नेताजी को 5 महीने और ढोह लें यानि अपनी पीठ पर लादे रहें
विधायक पसंद नहीं,आपकी बनती नहीं है, आपका काम नहीं कर रहे,आपसे बुरा बर्ताव कर रहे हैं,आपकी बात को तवज्जो नहीं दे रहे, आपसे मिलने नहीं आते,आपकी नजरों में सबसे बुरे हो गए हैं,तो अब समझदारी से काम करें।
करणीदानसिंहराजपूत, डेमोक्रेटिकफ्रंट, सूरतगढ़ – 08 जुलाई :
साढे 4 साल नेताजी को सिर पर बिठाया, नेताजी को ढोया तो तो 5 महीने और ढोह लें।
उनकी बातों का बुरा लगता है तो उनसे मिलना कोई जरूरी नहीं। थोड़ा काम आपका है तो अब नेताजी के पास जाना भी व्यर्थ है अब कोई काम करवा भी नहीं सकते, तब उनके पास चक्कर लगाने के बजाय यह सोचे कि एक-एक दिन गुजार कर चुनाव तक पहुंचना है।
* नेताजी की कड़वी बात मीठी हो नहीं सकती सब अब 5 महीने के लिए उनसे बातचीत क्यों की जाए? बंद करें बातचीत।
नेताजी को आप अच्छी तरह से जानते हैं कि वह सुधर नहीं सकते। आपको मालूम था कि नेताजी का स्वभाव कैसा है? मीठा पन उनके पास भी नहीं है फिर भी आपने वोट दिया! नेता जी को जिताया। नेताजी के साथ गुलाल खेली और नेता जी आपके साथ गुलाल से तो नहीं रेत से खेलते रहे हैं। नेता जी जो रेत डाल रहे हैं तो उनसे बहस करना भी बेकार है। आप पर रेत गिर गई है तो बहस करने के बजाए अच्छा है कि घर जाकर के नहा लें।
नेताजी को 5 महीने और ढोह लें। पांच महीने बाद तो स्थिति यह हो जाएगी कि नेता जी से कोई बात नहीं करेगा, लेकिन यह स्थिति आज से ही पैदा कर ली जाए तो बुराई नहीं है।
* नेता जी आपके पास आ कर के बैठे,आपसे बात करना चाहें,तब भी आप बात नहीं करें और उठकर कहीं दूसरी जगह बैठ जाएं। इसके अलावा और कोई चारा नहीं है।
* जब कभी सामाजिक कार्यों में धन संग्रह की आवश्यकता हुई। चंदा इकट्ठा किया गया। नेताजी ने तो एक रूपया नहीं दिया तो फिर उनको नेता मानते क्यों हैं?
नेता जी के आने पर नमस्कार करने की कहां जरूरत है? अपनी कुर्सी छोड़ करके उनको बिठाने की कहां जरूरत है? जब उन्होंने आपको नहीं जाना। जब उन्होंने जनता को नहीं जाना। काम पड़ने पर आपको नहीं पहचाना। तब उनके लिए कुर्सी छोड़ करके खड़ा होना बिल्कुल ही जरूरी नहीं है।
* नेताजी के कोठी पर आवास पर निवास पर जाने की आदत है तो उसे बदलने की भी जरूरत है। अच्छा है कि आप अपने आप को सुधार लें। नेता जी की स्थिति तो यह होने वाली है कि वह कमरे में अकेले बैठेंगे। बरामदे में अकेले बैठेंगे। अभी भी पावर नहीं है तब उनके यहां जाना और हाजिरी लगाना भी जरूरी नहीं।
आप कोठी पर जाएं और नेता जी आपसे बात ही नहीं करें तो फिर आपका उनके यहां जाने का भी कोई अर्थ नहीं रहता। किसी को भी सम्मान देना नेताजी की आदत में नहीं। नेताजी कार्यकर्ताओं को कुछ भी नहीं समझ रहे। समझते होते तो बात करते अपने पास बिठाकर चाय पानी का पूछते। मगर उन्होंने तो अपने बराबर आपको बिठाने के लिए कभी कुर्सी चारपाई तक नहीं रखी। नेताजी के सामने या तो खड़े रहो या फिर सामने बिछी हुई दरी पर या पथरने पर बैठो।
नेताजी अपने बराबर बिठाते नहीं। यह उनकी आदत नहीं है। फिर भी जाना है तो नीचे बैठने की आदत डालो।
👍 लेकिन सबसे अच्छा है कि अब 5 महीने के लिए यह कार्य क्यों किया जाए? अब तक बैठ लिए नीचे तो अब आगे से नीचे बैठने की जरूरत नहीं है।
👍 आप मान लें। दिमाग में बिठालें। नेताजी फिर से सत्ता में आने वाले नहीं हैं। फिर से उनकी जीत होने वाली नहीं है। फिर से उनको टिकट मिलने वाली नहीं है। तो फिर आपको नेताजी से अपने संपर्क जितनी जल्दी खत्म कर सकें उससे पहले खत्म कर लेने चाहिए।
नेताजी झोंपड़ी का पट्टा बनाने साथ नहीं थे। जब उजाड़ी गई तब बचाने में नहीं थे। हर काम पैसे दे देकर कराया। नेताजी कभी देश के नाम पर,कभी जाति धर्म के नाम पर अपनी हाजिरी भरवाते रहे और पार्टी का झंडा पकड़वाते रहे। जयकारे लगवाते रहे। लेकिन नेताजी ने दिया क्या? वे ठगते रहे और तुम ठगाते रहे। तुम मूर्ख बनते रहे।
अब तो अक्ल वाला काम करलो।
* और यह पार्टी वार्टी का झंझट भी छोड़ो। पार्टी का क्या करोगे? नेताजी बदलते रहे मालामाल होते रहे और तुम्हें भक्ति का पाठ पढाते रहे।
* वैसे तो संपर्क कभी किसी से खत्म करने नहीं चाहिए, लेकिन जब नेता जी ने आपको कुछ समझा ही नहीं तब संपर्क रख कर भी क्या करेंगे। ०0०