भारत में 15वीं शताब्दी से लेकर आज तक समय-समय पर धर्मपरिवर्तन का खेल खेला जा रहा है

सारिका तिवारी,
संपादक
डेमोक्रेटिक्फ़्रोंट

बेशक कानून इजाजत नहीं देता कि किसी लालच या दबाव से धर्म रूपांतरण करवाया जाए परंतु अभी भी इस तरह के धर्म परिवर्तन हमारे आसपास करवाई जा रही है भारत में 15वीं शताब्दी से लेकर आज तक समय-समय पर धर्मपरिवर्तन का खेल खेला जा रहा है। भले ही भारत में धर्म परिवर्तन विरोधी कानून बन गया हो लेकिन अभी भी यह सब जारी है, लेकिन नए ढंग में। इन दिनों शहर की पेरीफेरी या सब अर्बन क्षेत्रों में बड़े-बड़े होर्डिंग दिखाई दे रहे हैं जिसमें प्रेयर के नाम पर लोगों को अपने शिविरों में बुलाया जाता है और इस दावे के साथ कि उनकी प्रार्थना मात्र से उनकी समस्याएं लोगों की समस्याएं खत्म हो जाएंगी ।

इन स्थानों पर मिनिस्टरी के नाम से चलाए जा रहे संस्थानों में इविल स्पिरिट जैसे शब्द आम सुनाई देते हैं। ये मिनिस्ट्री मिशनरी से प्रेरित यह मिनिस्ट्री स्पष्ट रूप से स्वतंत्र चर्च चलाती हैं या तो किसी गैर सरकारी संस्थान के माध्यम से कार्यरत हैं। इस दौर में इंटरनेट और सोशल मीडिया इनके प्रचार-प्रसार का माध्यम बना हुआ है कम खर्च और ज्यादा आमदनी। प्रचार प्रसार में सहायक सोशल मीडिया पर पॉजिटिव या इन ऑर्गेनिक कॉमेंट्स मुसीबत में फंसे और भोले भाले कम पढ़े लिखे लोगों को अपनी और आकर्षित करते हैं, और धीरे-धीरे ये लोग मिनिस्टरीज में धन भी जमा करवाते रहते हैं । वेबसाइट्स और कॉल सेन्टर के माध्यम से सब लोग यहाँ सम्पर्क करते हैं और डिजिटल और हाई टेक तरीके से उनकी जानकारी हासिल की जाती है।

प्रभावी व्याख्यान और बुरी आत्माओं की बात करके आमतौर पर लोगों को वर्गलाया जाता है और उनकी संवेदना और मजबूरी का फायदा उठाया जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि यह तो मात्र समस्याओं से निजात दिलाने का प्रलोभन हुआ परिवर्तन जैसी बात कहां है आप सही सोच रहे हैं आमतौर पर इन मिनिस्ट्री इसमें कोई भी धर्म परिवर्तन के लिए नहीं आता और ना ही एक ही बार में किसी समस्या का समाधान हो जाता है।

इन सुनियोजित ढंग से चलने वाली मिनिस्ट्री 2 या 3 महीने तक चर्च की सर्विस में संबंधित व्यक्तियों को बुलाती हैं और एक निश्चित शुल्क भी वसूला जाता है। इन्हीं दो-तीन महीनों में इनकी एक खेप डिटेक्टिव एजेंट की तरह व्यक्ति विशेष कि कार्यकलापों उसके रहन-सहन उसकी जान पहचान के बारे में पता लगाती रहती है और सॉफ्ट टारगेट आईडेंटिफाई करती हैं। सॉफ्ट टारगेट वे लोग है जो या तो आर्थिक तंगी में हैं या अपने समाज से असंतुष्ट उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए प्रेरित किया जाता है । दूसरी श्रेणी में उन को जोड़ा जाता है जो किसी ना किसी तरह भावनात्मक तौर पर उतने दृढ़ नहीं होते और बातों को मानकर अपने जीवन को वैसा बनाने का प्रयत्न करते हैं और नव आगंतुकों कि कॉन्सेल्लिंग के लिए तैयार किए जाते हैं । हमने ऐसी ही दो चर्च का दौरा किया जहां हमने पाया के हमें दृढ़ निश्चय देखते ही उन्होंने पहली बार तो हमसे बातचीत करने वाली महिला की जगह दूसरी महिला जो कि थोड़ी और प्रभावी व्यक्तित्व की महिला को भेजा। वह हमसे बात करती रही लेकिन हम पर प्रभाव ना पड़ते देख उन्होंने हमें पूरी तरह से टालने की कोशिश की और कहा कि अगर हमें उनके किसी वरिष्ठ अधिकारी से बात करनी है तो हमें लगातार सर्विस में आना होगा और होने वाले प्रेयर मीटिंग में सेवा करनी होगी, उसके बाद हमारे और चरित्र को देखने के बाद ही निर्णय लिया जाएगा कि हमारी मुलाकात मिनिस्टरी के मुखिया से हो सकती है कि नहीं।

इन मिनिस्ट्री द्वारा धर्म परिवर्तन चोरी छिपे प्रायोजित किया जाता है लेकिन अब सार्वजनिक तौर पर नाम नहीं बदला जाता ।इन मिनिस्ट्री इसमें प्रीचिंग की बकायदा ट्रेनिंग या प्रशिक्षण होता है और बहुत ही सुनियोजित ढंग से लोगों को उनकी कमजोरियों के तले मानसिक तौर पर और ज्यादा दबाकर फिर उबरने में मदद की जाती है जिससे कि व्यक्ति को लगता है कि किसी सुपरनैचुरल शक्ति ने उसका पीछा आत्मा से छुड़ाया है।

ऐसी विभिन्न संस्थाओं द्वारा अपनाए जाने वाले हथकंडों के बारे में जानने के लिए हम जल्द ही मिलेंगे।
क्रमश:

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