हिन्दू आस्थाओं पर भारी ‘कोरोना’

दनिश सद्दीकी हो या रॉयटर्स, यह सब वही दिखा रहेहैं जो राष्ट्रीय अथवा प्रादेशिक मीडिया दिखा रहा है। हम एक ऐसे युग में हैं जहां समाचार अथवा जानकारी बिना छाने(filter) हुए आप तक पहुँचती है, आज यदि हम मीडिया खबरों को देखें सुनें या पढ़ें तो राजनेता तक भ्रांतियाँ फैलाते नज़र आते हैं। ‘शमशान में लकड़ियों की कमी’, ‘अंतिम दाह संस्कार के पहले प्रशासनिक अनुमति लेनी होगी’ ‘शमशान घाटों पर waiting शुरू’‘अंतिम संस्कार करवाने वाले पंडितों ने भी बनाई सुरक्षित दूरी’। यह सब पढ़ कर ऐसा लग रहा है मानो कोरोना केवल हिन्दू/सनातन धर्म के अनुयायियों अर्थात केवल हिंदुओं पर ही आक्रमण कर रहा है और देश में मात्र हिन्दू ही इस संक्रामण से मर रहे हैं। और तो और हिन्दू त्योहारों पर ही सरकारों की गाज गिरी है। पंजाबा में कैप्टन सरकार ने रामनवमी पर कर्फ़्यू लगा दिया था।

अब तक किसी भी दूसरे धर्म में इस संक्रामण से हो रही मौतों आ उल्लेख नहीं मिलता। कहीं भी कब्रिस्तानों में कम हो रही जगह का ज़िक्र हो रहा है, रमजान की भीड़ पर कहीं पाबंदी नहीं है। पंजाब ही में ही नहीं कई जगहों पर तो मस्जिदों में कोरोना गाइड लाइने का पालन करवाने गए पुलिस कर्मियों को पीट पीट कर अधमरा कर दिया गया। ईद मिलन समारोह की तो बात दूर की है यहाँ तो जुम्मे की नमाज़ अदा करते लोग भी कोरोना से बचे हुए जान पड़ते हैं। क्या कैप्टन अपने राज्य में ईद पर भी कर्फ़्यू लगवाने की ज़ुर्रत दिखा पाएंगे।

मज़ेदार बात यह है की धर्मभीरु हिन्दू जब सदियों/पीढ़ियों से चले आरहे परंपरागत अर्ध कुम्भ का पुनीत स्नान कोरोना संक्रामण के दिनों में सरकारी आदेशों अथवा जारी गाइड लाइनस का पालन कराते हुए करते हैं तो कोरोना संक्रामण फैलता है लेकिन वहीं दूसरी ओर सरकार के विरोध में एकट्ठे हुए सहस्त्रों किसान कोरोना संक्रमण से पूर्णतया सुरक्षित हैं।

सारीका तिवारी, चंडीगढ़:

दुःख और विपत्ति की इस घड़ी में जलती चिताओं की फोटो शेयर करने के पीछे क्या उद्देश्य रहा होगा, आप समझ सकते हैं। वैसे दानिश सिद्दीकी का हिन्दू-विरोधी इतिहास ही रहा है। उन्होंने हरिद्वार में लगे उस कुम्भ मेले को लेकर भी प्रोपेगंडा फैलाया था, जहाँ नेगेटिव कोरोना रिपोर्ट व दिशानिर्देशों का पालन करने वाले ही लोग थे।

किसी भी त्रासदी के वक्त लोगों का पहला कर्तव्य क्या होना चाहिए? त्रासदी में जानमाल की क्षति की तस्वीरें वायरल करके पब्लिसिटी बटोरना या फिर लोगों में आत्मविश्वास जगाना कि वो इससे बाहर निकलेंगे? आज हम आपको अंतरराष्ट्रीय समाचार एजेंसी Reuters के भारत में चीफ फोटोग्राफर दानिश सिद्दीकी के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्हें उसकी तस्वीरों के लिए ‘पुलित्जर प्राइस’ से भी नवाजा जा चुका है।

हिन्दू लाशों के जलने की तस्वीरें शेयर कर के दानिश सिद्दीकी ने पूरी दुनिया में भारत की ऐसी छवि बनाने का प्रयास किया है, जैसे कोरोना वायरस संक्रमण के लिए हिन्दू ही जिम्मेदार हों और वही मर रहे हों। उसने नई दिल्ली के एक श्मशान में जलती चिताओं की तस्वीरें शेयर की, जो सोशल मीडिया पर खासा वायरल हो रहा है। Reuters ने भी अपनी वेबसाइट पर इसे जगह दी। कइयों ने इसे सनसनी फैलाने की कोशिश करार दिया है।

दुःख और विपत्ति की इस घड़ी में जलती चिताओं की फोटो शेयर करने के पीछे क्या उद्देश्य रहा होगा, आप समझ सकते हैं। वैसे दानिश सिद्दीकी का हिन्दू-विरोधी इतिहास ही रहा है। उन्होंने हरिद्वार में लगे उस कुम्भ मेले को लेकर भी प्रोपेगंडा फैलाया था, जिसका भारत सरकार के आग्रह के बाद समय पूर्व ही समापन कर दिया गया और जहाँ नेगेटिव कोरोना रिपोर्ट व दिशानिर्देशों का पालन करने वाले ही लोग थे।

Reuters पर दानिश सिद्दीकी की ली हुई कुम्भ की जो तस्वीरें प्रकाशित की गईं उसके हैडिंग में लिखा गया कि ‘कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार के बीच’ कुम्भ का आयोजन हो रहा है। साथ ही साधुओं की तस्वीरों के जरिए नकारात्मकता फैलाने की कोशिश की गई। दिल्ली में हुए हिन्दू-विरोधी दंगों के दौरान भी उन्होंने जो तस्वीर शेयर की थी, उसमें ये दिखाने की कोशिश की गई थी कि बहुत सारे हिन्दू मिल कर एक मुस्लिम को पीट रहे हैं।

अब दानिश सिद्दीकी का दोहरा रवैया देखिए। उन्होंने अप्रैल 12 को कुम्भ की तस्वीरें शेयर की और उसके 9 दिन बाद अप्रैल 21 को ‘किसान आंदोलन’ की। ‘किसान आंदोलन’ की उस तस्वीर में प्रदर्शनकारियों की भारी भीड़ दिख रही थी। पंजाब के बरनाला में हुई इस रैली की तस्वीरों को शेयर करते वक़्त कहीं भी कोरोना वायरस का नाम नहीं लिया गया, जबकि कुम्भ में इससे छोटी और नियमों का पालन करने वाली भीड़ की तस्वीरों के जरिए हिन्दू विरोधी प्रोपेगंडा फैलाया गया।

स्पष्ट है, जहाँ भी मौतें होंगी वहाँ मृतकों का अंतिम संस्कार होगा। इसी दौरान एक पत्रकार की, या सभ्य समाज में जिम्मेदारी निभा रहे किसी भी व्यक्ति की परीक्षा होती है। अब पत्रकार ही गिद्ध बन जाएँ तो क्या कहना। कोरोना के कारण दुनिया भर में दुर्भाग्यपूर्ण मौतें हुई हैं और हो रही हैं, लेकिन इन पत्रकारों को भारत में हिन्दुओं की जलती चिताओं से ही मतलब है। इस दौरान कइयों ने दानिश को ‘नायक’ बता कर उनकी प्रशंसा भी की।

दानिश सिद्दीकी ने लगभग एक हफ्ते में ऐसी 6-7 तस्वीरें क्लिक की हैं, जिन्हें Reuters ने कई मीडिया संस्थानों को ख़बरों में प्रयोग करने के लिए दिया है। कुछ ही दिनों पहले हमने बरखा दत्त को कैमरे और लैपटॉप सहित सभी साजोसामान के साथ ऐसे ही एक श्मशान में देखा था। सभी हिन्दुओं के ही अंतिम संस्कार के स्थल में घूम रहे हैं। एक-एक मौत दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन इसका इस्तेमाल भी ब्रांडिंग और प्रोपेगंडा के लिए हो रहा।

भारत में किसी नेता/सेलेब्रिटी से आक्रोशित होने पर उनके पुतला दहन करने की बात आम रही है। आपको याद होगा जब ग्रेटा थनबर्ग और मीना हैरिस जैसों ने खालिस्तानी टूलकिट के हिसाब से भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप किया तब तब भारत में विरोध प्रदर्शन के रूप में कहीं उनकी तस्वीरें जलाई गईं। उसकी तस्वीर भी दानिश सिद्दीकी ने ही वायरल की थी। खास तौर पर बताया गया था कि ये काम एक हिन्दू संगठन का है।

लेकिन, अगर आप दानिश सिद्दीकी की पूरी टाइमलाइन पर कहीं भी तबलीगी जमात से जुड़ी कोई तस्वीर खोजेंगे तो वो नहीं मिलेगा। पिछले साल जमातियों की वजह से कोरोना पूरे देश में फैला था और उनके द्वारा पथराव से लेकर कोरोना के दिशानिर्देशों के उल्लंघन की एक भी तस्वीर दानिश सिद्दीकी ने नहीं ली, क्योंकि इससे उनका प्रोपेगंडा कमजोर होता। कोरोना त्रासदी का इस्तेमाल भी ऐसे ही किया जा रहा है।

इसका दुष्परिणाम ये हो रहा है कि सोशल मीडिया पर कई पूर्वाग्रही लोग पुरानी त्रासदियों की तस्वीरें या फेक तस्वीरें भी पोस्ट कर के मोदी सरकार को अनाप-शनाप बक रहे हैं। भारत सरकार ने ट्विटर से ऐसी फेक न्यूज से भरी पोस्ट को अपने प्लेटफॉर्म से डिलीट करने का आदेश दिया। इसमें अविनाश दास, आशुतोष मिश्रा, विनोद कापरी और डॉक्टर कफील खान जैसे लोग शामिल थे। जलती हिन्दू चिताओं की तस्वीरों पर ये सारा खेल किया जा रहा है।

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