वोहरा को मिली जमानत

चंडीगढ
आज पंजाब हरियाणा उच्च न्यायालय ने पंचकूला सैक्टर 16 निवासी सतीश कुमार वोहरा को अंतरिम जमानत दे दी। सतीश वोहरा के खिलाफ महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय समन्वयक रंजीता मेहता द्वारा 29 अक्टूबर 2018 को दी गई शिकायत पर सेक्टर 14 के पुलिस स्टेशन में भारतीय दण्ड सहिंता की धारा 500 और 506 के तहत मामला दर्ज है
इस अन्तरिम जमानत पर अगली सुनवाई 5 अप्रैल को होगी।

आपको याद दिला दें कि 28 सितम्बर 2018 को वोहरा ने पत्रकारों को सम्बोधित करते हुए रंजीता मेहता पर कुछ आरोप लगाए थे जिनमें उन्होंने कहा कि रंजीता ने उनसे लाखों रुपए का धोखा किया है इतना ही नहीं कुछ फ़र्ज़ी तरीकों से उन्होंने वोहरा परिवार को धोखा दिया है।

आपको बता दें कि 14 नवम्बर पर सतीश कुमार वोहरा की अग्रिम जमानत रद्द कर दी गई थी। रंजीता मेहता ने 13 नवम्बर को पुलिस को शिकायत दी कि 12 नवम्बर शाम 7 बजे सैक्टर 16 की मार्किट में वोहरा ने उनको धमकी दी जबकि वोहरा ने इस बात को पूर्णतः नकारते हुए कहा कि यह आरोप सरासर गलत है क्योंकि जो समय रंजीता बता रही हैं उस समय तो वह पुलिस चौकी में अपना ब्यान दर्ज करवा रहे थे जो कि पुलिस के रिकार्ड में मौजूद है और पुलिस ने उस ब्यान को अदालत में भी पेश किया है।
ब्यान पर समय और तिथि दोनों दर्ज होती हैं।

रंजीता का दूसरा आरोप था कि वोहरा ने रंजीता के पति अभि मेहता के दफ्तर में जा कर उनकी छवि बिगाड़ने की कोशिश की।

वोहरा ने इस आरोप को भी खारिज करते हुए कहा कि वह कभी भी उनके दफ्तर नहीं गए न ही किसी से कोई बात ही की। पुलिस भी सम्बन्धित दफ्तर जा कर तहकीकात कर चुकी है और आरोप बेबुनियाद पाए गए।
वोहरा ने कहा वह पहले भी जाँच में शामिल हुए और अब भी सहयोग करेंगे क्योंकि उन्हें न्यायिक प्रक्रिया पर पूरा यकीन है।

करे जैश भरे जेयूडी(जमात-उद-दावा)

पुलवामा हमले की जैश की स्वीकरोकती के पश्चात पकिस्तान ने जेयूडी(जमात-उद-दावा) को बैन करने का निशच्य लिया है यह फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (एनएससी) की बैठक में लिया गया जिसकी अध्यक्षता पीएम इमरान खान ने की

नई दिल्ली: पुलवामा हमले के बाद भारत के सख्ती ने रंग दिखा दिया है. पाकिस्तान ने 2008 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के संगठन जमात-उद-दावा और उसके चैरिटी विंग फलाह-ए-इंसानियत फाउंडेशन पर प्रतिबंध लगा दिया है. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा जिले में हुए आतंकवादी हमले में सीआरपीएफ के 40 जवानों के शहीद होने के बाद पाकिस्तान पर कार्रवाई करने को लेकर लगातार अंतरराष्ट्रीय दबाव बन रहा था. 

पीटीआई के मुताबिक गृह मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि प्रधानमंत्री इमरान खान की अध्यक्षता में उनके कार्यालय में गुरुवार को हुई राष्ट्रीय सुरक्षा समिति की बैठक में इन संगठनों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला लिया गया.

प्रवक्ता ने एक बयान में कहा, ‘गैरकानूनी करार दिए गए संगठनों के खिलाफ कार्रवाई तेज करने का फैसला बैठक में लिया गया.’ उन्होंने कहा, ‘यह तय किया गया कि गृह मंत्रालय द्वारा जमात-उद-दावा और फलह-ए-इंसानियत फाउंडेशन को गैरकानूनी घोषित किया जाए.’  इससे पहले गृह मंत्रालय ने दोनों संगठनों को निगरानी सूची में रखा था.

अधिकारियों के अनुसार, जेयूडी के नेटवर्क में 300 मदरसे औरस्कूल, अस्पताल, एक प्रकाशन और एम्बुलेंस सेवा शामिल हैं. दोनों समूहों के पास करीब 50,000 स्वयंसेवक और सैकड़ों की संख्या में वेतनभोगी कर्मचारी हैं.

एनएससी बैठक से पहले इमरान और बाजवा ने की एक बैठक
‘भाषा’ के मुताबिक जियो टीवी ने सूत्रों के हवाले से अपनी रिपोर्ट में बताया कि एनएससी की बैठक से पहले प्रधानमंत्री खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा ने बैठक की जिसमें उन्होंने क्षेत्र की सुरक्षा स्थिति पर विचार-विमर्श किया.

सूत्रों के हवाले से चैनल ने बताया कि इसके बाद एनएससी बैठक के दौरान पुलवामा हमले और इसके बाद उपजी स्थिति पर चर्चा की गई. इस बैठक में सेना प्रमुख जनरल बाजवा, सेवाओं के प्रमुख, खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों, सुरक्षा अधिकारियों और वित्त, रक्षा, विदेश मामलों तथा गृह विभाग के लिए संघीय तथा राज्य मंत्रियों ने भाग लिया.

पाकिस्तान के आईसीसी से निष्कासन की तैयारी मे बीसीसीआई

हाल ही में पुलवामा में CRPF के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले में भारत के दर्जनों जवानों की शहादत के बाद इसी साल इंग्लैंड में होने वाले क्रिकेट वर्ल्ड कप में भारत पाकिस्तान मुकाबला के बहिष्कार का मांग लगातार जोर पकड़ती जा रही है. अब खबर आई है कि बीसीसीआई ने एक चिट्ठी तैयार की है जिसमें आईसीसी से क्रिकेट के इस महाकुंभ से पाकिस्तान को बैन करने की मांग की जाएगी और ऐसा ना होने की सूरत में बीसीसीआई यानी टीम इंडिया वर्ल्ड का हिस्सा नहीं होगी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक बोर्ड के सीईओ राहुल जौहरी ने इस खत का मजमून तैयार कर लिया है और इसे बोर्ड को चला रही सीओए के चीफ विनोद राय की मंजूरी भी हासिल हो चुकी है. इसे गुरुवार को आआईसीसी के चेयरमेन शशांक मनोहर को भेजा जा सकता है लेकिन उससे पहले कानूनी सलाह ली जाएगी.

भारत और पाकिस्तान के बीच 16 जून का वर्ल्ड कप का मुकाबला खेला जाएगा. इस टूर्नामेंट में कुल 10 टीमें भाग लेंगी.

भारत और पाकिस्तान के बीच आईसीसी विश्व कप में होने वाले मैच के बहिष्कार की मांग के बीच मैनचेस्टर में 16 जून को होने वाले इस मैच का जलवा प्रशंसकों के बीच बरकरार है. ओल्ड ट्रैफर्ड में 25000 दर्शकों की क्षमता के बावजूद टिकटों के लिए 400000 से अधिक लोगों ने आवेदन किया है.

“Sexual abuse is rampant in Church” Sister Lucy

Religious women, priests and laymen who supported a nun after she filed a police complaint of rape against Jalandhar ex-bishop Franco Mulakkal, are being systematically targeted by the Catholic Church in Kerala.

Nuns, who form the most vulnerable community in the Church, are facing most of this oppression. While five nuns who took to streets demanding the arrest of the bishop are being put under pressure and threatened, another nun who was an important witness in the case was harassed and tortured under wrongful confinement in a convent this wee. Another who participated in the protest has been served a canonical notice of expulsion from her Franciscan Clarist Congregation (FCC).

Sister Lucy Kalappura, who has been given time up to 10 March to give reasons not to initiate expulsion proceedings against her, is least deterred by the move. The 53-year-old nun, who works in a government-aided school under the management of the Mananthavady diocese in Wayanad district, talks about the reasons in this interview. Here are the edited excerpts of the conversation:

Why are you confident that the present move to oust you from the congregation will not succeed?

Because I have not done anything wrong. They cannot oust me for supporting a fellow nun while she was suffering physical, mental and spiritual pain and five of her colleagues came out on the streets demanding justice. The FCC authorities have, therefore, cooked up flimsy grounds by raking up old issues for proceedings against me. The charges they have levelled against me will not stand legal scrutiny. Therefore, I am not afraid of their moves.

File image of Sister Lucy Kalappura. Image courtesy: TK Devasia
File image of Sister Lucy Kalappura

If you feel so, why do you think your superior general has served you with a canonical notice with a threat of dismissal from the congregation?

I think it is part of a larger plan by those supporting the bishop to intimidate the witnesses and silence those supporting the nuns. A similar warning was issued to priests and laymen, who came out in the open against the bishop. Many others are being harassed and tortured.

I feel this is aimed at torpedoing the case. I don’t know why the supporters of the bishop are resorting to these tactics if they believe that he is innocent. The case is in the court. The bishop will get ample opportunity to prove his innocence if he is really innocent.

Do you personally think the bishop is guilty of rape?

I do not know either the bishop or the nuns. I have not seen any of them before. I came to know about the incident only after I read in the media about the protest staged by the five nuns, who stayed with the rape survivor at the Kuravilangad convent at Kochi. Such a street protest by nuns was unprecedented in the history of Catholic Church. When the nuns resorted to such a protest, I believed that they had a strong reason to do so. I am not trying to judge anybody. Let the court bring out the truth.

Why did you then decide to join the protest?

There are thousands of nuns in the Catholic Church across India. I thought they will stand by the protesting nuns after they came out of their convent demanding justice. I felt they had a moral responsibility to listen to these nuns in their hour of crisis. When none came forward, I stepped out. I am an ordinary nun. I don’t have the power or resources to provide any material support to the protesting nuns. But I felt at least my presence would give them strength to continue their fight for justice. I will continue to support them as long as they fight for justice.

Has your decision got to do anything with similar sexual abuse you have faced while serving as a nun?

I have personally faced sexual advances not only from priests but also members of the laity, but I have not succumbed to them. At least two priests tried to sexually abuse me in my workplace. While I was teaching in a school in Rajasthan, the headmaster of the school, who was also a priest, made sexual advances against me when I approached him to clear a doubt in the subject I taught. I could overcome such advances as I held my vow of chastity strong. I could avoid similar situations later in life by keeping safe distance from such people.

Do you think sexual abuse is a serious issue in the Catholic Church?

Yes. Sexual abuse is rampant in the Catholic Church. It is hidden under the iron walls of the Church.

There are several nuns who are silently suffering the sexual exploitation. Many have told me about their experiences after I came forward to support the Kuravilangad nuns. The priests who preach the Ten Commandments in the Church violate them without any scruples.

Why is sexual abuse rising in the Church now?

I think it is because of the influence of materialism that is gripping the Church. It is running after money. The Church charges money for every sacrament and service it renders from poor and rich alike. Why does the church need so much money for its spiritual activities? The money is not used to help the poor and the needy as Jesus Christ taught, but to help priests and prelates to lead a luxurious life. The pursuit for luxury has been leading to corruption and other aberrations. There is no love left in the Church anymore.

Why do you think nuns are not coming out against the sexual exploitation they are suffering within the Church?

I think it is because of lack of financial independence. The nuns fear they may be ousted from the congregation if they speak out. Once they are ousted, they have nowhere to go and have no means to sustain their lives.

While they have surrendered their share of the family property after joining the religious order, whatever they earn from the job as a nun is taken away by the congregation.

They are totally dependent on their superiors for their personal needs. The nuns have to beg for money they need for even simple things like recharging a phone. Most often, these requests are not considered sympathetically. This forces nuns to seek support from outside the congregation. Since their immediate contact is a priest, many nuns approach them for money. Some priests misuse this opportunity. Thus, lack of financial independence not only forces them to suffer the abuses silently but also makes them vulnerable to abuses.

Can you blame the priests alone for the sexual abuse happening in the Church?

Certainly not. There are many among the nuns who seek sexual pleasure. This is because they don’t have the true religious calling. I cannot blame them because they have been pushed into religious life at a very young age. I don’t think any woman who has chosen religious life after attaining the age of maturity will break the vow of chastity. I have been, therefore, demanding raising the age of girls for entering the religious life from the present 15 to 21. This is one of the charges against me.

Have you chosen the religious path on your own volition?

I had felt the religious calling while I was studying in Class 10. However, I waited till I passed my pre-degree to enter the nunnery. I tried to sustain the calling by joining a Christian college and staying in a hostel run by the nuns while studying for pre-degree. My main motive behind the decision was to do good for the people. If I had chosen a married life, I thought I would not have been able to do things I wanted to because of family obligations.

Do you regret your decision in light of the several bitter experiences you have faced in your 33 years of life as a nun?

I have thought many times that I could do better by remaining outside the cloistered life. I chose the religious order as I wanted to do good for the people. But after joining the convent, I realised it was not easy. I needed permission from higher authorities for anything I wanted to do.

I have to beg them for money to even give alms to a beggar. I could do better as an ordinary woman.

I have seen many ordinary people doing a lot of good for the society. The nuns, on the other hand, are confined to the convents. Though many convents have large sums of money, they are not spent for the needy. In spite of this, I do not regret my decision to join the religious order. I am fully satisfied because I have not allowed anybody to subjugate me, any pain to tire me and no regulations to enslave me. Therefore, I have no prick of conscience. I am holding my head high.

What is the message you have for fellow nuns?

I love all my fellow nuns. What I have to tell them is that we are not supposed to remain subjugated. We are entitled to get all reasonable benefits which the priests get. We should get happiness and satisfaction within the convent. We should fight for financial freedom so that we can help a poor person we come across the society without going through the rigorous process of seeking permission from the authorities.

We should not need permission to do good for the people. We should not bow down to the priests. If any of the nuns find chastity difficult to observe, they should quit the order and lead a married life instead of violating the vow.

For Pakistan, it’s time to stop the bluster and inject some sober reality into statements.

If it wasn’t such a dangerous situation, the statements coming thick and fast from Pakistan would be hilarious and perplexing. Pakistan prime minister Imran Khan is his speech aimed mostly at the international community and his domestic audience — leaning forward at each word and gesture — prof-erred advice to India on Kashmir, and promised to take immediate action if India provided ‘actionable’ intelligence on the involvement of Pakistan in the Pulwama attacks.

According to Khan, this was a “Naya” Pakistan that would act differently. To most watchers, however, it seemed remarkably like the same old Pakistan, protesting too much and doing precious little. Yes, the Pakistan prime minister is considerably better looking than that poor Nawaz Sharif, now showing his age as he battles multiple cases. But that’s about all.

File picture of Imran Khan
File picture of Imran Khan.

To an ignorant observer, Imran’s speech would have seemed to be entirely sincere, especially when he asked what Pakistan had to gain from an attack at a time when it was seeking financial assistance from one and all. The observer, however uninformed, would only have to type in “Jaish-e-Mohammed” into a search engine to get all the details of the outfit’s huge buildings and campuses in Bahawalpur in the province of Punjab.

Thereafter if interested, he or she could also access an interesting input. Recent reports amply demonstrate Jaish-e-Mohammed chief’s threats against Kashmir, and Pulwama specifically, during a rally on 5 February in Peshawar barely nine days before the attack. That is the date when Pakistan marks “Kashmir Solidarity Day” when extremist and terror groups show their muscle at rallies where every kind of threat against India, and its leaders are publicly made. Really, Prime Minister Khan, it’s simply far too easy to see.

In the same taped broadcast, Khan also chose to warn India that Pakistan would retaliate against any attack, which is something that would be expected from the prime minister of a country that is in danger. However, the curious part is that he chose to make these statements five days after the Pulwama attack, and well after Prime Minister Narendra Modi’s own warning of a suitable retaliation. Khan’s stated position is that he was busy with the Saudi prince, which is somewhat plausible since he was engaged in driving the royal around. But no head of a country is likely to react so slowly to a threat of war unless he was either waiting for some commitment/information from some source or, else he’s been told to make such a statement by the powers that stand at his elbow. Reports pointing to 35 cuts and editing in the video only fuelled this speculation.

Since then others in his entourage, probably fired by his public indignation have been up in arms. The Pakistan foreign minister pre-empted his chief by calling for proof (16 February) of Jaishe-Mohammed’s hand in the attack, probably reading from a statement that lies in triplicate in a file related to the 26/11 Mumbai Attacks. Former Pakistan cricket captain Shahid Afridi backed Khan to the hilt, but clearly far more upset at the cancellation of the forthcoming matches of the Pakistan Super League.

A far more extreme position came from Pakistan Ambassador to Afghanistan Zahid Nasrullah Khan who chose to issue a statement that peace talks between the US and the Taliban would be affected if India resorted to violence. This created a hum on social media and seemed to expose Pakistan’s game of blackmail and efforts to drag the US into the whole. The statement was, however, less undiplomatic than it seemed. Next week, the US representative is to meet with Taliban leaders at Qatar. The Pakistan ambassador was making a threat that he could easily deliver on. In the event, the US didn’t rise to the bait. The US National Security Advisor supported India’s right to self-defence, as did Secretary of State Mike Pompeo.

The situation then went from strange to stranger as other Pakistani officials weighed in. Sheik Rashid, a politician who changes parties like he changes his clothes, waxed eloquent declaring, “If anyone tries to look at Pakistan with evil in their minds, their eyes will be gouged out…. Neither will birds chirp nor will bells ring at the temples after that.” With that, there seemed little more to say. Memes and ribaldry prevailed on social media, bringing the whole situation to the level of a circus, and a very poor one at that.

The outcry seemed to be an exercise in one-upmanship. In the middle of all this melee, the usually loquacious Director General ISPR ( Inter-Services Public Relations) Major General Asif Ghafoor was unexpectedly silent. So did the military brass. It would have seemed a dignified silence, but for this barrage of statements from persons like Rashid who are practically unofficial spokespersons for the establishment. In all this, there is one clear danger. In India, it is the prime minister who outlined the position of the government and gave the decision making to the Indian Armed Forces on how to implement his directive. That is how a democratic country works, despite the apparent noise and flurry of public hyperventilating. In Pakistan, it is still unclear, and thereby there is always a risk of misinterpretation of signals and a possible unintended escalation. It’s time to stop the bluster and inject some sober reality into statements. This is all getting too much like reality TV. Except that this is about war and loss of lives, and somewhere, someone may blunder.

पाकिस्तान में जा रहा भारतीय हिस्से का पानी अब भारत ही में बहेगा: नितिन गडकरी

केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भारतीय पानी को पाकिस्तान जाने से रोकने के लिय उठाए गए कदमों की बात तो की परंतु वह यह भूल गए की पुंजाब में अमरिंदर-सिद्धू की सरकार है, इनहोने पहले ही सतलुज यामिना नहर को समतल कर दिया है और हरियाणा के हिस्से मेन आने वाला सतलुज का पानी भी पाकिस्तान को ही जाने दिया है क्या इस प्रकार वह पाकिस्तान को पानी रोक पाएंगे???

नई दिल्ली; पुलवामा आतंकी हमले के बाद मोदी सरकार ने बड़ा कदम उठाते हुए पाकिस्तान को जाने वाले अपने हिस्से के पानी को रोकने का फैसला किया है. इसके साथ ही इस पानी को जम्मू और कश्मीर और पंजाब की तरफ मोड़ने का फैसला भी केंद्र सरकार ने लिया है. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने ट्वीट कर यह जानकारी दी.

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘पीएम मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने पाकिस्तान के ओर जाने वाले अपने हिस्से के पानी को रोकने का फैसला किया है. हम पूर्वी नदियों के पानी का रुख जम्मू कश्मीर और पंजाब की तरफ मोड़ेंगे.’ 

MODI Govt. has decided to stop our share of water which used to flow to Pakistan

नितिन गडकरी ने एक अन्य ट्वीट में कहा, शाहपुर-कंडी में रावी नदी पर बांध बनाने का काम शुरू हो चुका है. वहीं UJH प्रोजेक्ट हमारे हिस्से के पानी को जम्मू-कश्मीर के लिए संग्रहित करेगा और शेष पानी दूसरे रावी-ब्यास लिंक के जरिए बहते हुए दूसरे बेसिन राज्यों को मिलेगा. 

MODI Govt. has decided to stop our share of water which used to flow to Pakistan

इससे पहले बुधवार को एक कार्यक्रम में नितिन गडकरी ने कहा था, ‘बंटवारे के बाद भारत और पाकिस्तान को तीन-तीन नदियों के पानी के इस्तेमाल की अनुमति मिली थी. इस समझौते के बावजूद भारत के कोटे में आई तीन नदियों का पानी अब तक पाकिस्तान में प्रवाहित हो रहा था. अब हमने इन तीनों नदियों पर प्रॉजेक्ट्स का निर्माण कराया है, जिनकी मदद से अब इन नदियों का पानी पंजाब और जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाएगा. एक बार जब यह काम शुरू हो जाएगा तो इससे यमुना नदी के जलस्तर में वृद्धि भी हो सकेगी.’

मैं और मेरा परिवार 1999 तक बूथ लूट कर ही चुने जाते रहे: किर्ति आज़ाद

भाजपा सांप्रदायिक पार्टी,
सनद रहे भागवत झा आज़ाद कांग्रेस के दिग्गज नेता थे और बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे हैं जीके लिए किर्ति ने मान की बूथ लूटे जाते रहे हैं
दरभ्ंगा से सीट न मिलने पर भाजपा छोड़ी और अब अलाकमान ही चुनाव लड़ने न लड़ने का निर्णय लेंगे

मुकेश कुमार, दरभंगा : भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) छोड़ कांग्रेस पार्टी ज्वाइन कर पहली बार दरभंगा पहुंचे सांसद कीर्ति आजाद का कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया. स्वागत कार्यक्रम के दौरान अफरातफरी की स्थिति भी उत्पन्न हो गई. सभा स्थल पर बनाया गया मंच टूट गया. इस दौरान बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष मदन मोहन झा भी मौजूद थे. मंच टूटने से सभी नेता और कार्यकर्ता जमीन पर गिर गए. राहत की बात यह रही की इसमें किसी भी नेता को ज्यादा चोटें नहीं आई.

स्वागत कार्यक्रम के दौरान अपनी नई नवेली पार्टी के कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कीर्ति आजाद ने कुछ ऐसा कहा कि लोग कुछ देर के लिए सोचने को मजबूर हो गए.

उन्होंने अपनी पत्नी पूनम आजाद को कांग्रेसी परिवार की बेटी बताते हुए कहा, ‘उस दौर में नागेंद्र बाबा (नागेंद्र झा) और डॉ साहब (जगन्नाथ मिश्र) के लिए बूथ लूटा करते थे. उस समय तो लूटा जाता था, लेकिन आज के समय में कोई गड़बड़ी नहीं है. मेरे पिता भागवत झा आजाद के लिए भी बूथ लूटा जाता था. 1999 में मेरे लिए भी लूटा गया था बूथ. उस समय इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) नहीं आयी थी. 

इससे पहले दरभंगा पहुंचने पर कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने कीर्ति आजाद जमकर स्वागत किया. रोड शो के दौरान उनके साथ मदन मोहन झा भी साथ रहे. रोड शो के बाद वह दरभंगा स्थित कांग्रेस दफ्तर पहुंचे, जहां उन्होंने कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को संबोधित भी किया. इस दौरान उन्होंने कहा कि यह हमारी यह वापसी है. उन्होंने खुद को जन्म से कांग्रेसी बताया. साथ ही उन्होंने बीजेपी को सबसे बड़ा साम्प्रदायिक पार्टी करार दिया.
लगातार दरभंगा से अपनी दावेदारी पेश करने वाले कीर्ति आजाद यूं तो कल तक किसी भी सूरत में दरभंगा से चुनाव लड़ने की बात कह रहे थे, लेकिन कांग्रेस ज्वाइन करते हीउनके सुर थोड़े बदले जरूर हैं. उन्होंने कहा कि चुनाव लड़ने की इच्छा हमने पार्टी के आलाकमान को बता दिया हैं, लेकिन पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी उसे जरूर पूरा करेंगे. वहीं, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मदन मोहन झा ने कहा कि कीर्ति आजाद के कांग्रेस में आने से बहुत फायदा होगा.

नामवर सिंह नहीं रहे

नई दिल्ली: हिंदी के जानेमाने साहित्यकार और आलोचक नामवर सिंह का 92 साल की उम्र में निधन हो गया है. वे पिछले एक महीने से दिल्ली के एम्स अस्पताल में ट्रॉमा सेंटर में भर्ती थे. पिछले महीने अचानक उनकी तबियत नासाज उस समय हो गई जब वह अपने घर में गिर गए. उसके बाद से लगातार उनका स्वास्थ्य बिगड़ता जा रहा था.  

उन्हें आलोचना और साक्षात्कार विधा को नई ऊंचाई देने का श्रेय जाता है. कविता के नए प्रतिमान के लिए 1971 में नामवर सिंह को साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया था.

आपको बता दें नामवर सिंह हिंदी के जाने माने साहित्यकार हैं. उनका जन्म 28 जुलाई 1927 को वाराणसी के जीयनपुर जिसका नाम अब चंदौली है, में हुआ था. नामवर सिंह ने देश के कई प्रतिष्ठ‍ित विश्वविद्यालयों में पढ़ाया है. उनकी छायावाद, नामवर सिंह और समीक्षा, आलोचना और विचारधारा जैसी किताबें आज भी काफी चर्चित हैं. 
उन्होंने साहित्य में काशी विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल करने के बाद कई साल तक प्रोफेसर की नौकरी की. अब लंबे अरसे से वह हिंदी के सबसे गंभीर आलोचक, समीक्षक और साक्षात्कार विधा में पारंगत लेखक के रूप में जाने जाते हैं.

बीएचयू के साथ ही उन्होंने सागर, जोधपुर विश्वविद्यालय, आगरा विश्वविद्यालय में अध्यापन किया था. फिर वो दिल्ली के जेएनयू में आ गए और वहीं से रिटायर हुए. नामवर सिंह उर्दू के भी बड़े जानकार थे.

अध्यापन और लेखन के अलावा उन्होंने राजनीति में भी हाथ आजमाया था. साल 1959 में वे सक्रिय राजनीति में उतरे और उन्होंने इस साल चकिया-चंदौली सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के बैनर तले लोकसभा चुनाव लड़ा था. हालांकि इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.

आलोचना: बकलम खुद, हिंदी के विकास में अपभ्रंश का योग, आधुनिक साहित्य की प्रवृत्तियाँ, छायावाद, पृथ्वीराज रासो की भाषा, इतिहास और आलोचना, दूसरी परंपरा की खोज, वाद विवाद संवाद.

साक्षात्कार: कहना न होगा

सम्पादित किताबें: कहानी: नई कहानी, कविता के नये प्रतिमान, दूसरी परम्परा की खोज, वाद विवाद सम्वाद, कहना न होगा. चिंतामणि भाग-3, रामचन्द्र शुक्ल संचयन, हजारीप्रसाद द्विवेदी:संकलित निबन्ध, आज की हिन्दी कहानी, आधुनिक अध्यापन रूसी कविताएं, नवजागरण के अग्रदूत: बालकृष्ण भट्ट.

छतीसगढ़ की तरह बिहार में भी महागठबंधन में पीछे छूटते वामदल

  • लोकसभा चुनाव में वामदलों को सीट देने में लालू यादव की कोई रुचि नहीं है.
  • कमलाकांत मिश्र ‘मधुकर’ की बेटी ने भी मोतिहारी सीट को लेकर भेंट करने की कोशिश की थी लालू नहीं मिले
  • कन्हैया कुमार का राजनाइटिक भविष्य तो यहीं तय हो गया की बेगूसराय सीट पर उन्हे अपने दम पर ही लड़ना होगा क्योंकि राज्य परिषद की उनकी उम्मीदवारी पर भी ग्रहण लगता दीख पड़ता है।
  • बिहार की भूमि पर राजनीतिक रूप से सक्रिय तीनों वाम दल क्रमशः सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई (एमएल) लिबरेशन अगले महाभारत में अकेले(अपने दम खम पर) चुनाव लड़ेंगे

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार की लोकप्रियता के सहारे बिहार में खुद को पुर्नजीवित करने की वामदलों, खासकर सीपीआई और सीपीएम, की रणनीति दम तोड़ती नजर आ रही है. भरोसेमंद सूत्र का कहना है कि आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव ने स्पष्ट संदेश दे दिया है कि महाभारत 2019 में सीपीआई और सीपीएम की भागीदारी की उन्हें कोई जरूरत नहीं है.

सीपीआई के एक कद्दावर नेता ने भी नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, ‘लोकसभा चुनाव में हमलोगों को सीट देने में लालू यादव की कोई रुचि नहीं है. वो नहीं चाहते हैं कि वामदल फिर से बिहार में जिंदा होकर अपने पैरों पर चल सकें.’

पिछले दो सप्ताह से बिहार के वामदलों के कई शीर्ष नेता लालू यादव से मिलने का अथक प्रयास कर रहे हैं. यहां तक कि सीपीआई के मूर्धन्य नेता रहे कमलाकांत मिश्र ‘मधुकर’ की बेटी ने भी मोतिहारी सीट को लेकर भेंट करने की कोशिश की थी. लेकिन आरजेडी सुप्रीमो ने उन सभी से मिलने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

सीपीआई के राज्य सचिव सत्य नारायण सिंह ने बातचीत में स्वीकार किया, ‘लालू यादव से मिलने के लिए बीते दो शनिवार को हमलोगों ने अर्जी लगाई थी लेकिन सफलता नहीं मिली’.

इसी बीच सीपीआई की बेगूसराय जिला कार्यकारिणी ने 16 फरवरी को सर्वसम्मति से कन्हैया कुमार का नाम चुनाव लड़ने के लिए फाइनल करके राज्य परिषद को भेज दिया है. समझा जाता है कि इस सप्ताह कन्हैया कुमार के अलावा और 4 सीटों के लिए उम्मीदवारों का नाम राज्य परिषद अनुमोदन करके नेशनल एक्जिक्यूटिव कमेटी को अंतिम मुहर लगाने के लिए भेज देगी.

स्टेट सेक्रेटरी सत्यनारायण सिंह तथा सीपीआई राष्ट्रीय परिषद के सदस्य राम नरेश पांडेय ने बतौर पर्ववेक्षक बेगूसराय जिला परिषद की बैठक में शिरकत की थी. सत्यनाराण सिंह का कहना है कि किसी सूरत में बेगूसराय लोकसभा सीट से सीपीआई लड़ेगी. कन्हैया कुमार ही उम्मीदवार होंगे. वैसे कुछ दिन पहले बयान जारी कर जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष ने कहा है कि वो चुनाव नहीं लड़ेंगे.

कन्हैया कुमार को बेगूसराय सीट से उम्मीदवार बनाए जाने और वामदलों को महागठबंधन में उचित स्थान देने के सवाल पर सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी तथा सीपीआई नेता डी राजा भी क्रमशः जनवरी 12 और 19 को रांची जेल में लालू यादव से मुलाकात कर चुके हैं. सूत्र बताते हैं कि डी राजा ने आरजेडी सुप्रीमो से रिक्वेस्ट की कि बेगूसराय को जोड़कर कम से कम तीन सीट सीपीआई के लिए छोड़ दें. उसी तरह सीताराम येचुरी ने बिहार के राजनीतिक क्षितिज पर आईसीयू में सांस ले रही अपनी पार्टी के लिए दो लोकसभा सीटों की मांग की है.

महागंठबधन से जुड़े एक नेता का कहना है, ‘हमारे कुनबे में चुनावी जंग में भागीदारी के लिए उसी पार्टी और नेता को तरजीह दी जाती है जिसके घर में या तो ‘लक्ष्मी’ का वास हो या फिर पॉकेट में वोट का जखीरा हो. जगजाहिर है कि मौजूदा राजनीतिक परिस्थिति में बिहार में वाम दलों के पास इन दोनों संसाधनों में से कोई पर्याप्त मात्रा में मौजूद नहीं है.

हां, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन यानी माले के पीछे अच्छा खासा जन समर्थन है. इसीलिए हमारे नेता लालू यादव के दिल में इनके प्रति स्नेह का भाव है. हो सकता है कि आरा की लोकसभा सीट माले के खाते में चली जाए. 1989 चुनाव में माले के रामेश्वर प्रसाद ने इस सीट का प्रतिनिधित्व किया था. माले का अपना मजबूत आधार वोट है.’

चारा घोटाले में सजा काट रहे लालू यादव प्रत्येक शनिवार को तीन लोगों से मुलाकात करते हैं. 16 फरवरी को आरजेडी चीफ अपने छोटे बेटे और बिहार विधानसभा में प्रतिपक्ष के नेता तेजस्वी यादव से मिले. काफी देर तक बातचीत हुई. लेकिन अर्जी लगने के बाद भी वामदलों के नेताओं से मिलने से मना कर दिया.

tejaswi yadav

कयास लग रहा है कि आरजेडी सुप्रीमो ने तेजस्वी यादव को आरजेडी कोटे से किस सीट पर कौन व्यक्ति चुनाव लड़ेगा इसकी सूची दे दी है. यह भी चर्चा में है कि जेल में बंद पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने उत्तराधिकारी पुत्र को यह भी बता दिया है कि महागठबंधन में शामिल कांग्रेस, रालोसपा, वीआईपी, बीएसपी और हम सेकुलर पार्टियों को कौन सीटें दी जाएंगी.

बहरहाल, महागठबंधन के घटक दलों के बीच सीटों की बटवारे की घोषणा इस महीने के अंतिम सप्ताह में की जानी की पूरी संभावना है. वैसे आरजेडी के एक नेता ने बताया कि एनडीए की सूची आने तक हमलोगों द्वारा इंतजार किया जा सकता है. जो भी हो, लेकिन एक बात तो लगभग क्लियर हो गई है कि वामदलों के लिए महागठबंधन में कोई जगह नहीं है.

ऐसी परिस्थति में बिहार की भूमि पर राजनीतिक रूप से सक्रिय तीनों वाम दल क्रमशः सीपीआई, सीपीएम और सीपीआई (एमएल) लिबरेशन अगले महाभारत में एकला तलवार भाजेंगे. कुछ सीटों पर आपसी तालमेल कर सकते हैं. वैसे जानकारी के लिए पड़ोसी राज्य झारखंड में भी महागठबंधन ने वामदलों को लोकसभा की कुल 14 सीटों में से एक सीट भी नहीं दी है, जिसे लेकर वामदलों में नाराजगी है.

वामदल की नाराजगी को दूर करने के लिए झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार ने 16 फरवरी को कहा, ‘विधानसभा चुनाव में हमलोग लेफ्ट पार्टियों को उचित जगह और सम्मान देंगे.’

महंगाई भत्ता बढ्ने से 1.1 करोड़ कर्मचारियों और पेंशन धारकों को होगा लाभ

नई दिल्ली: केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने मंगलवार को सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता और महंगाई क्षतिपूर्ति में तीन प्रतिशत बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. बढ़ा भत्ता एक जनवरी 2019 से लागू माना जाएगा. इससे केन्द्र सरकार के 1.1 करोड़ कर्मचारियों और पेंशनभोगियों को फायदा होगा. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में मंगलवार को यहां हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया. इस वृद्धि के बाद महंगाई भत्ता 12 प्रतिशत हो जायेगा. मंत्रिमंडल की बैठक के बाद फैसले की जानकारी देते हुये वित्त मंत्री अरुण जेटली ने संवाददाताओं को बताया कि मंत्रिमंडल ने सरकारी कर्मचारियों का महंगाई भत्ता तीन प्रतिशत बढ़ाने का फैसला किया है.

महंगाई भत्ता बढ़ने से केन्द्र सरकार के 48.41 लाख कर्मचारियों को फायदा मिलेगा
इस समय कर्मचारियों का महंगाई भत्ता नौ प्रतिशत है. बढ़ा हुआ भत्ता एक जनवरी 2019 से लागू होगा. महंगाई भत्ता बढ़ने से केन्द्र सरकार के 48.41 लाख कर्मचारियों और 62.03 लाख पेंशनभोगियों को फायदा होगा. महंगाई भत्ते की यह वृद्धि 7वें केन्द्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप है. भत्ते में स्वीकार्य फार्मूले के अनुरूप वृद्धि हुई है. 

इससे पहले 29 अगस्त 2018 को महंगाई भत्ता बढ़ाया गया था
इससे पहले 29 अगस्त 2018 को आर्थिक मामलों की केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में मोदी सरकार ने केंद्रीय कर्मचारियों को सौगात देते हुए महंगाई भत्‍ता (DA) दो फीसदी बढ़ा दिया था. उस समय केंद्रीय कर्मचारियों को महंगाई भत्ता 7 फीसदी मिलता था. जिसे बढ़ाने के बाद 9 फीसदी कर दिया गया था. बता दें, महंगाई भत्ता की गणना कर्मचारी की बेसिक सैलरी के आधार पर होती है. उससे पहले मार्च 2018 में सरकार ने दो फीसदी डीए बढ़ाया था. इसे 5 से बढ़ाकर 7 फीसदी कर दिया गया था.