मोदी ने किया केएमपी एक्सप्रेसवे का उद्घाटन


केएमपी एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के साथ ही दिल्ली की चौथी रिंग रोड यात्रियों के लिए उपलब्ध हो गई है


15 साल के लंबे इंतजार के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज यानी सोमवार को  कुंडली-मानेसर-पलवल (केएमपी) एक्सप्रेसवे का उद्घाटन किया. वैसे इस परियोजना को 2009 तक पूरा करने का लक्ष्य तय किया गया था लेकिन तब से कई बार इसकी डेड लाइन को आगे बढ़ाया गया, जिसके बाद इसको पूरा होने में 15 साल का समय लग गया. हालांकि उम्मीद जताई जा रही है कि एक्सप्रेस वे के एक बार खुलने के बाद दिल्ली में प्रवेश करने वाले ट्रकों की संख्या में कमी आएगी जिससे शहर के प्रदूषण के स्तर में कमी आएगी. इस एक्सप्रेसवे से और क्या-क्या फायदे होंगे आइए जानते हैं

क्या होंगे फायदे?

1. यह नेशनल हाईवे-1 (कुंडली के नजदीक) को नेशनल हाईवे-10 (बहादुरगढ़ के नजदीक रोहतक रोड), नेशनल हाईवे-8 (मानेसर में जयपुर एक्सप्रेसवे पर) और नेशनल हाईवे-2 (पलवल के नजदीक दिल्ली-आगरा हाईवे) से जोड़ेगा. इस एक्सप्रेसवे में आठ छोटे और छह बड़े पुल, चार रेलवे ओवरब्रिज और 34 अंडरपास हैं. एक्सप्रेस वे की कुल लंबाई 135 किलोमीटर है.

2. केएमपी एक्सप्रेसवे के उद्घाटन के साथ ही दिल्ली की चौथी रिंग रोड यात्रियों के लिए उपलब्ध हो गई है. ईस्टर्न पेरिफेरल और वेस्टर्न पेरिफेरल को साथ जोड़ने पर यह पूरा रूट करीब 270 किलोमीटर का होता है.

3. वेस्टर्न पेरिफेरल एक्सप्रेसवे के खुलने के बाद प्रदूषण में करीब 30 फीसदी की कमी आ सकती है. न्यूज 18 की रिपोर्ट के मुताबिक ये एख्सप्रेसवे 5000 से ज्यादा भारी गाड़ियों को दिल्ली से दूर रखेगा. एक रिपोर्ट के मुताबिक इस एक्सप्रेसवे की वजह से यात्रा भी कम समय में पूरी हो सकेगी क्योंकि दिल्ली से बाहर जाने वाले ट्रकों को शहर में आने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

4. उत्तर भारत से पश्चिम और दक्षिण हिस्सों की तरफ जाने वाली गाड़ियों को भी अब दिल्ली में प्रवेश की जरूरत नहीं पड़ेगी.

5. उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब और जम्मू कश्मीर की ओर जाने वाले यात्रियों को यह एक्सप्रेसवे सिग्नल फ्री कनेक्टिविटी का सुविधा देता है.

6. यह एक्सप्रेसवे 6 लेन वाला होगी जिसमें बड़ी संख्या में पार्किंग, रिफीलिंग स्टेशन, पुलिस स्टेशन, एक ट्रॉमा सेंटर, हेलीपैड, रिफ्रेशमेंट सेंटर्स और मनोरंजन की सुविधा उपलब्ध होगी. इसके अलावा यात्रियों की सुरक्षा के लिए पूरे एक्सप्रेस-वे पर बाड़ लगाई गई है.

7. एक्सप्रेसवे के सड़क किनारे पर ‘सुपर प्लांट’ स्थापित किया जा रहा है.

सीएम कुमारस्वामी ने महिला किसान से पूछा- पिछले 4 सालों से कहां सो रही थीं?


सैकड़ों किसान उत्तर कर्नाटक में गन्ना खरीद के लिए न्यूनतम मूल्य के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे हैं


कर्नाटक के सीएम एचडी कुमारस्वामी के द्वारा एक महिला किसान पर की गई टिप्पणी से हड़कंप मच गया. दरअसल एनडीटीवी के मुताबिक सैकड़ों किसान उत्तर कर्नाटक में गन्ना खरीद के लिए न्यूनतम मूल्य के मुद्दे पर प्रदर्शन कर रहे हैं. इस बीच एक महिला किसान ने सीएम का विरोध किया.

जिसके बाद कुमारस्वामी ने कन्नड में जवाब देते हुए कहा, ‘थाई(मां), तुम पिछले चार सालों से कहां सो रही थीं?. सीएम ने यह भी कहा कि प्रदर्शन करने वाले किसान नहीं हैं बल्कि यह भड़काए हुए कुछ समूह हैं.

इस बयान के बाद बीजेपी ने कुमारस्वामी को अवसरवादी कहा है और माफी मांगने की मांग की है. एनडीटीवी के मुताबिक, ‘कर्नाटक बीजेपी प्रमुख और पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा ने कहा, ‘कल सीएम कुमारस्वामी ने महिला के लिए जिस तरह के शब्दों का प्रयोग किया वह आज तक किसी सीएम ने नहीं किया. यह मूर्खतापूर्ण है. मैं सीएम से इस मुद्दे पर माफी मांगने की मांग करता हूं.’

हालांकि बाद में कुमारस्वामी ने सफाई देते हुए कहा, ‘मेरे कहने का मतलब यह था कि आप अब क्यों जाग रहे हो, अब तक कहां सो रहे थे?. मैंने महिला का अपमान नहीं किया और जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, वह किसान नहीं हैं बल्कि सुनियोजित प्रदर्शनकारी हैं.’

गौरतलब है कि किसानों ने रविवार को बेलागावी में सुवर्णा विधाना सोउधा पर हमला किया था. पुलिस ने बताया था कि गन्नों के चार ट्रकों के साथ 10 किसान जबरदस्ती यहां घुस आए थे.. कुमारस्वामी के किसानों से बात करने से मना करने की वजह से यह किसान नाराज थे.

 

ममता के कारण रद्द हुई भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों की बैठक


सूत्रों के मुताबिक, ये मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वजह से कैंसिल हुई


लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र बीजेपी के खिलाफ सभी विपक्षी दलों को एकजुट करने के लिए 22 नवंबर को प्रस्तावित मीटिंग कैंसिल कर दी गई है. सूत्रों के मुताबिक, ये मीटिंग पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की वजह से कैंसिल हुई.

दरअसल, आंध्र प्रदेश के सीएम और तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) प्रमुख चंद्रबाबू नायडू लोकसभा चुनाव के लिए बीजेपी विरोधी दलों को एक साथ लाने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें ममता बनर्जी का साथ काफी अहम बताया जा रहा है. लेकिन, अभी तक ममता ने इस मीटिंग के लिए सहमति नहीं जताई है. सूत्रों के मुताबिक, आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू पहले ममता बनर्जी से मुलाकात करेंगे. इसके बाद मीटिंग की अगली तारीख तय होगी.

कौन-कौन सी पार्टियां हो सकती हैं शामिल?

सूत्रों के अनुसार, बैठक में शामिल होने के लिए कांग्रेस, टीडीपी, आम आदमी पार्टी, जेडीएस, एनसीपी और टीएमसी मान गए हैं. वहीं यह भी कहा जा रहा है कि मायावती ने बैठक में शामिल होने के लिए हामी नहीं भरी है. बैठक में एंटी बीजेपी फ्रंट को मजबूत करने पर जोर दिया जाएगा.

गहलोत से मिलकर लिया था 22 नवंबर को बैठक का फैसला

सभी दलों को करीब लाने का जिम्मा इस बार तेलुगू देशम पार्टी और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने लिया है. इससे पहले उन्होंने अमरावती में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत से भी मुलाकात की थी. इस मुलाकात में यह तय हुआ था कि बीजेपी के खिलाफ विपक्ष के सभी बड़े दल 22 नवंबर को दिल्ली में बैठक करेंगे. इस बैठक में नोटबंदी, सीबीआई आदि मुद्दों पर भी चर्चा होनी थी.

केवल इतना ही नहीं नायडू विपक्ष के कई नेताओं से मुलाकात कर चुके हैं. यह बैठक ठीक ममता के उस फैसले के बाद आयोजित की गई है, जिसमें उन्होंने आंध्र प्रदेश की तरह ही अपने राज्य में भी मामलों की जांच के लिए सीबीआई के प्रवेश पर पाबंदी लगाई थी

मोदी को घेरने के लिए होने वाली विपक्ष की बैठक क्यों टली?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की कोशिश में लगे विपक्षी दलों की तरफ से बुलाई गई बैठक स्थगित कर दी गई है. सीएनएन न्यूज 18 के मुताबिक, विपक्षी कुनबे की एकता दिखाने वाली यह बैठक 22 नवंबर को बुलाई गई थी, जिसे टालना पड़ा है.

सूत्रों के मुताबिक, महागठबंधन की इस बैठक को लेकर एसपी, बीएसपी और टीएमसी बहुत उस्साहित नहीं दिख रहे थे. इन सभी पार्टी को ऐसा लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा करना फायदेमंद नहीं है. हो सकता है कि इनकी तरफ से अपनी शक्ति का आकलन भी किया जा रहा हो, या फिर अपने से ज्यादा कांग्रेस की शक्ति का आकलन करने की कोशिश हो रही हो, जिसके बाद कांग्रेस से डील करना ज्यादा आसान होगा.

दरअसल, कांग्रेस की मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सीधी लड़ाई बीजेपी से है. लेकिन, इन राज्यों में एसपी, बीएसपी भी अलग-अलग चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ चुनाव लड़ रही इन पार्टियों को लग रहा है कि अगर राष्ट्रीय स्तर पर एक मंच पर आकर लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ रणनीति बनाई गई तो इसका सीधा असर पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में दिख सकता है. भले ही एसपी, बीएसपी का इन राज्यों में बड़ा स्टेक नहीं है, फिर भी, कांग्रेस के साथ इस वक्त राष्ट्रीय स्तर पर नजदीकी उनकी प्रदेश चुनाव में संभावनाओं को पूरी तरह खत्म कर सकती है.

अगर बात एसपी की करें तो पिछले साल यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ चुनाव लड़ चुकी एसपी अबकी बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस से हाथ मिलाने से पहले फूंक-फूंक कर कदम रखना चाह रही है. दूसरी तरफ, बीएसपी ने मध्यप्रदेश के अलावा छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बजाए अलग से मैदान में ताल ठोंक दी है. बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तरफ से उस वक्त बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस के खिलाफ भी काफी तल्ख तेवर देखा गया था. ऐसे में मायावती नहीं चाहेंगी कि विधानसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस के साथ आने का कोई संदेश जनता के बीच जाए. मायावती की कांग्रेस को लेकर तल्खी विपक्षी कुनबे के कांग्रेस के नेतृत्व में आगे बढ़ने की संभावना को फिलहाल खारिज करती दिख रही है.

उधर टीएमसी का रुख लगभग वैसा ही है. ममता बनर्जी ने भी कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों को साथ लाने की पहल काफी पहले शुरू की थी. लेकिन, उनकी पार्टी के सूत्रों के मुताबिक, ममता भी विधानसभा चुनाव के बाद ही विपक्षी खेमे की बड़ी बैठक बुलाए जाने के पक्ष में हैं. लिहाजा महागठबंधन की 22 नवंबर की प्रस्तावित बैठक को टाला जा रहा है.

हालांकि महागठबंधन की बैठक टलने की खबर उसी दिन सामने आई जिस दिन आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू की पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से मुलाकात होनी थी. नरेंद्र मोदी और बीजेपी के खिलाफ मोर्चा खड़ा करने में लगे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और टीडीपी के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू सोमवार को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी से मिले.

चंद्रबाबू नायडू से बैठक के बाद ममता बनर्जी ने सकारात्मक लहजे में कहा कि ‘महागठबंधन’ का चेहरा हर व्यक्ति होगा. ममता बनर्जी के कहने का मतलब था कि इस गठबंधन में जो भी दल शामिल होंगे उन सभी के नेता महागठबंधन के चेहरे होंगे. मुलाकात के बाद ममता बनर्जी ने ट्वीट कर चंद्रबाबू नायडू को धन्यवाद भी दिया.

नायडू-ममता की मुलाकात को विपक्ष के नजरिए से काफी अहम माना जा रहा है. क्योंकि ममता तो पहले से ही ऐसा कर रही हैं, अब नायडू ने एनडीए छोड़कर बाहर निकलने के बाद तो विपक्षी कुनबे की एकता बनाने का बीड़ा उठा लिया है.

दिल्ली से लेकर कोलकाता तक चंद्रबाबू नायडू दौड़ लगा रहे हैं. अभी कुछ दिन पहले ही नायडू ने दिल्ली आकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात की. उसके बाद नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला और एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार से भी मुलाकात की थी.

कभी तीसरे मोर्चे में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुके चंद्रबाबू नायडू ने सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों को साध कर अब तीसरा मोर्चा बनाने के बजाए कांग्रेस के साथ विपक्षी एकता की कसरत शुरू कर दी है. लेकिन, महागठबंधन की प्रस्तावित बैठक का टलना यह दिखा रहा है कि सबको साध कर कांग्रेस के साथ एक मंच पर लाना इतना आसान नहीं है.

ऐसा करना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि इन सभी क्षेत्रीय दलों के नेताओं की अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा इतनी है कि उनकी तरफ से कांग्रेस और राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया जा रहा है. इसके अलावा इन सभी क्षेत्रीय क्षत्रपों की आपस की खींचतान भी महागठबंधन की गांठ को और पेचीदा बना देते हैं. ऐसे में नायडू की हैदराबाद से दिल्ली और कोलकाता तक भी दौड़ के बावजूद सबकुछ विधानसभा चुनाव के परिणाम पर आकर टिक गया है. विधानसभा का चुनाव परिणाम ही लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी रणनीति तय करेगा.

कांग्रेस को भारत माता की नहीं बल्कि सोनिया गांधी की जय पसंद: अमित शाह

दिनेश पाठक एवं डेमोक्रेटिक्फ़्र्ण्ट डेस्क


मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव को लेकर अमित शाह का कहना है कि इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बनेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है.


देश के 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी के अच्छे प्रदर्शन करने की बात कही है. छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान चुनाव को लेकर अमित शाह का कहना है कि इन राज्यों में बीजेपी की सरकार बनेगी, इसमें कोई दो राय नहीं है. बाकी के दो राज्य तेलंगाना और मिजोरम में शाह ने पार्टी के मजबूत होने की बात कही. वहीं राफेल के मामले में अमित शाह ने कहा कि अगर आरोपों में सच्चाई है तो राहुल गांधी सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते?

न्यूज18 के विशेष कार्यक्रम ‘एजेंडा मध्य प्रदेश’ में राफेल मामले को लेकर अमित शाह ने कहा कि सच हमारे साथ है और बाकी लोगों के बयान झूठे साबित हो जाएंगे. अमित शाह ने कहा कि मोदी सरकार ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे देश की जनता के सामने शर्मिंदा होना पड़े. राफेल पर लगे आरोपों पर शाह ने कहा कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों में अगर सच्चाई है तो वे सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं जाते? उन्होंने कहा कि आरोप लगाना और झूठ बोलना राजनीति की संस्कृति नहीं है.

वहीं अमित शाह का कहना है कि कांग्रेस को सोनिया गांधी की जय पसंद है. अमित शाह का कहना है कि एक वीडियो काफी फैल रहा है. इसमें कांग्रेस कार्यकर्ता जो ‘भारत माता की जय’ का नारा लगा रहा है, उसे ‘सोनिया गांधी की जय’ का नारा देने के लिए कहा गया. अगर यह वीडियो सच है तो कांग्रेस के लोगों को शर्म करनी चाहिए.

अमित शाह ने राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर कहा कि राजस्थान में फिर से बीजेपी की सरकार बनेगी. जनसमर्थन हमारे साथ है. देखते-देखते माहौल बनेगा और बीजेपी की सरकार आएगी. महागठबंधन को लेकर शाह का कहना है कि उत्तर प्रदेश छोड़कर किसी भी राज्य में महागठबंधन का कोई अस्तित्व नहीं है. वहीं अगर उत्तर प्रदेश में सभी मिलकर भी आ जाएं तो बीजेपी को 50 फीसदी से ज्यादा वोट फीसदी मिलेगा.

अमित शाह ने कहा कि वो उन सबसे सवाल करना चाहते हैं कि जो लोकतंत्र की बात करते हैं वे कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र पर सवाल क्यों नहीं खड़ा करते. इसको लेकर शाह ने कहा कि पीछे जब कांग्रेस पार्टी का अध्यक्ष चुना जाना था तब सबको पता था कि सोनिया गांधी के बाद कांग्रेस का अध्यक्ष कौन होगा. सबको इस बात की जानकारी थी कि यह पद राहुल गांधी को मिलेगा. शाह ने कहा ‘किसी को नहीं पता कि मेरे बाद बीजेपी का अध्यक्ष कौन होगा. क्योंकि हमारी पार्टी में लोकतंत्र है. यहां एक चायवाला दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश का प्रधानमंत्री बना और एक पोस्टर चिपकाने वाला कार्यकर्ता दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का अध्यक्ष बन सका.’

हाल ही सीबीआई मुद्दा काफी सुर्खियों में बना हुआ है. सीबीआई मामले में शाह ने कहा इससे सीबीआई की छवि पर असर पड़ा है लेकिन ऐसे मामले में सरकार भी चुप नहीं बैठेगी. सरकार को बीच बचाव के लिए आगे आना ही पड़ेगा.

Congress’ lack of strategy, inability to seize initiative may cost it in Chhattisgarh, Rajasthan, MP

Curtsy: Sushit K Sen

The Assembly elections that are now already in progress should have been the ‘moment’ of opportunity that the bedraggled Congress was waiting for after being mauled in the 2014 Lok Sabha elections and a raft of state elections thereafter.

Instead of seizing the day, the Congress finds itself instead in a beleaguered state, principally because of a lack of coherent strategy, leading to a state of drift, and its delusions of grandeur, in turn caused mainly by its inability to come to terms with the screamingly plain truth that it is no more the sole arbiter of India’s destiny.

The lack of a coherent strategy has been caused by and reflects a lack of organisational cohesion. Thus, for instance, the failure of the ‘high command’ to stamp election campaigns with its own imprint and ensure a coordinated approach in the three north Indian states going to the polls — Chhattisgarh, Madhya Pradesh and Rajasthan — may end up costing it dearly.

Let us take the states one by one. An alliance with the Bahujan Samaj Party (BSP) in Chhattisgarh would have sewn up the state for the Congress, on the back of 15 years of Bharatiya Janata Party (BJP) rule under Chief Minister Raman Singh. Their combined voting percentage would have been close to 45 per cent compared to the BJP’s 41 percent, if we extrapolate the 2013 Assembly results. The chances, of course, are that this difference would have been higher given a certain anti-incumbency fatigue and the BJP’s current difficulties over the Rafale controversy and other issues, that have cast the party in a noticeably poor light.

Many traditional BJP voters are planning to either abstain or vote for other parties. Unfortunately, the Congress has failed to capitalise on this disenchantment by playing an instrumental role in creating a united front. Instead, the Congress’s brains trust, for want of a better appellation, is seeking to counter the BJP’s strident majoritarianism and authoritarianism with its own brand of Hindutva-based mobilisation, not pausing to consider whether it can compete with the BJP by legitimising its ideological positions and political programmes. The Congress’ election manifesto for Madhya Pradesh and the position its state unit has taken in Kerala, which aims at encouraging ‘devotees’ to prevent the Left Front government from implementing the Supreme Court’s Sabarimala order, are unbelievable concessions to Hindu ‘sentiment’

In following the route it has been pursuing, the Congress has isolated itself at a juncture in which other opposition parties have been actively pursuing the objective of joint action. Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav has rejected, for instance, a late, and obviously spurious, not to say infructuous, attempt by the Congress to build an alliance comprising the Samajwadi Party, Nationalist Congress Party, Sharad Yadav’s Loktantrik Janata Dal and Ajit Singh’s Rashtriya Lok Dal in Rajasthan. This is being seen by some as being a precursor to the BSP and Samajwadi Party tying up in Uttar Pradesh and in the process shutting out the Congress. In terms of seats, this would not be catastrophic, especially if, as is likely, the combine backs Congress president Rahul Gandhi and United Progressive Alliance chairperson Sonia Gandhi’s candidature from Amethi and Rae Bareli. But in symbolic terms, such an outcome would be a big blow to the Congress and its claims to leading the alliance against the BJP.

Andhra Pradesh chief minister Chandrababu Naidu and West Bengal chief minister Mamata Banerjee are already coordinating Opposition action, with a meeting held in Kolkata on Monday. In the meanwhile, both have sounded the bugle by withdrawing a general waiver to the Central Bureau of Investigation to pursue investigations in their states. Naidu, moreover, is trying to bring Opposition parties together to approach the Supreme Court with a plea for the curtailment of the powers of other Central agencies — the Income Tax Department, the Enforcement Directorate et al — in investigating cases relating to, or ‘targeting’, Opposition parties before the next Lok Sabha elections.

While the Congress has not specifically been excluded from the ambit of this initiative, it has clearly lost the initiative. To revive its fortunes appreciably, the Congress will have to engage with other opposition parties more constructively. As other opposition leaders have pointed out, the Congress, as the only opposition party with a nationwide presence, has to take the lead and make ‘disproportionate’ sacrifices as it did in Karnataka, reaping handsome dividends.

Simultaneously, the Congress has to come up with ripostes to the BJP’s barrage of gibes about the ‘ownership’ of the party. Prime Minister Narendra Modi and BJP president Amit Shah have been constantly lampooning the Congress over the role played in its affairs by the Gandhi family. Modi has dared Rahul Gandhi to step down and allow someone from outside the family to become party president and, by extension, the party’s prime ministerial nominee. He has most recently pointed to the manner in which Sitaram Kesri was ousted from the party presidency in 1998 after a year-and-a-half stint to make way for Sonia Gandhi. Shah, meanwhile, has likened the Congress to a private limited company owned by the Gandhi family.

It’s not easy to counter these gibes because they are substantially true. Congress leader P Chidambaram tried by producing a list of non-Gandhi Congress presidents, but got his history a little mixed up. Of those whom he named, only Kesri and PV Narasimha Rao belonged to the era after the second split in the party and the creation of the Congress (I). Thus, K Kamaraj, S Nijalingappa, D Sanjivayya and others were presidents of the Congress before the first split in 1969. C Subramaniam (interim president), Jagjivan Ram, Shankar Dayal Sharma, Dev Kant Barooah and K Brahmanand Reddy were presidents after the first split but before the second one in 1978. After that, Indira Gandhi was the president of the new party till her assassination in 1984 and Rajiv Gandhi until his, in 1996.

It was only after Rajiv’s death that Rao became party president and prime minister and he was followed as Congress president by Kesri, mainly because Sonia showed no desire to become a politician. After she acceded following repeated pleas, which itself is a revealing fact, she became party president followed recently by son Rahul. Thus, in the 40 years after the 1978 split, a Congress leader has led the party for just seven-odd years.

It’s a different matter that BJP leaders, too, are unaware of historical nuance, failing to distinguish between the Congress in its various phases, which leads them in semi-literate fashion to equate, for instance, Nehru with Indira Gandhi. It must also be recalled in fairness to the Congress that in the 38 years since Indira Gandhi returned to power — in 1980, a Gandhi has been prime minister for nine years, while Congress leaders from outside the Congress have held the chair for 15 years: Rao was prime minister for five of those and Manmohan Singh for 10. The BJP forgets, too, that Sonia lifted her party up by the bootstraps by renouncing prime ministerial office. It was an act of self-abnegation and sacrifice that may have been prompted by tactical motives but was nevertheless an extremely courageous and self-disregarding one.

Self-abnegation, self-sacrifice and disregard for one’s own ambitions are not descriptions one would normally apply either to Modi or Shah. Both are viscerally ambitious, authoritarian, paranoid and power-hungry beyond even the accepted standards of political life, which are not particularly high. The charges made by the duumvirate do not carry much weight because ever since the leadership of the party ceded power to Modi (who inducted Shah as his hatchet man), the BJP has ceased to be the functionally democratic party it once was (as was its forbear, the Jana Sangh), possibly the only positive thing one can say about the merchants of Hindutva.

Under the Modi-Shah dispensation, the BJP has acquired the worst traits of the Congress — for instance, the practice of nominating chief ministers from Delhi rather than allowing the relevant legislature parties to elect their own leaders.

It’s a case, to use a tired cliché, of the pot calling the kettle black. The only difference is that Modi rose from the ranks and captured the party, while Rahul did it as a matter almost of birthright. The difference, such as it is, is functionally not much of a difference.

Politically, the Congress would do better by pointing to the BJP’s penchant for trying to capture all manner of institutions and subverting them to subserve its alfresco designs of imposing a theocratic template on the Indian polity. For all its faults, opportunism of the kind that leads it into the terrain of ‘soft Hindutva’, whatever that’s supposed to mean, being one of the worst of them, the Congress cannot be accused of trying to systematically capture and subvert institutions. That’s one arena in which it has remained, generally speaking, true to its mainstream heritage. It should trumpet this achievement.

रंजीता मेहता को मिली बड़ी जिम्मेदारी, अजमेर डिवीजन का नैशनल कोर्डिनेटर बनाया

चंडीगढ़ 19 नवंबर:

राजस्थान विधानसभा चुनावों के लिए ऑल इंडिया महिला कांग्रेस द्वारा नैशनल कोऑर्डिनेशन टीम का गठन किया गया है। जिसमें हरियाणा प्रदेश महिला कांग्रेस की वरिष्ठ उपप्रधान रंजीता मेहता को अजमेर डिविजन की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जिसमें कई विधानसभा हलके आते हैं। रंजीता मेहता अजमेर डिवीजन के अंतर्गत आने वाले जिला अजमेर, नागौर, टोंक, भीलवाड़ा में आने वाली 29 विधानसभा हलकों की को-ऑर्डिनेटर बनाई गई हैं। वह इन विधानसभा क्षेत्रों में कांग्रेस के प्रत्याशियों को जिताने के लिए पूरी जिम्मेदारी संभालेंगी। हरियाणा से रंजीता मेहता अकेली महिला नेत्री हैं, जिन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करेंगी कि इन क्षेत्रों में जो प्रत्याशी मैदान में उतारे गए हैं, उन्हें किस प्रकार से अधिक से अधिक मतों से जिताकर विरोधियों की जमानत जब्त करवाई जा सके।

राजस्थान में कांग्रेस की सरकार लाने के लिए अजमेर डिवीजन में कांग्रेस की मजबूती सबसे अहम मानी जा रही है। रंजीता मेहता ने अपनी नियुक्ति पर ऑल इंडिया महिला कांग्रेस की प्रधान सुष्मिता देव, जनरल सेक्रेटरी एवं राजस्थान प्रभारी नीतू वर्मा सोइन, हरियाणा प्रदेश महिला कांग्रेस की प्रभारी अनुपमा रावत एवं हरियाणा महिला कांग्रेस की अध्यक्षा सुमित्रा चौहान व्यक्त करते हुए कहा कि वह राजस्थान के अजमेर डिविजन के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी कांग्रेसी की मजबूती के लिए कोशिश करेंगी। उन्होंने कहा कि देश में कांग्रेस के पक्ष में लहर चल रही है और आने वाला समय कांग्रेस का है। राजस्थान में भाजपा की वसुंधरा राजे सरकार से लोग बहुत दुखी हैं। इसलिए इस बार राजस्थान में कांग्रेस की सरकार बनना तय है। रंजीता मेहता ने कहा कि राजस्थान के अलावा अन्य राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की सरकार बनने जा रही हैं। यदि रंजीता मेहता अजमेर डिवीजन में कांग्रेस की जीत को निश्चित करने में सफल रहीं, तो उन्हें आने वाले समय में कांग्रेस में बड़े पद पर जिम्मेदारी मिल सकती है। रंजीता मेहता इससे पूर्व पंजाब विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस की जीत के लिए प्रचार कर चुकी हैं।

शिव राज सिंह चौहान का राहुल गांधी पर तीखा प्रहार पूछा “कहाँ है मेड इन अमेठी”

 

“राहुल मुझे घोषणा मशीन बुलाते हैं पर मैं उन्हे “एफ़एन मशीन” कहता हूँ, वह हर जगह जा कर पता नहीं क्या या बोलते रहते हैं। जहां चुनाव में वह अभी विपसखी दल हैं वहाँ जा जा कर प्रचार कर कहते हैं की एचएम आएंगे तो मेड इन इंदौर होगा, मैं पूछता हूँ की भाई पहिले मेड इन अमेठी तो दिखाओ, मेड इन राय बरेली भी कहीं नहीं दिखता। आलू की फकत्री कहाँ लगाई है भाई कुछ तो बताओ” शिवराज सिंह चौहान

 

यह अलफाज शिव राज सिंह चौहान आज एक टीवी चैनल पर साक्षात कार के दौरान  कहे

अखिलेश और राहुल के बीच सबकुछ ठीक नहीं


बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती के तेवर दिखाने के बाद अब समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को इशारों-इशारों में बड़ी चेतावनी दे दी है


2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले यूपी में बीजेपी के खिलाफ महागठबंधन बनने से पहले ही खत्म होता दिखाई दे रहा है. बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) सुप्रीमो मायावती के तेवर दिखाने के बाद अब समाजवादी पार्टी (एसपी) के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस को इशारों-इशारों में बड़ी चेतावनी दे दी है. ‘महागठबंधन’ बनने पर अखिलेश यादव ने कहा, ‘अगर साइकिल (एसपी का चुनाव चिन्ह) को रोकोगे तो आपका हाथ (कांग्रेस का चुनाव चिन्ह) हैंडल से हटा दिया जाएगा.’

2019 में कांग्रेस के साथ गठबंधन की राह अब मुश्किल नजर आ रही है

अखिलेश यादव ने बीते शनिवार को छत्तीसगढ़ में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए ये बातें कहीं. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा,” इसलिए हमने भी तय किया है कि साइकिल को रोकोगे तो आपका हाथ हैंडल से हटा दिया जाएगा. कंट्रोल और किसी के हाथ में हो जाएगा”. अखिलेश ने इस बयान के जरिए साफ संकेत दे दिया है कि 2019 में कांग्रेस के साथ गठबंधन की राह अब मुश्किल नजर आ रही है. अगर कांग्रेस ने एसपी की सहमति से अलग कोई फैसला लिया, तो संभव है कि कांग्रेस को पार्टी बड़ा झटका दे सकती है. बता दें बीएसपी-एसपी का पहले से ही गठबंधन हो चुका है.

मायावती ने गठबंधन न करने के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया है

उधर गठबंधन में सीटों को लेकर मायावती कितना गंभीर हैं, इसका अंदाजा 5 राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में उनके कदम से लग जाता है. मायावती ने यहां गठबंधन न करने के लिए कांग्रेस पर आरोप लगाया है. उन्होंने सीट शेयरिंग में बीएसपी को उचित हिस्सा नहीं दिए जाने की बात कहकर ऐलान कर दिया है कि कांग्रेस के साथ गठबंधन नहीं होगा. बीएसपी अब इन राज्यों में दूसरे क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन कर मैदान में उतरने की तैयारी मे है. दूसरी तरफ एसपी मुखिया अखिलेश यादव ने भी कांग्रेस से विधानसभा चुनावों में गठबंधन नहीं करने का ऐलान किया है.

लखनऊ के सत्ता के गलियारे में महागठबंधन को लेकर चर्चाएं तेज हैं

इन बयानों से कांग्रेस की यूपी में महागठबंधन की स्थिति कमजोर होती दिखाई दे रही है. वहीं दूसरी तरफ बीएसपी के कड़े रुख से समाजवादी पार्टी पर भी दबाव बढ़ता दिख रहा है. लखनऊ के सत्ता के गलियारे में महागठबंधन को लेकर चर्चाएं तेज हैं कि बीएसपी तो सीटों को लेकर समझौता करने वाली नहीं, लिहाजा देखना ये होगा कि अखिलेश यादव कितनी सीटों पर राजी होते हैं?

जेडीयू ने कहा कि मोदी को सिर्फ नीतीश ही टक्कर दे सकते हैं

दरअसल, यूपी चुनाव में बीजेपी की बंपर जीत के तुरंत बाद महागठबंधन बनाने को लेकर कांग्रेस और जेडीयू के बयान आए थे. लेकिन साथ ही नेता कौन होगा इस पर भी बयानबाजी शुरू हो गई है. कांग्रेस ने कहा कि राहुल गांधी के अलावा और कोई नेता नहीं हो सकता तो जेडीयू ने कहा कि मोदी को सिर्फ नीतीश ही टक्कर दे सकते हैं. बाद में नीतीश का भी बयान आया कि अगर यूपी में कांग्रेस-बीएसपी और एसपी मिलकर लड़े होते तो बीजेपी से 10 प्रतिशत ज्यादा वोट पाते.

बिहार में बीजेपी हारी क्योंकि यहां विपक्ष एकजुट था

बिहार में बीजेपी इसलिए हारी क्योंकि यहां विपक्ष एकजुट था. अब यही एकजुटता पूरे देश में दिखानी होगी. तभी बेड़ा पार होगा लेकिन यहां सवाल ये है कि मोदी के खिलाफ एक नेता पर क्या राय बनेगी. राहुल गांधी, नीतीश, मुलायम, ममता, लालू, मायावती, नवीन पटनायक में पीएम फेस को लेकर किस हद तक सहमति बन पाएगी इस पर सबकी निगाहें रहेंगी.

कई उम्मीदवारों ने एक-दूसरे पर भितरघात का आरोप लगाया

महागठबंधन के नाम पर अगर ये दो दर्जन से ज्यादा पार्टियां एक हो भी जाती हैं तो इनके कार्यकर्ता कितने साथ आएंगे ये फैक्टर भी अहम होगा. यूपी में एसपी-कांग्रेस ने मिलकर चुनाव तो लड़ा लेकिन कई सीटों पर दोनों दलों के उम्मीदवार मैदान में उतर गए. चुनाव में हार के तुरंत बाद कई उम्मीदवारों ने एक-दूसरे की पार्टियों पर भितरघात का आरोप लगाना शुरू कर दिया. ऐसा हाल ही अन्य राज्यों में भी होगा.

वसुंधरा के खिलाफ चुनावी दंगल मनवेन्द्र के दोनों हाथों में लड्डू


बीजेपी छोड़कर पिछले दिनों कांग्रेस में शामिल होने वाले मानवेंद्र सिंह मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चुनौती देने के लिए उनके ही गढ़ में ताल ठोंक रहे हैं

जीत न मिले तो भी मानवेंद्र के दोनों हाथों में लड्डू हो सकते हैं. वसुंधरा राजे के सामने होने की वजह से पूरी मीडिया का अटेंशन इस सीट पर रहेगा और उन्हे लगातार पब्लिसिटी मिलेगी. इसके अलावा, अगर वे अच्छी फाइट देने में कामयाब रहते हैं तो हार के बावजूद वे पार्टी से इनाम के हकदार रहेंगे 

“हम तो वैसे भी हारी हुई लड़ाई लड़ रहे है. नुकसान तो कांग्रेस का ही है.”


बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने वाले मानवेंद्र सिंह अब मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को सीधे चुनौती देने के लिए मैदान में आ डटे हैं, या कहें कि ‘जबरन’ ला दिए गए हैं. बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे मानवेंद्र के पिता जसवंत सिंह और वसुंधरा राजे के बीच कुछ साल से अनबन रही है. ये अदावत पिछले दिनों के घटनाक्रम किसी से छिपे नहीं है. लिहाजा, फिलहाल बात करते हैं झालरापाटन से मानवेंद्र की दावेदारी क्या कहती है.

मीडिया की नजर में कांग्रेस की 32 नाम वाली दूसरी लिस्ट की सबसे बड़ी खासियत मानवेंद्र सिंह की उम्मीदवारी ही है. लेकिन टिकट मिलते ही मानवेंद्र ने जो पहला बयान दिया, उसके मतलब कुछ और निकलते से लगते हैं. मानवेंद्र ने कहा कि मैने पार्टी से टिकट मांगा ही नहीं था. मैं तो पश्चिम में पाकिस्तान बॉर्डर का निवासी हूं लेकिन अब पूर्व में भेज दिया गया है. पार्टी ने मुझे बुलाकर पूछा कि क्या ये चैलेंज मंजूर करोगे तो मैंने कह दिया कि देख लेंगे.

जाल में ‘फंस’ तो नहीं गए मानवेंद्र ?

माना जा रहा था कि उन्हे कांग्रेस ज्वॉइन कराने के पीछे अशोक गहलोत का ही हाथ है. इसी बैकिंग के बूते वे प्रदेशाध्यक्ष को बाइपास कर सीधे राहुल गांधी से ‘डील’ कर रहे थे. बाड़मेर में मानवेंद्र के प्रतिद्वंद्वी हरीश चौधरी ने उनके पार्टी में आने का विरोध भी जताया था. लेकिन जब उनकी सीधे राहुल से बातचीत का पता चला तो हरीश चौधरी भी शांत हो गए. अभी तक राजस्थान में आमतौर पर ये चर्चा थी कि मानवेंद्र ने खुद के लिए बाड़मेर-जैसलमेर लोकसभा सीट और पत्नी चित्रा सिंह के लिए शिव विधानसभा सीट से टिकट की ‘डील’ की थी.

कांग्रेस की पहली लिस्ट में शिव सीट से अमीन खान को टिकट दे दिया गया. उधर हरीश चौधरी ने तो लिस्ट आने से पहले ही बायतू से नामांकन भी दाखिल कर दिया था. ऐसे में सवाल उठ रहे थे कि मानवेंद्र के राजनीतिक भविष्य का क्या होगा ? अब उनकी ‘अनिच्छा’ और वसुंधरा राजे जैसी ताकतवर हस्ती से प्रतिद्वंद्विता देखकर ये सवाल कहीं बड़ा हो गया है.

1980 के दशक से ही वसुंधरा राजे झालावाड़ जिले को अपना पॉलिटिकल बेस बनाए हुए हैं. 2003 से पहले तक वे झालावाड़ लोकसभा सीट से लगातार जीत दर्ज कर रही थी. यहां से अब उनके बेटे दुष्यंत सिंह सांसद हैं. पिछले 15 साल से वे झालरापाटन से विधायक हैं. वैसे भी हाड़ौती संभाग बीजेपी का पुराना गढ़ रहा है. हो सकता है कि वसुंधरा राजे को शिकस्त देना जसोल परिवार की दिली इच्छा हो लेकिन तमाम समीकरणों को देखें तो वसुंधरा राजे के सामने मानवेंद्र के चुनौती बनने में संशय ही दिखता है.

राजपूतों की नाराजगी को भुनाने की कोशिश

मानवेंद्र, राजपूतों की बीजेपी खासकर वसुंधरा राजे से नाराजगी को लगातार हवा दे रहे हैं. हाड़ौती में राजपूतों के अच्छी संख्या में वोट हैं और उन्हे उम्मीद है कि नाराजगी को सुलगाकर वे समाज को अपनी तरफ कर सकते हैं. लेकिन इस रणनीति में भी एक झोल है. राजपूतों के एक वर्ग में बीजेपी के प्रति नाराजगी तो है. लेकिन लगता है ये समाज के कुछ नेताओं की निजी नाराजगी ज्यादा है.

पिछले महीने करणी सेना ने जयपुर में बीजेपी को अपनी ताकत दिखाने के लिए सभा का आयोजन किया था. सभा में 50 हजार लोगों के आने का दावा किया गया. लेकिन हालात ये थे कि तय समय पर पूरे स्टेडियम में सिर्फ 100 लोग पहुंचे थे. आयोजकों ने 3 घंटे तक लोगों का इंतजार कर आखिर में सभा रद्द कर दी. इसके बाद बीजेपी ने इन राजपूत नेताओं की रही सही ‘पूछ-परख’ भी बंद कर दी.

वैसे, जीत न मिले तो भी मानवेंद्र के दोनों हाथों में लड्डू हो सकते हैं. वसुंधरा राजे के सामने होने की वजह से पूरी मीडिया का अटेंशन इस सीट पर रहेगा और उन्हे लगातार पब्लिसिटी मिलेगी. इसके अलावा, अगर वे अच्छी फाइट देने में कामयाब रहते हैं तो हार के बावजूद वे पार्टी से इनाम के हकदार रहेंगे. आखिर उन्होने बिना ना-नुकुर किए सबसे बड़ी चुनौती को स्वीकार किया है. इस कदम के जरिए उन्होंने फिलहाल अपने राजनीतिक विरोधियों को शांत करने में भी कामयाबी हासिल कर ली है.

बीजेपी-कांग्रेस में उठापटक चरम पर

सोमवार यानी 19 नवंबर नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन है. बीच मे सिर्फ रविवार का दिन है और उठापटक ऐसी मची है कि दोनों ही पार्टियां अभी तक पूरे उम्मीदवार भी घोषित नहीं कर पाई हैं. अब तक कांग्रेस ने 2 लिस्ट में 184 तो बीजेपी ने 3 बार मे 170 उम्मीदवार घोषित किए हैं.

कांग्रेस में पहली लिस्ट के बाद शुरू हुआ बवाल अब और तेज हो गया है. जयपुर जिले की फुलेरा सीट पर टिकट के लिए प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट और नेता प्रतिपक्ष रामेश्वर डूडी में राहुल गांधी के सामने ही तीखी बहस हो गई थी. इस सीट के लिए डूडी अपनी रिश्तेदार स्पर्धा चौधरी के लिए टिकट मांग रहे थे. स्पर्धा को टिकट तो नहीं मिला, उल्टे उन्हे 6 साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. निश्चित रूप से ये लड़ाई अब और तीखी होने की आशंका है. सचिन पायलट पर अपनी जाति के खास लोगों को टिकट बांटने के आरोप भी लगने लगे हैं.

इधर, बीजेपी की तीसरी लिस्ट में कांग्रेस से एक दिन पहले ही आए पूर्व मंत्री राम किशोर सैनी को बांदीकुई से टिकट दे दिया गया है. यहां से मौजूदा विधायक अलका गुर्जर का टिकट काटा गया है. जिनके पति ने 1989 में सचिन पायलट के पिता राजेश पायलट को दौसा लोकसभा सीट से शिकस्त दी थी.

पार्टी ने सवाई माधोपुर से जयपुर राजपरिवार की मौजूदा विधायक दीया कुमारी का पत्ता भी काट दिया है. दीया को 2013 में खुद वसुंधरा राजे ही राजनीति में लेकर आई थी. लेकिन इसके बाद से दोनों के बीच ‘कुछ भी ठीक’ नहीं चल रहा था. चर्चा है कि यहां पिछली बार दीया से हारने वाले किरोड़ी लाल मीणा की सिफारिश चली है. पार्टी ने अलवर के थानागाज़ी से मंत्री हेमसिंह भड़ाना का टिकट काटकर वसुंधरा राजे के नजदीकी डॉ रोहिताश्व शर्मा को टिकट दिया है. जमवा रामगढ़ से भी मौजूदा विधायक का टिकट काट दिया गया है. इन पर अपने बेटे को विधानसभा में सरकारी नौकरी लगवाने में अनैतिकता के आरोप लगे थे.

बीजेपी बदलेगी कुछ उम्मीदवार

बीजेपी ने अब कुछ सीटों पर उम्मीदवार बदलने के संकेत भी दिए हैं. इनमें सबसे ऊपर है टोंक सीट. यहां से सचिन पायलट उतर रहे हैं. जिस तरह से कांग्रेस ने वसुंधरा को घेरने की कोशिश की है, उसके बाद बीजेपी यहां से सरकार मे नंबर 2 युनूस खान को उतारने का मन बना रही है. टोंक सीट पर मुस्लिम मतदाताओं की संख्या अच्छी-खासी है. युनूस खान को अभी तक टिकट नहीं दिया गया है.

शुक्रवार को उनके सरकारी आवास पर डीडवाणा से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे और उनसे निर्दलीय चुनाव लड़ने की इच्छा जताने लगे. इसी दौरान प्रदेशाध्यक्ष मदन लाल सैनी वहां पहुंचे और खान से एकांत में चर्चा की. माना जा रहा है कि पार्टी की तरफ से उन्हे आश्वासन दे दिया गया है. वैसे भी किसी मुसलमान को टिकट न दिए जाने का मुद्दा बड़ा बनता जा रहा था.

बहरहाल, इस बार लहरविहीन लड़ाई में कांग्रेस जीत को आसान मान कर चल रही थी. लेकिन जिस तरीके से बागियों ने सिर उठाया है, उसने तगड़ी चुनौती खड़ी कर दी है. निश्चित रूप से कांग्रेस के लिए बागियों को मनाए बिना जीत हासिल करना आसान नहीं होगा. हालांकि यही चुनौती बीजेपी के सामने भी है लेकिन नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक नेता ने जो कहा वो जबरदस्त पंचलाइन है- “हम तो वैसे भी हारी हुई लड़ाई लड़ रहे है. नुकसान तो कांग्रेस का ही है.”