हर वर्ग को राहत देने वाला है केंद्र सरकार का बजट:बी.के.झा

पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स ने किया बजट के सीधे प्रसारण का आयोजनआयकर विभाग के अधिकारियों ने दूर की उद्योगपतियों बजट संंबंधी शंकाएं

राकेश शाह, चंडीगढ़:

चंडीगढ़ आयकर विभाग के प्रिंसीपल चीफ कमीशनर बी.के.झा ने कहा कि यह एक संतुलित और बेहतर विकास वाला बजट है। जिसमें भविष्य के साथ-साथ वर्तमान की आशाएं भी हैं। सरकार ने राष्ट्र निर्माण प्रक्रिया में शामिल लोगों को राहत देने का प्रयास किया है। झा शुक्रवार को केंद्रीय वित्त मंत्री पीयूष गोयल द्वारा पेश किए गए बजट के बाद स्थानीय पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री में जुटे पंजाब, हरियाणा व चंडीगढ़ के उद्योगपतियों के साथ बजट पर चर्चा कर रहे थे।उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने अपने अंतरिम बजट में समाज के प्रत्येक वर्ग को राहत प्रदान करने का प्रयास किया है। इस बजट को देश के मध्यमवर्गीय एवं नौकरी पेशा लोगों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। उन्होंने कहा कि इस बजट से जहां एमएसएमई क्षेत्र को मजबूती मिलेगी वहीं नई कर प्रणाली को धरातल पर लागू करने के लिए कई तरह की चुनौतियों से निपटना होगा। उन्होंने विषय विशेषज्ञों व उद्योगपतियों से आहवान किया कि वह आयकर देने के मामले में अपनी भूमिका को सुनिश्चित करें।इस अवसर पर बोलते हुए पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री पंजाब चैप्टर के चेयरमैन आर.एस. सचदेवा ने कहा कि बजट में असंगठित क्षेत्र के कामगारों के लिए तीन हजार रूपए मासिक पेंशन, दो हैक्टेयर तक के मालिक किसानों को छह हजार रुपए सालाना आर्थिक भत्ता, आयकर सीमा को बढ़ाकर पांच लाख रुपए करना इस बजट के सकारात्मक पहलू हैं।इस अवसर पर बोलते हुए आयकर विभाग की पूर्व महानिदेशक सुधा शर्मा ने कहा कि जीएसटी पंजीकृत औद्योगिक इकाईयों को ब्याज दरों में छूट प्रदान करके छोटे उद्योगों को बड़ी राहत दी गई है। केंद्र सरकार द्वारा पेश किए गए बजट का स्वागत करते हुए पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष डॉ.अशोक खन्ना ने कहा कि मोदी सरकार ने अंतरिम बजट में प्रत्येक वर्ग को छूने का प्रयास किया है। इस अवसर पर बी.के.झा व आयकर विभाग के अन्य अधिकारियों ने उद्योगपतियों एवं अन्य लोगों की वित्तीय शंकाओं को दूर करते हुए उनके सवालों के जवाब भी दिए। इस अवसर पर आयकर विभाग के प्रशासनिक आयुक्त राम मोहन तिवारी, आयकर विभाग के एक्जंपशन आयुक्त राम मोहन सिंह, आयकर-वन की प्रिंसीपल आयुक्त सुखविंदर खन्ना,आयकर-टू की प्रिंसीपल आयुक्त पूनम के सिद्धू, पंचकूला व शिमला जोन के प्रिंसीपल कमीशनर रामेश्वर सिंह के अलावा पीएचडी चैंबर ऑफ कामर्स की क्षेत्रीय निदेशक मधु पिल्ले समेत कई गणमान्य मौजूद थे।

आरोपी राजीव सक्सेना दुबई से प्रत्यर्पित होगा आज

नई दिल्ली: वीवीआईपी हेलीकाप्टर मामले में आरोपी दुबई के अकाउंटेंट राजीव सक्सेना को यहां कानून का सामना करने के लिए भारत लाया गया है. अधिकारियों ने बुधवार को कहा कि सक्सेना को देर शाम दिल्ली लाया गया. उसे दुबई के अधिकारियों ने बुधवार सुबह पकड़ा था.

सक्सेना को धन शोधन के आरोपों में उनकी भूमिका की जांच कर रहे प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को सौंपे जाने की उम्मीद है. 

जेम्स मिशेल को पिछले साल दुबई से भारत लाया गया था
इस मामले में सह आरोपी और कथित बिचौलिये ब्रिटिश नागरिक क्रिश्चियन जेम्स मिशेल को पिछले साल दिसंबर में दुबई से प्रत्यर्पित करके भारत लाया गया था. वह फिलहाल न्यायिक हिरासत में है.

ईडी ने दुबई में रहने वाले सक्सेना को इस मामले में कई बार तलब किया था और 2017 में चेन्नई हवाई अड्डे से उसकी पत्नी शिवानी सक्सेना को गिरफ्तार किया था. वह जमानत पर रिहा चल रही है.

ईडी का आरोप है कि सक्सेना, उसकी पत्नी और दुबई स्थित उसकी दो फर्मों ने धन शोधन किया. ईडी ने इस मामले में दायर आरोपपत्र में सक्सेना को नामजद किया और उसके खिलाफ गैरजमानती वारंट जारी करवाया था.

बॉबी सिंह व्यापार मण्डल पंचकुला के प्रधान नियुक्त

बॉबी सिंह ने आज हरियाणा व्यापार मण्डल की पंचकूला इकाई के प्रधान पद का कार्यभार सम्भाला। व्यापार मण्डल के अध्यक्ष बजरंग गर्ग ने एक पत्रकार वार्ता में यह घोषणा की और उनका स्वागत किया।
इस अवसर पर पंचकूला चण्डीगढ़ और पिंजौर से बड़ी संख्या में व्यापारी मौजूद रहे।

अंतरिम बजट से ठीक पहले पीयूष गोयल को मिला वित्त मंत्रालय का जिम्मा

पीयूष गोयल को यह जिम्मेदारी अस्थायी तौर पर दी गई है क्योंकि अरुण जेटली अमेरिका गए हैं

नई दिल्ली: अंतरिम बजट पेश करने से नौ दिन पहले रेल मंत्री पीयूष गोयल को बुधवार को वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंप दिया गया. अरुण जेटली अस्वस्थ हैं और इलाज के लिए विदेश में हैं, इस वजह से उनके मंत्रालयों का प्रभार गोयल को दिया गया है. 

राष्ट्रपति भवन की ओर से जारी सूचना में कहा गया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार अस्थायी रूप से गोयल को सौंपा गया है. गोयल के पास पहले से जो मंत्रालय हैं वह उसका कामकाज भी देखते रहेंगे. बीजेपीकी अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार को एक फरवरी को अपने मौजूदा कार्यकाल का अंतिम बजट पेश करना है. 

जेटली को बनाया गया बिना पोर्टफोलियो वाला मंत्री 
इसके अलावा अरुण जेटली को उनके इलाज तक बिना पोर्टफोलियो वाला मंत्री बनाया गया है. स्वस्थ होने के बाद जेटली फिर से वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय की जिम्मेदारी संभालेंगे. 

इससे पहले पिछले साल मई में भी गोयल को दोनों मंत्रालयों का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था. उस समय जेटली का गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ था. गोयल ने 100 दिन तक जेटली की अनुपस्थिति में इन मंत्रालयों का प्रभार संभाला था. जेटली पिछले साल 23 अगस्त को काम पर लौट आए थे और उन्होंने वित्त और कॉरपोरेट मंत्रालयों की जिम्मेदारी फिर संभाल ली थी. 

जेटली का अमेरिका में आपरेशन हुआ, दो सप्ताह आराम की सलाह
केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली का मंगलवार को न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में आपरेशन हुआ। सूत्रों ने यह जानकारी दी। सूत्रों ने बताया कि चिकित्सकों ने जेटली को दो सप्ताह आराम करने की सलाह दी है।

अरुण जेटली 13 जनवरी को अमेरिका गए थे। सूत्रों ने कहा कि इस सप्ताह ही उनकी ‘सॉफ्ट टिश्यू’ कैंसर के लिए जांच की गई थी। इस दौरान भी जेटली सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे। फेसबुक पर पोस्ट लिखने के अलावा उन्होंने मौजूदा मुद्दों पर ट्वीट भी किए। इससे पहले पिछले साल 14 मई को जेटली का एम्स में गुर्दा प्रत्यारोपण हुआ था। उसके बाद से वह विदेश नहीं गए थे। 

जीएसटी घाटा कैसे पूरा करेंगे वित्त मंत्री

इस साल सरकार के सामने बड़ी चुनौती ये है कि सरकार के जीएसटी वसूली के लक्ष्य अधूरे रहे हैं

वित्त मंत्री अरुण जेटली 1 फरवरी 2019 को अंतरिम बजट पेश करेंगे. इस बार के बजट में वित्त मंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती ये होगी कि सरकार मौजूदा वित्त वर्ष (2018-19) में अपने वित्तीय घाटे को नियंत्रित रखने का लक्ष्य हासिल कर ले.

पिछले साल एक फरवरी को बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2018-19 के लिए वित्तीय घाटे का लक्ष्य 6,24,276 करोड़ यानी जीडीपी का 3.3 तक हासिल करने का टारगेट रखा था. वित्तीय घाटा, सरकार की आमदनी और खर्च के बीच का फर्क होता है.

जीएसटी वसूली का लक्ष्य अधूरा

इस साल सरकार के सामने बड़ी चुनौती ये है कि सरकार के जीएसटी वसूली के लक्ष्य अधूरे रहे हैं. ये बड़ी चिंता का विषय है. सरकार को उम्मीद थी कि वो जीएसटी से इस वित्तीय वर्ष में 6,03,900 करोड़ रुपए जुटा लेगी. लेकिन, अप्रैल से लेकर दिसंबर 2018 तक सरकार ने केंद्रीय जीएसटी के तौर पर 3,41,146 करोड़ रुपए ही जुटाए हैं. मतलब ये कि सरकार को अगर जीएसटी वसूली का लक्ष्य हासिल करना है, तो उसे इस वित्तीय वर्ष के बाकी के तीन महीनों में 2,62,754 करोड़ रुपए वसूलने होंगे. यानी सरकार को जीएसटी से हर महीने 87,585 करोड़ रुपए जमा करने होंगे, ताकि गुड्स ऐंड सर्विसेज टैक्स से आमदनी के लक्ष्य को हासिल किया जा सके.

सरकार ने अब तक किसी एक महीने में जो सबसे ज्यादा जीएसटी वसूला है, वो जुलाई 2018 में 57,893 करोड़ रुपए था. इससे साफ है कि वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही में सरकारी जीएसटी से आमदनी का अपना लक्ष्य शायद ही पूरा कर सके. मौजूदा दर के हिसाब से टारगेट और जीएसटी की असल वसूली के बीच करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपए का फासला रह जाने की आशंका है.

सवाल ये है कि आखिर जीएसटी को लेकर सरकार का अनुमान इतना गलत कैसे साबित हुआ है?

इस सवाल का जवाब है जीएसटी नहीं जमा करने वालों की संख्या और तादाद वित्तीय वर्ष 2018-19 में बढ़ी है.

टारगेट के पास पहुंचने के लिए क्या करेंगे वित्त मंत्री?

हाल ही में लोकसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने बताया कि अप्रैल 2018 में 88.2 लाख नियमित टैक्स देनदारों में से 15.44 फीसद ने अपना जीएसटी रिटर्न नहीं दाखिल किया. नवंबर 2018 के आते-आते 98.5 लाख नियमित जीएसटी देने वालों में से 28.8 ने अपना रिटर्न नहीं दाखिल किया था. वहीं, कम्पोजीशन स्कीम के तहत आने वाले टैक्स देनदारों को, जिन्हें हर तीन महीने में अपना रिटर्न दाखिल करना होता है, उन कुल 17.7 लाख कारोबारियों में से 19.3 फीसद ने अपना रिटर्न दाखिल नहीं किया और ये तादाद जून 2018 तक की है. सितंबर 2018 में खत्म हुई तिमाही तक 17.7 लाख कम्पोजीशन स्कीम कारोबारियों में से 25.4 प्रतिशत ने अपना टैक्स रिटर्न नहीं जमा किया था. इन आंकड़ों से साफ है कि वित्तीय वर्ष 2018-2019 में बड़ी तादाद में कारोबारियों ने अपना जीएसटी रिटर्न और टैक्स नहीं जमा किया. इसी वजह से जीएसटी की वसूली उम्मीद से बहुत कम रही है.

इस हालत में बड़ा सवाल ये है कि आखिर वित्त मंत्री अरुण जेटली किस तरह से वित्तीय घाटे का वो लक्ष्य हासिल करेंगे जो उन्होंने फरवरी 2018 में तय किया था. आखिर वो उस टारगेट के इर्द-गिर्द भी पहुंचने के लिए आखिर क्या करेंगे? इसका एक तरीका तो ये हो सकता है कि खाद्य और उर्वरक की सब्सिडी देने में सरकार देर करे. पहले के कई वित्त मंत्री ऐसा कर चुके हैं. सरकार के खाते नकदी पर चलते हैं, अनुमानों पर नहीं. इसका ये मतलब है कि सरकार जब पैसे खर्च करती है, तभी वो व्यय के हिसाब में आता है, न कि सिर्फ अनुमान के आधार पर.

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सब्सिडी का वित्तीय वर्ष में जोड़-तोड़

भारतीय खाद्य निगम की ही मिसाल लीजिए. एफसीआई, किसानों से सीधे न्यूनतम समर्थन मूल्य पर चावल और गेहूं खरीदता है. वो ये खरीदारी एक खास वित्तीय वर्ष में करता है. फिर खाद्य निगम इसी चावल और गेहूं को हर साल बाजार से बहुत कम दरों पर सरकारी राशन की दुकानों के जरिए बेचता है. सरकार को खरीद और फरोख्त के बीच के फर्क की रकम एफसीआई को सब्सिडी के तौर पर देनी होती है. ये सब्सिडी आम जनता के नाम पर दी जाती है. तो, कई बार सरकार किसी खास वित्तीय वर्ष में एफसीआई को भुगतान न करके, इस सब्सिडी को अगले वित्तीय वर्ष में भी दे सकती है.

अब चूंकि मौजूदा वित्तीय वर्ष में सरकार के खाते से रकम खर्च नहीं होती, तो इसकी गिनती सरकार के खर्च में नहीं होती. हालांकि ये अनुमानित खर्च जरूर होता है. सब्सिडी को सरकार को दे देना चाहिए, लेकिन, सरकार ऐसा नहीं करके अपने खर्च के बोझ को अगले वित्तीय वर्ष तक टाल देती है.

इस दौरान भारतीय खाद्य निगम सरकारी बैंकों से कर्ज लेकर अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करता रहता है. इस कर्ज के बदले में खाद्य निगम सरकारी बैंकों को कम अवधि के सरकारी बॉन्ड जारी करता है. सरकारी बैंक इन बॉन्ड को अगले वित्तीय वर्ष में भुना सकते हैं. सरकारी बैंक, एफसीआई को कर्ज इसलिए देते हैं कि ये कर्ज सरकार को दिया हुआ कर्ज माना जाता है, जिसके डूबने की आशंका नहीं होती. भले ही ये ज्यादा कर्ज खाद्य निगम के खाते में दर्ज होता है. लेकिन, हकीकत में ये कर्ज सरकार के खजाने पर होता है, जिसे आखिर में सरकार को भरना पड़ता है. पर, वित्त मंत्री ये कह सकते हैं कि ये हमारे जमा-खर्च में शामिल नहीं है.

भारत के महालेखा निरीक्षक यानी सीएजी ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में जमा-खर्च के इस गुल्ली-डंडे वाले खेल का जिक्र किया था. वित्तीय वर्ष 2016-2017 की मिसाल लीजिए. भारतीय खाद्य निगम को सरकार ने खाद्य सब्सिडी के लिए 78,335 करोड़ रुपए दिए थे. जबकि इससे ज्यादा रकम यानी 81,303 करोड़ रुपए का कर्ज अगले वित्तीय वर्ष तक सरका दिया गया था. मजे की बात ये है कि पिछले साल के कर्ज को आगे बढ़ाने का ये बोझ वित्तीय वर्ष 2011-2012 में केवल 23, 427 करोड़ था. लेकिन, वित्तीय वर्ष 2016-2017 के बीच ये बढ़कर 81,303 करोड़ हो गया. वजह ये कि सरकार उस कहावत पर चल रही थी, जो ग्रामीण क्षेत्र में बहुत लोकप्रिय है, यानी ‘बैसाख के वादे पर’. किस्सा मुख्तसर ये कि सरकार पर कर्ज तो इसी वित्तीय वर्ष का था, मगर, वो अपने हिसाब-किताब में इस कर्ज को अगले साल के खर्च के तौर पर दिखाकर अपना वित्तीय घाटा कम करके पेश कर रही थी.

अब इसका मतलब क्या हुआ?

मतलब ये कि सरकार को पिछले वित्तीय वर्ष में भारतीय खाद्य निगम को 1,59,638 करोड़ रुपए का भुगतान करना चाहिए था. इनमें से 78,335 करोड़ इस साल के बकाया थे, तो बाकी की रकम यानी 81,303 करोड़ पिछले वित्तीय वर्ष के थे. पूरी रकम दे देने पर सरकार के ऊपर एफसीआई का कुछ भी बकाया नहीं रह जाता. लेकिन, सरकार ने कुल बकाया रकम में से खाद्य निगम को आधे से भी कम का भुगतान किया. बाकी के कर्ज को ‘बैसाख के वादे पर’ छोड़ दिया. यानी सरकार ने खाद्य निगम से कहा कि वो बाकी कर्ज बाद में देगी. ऐसा करके सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष का अपना खर्च 81,303 करोड़ रुपए कम कर लिया.

इसी तरह 2016-2017 में सरकार ने उर्वरक कंपनियों को सब्सिडी के तौर पर 70,100 करोड़ रुपए का भुगतान किया था. इन कंपनियों को सब्सिडी के तौर पर दी जाने वाली बाकी की रकम यानी 39,057 करोड़ रुपए अगले वित्तीय वर्ष में देने का वादा सरकार ने किया. इसीलिए, 2016-2017 के वित्तीय वर्ष में सरकार का ‘बैसाख के वादे’ का कर्ज यानी अगले वित्तीय वर्ष के वादे पर लिया गया कर्ज 1,20,360 करोड़ था. अगर ये खर्च सरकार अगले वित्तीय वर्ष तक नहीं टालती, तो असली वित्तीय घाटा घाटा जीडीपी का 4.3 प्रतिशत होता, न कि 3.5 प्रतिशत, जो सरकार ने दिखाया था.

हकीकत और भरम के बीच का ये बड़ा फासला है.

वित्त मंत्री अरुण जेटली को आंकड़ों की ये बाजीगरी 1 फरवरी को अंतरिम बजट पेश करते हुए फिर से दिखानी होगी, ताकि वो वित्तीय घाटे का पिछले साल का बजट पेश करते हुए निर्धारित किया गया लक्ष्य हासिल कर सकें क्योंकि वित्तीय घाटे का लक्ष्य हासिल करने का और कोई जरिया वित्त मंत्री के पास है नहीं. उम्मीद से कम जीएसटी वसूली की भरपाई करने के लिए जेटली के पास इसके सिवा कोई और विकल्प नहीं.

कर्मचारियों की गांव स्तर पर ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ पोर्टल से सम्बन्धित किसानों का डाटा इकट्ठा करने की ड्यूटि लगाई गई

पंचकूला, 15 जनवरी:

अतिरिक्त उपायुक्त, जगदीप ढांडा की अध्यक्षता में जिला सचिवालय के सभागार में बैठक आयोजित की गई, जिसमें कृषि विभाग, कृषि विपणन बोर्ड, पशुपालन, विकास एवं पंचायत तथा उद्यान विभाग, पंचकूला के उन अधिकारियों एवं कर्मचारियों ने भाग लिया जिनकी गांव स्तर पर मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल से सम्बन्धित किसानों का डाटा इकट्ठा करने की ड्यूटि लगाई गई है।

बैठक में उप कृषि निदेशक वजीर सिंह ने बताया कि राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि किसानों की रबी फसलों ( गेंहू, सरसों इत्यादि ) को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद में सहायता के लिए इन फसलों का ब्यौरा मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर अपलोड होगा।

उन्होंने बताया कि कृषि विभाग द्वारा खण्ड स्तर पर किसानों के विवरण भरे हुए फार्म लेने के लिए अपने कर्मचारी सम्बन्धित खण्ड कृषि अधिकारी के कार्यालय में तैनात किए हुए हैं ताकि किसानों का डाटा इकट्ठा करने वाले कर्मचारियों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। इसके अतिरिक्त एक व्हाटसएप्प ग्रुप भी बनाया गया है जिसमें इस कार्य में तैनात सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को शामिल किया गया है। उन्होनें यह भी बताया कि 14 जनवरी तक लगभग 3 हजार फार्म विभिन्न विभागों के कर्मचारियों द्वारा कृषि विभाग के कार्यालयों में जमा करवाए जा चुके हैं।

अतिरिक्त उपायुक्त जगदीप ढांडा ने विभिन्न विभागों के कर्मचारियों द्वारा कृषि विभाग के कार्यालयों में जमा करवाए गए फार्मो का गांव वार अवलोकन किया। उन्होने कहा कि सरकार द्वारा लाई गई इस महत्वपूर्ण योजना को पूरी लग्न एवं निष्ठा के साथ पुरा करना है। उन्होने आदेश दिए कि सभी कर्मचारी उन्हे आवंटित किए गए सभी गांवो के किसानों के विवरण भरे हुए फार्म 19 जनवरी तक कृषि विभाग के खण्ड स्तरीय कार्यालयों में जमा करवाना सुनिश्चित करें। उसके पश्चात इन फार्माे में दिए गए विवरण को राज्य कृषि विपणन बोर्ड के ई-खरीद पोर्टल पर जिला विपणन प्रवर्तन अधिकारी, पंचकूला द्वारा अपलोड करवाया जाना है। अतः फार्म भरने का कार्य 19 जनवरी तक हर हाल में पूरा किया जाना है।

उन्होने निर्देश दिया कि सभी गावों में चैकीदारों द्वारा इस बारे में मुनादी करवाऐं और जो किसान अपनी रबी फसलों को मण्डी में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर सरकार द्वारा निर्धारित एजेंसियों को बेचना चाहते हैं वो गांव स्तर पर लगाए गए कर्मचारियों को सूचना देने में सहयोग दें। इसके अतिरिक्त किसान स्वयं भी अपने आप या काॅमन सर्विस सैन्टर के माध्यम से फसलों की सूचना ई-खरीद पोर्टल पर भर सकते हैं। अगर कोई किसान स्वयं अपनी फसल की सूचना उक्त पोर्टल पर भरता है तो उसको 10 रू0 प्रति एकड़ या अधिकतम 20 रू0 दिया जाएगा। अगर काॅमन सर्विस सैन्टर उक्त सूचना को अपलोड करे तो उसे 10 रू0 प्रति एकड कृषि विपणन बोर्ड द्वारा दिए जाएगें।

The profits of the banks are getting evaporated due to enormous provisions towards bad loans:AIBOC

Date: 14/01/2019
Today on 14h January 2019 a massive demonstration in front of Vijaya Bank , Sector 9, Chandigarh by All India Bank Officers Confederation against the cabinet approval of the proposed merger of Vijaya Bank, Dena Bank into Bank of Baroda, respectable wage settlement based on the Charter of Demands, Unconditional and clear mandate, updation of pension and revision in family pension, scrapping of NPS and against the forced mis selling of third party products. More than 600 officers from different banks participated in the demonstration.

Speaking on the occasion Com. T.S. Saggu state secretary of AIBOC (tricity) unit strongly criticized the government against the cabinet approval for the merger of Bank of Baroda, Vijaya Bank and Dena Bank. He said that such amalgamations, consolidations and mergers are unwarranted at this time when there is a need to provide banking facility to the entire people of this great country. The only major problem confronting the banks as of now is the rising bad loans and its adverse effect on the health of public sector banks. The profits of the banks are getting evaporated due to enormous provisions towards bad loans. The present govt. is taking retrograde measures like merger and amalgamation which will adversely impact the economy and affect the banking clientele and banking services besides harming the interest of the workforce. Banks merger in India will systematically lead to cut in job opportunities as it will lead to closure of many bank branches.

He further told the gathering that the Government/IBA is going very slow with regard to the wage revision of the Bank employees and Officers due from 1st of November 2017. He criticized the attitude of the Government / IBA for their lackluster attitude towards the genuine demands of the Bankers and also rejected the meager offer of 8% by the IBA in their meeting held on 30/11/2018. He further briefed the gathering that the only agenda of the Government is to privatize the public sector banks. The net profits are getting reduced only due to huge provisions for bad loans and not due to any reasons attributable to the employees and officers of the Banks. The government is doing little for recovery of huge NPA’s of the Public sector Banks.

Com. Deepak Sharma, Com. Sanjay Sharma, Com. Vipan Berri, Com. Ashok Goyal, Com. Yogesh, Com. Sachin, Com. Harvinder Singh, Com. Balvinder Singh, Com. Rana, Com. Raj Kumar Arora, Com Pankaj Sharma and others were also present.

डेराबस्सी क्षेत्र के गांव नगला में पंचायती जमीन का विवाद और गहराया

डेराबस्सी के गाँव नगला में कथित पंचायती ज़मीन पर निर्माण का मामला तूल पकड़ता जा रहा है।

डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम से बात करते हुये एसडीओ डेराबस्सी ने बताया की न तो उन्होने किस भी आवासीय कालोनी के प्रोजेक्ट को अनुमति प्रदान की है न ही वह एसा करेंगे।

जिलेटिन फ़ैक्टरि के मालिक राजेन्द्र सिंह रंधवा की मानें तो जिलेटिन फ़ैक्टरि जो की 1987 से कार्यरत है उसके आस पास आवासिय कालोनी नहीं बनाई जा सकती। वहीं डिपार्टमेंट का कहना है की उनकी ओर से किसी भी प्रकार की कोई लिखित अथवा मौखिक अनुमति प्रदान नहीं की है। बिल्डर गर्ग की मानें तो वह वहाँ पर रैन बसेरे की तर्ज़ पर एक अस्थाई निर्माण किया जा रहा है जो सरकारी अनुमति मिलने के पश्चात वहाँ कार्यआरंभ होते ही हटा लिया जाएगा।

जब बिल्डर से इस अल्पकालिक अवधि के लिए किए जा रहे निर्माण की अनुमति के बारे में पूछा गया तो उन्होने बताया की अपनी जगह पर अस्थाई निर्माण करने के लिए उन्हे या किसी को भी अनुमति की आवश्यकता नहीं होती, परंतु अधिकारियों के कहने पर अस्थाई निर्माण का कार्य भी रोक दिया गया

वहीं फ़ैक्ट्री के मालिक रंधवा का कहना ही की निर्माण कार्य रुकवाने बहुत से अधिकारी आते हैं और पत्रकारों को भी ब्योरा लेते देखा गया है, पर वह सब दफ्तर में बैठ कर चले जाते हैं।

यह भी पढ़ें: हकीकत से परे सरकारी दावे

जब अधिकारियों से बात हुई तो उन्होने किसी भी प्रकार के निर्माण संबन्धि अनुमति से इंकार किया, तथाकथित पंचायती ज़मीन की बात पूछने पर उन्होने बताया की लगभग 10 साल पहले यह पंचायती ज़मीन थी परंतु अब इस ज़मीन का मालिकाना हक गर्ग परिवार के पास है।

Banks merger in India will systematically lead to cut in job opportunities as it will lead to closure of many bank branches: AIBOC (tricity)

Today on 10th January 2019 a massive demonstration in front of Regional Office of Bank of Baroda at Bank Square, Sector 17-B, Chandigarh by All India Bank Officers Confederation against the  cabinet approval of the proposed merger of Vijaya Bank,  Dena Bank into Bank of Baroda, respectable wage settlement based on the Charter of Demands, Unconditional and clear mandate, updation of pension and revision in family pension, scrapping of NPS and against the forced mis selling of third party products. More than 600 officers from different banks participated in the demonstration.

Speaking on the occasion Com. T.S. Saggu state secretary of AIBOC (tricity) unit strongly criticized the government against the cabinet approval for the merger of Bank of Baroda, Vijaya Bank and Dena Bank.  He said that such amalgamations, consolidations and mergers are unwarranted at this time when there is a need to provide banking facility to the entire people of this great country. The only major problem confronting the banks as of now is the rising bad loans and its adverse effect on the health of public sector banks. The profits of the banks are getting evaporated due to enormous provisions towards bad loans. The present govt. is taking retrograde measures like merger and amalgamation which will adversely impact the economy and affect the banking clientele and banking services besides harming the interest of the workforce. Banks merger in India will systematically lead to cut in job opportunities as it will lead to closure of many bank branches. 

He further told the gathering that the Government/IBA is going very slow with regard to the wage revision of the Bank employees and Officers due from 1st of November 2017.  He criticized the attitude of the Government/IBA for their lackluster attitude towards the genuine demands of the Bankers and also rejected the meager offer of 8% by the IBA in their meeting held on 30/11/2018. He further briefed the gathering that the only agenda of the Government is to privatize the public sector banks. The net profits are getting reduced only due to huge provisions for bad loans and not due to any reasons attributable to the employees and officers of the Banks.   The government is doing little for recovery of huge NPA’s of the Public sector Banks. 

Com. Deepak Sharma,  Com. Sanjay Sharma, Com. Vipan Berri, Com. Ashok Goyal, Com. Yogesh, Com. Sachin, Com. Harvinder Singh, Com. Balvinder Singh, Com. Rana, Com. Raj Kumar Arora, Com Pankaj Sharma and others were also present.

मत्स्य विभाग ने 65 मीट्रिक टन का लक्ष्य निर्धारित किया

पंचकूला, 9 जनवरी:

मत्स्य विभाग द्वारा 20 सूत्रीय कार्यक्रम के तहत जिला में 65 मिट्रीक टन मछली उत्पादन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था, जिसके तहत गत मास तक विभाग द्वारा शत प्रतिशत लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है।

उपायुक्त श्री मुकुल कुमार ने बताया कि सरकार की ओर से मत्स्य विभाग के माध्यम से अनुसूचित जाति वर्ग के लोगों के लिये मछली पालन में अनेक योजनायें चलाई जा रही है। विभाग द्वारा इन योजनाओं पर अनुदान राशि महुैया करवाई जा रही है। उन्होंने लोगों से अपील करते हुए कहा कि वे नील क्रांति को बढ़ावा देने के लिये मत्स्य विभाग से संपर्क करें तथा चलाई जा रही योजनाओं का लाभ उठाते हुए इस व्यवसाय को अपनाये।