उत्तर प्रदेश में चुनावों को ध्यान में रखते हुए बहुत योजनाबद्ध तरीके से बसाये जा रहे घुसपैठिए और रोहंगिया

गाजियाबद में हुई गिरफ्तारी और खुलासे के बाद सुरक्षा एजेंसियों की चिंता इस वजह से बढ़ गई है क्योंकि एटीएस ने इसी साल 6 जनवरी को संत कबीर नगर जिले के समर्थन गांव में बसे रोहिंग्या अजीजुल्लाह को गिरफ्तार किया था। जिसके बाद 28 फरवरी को अलीगढ़ के कमेला रोड पर रहे मोहम्मद फारुख और हसन को पकड़ा था। फिर फारुख के भाई शाहिद को एक मार्च को उन्नाव से दबोचा गया। इसके साथ ही साथ अन्य तार जोड़ते हुए शाहिद के बहनोई जुबेर के बारे में भी जानकारी मिली, लेकिन वह एटीएस के हाथ नहीं लगा। शाहिद के पास से 5 लाख रुपये के साथ भारतीय नागरिकता से जुड़े कई दस्तावेज मिले थे, जो फर्जी तरीके से बनाए गए थे। इन सब से पूछताछ में बांग्लादेशी रिश्तेदारों की बात सामने निकल कर आई थी और बताया गया था यहां पर वो अपने रिश्तेदारों की मदद से रहने आए थे। बाद में इनके सहारे हजारों रोहिंग्या यहां आ आ कर बस गए। सच बात तो यह है की कुछ राजनाइटिक दल भी इनकी मदद कर रहे हैं, सनद रहे की दिल्ली में 5.2 एकड़ मैं इनकी एक कॉलोनी बसा दी गयी है। इनकी दूसरे प्रदेशों में जाली दस्तावेज़ों के सहारे अपनी चुनावी नैया पार करवाने की कवायद है जो राष्ट्र के लिए बहुत ही घातक है। सूत्रों की मानें तो अभी कुछ समय पहले हुए बंगाल चुनावों को इसका सफल प्रयोग भी कहा जा रहा हा।

लखनऊ/चंडीगढ़:

उत्तर प्रदेश में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। उससे पहले रोहिंग्या मुसलमानों को राज्य में बसाने को लेकर एक बड़ी साजिश का पर्दाफाश हुआ है। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सोची-समझी साजिश के तहत इन्हें बसाया जा रहा है। इनके फर्जी आधार कार्ड, वोटर कार्ड सहित अन्य दस्तावेज तैयार करवाए जा रहे हैं ताकि वे वोट डाल सकें। इन्हें आर्थिक मदद भी मुहैया कराई जा रही।

प्रदेश की एटीएस ने पिछले सप्ताह गाजियाबाद में रहने वाले नूर आलम और आमिर हुसैन नाम के दो रोहिंग्या को जाली कागजात के साथ गिरफ्तार किया था। इसके बाद दोनों को पाँच दिन की रिमांड पर लखनऊ भेजा गया। पूछताछ के दौरान दोनों ने कई हैरान कर देने वाले खुलासे किए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, एजेंसियों को पता चला है कि दिल्ली के खजूरी खास इलाके के एक वेंडर ने रोहिंग्याओं को उत्तर प्रदेश में बसाया था।

यूपी एडीजी (लॉ एंड ऑर्डर) प्रशांत कुमार ने खुलासा किया है कि रोहिंग्या मुस्लिम फर्जी राशन कार्ड, पैन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड के साथ प्रदेश के विभिन्न स्थानों में बसने लगे हैं। आज तक की रिपोर्ट में कहा गया है कि इन रोहिंग्याओं को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके लिए उन्हें आर्थिक मदद भी दी जा रही है।

आईपीएस अधिकारी ने बताया है कि रोहिंग्या मुस्लिम प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्रों में बस गए हैं। आधार कार्ड और वोटर कार्ड समेत दूसरे पहचान प्रमाण-पत्र होने के कारण उनकी पहचान कर पाना काफी मुश्किल काम है।

नूर आलम और हुसैन की गिरफ्तारी का ऑपरेशन चलाने वाले प्रदेश एटीएस के आईजी जीके गोस्वामी ने बताया है कि आरोपितों के पास से 70,000 रुपए नकद, पैन, आधार और यूएनएचसीआर कार्ड मिला है। जाँच एजेंसी को पता चला है कि ये दोनों अलग-अलग माध्यम से रोहिंग्या मुस्लिमों को भारत में घुसाने के रैकेट में भी शामिल हैं।

एक राष्ट्रिय दैनिक को दिए एक स्टेटमेंट में आईजी ने बताया, “शुरुआती पूछताछ में पता चला कि नूर आलम और आमिर हुसैन रोहिंग्या को भारत लाने का काम कर रहे थे। यहाँ उन्हें नौकरी दिलाने और दस्तावेज बनवाने में मदद करने के बहाने उनसे पैसे वसूल करते थे। रोहिंग्याओं को बांग्लादेश के रास्ते अवैध तरीके से भारत लाया जा रहा था।”

2021 में पकड़े गए रोहिंग्या

इसी साल जनवरी (2021) के महीने में संत कबीर नगर में गिरफ्तार किए अजीज उल हक, गाजियाबाद से गिरफ्तार नूर आलम का जीजा था। अजीज फर्जी दस्तावेजों के सहारे बीते 20 साल से भारत में रह रहा था। वहीं 28 फरवरी 2021 को मोहम्मद फारूक और हसन को अलीगढ़ से गिरफ्तार करने के बाद फारूक के भाई को भी 1 मार्च को उन्नाव से गिरफ्तार किया गया था। शाहिद को फर्जी इंडियन आईडेंटिटी डॉक्युमेंट्स और 5 लाख रुपए के साथ पकड़ा गया था।

एटीएस की इस पूछताछ में जिस बात का खुलासा हुआ है वो ये है कि अपने सगे संबंधियों की सहायता से रोहिंग्या मुस्लिम पूरे प्रदेश में बस चुके हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक ज्यादातर रोहिंग्या अलीगढ़, आगरा और उन्नाव के बूचड़खानों में काम करते हैं।

पीएफआई के नेता दे रहे शरण

ए हिन्दी दैनिक की रिपोर्ट के मुताबिक, विधानसभा चुनाव से पहले बांग्लादेशी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं ने यूपी में बसना शुरू कर दिया है। प्रतिबंधित सिमी समर्थित पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) के नेता इन घुसपैठियों को संरक्षण दे रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार बंग्लादेशी घुसपैठियों को स्थानीय भाषा आती है। लिहाजा वे शहरी इलाकों में ठिकाना बना रहे हैं। वहीं उनकी मदद से रोहिंग्या यूपी के ग्रामीण इलाकों में बसाए जा रहे हैं।