कभी कोई दावा करता है कि चेतन चौहान अपने ग्रुप से अलग उस ग्रुप को सपोर्ट करने लगे हैं, जो मदन लाल के खिलाफ है. कभी भारतीय ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष दावा करते हैं कि बीसीसीआई के कार्यवाहक अध्यक्ष सीके खन्ना ने उनका मोबाइल नंबर ‘क्लोन’ कर लिया है. उस नंबर से मैसेज भेजे जा रहे हैं.
कभी कोई एक ग्रुप कहीं पार्टी का आयोजन करता है, तो दूसरा ग्रुप म्यूजिकल नाइट पर उतर आता है. यह दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ यानी डीडीसीए के इलेक्शन की दास्तां है. यहां मीडिया में बड़ा नाम और चैनल के मालिक रजत शर्मा एक तरफ हैं. सुप्रीम कोर्ट के वकील विकास सिंह दूसरी तरफ और क्रिकेटर मदन लाल तीसरी तरफ. तीन ग्रुप चुनाव मैदान में हैं.
एक को बंसल ग्रुप कहा जाता है. दावे किए जा रहे हैं कि इस ग्रुप को अरुण जेटली का समर्थन हासिल है. हालांकि जेटली खुद डीडीसीए से दूर रहने का फैसला कर चुके हैं. लेकिन उनके वर्षों से मित्र रजत शर्मा इसी ग्रुप से अध्यक्ष पद के दावेदार हैं. एक समय डीडीसीए के कोषाध्यक्ष रहे बत्रा इसी ग्रुप के पक्ष में दूसरे ग्रुप पर आरोप लगा रहे हैं और कानूनी कार्रवाई की धमकी दे रहे हैं.
इस कहानी में सब कुछ है. एक्शन, ड्रामा, सस्पेंस… लेकिन इन सबसे बड़ी बात की भविष्य की बीसीसीआई इसमें है. 27 जून से 30 जून तक होने वाले इलेक्शन में ग्रुप देखकर ही समझा जा सकता है कि भविष्य किस ओर जा रहा है.
अंदाजा लगाइए. उपाध्यक्ष पद पर उम्मीदवार हैं शशि खन्ना, जो डीडीसीए के महारथी कहे जाने वाले सीके खन्ना की पत्नी है. सीके खन्ना वही हैं, जिनके पास प्रॉक्सी के जमाने में हर चुनाव की चाबी होती थी. प्रॉक्सी यानी वोटर्स को खुद को वोट डालने की जरूरत नहीं. उसने अपना वोट डालने का अधिकार किसी और को दे दिया. ये सारे अधिकार सीके खन्ना और उनके समर्थकों के पास होते थे. इस बार प्रॉक्सी नहीं है. इसके बावजूद सीके खन्ना की ताकत को कम आंकना ठीक नहीं है.
ताकत कम न आंकने की वजह परिवार हैं. वोटर्स परिवारों में हैं. चुनाव की घोषणा के वक्त प्रेस कांफ्रेंस करने वाले विकास सिंह ने तब कहा था कि कुछ परिवारों के पांच से आठ वोट हैं. उनका यह कमेंट बताता है कि परिवारवाद से बचना आसान नहीं. जिस परिवार के पांच से आठ वोट हैं, उनमें सीके खन्ना भी शामिल हैं.
दूसरी तरफ स्नेह बंसल हैं. उनके भाई राकेश बंसल उपाध्यक्ष पद के लिए खड़े हैं. बंसल डीडीसीए अध्यक्ष रहे हैं. पूर्व डायरेक्टर बृज मोहन गुप्ता के पुत्र आलोक मित्तल और संयुक्त सचिव रवि जैन के पुत्र अपूर्व जैन डायरेक्टर पद के लिए हैं. महिला डायरेक्टर में भी रिश्तेदारों का दबदबा है.
पूर्व उपाध्यक्ष चेतन चौहान इस समय बता रहे हैं कि डीडीसीए से उनका कोई मतलब नहीं है. वो उत्तर प्रदेश में मंत्री हैं. लेकिन उनके भाई पुष्पेंद्र चौहान संयुक्त सचिव के दावेदार हैं. यह कुछ वैसा ही है, जैसे पंचायत चुनाव में महिला आरक्षण होने के बाद सरपंचों ने अपनी पत्नी के जरिए कमान संभालने का फैसला किया था. या लालू यादव ने अपनी जगह राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया था.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले और लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के बाद तमाम प्रशासक अब अयोग्य हैं. उनकी जगह उनके रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे हैं. हिमाचल में अनुराग ठाकुर के भाई की एंट्री हो गई है. इस तरह पूर्व सचिव निरंजन शाह के बेटे ने भी बीसीसीआई में दस्तक दे दी है. डीडीसीए चुनाव उसी सिलसिले को आगे बढ़ाने का या यूं कहें कि भविष्य की तस्वीर तय करने का काम कर सकता है.
सिर्फ दो ऐसे क्रिकेटर मैदान में हैं, जिन्हें लोग जानते हैं. पहले, मदन लाल, जो सीके खन्ना ग्रुप की तरफ से उम्मीदवार हैं. वही सीके खन्ना, जिन्हें ज्यादातर पूर्व क्रिकेटर डीडीसीए की बरबादी का जिम्मेदार मानते हैं. दूसरे क्रिकेटर सुरिंदर खन्ना हैं. वो उस पोस्ट (डायरेक्टर, क्रिकेट) के लिए हैं, जो सिर्फ पूर्व क्रिकेटरों के लिए है. उसके बावजूद सुरिंदर खन्ना ही अकेला ऐसा नाम हैं, जिन्हें क्रिकेट सर्किल में जाना जाता है.
ऐसे में अगर क्रिकेटर की जीत होती है, तो महज इस वजह से, क्योंकि वो उसी खेमे का हिस्सा हैं, जिसे लेकर वो सालों से आवाज उठाते रहे हैं. मदन लाल को उन्हीं सीके खन्ना की मदद लेनी पड़ी. यही बताता है कि किसी फेडरेशन का हिस्सा बनने के लिए क्रिकेटर को क्या चाहिए. दूसरा, क्रिकेट में करप्शन दूर करने के लिए लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें परिवारवाद का करप्शन दूर नहीं कर पाई है. अब वोटिंग भले ही प्रॉक्सी न हो, लेकिन पदों पर प्रॉक्सी उम्मीदवार हैं. यही डीडीसीए का पैटर्न है. यही बीसीसीआई का पैटर्न होगा.