संसार में कोई बड़ा धर्म है तो वह है मानवता का धर्म : डा.साध्वी सुयशा शशि जी महाराज
रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, जैतो – 29 दिसम्बर :
स्वर्ण कुल गौरव, जिनशासन पारसमनी श्री समता जी महाराज, संगीतमयी प्रवचन शिरोमणि राष्ट्र ज्योति डा.साध्वी श्री सुयशा शशि महाराज,स्वर्ण संघ प्रभाविता, वीर शिरोमणि श्री प्रगति जी महाराज ठाणे -7 स्वर्ण सुधा समता सुयशा जैन साधक केंद्र आर. वी.शांति नगर जैतो में विराजमान हैं। जानी-मानी जैन साध्वी डा.साध्वी श्री सुयशाजी महाराज ने बताया कि
संसार में कोई सबसे बड़ा धर्म है तो वह है मानवता का धर्म। जिन इंसान के अंदर मानवता है वह सब धर्मों में श्रेष्ठ है। मानवता कभी भी किसी कि जाति या धर्म नहीं देखता बल्कि निःस्वार्थ भाव से हर मानव की सेवा करना ही अपना धर्मसमझता है। नागार्जुन प्राचीन समय में एक महान रसायनशास्त्री हुए हैं।उन्होंने ने दिन-रात काम कर के कईअसाध्य रोगों की दवा बनाई। काम इतना बढ़ गया कि उन्हें अब एकसहायक की आवश्यकता महसूस हुई। उन्होंने राजा से विनती की किकाम बढ़ जाने के कारन अब उन्हें एक सहायक की आवश्यकता है। राजा ने उन्हें कहा कि अगली सुबहवह दो नौजवानों को भेज देंगे।उनमे से जो ज्यादा योग्य हो उसे वे अपना सहायक बना लें। अगली सुबह नागार्जुन के पास दो नौजवान आये। दोनों ने बराबर ही शिक्षा प्राप्त की हुई थी। दोनों की योग्यता भी एक जैसी ही थी। लेकिन नागार्जुन को तो बस एक ही सहायक चाहिए था। यह देख नागार्जुन सोच में पड़ गए कि वे किसे अपना सहायक बनायें और किसे नहीं। कुछ देर सोचकर उन्होंने दोनों को एक पदार्थ दिया और कहाये कौन सा पदार्थ है इस बारे में आपको खुद ही जानकरी प्राप्त करनी है और एक रसायन बना कर लाना है। रसायन देखने के बाद मैं यह निर्णय लूँगा कि कौन मेरा साहयक बनेगा।” दोनों नौजवान नागार्जुन को नमस्कार करने के बाद चलने ही वाले थे कि नागार्जुन ने कहा,”जातेसमय राजमार्ग से होते हुए जाना।”नागार्जुन ने ऐसा क्यों कहायह तो दोनों को नहीं पता लगा। फिर भी दोनों चले गए।कुछ दिन बीते, दोनों फिर एकसाथ नागार्जुन के पास पहुंचे। राजा भी नागार्जुन के साथ ही थे। उननौजवानों में से एक उत्साहित और प्रसन्न नजर आ रहा था वहीं दूसराउदास था। नागार्जुन ने जब रसायन दिखने को कहा तो पहले नौजवानने अपना रसायन दिखाया। उसके गुण-दोष बताये। नागार्जुन उसनौजवान से प्रभावित हुए। सब कुछ पूछ लेने के बाद नागार्जुन ने दुसरेनौजवान से अपना रसायन दिखनेको कहा। इस पर उस नौजवान ने बताया कि वह रसायन तैयार नहींकर सका। नागार्जुन ने जब कारन पूछा तो उसने बताया,आपकेकहे,अनुसार मैं राजमार्ग से जा रहा था। वहां पर मैने एक बीमार व्यक्ति को देखा।जिसकी हालत बहुत ख़राब थी। कोई भी उस व्यक्ति की सहायता नहीं कर रहा था। मुझे उस व्यक्ति पर तरस आ गया। फिर मैं उसे अपने साथ ले गया। उसकी देखभाल की। ये सब करते हुए मुझे इस पदार्थ से रसायन बनाने का समय ही नहीं मिला।”ये सब सुनने के बाद नागार्जुन ने कहा, “ठीक है कल से तुम मेरे साथ काम करोगे। मैं तुम्हें अपना सहायक नियुक्त करता हूँ।”यह सुन राजा तुरंत बोले,”लेकिन नागार्जुन इस नौजवान ने तो रसायन बनाया ही नहीं। तो फिर तुम इसे अपना सहायक क्यों नियुक्त कर रहे हो।”इस पर नागार्जुन ने उतर दिया हे हो।”इस पर नागार्जुन ने उत्तर दिया, महाराज मुझे पहले से इसबात का बोध था कि राजमार्ग पर एक बीमार व्यक्ति है।इसीलिए मैंनेदोनों को राजमार्ग से होकर जाने के लिए कहा था। पहले नौजवानने उस पर ध्यान नहीं दिया जबकि दूसरे नौजवान ने निःस्वार्थ भाव से उसकी सेवा की और मानवता धर्मनिभाया। ऐसे रसायन का क्या लाभजो किसी के प्राण न बचा सके। चिकित्सा करने के लिए मानव बनना बहुत आवश्यक है। जिस व्यक्तिमें मानवता नहीं है वह किसी की चिकित्सा कैसे करेगा? इसीलिए मैंनेदूसरे नौजवान को अपना सहायकनियुक्त किया।”राजा नागार्जुन काउत्तर सुनकर और उनकी सोच देखकर बहुत प्रसन्न हुए।