Tuesday, July 15

पिछले दस वर्षों में सरकारी स्कूलों की संख्या कम हुई है, इसके मुकाबले निजी स्कूल काफी संख्या में खुले हैं। आज ही उत्तर प्रदेश में 5000 सरकारी स्कूलों को बंद किए जाने के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका के अनुसार सरकार के इस कदम से राज्य में 3 लाख 50 हज़ार से ज़्यादा छात्रों को निजी स्कूलों में दाखिला लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा या फिर पढ़ाई छोड़ कर घर बैठना पड़ेगा। याचिका कर्ता ने सरकार के इस कदम को उत्तर प्रदेश के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया है।

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़ – 19 जुलाई :

Sarika Tiwari
Editor,
demokratikfront.com

सरकारें शिक्षा के प्रति उदासीन और संवेदनहीन जान पड़ती हैं। खास तौर पर सरकारी स्कूल पर प्रहार किया जा रहा है जहां बहुत से बच्चे गरीब परिवारों से आते हैं।

पिछले दस वर्षों में सरकारी स्कूलों की संख्या कम हुई है, इसके मुकाबले निजी स्कूल काफी संख्या में खुले हैं। आज ही उत्तर प्रदेश में 5000 सरकारी स्कूलों को बंद किए जाने के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई है। याचिका के अनुसार सरकार के इस कदम से राज्य में 3 लाख 50 हज़ार से ज़्यादा छात्रों को निजी स्कूलों में दाखिला लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा या फिर पढ़ाई छोड़ कर घर बैठना पड़ेगा। याचिका कर्ता ने सरकार के इस कदम को उत्तर प्रदेश के भविष्य के साथ खिलवाड़ बताया है।

दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार के नुमाइंदे कहते हैं कि यह निर्णय केवल कम छात्र संख्या वाले परिषदीय (म्युनिस्पल) विद्यालयों के लिए लिया गया है। स्कूलों को बंद नहीं मर्ज किया जा रहा है।

कारण कुछ भी बताया जाए , स्कूल बंद करने के आदेश से प्रदेश के 27,000 परिषदीय विद्यालय प्रभावित होंगे।
उत्तर प्रदेश में परिषदीय स्कूलों की संख्या 1.32 लाख है। ये वे स्कूल हैं, जहां पर प्रदेश सरकार की ओर से 8वीं तक की कक्षाएं चलाई जाती है। उन सरकारी स्कूलों को मर्ज किए जाने की तैयारी चल रही है, जहां पर छात्रों की संख्या 50 से कम है। आदेश में कहा गया था कम छात्र वाले स्कूल को पड़ोस के स्कूल के साथ मर्ज कर दिया जाएगा, वहीं अगर किसी स्कूल के रास्ते में नदी, हाईवे, रेलवे ट्रैक, नाला आदि पड़ता है तो ऐसे स्कूल भी मर्ज कर दिए जाएंगे। केवल राजधानी लखनऊ में ही 445 प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों का विलय किए जाने के आदेश हैं।

विद्यालय बंद होने से कई कर्मियों का रोज़गार प्रभावित होगा। इससे कितने ही सहायक शिक्षक, शिक्षामित्रों और मिड डे मील वर्कर्स की सेवाएं भी खत्म हो जाएंगी।

दरअसल उत्तर प्रदेश में सरकार ने शिक्षा व्यवस्था में बदलाव की ओर कदम बढ़ाया है। इसके जरिए कक्षा आठवीं तक सरकारी स्कूलों को मर्ज करने की तैयारी चल रही है। इसको लेकर विरोध प्रदर्शन भी चल रहा है।

सर्वविदित है कि देश में पिछले 10 साल में बड़ी संख्या में स्कूल बंद हो चुके हैं। आंकड़ों के अनुसार पिछले 10 वर्षों की बात करें तो वर्ष 20140 से 2024 तक सरकारी स्कूलों की संख्या में 8% की कमी आई है। वहीं निजी स्कूलों की बात करें तो उनमें 14.9% की बढ़ोतरी देखी गई है।

कुछ समय पूर्व सरकार ने लोकसभा में इस डेटा को शेयर किया था. सत्र 2014_15 और 2023_24 के बीच सरकारी स्कूलों की संख्या 11,07,101 से घटकर 10,17,660 हो गई है। जबकि निजी स्कूलों की संख्या 2,88,164 थी, जो कि अब बढ़कर 3,31,108 हो गई है।

हरियाणा में सरकार पिछले दस वर्षों में करीब 600 सरकारी स्कूल बंद कर चुकी है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में क्रमशः 29,410 और 25,126 की गिरावट देखी गई, जो सरकारी स्कूलों में कुल 89,441 गिरावट का 60.9% है. राज्य के अनुसार बात करें तो मध्य प्रदेश में 24.1% जम्मू कश्मीर में 21.4%, ओडिशा में 17.1%, अरुणाचल प्रदेश में 16.4%, उत्तर प्रदेश में 15.5%, नागालैंड में 14.4%, झारखंड में 13.4%, गोवा में 12.9% और उत्तराखंड में 8.7% की कमी आई है।