कोरोना : त्रासदी के साथ अवसर भी @ भारत
ऐसा माना जा रहा है कि साल 2020 की शुरुआत ही कोरोना नामक वायरस का मानव पर हमले से हुई और चीन के एक शहर वुहान मे चमगादड़ से यह वायरस इन्सान के शरीर मे आया है यह अत्यंत चिंता एवं खोज का विषय तो है ही पर सवाल चीन की नियत पर भी उठ रहा है कि कंही I विश्व शक्ति बनने की दौड़ मे कभी चीन तो यह नहीं कर रहा है । विश्व शक्ति बनने के इस विनाशकारी खेल मे कई बार अमरीका और पूर्व सोवियत संघ रूस आमने सामने आ चुके थे पर क्या हासिल हुआ यह सर्व विदित है
इस महामारी से भारत भी अछूता नहीं है
पर आशावादी नजरिये से आज के इस लेख क़े माध्यम से मैं आप का ध्यान भारत के लिए यह कोरोना त्रासदी क़े साथ अवसर के तौर पर भी दिलाना चाहूँगा
अगर आप आकड़ो के हिसाब से देखे तो यह प्रतीत होता है की भारत सब से कम प्रभावित होने वाले देशो मे शुमार है, पर साथ ही स्वास्थ्य सेवाओं के मापदंडो मे बहुत ही निम्न स्तर पर है। वही दूसरी और बेहतरीन स्वास्थय सेवाओं के बावजूद यूरोप, अमरीका, ग्रेट ब्रिटेन जैसे विकसित देश इस ला – इलाज बीमारी का सामना करने मे लगभग विफल साबित हो रहे है।
सभी देशो क़े सामने जो सबसे बड़ा सवाल खड़ा हो रहा है वो ये कि आज की दुनिया चीन पर कितनी निर्भर हो गई है, सिर्फ इस लिए कि चीनी सामान सस्ता होता है तो हम खुद क्यों उत्पादन करे? लगभग दुनिया क़े सभी देशो ने अपने संसाधनों को किनारे कर क़े पूरी तरह से अपने उद्योगों और श्रमशक्ति को विराम अवस्था मे डाल दिया है।
परन्तु जब कोविड 19 क़े कारण चीन मे प्रोडक्शन लाइन रुक गई तो सारी दुनिया क़े बाजार संकट मे आ गए और विश्व प्रसिद्ध स्टॉक एक्सचेंज ‘वाल स्ट्रीट’ तक में सन 1929 क़े क्रैश से भी तेज गिरावट दर्ज की गई। ब्रितानी पाउंड 35 साल के निम्न सत्र पर आ गया क्यों कि ब्रिटेन, यूरोप और अमेरिका तथा भारत सहित विकासशील देशो मे बेचे जाने वाली 95 % एंटीबायोटिक दवा चीन उपलब्ध करवाता है। यह तो मात्र एक वस्तु का उदाहरण है ऐसी अनेको वस्तुओ के लिए दुनिया के देश पूर्णतया चीन पर निर्भर हो चुके है।
अब भारत क़े पास मैन्युफैक्चरिंग क्षेत्र मे चीन की जगह लेने का भरपूर अवसर है, दुनिया के देशो के लिए दवाओं से लेकर स्मार्टफोन तक अनेको वस्तुओ की सप्लाई चेन टूट गई है। इस कारण अफोर्डेबल मैन्युफैक्चरिंग क़े लिए चीन का विकल्प ढूंढा जा रहा है, बल्कि जापान जैसे कुछ विकसित देशो ने तो चीन मे कार्यरत अपनी कम्पनियों पलायन कर दूसरे विकासशील देशो मे उद्योग स्थापित करने की सलाह तक दे दी है अब इस अवसर को भांपते हुए भारत ने समझदारी भरे कदम उठाये तो यह मौका उनके हाथ लग सकता है। बस शर्त भारत की राजनैतिक इच्छा शक्ति स्मार्ट अफसरशाही तथा वर्क फोर्स को ज़्यादा सक्ष्म और स्किल्ड हो। साथ साथ अपने हितो को ध्यान मे रख कर विदेशी कम्पनीओ क़े लिए राह और भी आसान बनानी होगी, तभी आप हर हाथ को काम देने क़े सपने को साकार कर सकते हैं। तब तक सामान क्षेत्रीय विकास की नीति बना कर प्रवासी मजदूरों की समस्या से निजात पाई जा सकती है और सही मे मायनो मे जी डी पी और प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया जा सकता है।
गौरतलब है कि भारत के पास सिर्फ मलेरिया से लड़ने की सब से सस्ती एक दवा हाइड्रोक्सी क्लोरोकुनीन है और दुनिया क़े सब मुल्को मे सबसे अधिक भारत मे बनाई जाती है विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO तथा विकसित देशो के डॉक्टर इस दवाई को कोरोना क़े इलाज मे सब से ज़्यादा कारगर बता रहे है
और विश्व शक्ति समझने वाले ये देश आप से इस दवा को लेने क़े लिए मिन्नत कर रहे है और अपने करोडो नागरिको की जिंदगी बचाने के लिए उम्मीद भरी नजरो से आप की तरफ देख रहे है अमरीका जहा आप का दिल से शुक्रिया अदा कर रहा है वही ब्राजील के राष्ट्रपति इस दवा को हनुमान जी की संजीवनी बूटी की संज्ञा दे रहे है तो जरा कल्पना करो आज आप क़े पास वेंटीलेटर मास्क तथा मानव रक्षक दवाओं का भंडार और बनाने की क्षमता और कौशल होता तो आप आज अरबो खरबो का व्यापर कर चुके होते और दुनिया मे आप की साख भी बढ़ती।
इस आपदा से यह भी जगजाहिर हो गया की हमारे देश का स्वास्थ्य तंत्र कितना लचर है और हॉस्पिटलों मे जीवन रक्षक मेडिकल उपकरण जैसे मास्क, वेंटिलेटर्स आदि की कमी की बहुत ही भयावह तस्वीर सामने आई है, हम कितने सजग है और किन किन उपकरणों का अपने देश मे निर्माण करते है और क्या नहीं तथा ऐसी वस्तुओ के लिए हम करोडो डॉलर इम्पोर्ट पर खर्च करते है जो हम अपने कौशल के बल पर देश मे ही निर्माण कर सकते है यह सही वक्त है इन अवसरों को निर्माण मे बदलने का
देश की राज्य सरकारों और केंद्रीय सरकार को साहस जुटाना होगा वस्तुओ क़े निर्माण और अनुसन्धान का उपभोक्तावादी सोच से ऊपर उठ कर निर्माता की सोच बनानी होगी आज यह भी निश्चित हो चुका है की दुनिया को भारत से कौन सी वस्तुए चाहिए। आज विश्व समुदाय हमारी प्रतीक्षा कर रहा है
जैसा की विश्व सतर पर अनुमान लगाया जा रहा है की अगर इस कोरोना बीमारी की उत्पत्ति और प्रसार मे चीन की कुटिल नीयत शामिल है तो विश्व समुदाय अपने लाखो निर्दोष नागरिको की मौतों का बदला जरूर लेगा और परिणाम स्वरूप बहुत ही जबरदस्त आर्थिक प्रतिबंद चीन पर लगाए जा सकते है तब तो भारत की पौ बारह हो सकती है
मेरा अनुमान है की वो समय आ गया है की आप “मेक इन इंडिया” के साथ “मेक बाय इंडिया” का सपना भी साकार कर सकते है उस क़े पीछे एक और सटीक दलील यह है की चीन क़े अलग थलग पड़ने पर सिर्फ भारत क़े पास ही मैनपावर और उद्योगिक इंफ़्रा, निवेश के लिए अनुकूल माहौल मौजूद है जो स्वयं भारत की घरेलू जरुरत और विश्व की वस्तु निर्माण कंपनियों की जरूरतों को पूरा कर सकती है। ऐसी परिस्थितियों के सन्दर्भ मे भगवान श्री कृष्ण ने विश्व प्रसिद्ध गीता उपदेश मे यही बताया था की अवसर सिर्फ अवसर होता है उस क़े साथ कोई किन्तु परन्तु मत करो बल्कि जितना जल्दी हो सके उसका फायदा उठाना चाहिए
भारत मे अपार सम्भावनाओ के मद्दे नजर कुछ क्षेत्रों जैसे कृषि (फल, फूल, मसाले) प्रसंस्करण क्षेत्र, फार्मा क्षेत्र, केमिकल, पेट्रोकेमिकल, आयुर्वेदिक दवा, एक्सपोर्ट, ऑटो पार्ट्स निर्माण, टाइल एवं सेरेमिक उत्पाद, इंटीरियर, हाउस होल्ड गुड्स, डायमंड स्टोन क्राफ्टिंग, वुड एंड प्लास्टिक फर्नीचर गुड्स, मेडिकल औजार जैसे डाइलिसिस मशीन, वेंटिलेटर्स, मॉनिटर और सहायक साजो सामान के स्व देशी निर्माण के लिए क्रन्तिकारी विश्व निर्माता नीति बना कर समयबद्ध और चरणबद्ध तरीके से लागू कर क़े दुनिया क़े सामने मिसाल पेश कर सकते है
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