मत्स्य पालन में लाभ कमा मानवेन्द्र सिंह ने गढ़ी सफलता की कहानी

  • खेती के साथ मत्स्य पालन कर किसान उठा सकते है फायदा- जिला मत्स्य अधिकारी रवि बाठला।

नन्द सिंगला, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, रायपुररानी   – 26   जून :

   खेती के साथ-साथ किसान मत्स्य पालन कर लाभ उठा सकते है। इसके लिए सरकार द्वारा विभिन्न स्कीमें चलाई जा रही है और अनुदान भी दिया जा रहा है। अम्बाला जिले के उपमण्ड़ल नारायणगढ़ के गांव भूरेवाला के एक अनुभवी किसान की सफलता की कहानी इस बात का एक उदाहरण है कि कैसे तकनीकी और नवीन खेती के तरीके कृषि अर्थव्यवस्था को बदल सकते है और लोगो के जीवन का उत्थान कर सकते है।

            मानवेन्द्र सिंह के लिए नव विचार और जूनून का एक जरिया था। उन्होने 2018 में मत्स्य पालन और उनके संबंद्ध गतिविधियों में एकीकृत खेती की दुनिया में प्रवेश किया । सरकार द्वारा किसानो को पांरपरिक खेती की नई तकनीको पर चलाने के लिए समझते हुए मानविंद्रर सिंह ने सरकार की ई साइटो से जानकारी प्राप्त की और फिर उन्होने एकीकृत खेती शुरु करने का फैसला किया। जिसमे मत्स्य पालन और सुअर पालन शामिल है। इसे व्यावहारिक रुप से शुरु करने के लिए मानविंद्रर सिंह ने जिला मत्स्य अधिकारी अम्बाला से सम्पर्क किया। जहां उन्हे बहुमूल्य सलाह और प्रोत्साहन मिला और इसके बाद उन्होने मत्स्य विभाग से प्रशिक्षण प्राप्त किया और पशु पालन विभाग हरियाणा से भी प्रशिक्षण प्राप्त किया।

क्या कहते है जिला मत्स्य अधिकारी रवि बाठला- नम्वबर 2018-19 में मानवेन्द्र सिंह ने खुद  की 2 हैक्टेयर से अधिक की अपनी भूमि पर तालाबों की खुदाई करवा मछली पालन शुरू किया। जिसके लिए उन्हे जिला मत्स्य अधिकारी अम्बाला से तकनीकी सहायता मिली। मानवेन्द्र सिंह पूरी तरह से मछली पालन में लग गये। धीरे-धीरे उन्होने वर्ष 2018-19 मे अपनी भूमि पर क्रमश: 2 कनाल की नर्सरी से तीन तालाब खुदवाए। मत्स्य फार्म के निर्माण जैसे तालाबों की खुदाई, स्टोर रूम बीज दवा उपकरण ऐरियेटर और फीड पर उन्होने कुल 15 लाख रूपये खर्च किए। मत्स्य विभाग से 537200 लाख रूपये की उन्हे वित्तिय सब्सिडी मिली थी। तालाब खुदाई और इनपुट सहायता के लिए। अपनी कमाई बढाने के तरीके की तलाश में मानवेन्द्र सिंह ने मछली बेचना शुरू किया। जिससे उनकी बचत में अतिरिक्त आय हुई। वर्ष 2020 मे उन्होने मत्स्य विभाग हरियाण से 1 लाख मछली बीज प्राप्त किया और नर्सरी में स्टॉक किया और मुख्य तालाबो में इयरलिंग का स्टॅाक किया और उसी वर्ष के अंत में उन्होने अपनी 20 टन मछली की फसल बेची। वह आगामी वर्षों मे मछली उत्पादन की बढा़वा देने के लिए और अधिक तालाबों को विकसित करने की योजना बना रहे है। 

                    यह  मत्स्य विभाग के सहयोग सवा तकनीकी सहायता और प्रेरणा के बिना संभव नही हो सकता था। शुरुआत में वे कुछ पांरपरिक तरीको को छोडक़र मछली पालन के उपकरणों और तकनीकों के बारे मे जानते नही थे। मत्स्य विभाग ने भी उनकी मदद की। उन्होंने कहा कि खेती के साथ-साथ मत्स्य पालन कर किसान लाभ कमा सकते है।

एक बडा व्यवसाय:-  बाजारों में ताजी मछली की अत्यधिक मांग है। इसलिए उसके लिए विपणन कोई समस्या नहीं है। 

मानवेन्द्र सिंह अधिक संख्या में मछली पालन तालाबों को विकसित करने की योजना बना रहे है। क्योंकि अन्य कृषि पद्धतियों में लाभ तुलनात्मक रूप से अधिक है।

मछली पालन गतिविधियॉ:- मछली की किस्में कतला, रोहु, मृगल, ग्रास कार्प और कॉमन कॉर्प आदि है। मछली के बायेमास का 2-3: प्रतिदिन फीड डाला जाता है। बिना तेल वाले चावल की भूसी, खल, सरसों की खल के साथ-साथ पेलेट फीड विधि अपनाई जाती है। बेहतर पाचन के लिए मछली आंत के जीवों में सुधार के लिए प्रो बायोटिक्स भी मिलाये जाते है। मछली पालन से उनकी पिछले साल की कमाई 20 लाख थी जबकि शुद्ध लाभ लगभग 12 लाख था जो कि एक बेहतर उपज है। यह अनुमान लगाया गया है कि समग्र मछली पालन अभ्यास से किसान लाभंिवत होते है।  

एक सामुदायिक रोल मॉडल:- हाल के वर्षों में मानवेन्द्र सिंह और उनके परिवार में एक उल्लेेखनीय बदलाव आया है जो उनके गांव और आस-पास के क्षेत्रो में रोल मॉडल के रुप में उभर रहे है। ग्रामीणों को मछली किसान बनाने के लिए प्रोत्साहित भी वे कर रहे है।