घनश्याम तिवारी और मानवेन्द्र सिंह को वापिस लाने में जुटी भाजपा

कहते हैं कि राजनीति में कुछ भी स्थायी नहीं होता है. सबकुछ परिस्थितियों पर निर्भर करता है। ऐसा ही कुछ अब राजस्थान बीजेपी में होने की सुगबुगाहट हो रही है। पिछले दिनों कांग्रेस में करीब 32 दिन तक चले पॉलिटिकल ड्रामे के बाद जिस तरह सरकार और संगठन से बगावत करने वाले पूर्व पीसीसी चीफ सचिन पायलट और उनके गुट की वापसी हुई है, वैसा ही कुछ बीजेपी में भी होने जा रहा है। सूत्रों की मानें तो पूर्व में बीजेपी से छिटके दिग्गजों की पार्टी में वापसी का रोडमैप तैयार किया जा रहा है। इसमें दो नाम बड़े अहम हैं। पहला घनश्याम तिवारी और दूसरा मानवेन्द्र सिंह जसोल

राजस्थान(ब्यूरो):

राजस्थान में पिछले दिनों चले सियासी नाटक में कांग्रेस से बगावत कर वापस लौटे विधायकों को देख अब भाजपा ने भी अपनों को मनाने की तैयारी शुरू कर दी है। ऐसे में पार्टी से बगावत कर चुके नेताओं को वापस बुलाने की कवायद शुरू हो चुकी है। सूत्रों के अनुसार पूर्व में बीजेपी से अलग हुए दिग्गजों की पार्टी में वापसी का रोडमैप बनाया जा रहा है। इसमें घनश्याम तिवारी और मानवेन्द्र सिंह जसोल के नाम सबसे महत्वपूर्ण हैं।

गौरतलब है कि पिछले दिनों कांग्रेस में चले सियासी संग्राम के बाद जिस तरह सरकार और संगठन से बगावत करने वाले पूर्व पीसीसी चीफ सचिन पायलट और उनके गुट की वापसी हुई है, वैसा ही कुछ भाजपा भी करने जा रही है।

भाजपा अब अपने विचार तथा परिवार से कभी जुड़े रहे कद्दावर नेताओं की सुध लेने में जुटी गई है। वो नेता जो कि कभी संघ और भाजपा की अग्रिम पंक्ति में थे, लेकिन अपनी ही पार्टी में दूसरे बड़े नेताओं से मनमुटाव के चलते या तो पार्टी छोड़कर चले गये या फिर दूसरी पार्टी का दामन थाम लिया। सूत्रों की मानें तो वर्तमान मे भाजपा के सक्रिय धड़े के साथ संघ तथा इससे जुड़े पार्टी पदाधिकारी चाहते हैं कि दोनों नेताओं समेत अन्य नेता जो कभी पार्टी में होते थे, उनकी वापसी होनी चाहिए। इन दिग्गजों में घनश्याम तिवारी और मानवेन्द्र सिंह जसोल को सर्वोपरि रखा गया हैं।

तिवारी इसलिए हो गए थे भाजपा से अलग

राजस्थान में भाजपा को स्थापित करने वाले नेताओं में घनश्याम तिवारी भी शुमार रहे हैं। तिवारी लंबे समय तक विधायक रहे हैं और कई बार मंत्री भी रह चुके थे, लेकिन कद्दावर नेता और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे के साथ उनकी नाराजगी थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत हासिल हुआ और वसुंधरा सीएम बनीं, लेकिन घनश्याम तिवारी को मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। सत्ता और संगठन में लगातार उपेक्षित रहे तिवारी ने आखिरकार सड़क से लेकर सदन तक वसुंधरा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

फिर बनाई खुद की पार्टी 

वसुंधरा के साथ नाराजगी के चलते तिवारी ने 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन छोड़ अपनी नई पार्टी ‘भारत वाहिनी’ का ऐलान कर दिया। लेकिन, विधानसभा चुनाव में पार्टी कुछ असर नहीं दिखा पाई। भाजपा के साथ रहकर रिकॉर्ड मतों जीतने से वाले तिवारी खुद की पार्टी के बैनर पर बेहद सीमित मतों में सिमट गये। कभी कांग्रेस के कट्टर विरोधी रहे घनश्याम तिवारी ने राहुल गांधी की मौजुदगी में कांग्रेस का दामन थाम लिया। लेकिन, तब से लेकर अब तक तिवारी कांग्रेस में कभी सक्रिय नजर नहीं आए।

पिता जसवंत सिंह के बाद मानवेन्द्र ने भी छोड़ दी थी पार्टी

इसी तरह मानवेन्द्र सिंह जसोल भी राजस्थान भाजपा में उपेक्षा के चलते पार्टी से अलग हो गए थे। भाजपा के संस्थापकों में शुमार पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के ‘हनुमान’ रहे जसवंत सिंह का पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में टिकट काट दिया तो वह निर्दलीय ही चुनाव मैदान में खड़े हो गए, जिसमें उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। जसवंत सिंह भाजपा में रहते हुए केन्द्र सरकार में रक्षा, विदेश और वित्त मंत्रालय की कमान संभाल चुके थे। जसवंत की बगावत के बाद उनके पुत्र पूर्व सांसद एवं तत्कालीन विधायक मानवेन्द्र सिंह जसोल पार्टी में काफी उपेक्षित रहे। इस उपेक्षा से आहत मानवेन्द्र ने भी 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा का दामन छोड़ दिया और कांग्रेस का हाथ थाम लिया।

दोनों चुनावों में देखना पड़ा हार का मुंह

कांग्रेस का दामन थामने के बाद पार्टी ने उन्हें झालरापाटन से पूर्व सीएम वसुधंरा राजे के सामने चुनाव में उतार दिया। लेकिन मानवेन्द्र वसुंधरा से चुनाव हार गये। बाद में कांग्रेस ने उनको लोकसभा चुनाव में उनकी परंपरागत बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय सीट से मैदान में उतारा, लेकिन वहां भी उनको सफलता नहीं मिली। 

बदले राजनीतिक माहौल को भांपकर की जा रही है तैयारी

प्रदेश बीजेपी के अंदरूनी सियासत में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद जो बदलाव हुआ उसके बाद पार्टी में भी दो धड़े खुलकर सामने आ गए. सूत्रों की मानें तो वर्तमान मे बीजेपी के सक्रिय धड़े के साथ संघ तथा इससे जुड़े पार्टी पदाधिकारी चाहते हैं कि दोनों नेताओं समेत अन्य नेता जो कभी पार्टी में होते थे, उनकी वापसी होनी चाहिए. इसमें बीजेपी के सक्रिय प्रदेश स्तरीय नेताओं से लेकर केन्द्रीय नेताओं की भूमिका अहम बताई जा रही है. इसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि कांग्रेस की घरेलू कलह के कारण कहीं बीच में ही विधानसभा चुनाव की नौबत आ जाये उससे पहले बीजेपी को हर मोर्चे पर अपने आपको मजबूत कर लेना चाहिये. इसकी ही कवायद में पार्टी से छिटके नेताओं की घर वापसी का रोडमैप बनाया जा रहा है.

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