्मीद भी जगी है. राहुल को सुनने के लिए उमड़ी भीड़ में कांग्रेस अब सत्ता विरोधी लहर देखने लगी है.

रोड शो और रैलियों में उमड़ी भीड़ से उत्साहित राहुल ने मध्यप्रदेश के किसानों से वादा किया है कि अगर राज्य में कांग्रेस की सरकार बनती है तो सिर्फ 10 दिनों में किसानों का कर्जा माफ किया जाएगा और ऐसा न करने वाले सीएम को ग्यारहवें दिन बदल दिया जाएगा.

 

भले ही राहुल गांधी की ‘कन्फ्यूज़ियत’ पर बीजेपी खुश हो लेकिन राहुल का अंदाज उन किसानों में उम्मीद जगा सकता है जिन्होंने मंदसौर किसान आंदोलन देखा. अब कांग्रेस के लिए किसान आंदोलन की फसल काटने का समय है. वैसे भी मंदसौर के निकाय चुनावों में कांग्रेस को मिली जीत से वहां की जनता का मिज़ाज समझा जा सकता है. तभी राहुल को मध्यप्रदेश में एंटी इंकंबेंसी दिखाई दे रही है और वो कह रहे हैं कि इस बार मध्यप्रदेश में वोट स्विंग हो सकता है जिसका फायदा कांग्रेस को ही मिलेगा.

हालांकि साल 2013 में मध्यप्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच वोट प्रतिशत का अंतर काफी बड़ा था. बीजेपी को जहां 44.88 प्रतिशत वोट मिले थे तो कांग्रेस को 36.38 प्रतिशत वोट ही मिले थे. ऐसे में राहुल गांधी का आशावादी नजरिया संदेह पैदा करता है.

लेकिन, राहुल के दौरे से कांग्रेस अब बीजेपी के मुकाबले में जरूर खड़ी हो गई है. पहले मंदसौर किसान आंदोलन ने शिवराज सरकार की नींद उड़ाने का काम किया तो अब राहुल का मालवा-निमाड़ अंचल का दौरा बीजेपी के लिए चिंता की लकीरें खींच गया है.  उज्जैन, धार, महू, खरगोन, झाबुआ में रैली तो इंदौर में रोड शो,  छप्पन दुकान में नाश्ता, कारोबारियों से बातचीत और पत्रकारों से बिना लाग-लपेट के बातचीत तो स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दे उठाकर राहुल ने कांग्रेस को दौड़ में बना दिया है. राहुल कह रहे हैं कि वो फ्रंट पर खेल रहे हैं. ऐसे में कांग्रेस को राहुल के हिट-विकेट का डर नहीं है. बस डर उन्हें सिंधिया-दिग्विजय कैंप के बीच चल रही जंग से होने वाले नुकसान का है. बहरहाल, बीजेपी भले ही राहुल को ‘कन्फ्यूज़’ करार दे लेकिन मध्यप्रदेश में फ्यूज़ चल रही कांग्रेस में अब करंट दौड़ने लगा है.

मैं भी चाहती हूं कि अयोध्या में बने राम मंदिर: अपर्णा यादव


अपर्णा यादव ने कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए हमें जनवरी तक मामले की सुनवाई शुरु होने का इंतजार करना चाहिए


राम मंदिर मुद्दे को लेकर मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने बयान दिया है. गुरुवार को अपर्णा यादव ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उन्हें भी राम मंदिर बनने का इंतजार है.

उन्होंने कहा कि मुझे सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास है. मेरा विचार है कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए. अपर्णा यादव गुरुवार को बाराबंकी के देवा शरीफ पहुंची थी. यहां उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए हमें जनवरी तक  मामले की सुनवाई शुरु होने का इंतजार करना चाहिए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक जब उनसे पूछा गया कि क्या मस्जिद नहीं बनना चाहिए, तो उन्होंने कहा कि, ‘मैं तो मंदिर के पक्ष में हूं, क्योंकि रामायण में भी राम जन्मभूमि का उल्लेख आता है.’ वहीं जब उनसे बीजेपी का साथ देने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, ‘ मैं राम के साथ हूं.’

वहीं चाचा शिवपाल के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में शिवपाल के अलग होने से असर पड़ेगा क्योंकि पार्टी को मजबूत करने में उनका भी अहम योगदान रहा है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला तो अखिलेश या शिवपाल में से वह अपने चाचा शिवपाल और नेता जी मुलायम सिंह यादव को चुनेंगी.