गुजरात निकाय चुनाव में किसान आंदोलन बेअसर, बीजेपी ने परचम लहराया है। सभी नगर निगम उसके कब्जे में
कल गुजरात से राज्य सभा की दो सीटें भाजपा के हाथों गँवाने के पश्चात आज कॉंग्रेस का निकाय चुनावों में भी सूपड़ा साफ हो गया। सूरत में तो हालत यह रही कि कॉंग्रेस आआपा (आम आदमी पार्टी) से हार कर तीसरे नंबर कि पार्टी बन गयी। पहले पुड्डुचेरी, फिर राज्य सभा और अब गुजरात ए न्याय चुनाव, कॉंग्रेस के सबसे बुरे प्रदर्शनों में से यह एक है। गुजरात पंचायत चुनाव में भाजपा का क्लीन स्वीप होता हुआ दिख रहा है। खबर लिखे जाने तक पार्टी ने राजकोट म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन में 78 सीटों पर विजय हासिल करने (बढ़त/जीत) की स्थित में है। वहीं कॉन्ग्रेस मात्र 2 सीटों पर आगे है। सूरत में 17 सीटें जीत कर AAP दूसरे नंबर की पार्टी बन कर उभरी है, जबकि भाजपा को 51 सीटें मिली हैं। कॉन्ग्रेस वहाँ भी खाता खोलने की बाट ही जोह रही है।
- गुजरात में निकाय चुनाव के नतीजों में बीजेपी ने मारी बाजी
- गुजरात के चुनावी नतीजों से उत्साहित हो राज्य के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने किया ट्वीट कर कहा पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने जीत दिलाई. शाम को अहमदाबाद के खानपुर में विजयोत्सव होगा
- सभी छह नगर निगमों में बड़ी जीत की ओर बढ़ रही है पार्टी
- हार्दिक पटेल के जोरदार अभियान के बावजूद कांग्रेस हारी
- पाटीदार आंदोलन के केंद्र सूरत में कांग्रेस को बड़ा झटका
अहमदाबाद/नयी दिल्ली:
एक महीने के अंदर देश के तीसरे राज्य में निकाय चुनाव के नतीजे आए हैं। पहले हरियाणा, फिर पंजाब और अब गुजरात। किसान आंदोलनों की आंच के बीच हरियाणा और पंजाब में बीजेपी को जनता का गुस्सा झेलना पड़ा। वहीं, अपने गढ़ गुजरात में बीजेपी ने फिर कामयाबी हासिल की है। आइए समझते हैं इस रिजल्ट के क्या हैं मायने…
गुजरात बीजेपी का गढ़ है और रहेगा!
बीजेपी ने जिन छह नगर निगमों में चुनाव हुए थे, उन पर अपनी पकड़ बरकरार रखी है। अहमदाबाद, सूरत, भावनगर, जामनगर, राजकोट और वडोदरा में उसका मेयर तय है। इस चुनाव से सबसे बड़ा झटका कांग्रेस को लगा है। चुनाव के नतीजों से एक बात पत्थर की लकीर की तरह साफ है कि गुजरात बीजेपी का गढ़ है और फिलहाल इस गढ़ में सेंध लगाने वाला दूर-दूर तक कोई दिख नहीं रहा। हालांकि यह चुनाव स्थानीय मुद्दे पर होते हैं। लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के गृहराज्य की वजह से हर चुनाव पर सबकी नजर रहती है। नतीजों से साफ है कि गुजरात में बीजेपी का तिलिस्म तोड़ पाना फिलहाल किसी विपक्षी दल के बूते की बात नहीं है।
हार्दिक फैक्टर बेअसर
पिछले साल जुलाई में हार्दिक पटेल को गुजरात कांग्रेस कमिटी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था। पाटीदार आरक्षण आंदोलन से चर्चित हुए हार्दिक ने पूरे गुजरात में निकाय चुनाव के लिए जमकर प्रचार अभियान चलाया। लेकिन नतीजों में इसका कोई असर नहीं दिख रहा है। अहमदाबाद में हार्दिक ने पूरी ताकत झोंकी। तमाम वॉर्डों में रैलियां भी कीं। इसके बावजूद यहां कांग्रेस को करारी शिकस्त मिल रही है। सूरत जैसे पाटीदार समुदाय के गढ़ में भी कांग्रेस को बड़ा झटका लगा है। यहां भी बीजेपी ने कांग्रेस को बहुत पीछे छोड़ दिया है।
गुजरात में स्थानीय निकाय चुनाव के वोटों की गिनती जारी है। छह बड़े शहरों में नगर निगम चुनाव की भी काउंटिंग हो रही है। यहां कुल 144 वॉर्डों की 576 सीटों के लिए 21 फरवरी को मतदान हुआ था। बीजेपी ने इन सभी नगर निगमों में भारी बढ़त बनाई है। वहीं कांग्रेस को नतीजों से बड़ा झटका लगता दिख रहा है। पार्टी किसी भी नगर निगम में आगे नहीं है। आइए जानते हैं इन सभी नगर निगमों की काउंटिंग का हाल…
नगर निगम- कुल सीटें (आगे/जीते) | बीजेपी | कांग्रेस | अन्य |
अहमदाबाद- 192 (100) | 82 | 16 | 2 |
सूरत- 120 (80) | 56 | 8 | 16 |
वडोदरा- 76 (35) | 27 | 8 | 0 |
राजकोट- 72 (48) | 48 | 0 | 0 |
भावनगर- 52 (27) | 20 | 7 | 0 |
जामनगर- 64 (32) | 23 | 6 | 3 |
कुल सीटें- 576 (322 के रुझान) | 256 | 45 | 21 |
आम आदमी पार्टी की एंट्री
इस चुनाव के नतीजे एक और संदेश दे रहे हैं। अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने सूरत में अच्छा प्रदर्शन किया है। रुझानों और नतीजों के अपडेट पर नजर डालें तो यहां फिलहाल कांग्रेस से मुख्य विपक्षी पार्टी का दर्जा आम आदमी पार्टी ने छीन लिया है। यहां की 79 सीटों के रुझान में से बीजेपी के बाद केजरीवाल की पार्टी दूसरे नंबर पर है। उसके उम्मीदवार 13 सीटों पर आगे चल रहे हैं। राज्य में अगले साल के आखिर तक विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में आम आदमी पार्टी के पास अपने आधार को बढ़ाने के लिए पर्याप्त समय है।
ओवैसी नहीं कर पाए कमाल
गुजरात में इस बार के निकाय चुनाव इसलिए भी अहम थे, क्योंकि असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन ने भी हाथ आजमाया था। हालांकि अहमदाबाद को छोड़कर बाकी जगह ओवैसी की पार्टी को नाकामी हाथ लगी है। इक्का-दुक्का सीटों पर ही एआईएमआईएम के उम्मीदवार बढ़त बनाए हुए हैं। पार्टी को मुस्लिम बहुल इलाकों में अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद थी लेकिन नतीजे कुछ और ही इबारत लिख रहे हैं।
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