तेलंगाना में अस्तित्व के लिए हारी बाजी लड़ती काँग्रेस
राष्ट्रीय पार्टी राज्य में अपना अस्तित्व बचाने के संकट से जूझ रही है, जहां उसे राज्य के निर्माण का श्रेय लेने का दावा कर अपना भाग्य पलटने की उम्मीद थी। 72000 लेलों पर वोट दे दो, चौकीदार चोर है का नारा भी काम नहीं आया और तो और हैदराबाद में मुस्लिम तुष्टीकरण से भी बात न बनी और आज कॉंग्रेस वहाँ अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।
हैदराबाद: तेलंगाना में कांग्रेस के 12 विधायकों के प्रदेश में सत्तारूढ़ तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) में विलय तथा कांग्रेस के एक और विधायक के भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होने की योजना की घोषणा के बाद राज्य विधानसभा लगभग कांग्रेस मुक्त हो चुकी है.
राष्ट्रीय पार्टी राज्य में अपना अस्तित्व बचाने के संकट से जूझ रही है, जहां उसे राज्य के निर्माण का श्रेय लेने का दावा कर अपना भाग्य पलटने की उम्मीद थी. तेलंगाना में 119 सदस्यों वाली विधानसभा में छह की सदस्य संख्या पर पहुंचने के साथ ही कांग्रेस का मुख्य विपक्षी दल का दर्जा भी खत्म हो गया.
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दूसरी कोशिश भी रही नाकाम
पिछले साल दिसंबर में विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस की राज्य में सत्ता में आने की लगातार दूसरी कोशिश नाकाम रही थी. कांग्रेस ने 2014 में आंध्र प्रदेश को अलग कर तेलंगाना राज्य की स्थापना की थी.
साल 2018 के विधानसभा चुनावों में तेलुगू देशम पार्टी (तेदेपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और तेलंगाना जन शक्ति (तेजश) के साथ गठबंधन कर हिस्सा लिया था, लेकिन सिर्फ 19 सीटें जीत सकी, वहीं टीआरएस ने 88 सीटों पर जीत दर्ज की.
चुनाव के सिर्फ छह महीनों के अंदर कांग्रेस से राज्य विधान मंडल के दोनों सदनों से मुख्य विपक्षी दल का दर्ज भी छिन गया.
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दलबदल ने तोड़ा कांग्रेस का मनोबल
पिछले कार्यकाल में विपक्षी दलों के 25 विधायकों को अपनी पार्टी में शामिल करने वाली टीआरएस ने कांग्रेस विधायकों को अपनाने में बिल्कुल समय नहीं गंवाया. लोकसभा चुनाव से पहले मार्च में शुरू हुए इस दलबदल ने कांग्रेस का मनोबल तोड़ दिया.
किसी करिश्माई नेता की कमी और आंतरिक कलह में फंसी कांग्रेस पूरी तरह अव्यवस्थित हो चुकी थी. हालांकि लोकसभा चुनावों में राज्य में कांग्रेस ने तीन और बीजेपी ने चार सीटें जीतकर टीआरएस के क्लीन स्वीप करने के सपने को तोड़ दिया.
राज्य की कुल 17 सीटों में से टीआरएस नौ सीटें जीतीं, जबकि उसकी सहयोगी मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) अपनी एक मात्र सीट पर कायम रही.
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