अनुसंधानकर्ता को सीखने की स्थिति में रहना जरूरी : डाॅ मीनू जैन
सुशील पंडित, डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, यमुनानगर – 04 मई :
डीएवी गल्र्स काॅलेज के सभी टीचर्स के लिए रिसर्च एंड डवलेपमेंट सेल की ओर से शोधपत्र कैसे लिखें विषय पर एक्सटेंशन लेक्चर का आयोजन किया गया। जिसमें मानवाधिकार विभाग के प्राध्यापक डाॅ कृष्ण कुमार मुख्य वक्ता रहे। काॅलेज प्रिंसिपल डाॅ मीनू जैन व रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेल कनवीनर डाॅ अनीता मौदगिल ने संयुक्त रूप से कार्यक्रम की अध्यक्षता की।
डाॅ कृष्ण कुमार ने कहा कि आज के आधुनिक युग में अनुसंधान का महत्व दिन-प्रतिदिन बढ रहा है। इसलिए प्राध्यापकों की यह अकादमी व नैतिक जिम्मेदारी है कि वे सामाजिक समस्याओं का पता लगाकर उनके बारे में शोध पत्र लिखें। शोध पत्र के द्वारा ही सामाजिक समस्याओं को अकादमीक से आमजन तक पहुंचाया जा सकता है। ताकि लोग जागरूक हो सकें। शोधपत्र लिखना एक कला है,जिसके माध्यम से अनुसंधानकर्ता पाठक को पढने के लिए प्रेरित करता है, ताकि वह समस्याओं के प्रति जागरूक हो सकें। एक अच्छे शोधपत्र में उसका शीर्षक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। अगर शीर्षक पाठक के अंदर उत्सुकता को जगाने में कामयाब हो जाता है, तो वह शोधपत्र सफल माना जाता है। इसके साथ-साथ एक शोधत्र की शुरूआत कुछ प्रश्नों से होती है, फिर वह उन प्रश्नों का उत्तर देते हुए पाठक की जिज्ञासा को शांत करता है।
अनुसंधानकर्ता को हमेशा अपनी व्यक्तिगत मान्यताओं को अपने शोध में शामिल नहीं करना चाहिए। अनावश्यक तथ्यों और मान्यताओं से बचकर अपने अनुसंधान को भटकाव से बचाना चाहिए। उन्होंने बताया कि एक अनुसंधानकर्ता किसी भी पुस्तक को पूरी पढे बिना ही उसके लेखक के विचारों के बारे में धारणा बना लेता है। यह धारणा उसके अनुसंधान को सही दिशा मे ंना ले जाकर एक अंधकार में ले जाती है, जहां पर अनुसंधानकर्ता यह भूल जाता है कि उसने अपने शोधपत्र में किस प्रश्न का उत्तर देना है।
डाॅ मीनू जैन ने कहा कि अनुसंधानकर्ता को हमेशा सीखने की स्थिति में होना चाहिए। जब भी वह कहीं से कोई जानकारी लेता है, तो उसके स्त्रोत के बारे मे ंपता जरूर करें। जिससे शोध की विश्वसनीयता बनी रहे। आज के समय में जानकारी के साथ-साथ अफवाहों की भरमार है। अफवाहों के आधार पर किया गया शोध समाज के लिए खतरा है। उन्होंने स्टाफ सदस्यों से आह्वान किया वे काॅलेज द्वारा प्रकाशित दोनों रिसर्च जर्नल में अपना सहयोग करें।