डेमोक्रेटिक फ्रंट
सारिका तिवारी
जेफ्री एप्स्टीन कोई अपवाद नहीं था—वह उस सड़ी-गली वैश्विक व्यवस्था का चेहरा था, जहाँ अपराध अमीरों के ड्राइंग रूम में होते हैं और सज़ा गरीबों के लिए लिखी जाती है। एप्स्टीन फाइल्स ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि इस दुनिया में कानून अंधा नहीं है, बल्कि जानबूझकर आँखें मूँद लेता है—खासतौर पर तब, जब अपराधी ताकतवर हों।
नाबालिग लड़कियों के साथ यौन शोषण, मानव तस्करी और संगठित अपराध—ये कोई आरोप नहीं, बल्कि दर्ज सच्चाइयाँ हैं। फिर भी सवाल उठता है: एप्स्टीन दशकों तक खुलेआम कैसे घूमता रहा? किसके इशारे पर उसके केस दबाए गए? किन न्यायाधीशों, वकीलों और राजनेताओं ने उसे “विशेष待遇” दिया? यह चुप्पी मासूम नहीं है—यह साझेदारी की गवाही है।
जेल में उसकी मौत को “आत्महत्या” कहकर फाइल बंद करने की कोशिश उस व्यवस्था का सबसे निर्लज्ज मज़ाक है। कैमरे बंद थे, निगरानी नाकाम थी, और सबसे अहम गवाह मर चुका था। क्या यह महज़ संयोग था, या फिर सच को हमेशा के लिए दफन करने की साज़िश? जब सवाल ही सवाल हों और जवाब शून्य—तो शक करना नागरिक का अधिकार ही नहीं, कर्तव्य बन जाता है।
एप्स्टीन फाइल्स में जिन नामों की परछाइयाँ हैं, वे दुनिया के सबसे सम्मानित मंचों पर भाषण देते रहे हैं—नैतिकता, मानवाधिकार और सभ्यता पर। यही लोग बंद दरवाज़ों के पीछे शोषण का हिस्सा रहे हों, तो यह केवल पाखंड नहीं, बल्कि सभ्यता के मुँह पर तमाचा है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि ज़्यादातर नाम आज भी सुरक्षित हैं, बेदाग़ हैं, और ताकतवर हैं।
मीडिया भी इस अपराध में निर्दोष नहीं है। कुछ अपवादों को छोड़ दें, तो मुख्यधारा का मीडिया या तो खामोश रहा या फिर जानबूझकर गोलमोल रिपोर्टिंग करता रहा। जब विज्ञापनदाता, कॉरपोरेट हित और सत्ता का दबाव सामने आता है, तब सच अक्सर न्यूज़ रूम के बाहर दम तोड़ देता है। यह पत्रकारिता नहीं—यह दलाली है।
यह मामला हमें चेतावनी देता है कि यदि अपराधी “एलिट” वर्ग से हो, तो पीड़ितों की चीखें भी शोर नहीं बन पातीं। यह केवल अमेरिकी लोकतंत्र की हार नहीं है—यह पूरी दुनिया के न्याय तंत्र की नाकामी है। भारत जैसे देशों को भी यह समझना होगा कि अगर संस्थाएँ जवाबदेह नहीं रहीं, तो अगला एप्स्टीन कहीं भी पैदा हो सकता है।
अब सवाल यह नहीं है कि एप्स्टीन ने क्या किया। सवाल यह है कि कौन-कौन उसके साथ था। सवाल यह है कि किसे बचाया जा रहा है। और सबसे बड़ा सवाल—क्या जनता इतनी बेपरवाह हो चुकी है कि वह सच के दफ़न होने को चुपचाप देख ले?
अगर एप्स्टीन फाइल्स को पूरा उजागर नहीं किया गया, तो यह केवल एक अधूरा केस नहीं रहेगा—यह उस दुनिया का मृत्यु प्रमाण पत्र होगा, जहाँ सत्ता ने इंसानियत को कुचल दिया।

