महराष्ट्र सरकार की नीतियों से मराठा बंद का असर कम हुआ


मंगलवार को कैबिनेट की मीटिंग रद्द कर सारे मंत्रियों को उनके इलाकों में जाने को कहा गया ताकि पुलिस और प्रशासन को सीधे निर्देश दिए जा सकें


मराठा आंदोलन के दूसरे दिन राज्य में बंद के दौरान हालात लगभग शांतिपूर्ण रहे और दोपहर होते-होते मराठा क्रांति मोर्चा ने अपना बंद वापस भी ले लिया. इस बंद को बेअसर करने के पीछे सरकार की मजबूत प्लानिंग का भी एक बड़ा हाथ माना जा रहा है. भीमा कोरेगांव के दलित आंदोलन की तरह इस बार सरकार लापरवाह नहीं थी, इसलिए आंदोलन की भनक लगते ही खुद सीएम देवेंद्र फणनवीस ने कमान संभाल ली.

सीएम को थी पल-पल की खबर

मंगलवार को कैबिनेट की मीटिंग रद्द कर सारे मंत्रियों को उनके इलाकों में जाने को कहा गया ताकि पुलिस और प्रशासन को सीधे निर्देश दिए जा सकें. सीएम ने खुद लगातार हर बड़े शहर के पुलिस अफसरों से सीधे बात की और डीजीपी दत्ता पडसालीगर को वॉररूम में रहने का निर्देश दिया. ‘रॉ’ के बाद मुंबई के पुलिस कमिश्नर रह चुके पडसालीगर हर घंटे में सीएम को रिपोर्ट दे रहे थे.

धीमा किया इंटरनेट

इस बार इस बात का भी पूरा खयाल रखा गया कि सोशल मीडिया और टीवी पर किसी तरह की अफवाह न फैले. पहले दिन जब औरंगाबाद में माहौल बिगड़ रहा था, तभी इंटरनेट को थोड़ा धीमा कर दिया गया. इसके साथ ही विशेष सायबर सेल के जरिए ग्रुप मेसेजिंग पर भी इस बार ध्यान दिया गया. ‘शहरी नक्सलियों’ पर पुलिस की हालिया कार्रवाई के बाद सीपीएम ने मराठा आरक्षण को समर्थन तो दिया है, लेकिन लेफ्ट के कैडर भी आंदोलन से दूर ही दिखे.

मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने सुबह-सुबह न्यूज़ 18 इंडिया से भी कहा कि आंदोलन शांतिपूर्ण रहे तो ठीक है. हालांकि इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पुलिस को हिंसा या तोड़फोड़ में लिप्त प्रदर्शनकारियों के साथ सख्ती से निपटने का निर्देश दिया है.

पुलिस सैन्य बलों को किया मुस्तैद

हालात को पूरी तरफ काबू में रखने के लिए राज्य में पुलिस बल से साथ-साथ विशेष रिजर्व पुलिस बल और आरएएफ को भी उतारा गया है. रेलवे स्टेशनों पर जीआरपी और आरपीएफ को तैनात कर दिया गया है. इतना ही नहीं राज्यभर में ऐहतियातन 3 हजार से ज्यादा असामाजिक तत्वों को हिरासत में लिया गया है. जब तक हालात न बिगडे़ं तब तक आंदोलनकारियों पर बल प्रयोग करने से मना किया गया. सारे प्रदर्शनों की वीडियोग्राफी भी पुलिस की तरफ से और साथ ही ट्रैफिक पुलिस के मुंबई शहर में लगे करीब 3 हजार कैमरों से नजर रखी जा रही है ताकि तुरंत कार्यवाही हो सके.

राजनीतिक पार्टियों के नेताओं खासतौर पर शरद पवार और अशोक चव्हाण ने बयान तो जारी किए, लेकिन सरकार की तरफ से ही वरिष्ठ मंत्री विनोद तावडे़ ने आरोप लगा दिया कि घर बैठे मराठा नेता लोगों को भड़का रहे हैं. इस पलटवार के कारण तमाम बडे़ मराठा नेता चुप हो गए, यानी राजनीति के साथ-साथ बंदोबस्त का दांव खेलकर मुख्यमंत्री बुधवार को तो मराठा आंदोलन को काबू करने में कामयाब दिखे.

पहले मस्जिद पर होगा फैसला, फिर पूजा के अधिकार की बारी: सर्वोच्च न्यायालय

 

सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी से बुधवार को कहा कि वो अयोध्या के विवादित स्थल पर पूजा करने का अधिकार दिलाने की मांग करने वाली अपनी याचिका का उल्लेख, क्या मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग है, के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद करे.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के मुसलमान समूह की याचिका पर अपना फैसला 20 जुलाई को सुरक्षित रख लिया था. याचिका में समूह ने अनुरोध किया था कि कोर्ट, मस्जिद इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है बताने वाले अपने 1994 के फैसले की बड़ी पीठ से समीक्षा कराए.

चीफ जस्टिस के अलावा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर और जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ की पीठ ने स्वामी से कहा कि वो इस मामले में फैसला आने के बाद उचित तरीके से अपनी याचिका सूचीबद्ध कराते हुए उस पर जल्दी सुनवाई का अनुरोध करें. स्वामी ने कोर्ट से पूजा करने का अपना अधिकार जल्दी दिलाने का अनुरोध किया था.

राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने की योजना पर फिरा पानी


राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने की योजना पर पानी फिर गया है. कांग्रेस कार्यसमिति ने रविवार को ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए प्रस्ताव पास किया था.


राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने की योजना पर पानी फिर गया है. कांग्रेस कार्यसमिति ने रविवार को ही राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए प्रस्ताव पास किया था. राहुल गांधी साफ कह दिया है कि प्रधानमंत्री बनने के लिए सिर्फ वही उम्मीदवार नहीं हैं. बल्कि गठबंधन में से कोई भी प्रधानमंत्री बन सकता है. हालांकि पार्टी के भीतर किसी महिला को इस पद के लिए आगे करने पर विचार किया जा रहा है. जिसमें दलित चेहरे की चर्चा ज्यादा हो रही है. मीरा कुमार कांग्रेस की पंसद हो सकती हैं. लेकिन मायावती और ममता बनर्जी गठबंधन के भीतर से उम्मीदवार हो सकते हैं. जिनके पास राहुल गांधी से ज्यादा प्रशासनिक अनुभव है.

राहुल ने जमीनी हकीकत को समझा

राहुल गांधी को लेकर कई आपत्ति आ रही थी. जिसमें सबसे पहले कांग्रेस के सबसे विश्वस्त सहयोगी आरजेडी की तरफ से आया. आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि राहुल के अलावा भी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार हैं. इस बीच मायावती ने कहा कि वो सम्मानजनक सीट मिलने पर ही गठबंधन करेंगी. पार्टी को पता है कि रीजनल पार्टियां अपने हिसाब से बिसात बिछा रही हैं. कांग्रेस को सबको साथ लेकर चलना मजबूरी है.

हालांकि कांग्रेस के सूत्र कह रहे है कि गठबंधन बनाना महत्वपूर्ण है. प्रधानमंत्री पद इस वक्त कांग्रेस के लिए प्राथमिकता नहीं है. कांग्रेस के लिए प्राथमिकता बीजेपी को हटाना है. इसके लिए एक बडा एलांयस खड़ा करना जरूरी है. कांग्रेस के नेता अब कह रहे हैं कि चुनाव के बाद संख्या बल पर तय होगा कि कौन प्रधानमंत्री बनेगा. हालांकि कांग्रेस को उम्मीद है कि संख्या बल कांग्रेस के पक्ष में रहेगा.

कैसे होगा विपक्षी गठजोड़

कांग्रेस की परंपरा के मुताबिक वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी को गठबंधन करने के लिए अधिकृत कर दिया है. 2019 के चुनाव तक गठबंधन के फैसले राहुल गांधी ही करेंगे. जिसके लिए राहुल गांधी एक कमेटी का गठन करेंगें जो गठबंधन के लिए समान विचारधारा वाली पार्टियों से बात करेगी. लेकिन अंतिम फैसला राहुल गांधी करेंगे.

वर्किंग कमेटी में युवा ब्रिगेड इस बात पर जोर देता रहा कि गठबंधन को कांग्रेस ही लीड करे, यानी राहुल गांधी ही किसी भी तरह गठबंधन के अगुवा बने रहें, सचिन पायलट, रमेश चेन्निथला जैसे नेता यही चाहते हैं. कांग्रेस की महासचिव अंबिका सोनी ने कहा कि ये स्वाभाविक है, राहुल गांधी मुख्य विपक्षी दल के नेता है, हम चाहेंगे कि राहुल गांधी विपक्षी गठबंधन का चेहरा बनें.

2004 जैसे हालात नहीं

साल 2004 में लोकसभा चुनावों के पहले कांग्रेस पार्टी का घोषणा पत्र जारी करते सोनिया गांधी. ( रॉयटर्स इमेज )

राहुल गांधी को विपक्ष का चेहरा बनाना आसान नहीं है. 2004 में जब यूपीए गठबंधन वजूद में आया था तो माहौल दूसरा था. कांग्रेस के तकरीबन 145 से ज्यादा सांसद थे. बीजेपी की तादाद 138 सांसदों की थी इसके अलावा लेफ्ट तीसरी सबसे बड़ी ताकत थी. 13 वीं लोकसभा में यूपीए के घटक दलों की ताकत ज्यादा नहीं थी. कई दलों के सांसदो की संख्या दहाई के आंकड़े से भी कम थी. इसलिए कांग्रेस की अगुवाई छोटे दलों ने स्वीकार कर लिया था अब हालात ऐसे नहीं हैं.

कांग्रेस को इसको समझना पड़ेगा कि अब कांग्रेस के हिसाब से क्षेत्रीय दल गठबंधन करने के लिए तैयार होंगे ये मुश्किल लग रहा है. हालांकि पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदंबरम ने गठबंधन के लिए नया रास्ता निकालने की हिमायत की है. चिंदबरम ने कहा यूपी से लेकर बंगाल तक और तमिलनाडु में पार्टी की हालत नाजुक है. इसलिए गठबंधन ही रास्ता है. यानी तकरीबन 200 सीट पर कांग्रेस की स्थिति खराब है. इस बात का अंदाजा सभी नेताओं को है. पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन का विरोध नहीं किया है.

कांग्रेस मुश्किल दौर में

16 वीं लोकसभा में कांग्रेस अपने न्यूनतम स्तर पर है. कांग्रेस के बाद ममता बनर्जी की पार्टी है. जिसको राहुल गांधी के नाम पर सबसे ज्यादा एतराज है. ममता बनर्जी की मंशा है जो गठबंधन बने उसका कोई अगुवा ना हो यानी पहले से नेता ना तय हो बल्कि चुनाव के बाद ये मसला तय किया जाए. ममता बनर्जी ने कांग्रेस की बैठक से पहले 19 अगस्त को संघीय मोर्चा की रैली का ऐलान कर चुकी है. जिसमें कांग्रेस को भी आमंत्रित करेंगी.

ममता एकला चलो का नारा भी दे चुकी हैं, बंगाल में टीएमसी सभी 42 सीट पर अकेले लड़ने का मन बना रही हैं. हालांकि कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का दावा है कि ममता का ये बयान आखिरी नहीं है. जब बातचीत होगी तो तय हो जाएगा चुनाव से पहले बयानों में तब्दीली हो सकती है. सीपीएम के महासचिव सीताराम येचुरी और शरद पवार किसी भी गठबंधन की संभावना से इनकार कर चुके हैं.

 

 वर्किंग कमेटी को रोडमैप नहीं दे पाए राहुल गांधी

राहुल गांधी की अध्यक्षता में पहली वर्किंग कमेटी की बैठक में पार्टी को रोडमैप नहीं दे पाए. इस विस्तारित बैठक से उम्मीद थी कि ये पार्टी के लिए कोई दिशा तय करेगी. 2019 की तैयारी को लेकर कोई खाका नहीं बनाया गया है. जिससे पार्टी और जनता के बीच कनेक्ट बन सके, कार्यकर्ताओं को उम्मीद थी कि पार्टी ऐसा प्रोग्राम तय करेगी. जिससे बीजेपी को कटघरे में खड़ा किया जा सकता है. हालांकि अविश्वास प्रस्ताव के बाद कांग्रेस के नेताओं का आत्मविश्वास बढ़ा था.

जिस तरह राहुल गांधी की स्पीच के बाद बीजेपी में खलबली थी. उसको वर्किंग कमेटी की बैठक में बढ़ाने का माद्दा नदारद था. संसद का तेवर आगे बढ़ाया जा सकता था. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया पार्टी के नेता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री प्रोजेक्ट करने की कवायद करते रहे, लेकिन राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी कैसे बनेगी, इस बात को लेकर किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई है. ज्यादा जोर गठबंधन पर ही था.

आरएसएस से सीख रहे राहुल गांधी

राहुल गांधी ने संसद में कहा कि हिंदू होने का मतलब सीख गए हैं. यानि सहिष्णु होने का, राहुल गांधी ने तंज के जरिए ही कहा था. लेकिन वर्किंग कमेटी में राहुल गांधी ने गंभीरता से कहा कि जिस तरह बीजेपी/आरएसएस का काम चल रहा है. उससे सीखने की जरूरत है. राहुल गांधी ने कहा कि आदिवासी समाज के भीतर संघ ने काम किया उसकी वजह से ये समाज कांग्रेस से दूर हुआ है.

संघ की शाखा वनवासी कल्याण आश्रम काम कर रहा है. उस तरह ही काम करने की जरूरत है. लेकिन ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के पास इस तरह का संगठन नहीं है. कांग्रेस सेवादल इन सब कामों के लिए बना है. लेकिन निष्क्रिय है. पार्टी की आला लीडरशिप कोई प्रोग्राम फ्रंटल संगठनों को नहीं दे पाया है.

क्या वाकई में मोदी का काउंटडाउन शुरू हो गया है

क्या वाकई में मोदी का काउंटडाउन शुरू हो गया है

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि मोदी सरकार का काउंट डाउन शुरू हो गया है. मनमोहन सिंह ने भी मोदी सरकार पर निशाना साधा है. लेकिन अविश्वास प्रस्ताव में शिव सेना के वॉकआउट के बाद एनडीए को 325 वोट मिले ये कांग्रेस के लिए चिंता का विषय है. प्रधानमंत्री के साथ मजबूत संख्या बल है. जिसको तोड़ने के लिए कांग्रेस को 2004 वाली नीति अपनानी पड़ सकती है.

जनता के मुद्दों पर संघर्ष

कांग्रेस की वर्किंग कमेटी की बैठक में तय हुआ कि किसानों की समस्या से लेकर कानून व्यवस्था के मसले पर आंदोलन किया जाएगा. लेकिन बेहतर होता कि इस बैठक में ये रोड मैप तय कर दिया जाता. जिसमें सभी 239 सदस्यों को पार्टी काम सौंपती. जिसकी समय समय पर समीक्षा भी की जाती. कौन सा मुद्दा कब उठाना है. कितने दिन तक आंदोलन करना है, ये सब तय किया जाता. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया है.

कांग्रेस के एक बड़े नेता ने कहा कि कांग्रेस को तय करना होगा कि किस सामाजिक मुद्दे की वजह से कौन नेता पार्टी में है, या किस मुद्दे के लिए काम कर रहा है. ये तय नहीं होगा तब तक पार्टी की हालत नहीं सुधरेगी. झप्पी का पोस्टर लगाने से काम नहीं चलने वाला है. बल्कि ऐसा कुछ करें कि जनता कांग्रेस को झप्पी देने के लिए बेकरार हो जाए.

नितीश कुमार को बिहार में किसी और को मौका देना चाहिए: कुशवाहा


केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा के बयान पर गरमाई राजनीति


लखनऊ/पटना।

केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री और रालोसपा के राष्ट्रीेय अध्य क्ष उपेंद्र कुशवाहा के नीतीश कुमार को अगले मुख्यमंत्री नहीं मानने की बात पर बिहार की राजनीति गरमा गई है। कांग्रेस ने उपेंद्र कुशवाहा के बयान का स्वागत करते हुए एनडीए में फूट की बात कही। कांग्रेस प्रवक्ता प्रेमचंद मिश्रा ने कहा कि उपेंद्र कुशवाहा के बयान के बाद एनडीए में फूट तय है। आने वाले दिनों में लोजपा से भी ऐसे बयान आएंगे। उपेंद्र कुशवाहा ने जेडीयू के बड़े भाई के दावे को खत्म कर दिया है। आने वाले दिनों में बीजेपी भी नीतीश कुमार से किनारा कर लेगी। गौरतलब है किपत्रकारों से खास बातचीत में उपेंद्र कुशवाहा ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि नीतीश कुमार को सीएम पद पर रहते हुए 15 साल हो गए हैं। अब उन्हें खुद अपने पद से हट जाना चाहिए। रालोसपा नेता ने कहा कि नीतीश जी हमारे भी नेता रहे हैं। बिहार की जनता ने उन्हें लगभग 15 साल का मौका दिया है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि नीतीश कुमार को खुद पद छोड़ देना चाहिए और बिहार में किसी और को मौका देना चाहिए। उन्हें बड़ी राजनीति करनी चाहिए।

कांग्रेस हताश, किसी को भी पीएम उम्मीदवार बनाने को तैयारः अनंत कुमार

 

प्रधानमंत्री पद के लिए मायावती और ममता बनर्जी के नाम पर कांग्रेस की सहमति पर संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का कहना है, ‘ये कांग्रेस की हताशा को दर्शाता है. जिस दिन वर्किंग कमेटी ने राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर चयनित किया था. हमने उसी दिन कहा उनकी उम्मीदवारी  के लिए कोई सहमति नहीं होगी.’

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस की साथी पार्टियों में इस कारण विकट परिस्थिति शुरू हो गई है. जब ऐसी स्थिति पैदा होती है तो निराश होकर कोई भी प्रधानमंत्री बने, कैसे भी बने तो हम उसका समर्थन करेंगे. यही स्थिति कांग्रेस की हो गई है.’

वहीं राफेल डील को लेकर प्रधानमंत्री और रक्षामंत्री के खिलाफ कांग्रेस पार्टी द्वारा विशेषाधिकार हनन लाए जाने के नोटिस पर संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार का कहना है कि विशेषाधिकार हनन का नोटिस संसद के नियमों के हिसाब से होता है.

अगर कांग्रेस विशेषाधिकार हनन लाती है तो उसका कोई स्टैंड नहीं करेगा. प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के खिलाफ जो विशेषाधिकार हनन लाने की बात कर रहे हैं, उसमें कोई दम नहीं है. इससे कांग्रेस के लिए अजीब सी स्थिति उत्पन्न हो जाएगी.

संसद में जब विशेषाधिकार हनन का नोटिस आता है वो संसद की नियमावली के सूझ-बूझ और ज्ञान, विवेक के हिसाब से देते हैं. हर बार इस तरीके से विशेषाधिकार हनन का नोटिस इस्तेमाल करने का प्रावधान नहीं है. लेकिन बिना सूझ-बूझ और बिना विवेक के कांग्रेस जहां कोई विशेषाधिकार का हनन नहीं है, कोई विशेषाधिकार हनन का कोई मुद्दा ही नहीं बनता है, वहां पर नोटिस दे रही है. तो एक और बार खुलासा होगा कि जो संसदीय प्रक्रिया है उसकी कमी कांग्रेस में.

अनिल अंबानी ने राहुल को लिखी चिट्ठी मांगा मिलने का समय

राफेल सौदा मिलने के समय रिलायंस डिफेंस के पास रक्षा क्षेत्र के मैन्युफैक्चरिंग का किसी तरह के अनुभव न होने के राहुल गांधी के आरोप का अनिल अंबानी ने लेटर लिखकर जवाब दिया था. राहुल गांधी को भेजे गए एक पत्र में अनिल अंबानी ने कहा था कि रिलायंस डिफेंस के पास पानी वाले जहाज यानी शिप बनाने का अनुभव था. इस लेटर की कॉपी इंडिया टुडे-आजतक के पास है.

यूपीए सरकार ने जब राफेल सौदा किया था, तब अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस का कोई नामोनिशान नहीं था. इस कंपनी का गठन मार्च 2015 में हुआ और इसके करीब डेढ़ साल बाद सितंबर 2016 में मोदी सरकार ने फ्रांस के साथ राफेल विमान के लिए नया सौदा किया.

गौरतलब है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने दिसंबर, 2017 में मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए कहा था कि सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) को नजरअंदाज कर अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस लिमिटेड के पक्ष में फैसला लिया, जिसे हवाई जहाज बनाने का इससे पहले का कोई अनुभव नहीं है.

नए समझौते के मुताबिक भारत में राफेल विमानों के निर्माण का काम रिलायंस डिफेंस के द्वारा ही किया जाएगा. 28 मार्च, 2015 को अनिल अंबानी के रिलायंस समूह ने रक्षा क्षेत्र में कदम रखते हुए रिलायंस डिफेंस नामक कंपनी का गठन किया गया. इसके बाद 23 सितंबर, 2016 को एनडीए सरकार ने फ्रांस के साथ राफेल विमानों की खरीद का समझौता किया. इसके ढाई महीने बाद ही 16 दिसंबर, 2016 को रिलायंस ने राफेल के साथ मिलकर एक संयुक्त उद्यम रिलायंस राफेल स्थापित किया.

रोचक यह है कि पीएम मोदी ने रिलायंस डिफेंस की भारत में स्थापना के 13 दिन बाद ही फ्रांस के अपने दौरे पर 10 अप्रैल, 2015 को रफाल सौदे की घोषणा की.

इंडिया टुडे-आजतक के पास उस लेटर की कॉपी है, जो अनिल अंबानी ने राहुल गांधी को लिखी है. इस लेटर में उन्होंने तर्क दिया है कि रिलायंस को यह सौदा इसलिए मिला क्योंकि उसके पास डिफेंस शिप बनाने का अनुभव था. यह लेटर 12 दिसंबर, 2017 का है.

इस लेटर में अनिल अंबानी ने लिखा था, ‘मुझे यह जानकर व्यक्तिगत रूप से काफी दुख हुआ है कि कांग्रेस के कुछ नेता मेरे और मेरे समूह के बारे में दुर्भाग्यपूर्ण बयान दे रहे हैं. साथ ही दसॉ के साथ हमारे जेवी के बारे में भी तमाम तरह की टिप्पणियां की गई हैं. कांग्रेस के आपके कई सहयोगियों ने कहा है कि रिलायंस को डिफेंस सेक्टर का कोई अनुभव नहीं है. आपको यह जानकर खुशी होगी कि रिलायंस डिफेंस के पास गुजरात के पिपावाव में निजी क्षेत्र का सबसे बड़ा शिपयार्ड है.’

अनिल अंबानी ने लिखा, ‘राहुल जी, मेरे सम्माननीय पिता स्वर्गीय पद्मविभूषण श्री धीरु भाई अंबानी ने तो औपचारिक शिक्षा भी हासिल नहीं की थी. उन्हें कोई भी अनुभव या विरासत हासिल नहीं था, लेकिन उन्होंने दुनिया का सबसे बड़ा पेट्रोकेमिकल एवं रिफाइनरी कॉम्प्लेक्स स्थापित किया और एक दृष्ट‍ि वाले उद्यमी के रूप में उन्होंने भारत में कई बड़े उद्यम स्थापित किए.’

अनिल अंबानी ने राहुल से मुलाकात का भी अनुरोध किया था. उन्होंने लिखा कि यदि राहुल जल्दी मिलने का समय दें तो उन्हें बड़ी खुशी होगी.

दंगों के दोषी हार्दिक पटेल को मिली 2 साल की सज़ा साथ ही मिली जमानत


गुजरात के बीजेपी विधायक रुशिकेश पटेल के दफ्तर में तोड़फोड़ करने के मामले में पाटीदार आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल को दोषी करार दिया गया


गुजरात के बीजेपी विधायक रुशिकेश पटेल के दफ्तर में तोड़फोड़ करने के मामले में पाटीदार आंदोलन समिति के नेता हार्दिक पटेल को दोषी करार दिया गया है. हार्दिक को दो साल की सजा सुनाई गई है. इसके अलावा उनके दो साथियों को भी इस मामले में विसनगर कोर्ट ने दोषी करार दिया है. मेहसाणा दंगा मामले में हार्दिक पटेल और लालजी पटेल समेत तीन लोगों को दोषी करार दिया गया है.

तीनों दोषियों को दो-दो साल की सजा सुनाई गई है. जब कि मामले से जुड़े 14 अन्य लोगों को बरी कर दिया गया है. आपको बता दें कि पटेल आरक्षण आंदोलन के दौरान हुई हिंसा की पहला घटना 23 जुलाई, 2015 को बीजेपी विधायक ऋषिकेश पटेल के दफ्तर में हुई थी. इस दौरान आगजनी और जमकर तोड़फोड़ की गई थी.

कोर्ट ने तीनों को IPC की धारा 120/बी (साजिश रचने), 435 (आगजनी), 427 (सरकारी सामान को नुकसान पहुंचाना) और IPC की धारा 143, 147, 148 (दंगा फैलाना) के तहत दोषी माना है.

शुरुआती समय में हार्दिक पटेल और लालजी पटेल एक साथ थे. बाद में हार्दिक पटेल पाटीदार आंदोलन अनामत समिति के नेता हो गए और लालजी पटेल ने सरदार पटेल ग्रुप बनाया. पाटीदार आंदोलन की शुरुआत 23 जुलाई साल 2015 में हुई थी.

23 जुलाई 2015 को हुई इस घटना के कुल 17 नामजद दोषियों में से 14 अन्य को अदालत ने बरी कर दिया। अदालत ने तीनों को 50 – 50 हजार रूपये के जुर्माने की भी सजा सुनायी और इस रकम में से दस हजार रूपये शिकायतकर्ता और एक समाचार चैनल के कैमरामैन सुरेश वणोल (जिन पर भी भीड़ ने हमला कर कैमरा तोड़ दिया था)को देने के आदेश दिये। इसके अलावा इस रकम से घटना के दौरान आगजनी में जली कार के मालिक बाबूजी ठाकोर को एक लाख रूपये और 40 हजार रूपये तत्कालीन विधायक श्री पटेल को भी बतौर मुआवजा देने के आदेश दिये। ज्ञातव्य है कि उक्त रैली के दौरान भीड़ ने पटेल के कार्यालय में तोडफ़ोड़ की थी और आगजनी कर एक कार को भी जला दिया था। अदालत ने तीनो को केवल दंगा करने यानी रायटिंग की धारा के तहत ही दोषी ठहराया है, कई अन्य धाराओं में बरी कर दिया है।

डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर डेरा प्रबंधक रंजीत हत्या मामले में आज हुई सुनवाई

डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम पर डेरा प्रबंधक रंजीत हत्या मामले में आज हुई सुनवाई।

पंचकूला स्थित हरियाणा की विशेष सीबीआई अदालत में हुई सुनवाई।

मुख्य आरोपी राम रहीम विडिओ कॉन्फ्रेंसिंग से हुआ सीबीआई कोर्ट में पेश।

वहीं मामले के अन्य आरोपी जसबीर,शब्दिल,इन्द्रसेन,अवतार और कृष्ण प्रत्यक्ष रूप से सीबीआई कोर्ट में हुए पेश।

आज मामले की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष ने 18 गवाहों की लिस्ट दाखिल की।

जिसे सीबीआई कोर्ट ने मंजूर कर दिया।

इस मामले की अगली सुनवाई अब
27 जुलाई को होगी।

वहीं 27 जुलाई को सीबीआई कोर्ट ने गुरमीत राम रहीम पर डेरा प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या व पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या दोनो मामलों के गवाहों की होगी गवाही।

नागपुर निगम चुनाव में भाजपा ने परचम फहराया

नागपुर।

भाजपा ने नागपुर में अपना वर्चस्व कायम रखा है हालांकि नागपुर की पारशिवनी नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर शिवसेना ने कब्जा जमाया है। जबकि वानाडोंगरी नगर परिषद अध्यक्ष पद भाजपा को मिला है। मंगलवार को राज्य चुनाव आयोग ने दोनों नगर निकाय के चुनाव परिणाम घोषित किए। इसके अनुसार पारशिवनी नगर पंचायत की 17 सीटों में से भाजपा को 11 सीटों पर जीत मिली है। शिवसेना ने  4 और कांग्रेस ने 2 सीट पर जीत दर्ज की है। वहीं वानाडोंगरी नगर परिषद की 21 सीटों में से भाजपा 19 सीटों पर विजयी हुई है। राष्ट्रवादी कांग्रेस 1 और निर्दलीय को 1 सीट पर जीत मिली है।

तहसील बनने के बाद वानाडोंगरी नगर परिषद में पहली बार हुए चुनाव में भाजपा को एकतरफा जीत हासिल हुई है। क्षेत्र की जनता ने नगराध्यक्ष के साथ ही 19 नगरसेवक भाजपा के चुनकर दिए। राकांपा, कांग्रेस आघाड़ी की उम्मीदवार को 270 मतों से भाजपा की नगराध्यक्ष उम्मीदवार वर्षा शहाकार ने हराकर जीत हासिल की। वहीं 10 प्रभाग के कुल 21 नगरसेवकों में से 19 नगरसेवक भाजपा, एक राकांपा तथा एक अपक्ष नगरसेवक चुनकर आए। इस जीत को विधायक मेघे ने भाजपा कार्यकर्ता व क्षेत्र की जनता की जीत करार दिया है। उन्होंने विकास तेज गति से करने का भरोसा भी दिया है।

पारशिवनी नगर पंचायत के 17 वार्ड सदस्यों के लिएए 68 उम्मीदवार और नगराध्यक्ष पद के लिए 4 उम्मीदवार मैदान में थे। शिवसेना के पूर्व विधायक आशीष जयस्वाल की रणनीति सफल हुई जिसके चलते कम सीट जीतने के बावजूद नगराध्यक्ष पद पर शिवसेना की प्रतिभा कुंभलकर विजयी हुईं। कुंभलकर को 2 हजार 440 वोट मिले। जबकि उनकी प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस की सुनीता डोमकी को 2 हजार 229 वोट मिले। कुंभलकर 211 वोटों से विजयी रहीं और नगर पंचायत अध्यक्ष पद पर शिवसेना का परचम लहरा गया।

Bir Devinder Singh strongly condemned appointment of new VC

Chandigarh, July 24, 2018:

Former Punjab Deputy Speaker, Bir Devinder Singh strongly condemned presence of the local BJP-RSS workers at the joining of the new Vice-Chancellor Dr Raj Kumar, Panjab University (PU).

With this, the alleged ideological affiliation of the new VC with RSS-BJP has been exposed. “It is quite disturbing to learn that the new VC of Punjab University, Dr Raj Kumar is an RSS man from Banaras Hindu University,” said Bir Devinder in a statement issued here on Tuesday.

He stated that the Panjab University represented the liberal ethos and culture of Punjab in the world of academia. It’s Senate, Syndicate and Vice Chancellors have always guarded the rich heritage and maintained appropriate balance, keeping in mind the region’s aspirations. Therefore, the appointment of all previous VCs was made keeping in view the sensitivity of Punjabis.

“It seems bizarre that the selection committee did not find even one Professor from the Punjab University or any other university of Punjab, worthy of the august post despite having illustrious academic careers. The new VC has no connect with Punjab region,” he added.

Bir Devinder alleged that the search committee set up to find suitable candidate for the post was packed with RSS/BJP appointed/ affiliated persons. It is strange enough that out of about 160 applicants, only 9 were shortlisted and all the shortlisted professors had RSS/BJP connections. “It is another extreme of intellectual dishonesty that neither in search committee, nor among the candidates, a single person belonged to minorities, schedule castes or schedule tribes, he pointed out while terming the  presence of the Chandigarh BJP president Sanjay Tandon and other RSS people “supervising” the joining of the new VC.

The senior leader warned that any attempt to ‘saffronise’ the PU by changing its secular character would be resisted at every level. He also urged the faculty and students of the PU affiliated colleges and the university campus to keep vigil on any activities and new policies brought in by the new VC. “The appointment of the new VC has posed a big question mark on the future of the Panjab University,” he said.