दुनियावी नशा छोड़, वीर हनुमान जी की तरह करें राम नाम का नशा : महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि
रघुनंदन पराशर, डेमोक्रेटिक फ्रंट, जैतो – 23 दिसम्बर :
रोज एनक्लेव स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में आयोजित दिव्य श्री राम कथा एवं आध्यात्मिक प्रवचन कार्यक्रम के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए देवभूमि हरिद्वार के अनंत श्री विभूषित 1008 महामंडलेश्वर स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज ने वीर बजरंग बली की महिमा का बखान करते हुए कहा कि जो भक्त श्री सुंदर कांड पाठ करता है, उस भक्त पर वीर बजरंग बली की कृपा सदैव बनी रहती है। इसलिए जो भक्त वीर बजरंग बली की कृपा चाहता है, वो कुछ समय निकालकर सुंदर कांड पाठ अवश्य पढ़े या श्रवण करे और सुंदर कांड को समझने की कोशिश करे और इससे जीवन में प्रेरणा ले।
श्री राम नाम की महिमा सुनाते हुए स्वामी श्री कमलानंद जी महाराज ने कहा कि श्री राम नाम की महिमा अपरंपार है। जो भक्त सच्चे मन से महज श्री राम नाम जपता है उसके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। श्री राम जी की भक्ति करने वाले भक्त पर वीर बजरंग बली की कृपा हमेशा बनी रहती है।स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि श्री हनुमंत लाल जी को सिर्फ श्री राम नाम का ही नशा था। मनुष्य को भी अगर कोई नशा करना है तो दुनियावी नशों का त्याग कर सिर्फ राम नाम का नशा करे। अगर किसी ने वीर बजरंग बली से कोई काम निकलवाना है तो उनके आराध्य प्रभु श्री राम चंद्र जी की भक्ति करो, बजरंग बली अतिशीघ्र प्रसन्न होकर काम संपन्न करेंगे। स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज ने कहा कि शत्रु, रोग, अग्नि, सर्प और भगवान इनको कभी भी छोटा न मानें। श्री राम कथा पर चर्चा करते हुए स्वामी जी ने कहा कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम ने खर दूषण का संहार किया। स्वामी जी महाराज ने खर दूषण के बारे में बताया कि पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेंद्रियां, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार और इनके साथ लगे हुए भिन्न-भिन्न प्रकार के जो हजारों विकार हैं वे ही खर दूषण की 14,000 की सेना हैं। यह सेना ही हम सब के पीछे लगी हुई है। हर घड़ी हमारा संहार करने के लिए तत्पर रहती है। मगर यदि हम परमात्मा के आश्रय से हैं तो परमात्मा इनका संहार अवश्य करेंगे।
महाराज जी ने बताया कि वनवास काल में भगवान श्रीराम जी की 2 पक्षियों से भेंट होती है। एक जयंत। दूसरा जटायु। दोनों के कार्य और स्वभाव में भारी अंतर है। जयंत जानकी जी के सम्मान पर चोट करता है, तो उसको प्रभु की चोट खानी पड़ती है। जटायु जानकी जी के सम्मान की रक्षा में चोट खाते खाते प्रभु की याद में निरंतर प्रभु का स्मरण कर रहे हैं। तो प्रभु की गोद पाते हैं। प्रभु जटायु को अपने गोद में लेकर अपनी जटा से उसके शरीर की धूल झाड़ते हैं। महाराज ने बताया कि संस्कृत में पंख को पक्ष कहा जाता है। भक्ति की देवी सीता के लिए जटायु ने अपने सभी पक्ष छोड़ दिए, एक प्रकार से निष्पक्ष हो गए। प्रभु का स्वभाव है जो भक्ति के लिए सभी पक्ष छोड़ देते हैं उसको भगवान पूरी तरह अपने पक्ष में करते हैं। जीव जब तक परमात्मा से दूरी बनाए रखता है तब तक दु :खी और बेहाल रहता है। उसका हर मार्ग कांटों से भरा रहता है। जब जीव प्रभु के नजदीक जाता है तो प्रभु उसके मार्ग को निःस्कंटक बना देते हैं। महाराज ने बताया कि भगवान नहीं आए तो शबरी माता ने रूंधे कंठ से प्रभु से प्रार्थना की कि प्रभु मेरी अवस्था ढल रही है, मुझे अपनी मृत्यु की चिंता नहीं है, पर मुझे मेरे गुरुदेव के वचन खाली न जाएं इसका भारी दुख है। जब बारम्बार शबरी माता ने प्रभु से प्रार्थना की तो लक्ष्मण को संग लेकर भगवान श्री राम शबरी की कुटिया में पधारते हैं। शबरी का प्यार इतना अधिक है कि प्रभु को आसन देना ही भूल गई, प्रभु भूमि पर ही बैठ गए। प्रभु ने शबरी के फल बड़े प्रेम से खाए। पदार्थ नहीं प्रभु केवल प्रेम के भूखे हैं। भगवान ने शबरी को जब देखा ऐसा एहसास हुआ जैसे वो मां कौशल्या जी के पास बैठे हैं। शबरी में भगवान अपनी मां कौशल्या के दर्शन कर रहे हैं।फरीदकोट स्थित श्री महामृत्युंजय महादेव मंदिर में श्री राम कथा करते हुए स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी महाराज एवं उपस्थित श्रद्धालु।