आरक्षण विरोधी ताकतों के साथ मिल कर लड़ेगे चुनाव : सपाक्स

सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों के संगठन (सपाक्स)


मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी माणक अग्रवाल कहते हैं कि सपाक्स की लड़ाई बीजेपी से है. कांग्रेस चुनाव के वक्त ही सपाक्स के उम्मीदवार देखने के बाद कोई रणनीति बनाएगी.


दिल्ली के आईएएस अधिकारी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्हें राजनीतिक कारणों से निशाना बनाया जा रहा है लेकिन, मध्यप्रदेश के अफसर पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे के खिलाफ राजनीति के मैदान में उतरने के लिए तैयार हैं. पिछले दो साल से पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे सामान्य, पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक कर्मचारी एवं अधिकारियों के संगठन (सपाक्स) ने अगले विधानसभा चुनाव में राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का फैसला किया है.

अनारक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारी के संगठन के इस ऐलान से साल के अंत में होने वाले विधानसभा के चुनाव में जातिवादी राजनीति के हावी होने की संभावना बढ़ गई है. सपाक्स समाज से कई आईएएस, आईपीएस अधिकारी भी जुड़े हुए हैं. संगठन का राजनीतिक स्वरूप होने पर अधिकारियों एवं कर्मचारियों का आचरण संहिता से बचना मुश्किल होगा.

पिछले ड़ेढ दशक से कांग्रेस के सत्ता से बाहर रहने की मुख्य वजह पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था रही है. वर्ष 2002 में राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का कानून बनाया था. पदोन्नति में आरक्षण का लाभ अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग को ही दिया जाता है. पिछड़ा वर्ग को पदोन्नति में आरक्षण नहीं दिया जाता है. राज्य में पिछड़ा वर्ग को नौकरियों में चौदह प्रतिशत आरक्षण दिए जाने का प्रावधान है. अनुसूचित जाति वर्ग के लिए बीस एवं जनजाति वर्ग के लिए सोलह प्रतिशत पद सरकारी नौकरियों में आरक्षित हैं. वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में दिग्विजय को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने का कोई लाभ नहीं मिला था.

कांग्रेस बुरी तरह से चुनाव हार गई थी. भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में दिग्विजय सिंह शासनकाल की याद दिलाकर वोटरों को बांधे रखने की लगातार कोशिश करती रहती है. विधानसभा एवं लोकसभा के पिछले तीन चुनावों में बीजेपी को इस मुद्दे पर सफलता भी मिलती रही है. लगभग दो साल पहले मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के लिए बनाए गए कानून एवं नियमों को असंवैधानिक मानते हुए निरस्त कर दिया था.

 

इस निर्णय के खिलाफ सरकार के सुप्रीम कोर्ट में चले जाने से गैर आरक्षित वर्ग के सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारी नाराज हैं. सपाक्स संगठन इसी नाराजगी से उपजा है. संगठन के सक्रिय होने के बाद राज्य के सरकारी क्षेत्र में आरक्षित और अनारक्षित वर्ग के बीच स्पष्ट विभाजन देखा जा रहा है. वर्ग संघर्ष की पहली झलक दो अप्रैल के भारत बंद के दौरान देखने को मिली थी. इस बंद के दौरान राज्य के कई हिस्सों में व्यापक तौर पर हिंसा भी हुई थी. इस आंदोलन में आरक्षित वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था.

आरक्षण के खिलाफ संख्या बल दिखाने के लिहाज से ही पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक वर्ग को भी शामिल कर सपाक्स का गठन किया गया था. पिछड़ा वर्ग को हर स्तर पर चौदह प्रतिशत आरक्षण मिलता है. सिर्फ पदोन्नति में नहीं है. पिछड़ा वर्ग के अधिकारी एवं कर्मचारी आरक्षण समाप्त करने की मांग का समर्थन नहीं करते हैं. अन्य पिछड़ा वर्ग अधिकारियों एवं कर्मचारियों का अपाक्स नाम से अलग संगठन भी है. संगठन के अध्यक्ष भुवनेश पटेल कहते हैं कि हम सपाक्स के साथ नहीं हैं. पटेल ने कहा कि सपाक्स के लोग भ्रमित दिखाई दे रहे हैं. वे क्या करना चाहते हैं, उन्हें पता ही नहीं हैं. सपाक्स के अध्यक्ष डॉ. केदार सिंह तोमर ने कहा कि कोई भी राजनीतिक दल आरक्षित वर्ग को नहीं छोड़ना चाहता है. सपाक्स ने चुनाव लड़ने का फैसला आरक्षण व्यवस्था के खिलाफ लिया है.

डॉ.तोमर पशु चिकित्सा विभाग में हैं. उन्होंने बताया कि आरक्षण के खिलाफ राजनीतिक लड़ाई सपाक्स समाज संगठन द्वारा लड़ी जाएगी. सपाक्स की उत्पत्ति पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था के खिलाफ हुई थी, इस कारण इस संगठन को जमीनी स्तर पर सामान्य वर्ग का कोई खास समर्थन नहीं मिला. लिहाजा सपाक्स समाज नाम से अलग संगठन बनाया गया. इस संगठन में रिटायर्ड आईएएएस अधिकारी हीरालाल त्रिवेदी संरक्षक हैं. अन्य पदाधिकारी भी रिटायर्ड अधिकारी हैं. सपाक्स और सपाक्स समाज एक ही सिक्के दो पहलू हैं.

सपाक्स समाज के संरक्षक हीरालाल त्रिवेदी कहते हैं कि उन सभी राजनीतिक दलों से बात कर चनाव की रणनीति तय की जाएगी, जो आरक्षण व्यवस्था के विरोध में हैं. सवर्ण समाज पार्टी भी इनमें एक है. यह दावा भी किया जा रहा है कि रघु ठाकुर सपाक्स समाज का समर्थन कर रहे हैं. रघु ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष हैं. रघु ठाकुर अथवा उनके दल की ओर से इस बारे में कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है. राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने दमोह में आरोप लगाया है कि बीजेपी ब्राहणों और दलितों को आपस में लड़ाने का काम कर रही है.

राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. इनमें 148 सामान्य सीटें हैं. अनुसूचित वर्ग के लिए 35 और जनजाति वर्ग के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. दोनों ही प्रमुख राजनीति दल भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा आरक्षित सीटों को अपनी झोली में ड़ालने की रणनीति बना रहे हैं. कांग्रेस बसपा और सपा से भी तालमेल की संभावनाएं तलाश रही है. पिछड़े वोटों को जाति के आधार साधने के लिए पार्टी में महत्वपूर्ण पद दिए जा रहे हैं.

आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी और कांग्रेस अभी साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं. इससे सामान्य वर्ग नाराज है. इस नाराजगी का लाभ सपाक्स राजनीति में उतरकर उठाना चाहता है. सपाक्स से जुड़े हुए अधिकांश लोग सरकारी नौकरी में हैं. सरकारी नौकरी में रहकर राजनीति नहीं की जा सकती. इस कारण ऐसे दलों से उम्मीदवार उतारने की संभावनाएं भी तलाश की जा रही हैं, जो पहले से ही चुनाव आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दल है. इसमें सवर्ण समाज पार्टी भी एक है. सपाक्स के श्री त्रिवेदी ने कहा कि संगठन को राजनीतिक दल के तौर पर पंजीयन कराने का फैसला सभी संभावनाएं टटोलने के बाद ही किया जाएगा.

राज्य में कांग्रेस एवं भारतीय जनता पार्टी ब्राह्मण वोटों को लेकर सबसे ज्यादा चिंतित है. पिछले पांच सालों में बीजेपी का ब्राह्मण नेतृत्व कमजोर हुआ है. कांग्रेस में भी दमदार ब्राहण नेताओं की कमी है. बीजेपी की आतंरिक राजनीति के चलते कई ब्राह्मण नेता नेपथ्य में चले गए हैं. सरकारी नौकरी में सामान्य वर्ग के अधिकारियों एवं कर्मचारियों की संख्या पांच लाख से भी अधिक है. अधिकारी एवं कर्मचारी भी सरकार से अनेक मुद्दों पर नाराज चल रहे हैं. प्रदेश कांगे्रस अध्यक्ष कमलनाथ कर्मचारी संगठनों से उनकी मांगों को लेकर बैठक भी कर चुके हैं.

कांग्रेस इस कोशिश में लगी हुई है कि किसी भी सूरत में सरकार विरोधी वोटों का विभाजन न हो. सपाक्स के उम्मीदवार यदि सामान्य सीटों पर चुनाव लड़ते हैं तो वोटों का विभाजन भी होगा. सत्ता विरोधी वोटों के विभाजन की स्थिति में लाभ बीजेपी को होना तय माना जा रहा है. मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के मीडिया प्रभारी माणक अग्रवाल कहते हैं कि सपाक्स की लड़ाई बीजेपी से है. कांग्रेस चुनाव के वक्त ही सपाक्स के उम्मीदवार देखने के बाद कोई रणनीति बनाएगी.

जाको राखे साईं मार सके न कोय

 


 खुदकुशी के इरादे से पटरियों के बीच बच्चे सहित लेटी महिला के ऊपर से पुष्पक एक्सप्रेस तेजी से निकल गई, लेकिन उन्हें कुछ नहीं हुआ


मध्य प्रदेश में एक 25 वर्षीय महिला ने अपने नवजात बच्चे के साथ पटरियों के बीच में लेटकर खुदखुशी करने का प्रयास किया. बुरहानपुर जिले के नेपानगर रेलवे स्टेशन पर महिला अपने बच्चे के साथ ट्रैक के बीच में लेट गई. इसके बाद एक एक्सप्रेस ट्रेन तेजी से दोनों के ऊपर से गुजर गई, लेकिन उन्हें कुछ नहीं हुआ.

यह घटना शनिवार सुबह को इटारसी-भुसावल रेल खंड के नेपानगर रेलवे स्टेशन पर हुई. जब खुदकुशी के इरादे से पटरियों के बीच बच्चे सहित लेटी महिला के ऊपर से पुष्पक एक्सप्रेस तेजी से निकल गई. खंडवा आरपीएफ थाने के प्रभारी निरीक्षक एस के गुर्जर ने बताया कि महिला की पहचान इलाहाबाद की तब्बसुम के तौर पर हुई है. वह अपने दो माह के बच्चे के साथ कुशीनगर एक्सप्रेस से इलाहबाद से मुंबई जा रही थी. लेकिन नेपानगर में ही ट्रेन से उतर गई और स्टेशन पर बच्चे के साथ पटरियों के बीच लेट गई.

उन्होंने कहा कि इससे पहले की वहां मौजूद लोग कुछ कर पाते पटरियों पर पुष्पक एक्सप्रेस आ गई और महिला और उसके बच्चे के ऊपर से तेज गति से निकल गई. लेकिन चमत्कारिक रूप से महिला और उसका बच्चा दोनों सुरक्षित रहे और उन्हें कुछ नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि इसके बाद वहां मौजूद लोगों ने दोनों को अस्पताल पहुंचाया.

नानी के घर मुंबई जा रही थी तब्बसुम

गुर्जर ने बताया कि महिला से पूछताछ करने पर उसने बताया कि वह अपनी नानी के घर मुम्बई जा रही थी. लेकिन व्यक्तिगत परेशानियों के चलते बीच रास्ते में ही खुदकुशी करने की कोशिश की. उसने बताया कि उसकी सौतेली मां ने शादीशुदा व्यक्ति साजिद से उसकी शादी करवा दी. उसका पति उसे मारता और प्रताड़ित करता था. उसका कहना था कि पति ने गर्भवती होने के बाद उसे तलाक भी दे दिया. महिला ने बताया कि बच्चे के जन्म से पहले भी वह एक दफा खुदकुशी का प्रयास कर चुकी थी.

धार्मिक सौहार्द और आस्था का एक बेहतरीन उदाहरण

 

बिहार के बेगूसराय जिले में एक मुस्लिम परिवार ने अपने दो बच्चों का गंगाघाट पर हिन्दू रीति-रिवाजों से मुंडन संस्कार कराया. यूपी के धधरा के रहने वाले इस परिवार में कोई संतान नहीं थी. परिवार ने मां गंगा से संतान की मन्नत मांगी थी.

मां गंगा के आशीर्वाद से पति-पत्नी को दो बेटों का जन्म हुआ. इसके बाद इस परिवार ने सिमरिया के गंगा घाट पर अपने दोनों बेटों का विधि-विधान से मुंडन संस्कार कराया. मुस्लिम परिवार का यह कार्य सिमरिया समेत पूरे बेगूसराय में चर्चा का विषय बना हुआ है.

धार्मिक सौहार्द और आस्था का एक बेहतरीन उदाहरण पेश करने वाले इस मुस्लिम परिवार की खुशी देखने लायक थी. इनकी आंखों में न तो किसी धर्म का खौफ था न ही कोई दिखावटीपन नजर आया. जागीर खान की पत्नी ने बताया कि वे बेहद खुश हैं क्योंकि उनकी मन की मुराद पूरी हो गई. मुंडन संस्कार कराकर वह बहुत अच्छा महसूस कर रही हैं. स्थानीय लोगों ने इसे धार्मिक सौहार्द का बेहतर उदाहरण कहा है.

पुरुलिया हत्याकांड में एक गिरफ्तार

 


मालूम हो कि त्रिलोचन का शव 30 मई को जिले के बलरामपुर क्षेत्र में एक पेड़ से लटका मिला था


पश्चिम बंगाल सीआईडी ने त्रिलोचन महतो की हत्या में कथित संलिप्तता के लिए पुरुलिया जिले से एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया. बीजेपी ने दावा किया है कि त्रिलोचन उसका सदस्य है. एक वरिष्ठ सीआईडी अधिकारी ने बताया कि लंबी पूछताछ के बाद 45 वर्षीय पंजाबी महतो को रविवार सुबह गिरफ्तार कर लिया गया.

त्रिलोचन का शव 30 मई को जिले के बलरामपुर क्षेत्र में एक पेड़ से लटका मिला था. अधिकारी ने बताया कि पंजाबी के आवास पर छिपाए गए दो मोबाइल फोन और दो सिमकार्ड उन्होंने बरामद किए है. उन्होंने कहा, ‘फोन और सिमकार्ड की फोरेंसिक जांच कराई जाएगी. पंजाबी को सोमवार को अदालत में ले जाया जाएगा और अदालत से उसकी पुलिस हिरासत मांगी जाएगी.’

मालूम हो कि 20 वर्षीय पीड़ित के शव के पास बंगाली में हाथ से लिखा एक नोट बरामद किया गया था. इसमें कहा गया था कि उसे राज्य में हाल में हुए पंचायत चुनाव के दौरान ‘बीजेपी के लिए काम करने के लिए दंड़ित किया गया है.’

त्रिलोचन के पिता हरीराम महतो ने बलरामपुर पुलिस थाने में एक मामला दर्ज कराया था. उन्होंने पिछले सप्ताह इस घटना की सीबीआई जांच कराए जाने के आग्रह को लेकर कलकत्ता हाई कोर्ट में एक रिट याचिका भी दायर की थी.

त्रिलोचन की मौत के तीन दिन बाद 35 वर्षीय दुलाल कुमार जिले में एक पावर ट्रांसमिशन टॉवर से लटका मिला था. बीजेपी ने दावा किया था कि कुमार भी उसका ही कार्यकर्ता है. दोनों पीड़ितों को न्याय देने की मांग को लेकर बीजेपी ने राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन और रैलियां की थी. इन दो घटनाओं के बाद राज्य सरकार ने जिला एसपी जॉय बिश्वास का तबादला कर दिया था.

सुशासन बाबु का जंगल राज


इस जवाब में कोई दम नहीं रह गया है कि आरजेडी के शासन काल को जंगल राज कहा जाता था. उस दौर की तुलना में अपराध कम ही हो रहे हैं. यहां तो तुलना नीतीश के पहले, दूसरे और तीसरे शासन के बीच हो रही है


अपराध के आंकड़े भले ही नीतीश कुमार को सकून दे रहे हों, पर राज्य के आम लोग इन दिनों सुशासन को पहले की तरह भरोसे के साथ नहीं देख पा रहे हैं. यह बेवजह नहीं है. कभी-कभी ऐसी घटनाएं हो जा रही हैं, जिसे देख-सुनकर सिहरन पैदा हो जाती है. कुछ दिन पहले गया में एक व्यक्ति की मौजूदगी में उसकी पत्नी और बेटी के साथ रेप की खबर आई. शुक्रवार को बेतिया में एक शिक्षक के सामने उनके इकलौते बेटे की हत्या कर दी गई.

ये ऐसी घटनाएं हैं, जिनके बारे में सोचकर ही धारणा बनती जा रही है कि अपराधियों के मन से पुलिस और कानून का डर जा रहा है. अगर ऐसा है तो यह नीतीश कुमार के लिए बड़ी चुनौती है. उन्हें याद होगा कि 2005 में राज्य की जनता ने एनडीए के पक्ष में मतदान किया था, उस वक्त कानून का राज और सुशासन बड़ा चुनावी मुद्दा था. विकास का नंबर दूसरे पायदान पर था. शाम ढलने के बाद लोग घर से बाहर निकलना मुनासिब नहीं समझते थे. जिनके पास थोड़ी पूंजी थी और राज्य के बाहर कहीं कारोबार का विकल्प था, उन सबों का पलायन हो रहा था.

ताजा हाल यह है कि मुख्य विपक्षी दल आरजेडी अपराध को राजनीतिक मुद्दा बना चुका है. इस जवाब में कोई दम नहीं रह गया है कि आरजेडी के शासन काल को जंगल राज कहा जाता था. उस दौर की तुलना में अपराध कम ही हो रहे हैं. यहां तो तुलना नीतीश के पहले, दूसरे और तीसरे शासन के बीच हो रही है.

 

24 नवंबर 2005 को सत्ता में आने के तुरंत बाद नीतीश ने अपराधियों की नकेल कसनी शुरू कर दी. असर अगले दिन से दिखने लगा. वह डर जो आम लोगों के दिल में था, भागकर अपराधियों के दिमाग में पैठ गया. अपहरण के धन से अमीर बने कई सरगनाओं ने दक्षिण के राज्यों का रुख किया. उसी दौर में राजधानी सहित राज्य के दूसरे बड़े शहरों में रात की गतिविधियां शुरू हो गईं. होटल, रेस्तरां और आइसक्रीम पार्लर देर रात तक खुलने लगे. बदमाशों के डर से बंद सिनेमा के नाइट शो भी चालू हो गए. दूसरे राज्यों में भाग गए कारोबारी लौटने लगे.

अपराध कम हुए तो विकास भी शुरू हुआ. सड़क और बिजली की हालत सुधरने लगी. लगा कि सबकुछ ढर्रे पर आ गया. सरकारी अफसर भी चैन की सांस लेने लगे थे क्योंकि बदले हुए निजाम में राजनीतिक नेता-कार्यकर्ता के भेष में कोई आदमी इन अफसरों को डरा-धमका नहीं पा रहा था. उसके पहले के शासन में तो आइएएस अफसर तक की उनके चैंबर में ही पिटाई हो चुकी थी.

क्यों बढ़ रहा है अपराधियों का मनोबल

राहत की बात यह है कि कानून-व्यवस्था की हालत में गिरावट के बावजूद चीजें हाथ से बाहर नहीं निकल गई हैं. पड़ताल हो रही है कि नीतीश के पहले कार्यकाल में वह कौन सा कदम था, जिसने अपराध के ग्राफ को कम किया. इसका जवाब भी सरकारी रिकार्ड में दर्ज है. नीतीश की टीम में उन दिनों अभयानंद जैसे काबिल आईपीएस अफसर को तरजीह मिली हुई थी. सीएम खुद पुलिस अफसरों के साथ बैठकर अपराध नियंत्रण की योजना बनाते थे. उसी बैठक में स्पीडी ट्रायल की योजना बनी थी. सरकार की सहमति पर इसे लागू किया गया. पुराने मामलों को खंगाल कर निकाला गया. स्पीडी ट्रायल की रफ्तार देखिए-2005-10 के बीच 52343 अपराधियों को सजा दी गई. इनमें पूर्व सांसद और विधायक भी थे. 109 को सजा ए मौत दी गई. करीब 20 फीसदी अपराधियों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई.

स्पीडी ट्रायल ने अपराधियों के मन में यह खौफ पैदा कर दिया कि अगर अपराध करेंगे तो बच नहीं पाएंगे. परिणाम सामने था. 2010 के विधानसभा चुनाव में एनडीए 243 में से 206 सीट पर काबिज हो गया. यह लालू प्रसाद की 1995 के चुनाव की ऐतिहासिक कामयाबी पर भारी पड़ा, जब एकीकृत बिहार की 324 सदस्यीय विधानसभा में 167 सीटों पर लालू को सफलता मिली थी.

भूल गए स्पीडी ट्रायल

2010 की जबरदस्त चुनावी कामयाबी ने नीतीश का आत्मविश्वास बढ़ाया. लेकिन, धीरे-धीरे अपराध नियंत्रण का दावा जमीन से अधिक जुबानी रह गया. उनके दूसरे कार्यकाल में, जिसमें कुछ महीनों के लिए जीतनराम मांझी सीएम बन गए थे, स्पीडी ट्रायल की रफ्तार बेहद धीमी हो गई. 2010-15 के बीच इसमें 60 फीसदी से अधिक की गिरावट आ गई.

यह समझने वाली बात है कि विकास की अपेक्षाकृत ठीकठाक गति के बावजूद नीतीश की चुनावी सफलताएं धीमी क्यों पड़ने लगीं. 2014 के लोकसभा चुनाव में बमुश्किल दो सीटों पर उनके उम्मीदवार की जीत हुई. 2015 का विधानसभा चुनाव, जिसे नीतीश कुमार के लोग अपनी सबसे बड़ी जीत समझते हैं, उसका विश्लेषण भी उनके हक में नहीं जा रहा है. 2010 में 115 सीट जीतने वाले नीतीश चुनाव मैदान में जाने से पहले ही 14 सीट गंवा चुके थे. यानी उन्होंने तालमेल के तहत अपनी जीती हुई ये सीटें दूसरे दलों के लिए छोड़ दी. 101 सीटों पर उनके उम्मीदवार खड़े हुए. 71 पर जीत हुई. इनमें से भी एक जोकीहाट की सीट उपचुनाव में आरजेडी के पास चली गई. पांच साल में वो 115 से 70 विधायकों की संख्या पर आ गए. यह कैसी उपलब्धि हुई.

अपराध बनेगा चुनावी मुद्दा

आरजेडी के कथित जंगलराज को कोसने और उसके नाम पर वोट लेने का टोटका शायद अब नहीं चल पाएगा. वे बच्चे जो 2005 में पांच-छह साल के रहे होंगे, वो नीतीश कुमार के राजकाज में ही जवान हुए. उन्हें आरजेडी के जंगलराज के बारे में अधिक जानकारी नहीं है. इनके मन में अगर अपराध को लेकर कोई अवधारणा बनती है तो यह नीतीश की चुनावी सेहत के लिए ठीक नहीं होगी.

बेशक नीतीश की यह छवि कभी नहीं बन पाई कि उन्होंने अपराधियों को संरक्षण दिया या उन्हें अपनी मंडली में बिठाकर महिमामंडित किया. लेकिन, सकल परिणाम के तौर पर ऐसी छवि का चुनाव के दिनों में बहुत मतलब नहीं रह जाता है. खासकर उस हालत में जबकि उनके सुधार के अधिक फैसले रोजगार सृजन पर नकारात्मक असर डाल रहे हैं और बेरोजगारों को अपराध करने के लिए मजबूर कर रहे हैं.

शराबबंदी बहुत अच्छी चीज है. लेकिन, इसने लाख से अधिक लोगों को रातोंरात बेरोजगार कर दिया. वायदे के बावजूद उनके लिए रोजगार के वैकल्पिक उपाय नहीं किए गए. इसी तरह बालू कारोबार में माफियागिरी को रोकने के लिए उठाए गए कदमों का बुरा असर मजदूरों और छोटे कारोबारियों पर पड़ा है. ये

आंकड़े बस दिल को थोड़ी राहत दे सकते हैं कि 2005 में जब जंगलराज चरम पर था, 3428 लोगों की हत्या हुई थी और 2017 में सिर्फ 2803 लोग ही मारे गए. इस साल के मार्च तक पुलिस रिकॉर्ड के हत्या वाले कालम में 667 का आंकड़ा दर्ज है. आखिर कभी तो नीतीश अपने अफसरों को कहें कि शराब पकड़ने के अलावा भी कई काम हैं.

Sadguru replaces Ramdev as BSF wants no business

Jaggi Vasudev – Ramdev

 

 


Over the last two years, the yoga quest of India’s armed forces appears to have changed direction. Apart from the BSF, the Isha Foundation is now imparting yoga training to CRPF, CISF, Coast Guard and the Army.


TWO YEARS ago, a BSF contingent trained by Baba Ramdev was adjudged the best group by the Ministry of Ayush at an event on June 21 to mark the second International Yoga Day. Soon, the force replaced its traditional PT routine with yoga and sent its troops to Ramdev’s Patanjali Yogpeeth in Haridwar for training. By early 2017, Ramdev opened a Patanjali store at the BSF Headquarters in the National Capital.

A year later, the BSF team topped the event once again. But this time, the trainers were from Sadhguru Jaggi Vasudev’s Isha Foundation. Last Thursday, too, the BSF teamed up with Isha Foundation for the latest edition of yoga day.

Over the last two years, the yoga quest of India’s armed forces appears to have changed direction.

Apart from the BSF, the Isha Foundation is now imparting yoga training to CRPF, CISF, Coast Guard and the Army. So much so, Jaggi Vasudev personally trained and practiced yoga with 250 Armymen at the Siachen Base camp this International Yoga Day.When contacted by The Indian Express, BSF DG K K Sharma said Baba Ramdev had trained 4,000 personnel since 2016 but the force does not utilise his services now.

“We have no association with Baba Ramdev anymore. He was the first to contact us and used to hold sessions with our field units earlier. We got our first batch trained by him at Patanjali Yogpeeth. We have no exclusive contract with anyone, that I will only do with Baba Ramdev. Later, many other people contacted us saying they offer ‘such and such’ services. Sadhguru’s system is also a type of yoga. There is a capsule course of Sadhguru, related to pranayam and meditation, that our officers avail of,” Sharma said.

Baba Ramdev and Patanjali Yogpeeth did not respond to a questionnaire sent to the organisation’s official spokesperson. The organisation did not respond to calls and text messages from The Indian Express seeking comment.

According to Isha Foundation, its association with the BSF began in 2017. “During a conversation with BSF senior officials in June 2017, Sadhguru offered to create a special training module for the security forces, which would empower and equip soldiers to better handle the strain of serving in some of the most challenging situations. The sessions for BSF personnel began after this,” an Isha Foundation spokesperson said.

According to the Foundation, various forces, including the BSF, are offered processes such as Upa-Yoga and Angamardana, which will complement and support their physical training, and Surya Kriya and Hatha Yoga, which will create balance and stability on the physical, mental, emotional and energy level.

“Three ‘Train the Trainer’ sessions for about 300 BSF personnel have been conducted. One Inner Engineering programme has been conducted for senior BSF personnel. BSF also nominates some of its personnel for ongoing Inner Engineering programmes,” the spokesperson said.

All of it, says the Foundation, is for free. BSF DG Sharma, however, said the force pays “a nominal fee, which is much lower than what others are charged” to meet expenses related to stay of trainees and trainers and other facilities.

While the Isha Foundation claims to have “specially designed modules for soldiers”, Sharma says his forces “consider all very good”.

Apart from the Isha Foundation, the BSF is also training with Swami Vivekananda Yoga Anusandhana Samsthana (S-Vyasa) in Bengaluru. They offer disease-centric yoga practices, Sharma said.

“It is not possible for any one single entity to service such a huge force. Both Ramdev and Sadhguru have different styles. One focuses on purely physical aspect and pranayam of yoga. Jaggi has a different clientele. He speaks English. He focuses on Rajyoga, managing yourself mentally. What he calls inner engineering,” said Sharma.

Jaggi Vasudev, incidentally, has been increasingly supportive of the ruling establishment over the last two years, including on contentious issues such as demonetisation and the national anthem.

मेजर की पत्नी की हत्या के आरोप में मेजर गिरफ्तार

हत्यारोपी मेजर हांडा, मृतिका शैलजा द्विवेदी (फाइल फोटो)

 

पश्चिमी दिल्ली में थल सेना के मेजर की पत्नी शैलजा की हत्या की गुत्थी 24 घंटे में सुलझा ली गई। पुलिस ने आरोपी मेजर निखिल हांडा को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के दौराला से गिरफ्तार किया कर लिया। मेजर निखिल हांडा से पूछताछ में प्रेम प्रसंग के मामले की पुष्टि हुई है।

पुलिस ने बताया कि मेजर निखिल हांडा मेजर अमित द्विवेदी की पत्नी शैलजा से प्रेम करने लगा था। उससे शादी करना चाहता था, लेकिन शैलजा ने जब शादी से इनकार कर दिया तो गुस्से में निखिल ने चाकू से गला रेतकर शैलजा की हत्या कर दी।

मृतका के मोबाइल फोन की जांच की गई तो अाखिरी कॉल डिटेल निखिल हांडा की मिली। इसके आधार पर ही पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया है। पुलिस जांच में मेजर की पत्नी के दूसरे मेजर से प्रेम प्रसंग होने की बात सामने आ रही थी।

पुलिस से पूछताछ में मेजर अमित द्विवेदी ने पत्नी का एक दूसरे मेजर से संबंध होने का शक जताया था। रविवार सुबह को पूछताछ में अमित ने बताया कि दिल्ली आने से पहले दीमापुर में उनकी पोस्टिंग थी, यहां पर उनकी पत्नी की नजदीकियां एक दूसरे मेजर से बढ़ गई थीं।

दिल्ली आने के बाद भी उनकी पत्नी की उस मेजर से बातचीत होती थी। पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि सेना के मेजर निखिल हांडा को दिल्ली पुलिस की टीम ने गिरफ्तार किया है। गिरफ्तारी के बाद उन्होंने मेरठ में अपने समकक्ष अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी दी।

गौरतलब है कि कल रात दिल्ली छावनी के बरार स्कवायर के पास महिला का शव पाया गया था। उसका गला रेता हुआ था। शुरूआत में पुलिस को सूचना दी गई कि महिला की दुर्घटना में मौत हो गई है। लेकिन बाद में जब उन लोगों ने शव का मुआयना किया तो पता चला कि उसका गला रेता हुआ था।

आरोपी ने कथित रूप से उसके चेहरे को एक कार से कुचल दिया था, ताकि यह घटना एक दुर्घटना प्रतीत हो सके। महिला को उसके पति के आधिकारिक वाहन से एक चालक ने कल आर्मी बेस हास्पिटल में छोड़ा था।

बाद में, जब वह उसे ले जाने के लिए आया तब उसने उसे वहां नहीं पाया और यह पता चला कि वह अपनी फिजियोथेरेपी सत्र में भी शामिल नहीं हुई थी।

मेजर निखिल और मेजर अमित द्विवेदी के परिवार के बीच पिछले तीन साल से अच्छे संबंध थे। दीमापुर में पोस्टिंग के दौरान दोनों मेजर्स के बीच पारिवारिक संबंध बढ़े, लेकिन इस बीच मेजर निखिल का झुकाव शैलजा की ओर बढ़ता ही चला गया।

पुलिस ने बताया कि मृतका शैलजा के मोबाइल की डिटेल्स जब खंगाली गईं तो पता चला कि मेजर निखिल ने शैलजा को ढेर सारे कॉल किए थे। ज्यादा कॉल किए जाने की वजह से पुलिस को मेजर निखिल पर पहला शक हुआ।

पुलिस ने जब मेजर निखिल से कॉन्टैक्ट करने की कोशिश की तो पुलिस को समझ आया कि वह भागने की कोशिश कर रहा है, जिससे पुलिस का मेजर निखिल पर शक और बढ़ गया।

INDO-US strategic clinchs even more tighter

 

 


  • The UPA had stonewalled attempts by the US to ink the three so-called “foundational military agreements” during its 10-year tenure on the ground that it would “compromise the strategic autonomy” of India
  • The NDA govt inked the first one on reciprocal logistics support – Logistics Exchange Memorandum of Agreement with India-specific safeguards in 2016

The strategic clinch with the US is set to get even tighter, with India signalling its readiness to ink two more bilateral military pacts, procure helicopters worth $3 billion and participate in a joint tri-Service amphibious exercise for the first time.
Top government sources said “substantial progress” had been made towards finalising the Communications, Compatibility and Security Arrangement (COMCASA) and the Basic Exchange and Cooperation Agreement for Geo-Spatial Cooperation (BECA) between the two countries.

The previous UPA regime had stonewalled all attempts by the US to ink the three so-called “foundational military agreements” during its 10-year tenure on the ground that it would “compromise the strategic autonomy” of India. But the NDA government went ahead and inked the first one on reciprocal logistics support – Logistics Exchange Memorandum of Agreement (LEMOA) – with India-specific safeguards in 2016.

Now, the stage is being set for the other two, COMCASA and BECA, which the US contends will allow India more access to advanced military technologies and platforms with encrypted communications like Predator-B and MQ-9 Reaper drones, as was earlier reported by TOI.

“The broad contours of COMCASA have been finalised… only some text-based negotiations are left. The BECA draft is also under discussion. We have insisted on India-specific assurances, much like what was done in LEMOA, and a status on par with the US’s closest allies,” said a source.

This comes ahead of the first India-US ‘two-plus-two’ dialogue between foreign minister Sushma Swaraj and defence minister Nirmala Sitharaman with their American counterparts, Mike Pompeo and Jim Mattis, in Washington on July 6.

Sources said the two countries had also decided to hold their first-ever mega tri-Service amphibious exercise to supplement the flurry of war games they already hold every year from the top-notch naval Malabar (with Japan as the third participant) to the counter-terror Vajra Prahar and Yudh Abhyas between their armies.

This will be only the second time that India will deploy assets and manpower from its Army, Navy and IAF together for an exercise with a foreign country, after the Indra war games with Russia in Vladivostok last year.

Ensured “14% girls in every programme” IIT JEE got 14 girls in top 500

IIT-Pune

 

A mere fourteen girls have made the cut to the top 500 ranks of the IIT-JEE Advanced exam, underscoring the gender divide in technical education at the elite IITs. The number of females rises to just 46 even when the list is expanded to the top 1,000 scorers (there were 68 girls on that list last year).

However, under the HRD ministry’s gender diversity plan, at least 8% more seats (800 in all) will be added to IITs this year to accommodate more girls, thus enhancing female representation in popular streams like computer science and electrical engineering. The seven older IITs will have 3% girls in computer science with the female-only seats.

IIT – Kanpur

Data from IIT-Kanpur shows 3,000-odd girls have been shortlisted by the Joint Admission Board from the top 24,500 ranks. Among the top 5,000 students, there are 410 girls, and in the top 10,000 ranks of the common rank list, there are 935 of them. Excluding the girls-only quota, the 23 IITs have 11,279 seats; the number of girls in the top 12,000 are about 1,202.

JEE chairman pointed out that mandatory reservation and addition of seats for girls was to ensure “14% girls in every programme”.

According to the IITs, female candidates are eligible for a seat from the female-only pool as well as the gender-neutral pool of a program. A female candidate will compete for a seat in the gender-neutral pool only if she fails to get a seat from the female-only pool.

IIT-Bihar

“But if you see the number of female candidates in the top ranks, they are very few and most will opt for the female-only pool to get into a popular course and a better institute,” said a faculty member from IIT Bombay.

Under business rules set by the IIT for seat allocation, the 800-odd seats for females will also follow reservation norms. For example, consider an OBC-NCL female candidate with a general rank. She will be first considered for a seat from the female-only pool of general seats followed by the gender-neutral pool of general seats for that program. If she does not make it, she will be eligible under the OBC category.

Several attempts have been made in the past to ensure a larger share of girls at the IITs. Even the admission form’s cost was reduced on the C N R Rao committee’s recommendations. But that did not boost the numbers.

Next year, according to the decision of the Joint Admission Board, more seats would be added to ensure that girls constitute 17% of total students. By 2020, the ministry aims to increase percentage of girl students at IITs to 20.

यात्रिगन कृपया ध्यान दें, “मेट्रो” बहादुरगढ़ पंहुच रही है.

 

मनोहर सरकार बहादुरगढ़ के लोगों को आज एक बड़ा तोहफा देने जा रही है. 24 जून यानी रविवार की सुबह मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर मुंडका बहादुरगढ़ रेलवे लाइन का शुभारंभ करने आ रहे हैं. यानी रविवार की सुबह मुंडका से बहादुरगढ़ के सिटी पार्क मेट्रो स्टेशन तक पहली बार मेट्रो ट्रेन चलने जा रही है.

बहादुरगढ़ से मुंडका तक मेट्रो से जुड़ा होने के बाद रोजाना करीब डेढ़ लाख लोग इसका फायदा उठा सकेंगे. मेट्रो ग्रीन लाइन पर चलने के बाद एक तरफ जहां लोग महज 20 मिनट में बहादुरगढ़ से मुंडका की दूरी तय कर सकेंगे, वहीं सड़कों पर भी वाहनों का दबाव कम होने के कारण देश की राजधानी दिल्ली में लगने वाले जाम से काफी हद तक बचा जा सकेगा.

बता दें कि मुंडका बहादुरगढ़ मेट्रो लाइन बनाने में करीब एक हजार करोड़ रुपए का खर्च आया है. यह पूरा खर्चा हरियाणा सरकार ने वहन किया है. इस लाइन पर राजधानी दिल्ली की सीमा में चार मेट्रो स्टेशन बनाए गए हैं, वहीं तीन स्टेशन हरियाणा की सीमा में बनाए गए हैं. ग्रीन लाइन मेट्रो का निर्माण प्रदेश की पिछली हुड्डा सरकार के कार्यकाल में शुरू हुआ था और करीब 4 साल मैं यह मेट्रो लाइन पूरी तरह से बन कर तैयार हो गई है.

हालांकि बहादुरगढ़ में मेट्रो का एक यार्ड भी बनाया जाना था, लेकिन कानूनी पेचीदगियों के चलते जमीन अधिग्रहण कैंसिल हो जाने के कारण यह नहीं बन सका है. लेकिन फिलहाल मुंडका मेट्रो यार्ड के सहारे ही यहां मेट्रो सुचारू रूप से चलाई जाएगी. मेट्रो लाइन शुभारंभ समारोह की तैयारियां प्रशासनिक स्तर पर शुरू कर दी गई है.

आज दोपहर को ही सीआरपीएफ के जवान सभी मेट्रो स्टेशनों की सुरक्षा व्यवस्था का जिम्मा संभाल लेंगे. बता दें कि पिछले दिनों डीएमआरसी के उच्च अधिकारियों ने बहादुरगढ़ के नवनिर्मित मेट्रो स्टेशनों पर सुरक्षा का जायजा लिया था और बहादुरगढ़ मुंडका मेट्रो लाइन को सिक्योरिटी क्लीयरेंस दे दिया गया था. उसके बाद से ही मेट्रो लाइन के उद्घाटन का इंतजार बहादुरगढ़ के लोगों को बेसब्री से था. रविवार को बहादुरगढ़ के लोगों का अपने शहर से ही मेट्रो में बैठकर दिल्ली पहुंचने का सपना पूरा हो जाएगा.