मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीडन के केस का रहस्यमयी स्केंडल

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई के खिलाफ यौन उत्पीडन के केस का रहस्यमयी स्केंडल, जो प्रेस कांफ्रेंस करने पर कांग्रेस और कम्युनिस्टों की आंखों का तारा बन गया था ।

इस घटनाक्रम को समझिए और अपना मतलब निकालिए ।

  1. राहुल गांधी ने कहा – “अब तो सुप्रीमकोर्ट ने कहा है कि चौकीदार चोर है ।”
  2. मिनाक्षी लेखी ने कहा कि यह अदालत की अवमानना है, क्योंकि अदालत ने ऐसा नहीं कहा. वह इस मामले को सुप्रीमकोर्ट ले गई । कोर्ट ने राहुल गांधी को नोटिस जारी कर दिया।
  3. राहुल गांधी ने अमेठी में भरे अपने नामांकन में खुद को एम.फिल पास बताया है । एक निर्दलीय उम्मीदवार ने डीएम के सामने आवेदन दिया कि एम.फिल हैं, एम.ए की डिग्री कहां है। एक अन्य ने कहा कि एम. फिल की डिग्री पर इन का नाम राउल विन्शी लिखा है । एक आपत्ति लन्दन में राहुल गांधी के कम्पनी के डायरेक्टर होने पर उनकी नागरिकता पर उठी। इस तरह चार आपत्तियां लगी । राहुल के वकील ने जवाब के लिए 22 अप्रेल सुबह 11 बजे समय मांगा है । यह मामला अब सुप्रीमकोर्ट तक जाना है ।

इधर अचानक सुप्रीमकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ यौन उत्पीड़ित का मामला आ जाता है ।

इस खबर को चार एजेंसियां एक साथ ब्रेक करती हैं ।
1.स्क्रॉल
2.द वायर
3.केरेवन
4.लीफलेट

मुख्य लाइन की पीटीआई, यूएनआई, एएनआई एजेंसियों
या किसी समाचार पत्र या सैंकड़ो टीवी चेनलों में से कुसी के पास भी यह खबर नहीं थी ।

ये चारों एजेंसियां वही हैं, जिन के लिए जस्टिस गोगोई उस समय लोकतंत्र के सब से बड़े हीरो थे, जब उन्होंने जस्टिस लोया का मामला उठाते हुए तत्कालीन चीफ जस्टिस मिश्र के खिलाफ प्रेसकांफ्रेंस की थी ।

1.द वायर को अमेरिकी नागरिक सिद्धार्थ वरदराजन चलाते हैं और यूपीए राज के समय उन्हें राज्यसभा चैनल से मोटी रकम मिला करती थी । यह इंटरनेट चेनल मोदी विरोध के एक सूत्रीय
कार्यक्रम पर चलता है । स्क्रॉल, केरेवन और लीफलेट भी इसी एक सूत्रीय एजेंडे पर हैं।

  1. लीफलेट को सुप्रीमकोर्ट की वकील इंदिरा जयसिंह और उन के पति आनंद ग्रोवर चलाते हैं। इंदिरा जयसिंह 10 जनपथ की करीबी हैं ।
  2. स्क्रॉल को एक अमेरिकी दम्पति चलाता है । एक अमेरिकी ई – मार्केटिंग कम्पनी का भी पैसा लगा है ।
  3. केरेवन वह ईमेग्जिन है, जो लगातार नरेंद्र मोदी को निशाने पर लिए हुए है, जस्टिस लोया का मामला इसी मैग्जीन ने उठाया था, सुप्रीमकोर्ट ने जस्टिस लोया का मामला खारिज कर दिया था, केरेवन की किरकिरी हुई थी । केरेवन और उपरोक्त तीनों एजेंसियों ने सुप्रीमकोर्ट की आलोचना की थी।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई पर आरोप लगाने वाली महिला इंदिरा जयसिंह के एनजीओ “द लायर्स कोलकटिव” की सदस्य है ।

अब मतलब आप निकालिए ।

लोकतन्त्र के 4थे स्तम्भ के आत्मीयों की निर्मम हत्याएँ पीड़ादायक तो हैं ही साथ ही घोर दुर्भाग्यपूर्ण हैं: सारिका तिवारी

www.demokraticfront.com ग्रुप सरकार के दोगले रवैये और इस घटना की कड़े शब्दों में निन्दा करता है। और इंसाफ के लिए बिहार सरकार से मांग करता है।

कमल कलसी, बोधगया, (बिहार):

अखिल भारतीय पत्रकार समिति संघ के दिनेश पंडित अजय कुमार पांडे, संतोष कुमार ,राजेश कुमार द्विवेदी, शुभम कुमार विश्वनाथ आनंद, अविनाश कुमार, सहित सैकड़ों पत्रकारों ने बैठक कर नालंदा के शेखपुरा से हिंदुस्तान अखबार के ब्यूरो चीफ आशुतोष कुमार आर्य के पुत्र को निर्मम हत्या किए जाने को लेकर शोक सभा का आयोजन किया गया।

उपस्थित पत्रकारों ने 2 मिनट का मौन रखकर उसकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की एवं इस दुख की घड़ी में ईश्वर शक्ति प्रदान करें और साथ में एकजुटता का परिचय देते हुए हत्यारा की गिरफ्तारी करने की अपील जिला प्रशासन पुलिस प्रशासन एवं सरकार से की है l बैठक में पत्रकारों ने निंदा प्रस्ताव पारित करते हुए कहा है कि एक तरफ सरकार पत्रकारों की परिजनों की सुरक्षा करने की बात करती है वहीं दूसरी तरफ लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारों पर एवं पत्रकार के परिजनों पर जिस प्रकार से हत्यारा ओं द्वारा निर्मम हत्या की जा रही है हमला किया जा रहा है जो देश लोकतंत्र के लिए खतरा है ।

ज्ञातव्य शेखपुरा हिंदुस्तान अखबार के ब्यूरो चीफ आशुतोष आर्य के पुत्र को रविवार की शाम जब घर पर नहीं लौटा वह लोगों में घबराहट होने लगी खोजबीन किया गया, बाद में पता चला कि गांव के कुछ दूर पर ही हत्या कर फेका हुआ है। इस प्रकार से लोकतंत्र के चौथे स्तंभ के परिजनों के साथ जिस प्रकार से हत्या हमला किया जा रहा है जो दुर्भाग्यपूर्ण है सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों को कठोर से कठोर कार्रवाई कर दंडित करें। पत्रकारों ने इसका पुरजोर विरोध किया है एवं जल्द से जल्द हत्यारों की गिरफ्तार करने की मांग की है।

पत्रकारों ने कहा है कि परिजनों की हत्या करने से कलम की लेखनी कम नहीं पड़ सकता। पत्रकारों ने चेतावनी देते हुए कहा है कि हत्यारों को 2 दिन के अंदर गिरफ्तारी नहीं किया जाता है को चरणबद्ध आंदोलन पूरे देश में चलाई जाएगी पहले प्रखंड मुख्यालय जिला मुख्यालय में किया जाएगा।

जगन्नाथ पुरी में इन्दिरा गांधी का प्रवेश भी वर्जित था

कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर – ए -जहां हमारा

चुनावी माहौल के चलते कई कई नेयता अपनी जाती, गोत्र, समुदाय इत्यादि ई ढाल पहन कर निकालने लगते हैं उस दौरान कोई भी भारतीय नहीं रहता। अभी कुछ समय पहले फिरोज शाह के पौत्र राहुल गनही ने भी अपना गोत्र दत्तात्रेय बताया था जो कुछ राजनैतिक पंगुओं ने स्वीकार कर लिया था। जिन लोगों ने राहुल गांधी के गोत्र को स्वीकार किया वह सभी भारत के महिमवान मंदिरों के पुजारी हैं यहाँ तक की शायद शंकराचार्य ने भी कहीं कोई आपत्ति जताई हो। राजनैतिक मजबूरी कहें या फिर मलाई खाने की अभिलाषा या फिर तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दलों से राजदंड का भय। इसी कड़ी में जब पूरी के जगन्नाथ मंदिर की बात चली तो सामने आया की सान 1984 में तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमतींदिरा गांधी को मंदिर में प्रवेश ई अनुमति नहीं मिली थी। जान कर बहुत आश्चर्य हुआ की जगन्नाथ पुरी में ऐसा क्या है की आज तक सूप्रीम कोर्ट भी वहाँ समानता के अधिकार को लागू नहीं करवा पाया। शायद आज तक इस संदर्भ में राम जन्मभूमि वाले विरोधी पक्षकार के वकील का संग्यान इस ओर नहीं गया। नहीं तो सनातन धर्म की परम्पराओं पर कब का कुठराघात हो जाता।

पुरीः . भारत के चार धामों में से एक है- ओडिशा के पुरी का जगन्नाथ मंदिर. हर हिंदू जीवन में एक बार जगन्नाथ मंदिर के दर्शन ज़रूर करना चाहता है. इस मंदिर के दर्शन करने के लिए लोग पूरी दुनिया से आते हैं. ये मंदिर समुद्र के तट पर मौजूद है. कहते हैं कि समुद्र की लहरों की आवाज़ें इस मंदिर के अंदर शांत हो जाती हैं.

इस मंदिर की वास्तुकला और इंजीनियरिंग की प्रशंसा दुनिया भर में की जाती है. ये मंदिर भारत की धरोहर है लेकिन इस मंदिर में प्रवेश के लिए किसी व्यक्ति का हिंदू होना अनिवार्य माना जाता है. वर्ष 1984 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी इस मंदिर में प्रवेश नहीं मिल सका था.

जगन्नाथ मंदिर के सेवायत और इतिहासकारों का मानना है कि इस मंदिर में सिर्फ सनातनी हिंदू ही प्रवेश कर सकते है. गैर हिंदुओं के लिए यहां प्रवेश निषेध है.

मंदिर में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर कब लगी रोक
इतिहासकार पंडित सूर्यनारायण रथशर्मा ने पत्रकारों से बातचीत में कहा कि इंदिरा गांधी को 1984 में जगन्नाथ मंदिर में दर्शन इसलिए नहीं करने दिया गया था क्योंकि इंदिरा ने फ़िरोज़ जहांगीर गांधी से शादी की थी, जो कि एक पारसी थे. रथशर्मा ने बताया कि शादी के बाद लड़की का गोत्र पति के गोत्र में बदल जाता है. पारसी लोगों का कोई गोत्र नहीं होता है. इसलिए इंदिरा गांधी हिंदू नहीं रहीं थी. यही नहीं पंडित सूर्यनारायण ने यह भी बताया कि हज़ारों वर्ष पहले जगन्नाथ मंदिर पर कई बार आक्रामण हुआ और ये सभी हमले एक धर्म विशेष के शासकों ने किए, जिस वजह से अपने धर्म को सुरक्षित रखने के लिए जगन्नाथ मंदिर में गैर हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाई गई.

राहुल और प्रियंका गांधी को भी नहीं देंगे प्रवेश
जगन्नाथ मंदिर के वरिष्ठ सेवायत रजत प्रतिहारी का कहना है कि वो राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को भी मंदिर में प्रवेश नहीं देंगे क्योंकि वो उन्हें हिंदू नहीं मानते हैं. जगन्नाथ मंदिर के सेवायतों और जगन्नाथ चैतन्य संसद से जुड़े लोगों ने बताया कि राहुल गांधी का गोत्र फ़िरोज़ गांधी से माना जाएगा ना कि नेहरू से. रजत प्रतिहारी ने कहा कि राहुल गांधी भले अपने आप को जनेऊधारी दत्तात्रेय गोत्र का कौल ब्राह्मण बताएं लेकिन सच्चाई ये है कि वो फ़िरोज़ जहांगीर गांधी के पौत्र हैं और फ़िरोज़ जहांगीर गांधी हिंदू नहीं थे.

एक अन्य वरिष्ठ सेवायत मुक्तिनाथ प्रतिहारी ने कहा कि अगर राहुल प्रियंका को दर्शन करने ही हैं तो वो साल में एक बार निकलने वाले जगन्नाथ यात्रा में मंदिर के बाहर शामिल हो सकते हैं लेकिन मेन मंदिर में प्रवेश नहीं करने दिया जाएगा. 

केवल इन धर्मों के लोगों को है प्रवेश की अनुमति
ओडिशा, जगन्नाथ पुरी के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है. विशेष तौर पर भारत का हर हिंदू ये चाहता है कि जीवन में कम से कम एक बार उसे भगवान जगन्नाथ के दर्शन का सौभाग्य जरूर मिले. लेकिन इस मंदिर में प्रवेश की इजाज़त सिर्फ और सिर्फ सनातन हिंदुओं को हैं. मंदिर प्रशासन, सिर्फ हिंदू, सिख, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को ही भगवान जगन्नाथ के मंदिर में प्रवेश की इजाज़त देता है. इसके अलावा दूसरे धर्म के लोगों के मंदिर में प्रवेश पर सदियों पुराना प्रतिबंध लगा हुआ है.

भारत का सबसे शक्तिशाली व्यक्ति, भारत का प्रधानमंत्री भी अगर हिंदू नहीं है तो वो इस मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकता है. वर्ष 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश करना चाहती थी लेकिन उनको इजाज़त नहीं मिली. जगन्नाथ मंदिर के पुजारियों और सेवायतों के मुताबिक इंदिरा गांधी हिंदू नहीं बल्कि पारसी हैं इसलिए उन्हें मंदिर में प्रवेश की इजाज़त नहीं दी गई. 

इंदिरा को गांधी सरनेम कैसे मिला
आपको याद होगा कि इसी वर्ष जनवरी के महीने में Zee News ने उत्तर प्रदेश के प्रयागराज से एक ऐतिहासिक Ground Report की थी. Zee News ने पहली बार पूरे देश को प्रयागराज के एक पारसी कब्रिस्तान में मौजूद फिरोज जहांगीर गांधी के कब्र की तस्वीरें दिखाई थीं. हमने ये रिपोर्ट इसलिए की थी क्योंकि इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, को गांधी Surname पंडित जवाहर लाल नेहरू से नहीं बल्कि फिरोज़ गांधी से मिला. लेकिन इसके बाद भी फिरोज़ गांधी को कांग्रेस पार्टी की तरफ से वो सम्मान नहीं दिया गया जो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को मिला था और आज राहुल और प्रियंका गांधी को मिल रहा है. 

प्रयागराज में गांधी परिवार के पारसी कनेक्शन की दूसरी कड़ी प्रयागराज से एक हजार किलोमीटर दूर जगन्नाथ पुरी से जुड़ी है. अब गांधी परिवार का कोई भी सदस्य, जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की हिम्मत नहीं जुटा पाता है. कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी नरम हिंदुत्व की राजनीति को ऊर्जा देने के लिए केदारनाथ के दर्शन किए और कैलाश मानसरोवर की यात्रा की. हर चुनाव में वो मंदिरों के दौरे करते हैं लेकिन उन्होंने कभी जगन्नाथ मंदिर में दर्शन की योजना नहीं बनाई. जगन्नाथ मंदिर के सेवायतों का कहना है कि वो इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को पारसी मानते हैं. इसलिए उनको मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जा सकता है. 

मंदिर के सेवायतों का ये मानना है कि जगन्नाथ मंदिर को लूटने और मूर्तियों को अ-पवित्र करने के लिए हुए हमलों की वजह से मंदिर में गैर हिंदुओं को प्रवेश दिए जाने की इजाजत नहीं है. मंदिर से जुड़े इतिहास का अध्ययन करने वालों का दावा है कि हमलों की वजह से 144 वर्षों तक भगवान जगन्नाथ को मंदिर से दूर रहना पड़ा. इस मंदिर के संघर्ष की कहानी भारत के महान पूर्वजों की त्याग तपस्या और बलिदान की भी कहानी है. 

जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी हमलावरों ने लूटा 
जगन्नाथ मंदिर के गेट पर ही एक शिलापट्ट में 5 भाषाओं में लिखा हुआ है कि यहां सिर्फ हिंदुओं को ही प्रवेश की इजाज़त है. इसकी वजह समझने के लिए हमने मंदिर प्रशासन से जुड़े लोगों से बात की. मंदिर के सेवायतों की तरफ से हमें ये बताया गया कि जगन्नाथ मंदिर को 20 बार विदेशी हमलावरों के द्वारा लूटा गया. खास तौर पर मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने जगन्नाथ मंदिर की मूर्तियों को नष्ट करने के लिए ओडिशा पर बार-बार हमले किया. लेकिन ये हमलावर जगन्नाथ मंदिर की तीन प्रमुख मूर्तियों, भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियों को नष्ट नहीं कर सके, क्योंकि मंदिर के पुजारियों ने बार-बार मूर्तियों को छुपा दिया. एक बार मूर्तियों को गुप्त रूप से ओडिशा राज्य के बाहर हैदराबाद में भी छुपाया गया था. 

जगन्नाथ मंदिर को भी हमला कर 17 से ज्यादा बाद नष्ट करने की कोशिश की गई
हमलावरों की वजह से भगवान को अपना मंदिर छोड़ना पड़े, इस बात पर आज के भारत में कोई विश्वास नहीं करेगा. आज भारत में एक संविधान है और सभी को अपनी-अपनी पूजा और उपासना का अधिकार प्राप्त है. लेकिन पिछले एक हजार वर्षों में मुस्लिम बादशाहों और सुल्तानों के राज में हिंदुओं के हजारों मंदिरों को तोड़ा गया. अयोध्या में राम जन्म भूमि, काशी विश्वनाथ और मथुरा में कृष्ण जन्म भूमि का विवाद भी इसी इतिहास से जुड़ा है. इन हमलावरों ने भारत के पश्चिमी समुद्र तट पर मौजूद सोमनाथ के मंदिर को 17 बार तोड़ा था. सोमनाथ के संघर्ष का इतिहास ज्यादातर लोगों को पता है लेकिन जगन्नाथ मंदिर को भी हमला कर 17 से ज्यादा बाद नष्ट करने की कोशिश की गई, इस इतिहास की जानकारी बहुत ही कम लोगों को हैं. 

ओडिशा सरकार की आधिकारिक वेबसाइट पर मंदिर पर हुए हमलों और मूर्तियों को नष्ट करने की कोशिश का पूरा इतिहास दिया गया है. वेबसाइट में मौजूद एक लेख में बताया गया है कि मंदिर और मूर्तियों को नष्ट करने के लिए 17 बार हमला किया गया.

पहला हमला वर्ष 1340 में बंगाल के सुल्तान इलियास शाह ने किया 
जगन्नाथ मंदिर को नष्ट करने के लिए पहला हमला वर्ष 1340 में बंगाल के सुल्तान इलियास शाह ने किया था, उस वक्त ओडिशा, उत्कल प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध था. उत्कल साम्राज्य के नरेश नरसिंह देव तृतीय ने सुल्तान इलियास शाह से युद्ध किया. बंगाल के सुल्तान इलियास शाह के सैनिकों ने मंदिर परिसर में बहुत खून बहाया और निर्दोष लोगों को मारा.  लेकिन राजा नरसिंह देव, जगन्नाथ की मूर्तियों को बचाने में सफल रहे, क्योंकि उनके आदेश पर मूर्तियों को छुपा दिया गया था. 

दूसरा हमला
वर्ष 1360 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने जगन्नाथ मंदिर पर दूसरा हमला किया. 

तीसरा हमला
मंदिर पर तीसरा हमला वर्ष 1509 में बंगाल के सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के कमांडर इस्माइल गाजी ने किया. उस वक्त ओडिशा पर सूर्यवंशी प्रताप रुद्रदेव का राज था. हमले की खबर मिलते ही पुजारियों ने मूर्तियों को मंदिर से दूर, बंगाल की खाड़ी में मौजूद चिल्का लेक नामक द्वीप में छुपा दिया था. प्रताप रुद्रदेव ने बंगाल के सुल्तान की सेनाओं को हुगली में हरा दिया और भागने पर मजबूर कर दिया. 

चौथा हमला
वर्ष 1568 में जगन्नाथ मंदिर पर सबसे बड़ा हमला किया गया. ये हमला काला पहाड़ नाम के एक अफगान हमलावर ने किया था. हमले से पहली ही एक बार फिर मूर्तियों को चिल्का लेक नामक द्वीप में छुपा दिया गया था. लेकिन फिर भी हमलावरों ने मंदिर की कुछ मूर्तियों को जलाकर नष्ट कर दिया था. इस हमले में जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला को काफी नुकसान पहुंचा. ये साल ओडिशा के इतिहास में निर्णायक रहा. इस साल के युद्ध के बाद ओडिशा सीधे इस्लामिक शासन के तहत आ गया. 

पांचवा हमला
इसके बाद वर्ष 1592 में जगन्नाथ मंदिर पर पांचवा हमला हुआ. ये हमला ओडिशा के सुल्तान ईशा के बेटे उस्मान और कुथू खान के बेटे सुलेमान ने किया. लोगों को बेरहमी से मारा गया, मूर्तियों को अपवित्र किया गया और मंदिर की संपदा को लूट लिया गया. 

छठा हमला
वर्ष 1601 में बंगाल के नवाब इस्लाम खान के कमांडर मिर्जा खुर्रम ने जगन्नाथ पर छठवां हमला किया. मंदिर के पुजारियों ने मूर्तियों को भार्गवी नदी के रास्ते नाव के द्वारा पुरी के पास एक गांव कपिलेश्वर में छुपा दिया. मूर्तियों को बचाने के लिए उसे दूसरी जगहों पर भी शिफ्ट किया गया. 

सातवां हमला
जगन्नाथ मंदिर पर सातवां हमला ओडिशा के सूबेदार हाशिम खान ने किया लेकिन हमले से पहले मूर्तियों को खुर्दा के गोपाल मंदिर में छुपा दिया गया. ये जगह मंदिर से करीब 50 किलोमीटर दूर है. इस हमले में भी मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा. वर्ष 1608 में जगन्नाथ मंदिर में दोबारा मूर्तियों को वापस लाया गया. 

आठवां हमला
मंदिर पर आठवां हमला हाशिम खान की सेना में काम करने वाले एक हिंदू जागिरदार ने किया. उस वक्त मंदिर में मूर्तियां मौजूद नहीं थी. मंदिर का धन लूट लिया गया और उसे एक किले में बदल दिया गया. 

नौंवा हमला
मंदिर पर नौवां हमला वर्ष 1611 में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल राजा टोडरमल के बेटे राजा कल्याण मल ने किया था. इस बार भी पुजारियों ने मूर्तियों को बंगाल की खाड़ी में मौजूद एक द्वीप में छुपा दिया था. मंदिर पर

दसवां हमला
10वां हमला भी कल्याण मल ने किया था, इस हमले में मंदिर को बुरी तरह लूटा गया था. 

11वां हमला 
मंदिर पर 11वां हमला वर्ष 1617 में दिल्ली के बादशाह जहांगीर के सेनापति मुकर्रम खान ने किया. उस वक्त मंदिर की मूर्तियों को गोबापदार नामक जगह पर छुपा दिया गया था

12वां हमला
मंदिर पर 12वां हमला वर्ष 1621 में ओडिशा के मुगल गवर्नर मिर्जा अहमद बेग ने किया. मुगल बादशाह शाहजहां ने एक बार ओडिशा का दौरा किया था तब भी पुजारियों ने मूर्तियों को छुपा दिया था.

13वां हमला
वर्ष 1641 में मंदिर पर 13वां हमला किया गया. ये हमला ओडिशा के मुगल गवर्नर मिर्जा मक्की ने किया.

14वां हमला
मंदिर पर 14वां हमला भी मिर्जा मक्की ने ही किया था.

15वां हमला
मंदिर पर 15वां हमला अमीर फतेह खान ने किया. उसने मंदिर के रत्नभंडार में मौजूद हीरे, मोती और सोने को लूट लिया. 

16वां हमला
मंदिर पर 16वां हमला मुगलत बादशाह औरंगजेब के आदेश पर वर्ष 1692 में हुआ. औरंगजेब ने मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त करने का आदेश दिया था, तब ओडिशा का नवाब इकराम खान था, जो मुगलों के अधीन था. इकराम खान ने जगन्नाथ मंदिर पर हमला कर भगवान का सोने के मुकुट लूट लिया. उस वक्त जगन्नाथ मंदिर की मुर्तियों को श्रीमंदिर नामक एक जगह के बिमला मंदिर में छुपाया गया था. 

17वां हमला
मंदिर पर 17वां और आखिरी हमला, वर्ष 1699 में मुहम्मद तकी खान ने किया था. तकी खान, वर्ष 1727 से 1734 के बीच ओडिशा का नायब सूबेदार था. इस बार भी मूर्तियों को छुपाया गया और लगातार दूसरी जगहों पर शिफ्ट किया गया. कुछ समय के लिए मूर्तियों को हैदराबाद में भी रखा गया. 

दिल्ली में मुगल साम्राज्य के कमजोर होने और मराठों की ताकत बढ़ने के बाद जगन्नाथ मंदिर पर आया संकट टला और धीरे धीरे जगन्नाथ मंदिर का वैभव वापस लौटा. जगन्नाथ मंदिर के मूर्तियों के बार बार बच जाने की वजह से हमलावर कभी अपने मंसूबों में कामयाब नहीं हो पाए. पुरी के स्थानीय लोग लगातार इस मंदिर को बचाने के लिए संघर्ष करते रहे. ओडिशा के लोग मंदिर के सुरक्षित रहने को भगवान जगन्नाथ का एक चमत्कार मानते हैं.

Does Your Love Really Misses You

Sarika Tiwari

What is the actual reality? Is your crush/partner really thinking and missing you? Or Is it just a waste of your feelings and emotions thinking about them? Practically, How to know if someone misses you?

I know it has been many days since you both met and spent time together.

Although your heart says that he/she is missing you deeply, your mind comes up with a number of doubts and fears.

I know how it feels when you have intense feelings for someone. But, more than your feelings, it’s your partner’s feelings which are more important.

So is he/she missing you.. amidst hundred of daily thoughts like career.. life.. office.. college etc. In order to know the truth, first of all, you need to keep one important thing in mind..

Observing and Understanding Psychological Behaviour Patterns:

A is a boy who has a girlfriend who texts him daily that she misses him. While she sends these messages daily, she ignores A in many situations. On the other hand, there is another girl who has a deep crush on A. Although she never even talked to him, she gets mad even if she doesn’t see him for a day.

So, if one doesn’t observe behavioral patterns properly, they may simply conclude that the first woman misses A more than the second one. But in reality, it is completely the opposite. Thus, observation is always the key to understanding a person’s true feelings. Don’t believe the words, Don’t believe your friends, Just believe your observation.

This observation boils down to one crucial thing.. i.e one’s psychological behavioral patterns.

Psychological behavioral patterns are the subconscious acts that are done by a person without even knowing to their conscious mind.

So, if your partner misses you, he/she subconsciously give out some crucial signs without even knowing. So, if you consciously start to observe these subconscious signs, it almost feels like reading the mind of the other person completely. And this is what gives you a clear-cut reality of how much is your crush/partner missing you.

How to know if someone misses you?

 The 5 Psychological signs

See, you may have already seen many websites which bombard you with some absolute non sense, which are no way practical. But I at DemokraticFront only give you practical conclusions that are true to real life.

1. A lot of Drama for even small reasons:

Although many consider anger/drama a sign of disliking, it can also be triggered when the person feels that their feelings are being wasted. Whenever a loved one is constantly thinking about you and missing you, he/she is subconsciously giving you a top priority in their life.

So, when your girlfriend/boyfriend is giving such a priority, they unknowingly expect that they too must be your first priority in everything. So what happens if you ignore them or even slightly neglect them? It clearly strikes their self-esteem and makes them feel that they are unnecessarily wasting their feelings on you.

So, if your partner is getting angry and creating drama for many small issues, then it is a clear cut sign that he/she is deeply missing you.

2. Telling that something or someone reminded of you:

According to psychology, if you are excessively thinking about a person very much.. if you are excessively missing a person a very much, chances are high that many people around you resemble the one, whom you are missing. This is because of the subconscious mind’s act on your eyes. The more you are missing a person, it means the more you want to see the person and feel the past memories again. Thus your subconscious mind automatically creates an illusion that makes everything remind the person.

So, Did your sweetheart tell you that someone reminded of you? Did they tell you that someplace reminded of a past memory with you? Then it is a clear sign that he/she is missing you badly.

3. An emotional state when something happens unexpectedly:

When a person deeply misses his/her partner, the person automatically builds up a lot of emotions in them. Thus these built up emotions are likely to burst up one or the other day. So try to give a surprise visit/call to your partner and observe their behavior patterns.

If he/she is missing you, your surprise might trigger a heavy emotional state in them. You can clearly sense this heavy emotional state (mixed with a stir of emotions) in their face and even in their body language. Moreover, you need to make sure that these emotions don’t fade away within seconds and last longer for even hours.

4. When you are in their Dream for more than once:

Every dream you get has a specific meaning embedded in it. I’m not telling those fortune telling about dreams, but the deep psychological feelings, that manifest into every dream you get. For example, if a person was the last thought before you got into the deep sleep, then it is most likely that person appears in your dream, as your subconscious mind is still thinking about them.

So, Tell me why would you come in a dream of a person? That too again and again. Yes, it is when he/she misses you very badly. So, with the dream, their subconscious mind is communicating with them to do something as they miss the other person.

So, next time, when your partner tells that you are in their dream, it is a good thing to feel that he/she is missing you very badly.

5. Storing all the Gifts and things you have given them

This is one of the strongest psychological signs, that clearly prove that your man/woman is missing you so much. We store things/memories when we beleive that they are very valuable and are vulnerable to go away from us. So, what does it mean if he/she is storing your gifts and every small thing you gave them?

It clearly proves the fact, that he/she is considering these memories very valuable as they represent your presence and memories. So, when your man/woman is missing you so much, he/she tends to store all the things you gave them, which makes their subconscious mind feel satisfied. So, the pain they are feeling in your absence is unknowingly relieved by these things which represent all your memories

मेनका गांधी होने के मायने….

-विक्रम बृजेन्द्र सिंह-

चौंतीस साल गुजर गए।वे 1984 की सर्दियों के दिन थे। हक़ की लड़ाई लड़ रही गांधी परिवार की छोटी बहू मेनका गांधी अमेठी की अपनी राजनीतिक विरासत के लिए जनता की चौखट पर थीं।राजीव गांधी के खिलाफ अमेठी संसदीय क्षेत्र से बहैसियत संयुक्त विपक्ष प्रत्याशी राष्ट्रीय संजय मंच की मुखिया के रुप में, शायद नामांकन के बाद शहर के खुर्शीद क्लब में जनता से रूबरू थीं।अपने साथ की गई ज्यादतियों को लेकर वे बिफर रहीं थीं। उस सभा के चश्मदीद लोगों को उनका वो आक्रामक अंदाज़ आज भी भूला नहीं है। लगभग घंटे भर के भाषण में उनके निशाने पर था गांधी परिवार। संजय गांधी की विमान हादसे में मौत के बाद से ही घर-परिवार-समाज और राजनीति में अपने वजूद को साबित करने के लिए जूझ रही मेनका पति की कर्मस्थली अमेठी में अपना हक चाहती थीं। क्योंकि संजय गांधी ने सियासत शुरू की थी अमेठी(तत्कालीन सुल्तानपुर जिले का संसदीय क्षेत्र)से।

..पर इंदिरा की शहादत से उपजी सहानुभूति लहर के आगे वे कामयाब न हो सकीं। कड़ी शिकस्त खाई मेनका फिर वापस नहीं लौटीं। अलबत्ता पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी पैठ बनाई और इस बीच बरेली,आंवला व पीलीभीत आदि सीटों से रिकॉर्ड मतों से जीत हासिल कर राजनीति में मेनका होने की सार्थकता सिद्ध की। सामाजिक सरोकार के मुद्दों व जीव जंतुओं के अधिकार और संरक्षण की बड़ी पैरोकार के तौर पर भी पहचान बनाने में कामयाब रहीं।

…लेकिन एक टीस कायम रही,वो थी पति की सियासी विरासत में अपना हक हासिल करने की चाहत। बस यही चाहत थी उनकी.. जो बेटे वरुण को उन्होंने 2014 के आम चुनाव में पिता की विरासत संभालने सुल्तानपुर भेजा। उनके चुनाव प्रचार में वे 29 वर्षों बाद आईं और पिता से कुछ अक्खड़ वरुण गांधी कामयाब रहे। उन्होंने अपने अंदाज में जिले के लिए कुछ ‘अलग’ करने की कोशिश करते हुए अमिट छाप भी छोड़ी।..लेकिन 2019 का आम चुनाव मेनका के लिए अलग सा है। हमेशा वे खुद अपनी सीट चुनती रहीं। इस बार हाईकमान के निर्देश पर वे बेटे की सीट पर पति की विरासत संभालने आई हैं। 30 मार्च को उन्होंने अपना चुनावी अभियान शुरू करते हुए क्षेत्र में ही लंगर डाल दिया है।पुराने रिश्ते जिंदा होने लगे हैं।जंग रोचक होगी, शक नहीं!…उनके सामने हैं पति संजय व जेठ राजीव के खास सिपहसालार संजय सिंह तो वहीं गठबंधन ने स्थानीय क्षत्रप चन्द्रभद्र सिंह को उतार कर लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया है। ..पर अब मेनका भी सन 84 सी नौसिखिया नहीं हैं। वे अब पहचान के लिए ‘गांधी परिवार’ की मोहताज भी नहीं रहीं।जिंदगी की रपटीली राहों से गुजरते हुए व तमाम उतार-चढ़ाव के बीच फौलाद बन चुकी हैं।

देखना है हमेशा ढाई-तीन लाख मतों के अंतर से जीतने वाली ये ‘छोटी बहू’ इसबार अपने पुराने हिसाब किस तरह और कैसे चुकता करेगी !! फिलहाल मेनका की चुनाव में अवध क्षेत्र से नुमाइंदगी, राहुल की परंपरागत सीट बन चुकी अमेठी समेत कई पड़ोसी सीटों पर भी असर डालेगी।ये तो तय है।

अगर पंचायत ही बैठानी थी तो 9 साल क्यूँ लगाए

राम मंदिर के मामले में मध्यस्थता के लिए जिन दक्षिण भारतियों के नाम सुझाए गए हैं वह बहुत ही ऊर्जावान और प्र्ज्ञावान होने के साथ साथ सहनशील भी होंगे परंतु क्या यह सब कपिल सिब्बल के आदेश का पालन मात्र नहीं है, की 2019 चुनावों से पहले राम जन्मभूमि मंदिर पर कोई फैसला न आने पाये। इससे चुनाव प्रभावित होंगे।बालाकोट की सर्जिकल स्ट्राइक के बाद जब अचानक ही माहौल राममनदिर के पक्ष मेओइन हो गया था तब सुप्रीम कोर्ट का यह माध्यस्थता वाला फैसला चौंकाता है। वैसे भी जब अयोध्या वासी स्व्यम अपने मसले सुलझाने में सक्षम है तो अयोध्या की जमीनी हकीकत वहाँ की संस्कृति से अंजान परंतु मध्यस्थता में निपुण लोग क्या न्याय कर पाएंगे, और क्या यह उचित होगा?

आखिरकार राम जन्‍मभूमि मामले को अब मध्‍यस्‍थता से सुलझाने के लिए 9 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने दक्षिण भारत के तीन प्रोफेशनल लोगों का नाम तय किया है. इनमें जानें-माने आर्ट ऑफ लिविंग के संस्‍थापक श्री श्री रविशंकर, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज मोहम्‍मद इब्राहिम कुलीफुल्‍लाह और वरिष्‍ठ वकील श्रीराम पंचू के नाम शामिल हैं. जस्टिस कुलीफुल्लाह को छोड़कर दोनों सदस्यों को विवादित मामले में हाथ आजमाने का बड़ा अनुभव है. प्रयास को कामयाबी से कतई नहीं जोड़ा जा सकता है.

पिछले प्रयागराज में संतों और विश्व हिंदू परिषद की धर्म संसद में राम मंदिर निर्माण को लेकर यही निर्णय आया था कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक इंतजार करना चाहिए. अब सुप्रीम अदालत कह रही है कि उन्हें पंचों के फैसले का इंतजार है. वर्षों बाद आज अदालत ने जिस भावना को आधार बनाते हुए आपसी सहमति से राय बनाने पर जोर दिया है ,यही बात तो संघ प्रमुख मोहन भागवत भी कह रहे थे. उन्होंने विवाद के समाधान का फार्मूला भी दिया था.

बातचीत से हल नहीं?

दिल्ली में भविष्य का भारत के आयोजन में मैंने यही सवाल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत जी से पूछा था ‘राम’ इस देश की परंपरा हैं, संस्कृति हैं, आस्था हैं, सबसे बड़े इमाम हैं फिर राम मंदिर मुद्दा आपसी बातचीत से हल क्यों नहीं हो सकता? क्या इसके लिए अदालत के फैसले या सरकार का अध्यादेश ही विकल्प है?’

उनका जवाब था: ‘राम करोड़ों लोगों की आस्था से जुड़े हैं, करोड़ों लोगों के आदर्श हैं और इससे अलग वे कई लोगों के लिए इमामे-हिंद भी हैं, इसमें राजनीति का प्रश्न अबतक होना ही नहीं चाहिए था. भारत में हजारों मंदिर तोड़े गए आज सवाल उन मंदिरों का नहीं रह गया है. राम और अयोध्या, राम जन्मभूमि की प्रमाणिकता वैज्ञानिक है, आस्था है, संस्कृति है इसलिए राम मंदिर का निर्माण हो और जल्द से जल्द हो. संवाद की भूमिका श्रेष्ठ हो सकती है ‘. .. लेकिन यह बात आगे नहीं बढ़ी.

बाधा कौन डाल रहा है?

2010 में इलाहबाद हाईकोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में 2.5 एकड़ विवादित जमीन को तीन हिस्से में बांटकर मुस्लिम पक्ष के हिस्से में लगभग 50 गज जमीन का वैधानिक हक दिया था. आज सुप्रीम कोर्ट ने उसी फैसले को जमीन पर उतारने को लेकर तीन विद्वान लोगों की समिति बनाई है. समिति के सामने आज यह यक्ष प्रश्न है कि बाधा कौन डाल रहे हैं?

यह बात दुनिया जानती है कि भारत की हजारों वर्षों की सभ्यता और संस्कृति के ऐतिहासिक तथ्य अयोध्या और राम से ही संपूर्ण है. सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि आखिर क्यों भारत की सबसे पुरानी विरासत और उसकी पहचान वाली अयोध्या अपने एक छोटे से जमीन के विवाद का हल आपसी सहमति से नहीं ढूंढ सकता? इसी सवाल का जवाब ढूंढने सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्तता के लिए अयोध्या (फैज़ाबाद) को ही चुना है. दिक्कत यह है कि इस पंचैती में स्थानीय लोग नहीं हैं और मीडिया की टिप्पणी अस्वीकार्य है. लेकिन इतना तय है कि सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्थानीय लोगों ने स्वागत किया है. जिनका सरोकार मसले का निदान और भव्य मंदिर के निर्माण से है.

नजरिए का सवाल

अब यह सवाल नहीं है कि पिछले 9 वर्षों से सुप्रीम कोर्ट राम मंदिर मामले में यह क्यों तय नहीं कर पाई है कि टाइटल शूट विवाद कौन सी बेंच सुने. आखिरकार कोर्ट में यह कश्मकश क्यों बनी कि भावना से जुड़ा यह मामला हर पक्ष को संतुष्ट नहीं कर पाएगा? फिर इलाहबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला इतने वर्षों तक क्यों रोका गया? क्यों हिंदू ट्रस्ट और मंदिरों के 67 एकड़ जमीन पर निर्माण कार्य को रोका गया? उनकी जमीन को इतने वर्षों तक सरकारी कब्जे में रखने का क्या औचित्य था? सवाल यह भी है कि इन वर्षों में समाधान के गंभीर प्रयास भी हुए हैं. जो दोनों पक्षों की ओर से भी हुई है और कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने भी की है. फिर अबतक उन्हें सबजुडिस मामला होने के कारण क्यों रोका गया? सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब आज भी संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान में ढूंढा जा सकता है. जो शायद व्यावहारिक भी है और दोनों पक्षों को कुछ त्याग के लिए भी प्रेरित करता है. सिर्फ नजरिया बदलना पड़ेगा और सियासत छोड़नी पड़ेगी.

प्रयागराज के दिव्य और भव्य कुंभ में इस बार 24 करोड़ से ज्यादा लोगों ने आस्था की डुबकी लगाई है. आस्था की डुबकी लगाने वालों में माननीय चीफ जस्टिस रंजन गोगोई भी हैं. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक संतों ,वैरागियों और समाज के इस अद्भुत संगम को करीब से देखने की ललक रोक नहीं पाए. जाहिर है 24 करोड़ लोगों ने प्रयागराज कुंभ को अपने अपने नजरिए देखा है . प्रधानमंत्री मोदी ने मंदिर जाने के बजाय स्वच्छता कर्मचारियों के पांव धोकर प्रयागराज कुंभ को अपने दृष्टिकोण से देखा, जो शुद्ध मानवतावादी और हर व्यक्ति में राम को ढूंढने की प्रेरणा दे सकती है.

24 करोड़ लोगों का अलग-अलग नजरिया ही तो कुंभ का आदर्श है. लेकिन भावना सिर्फ भारत के विराट स्वरूप का दर्शन थी. यही तो सनातन है. राम के प्रति भावना और नजरिए का यही सवाल आज सबके सामने है जो आज हिंदू, मुस्लिम, अदालत, मध्यस्थकार सबसे पूछ रहा है. अब बस करो राम लला को अब मत भटकाओ…..

राम मंदिर के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय ने किया निराश

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

रामन्दिर के मुकदमे की सुनवाई को उत्सुक हिन्दू समाज को निराशा हुयी जब सुप्रीम कोर्ट ने नये सिरे से मध्यस्थता की ओर मोडकर मामले को कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल के बयान कि लोकसभा चुनाव के बाद सुनवाई होनी चाहिये की राह पर जाकर मामला ताल दिया !

अब जबकि मुकदमे के सभी पक्षकार सुनवाई के लिये तैयार है कागजी कार्यवाही भी पूरी हो चुकी है अब मध्यस्थता के नाम मामले को लटकाने का प्रयास किया जा रहा है! सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता की बात करते ही जो लोग मामले की सुनवाई को लोकसभा के चुनाव के बाद सुनवाई केपक्ष मे थे की बाछे खिल गयी ये लोग वही है जो कि कुछ समय पहले श्री श्री रविशंकर के द्वारा की गयी मध्यस्थता पहल ने शामिल ही नही हुये,उनका विरोध भी किया अब उनकी इसी मध्यस्थता के नाम पर मुराद पूरी होने उम्मीद जाग रही है कि राम मन्दिर मामले की सुनवाई लोकसभा चुनाव से पहले नही होनी चाहिये क्योकि ये जानते है कि फैसला क्या आयेगा !

क्या राममन्दिर मामले को किसी और दिशा मे मोडने की कोशिश हो रही है?जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का आदेश स्पष्ट तौर पर रामलला के पक्ष मे है फिर भी उसका बंटवारा तीन हिस्सो मे किया गया तो समझौता भी हिन्दू समाज करे? मामले को इस स्तर पर मध्यस्थता की बात करने का मकसद ही मामले की सुनवाई टालना ही लगता है जबकि राम लला और हिन्दु महासभा की ओर से मामले के इस स्तर पर किसी तरह की मध्यस्थता का विरोध किया है! अब जबकि सभी पक्ष सुनवाई को तैयार है टालना का कोई बहाना ही नही बचा तो मामले का फैसला आये उसके बजाये मध्यस्थता की ओर मोडकर मामले को लटकाने का ही प्रयास है क्योंकि मध्यस्थता मे जाने के बाद साल छ: महीने के लिये टल जायेगा जबकि हिन्दू पक्ष पक्षकार अब और मामले कॊ लम्बा खींचना नही चाहता वो फैसला चाहता है क्योंकि उसके लिये यह आस्था का प्रश्न है!

देखने की बात यह है कि जिनके पक्ष मे इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया वो पक्ष मध्यस्थता के विरोध मे है जबकि मध्यस्थता का पूर्व मे विरोध कर चुकी बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी अचानक ही मध्यस्थता को बैचेन दिखाई तत्ा हथियार उनकी मंशा कि लोकसभा चुनाव के बाद सुनवाई होनी चाहिये को पूरी करता है लेकिन मध्यस्थता के लिये सभी पक्षो का सहमत होना आवश्यक है और अगर राममन्दिर का मामला मध्यस्थता को सौंपा जाता है तो सबरीमाला मन्दिर का मामला भी रिव्यू मे मध्यस्थता को सौपा जाना चाहिये

पांच सदस्यों की पीठ ने राममन्दिर मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने मामले को बातचीत के माध्यम से सुलझाने और बातचीत के जरिये कोई हल निकालने को लेकर सुनवाई की जस्टिस एस ए बोबडे ने सुनवाई के दौरान कहा कि बाबर ने जो किया उसे हम बदल नही सकते हमारा मकसद विवाद को सुलझाना है इतिहास की जानकारी हमें भी है मध्यस्थता का मतलब किसी की हार या जीत नही है ये दिल,दिमाग,भावनाओ से जुडा मामला है हम इस मामले की गम्भीरता को लेकर सावचेत है ! जबकि इसी मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि यह सिविल सूट है अब जबकि हिन्दूपक्ष भी सिविल सूट जिसे वह आस्था के साथ जुडा पाता है,कि सुनवाई को तैयार है तो मध्यस्थता की आवश्यकता कैसे पडी जबकि कुछ समय पहले ही सबरीमाला मन्दिर के मामले मे सैकडो बर्षो पुरानी आस्था को तोडकर निर्णय दिया उस समय न्यायालय को मध्यस्थता मे जाना क्यों उचित नही लगा सबरीमाला मन्दिर के निर्णय को भी रिव्यू कर मध्यस्थता मे ले जाना उचित रहेगा ! मध्यस्थता को लेकर सभी पक्षकारो की भी भिन्न राय है मसलन निर्मोही अखाडे के वकील सुशील जैन ने कहा कि जमीन हमारी है और हमें वहां पूजा का अधिकार है लेकिन मध्यस्थता होती है तो सभी पक्षो को साथ आना होगा बाबरी मस्जिद के वकील राजीव धवन ने कहा कि वह मध्यस्थता के लिये तैयार है! रामलला की ओर से बरिष्ठ वकील सी एस वैद्य नाथन ने कहा कि अयोध्या श्री राम की जन्मभूमि है इसलिये यह आस्था का विषय है इसलिये इसमे किसी तरह का समझौता नही हो सकता है सिर्फ यही फैसला हो सकता है कि मस्जिद कहिं दूसरी जगह बना सकते है हम उसके लिये क्राउडफंडिग कर सकते है मध्यस्थता का तो सवाल ही नही है! वहीं हिन्दू महासभा के वकील हरिशंकर जैन ने किसी तरह के समझौते का विरोध किया उनका कहना था कि कोरगट मे पक्षकार मान भी जाते है तो बाहर आम जनता इस फैसले को नही मानेगी हिन्दु महासभा ने कहा कि जमीन हमारी है इसमे कोई समझौता मान्य नही है!

शिवाजी भोंसले उर्फ़ छत्रपति शिवाजी महाराज

संकलन: राजविरेन्द्र वशिष्ठ

छत्रपति शिवाजी भोसले

शिवाजी भोंसले उर्फ़ छत्रपति शिवाजी महाराज एक भारतीय शासक और मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे। शिवाजी ने आदिलशाही सल्तनत की अधीनता स्वीकार ना करते हुए उनसे कई लड़ाईयां की थी। शिवाजी को हिन्दूओं का नायक भी माना जाता है। शिवाजी महाराज एक बहादुर, बुद्धिमान और निडर शासक थे। धार्मिक कार्य में उनकी काफी रूचि थी। रामायण और महाभारत का अभ्यास वह बड़े ध्यान से करते थे। वर्ष 1674 में शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक हुआ और उन्हें छत्रपति का ख़िताब मिला।

माँ जीजाबाई की गोद में बालक शिवा

शिवाजी महाराज का जन्म 19 फ़रवरी 1630 में शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। इनके पिता का नाम शाहजी भोसलें और माता का नाम जीजाबाई था। शिवनेरी दुर्ग पुणे के पास है। उनकी माता ने उनका नाम भगवान शिवाय के नाम पर शिवाजी रखा। उनकी माता भगवान शिवाय से स्वस्थ सन्तान के लिए प्रार्थना किया करती थी। शिवाजी के पिताजी शाहजी भोंसले एक मराठा सेनापति थे, जो कि डेक्कन सल्तनत के लिए कार्य किया करते थे। शिवाजी के जन्म के समय डेक्कन की सत्ता तीन इस्लामिक सल्तनतों बीजापुर, अहमदनगर और गोलकोंडा में थी। शिवाजी अपनी माँ जीजाबाई के प्रति बेहद समर्पित थे। उनकी माँ बहुत ही धार्मिक थी। उनकी माता शिवाजी को बचपन से ही युद्ध की कहानियां तथा उस युग की घटनाओं के बारे में बताती रहती थीं, खासकर उनकी माँ उन्हें रामायण और महाभारत की प्रमुख कहानियाँ सुनाती थीं। जिन्हें सुनकर शिवाजी के ऊपर बहुत ही गहरा असर पड़ा था। इन दो ग्रंथो की वजह से वो जीवनपर्यन्त हिन्दू महत्वो का बचाव करते रहे। इसी दौरान शाहजी ने दूसरा विवाह किया और अपनी दुसरी पत्नी तुकाबाई के साथ कर्नाटक में आदिलशाह की तरफ से सैन्य अभियानो के लिए चले गए। उन्होंने शिवाजी और जीजाबाई को दादोजी कोंणदेव के पास छोड़ दिया। दादोजी ने शिवाजी को बुनियादी लड़ाई तकनीकों के बारे में जैसे कि- घुड़सवारी, तलवारबाजी और निशानेबाजी सिखाई।

कोंडना पर हमला

शिवाजी महाराज ने वर्ष 1645 में, आदिलशाह सेना को बिना सूचित किए कोंड़ना किला पर हमला कर दिया। इसके बाद आदिलशाह सेना ने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार कर लिया। आदिलशाह सेना ने यह मांग रखी कि वह उनके पिता को तब रिहा करेगा जब वह कोंड़ना का किला छोड़ देंगे। उनके पिता की रिहाई के बाद 1645 में शाहजी की मृत्यु हो गई। पिता की मृत्यु के बाद शिवाजी ने फिर से आक्रमण करना शुरू कर दिया।

वर्ष 1659 में, आदिलशाह ने अपने सबसे बहादुर सेनापति अफज़ल खान को शिवाजी को मारने के लिए भेजा। शिवाजी और अफज़ल खान 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के किले के पास एक झोपड़ी में मिले। दोनों के बीच एक शर्त रखी गई कि वह दोनों अपने साथ केवल एक ही तलवार लाए गए। शिवाजी को अफज़ल खान पर भरोसा नही था और इसलिए शिवाजी ने अपने कपड़ो के नीचे कवच डाला और अपनी दाई भुजा पर बाघ नख (Tiger’s Claw) रखा और अफज़ल खान से मिलने चले गए। अफज़ल खान ने शिवाजी के ऊपर वार किया लेकिन अपने कवच की वजह से वह बच गए, और फिर शिवाजी ने अपने बाघ नख (Tiger’s Claw) से अफज़ल खान पर हमला कर दिया। हमला इतना घातक था कि अफज़ल खान बुरी तरह से घायल हो गया, और उसकी मृत्यु हो गई। इसके बाद शिवाजी के सैनिकों ने बीजापुर पर आक्रमण कर दिया।

शिवाजी ने 10 नवम्बर 1659 को प्रतापगढ़ के युद्ध में बीजापुर की सेना को हरा दिया। शिवाजी की सेना ने लगातार आक्रमण करना शुरू कर दिया। शिवाजी की सेना ने बीजापुर के 3000 सैनिक मार दिए, और अफज़ल खान के दो पुत्रों को गिरफ्तार कर लिया। शिवाजी ने बड़ी संख्या में हथियारों ,घोड़ों,और दुसरे सैन्य सामानों को अपने अधीन कर लिया। इससे शिवाजी की सेना और ज्यादा मजबूत हो गई, और मुगल बादशाह औरंगजेब ने इसे मुगल साम्राज्य का सबसे बड़ा खतरा समझा।

मुगलों के शासक औरंगजेब का ध्यान उत्तर भारत के बाद दक्षिण भारत की तरफ गया। उसे शिवाजी के बारे में पहले से ही मालूम था। औरंगजेब ने दक्षिण भारत में अपने मामा शाइस्ता खान को सूबेदार बना दिया था। शाइस्ता खान अपने 150,000 सैनिकों को लेकर पुणे पहुँच गया और उसने वहां लूटपाट शुरू कर दी। शिवाजी ने अपने 350 मावलो के साथ उनपर हमला कर दिया था, तब शाइस्ता खान अपनी जान बचाकर भाग खड़ा हुआ और शाइस्ता खान को इस हमले में अपनी 3 उँगलियाँ गंवानी पड़ी। इस हमले में शिवाजी महाराज ने शाइस्ता खान के पुत्र और उनके 40 सैनिकों का वध कर दिया। शाइस्ता खान ने पुणे से बाहर मुगल सेना के पास जा कर शरण ली और औरंगजेब ने शर्मिंदगी के मारे शाइस्ता खान को दक्षिण भारत से हटाकर बंगाल का सूबेदार बना दिया।

सूरत की लूट जहां शिवाजी को 132 लाख की संपत्ति हासिल हुई

इस जीत के बाद शिवाजी की शक्ति और ज्यादा मजबूत हो गई थी। लेकिन कुछ समय बाद शाइस्ता खान ने अपने 15,000 सैनिकों के साथ मिलकर  शिवाजी के कई क्षेत्रो को जला कर तबाह कर दिया, बाद में शिवाजी ने इस तबाही का बदला लेने के लिए मुगलों के क्षेत्रों में जाकर लूटपाट शुरू कर दी। सूरत उस समय हिन्दू मुसलमानों का हज पर जाने का एक प्रवेश द्वार था। शिवाजी ने 4 हजार सैनिकों के साथ सूरत के व्यापारियों को लूटने का आदेश दिया, लेकिन शिवाजी ने किसी भी आम आदमी को अपनी लूट का शिकार नहीं बनाया।

शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया गया जहां उन्हें लागा कि उनको उचित सम्मान नहीं दिया गया है। इसके खिलाफ उन्होंने अपना रोष दरबार पर निकाला और औरंगजेब पर छल का आरोप लगाया। औरंगजेब ने शिवाजी को कैद कर लिया और शिवाजी पर 500 सैनिकों का पहरा लगा दिया। हालांकि उनके आग्रह करने पर उनकी स्वास्थ्य की दुआ करने वाले आगरा के संत, फकीरों और मन्दिरों में प्रतिदिन मिठाइयाँ और उपहार भेजने की अनुमति दे दी गई थी। कुछ दिनों तक यह सिलसिला ऐसे ही चलता रहा। एक दिन शिवाजी ने संभाजी को मिठाइयों की टोकरी में बैठकर और खुद मिठाई की टोकरी उठाने वाले मजदूर बनकर वहा से भाग गए। इसके बाद शिवाजी ने खुद को और संभाजी को मुगलों से बचाने के लिए संभाजी की मौत की अफवाह फैला दी। इसके बाद संभाजी को मथुरा में एक ब्राह्मण के यहाँ छोड़ कर शिवाजी महाराज बनारस चले गए। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर करवा डाली। जसवंत सिंह ( शिवाजी का मित्र) के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668 में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार सन्धि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र संभाजी को 5000 की मनसबदारी मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया, लेकिन, सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुग़लों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670 में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा, नगर से 132 लाख की सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त शिवाजी ने एक बार फिर मुगल सेना को सूरत में हराया।

सन 1674 तक शिवाजी के सम्राज्य का अच्छा खासा विस्तार हो चूका था। पश्चिमी महाराष्ट्र में स्वतंत्र हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के बाद शिवाजी ने अपना राज्याभिषेक करना चाहा, परन्तु ब्राहमणों ने उनका घोर विरोध किया। क्योंकि शिवाजी क्षत्रिय नहीं थे उन्होंने कहा की क्षत्रियता का प्रमाण लाओ तभी वह राज्याभिषेक करेगा। बालाजी राव जी ने शिवाजी का सम्बन्ध मेवाड़ के सिसोदिया वंश से समबंद्ध के प्रमाण भेजे जिससे संतुष्ट होकर वह रायगढ़ आया और उन्होंने राज्याभिषेक किया। राज्याभिषेक के बाद भी पुणे के ब्राह्मणों ने शिवाजी को राजा मानने से इनकार कर दिया। इसके बाद शिवाजी ने अष्टप्रधान मंडल की स्थापना कि। विभिन्न राज्यों के दूतों, प्रतिनिधियों के अलावा विदेशी व्यापारियों को भी इस समारोह में आमंत्रित किया गया। इस समारोह में लगभग रायगढ़ के 5000 लोग इकट्ठा हुए थे। शिवाजी को छत्रपति का खिताब दिया गया। उनके राज्याभिषेक के 12 दिन बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया। इस कारण फिर से 4 अक्टूबर 1674 को दूसरी बार उनका राज्याभिषेक हुआ। दो बार हुए इस समारोह में लगभग 50 लाख रुपये खर्च हुए। इस समारोह में हिन्दू स्वराज की स्थापना का उद्घोष किया गया था।

शिवाजी के परिवार में संस्कृत का ज्ञान अच्छा था और संस्कृत भाषा को बढ़ावा दिया गया था। शिवाजी ने इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए अपने किलों के नाम संस्कृत में रखे जैसे कि- सिंधुदुर्ग, प्रचंडगढ़, तथा सुवर्णदुर्ग। उनके राजपुरोहित केशव पंडित स्वंय एक संस्कृत के कवि तथा शास्त्री थे। उन्होंने दरबार के कई पुराने कायदों को पुनर्जीवित किया एवं शासकिय कार्यों में मराठी तथा संस्कृत भाषा के प्रयोग को बढ़ावा दिया।

शिवाजी एक कट्टर हिन्दू थे, वह सभी धर्मों का सम्मान करते थे। उनके राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। शिवाजी ने कई मस्जिदों के निर्माण के लिए दान भी दिए था। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फ़कीरों को बराबर का सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में कई मुस्लिम सैनिक भी थे। शिवाजी हिन्दू संकृति का प्रचार किया करते थे। वह अक्सर दशहरा पर अपने अभियानों का आरम्भ किया करते थे।

शिवाजी, भारतीय नौसेना के पितामह

शिवाजी ने काफी कुशलता से अपनी सेना को खड़ा किया था। उनके पास एक विशाल नौसेना (Navy) भी थी। जिसके प्रमुख मयंक भंडारी थे। शिवाजी ने अनुशासित सेना तथा सुस्थापित प्रशासनिक संगठनों की मदद से एक निपुण तथा प्रगतिशील सभ्य शासन स्थापित किया। उन्होंने सैन्य रणनीति में नवीन तरीके अपनाएं जिसमें दुश्मनों पर अचानक आक्रमण करना जैसे तरीके शामिल थे।

अष्टप्रधान

शिवाजी को एक सम्राट के रूप में जाना जाता है। उनको बचपन में कुछ खास शिक्षा नहीं मिली थी, लेकिन वह फिर भी भारतीय इतिहास और राजनीति से अच्छी तरह से परिचत थे। शिवाजी ने प्रशासकीय कार्यों में मदद के लिए आठ मंत्रियों का एक मंडल तैयार किया था, जिसे अष्टप्रधान कहा जाता था। इसमें मंत्रियों प्रधान को पेशवा कहते थे, राजा के बाद सबसे ज्यादा महत्व पेशवा का होता था। अमात्य वित्त मंत्री और राजस्व के कार्यों को देखता था, और मंत्री राजा के दैनिक कार्यों का लेखा जोखा रखता था। सचिव दफ्तरी काम किया करता था। सुमन्त विदेश मंत्री होता था जो सारे बाहर के काम किया करता था। सेनापति सेना का प्रधान होता था। पण्डितराव दान और धार्मिक कार्य किया करता था। न्यायाधीश कानूनी मामलों की देखरेख करता था।

शिवाजी और अष्टप्रधान

मराठा साम्राज्य उस समय तीन या चार विभागों में बटा हुआ था। प्रत्येक प्रान्त में एक सूबेदार था जिसे प्रान्तपति कहा जाता था। हरेक सूबेदार के पास एक अष्टप्रधान समिति होती थी। न्यायव्यवस्था प्राचीन प्रणाली पर आधारित थी। शुक्राचार्य, कौटिल्य और हिन्दू धर्मशास्त्रों को आधार मानकर निर्णय दिया जाता था। गाँव के पटेल फौजदारी मुकदमों की जाँच करते थे। राज्य की आय का साधन भूमिकर था, सरदेशमुखी से भी राजस्व वसूला जाता था। पड़ोसी राज्यों की सुरक्षा की गारंटी के लिए वसूले जाने वाला सरदेशमुखी कर था। शिवाजी अपने आपको मराठों का सरदेशमुख कहा करते थे और इसी हैसियत से सरदेशमुखी कर वसूला जाता था।

शिवाजी महाराज ने अपने पिता से स्वराज की शिक्षा हासिल की, जब बीजापुर के सुल्तान ने उनके पिता को गिरफ्तार कर लिया था तो शिवाजी ने एक आदर्श पुत्र की तरह अपने पिता को बीजापुर के सुल्तान से सन्धि कर के छुड़वा लिया। अपने पिता की मृत्यु के बाद ही शिवाजी ने अपना राज-तिलक करवाया। सभी प्रजा शिवजी का सम्मान करती थी और यही कारण है कि शिवाजी के शासनकाल के दौरान कोई आन्तरिक विद्रोह जैसी घटना नहीं हुई थी। वह एक महान सेना नायक के साथ-साथ एक अच्छे कूटनीतिज्ञ भी थे। वह अपने शत्रु को आसानी से मात दे देते थे।

शिवाजी के सिक्के

एक स्वतंत्र शासक की तरह उन्होंने अपने नाम का सिक्का चलवाया। जिसे “शिवराई” कहते थे, और यह सिक्का संस्कृत भाषा में था।

3 अप्रैल, 1680 में लगातार तीन सप्ताह तक बीमार रहने के बाद यह वीर हिन्दू सम्राट सदा के लिए इतिहासों में अमर हो गया, और उस समय उनकी आयु 50 वर्ष थी। शिवाजी महाराज एक वीर पुरुष थे, जिन्होंने अपना पूरा जीवन मराठा, हिन्दू साम्राज्य के लिए समर्पित कर दिया। मराठा इतिहास में सबसे पहला नाम शिवाजी का ही आता है। आज महाराष्ट्र में ही नहीं पूरे देश में वीर शिवाजी महाराज की जयंती बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाई जाती है।

प्राचीन भारतीय सिक्षा का स्वर्णिम युग बनाम वर्तमान शिक्षा व्यवस्था

विश्लेषण


Er. S. K. Jain – Feature Editor

भारतवर्ष आर्यभट्ट, वाराहमिहिर, चाणक्य जैसे विद्वानों का देश रहा है। हमारे देश में उस समय तक्षशिला, नालंदा व पुष्पगिरी जैसे विश्व विद्यालय थे जबकि पश्चिमी देशों के लोग फूहड़ और अनपढ़ थे। नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में हुई थी, उस वक्त वहाँ करीब 10,000 देशी एवं विदेशी विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण करते थे। करीब 1500 वर्ष पहले यह विश्व विद्यालय ज्ञान और विज्ञान के अंतर्राष्ट्रीय केंद्र माने जाते थे। विदेशी छात्र इन विश्व विद्यालयों में पढ़ने के पश्चात तमाम उम्र अपने शिक्षकों से प्रभावित रहते थे और उन्हे उफार भेजते रहते थे। चीन के छत्र भारतीय संस्कृति से इतने प्रभावित थे कि उन्होने अपने चाइनीज़ नाम बदल कर भारतीय नाम रख लिए थे। जैसे प्रकाशमती, श्रीदेव, चरित्रवर्मा, प्रज्ञावर्मा, प्रज्ञादेव इत्यादि। यह हमारे लिए बहुत ही गर्व कि बात थी। कई चीनी विद्वानों ने इन विश्व विद्यालयों को भारत और चीन के सामाजिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धों को जोड़ने वाला सेतु कहा था।

नालंदा विश्व विद्यालय के छत्रों में चीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान हयून्त्सांग, फ़ाहियान, सांगयून एवं इतसिंग भी शामिल थे। हयून्त्सांग नालंदा के आचार्य शीलभद्र के शिष्य थे। हयून्त्सांग ने 6 साल तक विषविद्यालय में रह कर विधिविशारद (कानून) की पढ़ाई की थी। चीनी मूल के छात्र इत्सिंग को चीनी-संस्कृत शब्दकोश लिखने का श्रेय दिया जाता है। उस समय की हमारी शिक्षा ने हमारा नैतिक स्टार इतना बढ़ा दिया था की हमें अपनी किसी भी चीज़ को ताला लगा कर रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। चोरी – चकारी के बारे में हम सोच भी नहीं सकते थे। चीनी यात्रियों ने अपने स्न्समरणों में लिखा था की भारत में लोग अपने घरों को ताले नहीं लगाते हैं। आज हम पढ़ कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं। और आज के युग में हम अपने साइकिल को भी ताला लगाए बिना नहीं छोड़ सकते। इसे हम अपनी नैतिकता के हनन की पराकाष्ठा की संज्ञा दे सकते हैं। भारत ने शून्य(0) और दशमलव(॰) की खोज की और दुनिया को गिनती सिखाई। अगर शून्य न होता तो आज कम्प्यूटर और सुपरकम्प्यूटर इस दुनिया मेननहीन होते। क्योंकि कंपूतर की भाषा को बाइनेरी भाषा यानि शून्य और एक (0 and 1) पर ही आधारित है।

आज हमारे भारत में शिक्षा व्यवस्था की की स्थिति है, इसे जानकार हमें घोर आश्चर्य और निराशा का सामना करना पद सकता है। ए सर्वे में कुछ छात्रों को हिन्दी का एक वाक्य लिख कर दिया गया, जिसे पढ़ कर सुनाने के लिए कहा गया। यह वाक्य साधारण सा दूसरी कक्षा के सतर का था। जानकार हैरानी हुई कि हमारे देश के ग्रामीण इलाके के तीसरी कक्षा के 73%, पाँचवीं कक्षा के 50% और आठवीं कक्षा के 27% बच्चे यह वाक्य नहीं पढ़ सकते। इससे बच्चों कि बौद्धिक क्षमता के सतर का पता चलता है। यह आंकड़े सान 2018 की ANNUAL STATUS OF EDUCATION की एक रिपोर्ट में लिखा है। सरकारी संगठन हर वर्ष ग्रामीण भारत की शिक्षा सतर को दर्शाने वाली रिपोर्ट प्रकाशित करता है। यह 336 पन्नों की रिपोर्ट है। बहुत अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि आज भारत के, ख़ास तौर पर ग्रामीण इलाकों के बाचचे ‘हिन्दी’ के वाक्य पढ़ने में असमर्थ हैं और गणित के साधारण से सवालों को हल नहीं कर सकते। क्या यही बच्चे भारत का भविष्य तय करेंगे।

ए॰ एफ़॰ आई॰ आर॰ कि रिपोर्ट में बताया गया है कि गैर सरकारी संगठन PRATHAM ने भारत के 28 राज्यों के 596 जिलों के ग्रामीण इलाकों से अपने आंकड़े इकट्ठे किए हैं। इस संस्था ने 3 से 16 वर्ष कि आयु के 50 हज़ार बच्चों का परीक्षण किया, इस संस्था ने भारत के ग्रामीण इलाकों के निजी व सरकारी विद्यालयों के बहचोन से बात की।  इस रिपोर्ट में ,ईख है की 8वीं कक्षा पास बहुत से छात्र गणित के साधारण सवालों को भी हल नहीं कर सकते। 8वीं कक्षा के 56% छात्र 3 अंकों की एक संख्या को एक अंक की संख्या से भाग(÷)  नहीं दे सकते। 5वीं कक्षा के 72% छात्र किसी भी प्रकार के भाग(÷)  का सवाल हल नहीं कर सकते। 3सरी कक्षा के 70% छात्र एक संख्या को दूसरी संख्या से घटाना नहीं जानते। सबसे बुरी स्थिति राजस्थान प्रदेश की है जहां इस तरह के बच्चों की संख्या 92% है। केरल राज्य में यह स्थिति कुछ अच्छी है उस सर्वे से यह भी पता चला की उत्तर भारत के मुक़ाबले दक्षिण भारत के विद्यार्थियों का शिक्षा सार बेहतर है। अंक गणित के बारे में लड़कियां लड़कों से पीछे हैं। ग्रामीण भारत में 50% छात्रों के मुक़ाबिल सिर्फ 44% छात्राएं ही भाग(÷)   करना जानतीं हैं।

भारत का इतिहास सिर्फ 70 साल पुराना नहीं बल्कि हजारों वर्षों पुराना है। आज चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा रहा है और माना जा रहा है की कुछ वर्षों के अंतराल में चीन सबको पीछे छोड़ता हुआ सुपर – पावर बन जाएगा। इतिहास का वह भी दौर रहा है की चीन के छात्र भारत विद्यार्जन के लिए आते थे। आज हमारे मन में यह सवाल उठ रहा होगा इ अगर भारत कभी विश्वगुरु था और हमारी शिक्षा पद्धति इतनी अच्छी और विशाल थी तो क्या कार्न थे की शिक्षा के मामले में हमारी स्थिति आज इतनी दयनीय और ख़राब हो गयी है। करीब 1300 साल पहले भारत पर अर्ब और तुर्क सेनाओं ने हमले शुरू किए। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले इस देश को लूटा और बर्बाद किया। विदेशी आक्रांताओं ने हमार मंदिरों और विश्वविद्याल्यों पर आक्रमण कर वहाँ के शिख्स्कोन की हत्याएँ कीं, विश्वविद्यालयों में स्थित पुस्तकालयों को भीषण आग के हवाले कर दिया गया। इस नरसंहार और विद्ध्वंस में लाखो दुर्लभ ग्रंथ और पांडुलिपियाँ हमेषा हमेशा के लिए नष्ट हो गईं। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि कई पुस्तकालय तो 3 महीने तक सुलगते रहे। कई इतिहास कारों का कहना है कि इन हमलों में चीनी छात्रों द्वारा किए गए शोध कार्यों कि पांडुलिपियाँ भी नाश हो गईं।

800 साल मुगलों और 200 साल अंग्रेजों कि गुलामी ने हमारे राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और शिक्षा क्षेत्रों के ढ़ाचे को चकनाचूर करने में कोई कसर नहीं छोड़िए और हमारे देश को बहुत पीछे धकेल दिया। हमारी नैतिक और नैसर्गिक प्रतिभा का भी बहुत ह्रास हुआ। अब धीरे धीरे भारत उठ रहा है, आज NASA में 38%वैज्ञानिक भारतीय मूल के हैं। हमारा ISRO संगठन आज दुनिया में अपनी पहचान बना चुका है। आशा करते हैं कि बहुत जल्द हमारी शिक्षा पद्धति में सुधार होगा और एक बार फिर भारत अपनी खोई हुई पहचान पाने में सफल होगा। हमारा यह सपना है कि वह समय वापिस आएगा और भारत पुन: ज्ग्त्गुरु बनेगा।

बंगाल का गुंडाराज बनाम लोकतन्त्र


Rajesh Sainbhi
Curtsy Face Book

 ममता बनर्जी का कहना है कि मोदी पागल हो गया है. देश के प्रधानमंत्री के लिए एक मुख्यमंत्री के मुंह से ऐसे शब्द शोभा देते है क्या ? यह औरत बंगाल में सभी चोरों को इकट्ठा कर के लोकतंत्र बचाने की बात कर रही है.

रोज वैली चिट फंड घोटाला : 15000 करोड़
शारदा चिट फंड घोटाला     : 2500 करोड़

इसी मामले में सीबीआई अधिकारी, कोलकाता पुलिस कमिश्नर से पूछताछ करने गए थे, क्योंकि कमिश्नर सीबीआई के समन का जवाब नहीं दे रहे थे, जहां ममता बानो कमिश्नर के बचाव में पहुंच गई और सीबीआई अधिकारियों को कोलकाता पुलिस द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया जैसे सीबीआई अधिकारी कोई अपराधी हो. जबकि सीबीआई देश की सर्वोच्च संवैधानिक संस्था है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार इस घोटाले की जांच चल रही है, और ममता बनर्जी तानाशाही पर उतारू है, यह कहते हुए कि वो मोदी और अमित शाह से लोकतंत्र बचा रही है.

कोलकाता में केंद्रीय दफ्तरों पर पैरामिलिट्री फोर्स तैनात कर दी गई है.

पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र कैसे बचा रही है ममता बनर्जी देखिए :

 देख लीजिए, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी इस तरह लोकतंत्र को बचा रही है. बंगाल में लोकतंत्र समाप्त हो चुका है, सिर्फ और सिर्फ ममता बानो की तानाशाही और टीएमसी के गुंडों की गुंडागर्दी जारी है.

  • अमित शाह और योगी आदित्यनाथ के हेलीकॉप्टर को बंगाल में उतरने की अनुमति न देकर.
  • पश्चिम बंगाल में सीबीआई के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाकर.
  •  चिट फंड की जांच करने गई सीबीआई टीम को कोलकाता पुलिस द्वारा गिरफ्तार करवा कर.
  •  अवैध बंगलदेशी और रोहिंग्या को बंगाल में शरण देकर.
  •  बीजेपी कार्यकर्ताओं की हत्या करवा कर.
  •  बंदूक की नोक पर टीएमसी की रैलियों में ले जाकर
  •  बंदूक की नोक पर बैलेट बॉक्स को तालाबों में फिंकवा कर.
  •  बंगाल में बीजेपी का वोट प्रतिशत बढ़ने पर ईमानदार पुलिस अधिकारी पर ट्रांसफर का दबाव बनाकर.
  •  बंगाल में शांतिदूतों के घरों में बम बंदूक बनाने की फैक्ट्री मिलती है.
  •  बंगाल में टीएमसी के गुंडों द्वारा भाजपा और आरएसएस के कार्यालय में बम फिकवा कर.
  •  भाजपा की रथ यात्रा को अनुमति न देकर.
  •  चुनाव में प्रत्याशियों को डराया धमकाया जाता है, जिसके कारण पश्चिम बंगाल में वॉट्सएप से भाजपा प्रत्याशी नामांकन करते है.
  •  चुनाव के टाइम पर टीएमसी के गुंडों द्वारा बूथ कैपचरिंग करवा कर, जनता को घरों में रोक कर, चुनाव में वोट के लिए निकलने न देकर.
  •  टीएमसी के गुंडों द्वारा बड़े बड़े दंगे, फसाद, तोड़फोड़ करवा कर.
  •  अवैध घुसपैठियों का खुले आम समर्थन करते हुए एनआरसी का विरोध करके.
  •  बांग्लादेश और म्यांमार से भाग कर अवैध तरीके से भारत में घुसे घुसपैठियों को सुरक्षित पनाह देना और वोट बैंक के लिए उनका वोटर कार्ड, आधार कार्ड इत्यादि दस्तावेज बनवा देना.

देख लीजिए, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी इस तरह लोकतंत्र को बचा रही है. बंगाल में लोकतंत्र समाप्त हो चुका है, सिर्फ और सिर्फ ममता बानो की तानाशाही और टीएमसी के गुंडों की गुंडागर्दी जारी है.

 देख लीजिए, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी इस तरह लोकतंत्र को बचा रही है. बंगाल में लोकतंत्र समाप्त हो चुका है, सिर्फ और सिर्फ ममता बानो की तानाशाही और टीएमसी के गुंडों की गुंडागर्दी जारी है.