सीताराम केसरी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चित्तौड्गढ , 23जनवरी
पांच सौ वर्षो की उस आस्तिक लड़ाई के बाद व करोड़ो भारतवासियों व दुनिया के सनातन प्रेमियों के लिए इस दिन से बड़ा शायद ही कोई दिन होगा। अपनी मूलता से भटके लोग भी जो शायद पश्चिम का विचार रखते है उन्होंने भी इस मौके पर अपने मन के उद्गार सबके सामने प्रस्तुत किये। मंदिर में जब प्राण प्रतिष्ठा चल रही थी तब सम्पूर्ण सृष्टि पर एक स्पंदन सा गुंजायमान हो रहा था। मानो देव व दानव सब उस अवसर पर विजय का शंखनाद कर रहे हो। मंदिर बन जाने के बाद हम सभी सनातन प्रेमियों के लिए उस आस्तिकत्व भाव को पुनः उन मनिषियो व मनो तक ले जानी है जो आज भी उस पल के अनभिज्ञ है।
हम हमारे स्व के जागरण के लिए प्रतेक भारतवासी के मन को निश्चिल प्रेम व सहयोग के भाव मे समावेशित करना है जिससे आने वाली पीढ़ी को ये ज्ञात हो कि प्राण प्रतिष्ठा के बाद का भारत का मन हम सब एक है के भाव से भरा और “में से हम” तक की यात्रा को पूरा किया। तब जाकर ही हमारे आराध्य प्रभु श्रीराम जी के कार्य को हम पूर्णता की और ले जाऐंगे और हम सब अपने भाव को
समाजोपयोगी कर पायेंगे।
दुनिया में “वासुदेव कुटुम्बकम” के भाव को पोषित करती भारत माता के लिए ये दिन आज उन सभी कालजयी रातों पर विजय का प्रतीक है जिसके कारण अनेक मां भारती के पुत्रों ने अपने आपको समाहित कर दिया और एकटक घर पर प्रतिक्षा कर रही मां ,पिता ,भाई ,बहन ,पत्नी तथा बेटे को भी रोने से यह कहकर रोक दिया कि जिस काम के लिए हम जन्मे है वहीं तो किया है फिर उसपर वियोग व विरह व कलह क्यों करना।और आज वो समय उस पल का साक्षी है कि हर किसी की आंखो में प्रभु श्री राम जी की उस देवीय मूर्ति के दर्शन कर आंखो से अश्रु धारा बह निकली और सम्पूर्ण राष्ट्र का वातावरण राममय हो गया है। केवल एक ही अपेक्षा उस राष्ट्र पुरोधा कि हमसे है कि हम सब समवैचारिक लोग एक दूसरे का सहयोग करते हुए सम्पूर्ण राष्ट्र को रामराज बनाने व विकसित करने की और अग्रसर हो और हमारी नैतिकता में भी रामराज जैसा भाव आये जिससे हम अपने इस राष्ट्र को परम् वैभव पर ले जा सके।
“राम काज किन्हें बिनु”
“मोहि कहां विश्राम”