संसद कि बदलती तस्वीर

2019 के चुनाव के बाद मोदी सरकार ने स्पीड तेज की तो इस बार संसद के भीतर भी माहौल पूरी तरह बदल गया है. स्पीकर स्वयं हिन्दी भाषा का प्रयोग अरते हैं परंतु सांसदों को भाषा की कोई बाध्यता नहीं है। प्रश्न काल के दौरान औपचारिकताओं के प्रयोग को कम किया गया है

नई दिल्ली: 2019 के चुनाव के बाद मोदी सरकार ने स्पीड तेज की तो इस बार संसद के भीतर भी न सिर्फ माहौल पूरी तरह बदल गया है बल्कि नये लोकसभा अध्यक्ष बन ओम बिरला ने लोकसभा चलाने के कई तौर तरीकों में बदलाव करके विधायी कामकाज निपटाने का एक रिकॉर्ड भी बनाया है.

कैसे बदली लोकसभा की कार्यप्रणाली
लोकसभा की कार्यवाही में पहली बार हिंदी का प्रयोग पूरी तरह शुरू हुआ है यानी बिल पास करने के दौरान पहले य़स और नो का प्रयोग किया जाता था. ओम बिरला ने इसको हां और न के शब्दों में बदल दिया. यानी लोकसभा की कार्यवाही के दौरान अंग्रेजी के ‘यस’ और ‘नो’ की परंपरा पहली बार खत्म की. अब बोलते है ‘हां’ के पक्ष में इतने वोट पड़े और ‘ना’ के पक्ष में इतने, ‘हां’ की जीत हुई. लोकसभा स्पीकर बनने के पहले सप्ताह में स्पीकर ने अंग्रेजी के किसी भी शब्द का इस्तेमाल लोकसभा की कार्यवाही में नहीं किया. इसके साथ ही किसी भी सदस्य को बाध्य भी नहीं किया कि वो हिंदी में ही बोलें. सांसदों को पूरी स्वतंत्रता के साथ किसी भी भाषा में बोलने का मौका दिया. लोकसभा स्पीकर ने समय की बचत के लिए सांसदों से शून्यकाल, प्रश्नकाल में बोलने के पहले चेयर और स्पीकर का धन्यवाद करने के लिए मना कर दिया जिससे समय की बचत हो. 

लोकसभा में प्रश्नकाल की तस्वीर बदली
लोकसभा में प्रश्नकाल की तस्वीर बदल गई है. अमूमन प्रश्नकाल के एक घंटे के टाइम में 11 बजे से 12 बजे तक  20 सवालों की सूची में से औसतन 5 से 6 सवाल ही पूरे हो पाते थे लेकिन अब हर दिन औसतन 10 सवाल तक निपटने लगे है. लोकसभा हर दिन के प्रश्नकाल के लिए 20 सवाल लॉटरी सिस्टम से तय करती है.

इसके लिए स्पीकर ओम बिरला ने सभी सांसदो की सवाल करने के तरीके में बदलाव किया. स्पीकर ने सांसदों को सलाह दी कि अपना सवाल कम समय में सीधा रखे, पूरक प्रश्नों की संख्या में कटौती की और मंत्रियों से भी स्पीकर ने सवाल का जवाब लंबा खीचने के वजाय टू दा प्वाइंट देने को कहा. इसका सीधा असर ये हुआ कि प्रश्नकाल में ज्यादा सांसदों को सवाल पूछने का मौका मिलने लगा.

इस सत्र में लोकसभा के अब तक के इतिहास में पहली बार चुनकर आए सांसदों को सबसे ज्यादा बोलने का मौका मिला है. यही नहीं स्पीकर ने महिला सांसदों को भी लोकसभा में बोलने को प्रोत्साहन दिया और अधिकतर महिला सांसदो को किसी न किसी डिबेट या शून्य काल में मौका दिया गया है.

प्रश्नकाल के साथ ही स्पीकर शून्यकाल में ज्यादा से ज्यादा सांसदो को अपने अपने मुद्दे उठाने का मौका देने लगे है. लिहाजा कई बार अमूमन एक घंटे का शून्यकाल डेढ़ घंटे तक भी हो रहा है. सांसद खुश हैं कि आखिर उन्हें अपने मुद्दे उठाने का मौका तो मिल रहा है. बीते बुधवार को ही स्पीकर ने 84 सांसदो को जीरो आवर में बोलने का मौका दिया जो लोकसभा के इतिहास में अभी तक सबसे ज्यादा है.

लोकसभा स्पीकर ने सदन के भीतर हंगामा करने वालों पर सख्ती दिखाई है. सदन के भीतर पोस्टर, बैनर दिखाने पर रोक लगा दी है. किसी भी सांसद को बैठे-बैठे दूसरे सांसद या मंत्री पर टिप्पणी करने पर सख्त मनाई है. स्पीकर सत्ता पक्ष समेत विपक्ष के कई सांसदो को बैठे-बैठे बोलने के चलते कई बार वार्निंग दे चुके हैं. लिहाजा अब लोकसभा में शोर-शराबा कम हुआ है.

संसद को दोनों सदन इस सत्र में देर रात तक चल रहे है. बहस में ज्यादा से ज्यादा सांसदो को मौका दिया जा रहा है. आलम ये है कि कृषि और ग्रामीण विकास मंत्रालय की अुनदान मांगों पर चर्चा के लिए स्पीकर ने 132 सांसदों को बोलने के मौका दिया और लोकसभा 12 बजे रात तक चली. इसी तरह रेलवे की अनुदान मांगो पर चर्चा का मामला हो या फिर सामान्य बजट पर चर्चा का मामला, 100 से ज्यादा सांसदों को इनमें मौका दिया गया है, चर्चा देर रात तक चली.

एक दिन तो स्पीकर ने बजट पर चर्चा के लिए रात दिन बजे तक समय रखने का मन बना लिया लेकिन रात 12 बजे सदन को रोकना पड़ा, कार्यवाही की तकनीकी दिक्कत के चलते क्योकि रात 12 बजे के बाद नई तारीख लग जाती है. बड़ी बात ये कि देर रात तक चलने वाली इस चर्चा में सांसदों के साथ गृह मंत्री अमित शाह, समेत तमाम मंत्री भी मौजूद रहे. लोकसभा स्पीकर रात्रिभोज कर फिर हाउस चलाने बैठे. इसका असर ये हो रहा है कि संसद में विधायी कामकाज निपटाने की प्रक्रिया में भारी तेजी आई है.

पहली बार है कि किसी भी बिल पर डिबेट और अुनदान मांगो पर चर्चा का जवाब होने के बावजूद सांसदों को क्लेरीफिकेशन मांगने का मौका दिया जा रहा है. ये परंपरा पहले नहीं रही. कभी-कभार जरूर होता रहा. इस बार वित्त मंत्री के बजट पर जवाब देने के बाद भी स्पीकर ने कई सांसदों को बजट पर क्लेरीफिकेशन मांगने का मौका दिया. इसी तरह परिवहन मंत्रालय की अुनदान मांगों पर मंत्री नितिन गडकरी के जवाब के बाद भी 5 सांसदों को क्लेरीफिकेशन मांगने का मौका दिया गया. कहने का मतलब यह है कि सांसदों को ज्यादा से ज्यादा मौका दिया जा रहा है.

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