गठबंधन के लिए ‘बूस्टर डोज’, बीजेपी के लिए चिंता और चिंतन का वक्त


जहां तक बीजेपी का सवाल है, तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह चिंतित होंगे. कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन ने दिखाया है कि लोक सभा चुनाव में वे कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं


2019 लोक सभा चुनाव से पहले कांग्रेस-जनता दल (एस) को जबरदस्त मानसिक फायदा हुआ है. उन्होंने शनिवार को पांच सीटों के उप चुनाव में चार सीटें जीतने में कामयाबी पाई है. हालांकि तीन विधान सभा सीटों पर नतीजे उम्मीद के मुताबिक रहे हैं और बीजेपी ने शिमोगा सीट बरकरार रखने में कामयाबी पाई है. लेकिन बेल्लारी लोक सभा सीट पर करारी हार से बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को चिंता होनी चाहिए.

राज्य बीजेपी अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा के पुत्र बीएस राघवेंद्र शिमोगा सीट से जीते. उन्होंने 57 हजार वोटों से जीत पाई, जो बहुत बड़ा अंतर नहीं है. उन्होंने जेडीएस के उम्मीदवार मधु बंगारप्पा को हराया. शुरुआत में यहां कड़ा संघर्ष नजर आ रहा था. लेकिन दस राउंड के बाद राघवेंद्र ने मुकाबला अपने पक्ष में कर लिया. येदियुरप्पा यहां से 2014 का चुनाव 3.30 लाख वोटों के अंतर से जीते थे. तब कांग्रेस और जेडीएस अलग-अलग चुनाव लड़े थे.

बीजेपी ने उम्मीदवार चुनने में गड़बड़ी की

जेडीएस ने रामनगरम विधानसभा और मांड्या लोक सभा सीटें बरकरार रखीं. वोक्कालिगा में उनकी मजबूत पकड़ है. यहां उन्होंने प्रभावशाली तरीके से जीत दर्ज की. इसकी वजह महज ये नहीं है कि पहली बार कांग्रेस का साथ मिला है. बल्कि यह भी है कि बीजेपी ने उम्मीदवार के चयन को लेकर काफी गड़बड़ियां कीं.

मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी की पत्नी अनिता कुमारस्वामी के लिए तो जीत एक तरह का वॉकओवर रही. बीजेपी के प्रत्याशी एल. चंद्रशेखर एक तरह से चुनाव के समय कांग्रेस से ‘इंपोर्ट’ हुए थे. उन्होंने चुनाव से दो दिन पहले रिटायर होने का ऐलान किया और कांग्रेस में ‘घर वापसी’ कर ली.

इस क्षेत्र में वोटिंग प्रतिशत कम रहा. सिर्फ 54 फीसदी वोट पड़े. अनिता कुमारस्वामी को सवा लाख वोट मिले. विपक्षी उम्मीदवार या यूं कहें कि चंद्रशेखर की गैर मौजूदगी में कमल के फूल को 15 हजार वोट मिले. इसे अलग तरीके से भी देख सकते हैं. पिछली बार बीजेपी को सिर्फ चार हजार वोट मिले थे. इस लिहाज से उनका प्रदर्शन सुधरा है.

मांड्या लोक सभा सीट से जेडीएस के एलआर शिवराम गौड़ा ने 2.89 लाख वोट से जीत दर्ज की. बीजेपी के डॉ. सिद्धलिंगैया को 2.05 लाख वोट मिले, जो क्षेत्र में उनका श्रेष्ठतम प्रदर्शन है.

जामखंडी विधानसभा सीट कांग्रेस के आनंद न्यामगौड़ा के हाथ लगी. उन्हें अपने पिता सिद्दू न्यामगौड़ा की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद चुनाव के लिए उतारा गया था. सहानभूति लहर की वजह से जीत का अंतर भी बढ़ा. वो 39 हजार सीट से बीजेपी के श्रीकांत कुलकर्णी के खिलाफ जीते. कुलकर्णी मई 2018 में हुए चुनाव में सिद्दू के खिलाफ दो हजार वोट से हारे थे.

बेल्लारी सीट पर बीजेपी को झटका

बेल्लारी लोक सभा सीट ने बीजेपी को सबसे जोरदार झटका दिया. बीजेपी उम्मीदवार जे. शांता को वीएस उग्रप्पा के खिलाफ 2.87 लाख वोट से हार मिली. शांता के बड़े भाई श्रीरामुलु ने 2014 में सीट 1.3 लाख वोट से जीती थी. उन्होंने छह महीने पहले विधान सभा में चुने जाने के बाद इस्तीफा दे दिया था. यहां पर चुनाव को उनके और जनार्दन रेड्डी के बीच जंग के तौर पर देखा जा रहा था. रेड्डी का बेल्लारी पर दबदबा रहा है.

खदान घोटाले में फंसने के बाद जनार्दन रेड्डी को बीजेपी से निकाल दिया था. लेकिन उन्होंने पार्टी के साथ अपना जुड़ाव दिखाना जारी रखा. चुनाव अभियान के दौरान रेड्डी ने कुछ विवादास्पद बयान दिए थे. हालांकि वो सुप्रीम कोर्ट के फैसले की वजह से बेल्लारी नहीं जा पाए थे. सुप्रीम कोर्ड ने उनके खिलाफ चल रहे मामलों का निपटारा होने तक उन पर जिले में जाने को लेकर रोक लगाई हुई है.

नतीजों से खुश कुमारस्वामी ने कहा कि जेडीएस और कांग्रेस का गठबंधन आने वाले लोक सभा चुनाव तक चलता रहेगा. उन्होंने भरोसा जताया कि राज्य की 28 में से 24 सीटें उनके गठबंधन को मिलेंगी.

जीत के कुछ ही समय बाद कांग्रेस के नेता इस कामयाबी का श्रेय लेने के लिए एक दूसरे से होड़ लगाते दिखने लगे. बेल्लारी में चुनाव प्रभारी डीके शिवकुमार ने दावा किया कि उग्रप्पा उनकी पसंद थे. उन्होंने कहा कि वाल्मीकि समुदाय से किसी को चुने जाने ने पार्टी को फायदा पहुंचाया है.

अमित शाह की बढ़ी चिंता

पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया पीछे नहीं रहे. उन्होंने कहा कि वो पहले ही भविष्यवाणी कर चुके थे कि बेल्लारी में कांग्रेस को दो लाख से ज्यादा वोटों से जीत मिलेगी. उन्होंने जेडीएस के साथ अपनी साझेदारी को कायम रखने की बात को भी दोहराया.

जहां तक बीजेपी का सवाल है, तो पार्टी अध्यक्ष अमित शाह चिंतित होंगे. कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन ने दिखाया है कि लोक सभा चुनाव में वे कितना नुकसान पहुंचा सकते हैं. उन्हें गंभीरता से पार्टी के अंदर समन्वय की कमी पर भी विचार करना होगा. यहां येदियुरप्पा अपने साथ किसी को लेकर चलने में नाकाम नजर आ रहे हैं. लेकिन यह भी सबको पता है कि लोक सभा चुनाव बहुत दूर नहीं हैं. कर्नाटक बीजेपी में अभी किसी का कद येदियुरप्पा जैसा नहीं है, जो उनकी जगह ले सके. बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व को वैकल्पिक रणनीति बनाने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी, ताकि वे राज्य में पार्टी की उम्मीदों को बेहतर कर सकें.

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