वेस्ट प्रबंधन: एरल में प्लास्टिक की सड़कें
आज के दौर में प्लास्टिक की समस्या पर्यावरण के लिए विनाशकारी साबित हो रही है। प्लास्टिक से पशु और जलीय जीवन दोनों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।। सबसे मुश्किल की बात ये है कि प्लास्टिक को इस्तेमाल के बाद काम में लाना काफी मुश्किल होता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, लगभग आठ मिलियन टन प्लास्टिक हमारे महासागरों में सालाना प्रवेश करता है। एक तरफ जहां पूरा देश प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या से जूझ रहा है वहीं केरल बर्बाद प्लास्टिक से सड़क बनाकर इसका सही इस्तेमाल कर रहा है।
केरल ने 9,700 टन प्लास्टिक कचरे से 246 किलोमीटर लंबी सड़क बना डाली है। इसमें प्लास्टिक की बोतलें, डायपर, पॉलीथीन इत्यादि शामिल है। इन सड़कों का निर्माण 2014 में शुरू किए गए राज्य के सुचित्वा मिशन के तहत किया गया। इस योजना का उद्देश्य केरल को एक स्वच्छ और हरित राज्य बनाना है।
इस पहल के बारे में बात करते हुए सुचित्वा मिशन के रेनजिथ अब्राहम ने पत्रकारों से कहा, ‘केरल हमेशा से कचरा प्रबंधन में आगे रहा है। पिछले साल 1 नवंबर को केरल के स्थापना दिवस के दौरान राज्य ने भारत का पहला कचरा मुक्त राज्य बनने का इरादा किया था जिसमें एक वर्ष में केरल को कचरा मुक्त बनाने की शपथ ली गई थी। तब से लेकर अब तक केरल में अपशिष्ट उत्पादन को कम करने के लिए बहुत सारी पहल की गई हैं।’
सबसे पहले केरल में राजगिरी कॉलेज में प्लास्टिक कचरे का उपयोग करके 500 मीटर सड़क पॉलीमराइज्ड किया गया था। प्लास्टिक कचरे में प्लास्टिक की बोतलें, पैकेजिंग सामग्री, कैप, और अन्य फेंक दिए गए आइटम शामिल थे। यह अभियान सफल हुआ तो इसे पूरे राज्य में लागू करने का फैसला किया गया। इसके लिए ग्राम पंचायत अध्यक्ष से लेकर नगर निगम तक को प्रेरित किया गया। पंचायत समिति ने तकनीकी ज्ञान हासिल करने के लिए लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) की सहायता ली।
इस विचार को मंजूरी मिलने के बाद पंचायत ने सड़कों को बनाने के लिए प्लास्टिक का उपयोग शुरू किया। इसके लिए, हर दिन 500 किलोग्राम प्लास्टिक को छीलने की क्षमता वाले एक प्लास्टिक श्रेडर को स्थापित किया गया। कटा हुआ प्लास्टिक कचरा पीडब्ल्यूडी को बेचा जाता है, जो सड़क निर्माण के लिए इसका उपयोग करता है। अभी 800 किलोग्राम प्लास्टिक को 20 रुपये प्रति किलोग्राम पर बेचा गया है।
रेन्जिथ आगे बताते हैं, ‘इसके साथ ही, सरकार ने राज्य में ‘कदम्बश्री’ मूवमेंट भी शुरू किया, जहाँ कर्मचारी हर पखवाड़े घर-घर जाकर गैर-पुनर्नवीनीकरण प्लास्टिक एकत्र करते हैं। राज्य सरकार ने प्लास्टिक श्रेडिंग इंफ्रास्ट्रक्चर में भी निवेश किया है और राज्य में लगभग 418 रिसोर्स रिकवरी फैसिलिटीज का निर्माण किया है ताकि कचरे को अच्छी तरह से अलग किया जा सके और गैर-रिसाइकिल योग्य कचरे को आसानी से इकट्ठा किया जा सके।
राज्य सरकार ने प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए प्रत्येक ब्लॉक/ गांव/ ग्राम पंचायत से महिला सदस्यों को रखने का नियम बनाया है। इन्हें हरित कर्म सेना (ग्रीन वारियर्स) के रूप में जाना जाता है। वे प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने और एकत्र कचरे को अलग करने के लिए डोर-टू-डोर से अभियान चलाते हैं। इस तरह की पहल के साथ प्लास्टिक को प्रभावी ढंग से रीसाइक्लिंग करके प्लास्टिक कचरे से निपटने के लिए केरल देश के अन्य राज्यों के लिए एक उदाहरण साबित हो रहा है।
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